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एडिटोरियल

  • 17 Feb, 2023
  • 13 min read
सामाजिक न्याय

विकलांगों के अनुकूल डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र

यह एडिटोरियल 15/02/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Shaping a more disabled-friendly digital ecosystem” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में दिव्यांग जनों के लिये मौजूद डिजिटल पारितंत्र के साथ संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल में जारी ‘डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को दिव्यांग जनों के अनुकूल बनाना’ (Making the Digital Ecosystem Disabled Friendly) शीर्षक रिपोर्ट के अनुसार, व्हाट्सएप को दिव्यांग जनों के लिये भारत के सबसे सुलभ ऐप का दर्जा दिया गया है, जिसे मैसेजिंग, ऑनलाइन भुगतान, परिवहन, ई-कॉमर्स और खाद्य वितरण जैसी श्रेणियों में सबसे लोकप्रिय ऐप पाया गया है।

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वैश्विक जनसंख्या में दिव्यांग लोगों की हिस्सेदारी लगभग 16% है। इस आँकड़े के अनुसार भारत में कम से कम 192 मिलियन दिव्यांग जन उपस्थित हैं।
  • भारत में वर्ष 2020 में 750 मिलियन इंटरनेट/स्मार्टफोन उपयोगकर्त्ता थे, जिनमें 120 मिलियन दिव्यांग जन भी शामिल थे।
  • दिव्यांग जनों के लिये एक समान अवसर के निर्माण में प्रौद्योगिकी की अपार क्षमता के बावजूद, यह उनके लिये बाधाओं को और प्रबल ही कर सकता है यदि इसे उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए रूपाकार नहीं दिया जाए।

भारत में दिव्यांग जनों के लिये मौजूद डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के साथ संबद्ध चुनौतियाँ

  • अभिगम्यता का अभाव:
    • कई वेबसाइटों, ऐप्स और ऑनलाइन संसाधनों को अभिगम्यता को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया है, जिससे दिव्यांग लोगों के लिये उन तक पहुँचना कठिन हो जाता है।
    • इसमें स्क्रीन रीडर्स, मैग्निफायर्स या वॉयस रिकग्निशन सॉफ़्टवेयर जैसी सहायक तकनीकों का उपयोग कर सकने की बाधाएँ शामिल हैं, जो दृश्य, श्रवण या चल अक्षमताओं वाले लोगों के लिये डिजिटल कंटेंट तक पहुँच को कठिन बना देती हैं।
  • सहायक प्रौद्योगिकियों की सीमित उपलब्धता:
    • भारत में कई दिव्यांग जनों के पास डिजिटल कंटेंट तक पहुँच के लिये आवश्यक सहायक प्रौद्योगिकियों की अभिगम्यता नहीं है। इन उपकरणों की लागत प्रायः निषेधकारी सिद्ध होती है और उनकी उपलब्धता एवं लाभों के बारे में जागरूकता की कमी भी पाई जाती है।
  • सीमित जागरूकता:
    • भारत में बहुत से दिव्यांग लोगों को उपलब्ध डिजिटल संसाधनों या उनकी अभिगम्यता के तरीके के बारे में जानकारी नहीं है।
    • उदाहरण के लिये, विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्म, ऐप्स और वेबसाइटों की अभिगम्यता सुविधाओं के बारे में जानकारी का अभाव मौजूद है।
  • भाषा अवरोध:
    • भारत में एक उल्लेखनीय भाषाई बाधा की स्थिति भी मौजूद है जहाँ एक विशाल जनसंख्या अलग-अलग क्षेत्रीय भाषाएँ बोलती है।
    • कई डिजिटल संसाधन केवल अंग्रेज़ी या हिंदी में उपलब्ध हैं, जिससे अन्य भाषा के लोगों के लिये उनकी अभिगम्यता कठिन हो जाती है।
  • सीमित उपयोगकर्त्ता परीक्षण:
    • दिव्यांग जनों के लिये उपयोगकर्त्ता परीक्षण (User Testing) की स्थिति प्रायः सीमित या अनुपस्थित होती है। इस परिदृश्य में दिव्यांग लोगों के लिये डिजिटल संसाधनों की पहुँच सुविधाओं और समग्र उपयोगिता का उपयुक्त मूल्यांकन संभव नहीं हो पाता है।

भारत में डिजिटल अभिगम्यता अधिकारों की स्थिति

  • विधिक प्रयास:
    • भारत ने वर्ष 2007 में दिव्यांग जनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRPD) पर हस्ताक्षर किये और इसकी पुष्टि की ।
    • UNCRPD का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये भारत ने दिव्यांग जन (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को प्रतिस्थापित करने के उद्देश्य से ‘दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (Rights of Persons with Disabilities Act- RPWDA) 2016’ अधिनियमित किया।
      • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम सार्वभौमिक डिज़ाइन (universal design) की उसी परिभाषा को अपनाता है जो UNCRPD में मौजूद है और दैनिक उपयोग की इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं एवं उपकरणों तथा उपभोक्ता वस्तुओं के लिये सार्वभौमिक डिज़ाइन सुनिश्चित करने का दायित्व उपयुक्त सरकार पर डालता है।
    • कोविड-19 अवधि के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को CoWIN वेबसाइट और आरोग्य सेतु ऐप के लिये दिव्यांगता ऑडिट कराने का निर्देश दिया था।
    • इलेक्ट्रॉनिक अभिगम्यता पर राष्ट्रीय नीति, 2013:
      • यह जागरूकता, क्षमता निर्माण, संस्थागत प्रशिक्षण और अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए भेदभाव को दूर करने का लक्ष्य रखता है।
    • दिव्यांगता-समावेशी आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिशानिर्देश:
      • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा वर्ष 2019 में जारी दिशा-निर्देश दिव्यांग जनों की सहायता के लिये जोखिम, सशस्त्र संघर्ष, मानवीय आपात स्थिति और प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में वेबसाइटों पर सुलभ जानकारी प्रदान करते हैं।
  • न्यायिक प्रयास:
    • ई-समिति (e-Committee)—जो भारतीय न्यायालयों के डिजिटलीकरण की निगरानी के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक शासी निकाय है, यह सुनिश्चित करने के लिये कोर्ट वेबसाइटों में बदलाव कर रही है कि वे PwDs के लिये सुलभ हों।
    • उदाहरण के लिये, विजुअल कैप्चा (captcha) के साथ ही ऑडियो कैप्चा शामिल करते हुए यह सुनिश्चित किया गया है कि सभी उच्च न्यायालय वेबसाइटोंन में अभिगम्य कैप्चा उपलब्ध हों।
    • ई-समिति ने यह भी सुनिश्चित किया है कि ये वेबसाइट टेक्स्ट कलर, कंट्रास्ट, टेक्स्ट साइज और मुख्यतः स्क्रीन रीडर एक्सेस के मामले में भी अभिगम्य हों।
    • फाइलिंग को सुलभ बनाने के लिये ई-कमेटी वकीलों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाती है।

आगे की राह

  • अभिगम्यता मानक (Accessibility Standards):
    • भारत यह सुनिश्चित करने के लिये अभिगम्यता मानकों को लागू कर सकता है कि डिजिटल उत्पाद और सेवाएँ दिव्यांग जनों के लिये सुलभ हों।
    • ये अभिगम्यता मानक वेब सामग्री सुगमता दिशानिर्देश (Web Content Accessibility Guidelines- WCAG) या भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) मानकों जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर आधारित होने चाहिये।
  • समावेशी डिज़ाइन:
    • समावेशी डिज़ाइन यह सुनिश्चित कर सकता है कि डिजिटल उत्पादों और सेवाओं को दिव्यांग जनों सहित सभी के लिये अभिगम्य या सुलभ बनाया गया है।
    • समावेशी डिज़ाइन में उपयोगकर्त्ता के अनुरूप (उनकी क्षमताओं, आवश्कयताओं और सीमाओं को ध्यान में रखते हुए) डिज़ाइन करना शामिल है।
  • सहायक प्रौद्योगिकी (Assistive Technology):
    • दिव्यांग जनों को डिजिटल उत्पादों और सेवाओं तक पहुँच सकने में मदद करने के लिये भारत सहायक प्रौद्योगिकी के विकास एवं उपयोग को प्रोत्साहित कर सकता है ।
    • सहायक प्रौद्योगिकी में ऐसे सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और उपकरण शामिल हैं जो दिव्यांग जनों को डिजिटल उत्पादों एवं सेवाओं से अंतःक्रिया में मदद करते हैं।
  • प्रशिक्षण और जागरूकता:
    • भारत अभिगम्यता एवं समावेशी डिज़ाइन के संबंध में डिजिटल उत्पाद एवं सेवा प्रदाताओं, डेवलपर्स और डिज़ाइनरों को प्रशिक्षण एवं जागरूकता प्रदान कर सकता है। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि अभिगम्यता और समावेशी डिज़ाइन को डिज़ाइन एवं विकास प्रक्रिया में एकीकृत किया गया है।
  • सहयोग का निर्माण:
    • दिव्यांग जनों के लिये डिजिटल उत्पादों एवं सेवाओं को अभिगम्य बनाने के उद्देश्य से अभिनव समाधान विकसित करने के लिये भारत दिव्यांगता और अभिगम्यता के क्षेत्र में विभिन्न संगठनों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों के साथ सहयोग का निर्माण (Collaborations) कर सकता है।
  • सरकारी नीतियाँ:
    • भारत सरकार ऐसी नीतियाँ बना सकती है जो कंपनियों को उनके डिजिटल उत्पादों एवं सेवाओं में अभिगम्यता मानकों और समावेशी डिज़ाइन को लागू करने के लिये प्रोत्साहित करती हों। सरकार ऐसी नीतियाँ भी बना सकती है जो डिजिटल उत्पादों एवं सेवाओं की दिव्यांग जनों के लिये अभिगम्यता को आवश्यक बनाती हो।
  • AI का उपयोग:
    • वर्तमान में प्रौद्योगिकी का उपयोग बड़ी संख्या में अभिगम्यता परीक्षणों (Accessibility Tests) को स्वचालित करने के लिये किया जाता है और डेवलपर्स को व्यापक एक्सेसिबिलिटी फीडबैक प्रदान करने के लिये उसे गहन मैन्युअल परीक्षण के साथ संयुक्त किया जाता है।
    • कंपनियाँ और डेवलपर्स अब AI का उपयोग अभिगम्यता परीक्षण को स्वचालित करने के लिये कर सकते हैं तथा दिव्यांग उपयोगकर्त्ताओं से प्राप्त प्रतिक्रिया का विश्लेषण कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिये कर सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: भारत में एक अधिक दिव्यांग-अनुकूल डिजिटल पारितंत्र के निर्माण के मार्ग की चुनौतियों की चर्चा करें और वे उपाय सुझाएँ जो दिव्यांग जनों के लिये समावेशिता एवं अभिगम्यता सुनिश्चित करने के लिये किये जा सकते हैं।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्र. भारत लाखों विकलांग लोगों का घर है।  कानून के तहत उन्हें क्या लाभ मिलते हैं?  (वर्ष 2011)

  1. सरकारी विद्यालयों में 18 वर्ष की आयु तक नि:शुल्क शिक्षा।
  2. व्यवसाय स्थापित करने के लिए भूमि का अधिमान्य आवंटन।
  3. सार्वजनिक भवनों में रैंप।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

 (A) केवल 1
 (B) केवल 2 और 3
 (C) केवल 1 और 3
 (D) 1, 2 और 3

उत्तर: (D)


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