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एडिटोरियल

  • 20 May, 2022
  • 11 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

दुर्लभ संसाधन एवं इलेक्ट्रिक वाहन संबंधी योजना

यह एडिटोरियल 17/05/2022 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित “EV Plan Hinges on Securing Rare Resources” लेख पर आधारित है। इसमें देश के EV उद्योग को प्रोत्साहन देने हेतु खनिज उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये भारत द्वारा उठाए जा सकने वाले उपायों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles- EVs) जैसे वैकल्पिक और निम्न ऊर्जा मांग वाले विकल्पों की ओर आगे बढ़ने के प्रयासों के साथ भारतीय ऑटोमोटिव उद्योग एक आमूलचूल परिवर्तन से गुज़र रहा है। शुद्ध-शून्य भविष्य (Net-Zero Future) की ओर बढ़ने की दिशा में पेट्रोल वाहनों से EVs की ओर संक्रमण एक महत्त्वपूर्ण कदम है। हालाँकि इसके साथ ही EV विनिर्माण हेतु उपयोग किये जाने वाले खनिजों के लिये भारत की आयात निर्भरता भी एक तथ्य के रूप में उभरी है। विभिन्न निम्न कार्बन प्रौद्योगिकियों की तरह EVs भी अपने डिज़ाइन में कई दुर्लभ धातुओं का उपयोग करते हैं, जिनमें से कई EVs के प्रभावी कार्यकरण के लिये महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। जबकि सरकार ने EVs बिक्री के लिये एक उच्च लक्ष्य निर्धारित किया है, भारत में लिथियम, कोबाल्ट और निकेल जैसे कई दुर्लभ खनिजों का अभाव है। इन खनिजों का उपयोग लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी सेल के निर्माण के लिये किया जाता है, जो फिर इलेक्ट्रिक कार बैटरी के निर्माण में इस्तेमाल किये जाते हैं।

इन तत्वों के उत्पादन की स्थिति:

  • वर्ष 2020 में ऑस्ट्रेलिया कुल वैश्विक लिथियम उत्पादन के 49% लिये ज़िम्मेदार था, जबकि चीन में 65% ग्रेफाइट, कांगो में 68% कोबाल्ट और इंडोनेशिया में 33% निकेल का उत्पादन किया जा रहा था।
  • ग्रेफाइट और निकेल (जहाँ भारत वैश्विक स्तर पर क्रमशः 3% एवं 5.32% की हिस्सेदारी रखता है और शीर्ष पाँच उत्पादकों में शामिल है) के अलावा अन्य तत्त्वों की देश में भारी कमी है।

EVs विनिर्माण में इनका महत्त्व:

  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के सतत् विकास परिदृश्य के अनुसार EV उद्योग में ग्रेफाइट, निकेल, तांबा, कोबाल्ट और मैंगनीज की मांग में अभूतपूर्व वृद्धि अपेक्षित है, जबकि लिथियम की सबसे अधिक मांग की जा रही है।
  • इलेक्ट्रिक यात्री वाहन में उपयोग की जाने वाली एक सामान्य लिथियम-आयन बैटरी में 8 किलोग्राम लिथियम, 35 किलोग्राम निकल, 20 किलोग्राम मैंगनीज़ और 14 किलोग्राम कोबाल्ट मौजूद होता है।
    • लिथियम-आयन बैटरियों में एनोड को ग्रेफाइट की आवश्यकता होती है और प्रकटतः इसका कोई अन्य विकल्प मौजूद नहीं हैं।
    • लिथियम-आयन की ही आवश्यकता रखने वाले कैथोड में निकेल मौजूद होता है जो उच्च ऊर्जा घनत्व प्रदान करता है, जिससे वाहन को और आगे बढ़ने में मदद मिलती है।
  • EVs के लिये कोबाल्ट भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह कैथोड को गर्म होने से रोकता है और बैटरी के जीवन-काल को बढ़ाता है।
  • दूसरी ओर मैंगनीज़ का बैटरी की कैथोड आवश्यकताओं में 61% योगदान है।
  • IEA के अनुसार, एक इलेक्ट्रिक कार के लिये आवश्यक खनिजों की मात्रा एक पारंपरिक पेट्रोल और डीज़ल वाहन की तुलना में कम-से -कम छह गुना अधिक होगी।
    • इस प्रकार, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये आवश्यक विशिष्ट वस्तुओं की मांग में वृद्धि होगी।

अंतर्निहित मुद्दे

  • EVs विनिर्माण के लिये इनपुट के रूप में चुनिंदा दुर्लभ खनिजों पर निर्भरता को देखते हुए यह बढ़ती मांग भी चिंता का कारण बन सकती है, जो फिर आर्थिक लागत में वृद्धि कर सकता है।
  • इसके साथ ही भारत के पास लिथियम, निकेल या कोबाल्ट का अधिक भंडार नहीं है, इसलिये उसे इसकी प्राप्ति अन्य खनन स्रोतों से करनी होगी। इसमें उच्च सामाजिक और पर्यावरणीय लागत शामिल होगी।
    • उदाहरण के लिये, अनुमान लगाया गया है कि एक टन लिथियम के उत्पादन के लिये दो मिलियन लीटर जल की आवश्यकता होती है। यह देश के किसानों को उनके लिये अत्यधिक आवश्यक जल से वंचित करता है।
  • वर्ष 2021 के अंत में शुरू हुई सेमीकंडक्टर की कमी की समस्या अभी भी पूरी तरह से दूर नहीं हुई है और इसने कई उद्योगों को बाधित किया है। उच्च मूल्य अस्थिरता और इन तत्वों की आपूर्ति में व्यवधान के मामले में इसी तरह की चुनौती भारत के उभरते EV उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।

संभावित उपाय:

  • खनिजों की प्राप्ति की सुनिश्चितता के लिये सहयोग: राज्य द्वारा संचालित कुछ कंपनियाँ खनिज संसाधनों (जिनकी वर्ष 2030 तक वृहत स्तर पर EVs को अपनाए जाने के लिये पर्याप्त मांग होगी) की सुनिश्चितता के लिये एक संयुक्त उद्यम का निर्माण कर सकती हैं।
    • चीन पर निर्भरता कम करने के लिये कई जापानी कंपनियाँ खनन परियोजनाओं के विकास हेतु ऑस्ट्रेलिया और कज़ाखस्तान में कई फर्मों के साथ सहयोग कर रही हैं।
    • भारतीय अन्वेषण कंपनियों को भी इस क्षेत्र में और संयुक्त अन्वेषण, शोधन एवं महत्त्वपूर्ण खनिजों के व्यापार के क्षेत्र में इसी तरह के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की तलाश करनी चाहिये।
  • नियमित निगरानी के लिये तंत्र: दुर्लभ मृदा और अन्य महत्त्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता की नियमित निगरानी के लिये भारत सरकार द्वारा खान मंत्रालय के अंतर्गत एक समर्पित संकोष्ठ की स्थापना की जा सकती है।
    • इस परिप्रेक्ष्य में यह देखा गया है कि जापान जैसे देशों ने दुर्लभ मृदा के वैकल्पिक स्रोतों को विकसित करने के लिये 1.5 बिलियन डॉलर का कोष निर्धारित किया है और वे संयुक्त उद्यम भागीदारी पर बल देते हैं।
    • इसी तरह, अमेरिका-चीन व्यापार तनाव के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 2019 में ‘महत्त्वपूर्ण खनिजों की सुरक्षित और विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु संघीय रणनीति’ का विकास किया।
  • क्वाड’ का लाभ उठाना: कुछ वर्ष पहले ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिकी खनिज एजेंसियों ने अपने महत्त्वपूर्ण खनिज भंडारों के संबंध में संयुक्त रूप से बेहतर समझ विकसित करने और इस क्रम में अन्य भागों में उनके अस्तित्व का पता लगाने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
    • भारत भविष्य की अपनी आवश्यताओं की सुरक्षा के लिये क्वाड प्लेटफॉर्म के तहत द्विपक्षीय संलग्नता की राह पर आगे बढ़ सकता है।
    • जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ सहयोग से भारत को अपने दुर्लभ मृदा तत्व (Rare Earth Elements- REE) उद्योग को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी एवं वित्तीय व्यवहार्यता अंतर को पाटने में मदद मिल सकती है।
  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग: भारत अपने EV उद्योग के विकास हेतु सहयोग सुनिश्चित करने के लिये विश्व के विकासशील दक्षिण के बीच एक अंतरसरकारी निकाय (वर्ष 1960 में गठित ‘ओपेक’ जैसा निकाय) का गठन कर सकने की संभावना का पता लगा सकता है।
    • इसमें भारत के साथ लैटिन अमेरिका से चिली, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, क्यूबा; अफ्रीका से कांगो, गैबॉन, मेडागास्कर, मोज़ाम्बिक एवं दक्षिण अफ्रीका; और इंडोनेशिया, फिलीपींस तथा रूस जैसे देश शामिल हो सकते हैं।
  • कुशल बैटरियों की आवश्यकता: यह सुनिश्चित करने के लिये भी कार्य करने की आवश्यकता है कि लिथियम-आयन बैटरी भारत की गर्म/आर्द्र परिस्थितियों में कुशलतापूर्वक कार्य कर सके और उनका जीवनकाल दीर्घ हो। सरकार को बैटरियों के शत-प्रतिशत पुनर्चक्रण को भी अनिवार्य बनाना चाहिये जिसमें बैटरी का डिज़ाइन पुनर्चक्रण-अनुकूल हो।
    • यह उपाय करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि बैटरी के जीवनकाल का विस्तार न करने और आक्रामक रूप से इसका पुनर्चक्रण न करने के परिदृश्य में भारत की ऊर्जा निर्भरता पश्चिम एशिया से चीन (जो बैटरी के लिये आवश्यक अधिकांश दुर्लभ मृदा धातुओं पर नियंत्रण रखता है) की ओर स्थानांतरित हो जाएगी ।
    • इसके अलावा, एक बड़ा कदम यह होगा कि भारत में ऐसी बैटरियों के निर्माण के लिये अनुसंधान को प्रोत्साहन दिया जाए जहाँ कोबाल्ट और निकेल को अन्य धातुओं से प्रतिस्थापित किया जा सके।

अभ्यास प्रश्न: “कच्चे तेल पर अपनी आयात निर्भरता को कम करने की प्रक्रिया में भारत अन्य खनिजों पर निर्भर रह सकता है जो उसकी इलेक्ट्रिक वाहन (EVs) संबंधी महत्वाकांक्षा को खतरे में डालेगा। यदि भारत EVs की ओर आगे बढ़ना चाहता है तो अपने खनिज संसाधनों को सुरक्षित करना अनिवार्य है जो इसके विकास के लिये सबसे उपयुक्त होगा।” चर्चा कीजिये।


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