लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 11 Oct, 2022
  • 12 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व फ्रेमवर्क

यह एडिटोरियल 07/10/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Strengthening the CSR framework is a profitable idea” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) की वर्तमान स्थिति और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत में व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट परोपकार का एक लंबा इतिहास रहा है और सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति एवं मूल्य प्रणाली का अभिन्न अंग रही है। भारत के अग्रणी उद्योगपति और टाटा समूह के संस्थापक जेआरडी टाटा पिछली सदी में दुनिया के सबसे बड़े परोपकारी व्यक्ति रहे थे जिन्होंने 102.4 बिलियन डॉलर का दान किया था।

  • कंपनी अधिनियम, 2013 के अधिनियमन और उत्तरवर्ती संशोधनों के साथ कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility- CSR) की अवधारणा ने भारत में विकास के एक नए चरण में प्रवेश किया है, जहाँ यह स्वैच्छिक कार्य से सांविधिक उत्तरदायित्व में परिणत हो गया है।
  • जबकि भारत की लगभग सभी प्रमुख कंपनियाँ अपने स्वयं के CSR अभ्यासों एवं नीतियों का पालन करती हैं, CSR के संबंध में कठोर विनियमनों एवं विधियों की अनुपस्थिति इसे असंगत और अक्षम बनाती है।
  • इसके साथ ही, कंपनी अधिनियम की धारा 135 के प्रावधानों में कुछ संदिग्ध या अस्पष्ट क्षेत्र मौजूद हैं जहाँ स्पष्टीकरण की आवश्यकता है ताकि CSR का अधिक कुशल कार्यान्वयन सुनिश्चित हो।

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व क्या है?

  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा में यह दृष्टिकोण निहित है कि कंपनियों को पर्यावरण एवं सामाजिक कल्याण पर उनके प्रभावों का आकलन करना चाहिये और ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये, साथ ही सकारात्मक सामाजिक और पर्यावरणीय परिवर्तन को बढ़ावा देना चाहिये।
  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के चार मुख्य प्रकार हैं:
    • पर्यावरणीय उत्तरदायित्व
    • नैतिक उत्तरदायित्व
    • परोपकारी उत्तरदायित्व
    • आर्थिक उत्तरदायित्व
  • कंपनी अधिनियम के अंतर्गत कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व प्रावधान उन कंपनियों पर लागू होते हैं जिनका वार्षिक कारोबार 1,000 करोड़ रुपये एवं उससे अधिक है, या जिनकी कुल संपत्ति 500 करोड़ रुपये एवं उससे अधिक, या उनका शुद्ध लाभ 5 करोड़ रुपये एवं उससे अधिक है।
    • अधिनियम में कंपनियों द्वारा एक CSR समिति गठित करना आवश्यक बनाया गया है जो निदेशक मंडल को एक कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व नीति की सिफ़ारिश करेगी और समय-समय पर उसकी निगरानी भी करेगी।

CSR श्रेणी के अंतर्गत कौन-सी गतिविधियाँ शामिल हैं?

  • कंपनी अधिनियम 2013 की अनुसूची VII के तहत निर्दिष्ट कुछ प्रमुख गतिविधियों में शामिल हैं:
    • भूख, गरीबी एवं कुपोषण का उन्मूलन करना और शिक्षा, लैंगिक समानता को बढ़ावा देना।
    • एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम (एड्स), ह्यूमन इम्यूनोडेफिसिएंसी वायरस और अन्य विकारों से लड़ना
    • पर्यावरणीय संवहनीयता सुनिश्चित करना
    • राष्ट्रीय विरासत, कला एवं संस्कृति का संरक्षण, जिसमें ऐतिहासिक महत्त्व के भवनों एवं स्थलों तथा कलाकृतियों का पुनरुद्धार शामिल है
    • पूर्व सैनिकों, युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की विधवाओं और उनके आश्रितों के लाभ के उपाय करना
    • ग्रामीण खेलों, राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त खेलों, पैरालंपिक खेलों और ओलंपिक खेलों को बढ़ावा देने के लिये प्रशिक्षण
    • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष या केंद्र सरकार द्वारा स्थापित किसी अन्य कोष में योगदान करना।

भारत में CSR पहलों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • CSR एजेंसियों के बीच सर्वसम्मति का अभाव: भारत में CSR प्रक्रियाओं को संगठित करने वाले और उनमें योगदान करने वाले संगठनों के बीच सर्वसम्मति का अभाव है।
    • इससे समाज के लिये व्यावसायिक घरानों द्वारा आयोजित CSR कार्यक्रमों के दोहराव की स्थिति बनती है।
  • सामुदायिक भागीदारी का अभाव: कंपनियों की कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व गतिविधियों में भागीदारी को लेकर स्थानीय समुदाय की रुचि की कमी देखी गई है।
    • यह काफी हद तक इस तथ्य के कारण है कि स्थानीय समुदायों के भीतर कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के बारे में बहुत कम या कोई जागरूकता मौजूद नहीं है।
  • CSR बारे में स्पष्ट दिशानिर्देश का अभाव: भारत में CSR के बारे में कोई स्पष्ट सिद्धांत एवं निर्देश मौजूद नहीं हैं और स्पष्ट वैधानिक दिशानिर्देशों की कमी के कारण CSR का स्तर संगठनों के आकार पर निर्भर करता है, जिसका अर्थ है कि जितना बड़ा संगठन होता है, उतना ही बड़ा उनका CSR कार्यक्रम होता है।
    • इस क्षेत्र में योगदान की इच्छा रखने वाले छोटे संगठनों के लिये बाधा भी मौजूद है।
  • पारदर्शिता की कमी: समयबद्ध ऑडिट की कमी के कारण, भारत में कई कंपनियाँ CSR गतिविधियों के बारे में सूचना (जैसे कि परियोजना के लिये उपयोग की गई धनराशि, CSR पहलों की सूची एवं अन्य आकलन) का खुलासा नहीं करती हैं।
    • इसके कारण ये कंपनियाँ समाज के साथ आत्मीयता और जुड़ाव की भावना का निर्माण करने में विफल रहती हैं।
  • कॉर्पोरेट-एनजीओ संपर्क का अभाव: चूँकि भारत में गैर-सरकारी संस्थाओं (NGOs) की एक बड़ी संख्या मान्यता प्राप्त नहीं है, कॉर्पोरेट्स के पास विकल्पों की कमी है और इसलिये सीमित लाभ उपलब्ध हो पाते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, कॉर्पोरेट प्रायः CSR के मुख्य उद्देश्य को साकार न करते हुए दृश्यता और ब्रांड पहचान हासिल करने के लिये गैर-सरकारी संगठनों को आंशिक रूप से निधि प्रदान कर देते हैं।

आगे की राह

  • CSR के माध्यम से सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना: भारत ने सतत् विकास लक्ष्यों को प्राथमिकता देने और उन्हें प्राप्त करने के लिये गंभीर प्रयास किया है। नीति आयोग ने भी इसे राष्ट्रीय एजेंडे की मुख्यधारा में शामिल किया है। यह उपयुक्त समय है कि CSR और SDGs को एक साझा छत्र के तहत एकीकृत किया जाए।
    • इस प्रकार भारत हरित और सतत् विकास की ओर आगे बढ़ने के साथ ही CSR जवाबदेही में सुधार ला सकता है।
  • पारदर्शिता बनाए रखना और CSR जागरूकता को बढ़ावा देना: पारदर्शिता, जवाबदेही और संवाद CSR को अधिक भरोसेमंद बनाने और साथ ही अन्य संगठनों के मानकों को आगे बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
    • कंपनियों को उन क्षेत्रों में पर्यावरण पुनरुद्धार को प्राथमिकता देनी चाहिये जहाँ वे कार्यशील होते हैं। उन्हें कम से कम 25% पर्यावरण पुनर्जनन के लिये निर्धारित करना चाहिये।
    • इसके साथ ही, इसकी सफलता के लिये आम लोगों में, विशेषकर दूरदराज के इलाकों या ग्रामों में सक्रिय गैर सरकारी संगठनों के बीच CSR पहल के बारे में जागरूकता फैलाने की भी ज़रूरत है।
  • एकीकृत CSR इंटरफेस: कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय द्वारा केंद्रीकृत एक राष्ट्रीय स्तर का मंच तैयार करने की आवश्यकता है जहाँ सभी राज्य अपनी संभावित CSR-स्वीकार्य परियोजनाओं को सूचीबद्ध कर सकें ताकि कंपनियाँ यह आकलन कर सकें कि उनके CSR फंड भारत भर में कहाँ सबसे अधिक प्रभावशाली सिद्ध होंगे।
    • ‘इंवेस्ट इन इंडिया’ और इंडिया इन्वेस्टमेंट ग्रिड (IIG) में ‘कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी प्रोजेक्ट्स रिपोजिटरी’ ऐसे प्रयासों के लिये मार्गदर्शक के रूप में कार्य कर सकते हैं।
    • इसके साथ ही, एक एकल राष्ट्रीय स्तर की एजेंसी स्थापित करने की आवश्यकता है जो कॉर्पोरेट से वित्तपोषण प्राप्त करने और इसे समयबद्ध एवं कर्तव्यपरायण तरीके से सामाजिक बेहतरी के लिये उपयोग करने के बीच एक नेक्सस की तरह कार्य करे।
  • CSR को सरकारी नीतियों से जोड़ना: CSR को वर्तमान सरकारी नीतियों से संबद्ध किया जा सकता है, विशेषकर ग्रामीण या पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिये।
    • उदाहरण के लिये, सांसद आदर्श ग्राम योजना (SAGY), जहाँ प्रत्येक संसद सदस्य एक ग्राम पंचायत को गोद लेता है और आधारभूत संरचना के समान ही सामाजिक विकास को महत्त्व देते हुए इसकी समग्र प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है।
      • ग्राम पंचायतों के बेहतर संपोषण के लिये इस पहल को CSR से जोड़ा जा सकता है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर: उत्पादों के लिये एंड-ऑफ-लाइफ अवधारणाओं को कंपनी के कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के एक अंग के रूप में उत्पादों के पुनर्चक्रण एवं पुन:प्रयोज्यता हेतु विकासशील प्रौद्योगिकियों एवं विनियमों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये।
    • ऐसा करने से उत्पादों के जीवन चक्र को बढ़ाया जा सकता है, अपव्यय को न्यूनतम किया जा सकता है और प्रदूषण को कम किया जा सकता है। इस तरह भारत एक चक्रीय अर्थव्यवस्था (circular economy) की ओर आगे बढ़ सकता है।
    • सरकार को CSR के क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रहे व्यापारिक घरानों को प्रोत्साहित और पुरस्कृत भी करना चाहिये ताकि उन्हें भारत में CSR के पैमाने को और आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिले।

अभ्यास प्रश्न: कंपनी अधिनियम, 2013 के आलोक में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रमुख मुद्दों और संभावनाओं पर विचार कीजिये?


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2