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एडिटोरियल

  • 21 Jul, 2022
  • 11 min read
शासन व्यवस्था

राजनीति और शासन में सोशल मीडिया की भूमिका

यह एडिटोरियल 20/07/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “How Twitter became the New Medium for Diplomacy” लेख पर आधारित है।

संदर्भ

पाषाण युग से धातु युग की ओर आगे बढ़ा मानव इतिहास अब डिजिटल युग में है जहाँ सोशल मीडिया इसका सबसे आशाजनक उपस्कर है। यह वास्तविक दुनिया का दर्पण है।

  • जनमत (Public Opinion) को ‘लोकतंत्र की मुद्रा’ कहा जाता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म दिनानुदिन सार्वजनिक चर्चा और जनमत निर्माण के प्राथमिक आधार बनते जा रहे हैं। यह ऐसा माध्यम है जहाँ लोग दैनिक जीवन के विषयों से लेकर राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों तक बहस और संवाद करने में सक्षम हुए हैं।
  • सोशल मीडिया अब मित्रों और परिवार से जुड़ने के अबोध माध्यम भर नहीं रह गए हैं। इसके बजाय ये राजनीतिक गतिविधि के और एक नए राजनीतिक संवाद के निर्माण के माध्यम में रूपांतरित हो गए हैं।

सोशल मीडिया भारतीय राजनीति को कैसे लाभ पहुँचाता है?

  • जनता में जागरूकता का प्रसार: ऐतिहासिक रूप से लोग कभी भी सरकारी नीतियों को लेकर इतने जागरूक नहीं थे, जितने अब हैं।
    • सोशल मीडिया के प्रभावी उपयोग के माध्यम से सरकारी पहुँच बढ़ रही है जहाँ विभिन्न सोशल मीडिया अभियानों के माध्यम लोगों में जागरूकता का प्रसार किया जा रहा है।
      • उदाहरण के लिये, कोविड महामारी के दौरान सतर्कता संबंधी जागरूकता के प्रसार में और चिकित्सा हेतु लोगों के मार्गदर्शन में सोशल मीडिया अत्यंत प्रभावी साबित हुआ।
  • अंतराल को दूर करना: सोशल मीडिया लोगों और उनके प्रतिनिधियों को निकट लाने में सहायक रहा है।
    • संचार की बाधाएँ, जो लोगों को अपने नेताओं के साथ संवाद की अनुमति नहीं देती थीं, सोशल मीडिया के कारण पर्याप्त कम हो गई हैं।
    • सोशल मीडिया पर राजनीतिज्ञ अपने समर्थकों तक पहुँच रहे हैं।
      • वे सोशल मीडिया पर अपनी संलग्नताओं और पोस्टों के माध्यम से जनता को एक लूप या पाश में बनाए रखना सुनिश्चित कर रहे हैं।
      • इसने आम नागरिकों की राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने की क्षमता में वृद्धि की है।
    • इसके अलावा, भारत और उसके मित्र देशों के बीच राजनयिक संबंधों को प्रभावित करने के लिये सोशल मीडिया का सक्रिय रूप से उपयोग किया गया है।
  • बाधाओं को कम करना: सोशल मीडिया मंच जनता-राजनेता संवाद का सस्ता और निम्न-बाधाकारी माध्यम प्रदान करते हैं जहाँ कई व्यक्तियों को राजनीतिक दौड़ में प्रवेश करने की अनुमति देकर राजनीतिक लोकतंत्र को संभावित रूप से गहन किया जा रहा है।
  • बेहतर विश्लेषणात्मक प्रणाली: जनमत संग्रह के पारंपरिक तरीकों की तुलना में सोशल मीडिया कम मानवीय प्रयास के साथ समय और लागत प्रभावी डेटा संग्रह और विश्लेषण का अवसर देता है।

सोशल मीडिया के राजनीतिकरण के नकारात्मक प्रभाव

  • राजनीतिक ध्रुवीकरण: सोशल मीडिया की सबसे आम आलोचनाओं में से एक यह है कि यह ‘इको चैंबर’ (Echo Chambers) का निर्माण करता है जहाँ लोग केवल उन दृष्टिकोणों को देखते हैं जिनसे वे सहमत हैं।
    • राजनीतिक अभियान कभी-कभी देश के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक और सामाजिक तनाव पैदा करते हैं।
    • सोशल मीडिया ने लोकलुभावन राजनीति (Populist Politics) की एक शैली को सक्षम किया है, जो अपने नकारात्मक पक्ष में ‘हेट स्पीच’ (Hate Speech) और अतिवादी संभाषण (Extreme Speech) को (विशेष रूप से क्षेत्रीय भाषाओं में) डिजिटल स्पेस में पनपने की अनुमति देता है जिस पर प्रायः कोई नियंत्रण नहीं है।
  • ‘प्रोपेगैंडा’ का प्रसार: ‘गूगल ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट’ के अनुसार, विभिन्न राजनीतिक दलों ने मुख्यतः पिछले दो वर्षों में चुनावी विज्ञापनों पर लगभग 800 मिलियन डॉलर (5,900 करोड़ रुपए) खर्च किये हैं।
    • सूक्ष्म-लक्ष्यीकरण (Micro-targeting) प्रवंचक अभियानों को बिना अधिक परिणाम भोगे वैमनस्यपूर्ण विमर्श के प्रसार में सक्षम बना सकता है।
  • असमान भागीदारी: सोशल मीडिया जनमत के संबंध में नीति-निर्माताओं की धारणा को विकृत भी करता है।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि भ्रमित रूप से ऐसा माना जाता है कि सोशल मीडिया मंच जीवन के हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन सबकी आवाज़ एकसमान रूप से नहीं सुनी जाती है।
  • राजनीतिक रणनीति: राजनीतिक दल सोशल मीडिया की मदद से मतदाताओं की पसंद-नापसंद के बारे में सूचनाएँ प्राप्त करने में सक्षम होते हैं और फिर उन्हें भ्रमित कर अपने पक्ष में मोड़ने का प्रयास करते हैं। ‘स्विंग वोटर्स’ पर विशेष रूप से यह दाँव आजमाया जाता है जिनके विचारों को सूचनाओं के हेरफेर से बदला जा सकता है।
    • सोशल मीडिया लोगों की अभिव्यक्ति को प्रबल करते हैं और कई बार किसी के भी द्वारा इसका गलत इस्तेमाल अफ़वाहों और गलत सूचनाओं के प्रसार के लिये किया जा सकता है।
      • सोशल मीडिया ने लोगों को बेहतर सूचना सक्षम तो बनाया है लेकिन उन्हें बहकाना भी आसान बना दिया है।

भ्रामक सूचना बनाम दुष्प्रचार बनाम विकृत सूचना

  • प्रायः झूठी ख़बर या ‘फेक न्यूज़’ में तीन अलग-अलग धारणाएँ शामिल होती हैं: भ्रामकसूचना (Misinformation), दुष्प्रचार (Disinformation) और विकृत सूचना (Mal-information)।
  • भ्रामक सूचना झूठी ख़बर ही होती है, लेकिन कोई व्यक्ति इसे सच मानते हुए ही साझा करता है।
  • दुष्प्रचार वह है जो किसी व्यक्ति द्वारा यह जानने के बाद भी कि यह सच नहीं है, जानबूझकर साझा किया जाता है, यहाँ गुमराह करना ही उद्देश्य होता है।
  • विकृत सूचना वह है जो वास्तविकता पर आधारित होती है लेकिन किसी व्यक्ति, संगठन या देश को हानि पहुँचाने की नीयत से प्रसारित की जाती है।

आगे की राह

  • पारदर्शिता को सुगम बनाने हेतु कानून: वृहत स्तर पर दुष्प्रचार से निपटने के लिये एक सार्थक ढाँचा इस समझ के साथ बनाया जाना चाहिये कि यह एक राजनीतिक समस्या है।
    • अभिव्यक्ति व्यवस्था (Governance of Speech) को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के दायरे में लाने के लिये और सोशल मीडिया के शस्त्रीकरण को नियंत्रित करने के लिये पारदर्शिता और विनियमन लाने की आवश्यकता है।
    • कानून में उपयोगकर्ता की गोपनीयता के लिये सुरक्षा उपाय शामिल होने चाहिये क्योंकि ये सोशल मीडिया मंच नागरिकों की निजी सूचनाओं का भंडार रखते हैं।
  • मंचों में संरचनात्मक सुधार: ‘मध्यस्थों’ के रूप में मंचों को प्रदत्त पूर्ण प्रतिरक्षा का अब कोई अर्थ नहीं है क्योंकि ये मंच उपयोगकर्ता कंटेंट के साथ कहीं अधिक हस्तक्षेपवादी हैं।
    • इसलिये, मंच की जवाबदेही को उनके वितरण मॉडल से संबद्ध किया जाना चाहिये।
    • इसके अलावा, सोशल मीडिया मंचों को उपयोगकर्ताओं के लिये एक सूचित विकल्प उपलब्ध कराना चाहिये कि वे किस फ़ीड को सब्सक्राइब करना चाहते हैं या किस फ़ीड से ऑप्ट-आउट करना चाहते हैं।
  • व्यक्तिगत डेटा के उपयोग पर नियंत्रण: चुनावी अभियानों के संदर्भ में व्यक्तिगत डेटा के उपयोग पर राष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप नियंत्रण रखा जाना चाहिये।
  • सबके लिये समान अवसर: लोकतंत्र, अपनी वास्तविक भावना में, सभी दलों के लिये एकसमान अवसर की मांग रखता है और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सभी दलों को प्रतिस्पर्द्धा का समान अवसर प्रदान करते हैं।
    • राजनीतिक उद्देश्यों के लिये सोशल मीडिया के उपयोग पर कठोर मानदंडों की स्थापना करना समय की आवश्यकता है ताकि अल्पमत राजनीतिक अभियानों पर समान ध्यान दिया जा सके।
    • भारत का निर्वाचन आयोग और इसकी आदर्श आचार संहिता यह सुनिश्चित करने का वृहत प्रयास प्रयास करती है कि एक दल को केवल इस आधार पर दूसरे दल की तुलना में अनुचित लाभ प्राप्त न हो, क्योंकि वह सत्ता में है।

अभ्यास प्रश्न: सोशल मीडिया ने भारत में राजनीतिक गतिशीलता को गहनता से प्रभावित किया है। टिप्पणी कीजिये।


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