एडिटोरियल (12 Nov, 2022)



अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक करना

यह एडिटोरियल 11/11/2022 को ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “A cover for the informal sector” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के अनौपचारिक क्षेत्र और उससे संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector) का प्रभुत्व भारत में श्रम बाज़ार परिदृश्य की केंद्रीय विशेषताओं में से एक बन गया है। जबकि अनौपचारिक क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग आधे भाग का योगदान करता है, रोज़गार के मोर्चे पर इसका प्रभुत्व ऐसा है कि कुल कार्यबल का 90% से अधिक भाग अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से संलग्न है।

  • सरकार ने अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने के कई प्रयास किये हैं। वस्तु एवं सेवा कर (GST) का आरंभ, डिजिटल भुगतान प्रणाली और ई-श्रम (e-Shram) जैसे विभिन्न सरकारी पोर्टलों पर अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों का नामांकन—ये सभी अर्थव्यवस्था के औपचारीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये हैं।
  • उपर्युक्त सभी प्रयास औपचारीकरण के ‘राजकोषीय परिप्रेक्ष्य’ (fiscal perspective) पर आधारित हैं। इसके बावजूद, औपचारिक क्षेत्र अनौपचारिक क्षेत्र की तुलना में अधिक उत्पादक है और औपचारिक क्षेत्र के कामगारों की सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच है। इस प्रकार, भारतीय अनौपचारिक कार्यबल को औपचारिक बनाने के बहुआयामी पहलुओं पर विचार करना आवश्यक है।

औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्र के बीच क्या अंतर है?

  • औपचारिक क्षेत्र (Formal Sector): औपचारिक क्षेत्र में नियोक्ता और नियुक्त यानी कर्मचारी के बीच एक औपचारिक अनुबंध होता है जहाँ पूर्व-निर्धारित कार्य शर्तें होती हैं। इस क्षेत्र में एक ही वातावरण में काम करने वाले लोगों का संगठित समूह शामिल होता है और वे कानूनी एवं सामाजिक रूप से अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होते हैं।
  • अनौपचारिक क्षेत्र (Informal Sector): अनौपचारिक क्षेत्र में व्यक्तियों या परिवारों के स्वामित्व में संचालित सभी अनिगमित निजी उद्यम शामिल होते हैं, जो स्वामित्व या साझेदारी के आधार पर वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री से संलग्न होते हैं।

अनौपचारिक क्षेत्र से संबंधित हाल की प्रमुख सरकारी पहलें

श्रम पोर्टल के अनुसार अनौपचारिक कामगारों का वर्तमान परिदृश्य

  • सामाजिक एवं आर्थिक विश्लेषण: श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 27.69 करोड़ अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों में से 94% से अधिक की मासिक आय 10,000 रुपये या उससे कम है।
    • यहाँ नामांकित कार्यबल का 74% से अधिक अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से संबंधित है।
  • आयु-वार विश्लेषण: पोर्टल पर पंजीकृत 61.72 प्रतिशत कामगार 18-40 आयु वर्ग के हैं, जबकि 22.12 प्रतिशत 40-50 आयु वर्ग के हैं।
  • लिंग-वार विश्लेषण: पंजीकृत कामगारों में 52.81% महिलाएँ हैं और 47.19% पुरुष हैं।
  • व्यवसाय-वार विश्लेषण: कृषि क्षेत्र शीर्ष पर है जहाँ नामांकित 52.11% कामगार कृषि क्षेत्र से संलग्न हैं; इसके बाद घरेलू एवं पारिवारिक कामगारों और निर्माण श्रमिकों का स्थान है जो नामांकन में क्रमशः 9.93% और 9.13% हिस्सेदारी रखते हैं।

भारत में अनौपचारिक क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • लैंगिक असमानता: महिलाएँ अनौपचारिक प्रतिभागियों में से बहुसंख्यक का गठन करती हैं, लेकिन उन्हें न्यूनतम लाभ प्राप्त होता है जहाँ कम भुगतान, आय में अस्थिरता और एक सुदृढ़ सामाजिक सुरक्षा जाल की कमी जैसी स्थितियाँ मौजूद होती है।
    • इसने कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को भी उल्लेखनीय रूप से बाधित किया है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आँकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2021 में महिला श्रम बल की भागीदारी दर घटकर 21.2% हो गई जो एक वर्ष पूर्व 21.9% रही थी।
  • आर्थिक शोषण: परिभाषा के अनुसार अनौपचारिक रोज़गार में कोई लिखित अनुबंध, सवैतनिक अवकाश नहीं होता और इसलिये कोई न्यूनतम मज़दूरी नहीं निर्धारित होती है, न ही कार्य की शर्तों पर ध्यान दिया जाता है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र के लिये वेतन संहिता, 2019 (Code on Wages 2019) अभी भी दायरे और प्रभावकारिता में सीमित है। अनौपचारिक कामगार आमतौर पर दायरे में सबसे कम शामिल होते हैं क्योंकि:
      • यदि कोई राज्य सरकार किसी विशेष क्षेत्र में किसी विशिष्ट नौकरी को शामिल करने से इनकार करती है तो यह न्यूनतम मजदूरी मानदंड के अंतर्गत नहीं आती है।
  • कराधान की कमी: चूँकि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के व्यवसाय प्रत्यक्ष रूप से विनियमित नहीं होते हैं, वे आम तौर पर नियामक ढाँचे से आय एवं व्यय छुपाकर एक या एक से अधिक करों से बचने का प्रयास करते हैं।
    • यह सरकार के लिये एक चुनौती है क्योंकि अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कर के दायरे से बाहर रह जाता है।
  • पृथक आँकड़ों का अभाव: अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति का प्रतिनिधित्व करने वाले आधिकारिक आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, जिससे सरकार के लिये विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र हेतु और सामान्य रूप से पूरी अर्थव्यवस्था के लिये नीतियों का निर्माण करना कठिन हो जाता है।
  • कोई निश्चित कार्य समय नहीं: असंगठित क्षेत्र में भारत में लागू श्रम मानकों से परे लंबे समय तक कार्य कराना आम स्थिति है। विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में काम करने का कोई निश्चित समय निर्धारित नहीं है क्योंकि ऐसे कानून मौजूद नहीं हैं जो कृषि श्रमिकों की कार्य परिस्थितियों के लिये दिशानिर्देश के रूप में कार्य कर सकें।
  • गरीबी का भँवरजाल: असंगठित क्षेत्र के कामगारों में व्याप्त गरीबी दर संगठित क्षेत्र के उनके समकक्षों की तुलना में बहुत अधिक है।
    • कम मज़दूरी के कारण कम पोषण ग्रहण और उत्पन्न स्वास्थ्य कठिनाइयाँ उनके जीवन के लिये जोखिम उत्पन्न करती हैं।
  • आपदा के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील: बाढ़, सूखा, अकाल, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का अनौपचारिक क्षेत्रों पर असंगत रूप से अधिक विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।
    • सामाजिक सुरक्षा के अभाव में यह समस्या और भी विकराल हो जाती है।

आगे की राह

  • पंजीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाना: अनौपचारिक व्यावसायिक आचरण के लिये नियमों को सरल बनाने की आवश्यकता है जो अनौपचारिक उद्यमों और उनके श्रमिकों को औपचारिकता के दायरे में लाएँगे।
    • एक स्व-सहायता समूह पहल जो अनौपचारिक श्रमिकों को संगठित करे, आत्मनिर्भरता के निर्माण में योगदान दे सकती है और उनकी कार्य स्थितियों से संबंधित समस्याओं का समाधान कर सकती है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र का व्यापक डेटा: राष्ट्रीय सांख्यिकीय प्रणाली के अभिन्न अंग के रूप में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के विभिन्न आयामों पर एक व्यापक सांख्यिकीय आधार का निर्माण करना आवश्यक है, ताकि नीति निर्माता सूचना-संपन्न निर्णय लेने में सक्षम हो सकें।
  • ‘वेंडिंग राइट्स’: वेंडर्स को उनके स्थानों पर उपलब्ध वेंडिंग राइट्स स्थान और उनके आसपास के वातावरण के प्रति उनकी जवाबदेही में वृद्धि कर सकेंगे।
    • शुल्कों के भुगतान के लिये वेंडर्स (स्थान और समय विशिष्ट) को लाइसेंस देने से भी स्थानीय प्राधिकरणों के राजस्व में वृद्धि होने की उम्मीद है।
      • इस राजस्व का एक हिस्सा पेयजल सुविधाओं, शौचालयों और सार्वजनिक स्थानों पर कचरा संग्रह आदि के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है
  • शिकायत निवारण तंत्र: अनौपचारिक कामगारों की शिकायतों को समय-समय पर एक सुलभ एवं आधिकारिक निगरानी तंत्र के माध्यम से सुना जाना चाहिये और उनका निवारण किया जाना चाहिये।
  • लैंगिक आधार पर वेतन समता: राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत समान कार्य के लिये समान वेतन का निर्देश देते हैं (अनुच्छेद 39D)। महिला खेतिहर मज़दूरों को आमतौर पर उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में कम मज़दूरी दी जाती है।
    • सरकार को प्रासंगिक विधायी समर्थन के माध्यम से राज्य नीति के इस निदेशक सिद्धांत को सशक्त बनाते हुए कार्यान्वित करना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: भारत के अनौपचारिक क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियों के साथ-साथ अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने के लिये किये जा सकने वाले उपायों पर विचार कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

Q.1  केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2009)

  1. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की।
  2. कपड़ा मंत्रालय ने राजीव गांधी शिल्पी स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

 (A) केवल 1
 (B) केवल 2
 (C) 1 और 2 दोनों
 (D) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (B)


Q.2 उस योजना का क्या नाम है जो महिलाओं को पारंपरिक और गैर-पारंपरिक व्यवसायों में प्रशिक्षण और कौशल प्रदान करती है? (वर्ष 2008)

 (A) किशोरी शक्ति योजना
 (B) राष्ट्रीय महिला कोष
 (C) स्वयंसिद्ध
 (D) स्वावलम्बन

 उत्तर: (D)