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एडिटोरियल

  • 13 Oct, 2020
  • 12 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

जीन एडिटिंग: संभावनाएँ और चुनौतियाँ

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जीन एडिटिंग संभावनाएँ और चुनौतियों से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

हाल ही में वर्ष 2020 के लिये नोबेल पुरस्कारों की घोषणा की गई है। इस वर्ष ऐतिहासिक रूप से रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार फ्राँस की इमैनुएल चार्पेंटियर (Emmanuelle Charpentier) और अमेरिका की जेनिफर ए डौडना (Jennifer A Doudna) को प्रदान किया गया है। चार्पेंटियर एवं डौडना द्वारा विकसित ‘क्रिस्पर-कैस9 जेनेटिक सीज़र्स’ (CRISPR-Cas9 Genetic Scissors) का उपयोग जानवरों, पौधों एवं सूक्ष्मजीवों के डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid- DNA) को अत्यधिक उच्च सटीकता के साथ बदलने के लिये किया जा सकता है। यह तकनीकी न केवल नए कैंसर उपचार में योगदान कर रही है बल्कि आनुवंशिक बीमारियों के निदान का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है। 'नोबेल ज्यूरी’ ने इसे मानव जाति के लिये एक क्रांतिकारी आविष्कार बताया है। हालाँकि उन्होंने इसे सावधानी से प्रयोग करने की सलाह भी दी।  

इस आलेख में जीन एडिटिंग, इसके अनुप्रयोग, जीन एडिटिंग से संभावनाएँ और इससे संबंधित नैतिक चिंताओं पर विमर्श करने का प्रयास किया जाएगा।  

जीन एडिटिंग से तात्पर्य

  • जीन एडिटिंग (जिसे जीनोम एडिटिंग भी कहा जाता है) प्रौद्योगिकियों का एक समुच्चय है जो वैज्ञानिकों को एक जीव के डीएनए को बदलने की क्षमता उपलब्ध कराता है। ये प्रौद्योगिकियाँ जीनोम में विशेष स्थानों पर आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती हैं।
  • जीन एडिटिंग वह तकनीक है जिसका उपयोग किसी जीव के जीनों में परिवर्तन करने या उसके आनुवंशिक गठन में फेरबदल करने में किया जा सकता है।

DNA-editing

CRISPR Cas - 9 क्या है? 

CAS-9

  • CRISPR Cas-9 तकनीक की खोज वैज्ञानिकों द्वारा वर्ष 2012 में की गई थी यह तकनीक प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।
  • CRISPR तकनीक के माध्यम से संपूर्ण आनुवंशिक कोड में से लक्षित हिस्सों (विशिष्ट हिस्सों) या विशेष स्थान पर DNA की एडिटिंग की जा सकती है।
  • CRISPR-CAS9 तकनीक आनुवंशिक सूचना धारण करने वाले DNA के सिरा (Strands) या कुंडलित धागे को हटाने और चिपकाने (Cut and Paste) की क्रियाविधि की भाँति कार्य करती है।
  • DNA सिरा के जिस विशिष्ट स्थान पर आनुवंशिक कोड को बदलने या एडिट करने की आवश्यकता होती है, सबसे पहले उसकी पहचान की जाती है।
  • इसके पश्चात् CAS-9 के प्रयोग से (CAS-9 कैंची की तरह कार्य करता है) उस विशिष्ट हिस्से को हटाया जाता है।
  • उल्लेखनीय है कि DNA सिरा के जिस विशिष्ट भाग को काटा या हटाया जाता है उसमें प्राकृतिक रूप से पुनर्निर्माण, मरम्मत की प्रवृति होती है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा स्वत: मरम्मत या पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में ही हस्तक्षेप किया जाता है और आनुवंशिक कोड में वांछित अनुक्रम या परिवर्तन की क्रिया पूरी की जाती है, जो अंततः टूटे हुए DNA सिरा पर स्थापित हो जाता है।

जीन एडिटिंग के अनुप्रयोग 

  • वैज्ञानिक अनुसंधान में पहले से ही व्यापक रूप से इसका उपयोग किया जाता है, क्रिस्पर-कैस 9 को HIV, कैंसर या सिकल सेल रोग जैसी बीमारियों के लिये संभावित जीनोम एडिटिंग उपचार हेतु एक आशाजनक तरीके के रूप में भी देखा गया है।
  • इस तरह इसके माध्यम से चिकित्सकीय रूप से बीमारी पैदा करने वाले जीन को निष्क्रिय किया जा सकता है या आनुवंशिक उत्परिवर्तन को सही कर सकते हैं। क्रिस्पर जीन एडिटिंग जेनेटिक हेरफेर के लिये एक टूलबॉक्स प्रदान करती है। 
  • उल्लेखनीय है कि CRISPR तकनीकी पहले से ही मौलिक बीमारी अनुसंधान, दवा जाँच और थेरेपी विकास, तेज़ी से निदान, इन-विवो एडिटिंग (In Vivo Editing) और ज़रूरी स्थितियों में सुधार के लिये बेहतर आनुवंशिक मॉडल प्रदान कर रही है।
  • वैज्ञानिक इस सिद्धांत पर काम कर रहे हैं कि CRISPR तकनीकी का उपयोग शरीर की टी-कोशिकाओं (T-Cells) के कार्य को बढ़ावा देने में किया जा सके ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली कैंसर को पहचानने और नष्ट करने में बेहतर हो तथा रक्त और प्रतिरक्षा प्रणाली के विकार और अन्य संभावित बीमारियों को लक्षित किया जा सके।
  • कैलिफोर्निया में विश्व के पहले जीन-एडिटिंग परीक्षण में HIV के लगभग 80 रोगियों के खून से HIV प्रतिरक्षा कोशिकाओं को ज़िंक-फाइबर न्यूक्लियस (Zinc-finger Nucleases-ZFNs) नामक एक अलग तकनीक का प्रयोग कर हटाया गया। चीन में शोधकर्त्ताओं ने मानव भ्रूण के एक दोषपूर्ण जीन को सही करने की कोशिश के लिये संपादित किया जो रक्त विकार का कारण बनता है।
  • वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्होंने मलेरिया को दूर करने के लिये भी जीन एडिटिंग का उपयोग किया था जिससे मलेरिया का प्रतिरोध किया जा सकता है। किसानों द्वारा भी फसलों को रोग प्रतिरोधी बनाने के लिये क्रिस्पर तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। चिकित्सकीय क्षेत्र में, जीन एडिटिंग संभावित आनुवंशिक बीमारियों का इलाज कर सकती है, जैसे हृदय-रोग और कैंसर के कुछ रूप या एक दुर्लभ विकार जो दृष्टिबाधा या अंधेपन का कारण बन सकता है।
  • कृषि क्षेत्र में यह तकनीक उन पौधों को पैदा कर सकती है जो न केवल उच्च पैदावार में कारगर होंगे, जैसे कि लिप्पमैन के टमाटर, बल्कि यह सूखे और कीटों से बचाव के लिये फसलों में विभिन्न परिवर्तन कर सकते हैं ताकि आने वाले वर्षों में चरम मौसमी बदलावों में भी फसलों को हानि से बचाया जा सके।

जीन एडिटिंग के सकारात्मक प्रभाव 

  • जीन एडिटिंग तकनीकी के माध्यम से भ्रूणीय अवस्था में ही बच्चे के जीनोम में परिवर्तन किया जा सकता है। इस प्रकार वंशानुगत रोगों को संक्रमण से रोका जा सकता है। इससे बच्चे आनुवंशिक रोगों से मुक्त होंगे।
  • इस तकनीकी का प्रयोग कर भविष्य में ऐसे बच्चे डिज़ाइन किये जा सकते हैं, जो सामान्य बच्चों की तुलना में ज्यादा बौद्धिक व शक्तिशाली हों। जब यह बच्चे वयस्क होंगे तो उन्हें उचित प्रशिक्षण के द्वारा किसी क्षेत्र विशेष में अत्यधिक विशेषीकृत किया जा सकता है।
  • यह तकनीकी वाह्य अंतरिक्ष या अन्य दुर्लभ क्षेत्रों में शोध हेतु यथा आवश्यकता मानव शक्ति का सृजन करने में सहायक होगी।           

जीन एडिटिंग से संबंधित नैतिक चिंताएँ

  • इससे भविष्य में ‘डिज़ाइनर बेबी’ के जन्म की अवधारणा को और बल मिलेगा। यानी बच्चे की आँख, बाल और त्वचा का रंग ठीक वैसा ही होगा, जैसा उसके माता-पिता चाहेंगे।
  • इससे समाज में बड़ी जटिलताएँ और विषमताएँ उत्पन्न होंगी। डिज़ाइनर बेबी बनाने का कारोबार शुरू हो सकता है। जो आर्थिक रूप से संपन्न लोग होंगे उन्हें अपने बच्चे के बुद्धि-चातुर्य और व्यक्तित्व को जीन एडिटिंग के जरिये परिवर्तित करने का मौका मिलेगा। स्वाभाविक है कि इससे सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा मिलेगा।
  • चूँकि यह तकनीक अत्यंत महँगी है अतः इसका उपयोग केवल धनी वर्ग के लोग कर पाएंगे।
  • विरोधियों का यह भी मत है कि यदि किसी व्यक्ति को जीन विश्लेषण से यह पता चल जाता है कि उसके शरीर में कोई आनुवंशिक बीमारी है और वह आर्थिक रूप से उसका इलाज कराने में सक्षम नहीं है तो उस व्यक्ति के रोग निदान के संदर्भ में क्या प्रकिया है।
  • कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि विकास एक प्राकृतिक प्रक्रिया है तथा इस प्राकृतिक प्रक्रिया द्वारा जीन में परिवर्तन हज़ारों वर्षों में होता है। यदि हम इसे कुछ ही घंटे में कर देंगे तो इससे जीनों के स्थायित्व पर घातक प्रभाव पड़ सकता है।
  • जब समाज यह पाएगा कि उसके बीच निवास कर रहा व्यक्ति विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया है, तो समाज की प्रतिक्रिया नकारात्मक हो सकती है। 

निष्कर्ष

वास्तव में जीन एडिटिंग तकनीकी हमें एक कृत्रिम दुनिया की और ले जाएगी। अतः इस क्षेत्र में भारत को प्रत्येक कदम पर्याप्त शोध एवं अनुसंधान के बाद ही उठाना चाहिये। जीन एडिटिंग से संबंधित विषय को पब्लिक डोमेन में रखना चाहिये ताकि इस विषय पर जनता की राय को भी जाना  सके। जहाँ तक आनुवंशिक रोगों व विकृतियों को सुधारने का प्रश्न है, वहाँ तक इस तकनीकी की सहायता ली जा सकती है। परंतु डिज़ाइनर बेबी जैसे प्रयासों को हतोत्साहित किया जाना चाहिये।

प्रश्न- जीन एडिटिंग से आप क्या समझते हैं? यद्यपि जीन एडिटिंग के कई सकारात्मक प्रभाव है, परन्तु इसके साथ कई सामाजिक और नैतिक समस्याएँ भी जुड़ी हैं। चर्चा कीजिये।


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