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एडिटोरियल

  • 21 Oct, 2022
  • 18 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सेमी कंडक्टर उद्योग और इसका महत्त्व

यह एडिटोरियल 20/10/2022 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “US sanctions targeting China’s semiconductor industry are a gamble aimed at maintaining American hegemony” लेख पर आधारित है। इसमें चीन के सेमीकंडक्टर उद्योग के विरूद्ध अमेरिकी प्रतिबंधों और उनके प्रभावों पर विचार किया गया है।

संदर्भ

अमेरिका ने चीन की प्रौद्योगिकीय एवं सैन्य महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश के प्रयास तेज़ करते हुए चीन को उन्नत कंप्यूटर चिप्स की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है।

  • यह कदम चीन को उस महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी की आपूर्ति में कटौती करने के उद्देश्य से उठाया गया है जिसका उपयोग उन्नत कंप्यूटिंग और हथियारों के निर्माण सहित कई अन्य क्षेत्रों में किया जा सकता है।
  • यह प्रतिबंध पिछले कई दशकों के समयांतराल में चीन को प्रौद्योगिकी निर्यात पर संयुक्त राज्य अमेरिका की सबसे महत्त्वपूर्ण कार्रवाई को चिह्नित करता है। इसके साथ ही विश्व की दो सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध का स्तर और बढ़ गया है।

इस प्रतिबंध की मुख्य बातें

  • अमेरिका ने निर्यात नियंत्रणों का एक व्यापक सेट अधिरोपित किया है जिसमें चीन को कुछ तरह के सेमीकंडक्टर चिप्स और चिप-मेकिंग उपकरणों से दूर करने के उपाय शामिल हैं।
  • नियमों के तहत, अमेरिकी कंपनियों को चीनी चिप निर्माताओं को ऐसे उपकरणों की आपूर्ति बंद कर देनी है जिनसे अपेक्षाकृत उन्नत चिप्स का उत्पादन किया जा सकता है, जब तक कि वे पहले लाइसेंस प्राप्त न कर लें।
  • नए नियम उन्नत सेमीकंडक्टर उत्पादन वस्तुओं और कुछ एकीकृत सर्किट या चिप्स के विशिष्ट अंतिम उपयोग के लिये किसी तरह के लेनदेन पर नियंत्रण आरोपित करते हैं।
  • अमेरिका सेमीकंडक्टर उत्पादों एवं सॉफ्टवेयर, प्रौद्योगिकी और एकीकृत सर्किट निर्माण एवं विकास में उपयोगी अन्य वस्तुओं पर भी निर्यात नियंत्रण को बढ़ाने की इच्छा रखता है।
  • अमेरिकी नागरिकों और ग्रीन-कार्ड धारकों को भी चीनी कंपनियों एवं संस्थानों के लिये कुछ प्रौद्योगिकी विशेष पर कार्य करने से प्रतिबंधित किया जाएगा।

अमेरिका के इस कदम के क्या परिणाम होंगे?

  • प्रतिबंध लगाने का अनुचित आधार: अमेरिका ने महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में रणनीतिक लाभ की स्थिति का दुरुपयोग किया है और यह दृष्टांत अन्य देशों को भी इस तरह के प्रतिबंध लगाने के लिये प्रेरित करेगा जिससे व्यापार युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। इन प्रतिबंधों की दूरगामी प्रकृति का वैश्विक व्यापार और वित्तीय व्यवस्था की विश्वसनीयता पर प्रभाव पड़ेगा।
  • अपनी प्रकृति में नव-औपनिवेशिक: संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा चिपमेकिंग उपकरणों के निर्यात पर यह प्रतिबंध न केवल चीन को प्रभावित करेगा बल्कि अन्य देशों को भी संभावित लाभों से वंचित कर देगा। वैश्विक सार्वजनिक अच्छे औचित्य के बजाय व्यापारीवादियों द्वारा नहीं बढ़ाया जाना चाहिये। व्यवस्था की वैधता (जिसे अमेरिकी बनाए रखना चाहते हैं) वैश्विक सार्वजनिक कल्याण के तर्क के बजाय वणिकवादी दृष्टिकोण से पुष्ट नहीं हो सकेगी।
  • आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान: इतना ही नहीं, ये प्रतिबंध वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में अत्यधिक अनिश्चितता उत्पन्न करने का नुस्खा हैं। भारत जैसे कुछ देश इस क्षण का अवसरवादी लाभ उठाने के लिये लालायित हो सकते हैं, लेकिन यह भी संभावित है कि विश्व व्यापार प्रणाली में संचयी अनिश्चितताओं से इन लाभों का मूल्य बहुत कम हो जाएगा। चीन एक महत्त्वपूर्ण अर्थव्यवस्था है जिसे अलग-थलग करने का दृष्टिकोण उचित नहीं माना जा सकता।
  • जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के प्रयासों में बाधा: स्पष्ट है कि एक प्रमुख विषय जहाँ वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है, अर्थात जलवायु परिवर्तन, को भी इस कदम से धक्का लगेगा। जलवायु परिवर्तन पर एक ठोस वैश्विक कार्रवाई की कल्पना करना कठिन है जब वैश्विक महाशक्तियाँ एक व्यापारिक या वणिकवादी युद्ध की स्थिति में हों।

सेमीकंडक्टर चिप्स क्या होते हैं?

  • परिचय:सेमीकंडक्टर (Semiconductors) या अर्द्धचालक ऐसी सामग्री है जिसकी चालकता सुचालकों और कुचालकों की चालकता के मध्य की होती है। वे सिलिकॉन या ज़र्मेनियम जैसे शुद्ध तत्त्वों अथवा गैलियम, आर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड जैसे यागिकों के रूप में हो सकते हैं।
  • सेमीकंडक्टर चिप्स का महत्त्व:वे आधारभूत ‘बिल्डिंग ब्लॉक्स’ हैं जो सभी आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उत्पादों के मन और मस्तिष्क के रूप में कार्य करते हैं।
    • ये चिप्स वर्तमान समय में ऑटोमोबाइल, घरेलू गैजेट्स और ECG मशीनों जैसे आवश्यक चिकित्सा उपकरणों के अभिन्न अंग बन गए हैं।
  • मांग में हालिया वृद्धि:कोविड-19 महामारी के कारण दैनिक आर्थिक एवं आवश्यक गतिविधियों के एक बड़े भाग को ऑनलाइन ले जाने या कम-से-कम उन्हें डिजिटल रूप से सक्षम करने की आवश्यकता ने लोगों के जीवन में चिप-संचालित कंप्यूटर एवं स्मार्टफोन की केंद्रीयता को उजागर किया है।
    • इसकी कमी एक सोपानी प्रभाव उत्पन्न करती है क्योंकि सर्वप्रथम यह एक तीव्र मांग की वृद्धि करती है और फिर एक परिणामी भारी कमी को बल देती है।

सेमीकंडक्टर का महत्त्व

  • एयरोस्पेस, ऑटोमोबाइल, संचार, स्वच्छ ऊर्जा, सूचना प्रौद्योगिकी और चिकित्सा उपकरणों आदि सहित अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों के लिये ही अर्द्धचालक अत्यंत आवश्यक हैं।
    • इन महत्त्वपूर्ण घटकों की बढती मांग के साथ आपूर्ति के असंतुलन की स्थिति बनी है, जिससे वैश्विक स्तर पर चिप की कमी पैदा हो गई है। इसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में विकास एवं रोज़गार अवसरों में कमी आई है।
  • दिसंबर, 2021 में केंद्र सरकार ने भारत में विभिन्न सेमीकंडक्टर वस्तुओं के निर्माण को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना के तहत 76,000 करोड़ रुपए की मंज़ूरी प्रदन की।
  • सेमीकंडक्टर्स और डिस्प्ले आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये आधारभूत घटक हैं जो औद्योगिक क्रांति 4.0 (Industry 4.0) के तहत डिजिटल परिवर्तन के अगले चरण को गति प्रदान कर रहे हैं।

सेमीकंडक्टर उद्योग के प्रोत्साहन की आवश्यकता क्यों?

  • सेमीकंडक्टर चिप्स आधुनिक सूचना युग के लिये जीवनदायिनी हैं। वे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों को अभिकलन एवं नियंत्रण क्रियाओं में सक्षम बनाते हैं जो हमारे जीवन को सरल बनाता है।
  • ये सेमीकंडक्टर चिप्स ICT (सूचना और संचार प्रौद्योगिकी) के विकास के चालक हैं और वर्तमान ‘फ्लैटनिंग ऑफ द वर्ल्ड’ की परिघटना में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।
  • उनका उपयोग संचार, बिजली पारेषण जैसी महत्त्वपूर्ण अवसंरचनाओं में किया जाता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक निहितार्थ रखते हैं।
  • सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले इकोसिस्टम का अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में गुणक प्रभाव पड़ेगा जहाँ वैश्विक मूल्य शृंखला के साथ एकीकरण और गहन होगा।
  • उल्लेखनीय है कि वर्तमान में विश्व के कुछ ही देशों के पास सेमीकंडक्टर चिप्स निर्माण की क्षमता है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान और नीदरलैंड का इस क्षेत्र में प्रभुत्व है।
    • जर्मनी भी ICTs उत्पादों का एक उभरता हुआ उत्पादक है।

सेमीकंडक्टर बाज़ार में भारत की स्थिति:

  • भारत वर्तमान में सभी तरह के चिप्स का आयात करता है और वर्ष 2025 तक इस बाज़ार के 24 बिलियन डॉलर से बढ़कर 100 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। हालाँकि सेमीकंडक्टर चिप्स के घरेलू निर्माण के लिये भारत ने हाल ही में कई पहलें शुरू की हैं:
    • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ' सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण पारितंत्र' (semiconductors and display manufacturing ecosystem) के विकास का समर्थन करने के लिये 76,000 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की है।
      • इसके तहत, डिज़ाइन कंपनियों को चिप्स डिज़ाइन करने हेतु प्रोत्साहन के लिये एक उल्लेखनीय राशि प्रदान की जाएगी।
    • भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों और अर्द्धचालकों के निर्माण के लिये इलेक्ट्रॉनिक घटकों एवं अर्द्धचालकों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना (Scheme for Promotion of Manufacturing of Electronic Components and Semiconductors- SPECS) भी शुरू की है।
    • वर्ष 2021 में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सेमीकंडक्टर डिज़ाइन में शामिल कम-से-कम 20 घरेलू कंपनियों के संपोषण के लिये और उन्हें अगले 5 वर्षों में 1500 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार कर सकने में सक्षम बनाने के लिये डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव (DLI) योजना भी शुरू की।
  • अर्द्धचालकों का स्वयं भारत का उपभोग वर्ष 2026 तक 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2030 तक 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर जाने का अनुमान है।

भारत के लिये चुनौतियाँ

  • उच्च निवेश की आवश्यकता:सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण एक अत्यंत एवं प्रौद्योगिकी-गहन क्षेत्र है, जिसमें भारी पूंजी निवेश, उच्च जोखिम, लंबी भुगतान अवधि तथा प्रौद्योगिकी में तेज़ी से बदलाव जैसे तत्त्व शामिल हैं और इसके लिये उल्लेखनीय एवं निरंतर निवेश की आवश्यकता होती है।
  • सरकार से न्यूनतम वित्तीय सहायता:सेमीकंडक्टर उद्योग के विभिन्न उप-क्षेत्रों में विनिर्माण क्षमता स्थापित करने के लिये आमतौर पर आवश्यक निवेश के पैमाने से देखें तो वर्तमान परिकल्पित राजकोषीय समर्थन का स्तर अत्यंत कम है।
  • क्षमता निर्माण की कमी:भारत में चिप डिज़ाइन हेतु प्रतिभा मौजूद है लेकिन इसने कभी भी चिप फैब क्षमता (chip fab capacity) का निर्माण नहीं किया। ISRO और DRDO के पास अपने-अपने ‘फैब फाउंड्री’ उपलब्ध हैं लेकिन वे मुख्य रूप से उनकी स्वयं की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये हैं और वे विश्व के आधुनिकताम फैब फाउंड्री जैसे परिष्कृत भी नहीं हैं।
    • भारत में केवल एक पुराना फैब मौजूद है जो पंजाब के मोहाली में स्थित है।
  • बेहद महँगा फैब सेटअप:एक छोटे स्तर के अर्द्धचालक निर्माण सुविधा (Semiconductor fabrication facility) या ‘फैब’ की स्थापना में भी अरबों डॉलर का खर्च आ सकता है और उस पर भी नवीनतम प्रौद्योगिकी के मामले में वे एक या दो पीढ़ी पीछे होंगे।
  • संसाधन अक्षम क्षेत्र: चिप फैब हेतु लाखों लीटर स्वच्छ जल, एक अत्यंत स्थिर बिजली आपूर्ति, वृहत भूमि और अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है।

आगे की राह

  • एक प्रमुख खिलाड़ी बनने की आवश्यकता:भारत को एक विश्वसनीय एवं बहुपक्षीय अर्द्धचालक पारितंत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभरने पर लक्षित होना चाहिये।
    • एक बहुपक्षीय अर्द्धचालक पारितंत्र के निर्माण हेतु अनुकूल व्यापार नीतियों का होना महत्त्वपूर्ण हैं।
  • सभी तत्त्वों के लिये पर्याप्त वित्तीय सहायता:भारत की प्रतिभा और अनुभव को ध्यान में रखते हुए यह बेहतर उपाय हो सकता है कि नया मिशन कम-से-कम अभी के लिये चिप-मेकिंग शृंखला के अन्य हिस्सों- जैसे डिज़ाइन केंद्र, परीक्षण सुविधाएँ, पैकेजिंग आदि को वित्तीय सहायता प्रदान करने से संबद्ध हो।
  • आत्मनिर्भरता को अधिकतम करना: भारत में भविष्य में चिप उत्पादन किसी एक विषय-क्षेत्र तक सीमित नहीं हो, बल्कि डिज़ाइन से फैब्रिकेशन तक और पैकिंग से परीक्षण तक सबको समाहित करते हुए एक पारितंत्र का विकास करना चाहिये।
    • भारत को इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में भी सुधार लाने की ज़रूरत है जहाँ वर्तमान में इसकी कमी है।
  • कनेक्टिविटी और क्षमता संबंधी उपाय: भारत को चिप-मेकिंग और डिज़ाइनिंग उद्योग में अपनी पहचान बनाने के लिये कई कारकों को एक साथ साधने की ज़रूरत है।
    • भारत सरकार के लिये चिप विनिर्माण पारितंत्र के निर्माण हेतु भारत में संबंधित उद्योगों को एक साथ लाने की तत्काल आवश्यकता है। इसके साथ ही राष्ट्रीय क्षमता को भी बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • उच्च निवेश की आवश्यकता:सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण एक अत्यंत जटिल एवं प्रौद्योगिकी-गहन क्षेत्र है जिसमें भारी पूंजी निवेश, उच्च जोखिम, लंबी पूर्णावधि एवं भुगतान अवधि और प्रौद्योगिकी में तेज़ी से परिवर्तन शामिल है, जिसके लिये उल्लेखनीय और निरंतर निवेश की आवश्यकता होती है।
  • महत्त्वपूर्ण घटक के निर्माण को प्रोत्साहन देना:चिप के तीन घटक होते हैं:
    • हार्डवेयर (कच्चा माल)
    • डिज़ाइन
    • फैब्रिकेशन
      • डिज़ाइन स्वयं में वह घटक है जो मूल्य का सृजन करता है और यदि भारत इस क्षमता का उपयोग करने में सक्षम हो तो फिर विश्व का कोई भी देश उसे पीछे नहीं छोड़ सकता।

निष्कर्ष

चूँकि सेमीकंडक्टर की आवश्यकता के साथ-साथ इसकी वैश्विक मांग भी मौजूद है जिनकी भारत पूर्ति कर सकता है, लेकिन इसके लिये मौजूदा क्षमताओं का उपयोग करते हुए आगे बढ़ने की आवश्यकता होगी और सुदृढ़ नीति तंत्र एवं पारितंत्र को स्थापित करना होगा। इसके लिये उद्योग एवं सरकार का मिलकर कार्य करना भी आवश्यक है।

ये सभी लाभ लंबे समय से मौजूद रहे हैं, आवश्यक है कि अब इनका दोहन किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: भारत के लिये सेमीकंडक्टर विनिर्माण कितना महत्त्वपूर्ण है और इसके विनिर्माण से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं? चर्चा करें।


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