एडिटोरियल (22 Jun, 2024)



भारत की इलेक्ट्रिक वाहन विकास यात्रा

यह एडिटोरियल 21/06/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Should not EVs and Hybrids be treated equally for government subsidies?” लेख पर आधारित है। इसमें सुदृढ़ हाइब्रिड एवं इलेक्ट्रिक वाहनों जैसी तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करने के महत्त्व को उजागर किया गया है जो उत्सर्जन में व्यापक कमी ला सकते हैं। यह लेख भारत के व्यापक जलवायु एवं ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्यों का अनुपालन करते हुए जीवन चक्र उत्सर्जन, स्वामित्व की कुल लागत को संतुलित करने वाली नीतियों को विकसित करने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है।

प्रिलिम्स के लिये:

इलेक्ट्रिक वाहन, प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन, बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन, राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (NEMMP) 2020, FAME योजना, नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति, लिथियम-आयन बैटरी

मेन्स के लिये:

भारत में इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, भारत में EV अपनाने में तेजी लाने हेतु आवश्यक उपाय

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) पर जारी विमर्श जटिल है, जिसमें उत्सर्जन, लागत और नीति के बारे में विभिन्न विचार शामिल हैं। जबकि EVs को प्रायः शून्य-उत्सर्जन वाहन के रूप में प्रचारित किया जाता है, विशेषज्ञ ध्यान दिलाते हैं कि भारत में (जहाँ 75% बिजली कोयले से प्राप्त होती है) EVs का जीवन चक्र उत्सर्जन वास्तव में आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों या कुछ मामलों में हाइब्रिड वाहनों से भी अधिक हो सकता है।

कुछ लोगों का तर्क है कि हाइब्रिड वाहन, अपने छोटे बैटरी पैक और बेहतर ईंधन दक्षता के साथ, वर्तमान में भारतीय संदर्भ में उत्सर्जन में कमी और लागत-प्रभावशीलता का बेहतर संतुलन प्रदान कर सकते हैं। विमर्श में ऑटोमोटिव बाज़ार को आकार देने में सरकारी सब्सिडी और नीतियों की भूमिका की भी चर्चा की गई है।

आगे देखें तो भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का भविष्य आशाजनक प्रतीत होता है, क्योंकि दोपहिया और तिपहिया वाहनों में इसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है, बैटरी प्रौद्योगिकी में सुधार हो रहा है और सरकार स्वच्छ परिवहन के लिये विभिन्न प्रयास कर रही है।

इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicles- EVs):

  • परिचय: इलेक्ट्रिक वाहन ऐसे वाहन हैं जो पेट्रोल या डीजल से चलने वाले पारंपरिक आंतरिक दहन इंजन (ICE) के बजाय प्रणोदन के लिये एक या एक से अधिक इलेक्ट्रिक मोटरों का उपयोग करते हैं।
    • यद्यपि इलेक्ट्रिक वाहनों की अवधारणा लंबे समय से चली आ रही है, ईंधन आधारित वाहनों के बढ़ते कार्बन उत्सर्जन और अन्य पर्यावरणीय प्रभावों के कारण पिछले दशक में इसमें व्यापक रूप से रुचि बढ़ी है।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रकार:
    • बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (BEVs): ये प्रणोदन के लिये पूरी तरह बैटरी शक्ति पर निर्भर होते हैं तथा शून्य टेलपाइप उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं।
    • प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (PHEV): इनमें इलेक्ट्रिक मोटर के साथ ही गैसोलीन इंजन मौजूद होता है। इन्हें बाह्य रूप से चार्ज किया जा सकता है और सीमित दूरी तक बैटरी पावर पर चलाया जा सकता है, जबकि लंबी यात्राओं के लिये गैसोलीन इंजन का उपयोग किया जा सकता है।
    • हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन (HEVs): इनमें इलेक्ट्रिक मोटर और गैसोलीन इंजन दोनों का उपयोग होता है, लेकिन बैटरी को सीधे प्लग-इन कर चार्ज नहीं किया जा सकता।
      • बैटरी को गैसोलीन इंजन या पुनर्योजी ब्रेकिंग (regenerative braking) के माध्यम से चार्ज किया जाता है।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों के लाभ:
    • उत्सर्जन में कमी: ये शून्य टेलपाइप उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं, इस प्रकार स्वच्छ वायु और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार लाने में योगदान देते हैं।
    • निम्न परिचालन लागत: बिजली गैसोलीन की तुलना में सस्ती हो सकती है, जिससे प्रति किलोमीटर ईंधन लागत कम हो सकती है ।
    • शोररहित संचालन: इलेक्ट्रिक मोटर गैसोलीन इंजन की तुलना में व्यापक रूप से कम शोर उत्पन्न करते हैं।
    • बेहतर दक्षता: इलेक्ट्रिक मोटर गैसोलीन इंजन की तुलना में अधिक प्रतिशत ऊर्जा को उपयोगी शक्ति में रूपांतरित करते हैं।
  • भारत में इलेक्ट्रिक वाहन संबंधी नीतियाँ:
    • वर्ष 2010: नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा 95 करोड़ रुपए की योजना (जहाँ एक्स-फैक्ट्री कीमतों पर 20% तक के प्रोत्साहन की पेशकश की गई) के माध्यम से भारत ने EVs को प्रोत्साहन प्रदान किया। हालाँकि, मार्च 2012 में यह योजना वापस ले ली गई।
    • वर्ष 2013: EVs के अंगीकरण को बढ़ावा देने, ऊर्जा सुरक्षा को संबोधित करने और वाहन प्रदूषण को कम करने के लिये ‘राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (NEMMP) 2020’' का शुभारंभ किया गया। हालाँकि इस योजना का व्यापक क्रियान्वयन नहीं हो सका।
    • वर्ष 2015: स्वच्छ ईंधन प्रौद्योगिकी कारों को प्रोत्साहित करने के लिये (वर्ष 2020 तक 7 मिलियन EVs के लक्ष्य के साथ) केंद्रीय बजट में 75 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ FAME योजना की घोषणा की गई।
    • वर्ष 2017: भारतीय परिवहन मंत्रालय ने वर्ष 2030 तक 100% इलेक्ट्रिक कारों का लक्ष्य निर्धारित किया है। उद्योग की चिंताओं के बाद 100% के लक्ष्य को घटाकर 30% कर दिया गया।
    • वर्ष 2019: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अग्रिम खरीद प्रोत्साहन और चार्जिंग अवसंरचना के साथ इलेक्ट्रिक वाहनों के अंगीकरण में तेज़ी लाने के लिये 10,000 करोड़ रुपए की FAME-II योजना को मंज़ूरी प्रदान की।
    • वर्ष 2023: जीएसटी परिषद की 36वीं बैठक में इलेक्ट्रिक वाहन बाज़ार को बढ़ावा देने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों पर जीएसटी दर को 12% से घटाकर 5% और चार्जर या चार्ज स्टेशनों पर 18% से घटाकर 5% करने का निर्णय लिया गया।
    • वर्ष 2024: केंद्र ने हाल ही में एक नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति प्रस्तावित की है जो वर्तमान में परामर्श के अधीन है।

इलेक्ट्रिक वाहन अंगीकरण के पर्यावरणीय लाभ 

  • वायु प्रदूषण में कमी: भारत में वाहन यातायात कुल वायु प्रदूषण के 27% के लिये ज़िम्मेदार है और हर साल 1.2 मिलियन लोगों की मृत्यु का कारण बनता है। इस प्रकार भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के अंगीकरण से आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों से जुड़े नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों में वृहत रूप से कमी आएगी।
  • ध्वनि प्रदूषण में कमी: भारत में ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जो द्रुत शहरीकरण तथा वाहनों के बढ़ते उपयोग के कारण और भी गंभीर हो गई है। वर्ष 2022 के एक UNEP रिपोर्ट के अनुसार, पाँच भारतीय शहर दुनिया के सबसे शोरपूर्ण शहरों में शामिल हैं। हालाँकि रिपोर्ट में विभिन्न स्रोतों का हवाला दिया गया है, लेकिन EVs शोर के स्तर को कम करने में मदद कर सकते हैं क्योंकि उनमें ICE वाहनों में पाए जाने वाले मैकेनिकल वाल्व, गियर एवं फैन नहीं होते हैं।
  • परिचालन दक्षता में सुधार: ईंधन दक्षता के मामले में, पेट्रोल या डीजल कारें संग्रहित ऊर्जा का केवल 17 से 21% ही परिवर्तित करती हैं, जबकि EVs ग्रिड से प्राप्त 60% विद्युत ऊर्जा को परिवर्तित कर सकती हैं। भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर यह संक्रमण ईंधन उपयोग की दक्षता एवं अनुकूलन को बढ़ाएगा, अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिये परिचालन लागत को कम करेगा और EVs की मांग को प्रोत्साहित करेगा।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहन अंगीकरण से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ: 

  • EVs की उच्च लागत: एक आंतरिक दहन इंजन कार की तुलना में एक समान स्तर की इलेक्ट्रिक कार व्यापक रूप से अधिक महँगी हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये, टाटा नेक्सन की कीमत लगभग 8.10 लाख रुपए से शुरू होती है, जबकि इसके इलेक्ट्रिक मॉडल नेक्सन ईवी की कीमत 14.74 लाख रुपए से शुरू होती है।
    • यह उच्च अग्रिम लागत कई संभावित EVs खरीदारों के लिये एक बड़ी बाधा है, विशेष रूप से भारत जैसे मूल्य-संवेदनशील बाज़ार में। सरकारी सब्सिडी इस अंतराल को दूर करने में मदद कर सकती है, लेकिन उनकी प्रभावशीलता सीमित सिद्ध हो सकती है।
  • सीमित चार्जिंग अवसंरचना: भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये चार्जिंग अवसंरचना अभी भी विकास के प्रारंभिक चरण में है।
    • यद्यपि चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन वे मुख्य रूप से बड़े शहरों में ही केंद्रित हैं।
    • व्यापक चार्जिंग सुविधाओं का अभाव संभावित EV मालिकों के लिये ‘रेंज एंग्जायटी’ उत्पन्न करता है, क्योंकि उन्हें भय रहता है कि कहीं चार्जिंग स्टेशन तक पहुँचने से पहले ही चार्ज समाप्त न हो जाए।
  • सुदृढ़ स्थानीय बैटरी विनिर्माण पारितंत्र का अभाव: भारत आयातित लिथियम-आयन बैटरी पर बहुत अधिक निर्भर है, जो एक महत्त्वपूर्ण एवं महँगा EV घटक है।
    • भारत इन्हें चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से आयात करता है। वर्ष 2022 में भारत ने 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के 617 मिलियन यूनिट लिथियम-आयन बैटरी आयात किये।
  • ग्रिड निर्भरता और उत्सर्जन: भारत का बिजली ग्रिड कोयला आधारित बिजली संयंत्रों पर बहुत अधिक निर्भर है।
    • यद्यपि इलेक्ट्रिक वाहन शून्य टेलपाइप उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं, लेकिन जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न बिजली से उन्हें चार्ज करने से समग्र उत्सर्जन में वृद्धि होती है।
    • इलेक्ट्रिक वाहनों का पर्यावरणीय लाभ बिजली ग्रिड की स्वच्छता पर निर्भर करता है। जब तक भारत अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं करता, तब तक इलेक्ट्रिक वाहनों का वास्तविक पर्यावरणीय लाभ सीमित ही सिद्ध सकता है।
  • EV रखरखाव में कौशल अंतराल: EVs को पारंपरिक ICE वाहनों की तुलना में रखरखाव और मरम्मत के लिये अलग तरह के कौशल की आवश्यकता होती है।
    • वर्तमान भारतीय मोटर वाहन कार्यबल EVs प्रौद्योगिकी की जटिलताओं से निपटने के लिये पर्याप्त रूप से तैयार नहीं है।
  • भारतीय परिवेश में अनुकूलन के संबंध में आशंकाएँ: भारत का अत्यधिक तापमान, जो गर्मियों में कई क्षेत्रों में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है, इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रदर्शन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है।
    • अध्ययनों से पता चला है कि 35°C से अधिक तापमान पर EV रेंज 17% तक कम हो सकती है।
  • पुनर्चक्रण और संवहनीयता संबंधी चिंताएँ: EVs में प्रयुक्त लिथियम-आयन बैटरियों को दुर्लभ मृदा तत्वों और अन्य संभावित खतरनाक सामग्रियों की उपस्थिति के कारण उचित निपटान या पुनर्चक्रण की आवश्यकता होती है।
    • भारत में वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी पुनर्चक्रण के लिये सुदृढ़ प्रणाली का अभाव है। बैटरी का अनुचित निपटान पर्यावरणीय जोखिम पैदा कर सकता है।
  • ‘रेंज एंग्जाइटी’: यह ड्राइविंग के दौरान बैटरी चार्ज खत्म होने के भय या अनिश्चितता को संदर्भित करता है। कई उपभोक्ता EVs की सीमित रेंज और लंबी यात्राओं के लिये चार्जिंग स्टेशन खोजने की संभावित असुविधा के बारे में चिंता रखते हैं।
    • यद्यपि EVs की रेंज में सुधार हो रहा है, फिर भी भारत जैसे विशाल दूरी वाले देश में यह उपभोक्ताओं के लिये चिंता का विषय बना हुआ है।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के अंगीकरण में तेज़ी लाने के लिये आवश्यक उपाय:

  • ‘बैटरी लीज-टू-ओन’ (Battery Lease-to-Own) कार्यक्रम: एक सरकार समर्थित योजना का क्रियान्वयन किया जाए, जहाँ इलेक्ट्रिक वाहन खरीदार केवल वाहन का चेसिस खरीदें जबकि बैटरी को दीर्घकालिक पट्टे या लीज पर प्राप्त किया जाए।
    • जैसे-जैसे बैटरी प्रौद्योगिकी में सुधार होगा, पट्टेदार कम लागत पर नए मॉडल में अपग्रेड कर सकेंगे।
    • लीज अवधि के अंत में उपयोगकर्ता द्वारा बैटरी की खरीद की जा सकती या उसे पुनर्चक्रण के लिये वापस कर सकते हैं।
    • इससे EV की प्रारंभिक लागत 40% तक कम हो सकती है, जिससे वे ICE वाहनों के साथ अधिक प्रतिस्पर्द्धी  बन जाएँगे।
  • बैटरी प्रौद्योगिकी में निवेश करना: वर्तमान बैटरियाँ आकार में छोटी हैं और उनकी वोल्टेज क्षमता कम है, जिससे EVs प्रणोदन को बढ़ाने तथा यात्रा दूरी का विस्तार कर सकने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
    • इस समस्या से निपटने के लिये निजी कंपनियों को उच्च ऊर्जा घनत्व वाले हल्के पदार्थों से बनी बैटरियों, जिन्हें नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करके चार्ज किया जा सके, का विकास करने के रूप में नवाचार की आवश्यकता है।
    • सरकार भी ‘परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन, 2019’ के साथ भारत में बैटरी विनिर्माण को बढ़ावा दे रही है।
      • बैटरी क्षेत्र में तकनीकी वृद्धि को बढ़ावा देने के लिये ऐसी योजनाओं का लाभ उठाया जाना चाहिये।
  • चार्जर घनत्व में वृद्धि करना: भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के अनुसार, भारत को वर्ष 2030 तक 1.3 मिलियन से अधिक चार्जर्स की आवश्यकता होगी। EVs अंगीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये हमें चार्जिंग स्टेशनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि करनी होगी।
    • ‘चार्ज एज यू पार्क’: शहरी क्षेत्रों में पार्किंग मीटर को EVs चार्जिंग पॉइंट में बदलना होगा। यह मौजूदा अवसंरचना का लाभ उठाएगा और बिना किसी अतिरिक्त निवेश के चार्जिंग विकल्पों के एक विशाल नेटवर्क का निर्माण करेगा।
    • मानकीकरण: सरकार को EVs पारितंत्र के खिलाड़ियों और ऑटो OEMs के साथ सहयोग करते हुए मानकीकरण प्रोटोकॉल स्थापित करने, अंतर-संचालन (interoperability) सुनिश्चित करने और फास्ट-चार्जिंग प्रौद्योगिकियों के विकास को बढ़ावा देने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • EVs ग्रामीण उद्यमी कार्यक्रम: ग्रामीण व्यक्तियों को अपने गाँव से या छोटे व्यवसायों से छोटे पैमाने पर EVs चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने तथा इसे संचालित करने में सक्षम बनाया जाए।
    • मानकीकृत चार्जिंग पॉइंट स्थापित करने के लिये सूक्ष्म ऋण और तकनीकी सहायता प्रदान की जाए।
    • उपयोगकर्ताओं के लिये इन चार्जिंग पॉइंट्स का पता लगाने और बुकिंग करने हेतु एक मोबाइल ऐप क्रियान्वित किया जाए।
    • ऑपरेटर शुल्क वसूल कर आय अर्जित कर सकते हैं, जिससे नए आर्थिक अवसर पैदा होंगे।
  • हाईवे बैटरी स्वैप कॉरिडोर: प्रमुख राजमार्गों पर मानकीकृत बैटरी स्वैप स्टेशनों का नेटवर्क स्थापित किया जाए।
    • इन चार्जिंग स्टेशनों के संचालन के लिये ढाबा मालिकों के साथ साझेदारी की जा सकती है, जिससे उन्हें भी अतिरिक्त आय प्राप्त होगी।
    • व्यस्ततम यात्रा अवधि के दौरान प्रतीक्षा समय को न्यूनतम करने के लिये स्वैप स्लॉट हेतु ऑनलाइन आरक्षण प्रणाली का निर्माण किया जा सकता है।
  • EVs और हाइब्रिड के लिये एकसमान सब्सिडी: सरकार को EVs और हाइब्रिड के लिये एकसमान सब्सिडी देने पर विचार करना चाहिये, क्योंकि दोनों प्रौद्योगिकियाँ महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय लाभ प्रदान करती हैं।
    • नीतियाँ गतिशील और उभरते परिदृश्य के अनुकूल होनी चाहिये तथा इन्हें जीवनचक्र उत्सर्जन और स्वामित्व की कुल लागत पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • यह दृष्टिकोण संसाधनों के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करेगा और जलवायु एवं ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्यों को पूरा करते हुए भारत को हरित परिवहन प्रणाली की ओर संक्रमण में सहायता प्रदान करेगा।
  • सेकंड-लाइफ बैटरी बाज़ार: एक जीवंत ‘सेकंड-लाइफ बैटरी बाज़ार’ का निर्माण किया जाए। यह ऑनलाइन या भौतिक बाज़ार व्यक्तियों और व्यवसायों को निम्न-शक्ति वाले अनुप्रयोगों (जैसे कि रिक्शा, सौर भंडारण या यहाँ तक कि गाँव के माइक्रोग्रिड को बिजली देने के लिये) के लिये ‘यूज्ड’ बैटरियों के उपयोग में सक्षम बनाएगा
    • नवोन्मेषी ‘अर्बन माइनिंग’ (urban mining) तकनीकों के अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश किया जाए। ये तकनीकें पुरानी बैटरियों, फोन और लैपटॉप सहित विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट से मूल्यवान लिथियम, कोबाल्ट एवं निकेल को पुनः प्राप्त कर सकती हैं।
    • इससे इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट में कमी आएगी, नए आर्थिक अवसर पैदा होंगे और चक्रीय EV पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिलेगा।

भारत अन्य देशों की सफलता से क्या सीख सकता है?

  • यूरोप (EU, EFTA, UK):
    • वित्तीय प्रोत्साहन: इन देशों ने कर कटौती और छूट के माध्यम से EVs अंगीकरण में सफलता प्राप्त की है। भारत में इसी तरह की नीतियाँ आशाजनक सिद्ध होंगी, जो अगले कुछ वर्षों में EVs के प्रवेश को और तेज़ कर सकती हैं।
    • भारत के लिये सबक: वित्तीय प्रोत्साहनों के माध्यम से निरंतर समर्थन से इलेक्ट्रिक वाहनों के अंगीकरण में व्यापक वृद्धि हो सकती है।
  • चीन:
    • सरकारी सहायता और घरेलू प्रतिस्पर्द्धा: इलेक्ट्रिक वाहन बाज़ार में चीन का दबदबा एक शक्तिशाली संयोजन का परिणाम है। चीन में उदार सरकारी सहायता ने नवाचार को बढ़ावा दिया, जबकि तीव्र घरेलू प्रतिस्पर्द्धा ने कीमतों को कम किया, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन अधिक सुलभ हो गए हैं।
    • भारत के लिये सबक: जबकि भारत सरकार द्वारा सहायता प्रदान की जाती है, इसके घरेलू EVs बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा का वैसा स्तर मौजूद नहीं है। प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करने और निरंतर सरकारी सहायता से भारतीय EVs उद्योग को बढ़ावा मिल सकता है।
  • अमेरिका:
    • सरकारी निवेश और निजी नवाचार: सरकारी निवेश, सहायक नीतियों और टेस्ला एवं जीएम जैसी अग्रणी कंपनियों द्वारा नवाचार को बढ़ावा देने के कारण अमेरिका के इलेक्ट्रिक वाहन बाज़ार ने व्यापक प्रगति की है। हालाँकि, हाल के समय में बिक्री में गिरावट ने सतर्क नीति डिज़ाइन की आवश्यकता को उजागर किया है।
  • भारत के लिये सबक: 
    • नवाचार और तकनीकी विशेषज्ञता: भारत को शिक्षा के उत्कृष्टता केंद्रों को बढ़ावा देकर नवाचार में तेज़ी लाने की ज़रूरत है। अमेरिकी अनुभव से सीखते हुए और आर्थिक कारकों को ध्यान में रखते हुए समय के साथ EVs के लिये सरकारी वित्तपोषण को रणनीतिक रूप से समाप्त किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के अंगीकरण से संबंधित चुनौतियों एवं अवसरों की चर्चा कीजिये। पर्यावरणीय एवं आर्थिक पहलुओं को संतुलित करते हुए EVs में एक संवहनीय संक्रमण का समर्थन करने के क्रम में सरकारी नीतियों को किस प्रकार अनुकूलित किया जा सकता है? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न: दक्ष और किफायती (ऐफोर्डेबल) शहरी सार्वजनिक परिवहन किस प्रकार भारत के तीव्र आर्थिक विकास की कुंजी है? (2019)