एडिटोरियल (15 Apr, 2025)



लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता

यह एडिटोरियल 15/04/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “Road map for efficiency: India must rethink its transport strategy” पर आधारित है। इस लेख में भारत में उच्च रसद/लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने और माल ढुलाई को सड़कों से रेल जैसे अधिक कुशल परिवहन साधनों पर स्थानांतरित करने के लिये एकीकृत परिवहन योजना की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, राष्ट्रीय रसद नीति (NLP), PM गति शक्ति, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, विश्व बैंक का लॉजिस्टिक्स परफॉरमेंस इंडेक्स, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन   

मेन्स के लिये:

भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के प्रमुख विकास चालक, भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे।

भारत परिवहन के विभिन्न साधनों के बीच के अंतराल को कम करने के लिये एक एकीकृत परिवहन नियोजन तंत्र की दिशा में अग्रसर हो रहा है। वर्तमान में, सड़क परिवहन माल ढुलाई में प्रमुख भूमिका (70%) निभाता है, जबकि क्रॉस-सब्सिडी के उच्च टैरिफ के कारण रेलवे का योगदान कम (30% से नीचे) है। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर जैसी मल्टीमॉडल परिवहन पहल ने दक्षता बढ़ाने में आशाजनक परिणाम दिखाया है। सफल कार्यान्वयन के लिये अंतर-मंत्रालयी सहयोग और राज्यों के साथ प्रभावी समन्वय की आवश्यकता है ताकि आर्थिक विकास की संभावनाएँ प्रबल हो सकें।

भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र के प्रमुख विकास चालक क्या हैं?

  • सरकार के नेतृत्व वाली नीति और नियामक सुधार: लॉजिस्टिक्स क्षेत्र का विस्तार राष्ट्रीय रसद नीति (NLP) और PM गति शक्ति जैसे ऐतिहासिक नीतिगत हस्तक्षेपों से काफी प्रेरित है।
    • इनका उद्देश्य बुनियादी अवसंरचना की योजना में विखंडन को दूर करना तथा विभिन्न परिवहन साधनों को एकीकृत करके रसद लागत को कम करना है। 
    • GST ने अंतर-राज्यीय आवागमन को सुव्यवस्थित किया है, परिवहन अड़चनों को दूर किया है और भारत को एकल राष्ट्रीय बाज़ार बनाया है। 
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, वित्त वर्ष 2014 और वित्त वर्ष 2022 के दौरान लॉजिस्टिक्स लागत में सकल घरेलू उत्पाद का 0.8-0.9% की गिरावट आई है।
      • ULIP (यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म) पर 614 से अधिक संस्थाएँ पंजीकृत हैं।
  • तीव्र अवसंरचना विस्तार और मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी: लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में मूल्य का सृजन भौतिक अवसंरचना में महत्त्वपूर्ण निवेश के माध्यम से किया जा रहा है, जैसे कि मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क, समर्पित माल ढुलाई गलियारे (DFC) और बंदरगाह संपर्क में सुधार।
  • डिजिटल परिवर्तन और तकनीक अंगीकरण: डिजिटलीकरण विज़िबिलिटी बढ़ाकर, विलंब में कटौती करके और आपूर्ति शृंखलाओं को स्वचालित करके लॉजिस्टिक्स विकास को गति दे रहा है। 
    • RFID, GPS ट्रैकिंग, ब्लॉकचेन, डिजिटल ट्विन्स और आइसगेट एवं ई-लॉग्स जैसे सरकारी पोर्टल पारंपरिक प्रणालियों को बदल रहे हैं। 
    • ये नवाचार लेन-देन लागत को कम करते हैं, कार्गो की पूर्वानुमानशीलता में सुधार करते हैं तथा वास्तविक काल में रसद प्रबंधन को समर्थन प्रदान करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स परफॉरमेंस इंडेक्स (वर्ष 2023) में भारत 6 रैंक से प्रगति कर 38वें स्थान पर पहुँच गया।
  • मेक इन इंडिया और PLI योजनाओं के माध्यम से विनिर्माण-आधारित मांग: वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की भारत की आकांक्षा आधुनिक, दक्ष लॉजिस्टिक्स नेटवर्क की नई मांग उत्पन्न कर रही है। 
    • उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ विदेशी और घरेलू निवेश आकर्षित कर रही हैं, जिसके लिये निर्बाध एंड-टू-एंड आपूर्ति शृंखला सेवाओं की आवश्यकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्र विशेष रूप से लॉजिस्टिक्स-गहन हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारत के विनिर्माण ने वित्त वर्ष 2022 में सकल घरेलू उत्पाद में 15.3% का योगदान दिया और चाइना प्लस वन जैसे वैश्विक बदलावों के साथ इसके तेज़ी से विस्तार होने का अनुमान है।
      • हालिया आँकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2030 तक भारत का सकल घरेलू उत्पाद 6 ट्रिलियन डॉलर और वित्त वर्ष 2048 तक 26 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा– इसमें लॉजिस्टिक्स क्षेत्र प्रमुख भूमिका निभाएगा।
  • तेज़ी से बढ़ता ई-कॉमर्स और लास्ट-माइल डिलीवरी इको-सिस्टम: ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों की तेज़ी से बढ़ती संख्या ने लॉजिस्टिक्स की मांग को नए सिरे से परिभाषित किया है, विशेष रूप से टियर II और III शहरों में।
    • तेज़ी से डिलीवरी, रिटर्न लॉजिस्टिक्स और वेयरहाउसिंग अब ग्राहक संतुष्टि के अभिन्न अंग हैं, जिससे हाइपर-लोकल लॉजिस्टिक्स, माइक्रो-वेयरहाउसिंग और तकनीक-सक्षम ट्रैकिंग में निवेश को बढ़ावा मिल रहा है। 
      • इससे रिवर्स लॉजिस्टिक्स और वास्तविक काल आपूर्ति शृंखला जवाबदेही की मांग भी बढ़ रही है।
    • उदाहरण के लिये, भारतीय ई-कॉमर्स बाज़ार वर्ष 2026 तक 200 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। लॉजिस्टिक्स सेक्टर के वित्त वर्ष 2027 तक बढ़कर 591 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2022 में 435 बिलियन डॉलर (EY) से अधिक है।
  • कौशल, औपचारिकीकरण और रोज़गार के अवसर: अनौपचारिक से औपचारिक लॉजिस्टिक्स की ओर एक संरचित परिवर्तन ने कौशल, रोज़गार सृजन और बेहतर कार्यबल उत्पादकता को उत्प्रेरित किया है। 
    • सरकार द्वारा समर्थित कर्मचारी-लिंक्ड प्रोत्साहन (ELI) योजनाएँ और लॉजिस्टिक्स एवं वेयरहाउसिंग नौकरियों के लिये प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करने से इस परंपरागत असंगठित क्षेत्र में बदलाव आ रहा है। यह भारत के जनांकिक लाभांश में भी योगदान देता है।
    • इस क्षेत्र में वर्तमान में 22 मिलियन लोग कार्यरत हैं तथा वर्ष 2027 तक 10 मिलियन से अधिक नौकरियाँ सृजित होने की उम्मीद है।
      • संगठित भागीदार, जो वित्त वर्ष 2022 में लॉजिस्टिक्स बाज़ार में 5.5-6% हिस्सेदारी रखते हैं, वित्त वर्ष 2027 तक 32% CAGR की दर से बढ़ने का अनुमान है।
  • संधारणीयता और ESG-आधारित आपूर्ति शृंखला परिवर्तन: बढ़ती पर्यावरणीय चेतना और वैश्विक ESG मानदंड भारतीय लॉजिस्टिक्स को नया आकार दे रहे हैं, जिससे इलेक्ट्रिक बेड़े, तटीय शिपिंग, ऊर्जा-कुशल बंदरगाहों और कार्बन-ट्रैक आपूर्ति शृंखलाओं की ओर परिवर्तन हो रहा है।
    • भारत संधारणीय शिपिंग के लिये कार्बन इंटेंसिटी रेटिंग और EEXI जैसे वैश्विक मानकों के अनुरूप काम कर रहा है। इससे ESG-संवेदनशील पूंजी को आकर्षित करने में भी मदद मिलती है।
      • उत्सर्जन और लॉजिस्टिक्स लागत में कटौती के लिये फ्रेट विलेज और तटीय शिपिंग कॉरिडोर (जैसे: सागर सेतु पोर्टल) का विस्तार किया जा रहा है।

भारत के लॉजिस्टिक्स क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में उच्च रसद लागत: भारत की रसद लागत वैश्विक मानदंडों की तुलना में काफी अधिक बनी हुई है, जिससे निर्यात और घरेलू उत्पादन की प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित हो रही है। 
    • विखंडित आपूर्ति शृंखला, सड़कों पर अत्यधिक निर्भरता तथा मॉडल एकीकरण का अभाव लागत को बढ़ा देता है। 
    • इससे MSME सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, जिससे उनका मार्जिन कम हो जाता है तथा वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सीमित हो जाती है।
    • उदाहरण के लिये, भारत की लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 14-18% होने का अनुमान है (आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23), जबकि वैश्विक बेंचमार्क लगभग 8% है।

  • माल ढुलाई में मॉडल असंतुलन: भारत में माल ढुलाई की निर्भरता मुख्यतः सड़क मार्ग पर है, जिससे लागत-दक्षता और पर्यावरणीय संधारणीयता प्रभावित होती है।
    • मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स अभी भी अविकसित है, रेल, बंदरगाहों और अंतर्देशीय जलमार्गों के बीच सीमित संपर्क है। इससे पैमाने की अर्थव्यवस्था सीमित हो जाती है तथा राजमार्गों पर भीड़भाड़ हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिये, सड़कें 66% माल ढुलाई का काम संभालती हैं, जबकि रेलवे 31% और शिपिंग/नौ-परिवहन केवल 3% का योगदान देती है (EY रिपोर्ट)।
      • अंतर्देशीय जलमार्ग, सड़क मार्ग की तुलना में 60% सस्ता होने के बावजूद, बुनियादी अवसंरचना की कमी के कारण कम उपयोग में लाया जाता है।
  • बुनियादी अवसंरचना का घाटा और परियोजना क्रियान्वयन में विलंब: नीतिगत प्रयासों के बावजूद, बुनियादी अवसंरचना का विकास भूमि अधिग्रहण के मुद्दों, पर्यावरणीय अनुमोदन में विलंब और प्रशासनिक बाधाओं के कारण बाधित है। 
    • इन विलंबों के कारण लागत बढ़ जाती है और निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित हो जाती है। कई लॉजिस्टिक्स पार्क, DFC और बंदरगाह संपर्क परियोजनाएँ धीमी गति से क्रियान्वयन का सामना कर रही हैं। 
    • उदाहरण के लिये, दीर्घकालिक लक्ष्यों के मुकाबले केवल 1,724 किमी, DFC का काम पूरा हुआ है; कई मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क अभी प्रारंभिक चरण में हैं।
    • यद्यपि प्रमुख बंदरगाहों के लिये औसत टर्नअराउंड टाइम में काफी कमी आई है, फिर भी यह अभी भी (सत्र 2023-24) अधिक48 घंटे है
  • विनियामक विखंडन और अनुपालन जटिलता: लॉजिस्टिक्स पारिस्थितिकी तंत्र कई मंत्रालयों और विभागों द्वारा शासित होता है, जिसके परिणामस्वरूप विनियामक ओवरलैप एव्न्न अकुशलताएँ होती हैं। 
    • नियमों, परमिटों और करों में अंतर-राज्यीय अंतर के कारण माल के आवागमन में विलंब होता है तथा लेन-देन की लागत बढ़ जाती है। PM गति शक्ति के शुभारंभ के बावजूद, केंद्र-राज्य समन्वय में कमी बनी हुई है।
    • उद्यमों को व्यवसाय के आकार और भौगोलिक पदचिह्न के आधार पर कई सौ अधिनियमों एवं नियमों का पालन करना पड़ता है। इनमें कैरिज बाय रोड एक्ट, 2007 और कैरिज बाय रोड रूल्स, 2011 तथा वेयरहाउसिंग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2007 शामिल हैं।
      • इसके अलावा, कुछ प्रकार की लॉजिस्टिक्स कंपनियों को विदेशी व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1992 तथा विदेशी व्यापार (विनियमन) नियम, 1993 में निहित अतिरिक्त अनुपालन को भी संतुलित करने की आवश्यकता होती है।
    • उद्योग के अनुमान के अनुसार, भारत में लॉजिस्टिक्स में विलंब के लिये अनुपालन बोझ 20-25% जिम्मेदार है।
  • डिजिटल डिवाइड और न्यून तकनीकी दक्षता: लॉजिस्टिक्स में डिजिटल परिवर्तन आगे बढ़ रहा है, लेकिन असमान रूप से, क्योंकि लघु स्तरीय भागीदारों के पास RFID, IoT, ब्लॉकचेन और पूर्वानुमान विश्लेषण जैसे तकनीकी उपकरणों तक अभिगम या ज्ञान की कमी है। 
    • इससे विशेष रूप से वेयरहाउसिंग, कार्गो ट्रैकिंग और डिलीवरी रूटिंग में अक्षमताएँ उत्पन्न होती हैं। ULIP और ई-लॉग्स के लाभ संगठित भागीदारों तक ही सीमित रहते हैं।
    • उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2022 (EY) तक लॉजिस्टिक्स बाज़ार का केवल 5.5-6% हिस्सा संगठित, तकनीक-संचालित भागीदारों के पास था।
  • कौशल और मानव संसाधन चुनौतियाँ: भारत के लॉजिस्टिक्स कार्यबल में आधुनिक आपूर्ति शृंखला प्रौद्योगिकियों, मल्टीमॉडल परिवहन समन्वय और ESG अनुपालन के प्रबंधन में संरचित प्रशिक्षण का अभाव है। 
    • लॉजिस्टिक्स उद्योग का 90% से अधिक हिस्सा असंगठित है, जिसकी वजह से उत्पादकता कम है, काम करने की स्थिति असुरक्षित है और कॅरियर में गतिशीलता सीमित है। बड़े पैमाने पर औपचारिक कौशल कार्यक्रमों की अनुपस्थिति अकुशलता को बढ़ाती है।
    • हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि इस क्षेत्र में वर्ष 2024 और वर्ष 2030 के दौरान 4.3 मिलियन अतिरिक्त श्रमिकों की आवश्यकता होगी तथा मुख्य मांग पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र जैसे राज्यों में केंद्रित होगी
  • संधारणीयता और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: भारत का लॉजिस्टिक्स क्षेत्र मुख्य रूप से कार्बन-प्रधान है, जिसमें डीज़ल-आधारित ट्रकिंग, सीमित विद्युतीकरण और अपर्याप्त हरित गलियारे प्रमुख हैं। 
    • यद्यपि ESG पर ध्यान बढ़ रहा है, अनुपालन अभी भी कमज़ोर है, विशेषकर छोटे ऑपरेटरों के बीच। तटीय शिपिंग और अंतर्देशीय जलमार्ग (जो कि ग्रीन मोड) का अभी भी कम दोहन हो रहा है।
    • उदाहरण के लिये, परिवहन और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र भारत के कुल CO2 उत्सर्जन का लगभग 14% हिस्सा है।
      • NLP मरीन और ऊर्जा दक्षता सूचकांक जैसी नीतियों के अंगीकरण के बावजूद, संवहनीय परिवहन की दिशा में संक्रमण धीमा है।

लॉजिस्टिक्स क्षेत्र की दक्षता बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • एकीकृत मल्टीमॉडल परिवहन अवसंरचना का संचालन: भारत को विभागीय अवरोधों को समाप्त करने तथा सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और हवाई माल ढुलाई में निवेश को समन्वित करने के लिये  राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP) के साथ मिलकर PM गति शक्ति के कार्यान्वयन में तेज़ी लानी चाहिये।
    • राष्ट्रीय मास्टर प्लान के माध्यम से लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर की मैपिंग करके, सरकार एंड-टू-एंड निर्बाध कार्गो आवागमन को सक्षम कर सकती है। प्रारंभिक और अंतिम बिंदु की कनेक्टिविटी को सुदृढ़ करने से समर्पित माल एवं तटीय गलियारों का पूरा उपयोग सुनिश्चित होगा। 
    • बिबेक देबरॉय समिति की सिफारिशों के आधार पर, बहु-विभागीय कार्यों को एक एकीकृत लॉजिस्टिक्स नीति में परिवर्तित करने की आवश्यकता है।
      • लॉजिस्टिक्स मूल्य शृंखला में पेपरलेस (कागज़ रहित) वातावरण की सुविधा के लिये एक एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म का निर्माण और क्षेत्रीय आउटपुट के आवधिक निदान एवं बेंचमार्किंग के लिये एक तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
  • लॉजिस्टिक्स हब के क्लस्टर-आधारित विकास को बढ़ावा देना: औद्योगिक गलियारों और SEZ के पास मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क (MMLP) विकसित करने से कुशल कार्गो एकत्रीकरण एवं वितरण प्रणाली का निर्माण होगा। 
    • इन केंद्रों को एक ही स्थान पर वेयरहाउसिंग, कोल्ड स्टोरेज एवं सीमा शुल्क निकासी जैसी एकीकृत सेवाएँ प्रदान करनी चाहिये। 
    • उन्हें फ्रेट विलेज और EXIM ज़ोन के साथ सह-स्थान देने से पैमाने की अर्थव्यवस्थाएँ उत्पन्न हो सकती हैं। सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से रणनीतिक नोड्स को प्राथमिकता दे सकती है। 
  • डिजिटल लॉजिस्टिक्स अवसंरचना को सुदृढ़ करना: भारत को ULIP, ICEGATE और ई-लॉग्स जैसे प्लेटफॉर्मों के माध्यम से लॉजिस्टिक्स परिचालनों के पूर्ण पैमाने पर डिजिटलीकरण पर ज़ोर देना चाहिये, ताकि लघु एवं मध्यम लॉजिस्टिक्स ऑपरेटरों द्वारा इसे सार्वभौमिक रूप से अपनाया जा सके। 
    • वास्तविक काल कार्गो दृश्यता, डिजिटल दस्तावेज़ विनिमय और प्रक्रिया स्वचालन को प्रोत्साहन तथा अनिवार्य मानकों के माध्यम से बढ़ाया जाना चाहिये। 
    • एकीकृत लॉजिस्टिक्स डेटा एक्सचेंज आर्किटेक्चर आपूर्ति शृंखलाओं को जोखिम मुक्त करने में मदद कर सकता है। साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता उपायों को बढ़ाने से हितधारकों के बीच विश्वास का निर्माण होगा। यह पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण और AI-आधारित लॉजिस्टिक्स योजना को भी सक्षम करेगा।
  • लंबी दूरी के माल ढुलाई के लिये रेल और जलमार्ग का उपयोग बढ़ाना: सड़क से रेलवे और अंतर्देशीय जलमार्गों पर थोक माल को स्थानांतरित करने के लिये नीतिगत प्रोत्साहन पेश किये जाने चाहिये, विशेष रूप से सीमेंट, इस्पात, कोयला एवं उर्वरक जैसे क्षेत्रों के लिये।
    • लघु रेल संपर्कों का विद्युतीकरण और अंतर्देशीय जल टर्मिनलों का विस्तार मॉडल शेयर को बढ़ा सकता है। 
    • सागरमाला और भारतमाला योजनाओं को रसद योजना से जोड़ने से कम उपयोग में लाए जा रहे समुद्री एवं सड़क बुनियादी अवसंरचना को बढ़ावा मिलेगा।
  • राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स कार्यबल विकास मिशन का निर्माण: गोदाम संचालन, मल्टीमॉडल हैंडलिंग और डिजिटल उपकरणों में क्षमता निर्माण के लिये स्किल इंडिया और लॉजिस्टिक्स सेक्टर स्किल काउंसिल के तहत एक समर्पित कौशल मिशन शुरू किया जाना चाहिये।
    • प्रमाणन और रोज़गारपरक प्रोत्साहन से जुड़े मॉड्यूलर प्रशिक्षण से क्षेत्रीय उत्पादकता बढ़ सकती है। 
    • उभरती प्रौद्योगिकियों और ESG अनुपालन में अनौपचारिक श्रमिकों के कौशल उन्नयन पर विशेष ज़ोर दिया जाना चाहिये। 
  • असंगठित लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को औपचारिक बनाना: भारत को अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल बनाना चाहिये तथा लघु बेड़े संचालकों, स्थानीय वेयरहाउसिंग एजेंटों और ट्रक चालकों के लिये पंजीकरण, उन्नयन एवं अपने परिचालन को औपचारिक बनाने हेतु सक्षम वातावरण बनाना चाहिये।
    • एकीकृत लॉजिस्टिक्स पंजीकरण पोर्टल, कम लागत वाला वित्त और सरलीकृत GST फाइलिंग इस परिवर्तन को आसान बना सकते हैं। 
    • लॉजिस्टिक्स प्रदाता परिचालन को सुव्यवस्थित करने, मार्गों को अनुकूलित करने और विभिन्न विक्रेताओं से शिपमेंट को समेकित करने के लिये ONDC प्लेटफॉर्म का लाभ उठा सकते हैं।
  • लॉजिस्टिक्स अनुकूलन के लिये भू-स्थानिक खुफिया और AI का लाभ उठाना: गति शक्ति मास्टरप्लान के साथ GIS और AI-बेस्ड एनालिटिक्स को एकीकृत करने से यातायात पैटर्न, बुनियादी अवसंरचना के उपयोग एवं माल परिवहन की बाधाओं की वास्तविक काल पर निगरानी संभव हो सकती है। 
    • ऐसी जानकारियों से बेहतर लॉजिस्टिक्स नेटवर्क डिज़ाइन, निवेश प्राथमिकता और भीड़ प्रबंधन के बारे में जानकारी मिल सकती है। 
    • पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण आपूर्ति शृंखला व्यवधानों को रोकने में भी मदद कर सकता है। ISRO, NIC और MoRTH के बीच सहयोग तैनाती का समर्थन कर सकता है। 

निष्कर्ष: 

भारत का लॉजिस्टिक्स क्षेत्र एकीकृत परिवहन योजना, डिजिटल नवाचार और बुनियादी अवसंरचना के आधुनिकीकरण के माध्यम से एक परिवर्तनकारी बदलाव के दौर से गुजर रहा है। मॉडल असंतुलन को संतुलित करना और केंद्र-राज्य समन्वय सुनिश्चित करना लागत दक्षता एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को साकार करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह दृष्टिकोण समुत्थानशील बुनियादी अवसंरचना और संवहनीय शहरी लॉजिस्टिक्स को बढ़ावा देकर SDG9 (उद्योग, नवाचार एवं बुनियादी सुविधाएँ) एवं SDG11 (सतत् शहर एवं संतुलित समुदाय) के साथ संरेखित है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. “भारत के वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने के मार्ग में ‘उच्च लॉजिस्टिक्स लागत’ एक संरचनात्मक बाधा है।” लॉजिस्टिक्स क्षेत्र की दक्षता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के उपायों पर चर्चा कीजिये तथा सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स 

प्रश्न 1. गति-शक्ति योजना को संयोजकता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकार और निजी क्षेत्र के मध्य सतर्क समन्वय की आवश्यकता है। विवेचना कीजिये। (2022)