‘नई दिल्ली- वाशिंगटन डी.सी- बीजिंग’ त्रिकोण
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में नई दिल्ली- वाशिंगटन डी.सी- बीजिंग त्रिकोण व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
पिछले कुछ दिनों से भारत व चीन के मध्य सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव देखा जा रहा है। इस तनाव को दूर करने के लिये दोनों ही देशों के मध्य शांतिपूर्ण वार्ता चल रही है, परंतु इस घटनाक्रम के बीच ही दोनों देश एक-दूसरे पर रणनीतिक बढ़त हासिल करने का प्रयत्न भी कर रहे हैं। इन परिस्थितियों में भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका का समर्थन भी प्राप्त हुआ है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ‘G-7 प्लस’ समूह में भारत को आमंत्रित करना उसके बढ़ते रणनीतिक कद को दर्शाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति का यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और चीन के संबंधों में विभिन्न मुद्दों पर तनाव बना हुआ है, जिसमें हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता, ताइवान से तनाव, COVID-19 की उत्पत्ति, दक्षिण चीन सागर में तनाव और व्यापार जैसे विभिन्न पहलू शामिल हैं।
विभिन्न विशेषज्ञ अमेरिका के इस निर्णय को आगामी भविष्य में चीन की नीतियों से निपटने के लिये सभी पारंपरिक सहयोगियों को एक साथ लाने की योजना के रूप में देख रहे हैं। ऐसे में भारत के लिये भी यह महत्त्वपूर्ण है कि वह बदलती भू-राजनीतिक स्थिति में किस प्रकार अपने हितों को पोषित करता है।
इस आलेख में भारत-चीन विवाद के बिंदु, चीन व अमेरिका के बीच विवाद के कारण, चीन के प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने में भारत व अमेरिका की भूमिका तथा क्वाड की प्रभावकारिता पर विमर्श करने का प्रयास किया जाएगा।
भारत-चीन के मध्य विवाद के बिंदु
- भारत-चीन के मध्य हालिया विवाद का केंद्र अक्साई चिन में स्थित गालवन घाटी (Galwan Valley) है, जिसको लेकर दोनो देशों की सेनाएँ आमने-सामने आ गईं हैं। जहाँ भारत का आरोप है कि गालवन घाटी के किनारे चीनी सेना अवैध रूप से टेंट लगाकर सैनिकों की संख्या में वृद्धि कर रही है, तो वहीं दूसरी ओर चीन का आरोप है कि भारत गालवन घाटी के पास रक्षा संबंधी अवैध निर्माण कर रहा है।
- G-7 समूह के विस्तारीकरण और उसमें भारत की सदस्यता के कारण भी चीन नाखुश नज़र आ रहा है।
- पूर्व में हुए अन्य सीमा विवाद, जैसे- पैंगोंग त्सो मोरीरी झील विवाद-2019, डोकलाम गतिरोध-2017, अरुणाचल प्रदेश में आसफिला क्षेत्र पर हुआ विवाद प्रमुख है।
- परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) में भारत का प्रवेश, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता आदि पर चीन का प्रतिकूल रुख दोनों देशों के मध्य संबंधों को प्रभावित कर रहा है।
- बेल्ट एंड रोड पहल (Belt and Road Initiative) संबंधी विवाद और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China Pakistan Economic Corridor- CPEC) भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता है।
- सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे पर चीन द्वारा पाकिस्तान का बचाव एवं समर्थन।
अमेरिका व चीन के मध्य विवाद का कारण
- अमेरिका व चीन के मध्य हालिया विवाद का कारण COVID-19 संक्रमण व उससे जुड़ी जानकारियाँ छिपाने को लेकर है। दोनों ही देशों ने COVID-19 संक्रमण को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप किये हैं, परिणामस्वरूप उनके मध्य संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं।
- इसके अतिरिक्त, विगत वर्ष हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र के समर्थकों के प्रति एकजुटता दिखाते हुए अमेरिका ने हॉन्गकॉन्ग मानवाधिकार और लोकतंत्र अधिनियम पारित किया था, जिसके तहत अमेरिकी प्रशासन को इस बात का आकलन करने की शक्ति दी गई है कि हॉन्गकॉन्ग में अशांति की वजह से इसे विशेष क्षेत्र का दर्जा दिया जाना उचित है या नहीं। चीन की सरकार ने हॉन्गकॉन्ग को उसका आंतरिक विषय बताते हुए अमेरिका के इस अधिनियम को चीन की संप्रभुता पर खतरा माना था।
- हाल ही में अमेरिका के 'प्रतिनिधि सभा' (House of Representatives) ने ‘उइगर मानवाधिकार विधेयक’ (Uighur Human Rights Bill) को मंज़ूरी दी है। विधेयक में ट्रंप प्रशासन से चीन के उन शीर्ष अधिकारियों को दंडित करने की मांग की गई है जिनके द्वारा अल्पसंख्यक मुसलमानों को हिरासत में रखा गया है।
कौन हैं उइगर मुस्लिम?
- इस्लाम धर्म को मानने वाले उइगर समुदाय के लोग चीन के सबसे बड़े और पश्चिमी क्षेत्र शिंजियांग प्रांत में रहते हैं।
- तुर्क मूल के उइगर मुसलमानों की इस क्षेत्र में आबादी लगभग 40 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में उनकी आबादी बहुसंख्यक थी। परंतु जब से इस क्षेत्र में चीनी समुदाय हान की संख्या बढ़ी है और सेना की तैनाती हुई है तब से स्थिति बदल गई है और यह समुदाय अल्पसंख्यक स्थिति में आ गया है।
- शिनजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुस्लिम 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' चला रहे हैं जिसका उद्देश्य चीन से अलग होना है।
- वर्ष 2019 में अमेरिका ने चीन की बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनी हुआवे (Huawei) पर जासूसी का आरोप लगाते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया था। अमेरिकी इंटेलिजेंस विभाग का मानना था कि हुआवे द्वारा तैयार किये जा रहे उपकरण देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
उइगर मुस्लिम के मुद्दे पर भारत व अमेरिका का रुख
- अमेरिका का मानना है शिनजियांग में आधुनिक नज़रबंदी के शिविर हैं जहाँ होलोकॉस्ट (बड़े स्तर पर नरसंहार) के बाद इतने बड़े स्तर पर लोगों का दमन किया जा रहा है।
- अनेक लीक हुए दस्तावेज़ों के अनुसार, शिविरों को उच्च सुरक्षा वाली जेलों के रूप में चलाया जा रहा है, जिसमें कठोर अनुशासन, दंड की व्यवस्था है तथा इन शिविरों से किसी को बाहर जाने की अनुमति नहीं है।
- भारत ने पूर्व में चीन की ‘मुस्लिम अल्पसंख्यक नीति’ का खुलकर विरोध नहीं किया, परंतु चीन द्वारा लगातार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की कश्मीर नीति का विरोध करने के परिणामस्वरूप भारत ने अपनी नीति में परिवर्तन करते हुए चीन की ‘मुस्लिम अल्पसंख्यक नीति’ की आलोचना की है।
भारत व अमेरिकी साझेदारी के मायने
- भारत, अमेरिकी समर्थन के माध्यम से अपने हितों को ध्यान में रखते हुए चीन को विभिन्न विवादित मुद्दों पर वार्ता करने के लिये तैयार कर सकता है।
- अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भारत की सीमा में चीनी सेना के प्रवेश करने के मुद्दे को चिंताजनक करार दिया है। चीन द्वारा पूर्व में वैश्विक महामारी के संबंध में जानकारियों को छिपाने तथा अब अपने पड़ोसी देशों की सीमाओं का अतिक्रमण करने के कारण विश्व बिरादरी के सम्मुख अलग-थलग हो गया है।
- भारत को वर्ष 1980 के दशक में चीन के साथ हुई सीमा वार्ता हो या जम्मू और कश्मीर के लोगों को स्टेपल वीज़ा जारी करने की चीन की नीति को बंद करने के लिये दबाव डालना हो, इन सभी मुद्दों पर अमेरिका का समर्थन प्राप्त हुआ।
- इतना ही नहीं वर्ष 2017 में डोकलाम क्षेत्र में भारत व चीन के बीच हुए विवाद में अमेरिका ने भारत का खुला समर्थन किया था।
- भारत-अमेरिकी साझेदारी के माध्यम से चीन को अपनी साम्राज्यवादी नीतियों पर लगाम लगाने के लिये विवश किया जा सकता है।
चिंताएँ
- भारत को चीन के साथ अपने संबंधों को सुधारने की दिशा में अमेरिका सहित अन्य देशों का समर्थन अवश्य प्राप्त करना चाहिये, परंतु किसी भी अन्य देश की मध्यस्थता का प्रस्ताव नहीं स्वीकार करना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से विश्व बिरादरी के समक्ष यह संदेश जाएगा कि भारत द्विपक्षीय मुद्दों के समाधान में स्वयं सक्षम नहीं है।
- भारत को चीन के संबंध में अपनी आक्रामक नीति का प्रयोग सावधानीपूर्वक करना होगा ताकि यह दोनों देशों के मध्य कटुता का कारण न बने।
- द्विपक्षीय संबंधों के निर्धारण में भारत की अमेरिका पर निर्भरता भारत की स्वतंत्र विदेश नीति पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
आगे की राह
- भारत को चीन के साथ अपने संबंधों को सुधारने के लिये द्विपक्षीय वार्ता का विकल्प अपनाना चाहिये।
- सीमाओं को परिभाषित करने के साथ ही उनका सीमांकन और परिसीमन किये जाने की आवश्यकता है ताकि आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के भय को दूर किया जा सके और संबंधों को मज़बूत किया जा सके
- भारत को अमेरिकी समर्थन का उपयोग चीन के विरुद्ध भयादोहन के सिद्धांत का पालन करते हुए अपने संबंधों को सुधारने के लिये करना चाहिये न कि चीन को नीचा दिखाने के लिये।
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अमेरिका व चीन के झगड़े में न पड़ते हुए भारत को अपने सर्वोत्तम हितों को साधने का प्रयास करना चाहिये।
प्रश्न- बदलते वैश्विक परिदृश्य में चीन के विरुद्ध भारत-अमेरिकी साझेदारी का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।