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एडिटोरियल

  • 14 Jul, 2020
  • 14 min read
सामाजिक न्याय

सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा व असंगठित क्षेत्र

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में सार्वभौमिक सामजिक सुरक्षा व असंगठित क्षेत्र से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

वैश्विक महामारी COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु जारी लॉकडाउन के कारण देश के भीतर सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियाँ ठप्प हैं। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था पर आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है। देश में व्यापक पैमाने पर रोज़गार  समाप्त हो गए हैं, इस संकट की घड़ी में स्वास्थ्य के साथ ही लोगों की आजीविका भी खतरे में है। ऐसे में प्रभावित लोगों के समक्ष सामाजिक सुरक्षा को प्राप्त करना एक कठिन कार्य है।

भारतीय संविधान की मुख्य विशेषता एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। संविधान की प्रस्तावना और राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों से यह जाहिर है कि हमारा लक्ष्य सामाजिक कल्याण है। यह प्रस्तावना भारतीय लोगों के लिये सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक-न्याय सुरक्षित करने का वादा करती है। इतना ही नहीं सतत् विकास हेतु ‘एजेंडा 2030’ के तहत संबंधित विभिन्न लक्ष्यों में सामाजिक सुरक्षा की सार्वभौमिकता का सिद्धांत निहित है। इस संदर्भ में सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की अनिवार्यता ने बहुत अधिक महत्त्व प्राप्त किया है।

सामाजिक सुरक्षा से तात्पर्य:

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, सामजिक सुरक्षा एक व्यापक अवधारणा है जो स्वयं तथा अपने आश्रितों को न्यूनतम आय उपलब्ध कराने का आश्वासन प्रदान करती है और किसी भी प्रकार की अनिश्चितता से व्यक्ति की रक्षा करती है।
  • अमेरिकन विश्वकोश में इसकी व्याख्या इस प्रकार की गई है ‘सामाजिक सुरक्षा कुछ उन विशेष सरकारी योजनाओं की ओर संकेत करती है जिनका प्रारंभिक लक्ष्य सभी परिवारों को कम-से-कम जीवन निर्वाह के साधन और शिक्षा तथा चिकित्सा की व्यवस्था करके दरिद्रता से मुक्ति दिलाना होता है’।

सार्वभौमिक सामजिक सुरक्षा की आवश्यकता क्यों?

  • भारत का विशाल असंगठित क्षेत्र
    • देश की अर्थव्यवस्था में 50% से अधिक का योगदान करने वाले असंगठित क्षेत्र के लोगों का कुल कार्यबल में हिस्सा 80 प्रतिशत है।
    • भारत का असंगठित क्षेत्र मूलतः ग्रामीण आबादी से बना है और इसमें अधिकांशतः वे लोग होते हैं जो गांव में परंपरागत कार्य करते हैं।
    • गाँवों में परंपरागत कार्य करने वालों के अलावा भूमिहीन किसान और छोटे किसान भी इसी श्रेणी में आते हैं।
    • शहरों में ये लोग अधिकतर खुदरा कारोबार, थोक कारोबार, विनिर्माण उद्योग, परिवहन, भंडारण और निर्माण उद्योग में काम करते हैं।
    • इनमें अधिकतर ऐसे लोग है जो फसल की बुआई और कटाई के समय गाँवों में चले जाते हैं और बाकी समय शहरों-महानगरों में काम करने के लिये आजीविका तलाशते हैं।
  • महँगी स्वास्थ्य सेवाएँ
    • महँगी होती स्वास्थ्य सेवाओं के कारण आम आदमी द्वारा स्वास्थ्य पर किये जाने वाले खर्च में बेतहाशा वृद्धि हुई है जिससे यह वर्तमान समय में गरीबी को बढ़ाने वाला एक प्रमुख कारण माना जाने लगा है।
    • इसके साथ ही वैश्विक महामारी COVID-19 ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने की दिशा में तेजी से प्रगति करने के लिये राज्य के नीति-नियंताओं का ध्यान आकर्षित किया है।
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज न केवल स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये मूलभूत शर्त है बल्कि यह अन्य लक्ष्यों जैसे-गरीबी उन्मूलन (SDG-1), गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (SDG-4), लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण (SDG-5 ), उत्कृष्ट कार्य और आर्थिक वृद्धि (SDG-8), बुनियादी ढाँचा (SDG-9), असमानता कम करना (SDG-10 ), न्याय और शांति (SDG-16) आदि की प्राप्ति के लिये भी आवश्यक है।
  • सामाजिक सुरक्षा पर अपर्याप्त व्यय
    • भारत में सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का एक व्यापक उद्देश्य है, लेकिन सामाजिक सुरक्षा (सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को छोड़कर) पर समग्र सार्वजनिक व्यय केवल अनुमानित है।

असंगठित क्षेत्र की प्रमुख समस्याएँ?

  • बेहद कम आमदनी: असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों की आय संगठित क्षेत्र की तुलना में न केवल कम है, बल्कि कई बार तो यह जीवन स्तर के न्यूनतम निर्वाह के लायक भी नहीं होती। इसके अलावा, अक्सर कृषि और निर्माण क्षेत्रों में पूरे वर्ष काम न मिलने की वज़ह से वार्षिक आय और भी कम हो जाती है। इस क्षेत्र में न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता, जो कि कर्मचारियों को दिया जाना बाध्यकारी है। इसलिये न्यूनतम मज़दूरी दरों से भी कम कीमतों पर ये कामगार अपना श्रम बेचने को विवश हो जाते हैं। वैसे भी हमारे देश में न्यूनतम मजदूरी की दरें वैश्विक मानकों की तुलना में बहुत कम हैं।
  • अस्थायी रोज़गार: असंगठित क्षेत्र में रोज़गार गारंटी न होने के कारण रोज़गार का स्वरूप अस्थायी होता है, जो इस क्षेत्र में लगे कामगारों को हतोत्साहित करता है। रोज़गार स्थिरता न होने के कारण इनमें मनोरोग का खतरा भी संगठित क्षेत्र के कामगारों से अधिक होता है। इनके पास विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं पहुँच पाता। बिचौलियों और अपने नियोक्ताओं द्वारा भी इनकी उपेक्षा की जाती है।
  • श्रम कानूनों के तहत नहीं आते: अधिकांश असंगठित श्रमिक ऐसे उद्यमों में काम करते हैं जहाँ श्रमिक कानून लागू नहीं होते। इसलिये इनकी कार्य दशा भी सुरक्षित नहीं होती और इनके लिये स्वास्थ्य संबंधी खतरे बहुत अधिक होते है।
  • खतरनाक उद्यमों में भी सुरक्षा नहीं: बाल श्रम, महिलाओं के साथ अन्याय की सीमा तक असमानता और उनका शारीरिक, मानसिक तथा यौन-शोषण आम बात है। कई व्यवसायों में स्वास्थ्य मानकों के न होने का मसला भी चुनौती के रूप में इस क्षेत्र से जुड़ा है। माचिस के कारखाने में काम करने वाले, कांच उद्योग में काम करने वाले, हीरा तराशने वाले, कीमती पत्थरों पर पॉलिश करने वाले, कबाड़ बीनने वाले, पीतल और कांसे के बर्तन बनाने वाले तथा आतिशबाजी बनाने वाले उद्यमों में बड़ी संख्या में बाल श्रमिक काम करते हैं।
  • बढ़ती हुई जटिल आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था: जटिल आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था के बढ़ने से इन कामगारों का दैनिक जीवन कहीं ज्यादा व्यस्त और जीवन स्तर कहीं ज्यादा निम्न हो गया है। आय और व्यय के बीच असंगति ने इनकी आर्थिक स्थिति को इस लायक नहीं छोड़ा है कि ये बेहतर जीवन जी सकें। इसलिये सरकार समय-समय पर अनेक योजनाएँ चलाती तो है, लेकिन इसके सामने बहुत सी बाधाएँ हैं, जो उन योजनाओं और नीतियों के क्रियान्वयन के आड़े आती हैं।

सरकार के प्रयास:

  • प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना: वित्तीय वर्ष 2019-20 का अंतरिम बजट जब पेश हुआ था तो सरकार ने 15 हज़ार रुपए तक मासिक आय वाले असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिये ‘प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन पेंशन योजना’ शुरू करने का प्रस्ताव रखा था। वस्तुतः वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इस योजना में मासिक आय की राशि को घटाकर इसका दायरा बढ़ाया जा सकता है।
  • कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008: विधायी उपायों में असंगठित क्षेत्र के कामगारों को सामाजिक सुरक्षा देने के संबंध में सरकार ने असंगठित कामगार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 अधिनियमित किया। यह अधिनियम राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड को कुछ ज़रूरी व्यवस्थाएँ उपलब्ध कराता है। इसके ज़रिये सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के निर्माण, जीवन और विकलांगता कवर, स्वास्थ्य और मातृत्व लाभ, वृद्धावस्था सुरक्षा और कोई भी अन्य लाभ, जो असंगठित मज़दूरों के लिये सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है, उसके लिये अनुशंसाएँ दी जाती हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड का भी गठन किया गया है। 
  • आयुष्मान भारत योजना: आयुष्मान भारत योजना भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है जिसे यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (Universal Health Coverage-UHC) के उद्देश्य की प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 द्वारा की गई अनुशंसा के आधार पर लागू किया गया था। इस योजना का उद्देश्य प्राथमिक,माध्यमिक और तृतीयक स्तरों पर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की बाधाओं को समाप्त करना है। साथ ही इस योजना के माध्यम से देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या को स्वास्थ्य कवर के दायरे में लाने का भी प्रयास किया जा रहा है।
  • आम आदमी बीमा योजना: सरकार ने मृत्‍यु एवं अपंगता की स्थिति में बीमा प्रदान करने के लिये आम आदमी बीमा योजना (AABY) प्रारंभ की है। 
  • असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों के लिये कई अन्य रोज़गार सृजन/सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को सरकार लागू कर रही है, जैसे स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोज़गार योजना, स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना, प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम, मनरेगा, हथकरघा बुनकर योजना, हस्तशिल्प कारीगर व्यापक कल्याण योजनाएँ, मछुआरों के कल्याण के लिये राष्ट्रीय योजना, प्रशिक्षण और विस्तार, जननी सुरक्षा योजना, राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना आदि।

निष्कर्ष:

इस सब के बावजूद आज भी इस वर्ग की सामाजिक सुरक्षा का मुद्दा लगातार चिंता का विषय बना हुआ है। इस क्षेत्र से जुड़े लोगों में आजीविका असुरक्षा, बाल श्रम, मातृत्व (मैटरनिटी) सुरक्षा, छोटे बच्चों की देख-रेख, आवास, पेयजल, सफाई, अवकाश से जुड़े लाभ और न्यूनतम मज़दूरी जैसे मुद्दे बेहद महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। ऐसे में सरकार को असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिये समग्र नीति बनानी चाहिये और अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को स्वीकार करते हुए व्यवस्था में उचित भागीदारी देनी चाहिये।

प्रश्न- सामाजिक सुरक्षा से आप क्या समझते हैं? भारत में असंगठित क्षेत्र की वर्तमान स्थिति का उल्लेख करते हुए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता व इस दिशा में सरकार के द्वारा किये जा रहे प्रयासों का उल्लेख कीजिये।


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