भारतीय राजव्यवस्था
समाज और सोशल मीडिया
- 07 Sep 2020
- 13 min read
यह एडिटोरियल 31 अगस्त को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित Social media: The new theatre of India’s culture wars लेख पर आधारित है। इस लेख में समाज और शासन पर सोशल मीडिया के प्रभाव का विश्लेषण किया गया है।
संदर्भ
फेसबुक, ट्विटर जैसे अन्य सोशल मीडिया (Social Media- SM) प्लेटफार्मों की अभूतपूर्व वृद्धि लोकतंत्रों के कामकाज में एक दोधारी तलवार साबित हो रही है। एक ओर इसने सूचना तक पहुँच का लोकतांत्रिकरण किया है, वहीं दूसरी ओर इसने नई चुनौतियाँ भी पेश की है जो अब सीधे हमारे लोकतंत्र और लोगों पर प्रभाव डाल रही हैं।
सोशल मीडिया का विस्तार
- भारत में वर्ष 2019 तक 574 मिलियन सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्त्ता थे।
- इंटरनेट प्रयोग करने के मामले में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर है।
- एक अनुमान के अनुसार, दिसंबर 2020 तक भारत में लगभग 639 मिलियन सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता होंगे।
- भारत के अधिकांश इंटरनेट उपयोगकर्त्ता मोबाइल फोन इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं।
- वर्ष 2019 में भारत में कुल डेटा (4G डेटा उपभोग के साथ) ट्रैफिक में 47% की वृद्धि हुई है। देश भर में खपत होने वाले कुल डेटा ट्रैफिक में 4G की भागीदारी 96% है जबकि 3G डेटा ट्रैफिक में 30% की उच्चतम गिरावट दर्ज की गई।
सोशल मीडिया के लाभ
- सूचना का लोकतंत्रीकरण
- सोशल मीडिया ज्ञान और व्यापक स्तर पर संचार सुविधाओं का लोकतंत्रीकरण करता है।
- विश्व भर के अरबों लोगों ने अब सूचना को संरक्षित रखने और इसका प्रसार करने के पारंपरिक माध्यमों को चलन से लगभग बाहर कर दिया है। वे सिर्फ इसके उपभोक्ता ही नहीं सामग्री के निर्माता और प्रसारकर्त्ता भी बन गए हैं।
- नए अवसर
- आभासी दुनिया का उदय ऐसे लोगों को अपनी आवाज़ को मुखर करने का अवसर प्रदान करता है जिन्हें या तो अभी तक सुना नहीं जाता था अर्थात् समाज का अपेक्षित आभासी दुनिया के माध्यम से ये लोग दूसरे लोगों से जुड़ते हैं और स्वयं को स्थापित कर पाते हैं। अगर व्यवसाय के रूप में देखें तो कई YouTubers का उदय इस घटना का प्रमाण है।
- व्यापक और विषम समुदाय
- भौतिक समुदायों की तुलना में ऑनलाइन समुदाय भौगोलिक रूप से बहुत व्यापक और अधिक विषम हैं।
- अतीत में भारत में कई समुदायों को सार्वजनिक प्रवचनों में भाग लेने, खुद को संगठित करने तथा अपनी सोच और विचारों को आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं थी। उनकी चिंताओं, विचारों, अनुभवों, महत्त्वाकांक्षाओं और मांगों को काफी हद तक अनसुना कर जाता था।
- सस्ता और आसान
- सोशल मिडिया के लिये आवश्यक कंटेंट के निर्माण में ईंट और चूने पत्थर या किसी अन्य भौतिक पदार्थ की तुलना में कम निवेश की आवश्यकता होती है। यह अक्सर मृदु-कौशल से संचालित होता है।
- प्रौद्योगिकी की सहायता से कोई भी व्यक्ति सक्षम, प्रामाणिक, प्रभावी और मौलिक ऑनलाइन कंटेंट तैयार कर सकता है।
- आधिपत्य का मुकाबला
- सोशल मीडिया भी पारंपरिक खिलाड़ियों के आधिपत्य या रिवायत का मुकाबला करने के लिये एक उपकरण के रूप में कार्य करता है।
- इसने विश्व में ज्ञान का एक वैकल्पिक स्रोत प्रदान किया है, जिससे मुख्यधारा का मीडिया फर्जी खबरों और प्रचार-प्रसार के लिये गंभीर सार्वजनिक आलोचनाओं के घेरे में आ गया है।
- दूरी समाप्त हो रही है
- सोशल मीडिया ने लोगों के बीच की दूरी को भी समाप्त करने का काम किया है।
- दोस्त और परिवार अब दूर होने के बावजूद भी व्हाट्सएप और अन्य एप के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े रहते हैं।
- सरकार के साथ सीधा संवाद
- आज सोशल मीडिया ने आम लोगों को सरकार से सीधे बातचीत करने और सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने का अधिकार दिया है।
- आम लोग अपने सवाल या परेशानियों को रेलवे और अन्य मंत्रालयों को पोस्ट कर देते हैं, जो इन दिनों आम खबर है।
चुनौतियाँ
- द्वेषपूर्ण भाषण और अफवाहें (Hate speech and Rumours)
- पिछले कुछ समय से कई मामलों में हिंसा और जान-माल की क्षति के लिये नफरत फैलाने वाले भाषण और अफवाहें ज़िम्मेदार रहे हैं।
- हाल ही का एक मामला है जब महाराष्ट्र के पालघर के गडचिंचल गाँव में दो साधुओं और उनके ड्राइवर की हत्या कर दी गई।
- व्हाट्सएप मैसेज द्वारा यह अफवाह फैलाई गई कि क्षेत्र में तीन चोर चोरी कर रहे हैं, इस अफवाह के चलते गाँव के एक समूह ने तीनों यात्रियों को चोर समझकर उनकी हत्या कर दी थी। हस्तक्षेप करने वाले कई पुलिस कर्मियों पर भी गाँव वालों ने हमला कर दिया जिससे वे घायल हो गए।
- 2020 के दिल्ली दंगों में सोशल मीडिया पर हुए द्वेषपूर्ण भाषण की बड़ी भूमिका थी।
- फेक न्यूज़
- वर्ष 2019 माइक्रोसॉफ्ट द्वारा 22 देशों में किये गए सर्वेक्षण के अनुसार, 64% से अधिक भारतीय फर्जी खबरों का सामना करते हैं।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों और व्हाट्सएप जैसी मैसेजिंग सेवाओं के माध्यम से प्रसारित एडिटेड इमेज, हेरा-फेरी वाले वीडियो और झूठे संदेशों की एक चौंका देने वाली संख्या मौजूद है जिससे गलत सूचनाओं और विश्वसनीय तथ्यों के बीच अंतर करना मुश्किल हो जाता है।
ऑनलाइन ट्रोलिंग
- ट्रोलिंग सोशल मीडिया का नया उप-उत्पाद है।
- कई बार लोग कानून अपने हाथ में ले लेते हैं, लोगों को ट्रोल करना और धमकाना शुरू कर देते हैं जो उनके विचारों या आख्यानों से सहमत नहीं होते हैं।
- इसने किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा पर हमला करने वाले गुमनाम ट्रोल को भी बढ़ावा दिया है।
महिला सुरक्षा
- महिलाओं को साइबर रेप और अन्य खतरों का सामना करना पड़ता है जो उनकी गरिमा को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
- कभी-कभी उनकी तस्वीरें और वीडियो को साइबर पर लीक कर देने की धमकी दी जाती है।
- कभी-कभी उनकी तस्वीरें और वीडियो लीक हो जाते हैं जिसके कारण उन्हें साइबर अपराध के लिये मजबूर किया जाता है।
आगे की राह
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)
- कई सोशल मीडिया केंद्रों ने कुछ विशेष प्रकार की सामग्री को बढ़ावा देने या फिल्टर करने के लिये स्वचालित और मानव संचालित एडिटेड प्रक्रियाओं का मिश्रण तैयार किया है।
- ये AI इकाइयाँ स्वचालित रूप से किसी छवि या समाचार को साझा करने पर हर बार गलत रिपोर्टिंग के खतरे को भांप लेंगी।
- इस अभ्यास को और अधिक दृढ़ता के साथ कार्यान्वित किया जाना चाहिये।
- फर्जी सूचना के प्रति अवगत होना
- यह एक ऐसा तरीका है जहाँ फर्जी जानकारी के साथ कंटेंट की वास्तविक सुचना भी पोस्ट की जाती है ताकि उपयोगकर्त्ताओं को वास्तविक जानकारी और सच्चाई से अवगत कराया जा सके।
- YouTube द्वारा लागू किया गया यह तरीका उपयोगकर्त्ताओं को नकली या घृणित सामग्री में किये गए भ्रामक दावों को खत्म कर देगा तथा सत्यापित और सुव्यवस्थित जानकारी वाले लिंक पर क्लिक करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- विनियमन लाना
- सोशल मीडिया के लगातार बढ़ते दायरे का सामना करने के लिये एक संपूर्ण राष्ट्रीय कानून होना चाहिये।
- इस संबंध में ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिये और कानूनी प्रावधान होने चाहिये।
- जन जागरूकता
- वर्तमान में देश को डिजिटल साक्षर बनाए जाने की ज़रूरत है।
- एक ज़िम्मेदार सोशल मीडिया का उपयोग कैसे किया जाए, इस विषय में देश के प्रत्येक स्कूल और कॉलेज एवं विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में इसका परिक्षण किया जाना चाहिये, जहाँ लोग उन्हें बेवकूफ बनाकर अपना काम आसानी से निकाल लेते हैं।
कानूनी उपाय
- भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) ने चुनाव के समय में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरों और गलत सूचना के प्रसार पर अंकुश लगाने के कईं उपायों की घोषणा की थी।
- इसने राजनीतिक दलों के सोशल मीडिया कंटेंट को आदर्श आचार संहिता के दायरे में लाया गया और उम्मीदवारों को अपने सोशल मीडिया खातों तथा उनके संबंधित सोशल मीडिया अभियानों पर सभी खर्चों का खुलासा करने के लिये कहा था।
- इसी प्रकार सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information & Broadcasting) की मीडिया विंग विभिन्न सरकारी मीडिया प्लेटफॉर्मों की गतिविधियों पर नज़र रखने में सरकार के विभिन्न संगठनों की सहायता करती रही है।
- इस तरह की गतिविधियों को सभी पैमानों और संस्थानों में प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
- जैसा कि भारत एक निगरानी राज्य नहीं है, इसलिये निजता, बोलने और अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के अधिकार पर कोई गैर-कानूनी या असंवैधानिक जाँच नहीं होनी चाहिये जो प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार हैं। इसमें एक संतुलन होना चाहिये क्योंकि संविधान ने भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार पर कई सीमाएँ लगाई है।
- बड़ी प्रौद्योगिकी फर्में, जिनके पास सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं, कंटेंट के संदर्भ में मध्यस्थता कर सकती हैं और इस प्रकार लोकतंत्र को प्रभावित कर सकती हैं।
- उन्हें और सभी को अपने कार्यों के लिये उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिये, जिसके व्यापक सामाजिक प्रभाव होते हैं।
मुख्य परीक्षा प्रश्न: सोशल मीडिया लोकतंत्रों की कार्यप्रणाली में एक दोधारी तलवार है। वर्तमान विकास के आलोक में इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।