अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-भूटान और चीन त्रिकोण: अवसर व चुनौतियाँ
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत-भूटान और चीन त्रिकोण व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
हाल ही में चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति का अनुसरण करते हुए भूटान की पूर्वी सीमा पर भी अपनी दावेदारी पेश कर दी है। चीन के द्वारा इस प्रकार की दावेदारी भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के तवांग क्षेत्र को लेकर भी की जाती रही है। चीन ने अपनी विस्तारवादी मानसिकता के कारण ही सभी पड़ोसी देशों के मन में स्वयं के प्रति अविश्वास व संदेह की भावना उत्पन्न कर दी है। चीन के विपरीत भारत ने साझी संस्कृति, साझी विरासत व आपसी समन्वय के बल पर भूटान के साथ विश्वास की एक मज़बूत नीव स्थापित की है।
भूटान के साथ सदियों से भारत के मधुर संबंध रहे हैं और वह भारत का निकट सहयोगी भी रहा है तथा पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में काफी प्रगति हुई है। पिछले कई दशकों से भूटान के साथ संबंध भारत की विदेश नीति का एक स्थाई कारक रहा है। साझा हितों और पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग पर आधारित अच्छे पड़ोसी के संबंधों का यह उत्कृष्ट उदाहरण है। यह इस बात का प्रतीक है कि दक्षिण एशिया की साझा नियति है। यही कारण है कि आज परिपक्वता, विश्वास, सम्मान, आपसी सूझ-बूझ तथा निरंतर विस्तृत होते कार्यक्षेत्र में संयुक्त प्रयास भारत-भूटान संबंधों की विशेषता है।
वर्तमान मुद्दा क्या है?
- चीन के द्वारा भूटान की पूर्वी सीमा पर अपनी दावेदारी पेश की गई है, आश्चर्यजनक बात यह है कि भूटान की पूर्वी सीमा किसी भी प्रकार से चीन के साथ सीमा साझा नहीं करती है।
- इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के नेतृत्व में आयोजित होने वाले वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility) सम्मेलन में भूटान के सकतेंग वन्यजीव अभ्यारण्य (Sakteng Forest Reserve) को विवादित क्षेत्र बताते हुए चीन द्वारा उसे प्राप्त होने वाले अंतर्राष्ट्रीय अनुदान का रोकने का असफल प्रयास किया गया।
सकतेंग वन्यजीव अभ्यारण्य
- सकतेंग वन्यजीव अभ्यारण्य की स्थापना वर्ष 2003 में की गई थी।
- यह अभ्यारण्य भूटान के सुदूर पूर्वी भाग में त्राशिगंग जिले (Trashigang District) में अवस्थित है।
- यह उत्तर और पूर्व दिशा में अरुणाचल प्रदेश के साथ सीमा साझा करता है।
- यह वन्यजीव अभ्यारण्य लगभग 740.60 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
- यहाँ मुख्य रूप से रेड पांडा और हिमालयी मोनाल तीतर (Monal Pheasant) पाया जाता है इसके अतिरिक्त बुरुंश का फूल (Rhododendron) बहुतायत में पाए जाते हैं।
- पूर्व में वर्ष 1984 से चीन व भूटान के मध्य लगातार वार्तालाप के 24 दौर आयोजित किये गए परंतु कभी भी चीन ने भूटान की पूर्वी सीमा का मुद्दा नहीं उठाया।
- ध्यातव्य है कि भूटान की पूर्वी सीमा अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के साथ स्पर्श करती है, अतः चीन की यह नई चाल भूटान ही नहीं बल्कि भारत के लिये भी चिंता का विषय है।
- रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, चीन के द्वारा भूटान की पूर्वी सीमा पर दावेदारी दबाव बनाने की रणनीति है, जिसका अप्रत्यक्ष लाभ उसे डोकलाम क्षेत्र में अपनी दावेदारी को मज़बूत करने (पैकेज समाधान) के रूप में मिल सकता है।
- विदित है कि भूटान व चीन के मध्य डोकलाम क्षेत्र, जाकरलुंग क्षेत्र तथा पासमलुंग क्षेत्र को लेकर विवाद है।
भारत-भूटान: घनिष्ठ मित्र
- भौगोलिक एवं सांस्कृतिक कारकों के आधार पर भारत एवं भूटान के संबंध प्राचीन काल से ही अटूट रहे हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत-भूटान के बीच संबंधों में अधिक प्रगाढता आई।
- वर्ष 1949 में दोनों देशों के मध्य मित्रता और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किये गये। इस संधि ने भारत-भूटान के मध्य द्विपक्षीय संबंधों की नींव रखी।
- इस संधि से भूटान के विदेश संबंधों और उसकी रक्षा का दायित्त्व भारत पर आ गया। इस संधि को वर्ष 2007 में संशोधित किया गया जिसमें भारत द्वारा भूटान को स्वतंत्र विदेश नीति के निर्धारण के लिये प्रेरित किया गया।
- वर्ष 1968 में भूटान के साथ भारत के राजनयिक संबंधों की शुरुआत हुई। वर्ष 2018 में राजनयिक संबंधों के 50 वर्ष पूर्ण हुए हैं।
भारत के लिये भूटान का महत्त्व
- भूटान भारत का निकटतम पड़ोसी देश है और दोनों देशों के बीच खुली सीमा है। द्विपक्षीय भारतीय-भूटान समूह सीमा प्रबंधन और सुरक्षा की स्थापना दोनों देशों के बीच सीमा की सुरक्षा करने के लिये की गई है। वर्ष 1971 से भूटान संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है। संयुक्त राष्ट्र में भूटान जैसे छोटे हिमालयी देश के प्रवेश का समर्थन भी भारत ने ही किया था, जिसके बाद से इस देश को संयुक्त राष्ट्र से विशेष सहायता मिलती है।
- भारत के साथ भूटान मज़बूत आर्थिक, रणनीतिक और सैन्य संबंध रखता है। भूटान सार्क का संस्थापक सदस्य है और बिम्सटेक, विश्व बैंक तथा IMF का सदस्य भी बन चुका है। भौगोलिक स्थिति के कारण भूटान विश्व के बाकी हिस्सों से कटा हुआ था, लेकिन अब भूटान ने विश्व में अपनी जगह बनाने के प्रयास शुरू कर दिये हैं।
- भारत की उत्तरी प्रतिरक्षा व्यवस्था में भी भूटान को Achilles Heel की संज्ञा दी जाती है। यह भारत की सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। चुम्बी घाटी से चीन की सीमाएँ लगभग 80 मील की दूरी पर हैं, जबकि भूटान, चीन से लगभग 470 किमी. लंबी सीमा साझा करता है।
- ऐसे में चीन के विस्तारवादी रुख के मद्देनज़र भूटान की सीमाओं को सुरक्षित रखना ज़रूरी है क्योंकि इससे न केवल भूटान को बल्कि उत्तरी बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश को भी खतरा हो सकता है।
- भारत और भूटान के बीच 605 किलोमीटर लंबी सीमा है तथा वर्ष 1949 में हुई संधि की वज़ह से भूटान की अंतर्राष्ट्रीय, वित्तीय और रक्षा नीति पर भारत का प्रभाव रहा है।
भारत-भूटान के बीच सहयोग के क्षेत्र
- पर्यटन
- शिक्षा और छात्रवृत्ति
- हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स
- क्षेत्र में स्थिरता तथा आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई
- BBIN (बांग्लादेश, भूटान, इंडिया तथा नेपाल) परियोजना
- क्षेत्र में चीन के भौगोलिक आकार तथा आर्थिक विस्तार को रोकना
- विकास आधारित खुशहाली
- जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग
भारत-भूटान व्यापारिक परिदृश्य
- 15 जुलाई 2020 को भारत और भूटान ने पश्चिम बंगाल के जयगाँव और भूटान के पासाखा के बीच एक नया व्यापारिक मार्ग खोल दिया है। भारत सरकार ने पूर्व में भूटान स्थित पसाखा में एक अतिरिक्त भूमि सीमा शुल्क स्टेशन भी खोला था।
- भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। वर्ष 2019 में दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 9317 करोड़ रुपए का था। इसमें भारत से भूटान को होने वाला निर्यात 6113 करोड़ रुपए (भूटान के कुल आयात का 84%) तथा भूटान से भारत को होने वाला निर्यात 3314 करोड़ रुपए (भूटान के कुल निर्यात का 78 प्रतिशत) दर्ज किया गया।
- भारत से भूटान को निर्यात होने वाली प्रमुख वस्तुओं में खनिज उत्पाद, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण, बिजली के उपकरण, धातुएँ, वाहन, सब्जी उत्पाद, प्लास्टिक की वस्तुएँ शामिल हैं।
- भूटान से भारत को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ हैं- बिजली, फेरो-सिलिकॉन, पोर्टलैंड सीमेंट, डोलोमाइट, सिलिकॉन, सीमेंट क्लिंकर, लकड़ी तथा लकड़ी के उत्पाद, आलू, इलायची और फल उत्पाद।
हाइड्रोपावर कोऑपरेशन
- भूटान में जलविद्युत परियोजनाएँ दोनों देशों के बीच सहयोग के प्रमुख उदाहरण हैं जो भारत को सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा का विश्वसनीय स्रोत प्रदान करती हैं तथा राजस्व अर्जन के साथ-साथ दोनों देशों के बीच आर्थिक एकीकरण को मज़बूती प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- अब तक भारत सरकार ने भूटान में कुल 1416 मेगावाट की तीन पनबिजली परियोजनाओं (HEPs) के निर्माण में सहयोग किया है ये परियोजनाएँ चालू अवस्था में हैं और भारत को विद्युत निर्यात कर रही हैं।
- जलविद्युत निर्यात भूटान के घरेलू राजस्व का 40% और उसके सकल घरेलू उत्पाद का 25% से अधिक राजस्व प्रदान करता है।
- वर्ष 2009 में दोनों देशों ने एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किया जिसमें यह सहमति बनी कि भारत 2020 तक भूटान को 10 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन कराने में सहयोग कर उससे अधिशेष बिजली खरीदेगा।
- वर्ष 2019 में भारत व भूटान के प्रधानमंत्री ने मिलकर मांगदेचू पनबिजली परियोजना (Mangdechhu hydroelectric project) का उद्घाटन किया।
आध्यात्मिक कूटनीति
- भूटान में जोंग धार्मिक मठों और प्रशासनिक केंद्र के रूप में रहे हैं। ऐतिहासिक सिमटोखा जोंग स्थल के प्रांगण में प्रधानमंत्री मोदी ने साइप्रस के पौधे का रोपण भी किया और भूटान को पर्यावरणीय रोल मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया।
- तिब्बती बौद्ध लामा शब्दरूंग नामग्याल द्वारा वर्ष 1629 में निर्मित सिमटोखा जोंग इस हिमालयी देश के सबसे पुराने किलों में एक है। यह इमारत बौद्धमठ और प्रशासनिक केंद्र के रूप में काम करती है। नामग्याल को भूटान के एकीकृत करने वाले के तौर पर देखा जाता है।
- इस स्थान को महत्व देकर भारत ने कूटनीति की एक नई विधा आध्यात्मिक कूटनीति की शुरुआत की है।
भूटान पर चीन की नज़र
- चीन अपने उत्तरी पड़ोसी भूटान के साथ संबंधों को औपचारिक रूप देने के लिये उत्सुक है। चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसके साथ भूटान का अभी भी कोई औपचारिक संबंध नहीं है।
- चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद भी है। चीन चाहता है कि सीमा विवाद को सुलझाने में भारत की कोई भूमिका न हो लेकिन भूटान ने साफ कर दिया था कि इस संबंध में जो भी बात होगी वह भारत की मौजूदगी में होगी।
- भारत और भूटान के बीच हुई ऐतिहासिक संधि चीन को हमेशा खटकती रही है। चीन और भूटान के बीच पश्चिम तथा उत्तर में करीब 470 किलोमीटर लंबी सीमा है।
- दूसरी तरफ, भारत और भूटान की सीमा पूर्व पश्चिम तथा दक्षिण में 605 किलोमीटर है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भूटान में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी रही है और भूटान की सेना को भारत प्रशिक्षण देने के साथ अनुदान भी मुहैया कराता है।
- भारत, भूटान की सुरक्षा के साथ-साथ अपनी सुरक्षा भी करता है। चीन के इरादे हमेशा से ही अच्छे नहीं रहे हैं। भूटान को आशंका रहती है कि वर्ष 1948 में माओ ने जिस तरह तिब्बत को अपने कब्जे में लिया उसी तरह चीन, भूटान पर भी कब्ज़ा कर लेगा।
आगे की राह
- भारत को भूटान की चिंताओं को दूर करने के लिये मज़बूती से काम करने की आवश्यकता है, क्योंकि भूटान में चीनी हस्तक्षेप बढ़ने से भारत-भूटान के मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों की नींव कमज़ोर पड़ने का खतरा है। भूटान का राजनीतिक रूप से स्थिर होना भारत की सामरिक और कूटनीतिक रणनीति के लिहाज़ से बेहद महत्त्वपूर्ण है।
- गौरतलब यह भी है कि मात्र 8 लाख की आबादी वाले देश भूटान की अर्थव्यवस्था बहुत छोटी है और वह काफी हद तक भारत को होने वाले निर्यात पर ही निर्भर है। लेकिन इधर भारत में विमुद्रीकरण, वस्तु एवं सेवा कर जैसी घटनाओं ने व्यापार के मामले में भूटान में भ्रम उत्पन्न कर दिया है। इसलिये ऐसे सभी मुद्दों पर दोनों देशों को मिलकर विस्तार से विचार करना होगा, जो दोनों देशों के विकास, शांति एवं सुरक्षा के लिहाज से महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न- चीन व भूटान के मध्य सीमा विवाद संबंधी हालिया घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए बताए कि यह विवाद उत्तर-पूर्व भारत की सुरक्षा को किस प्रकार प्रभावित कर सकता है। साथ ही भारत के लिये भूटान के महत्त्व को भी रेखांकित कीजिये।