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एडिटोरियल

  • 21 Feb, 2024
  • 23 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

सेवा क्षेत्र में शिक्षा की भूमिका

यह एडिटोरियल 20/02/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Engineering graduates are steering the service industry” लेख पर आधारित है। इसमें इंजीनियरिंग स्नातकों के सेवा क्षेत्र की ओर जाने, रोज़गार बाज़ार की बदलती गतिशीलता और इस क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने वाले पाठ्यक्रम डिज़ाइन के महत्त्व जैसे विषयों पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

सकल मूल्य वर्द्धित (GVA), ग्लोबल बिज़नेस सर्विसेज (GBS), सेवा क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS)

मेन्स के लिये:

सेवा क्षेत्र के लिये पर्याप्त कौशल बल के विकास की आवश्यकता।

तेज़ी से विकसित हो रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र (services sector) का उभार एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में हुआ है, जो भारत के  सकल मूल्य वर्द्धित (Gross Value Added- GVA) में उद्योग क्षेत्र के 28% की तुलना में 53% का योगदान देता है। सेवाओं का यह प्रभुत्व रोज़गार वितरण में भी स्पष्ट नज़र आता है जहाँ उद्योग क्षेत्र के 25% की तुलना में सेवा क्षेत्र में 31% रोज़गार सृजित होता है। यह भारी वृद्धि सेवा क्षेत्र के सभी क्षेत्रों में प्रवेश स्तर के कर्मचारियों की मांग को बढ़ा रही है। यह वृद्धि केवल आईटी सेवाओं तक ही सीमित नहीं है; संगठित भारतीय सेवा क्षेत्र का भी लगातार विकास हो रहा है जिसमें खुदरा, दूरसंचार, परामर्श, आतिथ्य, बैंकिंग एवं स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र शामिल हैं। इसके अलावा, इनमें से प्रत्येक क्षेत्र के लिये, भारत ‘ऑफशोर हब’ (offshore hub) भी है, जो कैप्टिव (captive) एवं थर्ड पार्टी शेयर्ड सर्विसेज़ (TPSS) और ग्लोबल बिज़नेस सर्विसेज़ (GBS) के माध्यम से पूरी दुनिया के लिये ये सेवाएँ प्रदान करता है।

नोट

  • थर्ड पार्टी शेयर्ड सर्विसेज़ (TPSS): यह विशिष्ट व्यावसायिक कार्यों या प्रक्रियाओं को बाह्य सेवा प्रदाताओं को आउटसोर्स करने के अभ्यास को संदर्भित करता है। ये प्रदाता अनुबंध करने वाले संगठन (यानी ‘थर्ड पार्टी’) से अलग निकाय हैं और वे आमतौर पर कई ग्राहकों को सेवा प्रदान करते हैं।
    • साझा सेवाओं (Shared services) में किसी संगठन के विभिन्न भागों या एकाधिक संगठनों से समान कार्यों को एक एकल, विशेष इकाई में समेकित करना शामिल होता है। इस दृष्टिकोण का लक्ष्य आकारिक मितव्ययिता या ‘इकॉनोमिज़ ऑफ स्केल’ (economies of scale) हासिल करना, दक्षता में सुधार करना और लागत कम करना है।
  • ग्लोबल बिज़नेस सर्विसेज़ (GBS): शेयर्ड सर्विसेज़ मॉडल का विकास GBS के रूप में हुआ है। इसमें किसी संगठन के वैश्विक संचालन में व्यावसायिक प्रक्रियाओं को केंद्रीकृत एवं मानकीकृत करना शामिल है। GBS उन कार्यों को एकीकृत करने के रूप में पारंपरिक साझा सेवाओं से आगे निकल जाता है जिन्हें पहले विभिन्न क्षेत्रों या प्रभागों में स्वतंत्र रूप से प्रबंधित किया जाता था।
    • GBS केंद्र (GBS centres) प्रायः संचालन को सुव्यवस्थित करने, निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी एवं स्वचालन का लाभ उठाते हैं।

सेवा क्षेत्र कार्यबल को उन्नत करने की आवश्यकता क्यों है?

  • कुशल जनशक्ति की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता:
    • इस विशाल सेवा उद्योग को कुशल जनशक्ति की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता रहती है जो अभी एक असामान्य शिक्षा धारा इंजीनियरिंग से पूरी हो रही है। स्टेटिस्टिका के अनुसार, केवल 57% इंजीनियरिंग स्नातक ही नियोजनीय या रोज़गार-योग्य (employable) हैं।
    • अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) की कमीशन रिपोर्ट में बताया गया है कि उपलब्ध इंजीनियरिंग सीटों में से 60% से भी कम पर नामांकन हुआ है। एक अन्य इंडस्ट्री रिपोर्ट का दावा है कि लगभग 80% स्नातक इंजीनियर ऐसे ग़ैर-तकनीकी रोज़गार में संलग्न होते हैं जिनका उनकी शिक्षा के क्षेत्र से संबंध नहीं होता।
  • ग़ैर-तकनीकी क्षेत्रों में इंजीनियरों का नियोजन:
    • भारत में बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग स्नातक सेवा क्षेत्र की ओर आगे बढ़ रहे हैं। ऐसा न केवल कौशल एवं रोज़गार मांग के आदर्श संरेखण के कारण बल्कि सेवा-उन्मुख अवसरों की गतिशील एवं तीव्र वृद्धि की प्रकृति और कोर क्षेत्र में उनके कौशल के लिये प्रासंगिक रोज़गार अवसरों की कमी से प्रेरित है। 
    • परिणामस्वरूप, पिछले दशक में बड़ी संख्या में इंजीनियर गैर-तकनीकी क्षेत्रों, जैसे बैंकिंग, बीमा, आतिथ्य, स्वास्थ्य देखभाल एवं खुदरा क्षेत्र में बिक्री, ग्राहक सेवा, बैक ऑफिस संचालन, लॉजिस्टिक्स एवं आपूर्ति शृंखला प्रबंधन जैसी विभिन्न भूमिकाओं में नियोजित हुए।
  • अनुकूलनीय और समस्या-समाधानकारी मानसिकता की आवश्यकता:
    • इंजीनियरों को न केवल कौशल के सटीक मिलान के आधार पर बल्कि उनकी शिक्षा में निहित अनुकूलनशीलता एवं समस्या-समाधानकारी मानसिकता के कारण रोज़गार प्राप्त हो रहा है।
    • एक गतिशील बाज़ार का सामना कर रहे नियोक्ता इंजीनियरिंग कौशल की हस्तांतरणीयता को चिह्नित कर रहे हैं, भले ही सौंपी जा रही भूमिकाएँ पारंपरिक रूप से इंजीनियरिंग-केंद्रित न हों।
    • इंजीनियरिंग स्नातकों में निहित विश्लेषणात्मक कौशल, समस्या-समाधान क्षमताएँ और संरचित सोच के कारण उन क्षेत्रों में भी उनकी अत्यधिक मांग की जा रही है जिन्हें पारंपरिक रूप से इंजीनियरिंग-केंद्रित नहीं माना जाता है।

भारत में सेवा-क्षेत्र-विशिष्ट पाठ्यक्रम (Service-Sector-Specific Course) की क्या आवश्यकता है?

  • बाज़ार की बदलती प्रकृति पर चिंतन की आवश्यकता:
    • यह प्रवृत्ति रोज़गार बाज़ारों की उभरती प्रकृति और विभिन्न प्रकार की व्यावसायिक चुनौतियों के लिये स्नातकों को तैयार करने में शिक्षा की भूमिका पर एक गंभीर चिंतन को प्रेरित करती है।
    • चूँकि इंजीनियर विभिन्न प्रकार के क्षेत्रों में बिक्री, ग्राहक सेवा एवं वित्त जैसी भूमिकाओं में निर्बाध रूप से संक्रमण की क्षमता प्रदर्शित करते रहे हैं, शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र के लिये यह अनिवार्य हो गया है कि वह विकसित हो और सेवा उद्योग की इस आवश्यकता को संबोधित करे तथा पाठ्यक्रम डिज़ाइन एवं शिक्षाशास्त्र के प्रति अपने दृष्टिकोण को पुन:व्यवस्थित करे।
  • सामान्य पाठ्यक्रमों का अभाव:
    • पाठ्यक्रम केवल स्वास्थ्य देखभाल या आतिथ्य जैसे विशिष्ट डोमेन में उपलब्ध हैं। सेवा क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये कोई सामान्य पाठ्यक्रम (Generic courses) उपलब्ध नहीं है।
      • इसके परिणामस्वरूप, सेवा क्षेत्र इंजीनियरों को और कुछ हद तक प्रबंधन स्नातकों/स्नातकोत्तरों को प्रवेश स्तर की नौकरियों में उपयोग कर रहा है।
    • मौजूदा इंजीनियरिंग शिक्षा और रोज़गार मांग के बीच अंतराल को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय ऐसे सामान्य सेवा-उन्मुख पाठ्यक्रम विकसित करने की अत्यधिक आवश्यकता है जो छात्रों को ‘वाइट-कॉलर’ सेवा वातावरण में आगे बढ़ने के लिये तैयार कर सके
    • जिस तरह इंजीनियरिंग शिक्षा छात्र को औद्योगिक सेटअप में उपयुक्त रोज़गार पाने के लिये बुनियादी कौशल से लैस करती है, उसी तरह हमें एक समकक्ष सेवा कौशल शिक्षा की आवश्यकता है जो सेवा-उन्मुख परिदृश्य में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिये आवश्यक दक्षताएँ उत्पन्न करे।
  • ‘सॉफ्ट-स्किल’ (Soft-Skills) विकसित करना:
    • ऐसे सामान्य पाठ्यक्रम सेवा-केंद्रित भूमिकाओं में सफलता पाने के लिये आवश्यक तकनीकी दक्षता, सॉफ्ट-स्किल और उद्योग-विशिष्ट ज्ञान का एक समग्र मिश्रण प्रदान कर सकते हैं।
    • इन पाठ्यक्रमों में न केवल तकनीकी दक्षता पर बल दिया जाना चाहिये, बल्कि सॉफ्ट-स्किल, व्यावसायिक कौशल और उद्योग-विशिष्ट ज्ञान के विकास पर भी बल हो जो सेवा क्षेत्र में सफलता के लिये आवश्यक हैं।
  • विविध प्रौद्योगिकियों का एकीकरण:
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को पाठ्यक्रम में समेकित करने से ये कार्यक्रम छात्रों की नियोजनीयता या रोज़गार-योग्यता को विशेष रूप से ‘फिनटेक’ एवं ‘एडुटेक’ जैसे उभरते क्षेत्रों में बढ़ा सकते हैं।
      • इस तरह का पाठ्यक्रम प्रक्रिया पुनर्रचना (process reengineering), समस्या समाधान और ग्राहक प्रबंधन जैसे कौशल के साथ आधुनिक सेवा-उन्मुख उद्योगों की जटिलताओं को सुलझाने के लिये कुशल पेशेवरों के एक कैडर को बढ़ावा देगा।
  • गतिशील सेवा परिदृश्य की मांगों को पूरा करना:
    • एक विविध पाठ्यचर्या (curriculum) के आसपास संरचित यह पाठ्यक्रम (course) आज के गतिशील सेवा परिदृश्य की मांगों को पूरा करने के लिये अनुरूप आवश्यक विषयों एवं कौशल को शामिल कर सकता है। इस पाठ्यक्रम में नामांकित पेशेवरों को सेवा वितरण के बुनियादी सिद्धांतों—जिसमें कोर सेक्टर के अवलोकन के साथ ही भौतिक एवं डिजिटल वातावरण में सेवा वितरण की बारीकियाँ शामिल होंगी, के बारे में ठोस ज्ञान प्राप्त होगा।
  • सेवा प्रबंधन में पर्याप्त प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करना:
    • इसके अतिरिक्त, वे सेवा प्रबंधन सिद्धांतों, लीन सिक्स सिग्मा (Lean Six Sigma) जैसी प्रक्रिया सुधार विधियों और आलोचनात्मक समझ ढाँचे में प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं, जो उन्हें सेवा प्रक्रियाओं को अनुकूलित करने, परिचालन दक्षता बढ़ाने और आत्मविश्वास के साथ जटिल चुनौतियों से निपटने के लिये सशक्त बनाएगा।
    • ग्राहक प्रबंधन, संचार कौशल और नैतिक आचरण पर बल देने से पेशेवरों के बीच व्यावसायिकता एवं सत्यनिष्ठा की संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा, जो सेवा-उन्मुख भूमिकाओं में सुदृढ़ ग्राहक संबंध बनाने और विश्वास बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

नोट

  • लीन सिक्स सिग्मा (Lean Six Sigma) एक ऐसी विधि है जो अपशिष्ट को व्यवस्थित रूप से हटाकर और प्रक्रियाओं में भिन्नता को कम कर प्रदर्शन में सुधार लाने के लिये लीन मैन्युफैक्चरिंग (Lean manufacturing) और सिक्स सिग्मा (Six Sigma) के सिद्धांतों को संयुक्त करती है। इसका उद्देश्य लागत कम करते हुए और ग्राहकों की संतुष्टि को बढ़ाते हुए दक्षता, उत्पादकता एवं गुणवत्ता को बेहतर बनाना है।
  • ‘सिक्स सिग्मा’ शब्द एक सांख्यिकीय अवधारणा को संदर्भित करता है जो इस बात की माप करती है कि कोई दी गई प्रक्रिया पूर्णता (perfection) से किस हद तक विचलित होती है। सिक्स सिग्मा का लक्ष्य उन प्रक्रियाओं को प्राप्त करना है जो 3.4 दोष प्रति मिलियन अवसर (defects per million opportunities- DPMO) से अधिक पर संचालित नहीं हों।

सेवा-क्षेत्र कार्यबल में सुधार के लिये कौन-से कदम आवश्यक हैं?

  • ‘सर्विस इंजीनियरिंग’ के रूप में एक नए विषय की शुरूआत करना:
    • सेवा अभियांत्रिकी या सर्विस इंजीनियरिंग जैसे पाठ्यक्रम की शुरूआत परिवर्तनकारी क्षमता रखती है, जो बढ़ी हुई रोज़गार-योग्यता, बेहतर सेवा वितरण और सतत आर्थिक विकास का मार्ग प्रदान करती है।
    • इसमें प्रशिक्षित हुए स्नातक अत्यधिक मांग वाले पेशेवरों के रूप में उभरेंगे, जो विभिन्न उद्योगों में वाइट-कॉलर सेवा वातावरण में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिये आवश्यक ज्ञान, कौशल एवं मानसिकता से लैस होंगे।
  • पाठ्यक्रमों की वहनीयता और अभिगम्यता सुनिश्चित करना:
    • इसके अलावा, सर्विस इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों की वहनीयता और अभिगम्यता उन्हें टियर 2 एवं 3 शहरों के छात्रों के लिये एक आकर्षक विकल्प बनाएगी। नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS)-7 में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 37% बताई गई है।
    • चूँकि सेवा क्षेत्र आमतौर पर कर्मचारियों को बेहतर लचीलापन प्रदान करते हैं, इस तरह का पाठ्यक्रम कार्यबल में योगदान करते समय महिलाओं के लिये कार्य एवं पारिवारिक प्रतिबद्धताओं को संतुलित करने हेतु एक सहायक वातावरण सक्षम करने में भी मदद कर सकता है।
  • समावेशिता और नवाचार को बढ़ावा देना:
    • पारंपरिक इंजीनियरिंग कार्यक्रमों (जिनके लिये व्यापक सुदृढ़ अवसंरचना की आवश्यकता होती है) के विपरीत, सर्विस इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम डिजिटल प्लेटफॉर्म और वर्चुअल लर्निंग वातावरण का लाभ उठाएँगे, जिससे लागत में पर्याप्त कमी आएगी और शिक्षा में भौगोलिक बाधाएँ दूर होंगी।
    • शिक्षा का यह लोकतंत्रीकरण न केवल समावेशिता को बढ़ावा देगा, बल्कि भारत की बढ़ती सेवा-संचालित अर्थव्यवस्था में योगदान के लिये विविध पृष्ठभूमि के इच्छुक पेशेवरों की क्षमता को भी साकार करेगा।
    • सेवा क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप कुशल कार्यबल के विकास में निवेश कर भारत स्वयं को सेवा नवाचार एवं वितरण में वैश्विक अग्रणी देश के रूप में स्थापित कर सकता है, जिससे भविष्य की सेवा-संचालित अर्थव्यवस्था में समृद्धि एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता आएगी।
  • विनियामक और संस्थागत सुधार:
    • कई सेवा उप-क्षेत्रों में विनियमन या तो पुराने हो चुके हैं या मौजूद ही नहीं हैं। सरकार पुरानी नीतियों से मुक्ति के प्रयास कर रही है, लेकिन डायरेक्ट सेलिंग, ई-कॉमर्स एवं क्लाउड कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में नए विनियमनों की भी सख्त ज़रूरत है ताकि इन उप-क्षेत्रों के विकास को सुविधाजनक बनाया जा सके। नियामक और संस्थागत सुधारों से भारत में सेवा क्षेत्र को आधुनिक बनाने में मदद मिलेगी।
  • सेवा क्षेत्र के अनुरूप नीति निर्धारण:
    • सेवा क्षेत्र को समावेशी विकास की ओर आगे ले जाने के संबंध में कोई सरकारी नीति मौजूद नहीं है। ऐसा आंशिक रूप से इसलिये है क्योंकि अभी तक सरकार का फोकस कृषि एवं विनिर्माण पर रहा है और सेवा क्षेत्र को काफी हद तक स्वयं के भरोसे आगे बढ़ने के लिये छोड़ दिया गया है।
      • खुदरा बिक्री जैसी सेवाओं के लिये कोई नोडल मंत्रालय अस्तित्व में नहीं है, जबकि परिवहन एवं ऊर्जा जैसे क्षेत्रों के लिये परस्पर विरोधी हित रखने वाले कई मंत्रालय मौजूद हैं।
    • अर्द्ध-संघीय शासन संरचना ने विविध नियामक निकायों, विविध विनियमों और विविध मंज़ूरी आवश्यकताओं को जन्म दिया है। उदाहरण के लिये, उच्च शिक्षा के लिये लगभग 13 नियामक निकाय मौजूद हैं और उनमें से प्रत्येक पृथक रूप से कार्य करता है।
      • सेवा क्षेत्र पर तत्काल ध्यान केंद्रित करने और विभिन्न प्रकार की सेवाओं के समक्ष विद्यमान प्रमुख बाधाओं की पहचान करने की आवश्यकता है; इसके उपरांत विशिष्ट सुधार किये जाने चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, सड़क परिवहन में किये जाने वाले सुधारों को माल की अंतर-राज्यीय आवाजाही में व्याप्त बाधाओं को दूर कर एक निर्बाध आपूर्ति शृंखला स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। राज्य की सीमाओं पर जाँच चौकियों को कम्प्यूटराइज़ करने जैसी तकनीक और एकल वस्तु एवं सेवा कर लागू करने जैसे विनियमों की मदद से ऐसा किया जा सकता है।

निष्कर्ष

सेवा क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था की आधारशिला बन गया है, जो सकल मूल्य वर्द्धित (GVA) और रोज़गार में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है। इस विकास के कारण कुशल पेशेवरों की मांग बढ़ी है, जहाँ कई इंजीनियरिंग स्नातकों को सेवा क्षेत्र में ग़ैर-तकनीकी भूमिकाओं में अवसर प्राप्त हो रहे हैं।

इस प्रवृत्ति को संबोधित करने के लिये, सामान्य सेवा-उन्मुख पाठ्यक्रमों की आवश्यकता है जो छात्रों को वाइट-कॉलर सेवा भूमिकाओं के लिये आवश्यक तकनीकी कौशल एवं सॉफ्ट-स्किल से लैस करें। ऐसे पाठ्यक्रम, विशेष रूप से नए उभरते क्षेत्रों में, रोज़गार-योग्यता की वृद्धि कर सकते हैं और व्यावसायिकता एवं सत्यनिष्ठा की संस्कृति को बढ़ावा दे सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: शिक्षा और रोज़गार मांग के बीच असंगति के परिदृश्य में, भारत सेवा क्षेत्र में इंजीनियरिंग स्नातकों की रोज़गार-योग्यता को किस प्रकार बढ़ा सकता है? समाधान सुझाते हुए चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स

प्रश्न. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइए। औद्योगिक नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अन्तरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अन्तरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


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