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एडिटोरियल

  • 03 Sep, 2021
  • 15 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

बेहतर ‘व्यापार सुगमता’ हेतु अनुबंध का क्रियान्वयन

यह एडिटोरियल दिनांक 01/09/2021 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘Enforcing contracts key to ease of business’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में ‘व्यापार सुगमता’ (ease of doing business) में सुधार की आवश्यकताओं और इस विषय में अब तक बनी रही बाधाओं के संबंध में चर्चा की गई है।

भारत को वर्ष 2040 तक सतत्/संवहनीय अवसंरचना के निर्माण के लिये 4.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है। इसलिये, विश्व बैंक के व्यापार सुगमता (Ease of Doing Business- EoDB) सूचकांक में भारत की वैश्विक रैंकिंग में तेज़ी से सुधार लाना अनिवार्य है, ताकि विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा सके।   

हालाँकि, विश्व की EoDB सूची में शीर्ष के 50 देशों में शामिल होने से पहले भारत को अभी कई चुनौतियों (विशेष रूप से अनुबंधों का प्रवर्तन) के समाधान ढूँढने की आवश्यकता है।

व्यापार सुगमता (EoDB) में नवीनतम प्रगति

  • व्यापार सुगमता सूचकांक में 190 देशों के बीच भारत की रैंकिग वर्ष 2014 में 142 से सुधरकर 2015 में 130, 2017 में 100, 2018 में 77 और वर्ष 2019 में 63 देखी गई थी।      
  • विश्व बैंक द्वारा 10 शीर्ष वैश्विक सुधारकर्ता देशों में शामिल होने के लिये (विशेष रूप इतने विशाल देश के रूप में) भारत की सराहना की गई थी।  
  • EoDB रैंकिंग की गणना 10 मानकों पर की जाती है— व्यवसाय शुरू करना (Starting A Business), निर्माण परमिट (Dealing with Construction Permits), बिजली की प्राप्ति (Getting Electricity), संपत्ति का पंजीकरण (Registering Property), ऋण उपलब्धता (Getting Credit), अल्पसंख्यक निवेशकों की सुरक्षा (Protecting Minority Investors), करों का भुगतान करना (Paying Taxes), सीमा-पार व्यापार (Trading Across Borders), अनुबंध लागू करना (Enforcing Contract) और दिवालियापन का समाधान (Resolving Insolvency)।
  • भारत की प्रगति कुछ मानकों—मुख्य रूप से 'दिवालियापन का समाधान' (वर्ष 2018 में 108 से सुधरकर वर्ष 2019 में 52 रैंक)— में नाटकीय सुधार से प्रेरित रही। लेकिन 'अनुबंधों के प्रवर्तन' के मामले में यह 163वें स्थान पर गतिहीन बना रहा है।   
  • निवेशकों के लिये यह किसी वाणिज्यिक विवाद को हल करने और देश के जोखिम का मूल्यांकन करने के लिये समय तथा लागत के मापन के सबसे आवश्यक संकेतकों में से एक है।
  • वर्तमान में केवल दिल्ली और मुंबई विश्व बैंक द्वारा आयोजित व्यापार सुगमता सर्वेक्षण (Ease of Doing Business survey) के दायरे में शामिल हैं। 
    • यद्यपि आगामी व्यापार सुगमता रिपोर्ट में कोलकाता और बेंगलुरु को भी शामिल किये जाने की संभावना है।

अनुबंधों का प्रवर्तन (Enforcing Contracts)

  • व्यापार सुगमता रिपोर्ट की सफलता के लिये ‘अनुबंधों का प्रवर्तन’ संकेतक महत्त्वपूर्ण है।
  • यह एक मानकीकृत वाणिज्यिक विवाद के समाधान में लगने वाले समय और लागत की माप के साथ-साथ न्यायपालिका की विभिन्न सुचारू कार्यप्रणालियों का मूल्यांकन करता है।   
  • इस प्रकार समय, लागत और न्यायिक प्रक्रिया की गुणवत्ता वे तीन चर हैं जिनके आधार पर विश्व बैंक अनुबंध प्रवर्तन मानक के विषय में देशों की रैंकिंग करता है।
  • न्याय विभाग (Department of Justice) अनुबंध संकेतक के प्रवर्तन के लिये नोडल विभाग के रूप में कार्य करता है।

अब तक किये गए कुछ उपाय

  • न्याय विभाग सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति और दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता तथा कर्नाटक उच्च न्यायालयों के समन्वय से विभिन्न विधायी एवं नीतिगत सुधारों की निगरानी कर रहा है।  
  • अनुबंधों के प्रवर्तन के लिये एक नया पोर्टल स्थापित किया गया है। परिकल्पना यह है कि निष्पक्ष एवं सुव्यवस्थित नियम और स्पष्ट विधिक प्रावधान सुनिश्चित किये जाएँ, सरकार-संलग्न मुकदमेबाजी को कम किया जाए तथा वाणिज्यिक विवाद समाधान तंत्र एवं अनुबंध प्रवर्तन को सशक्त बनाया जाए।  
  • अनुबंधों के प्रवर्तन और एक प्रभावी समाधान तंत्र के लिये एक नीतिगत ढाँचे हेतु सिफारिशें देने के लिये सरकार ने नीति आयोग के अंदर दो उच्चस्तरीय कार्यबलों का गठन भी किया है। 
    • इससे अवसंरचना क्षेत्र में निवेश में तेज़ी आने और निवेशकों को राहत मिलने की उम्मीद है।
  • सरकार एक प्रभावी, कुशल, पारदर्शी और सुदृढ़ 'अनुबंध प्रवर्तन व्यवस्था' के निर्माण के लिये विभिन्न सुधार उपायों को तेज़ी से आगे बढ़ा रही है। 
    • वाणिज्यिक न्यायालयों की गुणवत्ता और दक्षता में सुधार हेतु न्यायिक बिरादरी के साथ एकीकृत तरीके से काम कर सकने के लिये प्रमुख कानून फर्मों, कॉर्पोरेट निकायों और वाणिज्य एवं उद्योग मंडलों के साथ कई दौर की बैठकें आयोजित की गई हैं।

अनुबंधों के प्रवर्तन के साथ संबद्ध चुनौतियाँ

  • असंगत और त्रुटिपूर्ण व्याख्या: भारत को मध्यस्थता के एक उत्तम स्थान के रूप में नहीं देखा जाता है क्योंकि विदेशी न्यायालयों की तुलना में भारतीय न्यायपालिका द्वारा असंगत और त्रुटिपूर्ण व्याख्यायों के पूर्व-दृष्टांत प्राप्त होते हैं। 
  • कार्यवाही को पूरा करने में विलंब: कार्यवाही के पूरा होने में अनावश्यक विलंब होता है, जिससे बैकलॉग की स्थिति बनती है और दावों एवं मामलों के समाधान में देरी होती है।  
    • विवाद समाधान के मामले में शीर्ष पर स्थित देश सिंगापुर के 164 दिनों की तुलना में भारत में किसी वाणिज्यिक विवाद को सुलझाने में औसतन चार वर्ष लगते हैं।
  • लंबित मामले या बैकलॉग: भारत अपनी न्यायिक प्रणाली में बैकलॉग के लिये कुख्यात है जो एक प्रमुख दोष है और देश को अनुबंध प्रवर्तन तथा न्याय प्रशासन के लिये व्यावसायिक रूप से एक बेहतर क्षेत्राधिकार में परिणत होने से अवरुद्ध करता है। 
  • न्यायाधिकरणों से पर्याप्त सहयोग नहीं: इस समस्या से निपटने के लिये न्यायाधिकरणों (Tribunals) का गठन किया गया था, लेकिन मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि के साथ वे अदालतों के बोझ को कम करने में उल्लेखनीय सहयोग नहीं कर सके हैं। 
  • रिक्तियाँ और अवसंरचनात्मक कमी: विभिन्न न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में पीठों की संख्या बढ़ाने पर विचार किया गया है, लेकिन इस संबंध में अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। न्यायपालिका के लगभग सभी स्तरों पर बनी हुई रिक्तियाँ लंबित मामलों से निपटने के मार्ग में बाधा बनी हुई हैं।

आगे की राह 

  • विवाद समाधान तंत्र: भारत जब विदेशी निवेश के एक प्रमुख केंद्र में परिणत हो रहा है, तब नीति स्थिरता और एक निष्पक्ष, त्वरित एवं प्रभावी विवाद निपटान तंत्र तक पहुँच का होना अनिवार्य है। 
    • अधिकांश विदेशी निवेशक अपने अनुबंधों में मध्यस्थता को अपने विवाद निपटान तंत्र के रूप में चुनते हैं और मध्यस्थता का स्थान (seat of arbitration) किसी तटस्थ देश में होता है।
    • निवेशकों के विश्वास को मज़बूत करने के लिये भारत में ऐसे अंतिम निर्णयों के प्रवर्तन की सक्षमता होना महत्त्वपूर्ण है।
  • अनुपालनों की संख्या में कमी लाने की आवश्यकता: हाल ही में केंद्र और राज्य सरकारों ने राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर 6,000 से अधिक कठिन अनुपालनों की समीक्षा करने और चरणबद्ध रूप से उन्हें समाप्त करने का निर्णय लिया है।  
    • इससे घरेलू एवं विदेशी प्रमोटर समर्थित कंपनियों, दोनों को काफी मदद मिलेगी और व्यापार सुगमता को भी बढ़ावा मिलेगा ।
    • मौजूदा भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत वैश्विक निवेशकों की पहली पसंद बन रहा है।
    • अनुपालन बोझ को कम करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है ताकि फर्म अपने प्रदेय वस्तु या उत्पाद (deliverables) पर ध्यान केंद्रित कर सकें।
  • बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना: इसमें प्राथमिकता के आधार पर वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिये न्यायपालिका की सक्षमता को सशक्त करना शामिल है। 
    • मध्यस्थता और पूर्व-परीक्षण सुनवाई को अनिवार्य करने, नवीनतम केस प्रबंधन अभ्यासों एवं तकनीकी साधनों को अपनाने और समर्पित न्यायिक अधिकारियों के प्रशिक्षण जैसे पहलुओं से उल्लेखनीय रूपांतरण आ सकता है।  
    • सरकार का ध्यान न्यायिक अवसंरचना में सुधार पर केंद्रित होना चाहिये जिसमें केवल भूमि और भवन ही शामिल नहीं हैं, बल्कि सभी स्तरों पर न्यायाधीशों की उपयुक्त संख्या भी शामिल है।  
  • मामलों का समयबद्ध निपटान: अनुबंधों के उल्लंघन और प्रवर्तन के मामलों में सुनवाई की कोई समयबद्ध प्रक्रिया मौजूद नहीं है। 
    • मामलों का समयबद्ध निपटान (जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका में होता है) यह सुनिश्चित करेगा कि अनुबंध समयबद्ध तरीके से प्रवर्तित होंगे।  
  • अनुबंध का सम्मान करना: उद्योग निकाय और व्यापार संघ अपने सदस्यों को अनुबंधों की शुचिता के प्रति संवेदनशील बनाने में अहम् भूमिका निभा सकते हैं। कुछ विशेषज्ञ सरकारों (केंद्र और राज्य) और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को अनुबंधों के सम्मान के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाने की आवश्यकता पर बल देते हैं। 

निष्कर्ष

यद्यपि भारत ने व्यापार सुगमता सूचकांक में अपने प्रदर्शन में लगातार सुधार किया है लेकिन उसे अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।

इसके अतिरिक्त, हाल में जब चीन से आपूर्ति शृंखलाओं में बदलाव आया है, कुछ ऐसे मुद्दों पर ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है, जिन्होंने भारत को अनुबंध प्रवर्तन में सुधार करने से अवरुद्ध कर रखा है। निवेशकों के भरोसे को जगाने के लिये यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह लेनदेन की पूर्वानुमेयता और वाणिज्यिक व्यवहार्यता का संकेत देता है।  

A-Steady-Climb

अभ्यास प्रश्न: व्यापार सुगमता रिपोर्ट की सफलता के लिये अनुबंध प्रवर्तन संकेतक महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिये कि उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य में अनुबंधों का बेहतर प्रवर्तन किस प्रकार विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।


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