अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दक्षिण-प्रशांत में नई भू-राजनीति
यह एडिटोरियल 13/06/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “South Pacific: Challenging times ahead” लेख पर आधारित है। इसमें दक्षिण प्रशांत के प्रमुख द्वीपों में चीन की उभरती भूमिका, इस पर अमेरिका की प्रतिक्रिया और इसमें निहित भारत के लिये सबक के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
हाल ही में चीन और सोलोमन द्वीप समूह ने एक सुरक्षा ढाँचा समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं जो इस क्षेत्र में चीन की भूमिका का विस्तार करेगा। सोलोमन द्वीप के सैन्य और वाणिज्यिक बंदरगाहों, हवाई अड्डों आदि तक पहुँच के साथ यह चीन के लिये स्थायी सैन्य आधार पाने जैसी स्थिति है।
इससे एक नए ‘ग्रेट गेम’ यानी अमेरिका और चीन के बीच वृहत शक्ति प्रतिद्वंद्विता का उभार तय है। इस परिदृश्य में भारत के लिये उपयुक्त होगा कि वह सभी विकल्पों पर विचार करे और इस बहुध्रुवीय विश्व में सतर्कता से कदम आगे बढ़ाए।
दक्षिण-प्रशांत द्वीप समूह क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
- यह रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण भूभाग है जो प्रशांत महासागर और ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूज़ीलैंड के बीच स्थित है तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भी एक भाग का निर्माण करता है।
- इन द्वीपों से होकर कई शिपिंग लेन गुज़रती हैं जिनसे बड़ी मात्रा में माल की आवाजाही होती है।
- प्रशांत द्वीप देशों में संतोषजनक मात्रा में प्राकृतिक संसाधन भी उपलब्ध हैं।
- वे सांस्कृतिक विविधता में समृद्ध हैं और वैश्विक बाज़ारों के साथ अपने व्यापारिक एवं डिजिटल संबंधों को तेज़ी से आगे बढ़ा रहे हैं।
इन द्वीपों से संबद्ध प्रमुख मुद्दे
- वे जलवायु परिवर्तन और आपदाओं के प्रभावों के प्रति विश्व में सबसे अधिक संवेदनशील हैं।
- वे आकार में छोटे हैं, उनके पास सीमित प्राकृतिक संसाधन हैं और उनकी अर्थव्यवस्था संकीर्ण आधारित है। वे विश्व के प्रमुख बाज़ारों से भौतिक रूप से दूर और असंबद्ध हैं।
- आबादी के छोटे-छोटे खंड विभिन्न द्वीपों में फैले हैं और वे बाह्य आघातों के प्रति भेद्य या संवेदनशील हैं।
दक्षिण-प्रशांत में नया ‘ग्रेट गेम’ क्या है?
- क्षेत्र में चीन की शक्ति का विस्तार:
- चीन इस क्षेत्र में QUAD (भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान) के बढ़ते प्रभावों को लेकर चिंतित है इसलिये उसने भी इन द्वीप राष्ट्रों को लुभाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं।
- प्रशांत क्षेत्र में महान शक्ति प्रतिद्वंद्विता के कारण कुछ प्रशांत द्वीप राष्ट्र ‘हेजिंग’ व्यवहार से संलग्न हो रहे हैं।
- चीन न केवल प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, बल्कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के प्रभाव को कम करने की भी कोशिश कर रहा है।
- चीन एक लुभावनवादी आक्रामकता से संलग्न रहा है और कुछ समय से निरंतर राजनीतिक, आर्थिक और अन्य प्रयासों के माध्यम से प्रशांत द्वीप राष्ट्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- बीजिंग दक्षिण प्रशांत को अपने प्रभाव क्षेत्र के रूप में देखता है और दस देशों के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर जैसे उपायों के साथ क्षेत्र में अपनी उपस्थिति के उल्लेखनीय विस्तार के माध्यम से एक दीर्घकालिक खेल खेल रहा है।
- सोलोमन द्वीप द्वारा ताइवान से संबंध तोड़ने और ‘एक चीन’ की नीति के अनुपालन का निर्णय चीन के बढ़ते प्रभाव की पुष्टि करता है।
- अमेरिका की आशंकाएँ और उसके प्रतिकारी कदम:
- जो बाइडेन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिन्होंने ‘पैसिफिक आइलैंड फोरम’ (PIF) के नेताओं की वर्चुअल बैठक में भाग लिया।
- वर्ष के आरंभ में अमेरिका ने सोलोमन द्वीप में पुनः अमेरिकी दूतावास खोलने की मंशा प्रकट की थी जिसे वर्ष 1993 में बंद कर दिया गया था।
- इसी वर्ष अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने प्रशांत द्वीप राष्ट्रों का दौरा भी किया है। उल्लेखनीय है कि वे पिछले 36 वर्षों में फिजी की यात्रा करने वाले पहले अमेरिकी विदेश मंत्री हैं।
- इंडो-पैसिफिक कोऑर्डिनेटर कर्ट कैंपबेल के नेतृत्व में व्हाइट हाउस के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी इन द्वीपों का दौरा किया है।
- प्रशांत द्वीप के राष्ट्रों के दृष्टिकोण:
- कुछ देशों ने चिंता जताई थी कि यह क्षेत्र भविष्य में महाशक्तियों के टकराव का केंद्रबिंदु बन सकता है।
- कुछ अन्य देशों का तर्क है कि यह उनका संप्रभु अधिकार है कि वे अपनी सुरक्षा भागीदारियों को विविधिकृत करें और अपने राष्ट्रीय हित में ऑस्ट्रेलिया पर अपनी निर्भरता कम करें।
भारत के लिये निहितार्थ
- परिदृश्य को मालदीव के उदाहरण से जोड़कर देखा जा सकता है, जहाँ चीन ने अपनी ऋण जाल नीति के तहत वृहत निवेश किया है और मालदीव में भारत के हितों के लिए खतरा उत्पन्न करता है।
- भारत को इन छोटे और कमज़ोर देशों को सतत् आर्थिक सहायता प्रदान करने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन हेतु अभिनव समाधान उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
- भारत को भी अपने खेल का स्तर बढ़ाना होगा। इस क्रम में ‘फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स को-ऑपरेशन’ (FIPIC) की स्थापना एक सही दिशा में बढ़ाया गया कदम था। इसके साथ ही, इन द्वीप अर्थव्यवस्थाओं के बीच सहयोग को और बढ़ावा देने की आवश्यकता है ताकि अब तक अप्रयुक्त क्षमता का दोहन किया जा सके।
- भारत का ध्यान अब तक मुख्यतः हिंद महासागर पर ही रहा है जहाँ वह एक प्रमुख भूमिका निभाने और अपने रणनीतिक एवं वाणिज्यिक हितों की रक्षा करने की मंशा रखता है। FIPIC पहल प्रशांत क्षेत्र में भारत की संलग्नता के विस्तार हेतु एक गंभीर प्रयास का प्रतीक है।
- हालाँकि ये द्वीप राष्ट्र स्थल क्षेत्र के मामले में अपेक्षाकृत छोटे हैं और भारत से दूर भी हैं, इनमें से कई में बड़े विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZs) मौजूद हैं और ये लाभदायी सहयोग के लिये आशाजनक संभावनाएँ प्रदान करते हैं।
आगे की राह
- चीन की बढ़ती आक्रामकता और अमेरिका के प्रतिसंतुलन के साथ विश्व की महाशक्तियों के बीच नई प्रतिस्पर्द्धा का उदय हुआ है।
- यह दक्षिण-प्रशांत क्षेत्र में आने वाले चुनौतीपूर्ण समय की अभिव्यक्ति है। भारत के लिये आवश्यक और उपयुक्त होगा कि वह इस परिदृश्य में सावधानी से कदम आगे बढ़ाए तथा महान शक्ति प्रतिद्वंद्विता में संलग्न हुए बिना अपने सर्वोत्तम संभव राष्ट्रीय हित की दिशा में कार्य करे।
अभ्यास प्रश्न: दक्षिण-प्रशांत द्वीपों में अमेरिका और चीन के बीच किस नए शीत युद्ध की शुरूआत हुई है और यह भारत की समुद्री सुरक्षा को कैसे प्रभावित कर सकता है? चर्चा कीजिये।