भारत में रेल दुर्घटनाएँ: कारण एवं सुरक्षा उपाय
यह एडिटोरियल 17/06/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Railway safety — listen to the voices from below’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में रेलवे सुरक्षा की स्थिति और बेहतर सुरक्षा उपायों एवं अवसंरचना की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (RRSK), इंटरलॉकिंग प्रणाली, कवच, अल्ट्रासोनिक दोष जाँच (USFD), समितियाँ मेन्स के लिये:रेलवे सुरक्षा: चुनौतियाँ, किये गए उपाय एवं आगे की राह |
भारतीय रेलवे विश्व के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में से एक है, जहाँ लाखों लोग प्रति दिन परिवहन के लिये इस पर निर्भर करते हैं। आँकड़े बताते हैं कि पिछले दो दशकों में पटरी से गाड़ी उतरने के मामले (जो अधिकांश दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं) सहस्राब्दी के अंत में प्रति वर्ष लगभग 350 से घटकर वर्ष 2021-22 में मात्र 22 रह गए।
हालाँकि, बालासोर के बहनागा बाज़ार रेलवे स्टेशन पर हुई दुर्घटना जैसे मामले बेहतर सुरक्षा उपायों और अवसंरचना की आवश्यकता को उज़ागर करते हैं। इस दुर्घटना में बड़ी संख्या में लोगों की मौत यह सुनिश्चित करने के महत्त्व का त्रासद अनुस्मारक है कि रेलवे उन सभी लोगों के लिये सुरक्षित हो जो इसका उपयोग करते हैं।
इस घटना की प्रतिक्रिया में रेलवे के प्रभारी लोगों से जवाबदेही की मांग की गई है, साथ ही उन प्रणालीगत मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है जिनका इस दुर्घटना में योगदान हो सकता है। विशेषज्ञों द्वारा भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिये सुझाव दिये जा रहे हैं, जिनमें सिग्नलिंग सिस्टम में सुधार करने और बेहतर तकनीक में निवेश करने जैसे सुझाव शामिल हैं।
इसके साथ ही, अन्य देशों की रेलवे प्रणालियों के साथ तुलना की गई है, जो भारत के लिये उन देशों के स्तर पर पहुँचने के लिये अपनी अवसंरचना और सुरक्षा उपायों में सुधार करने की आवश्यकता को उजागर करता है। कुल मिलाकर, इस घटना ने यह सुनिश्चित करने के महत्त्व की ओर ध्यान आकर्षित किया है कि भारतीय रेलवे उन सभी के लिये सुरक्षित और भरोसेमंद हो जो इसका उपयोग करते हैं।
रेलवे दुर्घटनाओं के पीछे के प्राथमिक कारण
- अवसंरचनात्मक दोष: रेलवे अवसंरचना—जिसमें पटरियाँ, पुल, ओवरहेड तार और रोलिंग स्टॉक (कोच, डब्बे, इंजन आदि) शामिल हैं, प्रायः खराब रखरखाव, पुराना होने, हमला, तोड़फोड़ या प्राकृतिक आपदाओं के कारण दोषपूर्ण हो जाती है।
- रेलवे अवसंरचना के अधिकांश भाग का निर्माण 19वीं-20वीं शताब्दी में हुआ जिसे बढ़ती मांग और आधुनिक मानकों की पूर्ति के लिये अपग्रेड नहीं किया गया है।
- रेलवे तंत्र धन की कमी, भ्रष्टाचार और अक्षमता से भी ग्रस्त है जो इसके विकास एवं रखरखाव को प्रभावित करती है।
- इसके अलावा, कई रूट 100% से अधिक क्षमता पर संचालित हैं, जिससे भीड़भाड़ और ओवरलोडिंग के कारण दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।
- मानवीय त्रुटियाँ: रेलवे कर्मचारी, जो ट्रेनों और पटरियों के कार्यान्वयन, रखरखाव एवं प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार होते हैं, थकान, लापरवाही, भ्रष्टाचार या सुरक्षा नियमों एवं प्रक्रियाओं की अवहेलना के कारण मानवीय त्रुटियों के प्रति प्रवण होते हैं।
- मानवीय त्रुटियों के परिणामस्वरूप गलत सिग्नलिंग, दोषपूर्ण संचार, अत्यधिक गति अथवा दोषों या खतरों को अनदेखा करने की स्थिति बन सकती है।
- रेलवे कर्मचारियों में पर्याप्त प्रशिक्षण और संचार कौशल का भी अभाव पाया जाता है, जो उनके प्रदर्शन और समन्वय क्षमता को प्रभावित करता है।
- सिग्नलिंग संबंधी विफलताएँ: सिग्नलिंग प्रणाली, जो पटरियों पर ट्रेनों की गति और दिशा को नियंत्रित करती है, तकनीकी खराबी, पावर आउटेज या मानवीय त्रुटियों के कारण विफल हो सकती है।
- सिग्नल फेल होने से ट्रेनें गलत पटरियों पर जा सकती हैं, अन्य ट्रेनों या स्थिर वस्तुओं से टकरा सकती हैं या विराम स्टेशनों से आगे निकल सकती हैं।
- उदाहरण के लिये, ओडिशा में हाल ही में हुई ट्रेन दुर्घटना कथित तौर पर इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव के कारण हुई, जिसके बारे में चालकों को सही तरीके से सूचित नहीं किया गया।
- मानवरहित समपार (Unmanned level crossings- UMLCs): UMLCs वे स्थान होते हैं जहाँ यातायात को नियंत्रित करने के लिये किसी बैरियर या सिग्नल के बिना रेलवे ट्रैक गुज़रते हैं।
- UMLCs दुर्घटनाओं का उच्च जोखिम रखते हैं क्योंकि वाहन या पैदल यात्री आ रही ट्रेन से अनभिज्ञ हो सकते हैं अथवा उस समय पटरी पार करने की कोशिश कर सकते हैं जब कोई ट्रेन निकट हो।
- वर्ष 2018-19 में भारत में सभी ट्रेन दुर्घटनाओं के 16% के लिये UMLCs ज़िम्मेदार थे।
- रेलवे ने ब्रॉड गेज मार्गों पर सभी मानवरहित समपारों (UMLCs) को समाप्त कर दिया है, लेकिन अभी भी कई मानवयुक्त समपार (MLCs) मौजूद हैं जो दुर्घटनाओं का जोखिम उत्पन्न करते हैं।
- UMLCs दुर्घटनाओं का उच्च जोखिम रखते हैं क्योंकि वाहन या पैदल यात्री आ रही ट्रेन से अनभिज्ञ हो सकते हैं अथवा उस समय पटरी पार करने की कोशिश कर सकते हैं जब कोई ट्रेन निकट हो।
दुर्घटनाओं को कम करने के लिये रेलवे ने अब तक कौन-से कदम उठाये हैं?
- राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष (RRSK): यह महत्त्वपूर्ण परिसंपत्तियों के लिये एक सुरक्षा कोष है। इसकी स्थापना वर्ष 2017-18 में पाँच वर्ष की अवधि के लिये 1 लाख करोड़ रुपए के साथ ट्रैक नवीनीकरण, सिग्नलिंग परियोजनाओं, पुल पुनर्वास आदि महत्त्वपूर्ण सुरक्षा संबंधी कार्यों के लिये की गई थी।
- तकनीकी उन्नयन: कोच और डब्बों के बेहतर डिज़ाइन एवं विशेषताएँ। इसमें मॉडिफाइड सेंटर बफर कप्लर्स, बोगी माउंटेड एयर ब्रेक सिस्टम (BMBS), बेहतर सस्पेंशन डिज़ाइन और कोचों में ऑटोमैटिक फायर एंड स्मोक डिटेक्शन सिस्टम का प्रावधान शामिल है। इसमें कवच (KAVACH) को इनस्टॉल करना भी शामिल है जो स्वदेशी रूप से विकसित स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) उपाय है।
- LHB डिज़ाइन कोचः मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के लिये हल्के और सुरक्षित कोच। ये कोच जर्मन प्रौद्योगिकी पर आधारित हैं और पारंपरिक ICF डिज़ाइन कोचों की तुलना में बेहतर एंटी-क्लाइम्बिंग फीचर्स, अग्निरोधी सामग्री, उच्च गति क्षमता और सुदीर्घ सेवा काल रखते हैं।
- जीपीएस आधारित फॉग पास डिवाइस (GPS based Fog Pass Device): धुंध की स्थिति में लोको पायलटों को नेविगेट करने में मदद करने के लिये एक डिवाइस। यह एक जीपीएस सक्षम हैंड-हेल्ड डिवाइस है जो सामने आ रहे लैंडमार्क (जैसे सिग्नल, लेवल क्रॉसिंग गेट आदि) की सटीक दूरी प्रदर्शित करता है। जब ट्रेन सिग्नल या लेवल क्रॉसिंग गेट के पास पहुँचती है तो यह लोको पायलट को एक तेज़ बज़र के साथ अलर्ट करता है।
- आधुनिक पटरी संरचना: मज़बूत और अधिक टिकाऊ पटरियाँ एवं पुल। इसमें प्री-स्ट्रेस्ड कंक्रीट स्लीपर (PSC), हायर अल्टीमेट टेन्साइल स्ट्रेंथ (UTS) रेल, PSC स्लीपरों पर पंखे के आकार का लेआउट टर्नआउट, गर्डर ब्रिज पर स्टील चैनल स्लीपर आदि का उपयोग करना शामिल है।
- अल्ट्रासोनिक दोष जाँच (Ultrasonic Flaw Detection- USFD): दोषपूर्ण पटरियों का पता लगाने और उन्हें हटाने के लिये एक तकनीक। यह एक गैर-विध्वंसक परीक्षण पद्धति (non-destructive testing method) है जो पटरियों में ऐसी दरारों, दोषों या खामियों का पता लगाने के लिये उच्च आवृत्ति ध्वनि तरंगों का उपयोग करती है, जो गाड़ी के पटरी से उतरने या ऐसी अन्य दुर्घटनाओं का कारण बन सकती हैं। जाँच के बाद खराब पटरियों को नए पटरियों से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है।
- पटरी रखरखाव का यंत्रीकरण (Mechanization of Track Maintenance): पटरी (ट्रैक) रखरखाव को स्वचालित और अनुकूलित करने के लिये एक प्रणाली। इसमें टैंपिंग, ड्रेसिंग, स्टेबलाइजिंग जैसे ट्रैक रखरखाव गतिविधियों को क्रियान्वित करने के लिये ट्रैक टेम्पिंग मशीन, बलास्ट रेगुलेटिंग मशीन, डायनेमिक ट्रैक स्टेबलाइजर्स आदि मशीनों का उपयोग करना शामिल है। यह मानवीय त्रुटियों को कम करता है और पटरियों की गुणवत्ता एवं सुरक्षा में सुधार करता है।
- इंटरलॉकिंग प्रणाली (Interlocking System): केंद्रीय रूप से पॉइंट्स और सिग्नल्स को नियंत्रित करने के लिये एक प्रणाली। यह एक ऐसी प्रणाली है जो एक केंद्रीय स्थल से पॉइंट्स और सिग्नल्स को संचालित करने के लिये इलेक्ट्रिक या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग करती है। यह ज़मीनी स्तर पर कर्मचारियों द्वारा पॉइंट्स और सिग्नल्स के मैन्युअल संचालन की आवश्यकता को समाप्त करती है। यह मानवीय विफलता की संभावनाओं को भी कम करती है और सुरक्षा की वृद्धि करती है।
- मानवरहित समपारों (UMLCs) को समाप्त करना: UMLCs को बंद करने, विलय करने, इसे मानवयुक्त करने या सबवे, अंडरब्रिज या ओवरब्रिज प्रदान कर धीरे-धीरे समाप्त किया जा रहा है।
रेलवे सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न समितियों ने क्या अनुशंसाएँ की हैं?
- काकोदकर समिति (2012):
- एक सांविधिक रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण (Railway Safety Authority) का गठन करना
- सुरक्षा कार्य हेतु 5 वर्ष की अवधि के लिये 1 लाख करोड़ रुपए निधि के साथ राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष (RRSK) की स्थापना करना
- ट्रैक रखरखाव और निरीक्षण के लिये उन्नत तकनीकों को अपनाना
- मानव संसाधन विकास और प्रबंधन में सुधार लाना
- स्वतंत्र दुर्घटना जाँच सुनिश्चित करना
- बिबेक देबरॉय समिति (2014):
- रेल बजट को आम बजट से अलग करना
- गैर-प्रमुख गतिविधियों की आउटसोर्सिंग
- भारतीय रेलवे अवसंरचना प्राधिकरण (Railway Infrastructure Authority of India) का गठन करना
- विनोद राय समिति (2015)
- एक स्वतंत्र सांविधिक रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण (Railway Safety Authority ) का गठन करना
- स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच करने के लिये रेलवे दुर्घटना जाँच बोर्ड (Railway Accident Investigation Board) का गठन करना।
- रेलवे संपत्तियों के स्वामित्व और रखरखाव के लिये एक पृथक रेलवे अवसंरचना कंपनी (Railway Infrastructure Company) का निर्माण करना
- रेलवे कर्मचारियों के लिये प्रदर्शन संबद्ध प्रोत्साहन योजना (performance-linked incentive scheme) शुरू करना
भारत में रेल सुरक्षा के विस्तार के लिये और क्या किया जाना चाहिये?
- सुरक्षा संबंधी कार्यों में निवेश बढ़ाना: ट्रैक नवीनीकरण, रेल पुलों की मरम्मत, सिग्नलिंग अपग्रेड, कोच नवीनीकरण आदि के लिये अधिक धन का आवंटन किया जाए।
- मानवीय त्रुटियों को कम करने के लिये कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना: पर रेलवे कर्मचारियों को नवीनतम तकनीकों, उपकरणों, प्रणालियों, सुरक्षा नियमों और प्रक्रियाओं के संबंध में नियमित एवं व्यापक प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
- समपार या लेवल क्रॉसिंग को समाप्त करना: मानवरहित और मानवयुक्त लेवल क्रॉसिंग को रोड ओवरब्रिज (ROBs) या रोड अंडरब्रिज (RUBs) से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये।
- उन्नत तकनीकों को अपनाना: ‘कवच’ जैसे टक्कर-रोधी उपकरण (anti-collision devices (ACDs)/ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली (Train Collision Avoidance System- TCAS), ट्रेन सुरक्षा चेतावनी प्रणाली (Train Protection Warning System- TPWS), स्वचालित ट्रेन नियंत्रण (Automatic Train Control- ATC) आदि शामिल किये जाएँ।
- रेलवे इन तकनीकों को पटरियों के कुछ हिस्सों पर स्थापित करने की प्रक्रिया में है, लेकिन पूरे नेटवर्क को कवर करने के लिये इनका विस्तार किये जाने की आवश्यकता है।
- प्रदर्शन संबद्ध प्रोत्साहन: रेलवे कर्मचारियों को उनके प्रदर्शन और सुरक्षा नियमों एवं प्रक्रियाओं के अनुपालन के आधार पर पुरस्कृत एवं प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- गैर-प्रमुख कार्यों की आउटसोर्सिंग: अस्पतालों, कॉलेजों आदि के रखरखाव जैसी गैर-प्रमुख गतिविधियों को निजी या सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं को हस्तांतरित किया जा सकता है, जिससे दक्षता में सुधार हो सकता है और लागत कम हो सकती है।
- एक सांविधिक रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण का गठन करना: एक सांविधिक निकाय के रूप में रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना की जाए, जिसके पास सुरक्षा मानकों को तैयार करने, सुरक्षा ऑडिट एवं निरीक्षण करने, चूक के लिये जवाबदेही एवं दंड लागू करने और दुर्घटनाओं की जाँच करने की शक्तियाँ हों।
- नियमित सुरक्षा ऑडिट और निरीक्षण: रेलवे कर्मचारियों, अवसंरचनाओं और उपकरणों के सुरक्षा प्रदर्शन की निगरानी, मूल्यांकन और लेखा-परीक्षण करना और चूक के लिये सख्त जवाबदेही एवं दंड लागू करना।
- समन्वय और संचार को संवृद्ध करना: रेलवे संचालन से संलग्न रेलवे बोर्ड, क्षेत्रीय रेलवे, विभिन्न डिवीजनों, उत्पादन इकाइयों, अनुसंधान संगठनों आदि के बीच समन्वय एवं सुधार लाया जाए।
- गोपनीय घटना रिपोर्टिंग और विश्लेषण प्रणाली (Confidential Incident Reporting and Analysis System- CIRAS) की स्थापना करना: इसे एक ब्रिटिश विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया था; एक सदृश तंत्र भारत में लागू किया जाना चाहिये जो निचले स्तर के कर्मचारियों को गोपनीयता बनाए रखते हुए वास्तविक समय में विचलन की रिपोर्ट करने के लिये प्रोत्साहित करे।
- इस प्रणाली को आवश्यक संचार और सूचना प्रौद्योगिकी अवसंरचना द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये, ताकि यह सभी कर्मचारियों के लिये सुलभ और उपयोगकर्ता-अनुकूल बन सके।
- इसके साथ ही, प्रबंधन की मानसिकता को दोष ढूँढने और दंडित करने के दृष्टिकोण से एक ऐसे दृष्टिकोण में परिणत किया जाए जो सुरक्षा के लिये साझा प्रतिबद्धता पर बल देता हो, दंड के बजाय सुधार पर ध्यान केंद्रित करता हो और सभी स्तरों पर कर्मचारियों की आवाज़ को सक्रिय रूप से सुनता हो।
- रेलवे सुरक्षा के मामलों में, सभी स्तरों पर पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये दोष ढूँढने एवं दंडित करने के पारंपरिक दृष्टिकोण से साझा प्रतिबद्धता के दृष्टिकोण की ओर आगे बढ़ना चाहिये।
- भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा (IRMS) योजना पर पुनर्विचार करना: IRMS योजना और निष्ठा, स्वामित्व एवं सुरक्षा प्रबंधन पर इसके प्रभाव का गहन मूल्यांकन किया जाए। विशिष्ट विषयों या विभागों के प्रति विशेषज्ञता एवं निष्ठा की भावना को बनाए रखने के लिये और सुरक्षा के प्रति मज़बूत प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने के लिये योजना को पुनरीक्षित या संशोधित करने पर विचार करने की आवश्यकता है।
कुछ सर्वोत्तम वैश्विक प्रयासों के उदाहरण
- यूनाइटेड किंगडम: UK में ,यूरोप में सबसे कम रेल दुर्घटनाओं की दर वाले देशों में से एक है। यूके ने विभिन्न सुरक्षा उपायों को लागू किया है, जैसे:
- ट्रेन प्रोटेक्शन एंड वार्निंग सिस्टम (TPWS), जो खतरे की स्थिति में या गति सीमा से अधिक होने पर सिग्नल से गुज़रती ट्रेनों को स्वचालित रूप से रोक देता है।
- यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम (ETCS), जो ट्रेनों और सिग्नलिंग केंद्रों के बीच निरंतर संचार प्रदान करता है।
- रेल एक्सीडेंट इन्वेस्टीगेशन ब्रांच (RAIB), जो रेल दुर्घटनाओं एवं अन्य घटनाओं की स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच करती है।
- जापान: जापान को अपनी हाई-स्पीड ट्रेनों के लिये जाना जाता है, जैसे कि शिंकानसेन या बुलेट ट्रेन, जो 320 किमी/घंटा तक की गति से चलती हैं। जापान ने वर्ष 1964 में शिंकानसेन के परिचालन शुरू होने के बाद से शून्य यात्री मृत्यु के साथ सुरक्षा का एक उल्लेखनीय रिकॉर्ड हासिल किया है। जापान ने विभिन्न सुरक्षा उपायों को अपनाया है, जैसे:
- ऑटोमेटिक ट्रेन कंट्रोल (ATC) प्रणाली, जो ट्रेनों की गति एवं ब्रेकिंग की निगरानी और नियंत्रण करती है।
- व्यापक स्वचालित ट्रेन निरीक्षण प्रणाली (Comprehensive Automatic Train Inspection System- CATIS), जो सेंसर और कैमरों का उपयोग कर ट्रेनों में दोषों का पता लगाती है।
- भूकंप पूर्व चेतावनी प्रणाली (Earthquake Early Warning System- EEWS), जो भूकंपीय गतिविधि के मामले में ट्रेनों को रोकने या धीमा करने के लिये सचेत करती है।
अभ्यास प्रश्न: विश्व के सबसे बड़े और व्यस्ततम रेल नेटवर्क में से एक भारतीय रेलवे के लिये सुरक्षा एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। भारत में रेल दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों एवं उनके समाधान के लिये सरकार द्वारा किये गए उपायों की चर्चा कीजिये।