लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 17 Mar, 2023
  • 12 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और AUKUS साझेदारी

यह एडिटोरियल 15/02/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “India and the Anglosphere” लेख पर आधारित है। इसमें AUKUS समूह से संबद्ध मुद्दे और एशिया एवं भारत के लिये संबंधित निहितार्थों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल ही में यूएस, यूके और ऑस्ट्रेलिया ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के उद्देश्य से परमाणु-संचालित पनडुब्बियों का एक नया बेड़ा बनाने की अपनी योजना के विवरण का खुलासा किया है। AUKUS संधि के तहत ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका से कम से कम तीन परमाणु-संचालित पनडुब्बियाँ प्राप्त होनी हैं।

  • AUKUS समझौता, जिसमें अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम की मदद से ऑस्ट्रेलिया द्वारा परमाणु-संचालित पनडुब्बियाँ प्राप्त करना शामिल है, की प्रशंसा और आलोचना दोनों ही की जा रही है। इसे हिंद-प्रशांत में प्रतिरोध और स्थिरता को सशक्त करने के साधन के रूप में देखा जा रहा है। हालाँकि चीन इसे एक खतरनाक गठबंधन के रूप में देखता है जिसे अमेरिका इस क्षेत्र में क्वाड (Quadrilateral forum/Quad) के साथ आकार दे रहा है।
  • यह संधि भारत सहित एशिया क्षेत्र के लिये कई रणनीतिक परिणामों को अभिप्रेरित करेगी। हालाँकि यह भारत के लिये अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ व्यवस्थाओं की एक अनूठी शृंखला विकसित करने का एक सुअवसर भी है।

AUKUS समूह क्या है?

  • यह ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस (AUKUS) के बीच हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये एक त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी है, जिस पर वर्ष 2021 में हस्ताक्षर किये गए थे।
  • ऑस्ट्रेलिया के साथ अमेरिकी परमाणु पनडुब्बी प्रौद्योगिकी की साझेदारी इस व्यवस्था का प्रमुख आकर्षण है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर इसका फ़ोकस या इस ओर इसकी उन्मुखता इसे दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक कार्रवाइयों के विरुद्ध एक सशक्त गठबंधन बनाता है।
  • इस व्यवस्था में उक्त तीन देशों के बीच बैठकों एवं संलग्नताओं के साथ-साथ उभरती प्रौद्योगिकियों (एप्लाइड एआई, क्वांटम प्रौद्योगिकी और गहन समुद्र क्षमताओं) में सहयोग की एक नई संरचना शामिल है।

एशिया के लिये AUKUS समूह से संबंधित कौन-सी चिंताएँ हैं?

  • क्षेत्रीय सुरक्षा:
    • AUKUS साझेदारी को, विशेष रूप से चीन द्वारा, क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के लिये एक चुनौती के रूप में देखा जाता है। समझौते में संवेदनशील रक्षा प्रौद्योगिकियों एवं खुफिया सूचनाओं की साझेदारी शामिल है, जिसने क्षेत्र में सामरिक संतुलन पर इसके प्रभावको लेकर चिंता उत्पन्न की है।
  • कूटनीतिक निहितार्थ:
    • AUKUS साझेदारी को भारत, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के लिये एक कूटनीतिक आघात के रूप में भी देखा गया है, जिन्हें पारंपरिक रूप से इस क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रमुख सहयोगियों के रूप में देखा जाता रहा है।
    • इन देशों को भी है कि नई साझेदारी उन्हें किनारे पर धकेल देगी और क्षेत्र में उनके प्रभाव को कम करेगी।
  • अप्रसार (Non-Proliferation) पर प्रभाव:
    • AUKUS साझेदारी में ऑस्ट्रेलिया को परमाणु-संचालित पनडुब्बी प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण शामिल है, जिसने वैश्विक अप्रसार प्रयासों पर इसके प्रभाव के संबंध में चिंता उत्पन्न की है। कुछ विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त की है कि यह कदम एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है और अन्य देशों को अपनी परमाणु क्षमताओं को आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
  • आर्थिक परिणाम:
    • AUKUS साझेदारी ने इसके आर्थिक निहितार्थों के बारे में भी चिंता उत्पन्न की है, विशेष रूप से भारत जैसे देशों के लिये जिनके पास महत्त्वपूर्ण रक्षा उद्योग हैं। इस समझौते से प्रतिस्पर्द्धा बढ़ने की उम्मीद है और यह ऑस्ट्रेलिया को रक्षा उपकरण बेच सकने की इन देशों की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।

भारत के लिये इसके क्या रणनीतिक परिणाम होंगे?

  • ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंधों का सशक्तीकरण:
    • ऑस्ट्रेलिया की उन्नत होती वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमताओं के साथ, भारत के लिये ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने S&T सहयोग को गहरा करने का एक अवसर है, जो अंततः संवेदनशील रणनीतिक क्षेत्रों तक विस्तारित हो सकता है।
    • यह भारत की अपनी तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाएगा और क्षेत्रीय शांति एवं सुरक्षा में योगदान देगा।
  • ब्रिटेन के सतत् वैश्विक रणनीतिक महत्त्व की स्वीकार्यता:
    • भारत ब्रिटेन के रणनीतिक महत्त्व की उपेक्षा करने की प्रवृत्ति रखता है, लेकिन AUKUS सौदे से एशिया में ब्रिटेन के कद को बढ़ावा मिल सकता है।
    • भारत हिंद-प्रशांत सुरक्षा मुद्दों पर ब्रिटेन के साथ घनिष्ठ सहयोग के अवसरों की तलाश कर सकता है।
  • ‘एंग्लोस्फीयर’ के विचार को स्वीकार करना:
    • एंग्लोस्फीयर (Anglosphere) या आंग्ल प्रभाव क्षेत्र के साथ भारत के अतीत के कठिन संबंधों के बावजूद AUKUS सौदे ने अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड के बीच स्थायी भू-राजनीतिक बंधनों को फिर से जीवंत कर दिया है।
    • ‘एंग्लोस्फीयर’ को साझा राजनीतिक मान्यताओं, समान कानूनी परंपराओं और साझा भू-राजनीतिक हितों से आबंध अंग्रेज़ी-भाषी लोगों की दुनिया भी कहा जाता है।
    • भारत इस अंग्रेज़ी-भाषी दुनिया के साथ विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और रक्षा के क्षेत्रों में अपने संबंधों का विस्तार करने के अवसरों की तलाश कर सकता है।
  • व्यवस्थाओं की एक अनूठी शृंखला विकसित करना:
    • चूँकि अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने सहयोगियों और भागीदारों की रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ावा देने की इच्छा रखता है, भारत को अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ अपनी स्वयं की व्यवस्था की एक शृंखला विकसित करने का एक दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ है।
    • इसमें अन्य बातों के अलावा घनिष्ठ सैन्य सहयोग, संयुक्त अभ्यास और खुफिया जानकारी साझा करना भी शामिल हो सकता है।

भारत अपने रणनीतिक हितों की रक्षा कैसे कर सकता है?

  • सहयोग के अवसरों की तलाश करना:
    • भारत AUKUS देशों के साथ सहयोग और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के अवसरों की तलाश कर सकता है, साथ ही यह भी सुनिश्चित कर सकता है कि उसके स्वयं के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों से कोई समझौता न हो।
    • भारत समुद्री सुरक्षा, साइबर सुरक्षा और खुफिया सूचना साझेदारी जैसे क्षेत्रों में AUKUS देशों के साथ सहयोग का निर्माण कर सकता है।
  • संतुलन बनाए रखना:
    • भारत को AUKUS और रूस, फ्राँस एवं जापान जैसे अपने अन्य प्रमुख भागीदारों के साथ संलग्नता के बीच एक संतुलन बनाए रखना चाहिये।
    • भारत को किसी भी ‘ज़ीरो सम गेम’ में घसीटे जाने से बचना चाहिये और सभी प्रासंगिक देशों के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखने का प्रयास करना चाहिये।
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र के जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
  • ‘क्वाड’ का सुदृढ़ीकरण:
    • भारत को क्वाड के सुदृढ़ीकरण की दिशा में कार्य करना चाहिये जो AUKUS को एक प्रतिसंतुलन प्रदान कर सकता है और एक नियम-आधारित क्षेत्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
    • भारत को क्षेत्रीय स्थिरता और शक्ति संतुलन को बढ़ावा देने के लिये क्वाड का लाभ उठाना चाहिये।
  • छोटे देशों के हित सुनिश्चित करना:
    • भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि AUKUS के साथ किसी भी संलग्नता में क्षेत्र के छोटे देशों के हितों की अनदेखी नहीं हो। भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों के लिये एक सहकारी और समावेशी दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में नेतृत्वकारी भूमिका निभानी चाहिये।
    • इसमें क्षेत्र के छोटे देशों के लिये क्षमता निर्माण करना और वृहत क्षेत्रीय एकीकरण एवं कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने जैसी पहलें शामिल हो सकती हैं।

अभ्यास प्रश्न: AUKUS समूह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों को कैसे प्रभावित करता है और इस नई प्रगति के प्रति भारत का क्या दृष्टिकोण होना चाहिये?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मुख्य परीक्षा

प्र. नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। क्या यह क्षेत्र में मौजूदा साझेदारियों का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (वर्ष 2021)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2