एडिटोरियल (23 Aug, 2022)



कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा

यह एडिटोरियल 22/08/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Solar energy: For Amrit Kaal in agriculture” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा की असीम संभावनाओं के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

अक्षय ऊर्जा (Renewable energy) ने ग्रिड पावर को बढ़ाने, ऊर्जा पहुँच प्रदान करने, जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करने और भारत को अपने निम्न कार्बन विकास पथ पर आगे बढ़ाने में मदद करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी है।

  • भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म-आधारित स्थापित विद्युत क्षमता में देश की हिस्सेदारी को 40% तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • भारत विश्व भर में सौर- आधारित अर्थव्यवस्था की स्थापना को प्रोत्साहित करने में नेतृत्वकारी भूमिका निभा रहा है। भारत ने फ्रांस के साथ साझेदारी में वर्ष 2015 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) की स्थापना को बढ़ावा दिया था। वर्ष 2018 में ISA को एक संधि-आधारित संगठन में बदल दिया गया है जिसका मुख्यालय भारत में स्थित है।
  • यदि विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग किया जाए तो सौर ऊर्जा, ऊर्जा के सबसे बहुमुखी रूपों में से एक है जो अपार संभावनाएँ रखती है। सौर ऊर्जा भारत में कृषि क्षेत्र के लिये एक ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकती है; यह मूल्यवान जल संसाधनों की बचत करेगी, ग्रिड पर निर्भरता को कम करेगी और यहाँ तक कि किसानों के लिये राजस्व का अतिरिक्त माध्यम भी बन सकती है।

ऑफ-ग्रिड और ऑन-ग्रिड सौर ऊर्जा

  • ऑन-ग्रिड का अर्थ उस सौर प्रणाली से है जो स्थानीय यूटिलिटी के ग्रिड या यूटिलिटी कंपनी से जुड़ी होती है।
    • यूटिलिटी प्रणाली सौर ऊर्जा उपयोगकर्त्ताओं के लिये बैटरी स्पेस के रूप में कार्य करती है। इसका अर्थ यह है कि सौर पैनलों द्वारा उत्पादित अधिशेष ऊर्जा को ग्रिड की बिजली कंपनी को भेजा जाता है और बदले में एक क्रेडिट का सृजन होता है जिसे वर्ष के अंत में भुनाया जा सकता है।
      • ग्रिड से जुड़ा होना लाभप्रद है क्योंकि किसी भी अतिरिक्त ऊर्जा के संग्रहण के लिये महंगे बैटरी बैक-अप सिस्टम की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
  • ऑफ-ग्रिड का अर्थ है कि ग्रिड के पावर सिस्टम या यूटिलिटी कंपनी से कोई जुड़ाव नहीं होता है।
    • शत-प्रतिशत आत्मनिर्भर ऊर्जा उपयोग के कारण यह आकर्षक है।
      • हालाँकि इसके अपने नुकसान भी हैं क्योंकि ऑफ-ग्रिड प्रणाली के लिये एक बैक-अप बैटरी की आवश्यकता होती है जो महंगी और भारी होने के साथ ही पर्यावरण के कम अनुकूल भी हो सकती है और इस प्रकार सौर ऊर्जा के मूल उद्देश्य (धन की बचत और हरित जीवन) को ही नष्ट कर सकती है।

off-grid

कृषि क्षेत्र में सौर ऊर्जा की संभावनाएँ

  • सौर ऊर्जा कृषि फार्मों पर ऊर्जा की आवश्यकता और आपूर्ति को आसानी से सुनिश्चित कर सकती है। विभिन्न प्रकार के सौर ऊर्जा अवशोषणकारी उपकरण एवं प्रणालियाँ विकसित की गई हैं और कृषि अनुप्रयोगों के लिये उनका उपयोग किया जा रहा है। इनमें शामिल हैं:
    • सोलर पंपिंग सिस्टम: यह भारत में पहले से ही भारी दबावपूर्ण सिंचाई प्रणाली को संचालित करने में पर्याप्त सहायक है।
      • विशेष रूप से, सौर पंप सिंचाई नहरों से जल खींचने के उपकरणों के रूप में उपयोगी हो सकते हैं और उन क्षेत्रों में जल के समान रूप से वितरण में सहयोग कर सकते हैं जहाँ पारंपरिक जल प्रणालियों तक पहुँच नहीं हो (जैसे कि ऊँचे पहाड़ी इलाके)।
    • सोलर क्रॉप ड्रायर: विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये विभिन्न प्रकार के सोलर ड्रायर (Solar Dryer) उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग आलू, अनाज, गाजर और मशरूम जैसे कृषि उत्पादों को सुखाने के लिये किया जा सकता है।
    • सोलर स्प्रेयर: सौर कीटनाशक स्प्रेयर मशीन छोटे किसानों की मदद कर उनकी उत्पादकता में सुधार ला सकते हैं।
      • अधिकांश कीटनाशक छिड़काव गतिविधि दिन के समय की जाती है, इसलिये इन स्प्रे मशीनों का उपयोग प्रत्यक्ष रूप से सौर ऊर्जा ग्रहण कर किया जा सकता है और इन मशीनों के लिये बैटरी की आवश्यकता नहीं होगी।
    • सौर ऊर्जा से संचालित ट्रैक्टर: ट्रैक्टर ने विभिन्न प्रकार के औजारों और उपकरणों की मदद से बहुत सारे कार्य संभव बनाकर कृषि फार्मिंग को कृषि-उद्योग में बदलने में योगदान दिया है।
      • आमतौर पर ट्रैक्टर के लिये तेल की आवश्यकता होती है जिससे खेती की लागत बढ़ती है और तेल ईंधन का दहन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन से वातावरण को प्रदूषित करता है।
      • सौर ऊर्जा से चलने वाले ट्रैक्टर इसका बेहतर विकल्प हो सकते हैं जो दिन के समय प्रत्यक्ष रूप से सौर ऊर्जा का उपयोग करते हुए कार्य कर सकते हैं, जबकि बैटरी में संग्रहीत ऊर्जा की मदद से रात के समय भी कार्य जारी रखा जा सकता है।

भारत के कृषि क्षेत्र के साथ सौर ऊर्जा को एकीकृत करने के मार्ग की चुनौतियाँ

  • भूमि की कमी: भारत में प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता अत्यंत कम है। भारत में भूमि पहले से ही एक दुर्लभ संसाधन है, जिसकी मांग किसानों, उद्योगों, वाणिज्यिक एवं सेवा संस्थानों और सरकार द्वारा की जाती रही है।
    • सौर सेल की विशेष स्थापना के लिये सबस्टेशनों के पास भूमि क्षेत्र के अधिग्रहण को उन अन्य आवश्यकताओं एवं गतिविधियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ सकती है जिनके लिये भूमि की मांग की जाती है।
  • निर्यात-प्रेरित बाज़ार: निर्माता प्रायः निर्यात बाज़ारों पर केंद्रित हैं जो उच्च कीमतों पर सौर सेल और मॉड्यूल की खरीद करते हैं। निर्माताओं के लिये यह अधिक लाभकारी कारोबार है।
    • कई नए आपूर्तिकर्ताओं ने यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेशी खिलाड़ियों के साथ सहयोग स्थापित किया है, जहाँ निर्यात मांग को प्राथमिकता दी जा रही है। इसके परिणामस्वरूप भारत में तेज़ी से बढ़ते स्थानीय बाज़ार के लिये आपूर्ति कम हो सकती है।
  • ग्रिड एकीकरण: सौर क्षेत्र के लिये सबसे बड़ी चुनौती इतने वृहत देश में ग्रिड एकीकरण की है। इसके साथ ही वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की खराब वित्तीय स्थिति भी एक प्रमुख चुनौती है।
  • सौर अपशिष्ट प्रबंधन नीति का अभाव: भारत के महत्त्वाकांक्षी सौर ऊर्जा स्थापना लक्ष्यों को एक सौर अपशिष्ट प्रबंधन नीति (Solar Waste Management Policy) का सहयोग प्राप्त नहीं है।
    • सौर अपशिष्ट बेकार हुए सोलर पैनल से उत्पन्न इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट है। यह अगले दशक तक कम से कम चार-पाँच गुना बढ़ सकता है।
  • वाणिज्यिक व्यवहार्यता और उपयोगिता: सौर ऊर्जा उत्पादन तकनीक में अभी भी पर्याप्त सुधार किया जाना शेष है ताकि यह भारत के लिये व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बन सके।
    • स्थलाकृतिक या जलवायु की दृष्टि से भी सूर्य की किरणें पूरे वर्ष किसी विशेष स्थान पर एकसमान रूप से उपलब्ध नहीं होती हैं।
    • इसके अलावा, लोगों को, विशेष रूप से किसानों को अभी भी इसके उपयोग और उपयोगिता के बारे में शिक्षित और आश्वस्त करना शेष है।
      • ताप विद्युत संयंत्रों के विपरीत सौर ऊर्जा उपभोक्ता प्रधान साधन है और इसलिये इसकी सफलता के लिये लोगों की भागीदारी और स्वीकृति अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय हैं।

भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन की वृद्धि के कार्यान्वित सरकारी योजनाएँ

आगे की राह

  • प्रोत्साहन-आधारित विस्तार नीतियाँ: एक गैर-नवीकरणीय ऊर्जा-आधारित प्रणाली से नवीकरणीय ऊर्जा-आधारित कृषि प्रणाली में रूपांतरण के मार्ग में कई चुनौतियाँ मौजूद हैं।
    • इस रूपांतरण को तत्काल लेकिन व्यवस्थित होना चाहिये और इसे देश में सौर नेटवर्क के विस्तार हेतु प्रोत्साहन-आधारित नीतियों के साथ समर्थित होना चाहिये।
  • विकास के लिये बहु-संभावनाशील उम्मीदवार के रूप में सौर ऊर्जा: सौर ऊर्जा घरेलू उपयोगिता के लिये बिजली की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहन संचालन चलाने के लिये एक आकर्षक विकल्प हो सकता है। यह भविष्य में कूलिंग और हीटिंग आवश्यकताओं को भी पूरा करेगा।
  • बेहतर वित्त पोषण और प्रशिक्षण: भारत ग्रामीण स्तर पर सौर उद्योग को बढ़ावा देने के लिये बेहतर वित्तीय बुनियादी ढाँचे, मॉडल और व्यवस्था की आवश्यकता रखता है।
    • मानव संसाधनों को प्रशिक्षित एवं विकसित करने के साथ-साथ ग्रामीण युवाओं को कौशल विकास प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है ताकि गाँव सौर उपकरणों के प्रबंधन में आत्मनिर्भर बन सकें।
  • उपभोक्ता जागरूकता: प्रौद्योगिकी, इसके अर्थशास्त्र और सही उपयोग के बारे में उपभोक्ता जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।
    • ‘हर खेत में सौर ऊर्जा के लिये सौर शुभंकर’ जारी किया जा सकता है जो ग्रामीण क्षेत्र में कृषि और ऊर्जा प्रबंधन में सौर ऊर्जा की संभावनाओं के बारे में जागरूकता प्रसार में सहायक होगा।
  • सौर ऊर्जा लक्ष्यों को वर्तमान अभियानों से जोड़ना: ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे अभियानों को ऑफ-ग्रिड सिस्टम के साथ एकीकृत किया जा सकता है जिससे ‘ग्रिड रेडी इंडिया’ का निर्माण होगा।
    • यदि इन पहलों को परिकल्पना के अनुसार क्रियान्वित किया जाता है तो फिर वह दिन दूर नहीं जब भारत सौर ऊर्जा क्षेत्र में विश्व के नेतृत्वकर्ताओं में से एक होगा।
  • सौर उत्पादन के अनुरूप कृषि: सौर ऊर्जा द्वारा विद्युत ऊर्जा के उत्पादन के साथ भूमि का संयुक्त रूप से कृषि उपयोग किया जाना चाहिये।
    • यह खाद्य फसलों के उत्पादन के साथ ही मृदा की सुरक्षा और जल की बचत को ध्यान में रखते हुए बिजली उत्पादन का मार्ग प्रशस्त करेगा।
      • यह संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति में योगदान के साथ-साथ खाद्य, जल, ऊर्जा और जलवायु की संवहनीयता को बढ़ा सकता है।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘सौर ऊर्जा भारत में कृषि क्षेत्र के लिये एक ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकती है।’’ टिप्पणी कीजिये।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2016)

  1. अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में शुरू किया गया था।
  2. गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश शामिल हैं।

 उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

 (A) केवल 1
 (B) केवल 2
 (C) 1 और 2 दोनों
 (D) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (A)


Q. भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष2018)

  1. फोटोवोल्टिक इकाइयों में इस्तेमाल होने वाले सिलिकॉन वेफर्स के निर्माण में भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा देश है।
  2. सौर ऊर्जा शुल्क भारतीय सौर ऊर्जा निगम द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

 (A) केवल 1
 (B) केवल 2
 (C) दोनों 1 और 2
 (D) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (D)