शासन व्यवस्था
भारत में श्रम सुधार
यह एडिटोरियल 19/08/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Hard truths about India’s labour reforms” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में श्रम सुधारों और इससे संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।
कार्य अथवा श्रम (Work) प्रत्येक व्यक्ति के दैनिक जीवन का अंग होता है और यह मनुष्य के रूप में उसकी गरिमा, कल्याण तथा विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है। आर्थिक विकास का अर्थ केवल नौकरियों का सृजन ही नहीं है, बल्कि इसका संबंध उन कार्य स्थितियों या कार्य-दशाओं के सृजन से भी है जिनमें व्यक्ति स्वतंत्रता, सुरक्षा एवं सम्मान के साथ कार्य करने में सक्षम होता है।
वर्ष 2020 में भारत में लगभग कर्मियों अथवा कामगारों की संख्या 501 मिलियन थी, जो चीन के बाद किसी देश में कर्मियों की सबसे बड़ी संख्या है। देश के कुल श्रम बल (Labour force) में से 41.19% कृषि उद्योग में, 26.18% उद्योग क्षेत्र में और 32.33% सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं।
भारत के श्रम बल को दो क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है- संगठित क्षेत्र (Organised Sector) और असंगठित क्षेत्र (Unorganised Sector)। भारत की प्रमुख सामाजिक-आर्थिक समस्या यह है कि इसके अधिकांश नागरिक बेहतर जीवनयापन के लिये संघर्षरत हैं।
केवल रोज़गार ही उनकी समस्याओं का कारण नहीं है, बल्कि उस रोज़गार की खराब गुणवत्ता, अपर्याप्त एवं अनिश्चित आय और बदतर कार्य-स्थिति योगदान का भी इसमें महत्त्वपूर्ण योगदान है चाहे वे कहीं भी कार्यरत हों।
संगठित और असंगठित क्षेत्र के बीच अंतर
- भारत में संगठित क्षेत्र या औपचारिक क्षेत्र लाइसेंस प्राप्त संगठनों को संदर्भित करता है, अर्थात् वे संगठन जो पंजीकृत हैं और ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (GST) का भुगतान करते हैं।
- इनमें सार्वजनिक कारोबारी कंपनियाँ, निगमित या औपचारिक रूप से पंजीकृत निकाय, निगम, कारखाने और बड़े व्यवसाय शामिल हैं।
- असंगठित क्षेत्र, जिसे स्वयं के स्वामित्त्व वाले उद्यम के रूप में भी जाना जाता है, सभी लाइसेंस-रहित, स्व-नियोजित या अपंजीकृत आर्थिक गतिविधियों (जैसे स्वामी संचालित जनरल स्टोर, हस्तशिल्प एवं हथकरघा श्रमिक, ग्रामीण व्यापारी, किसान आदि) को संदर्भित करता है।
भारत में कामगारों के संबंध में मौजूद ढाँचा
- संवैधानिक ढाँचा: भारतीय संविधान के तहत श्रम (Labour) को एक विषय के रूप में समवर्ती सूची में रखा गया है और इसलिये केंद्र और राज्य दोनों सरकारें (केंद्र के लिये आरक्षित कुछ मामलों को छोड़कर) इस विषय पर विधि बना सकती हैं।
- न्यायिक व्याख्या: रणधीर सिंह बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ‘‘भले ही ‘समान कार्य के लिये समान वेतन’ के सिद्धांत को भारत के संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है, यह एक लक्ष्य है जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14,16 और 39 (c) के माध्यम से प्राप्त किया जाना है।
- अनुच्छेद 14: यह भारत के राज्यक्षेत्र में विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 16: यह लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 39 (c): यह निर्दिष्ट करता है कि आर्थिक प्रणाली का संचालन इस प्रकार हो कि संपत्ति और उत्पादन के साधनों का सर्वसाधारण के लिये अहितकारी संकेंद्रण न हो।
- विधिक ढाँचा: श्रम कानूनों को सरल बनाने के लिये और कार्य-दशाओं में सुधार के लिये सरकार द्वारा कई विधायी और प्रशासनिक पहलें की गई हैं। इस संबंध में अभी हाल में 4 श्रम संहिताओं का एक समेकित समूह भी लाया गया है जिन्हें अभी लागू किया जाना है।
- श्रम संहिताएँ (Labour Codes):
- इनके कार्यान्वयन में देरी हो रही है क्योंकि राज्यों द्वारा इन संहिताओं के तहत अपने नियमों को अंतिम रूप दिया जाना अभी शेष है।
श्रम संहिताओं के लाभ
- जटिल कानूनों का सरलीकरण: ये श्रम संहिताएँ कम-से-कम पिछले 17 वर्षों से विचाराधीन 29 केंद्रीय कानूनों को समेकित कर श्रम कानूनों को सरल बनाती हैं।
- यह उद्योग और रोज़गार को एक बड़ा प्रोत्साहन प्रदान करेगा और व्यवसायों क संदर्भ में परिभाषा एवं अधिकार की बहुलता को कम करेगा।
- आसान विवाद समाधान: ये संहिताएँ पुरातन श्रम कानूनों को सरल बनाने और निर्णयन प्रक्रियाओं में सुधार लाने का उद्देश्य रखती हैं, जिससे विवाद का त्वरित निपटान संभव होगा।
- कारोबार सुगमता: कई अर्थशास्त्रियों और उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि इन सुधारों से निवेश को बढ़ावा मिलेगा और कारोबार सुगमता (Ease of Doing Business) की स्थिति बनेगी।
- उनका अनुमान है कि इन सुधारों से आंतरिक अंतर्विरोधों में कमी आएगी, लचीलेपन में वृद्धि होगी और सुरक्षा एवं कार्य स्थिति विनियमों का आधुनिकीकरण होगा।
- लैंगिक समानता: सभी क्षेत्रों में महिलाओं को रात्रिकालीन कार्य कर सकने की अनुमति दी जानी चाहिये जहाँ नियोक्ताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके लिये पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की गई है और इस संबंध में महिला कर्मियों की पूर्व-सहमति प्राप्त होनी चाहिये।
वर्तमान श्रम सुधारों से संबंधित संदिग्ध क्षेत्र
- ‘निरीक्षक सह सुविधा प्रदानकर्त्ता’: नई संहिताओं में एक ‘निरीक्षक सह सुविधाकर्त्ता’ या ‘इंस्पेक्टर-कम-फैसिलिटेटर’ (Inspector-cum-Facilitator) की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है, जिसके पास अनुपालन की जाँच करने के साथ-साथ अनुपालन हेतु व्यवसायों को सुविधा प्रदान करने का उत्तरदायित्व होगा।
- ‘फैसिलिटेटर’ के रूप में भूमिका एक नया तत्त्व प्रतीत होता है और इस भूमिका तथा ‘इंस्पेक्टर’ की पारंपरिक ज़िम्मेदारियों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- कामगारों और कर्मचारियों को परिभाषित करने में स्पष्टता की कमी: कामगारों (Workers) एवं कर्मचारियों (Employees) के बीच अंतर, ओवरटाइम मुआवज़ा (विशेषकर कोविड के चलते दूरस्थ कार्य नीतियों के प्रकाश में) और संगठनों एवं गिग वर्कर्स के बीच संबंध जैसे मामलों के बारे में और अधिक स्पष्टता की आवश्यकता थी।
- छोटे स्टार्टअप और अनौपचारिक क्षेत्र सामाजिक सुरक्षा कवरेज़ से वंचित: छोटे स्टार्टअप, ‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों’ (MSMEs) या 300 से कम कामगारों वाले छोटे प्रतिष्ठानों से संलग्न कामगारों की सामाजिक सुरक्षा के संबंध में कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया है।
- प्रवासी कामगार, स्व-नियोजित कामगार, गृह-आधारित कामगार और ग्रामीण क्षेत्रों के अन्य कमज़ोर समूह सामाजिक सुरक्षा लाभों के अंतर्गत कवर नहीं किये गए हैं।
- इससे कंपनियों को अपने कामगारों के लिये मनमानीपूर्ण सेवा शर्तें लागू करने का अवसर मिलेगा।
- धर्मार्थ या गैर-लाभकारी प्रतिष्ठानों का गैर-समावेशन: ‘व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियों पर संहिता’ ने धर्मार्थ या गैर-लाभकारी प्रतिष्ठानों को दायरे में नहीं लिया है।
- वास्तव में देश में कोई भी केंद्रीय कानून मौजूद नहीं है जो चैरिटी या धर्मार्थ संगठनों के शासन का विनियमन करता हो।
- अदृश्य श्रम को चिह्नित नहीं किया जाना: अदृश्य श्रम (Invisible labour) श्रम का वह भाग है जिसे चिह्नित नहीं किया जाता या जिस पर ध्यान नहीं जाता और इस प्रकार यह अविनियमित रह जाता है।
- आम तौर पर अवैतनिक कार्य को ‘अदृश्य श्रम’ कहा जाता है।
- बाल देखभाल, घरेलू कार्य, परिवार के बुजुर्गों की देखभाल आदि अवैतनिक कार्य के कुछ उदाहरण हैं और अदृश्य श्रम का गठन करते हैं।
- अदृश्य श्रमिकों में से अधिकांश महिलाएँ हैं जो सबसे कठिन कार्य करती हैं और उनके लिये कोई सप्ताहांत अवकाश, निर्धारित कार्य समय या छुट्टी का प्रावधान नहीं है साथ ही न तो उनके योगदान को कोई मान्यता दी जाती है और न ही सराहना की जाती है।
- चारों नई संहिताओं में से किसी में भी अदृश्य श्रम के बारे में बात नहीं की गई है।
- आम तौर पर अवैतनिक कार्य को ‘अदृश्य श्रम’ कहा जाता है।
आगे की राह
- व्यावसायिक प्रशिक्षण: भारत के श्रम कार्यबल को अनुकूलित और सशक्त बनाने के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों हेतु एजेंसियों को मान्यता देना अथवा मानक एजेंसियों की स्थापना करना आवश्यक है।
- व्यावसायिक प्रशिक्षण और अकादमिक शिक्षा को आपस में संयुक्त करने के लिये एक रूपरेखा विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
- सामाजिक सुरक्षा: राज्य सरकारों को असंगठित कामगारों के कल्याण के लिये कानून बनाना चाहिये, जो स्पष्ट रूप से संग्रहण वाले संसाधनों और उन्हें दिये जाने वाले लाभों के साथ-साथ संस्थागत तंत्र की पहचान कर सके।
- असंगठित कामगारों के लिये कल्याणकारी सेवाओं की भी आवश्यकता है, जैसे ‘रिस्क कवर मोड’ में कार्य के दौरान दुर्घटनाओं या मृत्यु के लिये मुआवजा, वृद्धावस्था पेंशन आदि प्रदान करना।
- रोज़गार सूचना सेवा: पिछड़े ज़िलों में रोज़गार गारंटी प्रदान करने के लिये नई पहल का समर्थन करने हेतु ई-गवर्नेंस के माध्यम से रोज़गार सूचना सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता है।
- निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों से रोज़गार अवसरों के बारे में जानकारी निम्नतम स्तर तक पहुँचनी चाहिये।
- भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण के साथ समस्या समाधान को एकीकृत करना: संहिता के अधिकांश प्रावधान अतीत की मांगों और विसंगतियों को संबोधित करते हैं, जो अतीत की क्षति के लिये पुनर्स्थापनात्मक न्याय के रूप में कार्य करते हैं।
- यह भी आवश्यक है कि कामगारों के संरक्षण और विवादों के प्रबंधन (ऑटोमेशन एवं रोबोटिक्स, AI-संचालित कार्यबल और बायोइंजीनियरिंग से संबंधित विवाद) के लिये एक भविष्यवादी दृष्टिकोण अपनाया जाए क्योंकि ये विषय भविष्य में श्रमिकों के अधिकारों को बाधित कर सकते हैं।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘आर्थिक विकास का अर्थ न केवल नौकरियों का सृजन करना है बल्कि स्वस्थ कार्य स्थितियों का विकास करना भी है।’’ भारत में नई श्रम संहिताओं के आलोक में इस कथन की विवेचना कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मुख्य परीक्षा प्रश्न: "मेक इन इंडिया' कार्यक्रम की सफलता 'स्किल इंडिया' कार्यक्रम की सफलता और क्रांतिकारी श्रम सुधारों पर निर्भर करती है।" संगत तर्कों के साथ विवेचना कीजिये। (2015) |