सामाजिक न्याय
भारत में प्रभावी जल प्रबंधन की आवश्यकता
यह एडिटोरियल 07/05/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “Jal Jeevan Mission: Hits and misses” पर आधारित है। यह लेख जल जीवन मिशन की धीमी प्रगति, जो भारत के बढ़ते जल संकट के बीच पारंपरिक जल संरक्षण विधियों की उपेक्षा के जोखिम को उजागर करता है जिसे अब वर्ष 2028 तक बढ़ा दिया गया है।
प्रिलिम्स के लिये:जल जीवन मिशन, अनुच्छेद 48A (नीति निदेशक तत्त्व), अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, राष्ट्रीय जल नीति, 2012, अटल भूजल योजना, हीट वेव, PM कृषि सिंचाई योजना, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण मेन्स के लिये:भारत में वर्तमान जल शासन कार्यढाँचा, भारत में जल प्रबंधन से जुड़े प्रमुख मुद्दे। |
भारत के महत्त्वाकांक्षी जल जीवन मिशन ने वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण घर में नल कनेक्शन देने का वादा किया था, लेकिन लगभग 80% ग्रामीण घरों को कवर करने के बावजूद, प्रगति काफी धीमी हो गई है, जिसके कारण इसे वर्ष 2028 तक चार वर्ष के लिये बढ़ा दिया गया है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य नल कनेक्शन (पाइपलाइन से जल की आपूर्ति) पर केंद्रित है, लेकिन इसका परिणाम यह हो सकता है कि परंपरागत जल संरक्षण विधियों की अनदेखी हो जाए। उदाहरण के तौर पर, केरल में, जहाँ केवल 20% लोगों को पाइपलाइन से जल की आपूर्ति की जा रही है, वहीं 60% लोग सतत् एवं पारंपरिक जल स्रोतों का उपयोग करते हैं। इसका तात्पर्य है कि केरल में पारंपरिक जल स्रोतों जैसे कि कुएं, तालाब और वर्षा जल संचयन का बहुत बड़ा योगदान है और यदि केवल नल कनेक्शनों पर ध्यान दिया जाए, तो इन पारंपरिक तरीकों की उपेक्षा हो सकती है।
भारत में वर्तमान जल प्रशासन कार्यढाँचा क्या है?
- संवैधानिक प्रावधान
- जल राज्य का विषय है: राज्य सूची की प्रविष्टि 17 (सूची II, सातवीं अनुसूची) जल राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आता है।
- अंतर-राज्यीय नदी जल: संघ सूची की प्रविष्टि 56 केंद्र को अंतर्राज्यीय नदियों और नदी घाटियों को विनियमित करने की अनुमति देती है।
- पर्यावरण संरक्षण: अनुच्छेद 48A (नीति निदेशक तत्त्व) और अनुच्छेद 51A(g) (मौलिक कर्त्तव्य) जल निकायों सहित पर्यावरण के संरक्षण और सुधार को बढ़ावा देते हैं।
- संस्थागत कार्यढाँचा
स्तर |
प्रमुख संस्थान |
केंद्रीय |
जल शक्ति मंत्रालय (संयुक्त रूप से जल संसाधन मंत्रालय और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019 में गठित) |
राज्य |
राज्य जल संसाधन विभाग, जल बोर्ड, भूजल प्राधिकरण |
स्थानीय |
पंचायती राज संस्थाएँ (ग्राम पंचायतें, जल समितियाँ), शहरी स्थानीय निकाय |
- विशेष एजेंसियाँ:
- केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB): भूजल की निगरानी और प्रबंधन करता है।
- केंद्रीय जल आयोग (CWC): सतही जल संसाधन परियोजनाओं का डिज़ाइन और समन्वय करता है।
- राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA): नदी जोड़ो और जल नियोजन पर कार्य करती है।
- कानूनी कार्यढाँचा
- अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956: विवादों को सुलझाने का तंत्र (जैसे: कावेरी, कृष्णा)।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: जल निकायों के प्रदूषण नियंत्रण के लिये व्यापक कानून।
- जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974: प्रदूषित जल के निर्वहन मानकों और निगरानी को नियंत्रित करता है।
- मॉडल भूजल (नियंत्रण एवं विनियमन) विधेयक - भूजल उपयोग को विनियमित करने का प्रस्ताव (राज्यों द्वारा अपनाया जाना भिन्न-भिन्न है)।
- नीति कार्यढाँचा
- राष्ट्रीय जल नीति, 2012 (संशोधन के अधीन):
- आर्थिक लाभ के रूप में जल
- सहभागी एवं एकीकृत जल प्रबंधन
- स्थिरता और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना
- प्रारूप राष्ट्रीय जल नीति, 2020 (प्रस्तावित लेकिन अपनाया नहीं गया):
- जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना को प्राथमिकता
- सभी राज्यों में जल विनियामक प्राधिकरणों का सुझाव दिया गया
- अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग और भूजल मूल्य निर्धारण पर ज़ोर दिया गया
- राष्ट्रीय जल नीति, 2012 (संशोधन के अधीन):
भारत में जल प्रबंधन से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- भूजल का अत्यधिक दोहन और नीति-प्रेरित ह्रास: भारत का भूजल संकट बहुत हद तक नीति-प्रेरित है, जिसमें निशुल्क बिजली और विनियमन की कमी, विशेष रूप से कृषि में, अंधाधुंध दोहन को बढ़ावा दे रही है।
- पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्से पहले से ही गंभीर भूजल संकट का सामना कर रहे हैं।
- संरक्षण के लिये मीटरिंग या प्रोत्साहन के अभाव ने स्थिति को और भी गंभीर कर दिया है।
- भारत विश्व स्तर पर भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता है तथा यह संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के संयुक्त जल से भी अधिक जल का दोहन करता है।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण वर्ष 2041-2080 के दौरान भारत में भूजल की कमी की दर वर्तमान दर से तीन गुना हो जाएगी।
- पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कुछ हिस्से पहले से ही गंभीर भूजल संकट का सामना कर रहे हैं।
- खंडित संस्थागत कार्यढाँचा और विफल डेटा समन्वयन: जल प्रशासन कई मंत्रालयों में विखंडित है, जिसके कारण समन्वय विफलताएँ और असंगत कार्यान्वयन होता है।
- जल जीवन मिशन (JJM), NFHS, NSS और जनगणना में जल उपलब्धता की परिभाषाएँ एवं संकेतक अलग-अलग हैं, जिससे प्रगति की मॉनिटरिंग करना अविश्वसनीय हो जाता है।
- एकीकृत डेटाबेस के बिना, लक्षित नीति निर्माण अप्रभावी हो जाता है।
- मल्टीपल इंडिकेटर सर्वे (NSS राउंड 78) के आँकड़ों के अनुसार, सत्र 2020-21 तक केवल 36.6% भारतीय घरों में पाइप से पेयजल की सुविधा थी, हालाँकि JJM डैशबोर्ड अलग डेटा का दावा करता है।
- यह अंतर डेटा की असंगतता और सत्यापन अंतराल को दर्शाता है।
- अपर्याप्त शहरी जल अवसंरचना और बढ़ती मांग: शहरी भारत पुराने बुनियादी अवसंरचना, तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और अनियोजित शहरीकरण के कारण जल संकट का सामना कर रहा है।
- अधिकतर शहर दिन में केवल कुछ घंटों के लिये ही जल की आपूर्ति करते हैं तथा बड़े पैमाने पर अपशिष्ट जल को रीसाइकिल करने में विफल रहते हैं। मांग आपूर्ति से अधिक है, जिसका असर घरों और उद्योगों पर समान रूप से पड़ता है।
- कोई भी भारतीय शहर निरंतर पाइप से जल उपलब्ध नहीं कराता; यहाँ तक कि बेंगलुरु और दिल्ली जैसे महानगरों को भी गर्मियों में जल की कमी का सामना करना पड़ता है।
- पेय जल की गुणवत्ता और सुरक्षा के संदर्भ में: जल की उपलब्धता इसकी सुरक्षा की गारंटी नहीं है— कई घरों में दूषित या रासायनिक रूप से संदूषित जल (असुरक्षित) मिलता है। फ्लोराइड, आर्सेनिक और आयरन संदूषण लाखों लोगों को प्रभावित करता है, विशेषकर पूर्वी और मध्य भारत में।
- JJM के अंतर्गत निगरानी तंत्र अभी भी विकसित हो रहा है तथा इसका क्रियान्वयन समान रूप से नहीं किया गया है।
- 163 मिलियन भारतीयों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं(विश्व बैंक) है। लगभग 21% संक्रामक रोग असुरक्षित जल से संबद्ध हैं।
- पारंपरिक और संधारणीय जल स्रोतों की उपेक्षा: JJM के तहत कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन लक्ष्यों को पूरा करने की हड़बड़ी में, कई पारंपरिक जल प्रणालियों जैसे: कुओं, टैंकों, बावड़ियों की अनदेखी की जा रही है।
- इससे दीर्घकालिक जल सुरक्षा प्रभावित होती है, विशेष रूप से जल-समृद्ध लेकिन बुनियादी अवसंरचना की दृष्टि से पिछड़े केरल जैसे राज्यों में।
- इन प्रणालियों की अनदेखी करने से समुदाय-नेतृत्व संरक्षण भी कमज़ोर होता है।
- उदाहरण के लिये, केरल में पेयजल आपूर्ति से पूर्णतया लाभान्वित कुल ग्रामीण बस्तियों का अनुपात केवल 28% है।
- बुनियादी अवसंरचना पर अत्यधिक ध्यान देने से कम लागत वाले, संधारणीय जल समाधान दरकिनार होने का खतरा है।
- इससे दीर्घकालिक जल सुरक्षा प्रभावित होती है, विशेष रूप से जल-समृद्ध लेकिन बुनियादी अवसंरचना की दृष्टि से पिछड़े केरल जैसे राज्यों में।
- जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जलविज्ञान संबंधी चरम सीमाएँ: जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित वर्षा पैटर्न, लगातार सूखा और विनाशकारी बाढ़ भारत की जल व्यवस्था को अस्थिर कर रहे हैं।
- मानसून पर निर्भरता के कारण पेयजल की उपलब्धता और सिंचाई दोनों ही अत्यधिक असुरक्षित हो जाती है।
- जलवायु-अनुकूल जल प्रबंधन अभी भी अविकसित है।
- मूडी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जून 2024 में हीट वेव के कारण दिल्ली और उत्तरी भारतीय राज्यों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया, जिससे जल की आपूर्ति पर बहुत असर पड़ा।
- भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता वर्ष 2031 तक घटकर 1,367 m³ (जल संसाधन मंत्रालय) रह जाने की उम्मीद है।
- मानसून पर निर्भरता के कारण पेयजल की उपलब्धता और सिंचाई दोनों ही अत्यधिक असुरक्षित हो जाती है।
प्रभावी जल प्रबंधन के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- स्रोत स्थिरता के लिये JJM को अटल भूजल योजना के साथ एकीकृत करना: जल जीवन मिशन की सफलता न केवल बुनियादी अवसंरचना पर बल्कि जल स्रोतों की दीर्घकालिक संधारणीयता पर निर्भर करती है।
- इसे अटल भूजल योजना के साथ एकीकृत करने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन स्थिर भूजल स्तर द्वारा समर्थित हों।
- गाँवों में समुदाय-नेतृत्व वाली जल बजट पद्धति को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिये।
- इस तरह के अभिसरण से यह सुनिश्चित होता है कि जल आपूर्ति विस्तार का भूजल संरक्षण प्रयासों के साथ एकीकृत किया जाए, जिससे स्थायी प्रभाव प्राप्त हो।
- इसे अटल भूजल योजना के साथ एकीकृत करने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन स्थिर भूजल स्तर द्वारा समर्थित हों।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था के माध्यम से शहरी जल सुरक्षा को बढ़ावा देना: भारत के शहरी जल संकट के लिये रैखिक से चक्रीय जल उपयोग मॉडल में बदलाव की आवश्यकता है।
- शहरों को घरेलू और संस्थागत दोनों स्तरों पर अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण, ग्रेवाटर पुनःउपयोग और वर्षा जल संचयन में निवेश करना चाहिये।
- स्मार्ट सिटी मिशन को AMRUT 2.0 के साथ जोड़ने से संधारणीयता पर ध्यान केंद्रित करते हुए तकनीक-संचालित शहरी जल अवसंरचना सुनिश्चित की जा सकती है।
- भवन निर्माण नियमों में जल-संवेदनशील शहरी डिज़ाइन (WSUD) को अनिवार्य बनाने से शहरी विकास में संरक्षण को मुख्यधारा में लाया जा सकता है।
- पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से विकेंद्रीकृत जल प्रशासन को सुदृढ़ करना: ग्राम पंचायतों और जल समितियों के माध्यम से विकेंद्रीकृत योजना को वित्तीय और तकनीकी स्वायत्तता के साथ सशक्त बनाया जाना चाहिये।
- स्थानीय निकायों को जल अवसंरचना के संचालन एवं रखरखाव का प्रबंधन करना चाहिये तथा समुदाय आधारित प्रणालियों के माध्यम से जल-गुणवत्ता की निगरानी करनी चाहिये।
- विकेंद्रीकृत शासन समुदायों के बीच जवाबदेही, संदर्भ-विशिष्ट समाधान और स्वामित्व की भावना को बढ़ावा देता है।
- स्थानीय निकायों को जल अवसंरचना के संचालन एवं रखरखाव का प्रबंधन करना चाहिये तथा समुदाय आधारित प्रणालियों के माध्यम से जल-गुणवत्ता की निगरानी करनी चाहिये।
- प्रौद्योगिकी और प्रोत्साहन-आधारित मॉडलों के माध्यम से सिंचाई का आधुनिकीकरण: भारत को अकुशलता और भूजल की कमी को कम करने के लिये सिंचाई प्रथाओं में परिवर्तन की आवश्यकता है।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत सूक्ष्म सिंचाई का विस्तार करना तथा इसे बिजली सब्सिडी के लिये प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के साथ एकीकृत करना, किसानों को सटीक तकनीक अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
- मृदा नमी सेंसर और AI-सक्षम सिंचाई शेड्यूलिंग जैसी प्रौद्योगिकियों का विस्तार किया जाना चाहिये।
- यह उपाय जल उपयोग दक्षता और ऊर्जा-जल-कृषि संबंध दोनों को एक साथ सुनिश्चित करता है।
- संस्थागत अभिसरण और युनिफाईड वाटर डेटा आर्किटेक्चर: मंत्रालयों (जल शक्ति, कृषि, शहरी मामलों) में विखंडन जल नीति में समन्वय और जवाबदेही को कमज़ोर करता है।
- JJM, NFHS, NSSO और जनगणना में परिभाषाओं, संकेतकों एवं प्रगति ट्रैकिंग को सुसंगत बनाने के लिये एक राष्ट्रीय एकीकृत जल डेटा प्लेटफॉर्म स्थापित किया जाना चाहिये।
- वास्तविक काल डेटा पारदर्शिता अंतर-एजेंसी समन्वय और सार्वजनिक विश्वास में सुधार कर सकती है।
- संस्थागत तालमेल और एकीकृत निगरानी प्रणालियाँ साक्ष्य-आधारित एवं परिणाम-संचालित जल प्रबंधन को सक्षम बनाएंगी।
- सभी जल अवसंरचना परियोजनाओं में जलवायु अनुकूलन शामिल करना: जलवायु परिवर्तन के कारण सूखे और बाढ़ की समस्या तीव्र हो रही है, इसलिये परियोजना नियोजन में समुत्थानशीलन एक अनिवार्य मानदंड बन जाना चाहिये।
- जल अवसंरचना— बाँध, नहरें, शहरी नालियाँ को जलवायु जोखिम आकलन और प्रकृति-आधारित समाधानों का उपयोग करके डिज़ाइन किया जाना चाहिये।
- राष्ट्रीय अनुकूलन निधि को जल शक्ति अभियान के साथ जोड़ने से स्थानीय जलवायु-अनुकूल हस्तक्षेपों को वित्तपोषित किया जा सकता है।
- समुत्थानशक्ति समाहित करने से यह सुनिश्चित होता है कि बुनियादी अवसंरचना न केवल संधारणीय हो, बल्कि अनुकूलनीय भी हो।
- समुदाय-नेतृत्व वाली पहल के माध्यम से पारंपरिक जल निकायों को पुनर्जीवित करना: भारत में पारंपरिक जल संचयन प्रणालियों— बावड़ियों, टैंकों, जोहड़ों की समृद्ध विरासत है, जो उपेक्षित हो गई है।
- MGNREGS और जल शक्ति अभियान जैसी योजनाओं के अभिसरण के माध्यम से इन्हें पुनर्जीवित करने से जल भंडारण क्षमता सृजित हो सकती है, साथ ही ग्रामीण रोज़गार का सृजन भी हो सकता है।
- रखरखाव के लिये पुरस्कार-आधारित मॉडल के माध्यम से सामुदायिक स्वामित्व को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- सांस्कृतिक ज्ञान को आधुनिक योजना के साथ सम्मिश्रित करने से संधारणीयता और सामाजिक पूंजी वृद्धि दोनों प्राप्त होती है।
- पुनर्चक्रित जल के उपयोग को बढ़ावा देना: आवासीय सोसायटियों को गैर-पेय प्रयोजनों के लिये उपचारित जल के अंगीकरण के लिये प्रोत्साहित करने की दिशा में सरकार सब्सिडी वाली दोहरी पाइपलाइन प्रणाली शुरू कर सकती है जो पीने योग्य और पुनर्चक्रित जल को पृथक् करती है।
- इसके अतिरिक्त, एक स्तरीय मूल्य निर्धारण संरचना लागू की जा सकती है, जिसमें स्वच्छ जल के अत्यधिक उपयोग के लिये उच्च दर वसूल की जा सकती है, जबकि पुनर्चक्रित जल के उपयोग के लिये प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
- अपशिष्ट जल का प्रभावी उपचार और पुनः उपयोग सुनिश्चित करने के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के शून्य तरल निर्वहन (ZLD) दिशानिर्देशों का सख्ती से अनुपालन आवश्यक है।
- इसके अलावा, उद्योगों को विद्युत टैरिफ नीति- 2016 के उदाहरण का अनुसरण करते हुए उपचारित जल का उपयोग करना अनिवार्य किया जाना चाहिये, जिसके अनुसार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) के 50 किलोमीटर के दायरे में स्थित ताप विद्युत संयंत्रों को गैर-पेय प्रयोजनों के लिये उपचारित सीवेज जल का उपयोग करना होगा।
- मिहिर शाह समिति की अनुशंसा को लागू करना: मिहिर शाह समिति ने एकीकृत जल प्रबंधन के लिये वन वाटर अप्रोच की अनुशंसा की है, जिसमें बेहतर प्रशासन के लिये CGWB और CWC को राष्ट्रीय जल आयोग (NWC) में विलय करना तथा विकेंद्रीकृत जल प्रबंधन को सुदृढ़ करना शामिल है। समिति द्वारा की गई कुछ अन्य अनुशंसाएँ इस प्रकार हैं:
- अनुशासनात्मक दायरे को व्यापक बनाना:
- सिविल इंजीनियरों (CWC) और हाइड्रोजियोलॉजिस्ट (CGWB) का वर्तमान प्रभुत्व अपर्याप्त है।
- समाज वैज्ञानिकों और प्रबंधन विशेषज्ञों को शामिल करने (सहभागी मॉडल के लिये) पर बल दिया गया।
- कृषि वैज्ञानिकों को— फसल जल बजट और WUE के लिये।
- पारिस्थितिकी अर्थशास्त्रियों को— पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को महत्त्व देने के लिये।
- नदी पारिस्थितिकीविदों को— नदी कायाकल्प परियोजनाओं के लिये आवश्यक।
- समग्र और सहभागी जल शासन:
- भूजल-सतही वाटर साइलोज़ को तोड़ने का समर्थन किया जाना चाहिये।
- समुदाय की भागीदारी और विकेंद्रीकृत निर्णय लेने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- इस बात पर बल दिया जाना चाहिये कि जल का मूल्य केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि पारिस्थितिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भी है।
- शासन व्यवस्था में सुधार:
- मौजूदा संगठनों को प्रगतिशील, कार्यशील और सघन संरचना में फिर से डिज़ाइन किया जाना चाहिये जो वर्तमान एवं भविष्य की जल प्रशासन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपट सकें।
- अनेक ओवरलैपिंग पदनामों और जवाबदेही की कमी जैसे मुद्दों को हल करके मौजूदा निकायों की प्रशासनिक व्यवस्था को सरल एवं तर्कसंगत बनाया जाना चाहिये।
- सहभागी और समावेशी जल प्रबंधन:
- सहभागी सिंचाई और भूजल प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, जिसके लिये स्थानीय समुदायों एवं बहु-विषयक विशेषज्ञता के साथ जुड़ाव की आवश्यकता होती है।
- जल संरक्षण और प्रबंधन रणनीतियों में सामाजिक, पारिस्थितिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को शामिल करने के लिये जल के विशुद्ध रूप से आर्थिक मूल्यांकन से ध्यान हटाए जाने की आवश्यकता है।
- सभी स्तरों पर सक्रिय हितधारक जुड़ाव के साथ जल प्रशासन को अधिक समावेशी, सहभागी और पारदर्शी बनाए जाने की आवश्यकता है।
- अनुशासनात्मक दायरे को व्यापक बनाना:
निष्कर्ष:
भारत के जल प्रबंधन को दीर्घकालिक संधारणीयता सुनिश्चित करने के लिये बुनियादी अवसंरचना के विस्तार से आगे बढ़ना होगा। जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी के प्रति समुत्थानशीलन के लिये पारंपरिक संरक्षण विधियों को आधुनिक समाधानों के साथ एकीकृत करना महत्त्वपूर्ण है। विकेंद्रीकृत शासन, डेटा पारदर्शिता और सामुदायिक भागीदारी को मज़बूत करने से दक्षता बढ़ेगी।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में प्रभावी जल प्रबंधन के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो बुनियादी अवसंरचना के विकास और पारंपरिक संरक्षण प्रथाओं के बीच संतुलन बनाए रखे। इस संतुलन को प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और संधारणीय समाधान सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बांधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021) (a) धौलावीरा उत्तर:(a) प्रश्न 2. ‘वाटरक्रेडिट’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सेे सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर:(c) मेन्सप्रश्न 1. जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? (2020) प्रश्न 2. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइये। (2020) |