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एडिटोरियल

  • 16 Nov, 2022
  • 13 min read
सामाजिक न्याय

जनजातियों को मुख्यधारा में लाना

यह एडिटोरियल 15/11/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “What are the hurdles to building schools for tribals?” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में जनजातियों को मुख्यधारा में लाने से संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

जनजातियाँ (Tribes) भारतीय समाज में एक महत्त्वपूर्ण तत्व का प्रतिनिधित्व करती हैं जो हमारी सभ्यता की सांस्कृतिक पच्चीकारी (Cultural Mosaic) के साथ एकीकृत है। जनजातियाँ भारतीय आबादी में 8.6% की हिस्सेदारी रखती हैं।

  • जातीय आदिवासी उप-राष्ट्रवाद (Ethnic tribal sub nationalism) जनजातीय समुदायों की प्रगति के लिये एक गंभीर चुनौती है। जनजातियों को उनके हाल पर छोड़ देना मुख्यधारा और जनजातियों के बीच विकासात्मक विभाजन को और गहरा करेगा।
  • दूसरी ओर, नए खनन और अवसंरचना परियोजनाओं के लिये जनजातीय भूमियों का तेज़ी से अधिग्रहण किया जा रहा है। इन नीतियों को प्रायः जनजातीय लोगों को पराभूत करने और उन संसाधनों के क्षरण के कारण के रूप में देखा जाता है जिन पर वे निर्भर होते हैं।
  • इसलिये यह आवश्यक है कि इस मुद्दे को एक बहुदीर्घ परिप्रेक्ष्य से देखा जाए और एक सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण भारतीय समाज में अभिभावी होने योग्य समाधान खोजे जाएँ।

जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

  • भारत का संविधान ‘जनजाति’ (Tribe) शब्द को परिभाषित करने का प्रयास नहीं करता है, हालाँकि अनुच्छेद 342 के माध्यम से संविधान में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) शब्द को शामिल किया गया।
  • संविधान की पाँचवीं अनुसूची अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य में ‘जनजाति सलाहकार परिषद’ की स्थापना का प्रावधान करती है।
  • शैक्षिक एवं सांस्कृतिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 15(4): सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों (इसमें अनुसूचित जनजाति भी शामिल हैं) की उन्नति के लिये विशेष उपबंध किया जा सकता है।
    • अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यक वर्गों (इसमें अनुसूचित जनजाति भी शामिल हैं) के हितों का संरक्षण। अल्पसंख्यक वर्गों के लिये विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।
    • अनुच्छेद 46: राज्य, लोगों के दुर्बल वर्गों के, विशेष रूप से अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से उनकी संरक्षा करेगा।
    • अनुच्छेद 350: भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिये विशेष अधिकारी की नियुक्ति।
  • राजनीतिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 330: अनुसूचित जनजातियों के लिये लोकसभा में सीटों का आरक्षण
    • अनुच्छेद 332: राज्य विधायिकाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण
    • अनुच्छेद 243: अनुसूचित जनजातियों के लिये पंचायतों में सीटों का आरक्षण।
  • प्रशासनिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 275: यह अनुसूचित जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने और उन्हें बेहतर प्रशासन प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को विशेष धन देने का प्रावधान करता है।

जनजातियों से संबंधित हाल की सरकारी पहलें

भारत में जनजाति समुदायों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ

  • शैक्षिक असमानता: भौगोलिक स्थिति, विरल आबादी और आदिवासी गाँवों की दुर्गमता जैसे कई कारक हैं जो जनजातीय क्षेत्रों में विद्यालय तक पहुँच को कठिन बनाते हैं।
    • विद्यालय की सुविधा उपलब्ध होने के बाद भी कार्यबल में बच्चों की समयपूर्व भागीदारी, घोर गरीबी, घरों में शिक्षा समर्थक संस्कृति का अभाव आदि के परिणामस्वरूप जल्द ही विद्यालय छोड़ देने (early dropout) की उच्च दर बनी हुई है।
    • इसके साथ ही, प्रवासी आबादी में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदायों के लोग शामिल हैं। बच्चे भी अपने माता-पिता के साथ जाते हैं, वे स्कूल छोड़ देते हैं और कार्य स्थलों पर कठोर श्रम से संलग्न होने के लिये विवश होते हैं।
  • महिलाओं की स्थिति में गिरावट: प्रकृति का क्षरण (विशेष रूप से जंगलों के विनाश और सिकुड़ते संसाधनों के रूप में) आदिवासी महिलाओं के स्वास्थ्य एवं पोषण के लिये खतरा उत्पन्न कर रहा है जो आहार ग्रहण के मामले में सबसे बाद में आती हैं।
    • इसके अलावा, खनन एवं उद्योगों के लिये आदिवासी क्षेत्रों के खुलने के साथ आदिवासी महिलाएँ आय अर्जन के लिये क्रूर संचालनों के अधीन गई हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनके वस्तुकरण (Commodification) की स्थिति बनी है।
  • बड़े पैमाने पर विस्थापन: बिजली परियोजनाएँ, उद्योग और बड़े बांध आदिवासी आबादी वाले क्षेत्रों में स्थापित हो रहे हैं। इन परियोजनाओं के लिये सरकार द्वारा जनजातीय भूमि के अधिग्रहण से जनजातीय आबादी का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ है और अपर्याप्त पुनर्वास ने समस्या को बढ़ा दिया है।
    • छोटानागपुर क्षेत्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के जनजाति समुदाय सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं।
    • राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभ्यारण्य और इको-पार्कों का विकास उनके पर्यावास पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है और उनकी जीविका को विस्थापित कर रहा है, जिससे उनमें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
      • वर्ष 2014 में कान्हा टाइगर रिज़र्व से मूल निवासी बैगा और गोंड समुदायों के लगभग 450 परिवारों को बाहर कर दिया गया था।
  • मूल निवासी पहचान का क्षरण: पारंपरिक जनजातीय संस्थाओं और कानूनों का आधुनिक संस्थानों से टकराव बढ़ रहा है, जिससे समुदाय के लोग अपनी मूल पहचान बनाए रखने के बारे में चिंतित हुए हैं।
    • चिंता का एक अन्य कारण जनजातीय बोलियों और भाषाओं का लुप्त होना है।
  • सामाजिक एवं मानसिक समस्याएँ: जनजातीय लोग सामाजिक और संस्थागत स्तरों पर भेदभाव के परिणामस्वरूप सामाजिक बहिष्करण का अनुभव करते हैं, जो उन्हें फिर अलगाव की ओर और आगे आत्म-बहिष्करण (self-exclusion) की ओर प्रेरित करता है।
    • आदिवासी लोगों के लिये, विकास गतिविधि उनके घर में घुसपैठ की तरह महसूस होती है। नतीजतन, उन्हें अन्य क्षेत्रों में पलायन करना पड़ता है, और यह उनके लिये मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण बनता है क्योंकि वे अन्य जीवन शैली और मूल्यों को अच्छी तरह से समायोजित करने में सक्षम नहीं हैं।
  • स्वास्थ्य और पोषण की समस्याएँ: आर्थिक पिछड़ेपन और असुरक्षित आजीविका के कारण आदिवासी आबादी मलेरिया, हैजा, डायरिया और पीलिया जैसी बीमारियों से ग्रस्त है।
    • यह कुपोषण से जुड़ी समस्याओं से भी ग्रस्त है, जैसे आयरन की कमी एवं एनीमिया, उच्च शिशु मृत्यु दर आदि।

आगे की राह

  • आदिवासियों को वन उद्यमी के रूप में देखना: वनों के वाणिज्यीकरण को संरचनागत रूप देने के लिये वन विकास निगमों (FDCs) के पुनरुद्धार की और लघु वनोपजों की खोज, निष्कर्षण और संवृद्धि में आदिवासी समुदायों को ‘वन उद्यमियों’ के रूप में संलग्न करने की आवश्यकता है।
  • शैक्षिक और डिजिटल समता: एकलव्य मॉडल स्कूल पहल को शिक्षा के डिजिटलीकरण और जनजातीय क्षेत्रों में डिजिटल अवसंरचना के विस्तार का कार्य भी सौंपा जाना चाहिये ताकि भारत में कोई भी क्षेत्र डिजिटल रूप से अलग-थलग न रहे।
  • जनजातीय महिलाओं का सशक्तीकरण: आदिवासी महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिये प्रभावी उपाय किये जाने चाहिये। इसके लिये:
    • संयुक्त वन प्रबंधन एवं पंचायती राज संस्थाओं में उन्हें नेतृत्वकारी भूमिका सौंपी जाए।
    • महिलाओं के उत्पीड़न पर रोक के लिये कानूनी एवं प्रशासनिक उपाय किये जाएँ; इसके साथ ही अधिमानतः महिला संगठनों के माध्यम से सामाजिक जागरूकता एवं पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास के लिये अभियान चलाए जाएँ।
  • जनजातियों को मुख्यधारा में लाना: देश की एकता व अखंडता को सुनिश्चित करने और भाईचारे की भावना को आगे बढ़ाने के लिये गैर-जनजाति आबादी को जनजातीय लोगों की क्षमता एवं उनकी गरिमा के संबंध में शिक्षित किया जाना चाहिये।
  • वोकल फॉर लोकल, लोकल टू ग्लोबल: सरकार वनों से औषधीय पौधों की पहचान एवं उनके संग्रहण के लिये आदिवासी समूहों के साथ सहयोग कर सकती है। इसके अलावा, जनजातियों के स्व-उपभोग के साथ-साथ स्थानीय राज्यों में बिक्री के लिये उपयुक्त पादप प्रजातियों की खेती को भी बढ़ावा दिया जा सकता है।
    • भारतीय औषध निर्यात को भी इसका लाभ प्राप्त हो सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में जनजाति समुदायों के समक्ष विद्यमान प्रमुख मुद्दों की चर्चा कीजिये। जनजातियों को मुख्यधारा में लाने और जनजातीय महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये विभिन्न उपायों के सुझाव भी दीजिये।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के तहत, व्यक्तिगत या सामुदायिक वन अधिकारों या दोनों की प्रकृति और सीमा निर्धारित करने के लिए प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार किसे होगा? (वर्ष 2013)

(A) राज्य वन विभाग
(B) ज़िला कलेक्टर / उपायुक्त
(C) तहसीलदार/प्रखंड विकास पदाधिकारी/मण्डल राजस्व अधिकारी
(D) ग्राम सभा

उत्तर: (D)


मुख्य परीक्षा

प्रश्न. भारत में जनजातीय समुदायों में विविधताओं को देखते हुए किन विशिष्ट संदर्भों में उन्हें एक ही श्रेणी के रूप में माना जाना चाहिये? (वर्ष 2022)


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