सामाजिक न्याय
विज्ञान में लैंगिक असमानता: चुनौतियाँ और समानता की राह
यह एडिटोरियल 18/09/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Shanti Swarup Bhatnagar Prize: Hegemony of old boys’ club in science’’ लेख पर आधारित है। इसमें शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार में व्याप्त लैंगिक असमानता की चर्चा की गई है और देश में महिला वैज्ञानिकों को मान्यता देने की कमी को रेखांकित किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये:वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार, इंजीनियरिंग और गणित (STEM)। मेन्स के लिये:लैंगिक असमानता, विज्ञान में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के कारण, विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के तरीके। |
हाल ही में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) ने वर्ष 2022 के लिये शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार के विजेताओं की सूची की घोषणा की। उल्लेखनीय है कि इस सूची में किसी भी महिला वैज्ञानिक का नाम शामिल नहीं है जिसने देश का ध्यान आकृष्ट किया है।
यह पुरस्कार इसके प्राप्तकर्ताओं के वैज्ञानिक करियर पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है और संबद्ध संस्थानों की प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है। हालाँकि, इस पुरस्कार की सूची में वर्ष-दर-वर्ष महिला वैज्ञानिकों की उपेक्षा या उन्हें चिह्नित नहीं किया जाना आलोचना का विषय बनता रहा है। वैज्ञानिक समुदाय के बीच इस पुरस्कार के महत्त्व के बावजूद, यह महिला वैज्ञानिकों के योगदान को स्वीकार करने और उन्हें सम्मान देने में बार-बार विफल रहा है।
इस पुरस्कार के इतिहास में व्यापत लैंगिक असमानता विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के समक्ष विद्यमान चुनौतियों एवं पूर्वाग्रहों को उजागर करती हैं और वैज्ञानिक मान्यता में लैंगिक समानता एवं विविधता को बढ़ावा देने के लिये व्यापक प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार (SSB):
- प्रारंभ और इतिहास: यह पुरस्कार वर्ष 1958 में CSIR द्वारा स्थापित किया गया था और वैज्ञानिक उत्कृष्टता को चिह्नित करने में इसका एक सुदीर्घ इतिहास रहा है।
- वार्षिक पुरस्कार: यह पुरस्कार विज्ञान के क्षेत्र में युवा और होनहार प्रतिभा की पहचान पर बल देते हुए 45 वर्ष से कम आयु के वैज्ञानिकों के एक चयनित समूह को प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है।
- विज्ञान के विविध क्षेत्रों की मान्यता: यह पुरस्कार विज्ञान के सात अलग-अलग क्षेत्रों में प्रदान किये जाते हैं, जिनमें भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, गणित और वायुमंडलीय विज्ञान शामिल हैं।
इस पुरस्कार की आलोचना के प्रमुख कारण:
- लिंग असमानता: SSB पुरस्कार में लिंग असमानता की समस्या बेहद प्रकट है, जहाँ वर्ष 2021 और 2022 दोनों के विजेताओं की सूची में अनन्य रूप से पुरुष वैज्ञानिक शामिल हैं। यह स्थिति इस पुरस्कार में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में लगातार कमी को रेखांकित करती है।
- यह तथ्य कि भारत के कार्यरत वैज्ञानिकों में केवल 14% महिलाएँ हैं, विज्ञान के क्षेत्र में व्याप्त उल्लेखनीय लैंगिक असमानता को रेखांकित करता है।
- महिला पुरस्कार विजेताओं की कमी: पिछले दो वर्षों में, कई वैज्ञानिकों को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिये चिह्नित करने के बावजूद, CSIR एक भी ऐसे महिला वैज्ञानिक की पहचान करने में विफल रहा है, जिसने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पर्याप्त उल्लेखनीय प्रभाव उत्पन्न किया हो।
- क्षेत्र में समावेशिता: लगभग 600 SSB पुरस्कारों में से केवल 19 महिला वैज्ञानिकों को प्रदान किये गए हैं जो पुरस्कार के इतिहास में लंबे समय से चले आ रहे ऐतिहासिक लैंगिक असंतुलन को इंगित करता है।
- विज्ञान में महिलाओं के योगदान की मान्यता की लगातार कमी वैज्ञानिक समुदाय में समावेशिता और लैंगिक समानता पर सवाल खड़े करती है।
- पारदर्शिता का अभाव: SSB पुरस्कार विजेताओं के चयन के लिये ज़िम्मेदार सलाहकार समिति की संरचना को पारंपरिक रूप से गोपनीय रखा गया है, जिससे यह किसी सार्वजनिक जवाबदेही और संवीक्षा से प्रतिरक्षित हो गई है।
- पारदर्शिता की यह कमी पूर्वाग्रहों को और बढ़ावा दे सकती है और लैंगिक असमानताओं को दूर करने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
- मुख्य रूप से पुरुष हस्तियों द्वारा नामांकन: इस पुरस्कार हेतु किसी वैज्ञानिक के नाम पर विचार किये जाने के लिये उसे प्रभावशाली पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा नामांकित किये जाने की शर्त रखी गई है जिसमें कुलपति, निदेशक, अकादमी अध्यक्ष, डीन, CSIR शासी निकाय के सदस्य और पूर्व विजेता शामिल होते हैं।
- देखा गया है कि वैज्ञानिकों को नामांकित करने वाले इन प्रभावशाली लोगों में मुख्य रूप से पुरुष ही शामिल होते हैं, जिससे यह संभावना बनती है कि महिला वैज्ञानिकों को नामांकित करने में पूर्वाग्रह प्रकट हो।
महिलाओं की भागीदारी के संबंध में अन्य पुरस्कारों का परिदृश्य:
- नोबेल पुरस्कार: वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध और अत्यंत प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार भी उल्लेखनीय लैंगिक असमानता से ग्रस्त हैं।
- अब तक प्रदान किये गए विज्ञान क्षेत्र के 343 नोबेल पुरस्कारों में से केवल 24 ही महिलाओं को प्रदान किये गए हैं, जो महिला पुरस्कार विजेताओं के प्रतिनिधित्व में उल्लेखनीय कमी को दर्शाता है।
- प्रगति को प्रोत्साहित करना: नोबेल पुरस्कारों में ऐतिहासिक रूप से लैंगिक असमानता के बावजूद, कुछ हद तक एक उत्साहजनक प्रवृत्ति नज़र आती है जहाँ वर्ष 2000 के बाद से सभी श्रेणियों में दिये गए 61 पुरस्कारों में से 31 पुरस्कार महिलाओं को दिये गए हैं।
- यह महिलाओं की उपलब्धियों को अधिक चिह्नित करने की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव का संकेत देता है, हालाँकि अभी भी पर्याप्त सुधार की गुंजाइश बनी हुई है।
- भटनागर पुरस्कारों की तुलना: नोबेल पुरस्कार के विपरीत, SSB पुरस्कार महिला वैज्ञानिकों को चिह्नित करने में ऐसी किसी प्रगति का संकेत नहीं देते हैं।
- इस प्रतिष्ठित भारतीय पुरस्कार में तुलनात्मक रूप से उत्साहजनक विकास की कमी लैंगिक अंतराल को दूर करने और वैज्ञानिक मान्यता में विविधता एवं समावेशिता को बढ़ावा देने के लिये अधिक सक्रिय प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये CSIR द्वारा उठाए गये कदम:
- CSIR को भारत में सबसे बड़े अनुसंधान एवं विकास संगठन के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो बड़ी संख्या में वैज्ञानिकों को नियोजित करता है। CSIR के आकार और प्रभाव को देखते हुए, इस पर महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व लागू होता है कि यह विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के मुद्दे को संबोधित करे और लैंगिक विविधता को बढ़ावा दे।
- प्रथम महिला प्रमुख की नियुक्ति: वर्ष 2022 में CSIR के महानिदेशक के रूप में एन. कलईसेल्वी (N Kalaiselvi) की नियुक्ति के साथ वह इस पद को संभालने वाली पहली महिला महानिदेशक बनीं। यह विज्ञान और अनुसंधान संगठनों में महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने के मामले में एक उल्लेखनीय मील का पत्थर है ।
- लिंग समानता सर्वेक्षण (Gender Parity Survey): यह तथ्य कि CSIR ने वर्ष 2022 में लिंग समानता सर्वेक्षण आयोजित किया, इस संगठन के भीतर लिंग असमानताओं की सीमा को समझने की प्रतिबद्धता को प्रकट करता है।
विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के प्रमुख कारण:
- सामाजिक रूढ़ियाँ और पूर्वाग्रह: पुरुष-प्रधान वैज्ञानिक क्षेत्रों से संबद्ध गहरी जड़ें जमा चुकी रूढ़ियाँ और पूर्वाग्रह महिलाओं को इन क्षेत्रों में करियर बनाने से हतोत्साहित कर सकते हैं।
- ये रूढ़ियाँ नियुक्ति, पदोन्नति और मान्यता प्रक्रियाओं में निहित पूर्वाग्रहों के रूप में प्रकट हो सकती हैं।
- जवाबदेही का अभाव: बढ़ते विमर्श के बावजूद, महिला वैज्ञानिकों के करियर में बाधा डालने वाली चुनौतियों और पूर्वाग्रहों के लिये जवाबदेही लेने वाले व्यक्तियों या संस्थानों की उल्लेखनीय अनुपस्थिति पाई जाती है।
- यह समस्याओं को स्वीकार करने और ठोस समाधान लागू करने के बीच के अंतर को इंगित करता है।
- अंतर्संबंधीय चुनौतियाँ (Intersectional Challenges): विज्ञान के क्षेत्र में लैंगिक असमानता की समस्या जातिवाद और लिंगवाद (sexism) सहित भेदभाव के अन्य रूपों से और गहन हो जाती है। पूर्वाग्रह की ये विभिन्न परतें महिला वैज्ञानिकों के लिये उल्लेखनीय बाधाएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
- कार्यस्थल पर भेदभाव: उत्पीड़न और असमान व्यवहार सहित भेदभाव के विभिन्न रूप विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा बने हुए हैं। यह प्रतिकूल वातावरण महिलाओं को STEM (Science, Technology, Engineering and Mathematics) क्षेत्र में करियर को आगे बढ़ाने और उसमें बने रहने से अवरुद्ध कर सकता है ।
- संसाधनों तक असमान पहुँच: महिलाओं के पास अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में अनुसंधान निधि, प्रयोगशाला संसाधनों और नेटवर्किंग अवसरों तक सीमित पहुँच की स्थिति हो सकती है, जिससे उनके करियर की प्रगति और उनकी मान्यता प्रभावित हो सकती है।
आगे की राह:
- मान्यता का महत्त्व: वैज्ञानिक भूमिकाओं में महिलाओं की उपस्थिति के बावजूद, विद्यमान चुनौती यह सुनिश्चित करने में है कि उनके योगदान को समान रूप से मान्यता दी जाए और उनके महत्त्व को चिह्नित किया जाए।
- यह उन पूर्वाग्रहों और बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है जो महिलाओं के करियर में उन्नति और वैज्ञानिक समुदाय में उनकी मान्यता की राह में बाधक बन सकते हैं।
- नेटवर्किंग और सहकार्यता: ऐसे प्लेटफॉर्म और नेटवर्क स्थापित किये जाएँ जो महिला वैज्ञानिकों के बीच सहकार्यता और ज्ञान साझेदारी को सुगम बनाएँ। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदायों में उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाए।
- शैक्षिक सुधार: प्राथमिक शिक्षा से लेकर सभी स्तरों पर बालिकाओं और महिलाओं के लिये गुणवत्तापूर्ण STEM शिक्षा तक पहुँच को बढ़ावा दिया जाए।
- इसमें बालिकाओं को विज्ञान से संबंधित विषयों में आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु विभिन्न कार्यक्रम और छात्रवृत्तियाँ लागू करना शामिल है।
- बेहतर प्रतिनिधित्व के बहुविध महत्त्व को साकार करना: समावेशी और संवहनीय समाजों की अभिकल्पना के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महिलाओं का प्रतिनिधित्व आवश्यक है।
- लैंगिक समानता न केवल एक नैतिक अनिवार्यता है, बल्कि एक व्यावसायिक प्राथमिकता भी है। अपने कार्यकारी दलों के बीच अधिक विविधता रखने वाले संगठनों में अधिक लाभ प्राप्त करने और अधिक नवाचार क्षमता रखने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
अभ्यास प्रश्न: विभिन्न संस्थानों में महिला वैज्ञानिकों के लगातार कम प्रतिनिधित्व के लिये यह तर्क दिया जाता है कि ‘पर्याप्त संख्या में महिलाएँ उपलब्ध नहीं हैं'। इस तर्क का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।