भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में गिग कार्यबल का सशक्तीकरण
यह संपादकीय 15/10/2024 को द हिंदू में प्रकाशित “Ensuring a proper social safety net for the gig worker” पर आधारित है। इस लेख में भारत में गिग वर्कर्स के समक्ष आने वाली सामाजिक सुरक्षा चुनौतियों की चर्चा की गई है जिसमें गिग वर्कर्स के प्रदर्शन एवं सुरक्षा संजाल में एकीकरण को बेहतर बनाने के लिये श्रम कानून को युक्तिसंगत बनाने का भी सुझाव दिया गया है।
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हाल के वर्षों में भारत में गिग इकॉनमी में वृद्धि हुई है, जिससे रोज़गार का परिदृश्य बदल गया है और लाखों लोगों को नए अवसर मिले हैं। हालाँकि इस तीव्र वृद्धि से विशेष रूप से गिग श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा के संबंध में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।
एक सुदृढ़ सुरक्षा संजाल की आवश्यकता को देखते हुए, केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्रालय द्वारा गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा मंज़ूरी में शामिल करने के लिये एक राष्ट्रीय कानून का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा, सरकार गिग श्रमिकों की परिभाषा को संशोधित कर रही है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अधिक समावेशी हों और समकालीन रोज़गार वास्तविकताओं को जानें।
गिग वर्कर्स किसे माना जाता है?
- गिग वर्कर्स वे श्रमिक होते हैं जो गिग इकॉनमी में परंपरागत तौर पर पूर्णकालिक भूमिकाओं के बजाय अस्थायी या अपनी सुविधानुसार नौकरियाँ (Flexible Jobs) करते हैं।
- NITI आयोग की रिपोर्ट- 2022 में गिग वर्कर्स को पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी व्यवस्था से परे वर्कर्स/कर्मचारी के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिनके दो अलग-अलग उपसमूह हैं— प्लेटफॉर्म वर्कर्स और गैर-प्लेटफॉर्म वर्कर्स।
- प्लेटफॉर्म कर्मचारी अमेज़न या उबर जैसे ऑनलाइन एल्गोरिदमिक मैचिंग प्लेटफॉर्म का उपयोग कर ग्राहकों/सेवार्थियों से जुड़ते हैं, जबकि गैर-प्लेटफॉर्म वर्कर्स में वे लोग शामिल हैं जो निर्माण, दैनिक रोज़गार/नौकरी और अन्य अस्थायी व्यवसायों जैसे उद्योगों में काम करते हैं, जिनमें तकनीक की आवश्यकता नहीं होती है।
- गिग इकॉनमी की पाँचवीं सबसे बड़ी आबादी भारत में निवास करती है और वर्ष 2030 तक इसके तीसरे स्थान पर पहुँचने की संभावना है।
भारत में गिग श्रमिकों के लिये अवसर किस प्रकार विकसित हो रहे हैं?
- बाज़ार वृद्धि और रोज़गार संभावना:
- भारत में गिग इकॉनमी का मूल्य लगभग 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर है और यह वर्ष 2027 तक सालाना 17% की दर से बढ़ने की उम्मीद है।
- NITI आयोग की “भारत की तेज़ी से बढ़ती गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था” शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार, भारत में गिग कार्यबल का वर्ष 2029-30 तक 23.5 मिलियन (2.35 करोड़) कर्मचारियों तक बढ़ने का अनुमान है।
- अनुमान है कि वर्ष 2029-30 तक गिग वर्कर्स भारत में गैर-कृषि कार्यबल का 6.7% या कुल आजीविका का 4.1% होंगे।
- विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न अवसर:
- उबर, ओला, ज़ोमैटो और स्विगी जैसी कंपनियाँ लगातार अपनी सेवाओं का विस्तार कर रही हैं, जिससे अधिकाधिक नौकरियों का सृजन हो रहा है।
- वित्त वर्ष 2023 में, ज़ोमैटो ने देश के 800 से अधिक शहरों में 58 मिलियन ग्राहकों/सेवार्थियों के लिये 263.1 बिलियन रुपए के कुल ऑर्डर मूल्य के साथ 647 मिलियन ऑर्डर संसाधित कर अधिक मज़बूती दर्ज की है।
- Upwork, Freelancer और Fiver जैसे प्लेटफॉर्म प्रोफेशनल्स को वैश्विक स्तर पर अपनी सेवाएँ पेशकश करने की अनुमति दे रहे हैं।
- वर्ष 2021 से 2025 तक भारतीय फ्रीलांस कार्यबल के लगभग 17% की CAGR के साथ वृद्धि का अनुमान है।
- उबर, ओला, ज़ोमैटो और स्विगी जैसी कंपनियाँ लगातार अपनी सेवाओं का विस्तार कर रही हैं, जिससे अधिकाधिक नौकरियों का सृजन हो रहा है।
- लचीली कार्य व्यवस्था:
- गिग इकॉनमी लचीलापन प्रदान करती है, जिसकी परंपरागत रोज़गार में प्रायः कमी होती है। इसमें कर्मचारी अपने वर्क आर (काम के घंटे) का चयन कर सकते हैं, प्रोजेक्ट चुन सकते हैं और विभिन्न स्थानों से काम कर सकते हैं।
- युवा पीढ़ी को यह लचीलापन विशेष रूप से आकर्षक लगता है, यही कारण है कि गिग रोज़गार मिलेनियल्स और Gen Z के बीच अधिक लोकप्रिय हो रहा है, जो स्वायत्तता तथा वर्क लाइफ बैलेंस (कार्य-जीवन संतुलन) को महत्त्व देते हैं।
- तकनीकी उन्नति और स्टार्ट-अप संस्कृति का उदय:
- डिजिटल प्लेटफॉर्म और मोबाइल एप्लीकेशन के उदय ने गिग प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया है, जिससे कर्मचारियों के लिये नौकरी ढूँढना और कंपनियों के लिये उन्हें काम पर रखना आसान हो गया है।
- भारत का स्टार्ट-अप इकोसिस्टम तेज़ी से विकसित हो रहा है, जिसमें कई स्टार्ट-अप पूर्णकालिक कर्मचारियों को काम पर रखने के साथ आने वाली उच्च निश्चित लागतों को कम करने के लिये गैर-मुख्य कार्यों को अनुबंध के आधार पर फ्रीलांसरों को आउटसोर्स कर रहे हैं।
भारत में गिग श्रमिकों के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- गीग वर्क में अस्पष्ट रोज़गार संबंध:
- गिग वर्कर्स मानक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध के अंतर्गत नहीं आते हैं क्योंकि उन्हें अनौपचारिक कर्मचारियों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- गिग इकॉनमी में रोज़गार संबंधों का छद्मावरण है अर्थात् इसे छिपाया जाता है, जिसमें गिग वर्कर्स को स्वतंत्र कॉन्ट्रैक्टर्स के रूप में लेबल किया जाता है।
- इस वर्गीकरण के कारण, गिग वर्कर संस्थागत सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित रह जाते हैं जो नियमित कर्मचारियों को उपलब्ध होते हैं।
- वर्ष 2023 में, स्विगी डिलीवरी कर्मचारियों ने भारत भर के विभिन्न शहरों में महत्त्वपूर्ण हड़तालें कीं, ताकि अधिक लाभ, उचित वेतन और काम करने की स्थिति के लिये उनके अनुरोधों पर ध्यान आकर्षित किया जा सके।
- संस्थागत सामाजिक सुरक्षा बनाम सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ:
- संस्थागत सामाजिक सुरक्षा और अनौपचारिक सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के तहत प्रदान की जाने वाली पात्रताओं के बीच बहुत बड़ा अंतर हैं।
- गिग वर्कर्स कुछ सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के हकदार हैं, लेकिन उन्हें सवेतन अवकाश और मातृत्व लाभ जैसी पूर्ण संस्थागत सुरक्षा नहीं मिलती।
- न्यूनतम वेतन और व्यावसायिक सुरक्षा का अभाव:
- गिग वर्कर्स को न्यूनतम वेतन कानूनों या व्यावसायिक सुरक्षा विनियमों के तहत सुरक्षा नहीं दी जाती है।
- डिलीवरी और राइड-शेयरिंग जैसे शारीरिक रूप से थका देने वाले काम गिग रोज़गार में आम हैं, जो कर्मचारियों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को जोखिम में डालते हैं।
- उन्हें औद्योगिक संबंध संहिता 2020 और इसके विवाद समाधान तंत्र से बाहर रखा गया है।
- गिग वर्कर्स को न्यूनतम वेतन कानूनों या व्यावसायिक सुरक्षा विनियमों के तहत सुरक्षा नहीं दी जाती है।
- अनिश्चित रोज़गार और आय असुरक्षा:
- गिग वर्कर्स को आसानी से वर्क प्लेटफॉर्म से हटाया जा सकता है, जिससे उनकी आय और आजीविका का नुकसान हो सकता है।
- इसके अलावा, उनकी आय प्रायः अप्रत्याशित होती है और मांग के आधार पर इसमें उतार-चढ़ाव होता रहता है, जिससे वित्तीय योजना बनाना मुश्किल हो जाता है।
- फेयरवर्क इंडिया रेटिंग्स रिपोर्ट- 2024 में भारत में प्लेटफॉर्म कर्मचारियों की कार्य स्थितियों का मूल्यांकन किया गया है, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि डिजिटल श्रम प्लेटफॉर्म एग्रीगेटर्स स्थानीय जीवन-यापन वेतन सुनिश्चित करने और कर्मचारियों के सामूहिक अधिकारों की मान्यता देने के लिये प्रतिबद्ध नहीं होते हैं।
- शोषण और अनुचित व्यवहार:
- कानूनी संरक्षण का अभाव तथा कर्मचारियों और प्लेटफॉर्मों के बीच शक्ति असंतुलन से शोषण के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
- श्रमिकों को अनुचित मांगों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि उनसे यह "शपथ" ली जाए कि जब तक वे लक्ष्य पूरा नहीं कर लेते, वे पानी नहीं पीएंगे या रेस्टरूम्स का प्रयोग नहीं करेंगे।
- सामूहिक सौदाकारी शक्ति का अभाव:
- गिग वर्कर्स आमतौर पर अलग-थलग होते हैं और उनमें बेहतर कार्य स्थितियों तथा पारिश्रमिक के लिये यूनियन बनाने या सामूहिक रूप से सौदाकारी क्षमता का अभाव होता है।
- इस शक्ति असंतुलन के कारण उनके लिये अपने अधिकारों की मांग करने या जिस प्लेटफॉर्म के लिये वे काम करते हैं, उसके साथ बेहतर शर्तों पर समझौता करना मुश्किल हो जाता है।
भारत में गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिये सरकार की क्या पहल हैं?
- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020: यह अधिनियम गिग वर्कर्स को एक अलग श्रेणी के रूप में मान्यता देता है और उन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने की परिकल्पना करता है।
- हालाँकि विशिष्ट नियमों और कार्यान्वयन विवरण को अभी भी अलग-अलग राज्यों द्वारा अंतिम रूप दिया जाना बाकी है।
- भारत की गिग और प्लेटफॉर्म इकॉनमी पर NITI आयोग रिपोर्ट (वर्ष 2022): यह रिपोर्ट गिग वर्कर्स के लिये प्लेटफॉर्म आधारित कौशल विकास पहल और सामाजिक सुरक्षा उपायों को बढ़ावा देने की सिफारिश करती है। यह डेटा संग्रह और गिग कार्यबल की बेहतर गणना की आवश्यकता पर भी बल देती है।
- ई-श्रम पोर्टल: गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स सहित असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिये एक राष्ट्रीय डेटाबेस।
- प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन (PMSYM): गिग वर्कर्स सहित असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिये पेंशन योजना।
- प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY): असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिये जीवन बीमा योजना।
भारत गिग वर्कर्स को किस प्रकार सशक्त बना सकता है?
- एग्रीगेटर्स को नियोक्ता के रूप में परिभाषित करना:
- गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिये श्रम कानून के तहत एग्रीगेटर्स को नियोक्ता के रूप में स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिये और रोज़गार संबंध को मान्यता देनी चाहिये।
- एग्रीगेटर कंपनियों को अपने संप्राप्ति का 1%-2% सामाजिक सुरक्षा निधि में योगदान करना पड़ सकता है।
- वर्ष 2021 में Uber पर यूके सुप्रीम कोर्ट के फैसले, जिसमें Uber ड्राइवरों को कर्मचारियों के रूप में मान्यता दी गई थी, एक महत्त्वपूर्ण मिसाल कायम करता है।
- गिग वर्कर्स का पंजीकरण:
- श्रम मंत्रालय के ई-श्रम पोर्टल पर गिग वर्कर्स को पंजीकृत करने की ज़िम्मेदारी एग्रीगेटर्स की होनी चाहिये।
- ई-श्रम पर पंजीकृत कर्मचारी अन्य लाभों के अलावा जीवन और दुर्घटना बीमा के लिये पात्र हैं।
- पंजीकृत गिग वर्कर्स को सेवा समाप्ति से पूर्व कम-से-कम 14 दिन का नोटिस दिया जाना चाहिये तथा साथ में वैध कारण भी बताना होगा।
- श्रम मंत्रालय के ई-श्रम पोर्टल पर गिग वर्कर्स को पंजीकृत करने की ज़िम्मेदारी एग्रीगेटर्स की होनी चाहिये।
- त्रिपक्षीय शासन संरचना की स्थापना:
- सरकार, गिग प्लेटफॉर्म और श्रमिक प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए एक त्रिपक्षीय शासन संरचना स्थापित की जा सकती है।
- इससे प्रभावी संवाद, सामूहिक तौर पर सौदाकारी तथा उचित कार्य स्थितियों, शिकायत निवारण तंत्र और श्रमिक कल्याण उपायों के लिये उद्योग-व्यापी मानकों एवं दिशा-निर्देशों का निर्माण संभव हो सकेगा।
- गिग वर्कर्स के लिये सामाजिक सुरक्षा निधि का प्रबंधन करने हेतु एक कल्याण बोर्ड का गठन किया जाना चाहिये।
- उचित वेतन और एल्गोरिदम पारदर्शिता:
- प्लेटफॉर्म को उचित वेतन संरचना और पारदर्शी एल्गोरिदम सुनिश्चित करने के लिये जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये जो वेतन दरों एवं कार्य आवंटन को निर्धारित करते हैं।
- श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये पारदर्शिता सुनिश्चित करने और विवादों को सुलझाने के लिये एक स्वचालित प्रणाली लागू की जानी चाहिये।
- प्लेटफॉर्म को उचित वेतन संरचना और पारदर्शी एल्गोरिदम सुनिश्चित करने के लिये जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये जो वेतन दरों एवं कार्य आवंटन को निर्धारित करते हैं।
- गिग वर्कर डेटा पोर्टेबिलिटी:
- डेटा पोर्टेबिलिटी मानकों को लागू किया जाना चाहिये जो गिग वर्कर्स को अपने कार्य इतिहास, रेटिंग और कौशल प्रमाण-पत्रों को विभिन्न प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरित करने की अनुमति देते हैं। इससे एक ही प्लेटफॉर्म पर निर्भरता कम हो जाती है और वर्कर की गतिशीलता में सुधार होता है।
- ट्रांसफर के दौरान वर्कर डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये डेटा सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी चिंताओं तथा इलेक्ट्रिकल उपकरणों का समाधान करना आवश्यक है।
- विकास कौशल एवं कौशल परामर्श मंच:
- भारत को वर्तमान बाज़ार परिदृश्यों के अनुसार गिग वर्कर्स को कौशल विकास और अपस्किलिंग के अवसर प्रदान करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि वे उच्च-भुगतान वाली भूमिकाओं में कार्य कर सकें या उद्यमशील उपक्रमों को आगे बढ़ा सकें।
- इसमें व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों और सरकार समर्थित कार्यक्रमों के साथ सहयोग शामिल हो सकता है।
- भारत को वर्तमान बाज़ार परिदृश्यों के अनुसार गिग वर्कर्स को कौशल विकास और अपस्किलिंग के अवसर प्रदान करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि वे उच्च-भुगतान वाली भूमिकाओं में कार्य कर सकें या उद्यमशील उपक्रमों को आगे बढ़ा सकें।
निष्कर्ष:
भविष्य में गिग वर्कर्स के लिये समावेशी और सुरक्षित माहौल बनाने के लिये एक संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक है जो नवाचार एवं अनुकूलता को बढ़ावा देता है, साथ ही बुनियादी सुरक्षा तथा उचित कार्य स्थितियों की रक्षा करता है। नीति-निर्माताओं, व्यवसायों और स्वयं श्रमिकों के बीच सहयोग एक निष्पक्ष एवं न्यायसंगत प्रणाली के निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण होगा। इस दृष्टिकोण को सुरक्षा और लचीलेपन के बीच एक संतुलन बनाना होगा ताकि भारत में विकसित होती अर्थव्यवस्था में गिग वर्कर्स अपने अधिकारों की उचित सुरक्षा के साथ समृद्ध हो सकें।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. विकसित होती गिग इकॉनमी के अनुसार, भारत द्वारा गिग वर्कर्स के अधिकारों की रक्षा और उनके लिये उचित वेतन सुनिश्चित करने के लिये क्या कदम उठाया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में नियोजित अनियत मज़दूरों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये-(2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:Q. भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकॉनमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (2021) |