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एडिटोरियल

  • 13 Jan, 2023
  • 14 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की स्थिति

यह एडिटोरियल 07/01/2023 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “How India has emerged as a global leader in public health” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली जटिल और बहुआयामी है, जहाँ सरकारी और निजी दोनों ही सुविधाएँ देश की 1.3 बिलियन से अधिक आबादी को चिकित्सा सेवाएँ प्रदान कर रही हैं।

  • सरकार ने देश की ग्रामीण आबादी के लिये स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार के लिये कई पहलों की शुरुआत की है, जैसे ‘आयुष्मान भारत’ योजना, जिसका उद्देश्य 500 मिलियन से अधिक लोगों को स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करना है।
  • हाल के वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद, स्वास्थ्य सेवा प्रणाली अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जिसमें अपर्याप्त वित्तपोषण, स्वास्थ्य कर्मियों की कमी और अपर्याप्त आधारभूत संरचना शामिल हैं।
  • यह महत्त्वपूर्ण है कि भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर प्राथमिकता से ध्यान दिया जाए और सरकारी एवं निजी क्षेत्र दोनों ही इन चुनौतियों को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करें ताकि भारत के नागरिकों की अच्छी स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच सुनिश्चित हो सके।

भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की क्षमता

  • भारत का प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ इसमें निहित है कि इसके पास सुप्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों का एक विशाल समूह मौजूद है।
    • भारत एशिया और पश्चिम के समकक्ष देशों की तुलना में लागत प्रतिस्पर्द्धी भी है। भारत में सर्जरी की लागत अमेरिका या पश्चिमी यूरोप की तुलना में लगभग दसवें भाग तक कम है।
  • एक बड़ी आबादी, एक सुदृढ़ फार्मा क्षेत्र एवं चिकित्सा आपूर्ति शृंखला, 750 मिलियन से अधिक स्मार्टफोन उपयोगकर्ता, वेंचर कैपिटल फंड तक आसान पहुँच के साथ विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप पूल तथा वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल समस्याओं के समाधान पर केंद्रित नवोन्मेषी टेक उद्यमियों के साथ भारत के पास वे सभी आवश्यक घटक मौजूद हैं जो इस क्षेत्र की घातीय वृद्धि में योगदान कर सकते हैं।
  • उत्पाद विकास और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये भारत में चिकित्सा उपकरणों की तीव्रता से क्लिनिकल टेस्टिंग के लिये लगभग 50 क्लस्टर स्थापित होंगे।
  • वर्ष 2021 तक की स्थिति के अनुसार, भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र भारत के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक था जिसने कुल 4.7 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करता है। इस क्षेत्र ने वर्ष 2017-22 के मध्य भारत में 2.7 मिलियन अतिरिक्त नौकरियाँ (प्रति वर्ष 500,000 से अधिक नई नौकरियाँ) सृजित की।

भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से संबद्ध प्रमुख समस्याएँ

  • अपर्याप्त चिकित्सा अवसंरचना: भारत में अस्पतालों की कमी है (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) और कई मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं में बुनियादी उपकरणों एवं संसाधनों की कमी है।
    • ‘नेशनल हेल्थ प्रोफाइल’ के अनुसार, भारत में प्रति 1000 जनसंख्या पर केवल 0.9 बेड उपलब्ध हैं और इनमें से केवल 30% ही ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध हैं।
  • गुणवत्तापूर्ण देखभाल के मानकीकरण का अभाव: भारत में प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता में व्याप्त भिन्नता भी है (ग्रामीण क्षेत्रों में अपर्याप्त सुविधाएँ एवं संसाधन) और कमज़ोर विनियमन के कारण कुछ निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में खराब देखभाल सेवा प्रदान की जाती है।
  • गैर-संचारी रोग: मधुमेह, कैंसर और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों की उच्च दर के साथ भारत में सभी मौतों में से 60% से अधिक के लिये गैर-संचारी रोग (Non-communicable diseases- NCDs) ज़िम्मेदार हैं।
    • इसके परिणामस्वरूप वहनीयता संबंधी चिंताएँ भी उत्पन्न होती हैं और गरीब लोग अधिक असुरक्षित होते हैं।
  • पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य देखभाल का अभाव: भारत में प्रति व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की संख्या सबसे कम है।
    • मानसिक स्वास्थ्य पर सरकार का व्यय भी अत्यंत कम है। इसके परिणामस्वरूप खराब मानसिक स्वास्थ्य परिणाम और मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों की अपर्याप्त देखभाल की स्थिति बनी है।
  • चिकित्सक-रोगी अनुपात में अंतराल: सबसे गंभीर चिंताओं में से एक है चिकित्सक-रोगी अनुपात में अंतराल। ‘इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ के अनुसार भारत को वर्ष 2030 तक 20 लाख चिकित्सकों की आवश्यकता होगी।
    • वर्तमान में सरकारी अस्पतालों में 11000 से अधिक रोगियों पर एक चिकित्सक की सेवा उपलब्ध है जो 1:1000 की WHO की अनुशंसा से पर्याप्त कम है।

स्वास्थ्य सेवा से संबंधित हाल की सरकारी पहलें

आगे की राह

  • आधारभूत संरचना और मानव संसाधन में सुधार लाना: नई स्वास्थ्य सुविधाओं के निर्माण और मौजूदा सुविधाओं के उन्नयन के साथ-साथ चिकित्सा अनुसंधान एवं स्वास्थ्य सेवाओं के लिये वित्तपोषण (जो वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद का 2.1% है) में वृद्धि की आवश्यकता है।
    • इसके साथ ही स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके अंतर्गत मेडिकल स्कूलों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की संख्या में वृद्धि करना शामिल है, साथ ही स्वास्थ्य पेशेवरों को सेवा की कमी वाले क्षेत्रों में कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन की पेशकश करना भी शामिल है।
  • गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच: निर्धनों, अनुसूचित जाति के सदस्यों और विशेष रूप से महिलाओं के लिये स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच बढ़ाने के साथ-साथ इन समुदायों को स्वास्थ्य सेवा के बारे में शिक्षा एवं जानकारी प्रदान करने के लिये लक्षित कार्यक्रमों को समयबद्ध रूप से लागू करने की आवश्यकता है।
    • इसके साथ ही, विनियमनों को प्रवर्तित करने, गुणवत्ता नियंत्रण उपायों को लागू करने, पारदर्शिता बढ़ाने और स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों की लेखापरीक्षा करने की भी आवश्यकता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार: इसमें मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये वित्तपोषण में वृद्धि, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को बेहतर ढंग से संबोधित करने के लिये स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित करना और मानसिक रोगों से जुड़े सामाजिक कलंक को समाप्त करना शामिल है।
  • स्वास्थ्य असमानताओं के मूल कारणों को संबोधित करना: स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारकों को संबोधित करने और समग्र स्वास्थ्य असमानताओं को कम करने के लिये शिक्षा, आवास एवं स्वच्छता जैसे अन्य क्षेत्रों के साथ समन्वय में काम करना चाहिये।
  • सतत् स्वास्थ्य प्रशासन: इसमें बेहतर प्रबंधन प्रणाली को लागू करना, स्वास्थ्य देखभाल नियामक निकायों को सुदृढ़ करना और अधिक प्रभावी एवं कुशल स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने के लिये स्वतंत्र निरीक्षण तंत्र स्थापित करना शामिल हो सकता है।
    • हाल ही में AIIMS दिल्ली पर हुए रैंसमवेयर हमले जैसे साइबर हमले से महत्त्वपूर्ण चिकित्सा अवसंरचना एवं डेटा की सुरक्षा के लिये उपयुक्त साइबर सुरक्षा उपाय भी किये जाने चाहिये।
  • कर कटौती: अतिरिक्त कर कटौती के साथ अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना आवश्यक है ताकि नई दवा के विकास में अधिक निवेश का समर्थन किया जा सके; साथ ही, जीवन रक्षक एवं आवश्यक दवाओं पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) को कम किया जाना चाहिये।
  • ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण की ओर आगे बढ़ना: इस बात को चिह्नित किये जाने की आवश्यकता है कि मानव स्वास्थ्य पशु स्वास्थ्य और हमारे साझा पर्यावरण से निकटता से संबद्ध है और इसलिये समय की आवश्यकता है कि स्वस्थ वातावरण, स्वस्थ पशु और स्वस्थ मानव—सबको दायरे में लेती सामूहिक स्वास्थ्य पहलों की ओर आगे बढ़ा जाए।

अभ्यास प्रश्न: भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें और वे उपाय सुझाएँ जिन्हें देश में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता एवं पहुँच में सुधार के लिये लागू किया जा सकता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

प्र. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं?  (वर्ष 2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के प्रति जागरूकता पैदा करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया की घटनाओं को कम करना।
  3. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना।
  4. पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देने के लिये।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1 और 2
 (B) केवल 1, 2 और 3
 (C) केवल 1, 2 और 4
 (D) केवल 3 और 4

उत्तर: (A)

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान) महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जो आँगनवाड़ी सेवाओं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, स्वच्छ-भारत मिशन आदि जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के साथ अभिसरण सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (NNM) का लक्ष्य 0-6 वर्ष के बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण की स्थिति में वर्ष 2017-18 से शुरू होने वाले अगले तीन वर्षों के दौरान समयबद्ध तरीके से सुधार करना है। अतः 1 सही है।
  • NNM का लक्ष्य स्टंटिंग, अल्प-पोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोरियों में) को कम करना और शिशुओं के जन्म के समय कम वज़न को कम करना है। अत: 2 सही है।
  • NNM के तहत बाजरा, बिना पॉलिश किए चावल, मोटे अनाज और अंडे की खपत से संबंधित ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अतः 3 और 4 सही नहीं हैं।

अतः विकल्प (A) सही उत्तर है।


मुख्य परीक्षा

Q. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता होने के अलावा, सतत् विकास के लिये प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिये। (वर्ष 2021)


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