कृषि मशीनीकरण के प्रयासों को बढ़ावा देना
यह एडिटोरियल 13/04/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Skills shortage hampering farm mechanisation” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के कृषि मशीनीकरण के प्रयासों से संबद्ध समस्याओं और इस दिशा में आवश्यक उपायों की चर्चा की गई है।
संदर्भ
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) द्वारा हाल ही में जारी श्वेत-पत्र के अनुसार भारत में कृषि मशीनरी उद्योग लघु एवं सीमांत किसानों की मांगों को पूरा करने में उल्लेखनीय चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- कृषि मशीनरी उद्योग मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों की चुनौतियों से घिरा है। भारत में कृषि मशीनीकरण 40-45% के स्तर के साथ शेष विश्व की तुलना में पिछड़ा हुआ है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका में यह 95%, ब्राजील में 75% और चीन में 57% है।
- भारत में कृषि मशीनीकरण के निम्न स्तर के साथ ही कौशल की कमी और प्रौद्योगिकी एवं मशीनरी प्रबंधन के बारे में किसानों में जागरूकता की कमी कृषि क्षेत्र की प्रगति के लिये उल्लेखनीय बाधाएँ उत्पन्न करती है।
कृषि मशीनरी उद्योग क्या है?
- कृषि मशीनरी उद्योग (Farm Machinery Industry) वह औद्योगिक क्षेत्र है जो जुताई , रोपण, कटाई आदि कृषि एवं खेती संबंधी गतिविधियों में उपयोग की जाने वाली मशीनरी, उपकरणों एवं औजारों की एक बड़ी शृंखला का उत्पादन और आपूर्ति करता है।
- इन मशीनों को खेती संबंधी कार्यों में उत्पादकता एवं दक्षता में सुधार लाने के लिये डिज़ाइन किया गया है और इसके अंतर्गत छोटे पैमाने एवं बड़े पैमाने के कृषि उपकरण, दोनों ही शामिल हैं।
- इस उद्योग द्वारा पेश किये जाने वाले उत्पादों के कुछ उदाहरणों में ट्रैक्टर, कंबाइन हार्वेस्टर, सिंचाई प्रणाली, टिलर और अन्य कई साधन शामिल हैं।
कृषि मशीनरी उद्योग के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ
- कौशल की कमी:
- कौशल की कमी एक गंभीर मुद्दा है जो इस उद्योग के लिये ‘low-equilibrium trap’ (रिचर्ड आर. नेल्सन द्वारा विकसित एक आर्थिक अवधारणा) का निर्माण करता है।
- उद्योग पिरामिड के निचले स्तर पर ग्रामीण शिल्पकार सबसे बड़े समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो मुख्य रूप से कृषि मशीनरी की आपूर्ति, मरम्मत एवं रखरखाव के माध्यम से भारतीय किसानों को सेवाएँ प्रदान करते हैं।
- पर्याप्त जानकारी का अभाव:
- प्रौद्योगिकी और मशीनरी के प्रबंधन के बारे में किसानों के बीच पर्याप्त जानकारी एवं जागरूकता की कमी है।
- इसके परिणामस्वरूप, कई बार वे अनुपयुक्त मशीनरी का चयन कर लेते हैं और उनका निवेश व्यर्थ जाता है।
- कुशल कर्मियों की कमी:
- सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSMEs) कुशल कर्मियों की कमी का सामना करते हैं। प्रायः कृषि उपकरण और मशीनरी का निर्माण अर्द्ध-कुशल कामगारों द्वारा उचित उपकरणों की कमी के साथ किया जाता है। छोटे पैमाने के निर्माण में योग्य पर्यवेक्षकों की अनुपस्थिति गुणवत्ता सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण बना देती है। इसके अलावा, मशीनरी के परीक्षण के लिये योग्य कर्मियों को पाना भी कठिन सिद्ध होता है।
- उच्च पूंजीगत लागत:
- फार्म मशीनरी महँगी होती है और किसानों के पास नए उपकरणों में निवेश करने के लिये प्रायः संसाधनों का अभाव होता है। इससे नवीनतम प्रौद्योगिकी तक पहुँच की कमी और खेती संबंधी कार्यों में दक्षता की कमी की स्थिति बन सकती है।
- तेज़ी से बदलती तकनीक:
- फार्म मशीनरी प्रौद्योगिकी तेज़ी से विकसित हो रही है और निर्माताओं को सामंजस्य बनाए रखने के लिये लगातार अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना होगा। यह छोटे निर्माताओं के लिये चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है जिनके पास तुरंत नवोन्मेष के लिये संसाधनों का अभाव भी हो सकता है।
- मौसम दशाओं पर निर्भरता:
- कृषि मशीनरी मौसम दशाओं पर अत्यधिक निर्भर है और प्रतिकूल मौसम देरी का कारण बन सकता है तथा खेती कार्यों को बाधित कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप उत्पादकता में गिरावट और लाभप्रदता में कमी की स्थिति बन सकती है।
- रखरखाव और मरम्मत:
- कृषि मशीनरी के कुशलतापूर्ण कार्यकरण के लिये नियमित रखरखाव और मरम्मत की आवश्यकता होती है। यह महँगा और समय-उपभोगी सिद्ध हो सकता है, विशेषकर छोटे किसानों के लिये जिनके पास अपने उपकरणों को ठीक बनाए रखने के लिये संसाधनों का अभाव हो सकता है।
- पर्यावरणीय चिंताएँ:
- खेती के पर्यावरणीय प्रभाव के बारे में चिंता बढ़ रही है जिसमें कृषि मशीनरी में जीवाश्म ईंधन का उपयोग भी शामिल है। कृषि मशीनरी विनिर्माता अधिक संवहनीय और पर्यावरण-अनुकूल उपकरण विकसित करने के दबाव में हैं।
आगे की राह
- युवा किसानों/मालिकों/ऑपरेटरों को प्रशिक्षण देना:
- ट्रैक्टर प्रशिक्षण केंद्र, कृषि विज्ञान केंद्र और उद्योग को युवा किसानों/मालिकों/ऑपरेटरों को कृषि मशीनरी के चयन, संचालन और सेवा के संबद्ध में प्रशिक्षण देने हेतु उत्तरदायी बनाया जाना चाहिये।
- विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये नए और बेहतर कृषि उपकरणों की उपलब्धता सहित मशीनीकरण में विकास के बारे में भी जानकारी प्रदान की जानी चाहिये।
- फ्रंट-लाइन प्रदर्शन को सबल करना:
- कृषि मशीनरी के फ्रंट-लाइन प्रदर्शन (Front-line demonstration) को सबल किया जाना चाहिये और नई पीढ़ी की कृषि मशीनरी के उपयोगकर्ताओं को प्रशिक्षण देने से कृषि शक्ति के विस्तार एवं स्वीकरण को प्रोत्साहन मिल सकता है।
- कौशल की कमी को दूर करना:
- भारतीय कृषि कौशल परिषद (Agricultural Skills Council of India) को मांग पक्ष में कौशल की कमी को दूर करने के लिये ज़िला स्तर पर कार्य करना चाहिये।
- कस्टम हायरिंग सेंटर्स (Custom Hiring Centres) के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इसके अतिरिक्त, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) संस्थान ऐसे लघु पाठ्यक्रमों की पेशकश कर सकते हैं जो मांग पक्ष में कौशल की कमी को संबोधित करें।
- मरम्मत एवं रखरखाव के क्षेत्र में कौशल अंतराल को दूर करने के लिये औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITIs) का लाभ उठाया जा सकता है और निजी एवं औद्योगिक क्षेत्रों में क्षेत्रीय एवं राज्य स्तर पर सेवा केंद्रों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- उपलब्ध तकनीकी ज्ञान और कौशल का प्रावधान करना:
- ज़िला उद्योग केंद्र (District Industries Centre) को स्थानीय औद्योगिक समूहों के साथ कार्य करना चाहिये ताकि ITIs नवीनतम उपलब्ध तकनीकी ज्ञान एवं कौशल से संपन्न प्रासंगिक पाठ्यक्रम प्रदान कर सकें।
- दोहरे व्यावसायिक कौशल कार्यक्रमों से टियर-2 और टियर-3 शहरों में स्थित औद्योगिक समूहों को व्यापक लाभ प्राप्त होगा। इसके साथ ही, MSMEs द्वारा केंद्र सरकार की प्रशिक्षु नीति का भी लाभ उठाया जाना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: भारत में कृषि मशीनीकरण के प्रयासों के सफल कार्यान्वयन में बाधाकारी प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं और उनका समाधान कैसे किया जा सकता है?
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