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एडिटोरियल

  • 10 Jan, 2023
  • 12 min read
शासन व्यवस्था

एक सतत् भविष्य के लिये वनों का संरक्षण

यह एडिटोरियल 06/01/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Forests present a unique opportunity for business” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में वनों को व्यापार के साथ संबद्ध किये जाने और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

भारत में वन क्षेत्र देश के कुल भूमि क्षेत्र (वृक्ष आवरण सहित) के लगभग 24.62% को कवर करते हैं और विश्व के कुछ सर्वाधिक जैव विविधता वाले वन क्षेत्रों में शामिल हैं। वे कई महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करते हैं, जैसे मृदा कटाव से संरक्षण, जल चक्र को विनियमित करना और विभिन्न प्रकार के पादपों एवं जंतु प्रजातियों के लिये आवास प्रदान करना। 

लेकिन भारत में वन अवैध कटाई, खनन और कृषि एवं शहरी विकास के लिये भूमि रूपांतरण जैसी विभिन्न गतिविधियों से एक खतरे का भी सामना कर रहे हैं। 

भारत सरकार ने वनों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिये संरक्षित क्षेत्रों के निर्माण और सतत् वन प्रबंधन अभ्यासों को बढ़ावा देने जैसे कई कदम उठाये हैं। 

हालाँकि, इन महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिये और अधिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। 

भारत के लिये वनों का महत्त्व  

  • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ: भारत में वन महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करते हैं, जैसे जल विनियमन, मृदा संरक्षण और कार्बन प्रच्छादन (carbon sequestration)। 
    • उदाहरण के लिये, पश्चिमी घाट के वन दक्षिणी राज्यों के जल चक्र को विनियमित करने और मृदा कटाव से बचाव में मदद करते हैं। 
  • जैव विविधता का केंद्र: भारत विभिन्न प्रकार के पादप एवं जंतु प्रजातियों का घर है, जिनमें से कई केवल भारत के वनों में पाए जाते हैं। 
  • आर्थिक मूल्य: भारत के वन इमारती लकड़ी, गैर-इमारती वन उत्पाद और पर्यटन सहित कई प्रकार के आर्थिक लाभ प्रदान करते हैं। 
  • सांस्कृतिक मूल्य: भारत के वनों का विभिन्न समुदायों के लिये उल्लेखनीय सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्य भी है, जो अपनी आजीविका एवं सांस्कृतिक प्रथाओं के लिये उन पर निर्भर हैं। 

भारत में वनों से संबद्ध प्रमुख मुद्दे:

  • वनों की कटाई और भूमि का क्षरण: भारत में वन अवैध कटाई, खनन और कृषि एवं शहरी विकास के लिये भूमि रूपांतरण जैसी विभिन्न गतिविधियों से खतरे का सामना कर रहे हैं। 
    • इससे वनों की कटाई और भूमि के क्षरण की स्थिति बनी है, जिसका पर्यावरण पर तथा उन समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है जो अपनी आजीविका के लिये वनों पर निर्भर हैं। 
  • जैव विविधता की हानि: वनों की कटाई और वनों को क्षति पहुँचाने वाली अन्य गतिविधियाँ जैव विविधता को भी क्षति पहुँचाती हैं , क्योंकि पादप एवं जंतु प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक पर्यावास में अस्तित्व बनाए रखने में असमर्थ हो जाती हैं। 
    • इसका समग्र रूप से पारिस्थितिकी तंत्र पर और साथ ही इन प्रजातियों पर निर्भर समुदायों की सांस्कृतिक प्रथाओं पर संचयी प्रभाव पड़ सकता है। 
  • जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न वन व्यवधान (जिनमें कीट प्रकोप, जलवायु प्रेरित प्रवासन के कारण आक्रामक प्रजातियों का आगमन, वनाग्नि एवं तूफान आदि शामिल हैं) के कारण वन उत्पादकता में कमी आती है और प्रजातियों के वितरण में परिवर्तन आता है। 
    • वर्ष 2030 तक भारत में 45-64% वन जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के प्रभावों का अनुभव कर रहे होंगे। 
  • सिकुड़ता वन आवरण: भारत की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, पारिस्थितिक स्थिरता बनाए रखने के लिये आदर्श रूप से कुल भौगोलिक क्षेत्र का कम से कम 33% वन क्षेत्र के अंतर्गत होना चाहिये। 
    • लेकिन यह वर्तमान में देश की केवल 24.62% भूमि को ही कवर करता है और तेज़ी से सिकुड़ रहा है। 
  • संसाधन तक पहुँच के लिये संघर्ष: स्थानीय समुदायों के हितों और व्यावसायिक हितों (जैसे फार्मास्यूटिकल उद्योग या लकड़ी उद्योग) के बीच प्रायः संघर्ष की स्थिति बनती है। इससे सामाजिक तनाव और यहाँ तक कि हिंसा की स्थिति भी बन सकती है, क्योंकि विभिन्न समूह वन संसाधनों तक पहुँच एवं उनके उपयोग के लिये संघर्षरत होते हैं। 
  • वन संरक्षण के लिये सरकार की प्रमुख पहलें 

आगे की राह:

  • समुदाय-प्रबंधित वन: समुदाय-प्रबंधित वनों का एक नेटवर्क विकसित करना, जहाँ स्थानीय समुदायों को उनके स्थानीय वनों की सुरक्षा एवं प्रबंधन की ज़िम्मेदारी दी जाती है। 
    • यह स्थानीय लोगों को सशक्त बनाने और वनों के संरक्षण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित कर सकने में मदद कर सकता है। 
    • समुदायों के साथ प्रत्यक्षतः संलग्न होकर अनौपचारिक वन अर्थव्यवस्था को व्यावसायिक लेन-देन में रूपांतरित किया जा सकता है जो निष्पक्ष एवं पारदर्शी होगा और भारत के वनों की स्थायी सुरक्षा, प्रबंधन एवं पुनरुद्धार को प्रोत्साहित करेगा। 
  • चयनात्मक कटाई और पुनर्वनीकरण: चयनात्मक कटाई (selective logging) और पुनर्वनीकरण (reforestation) जैसी संवहनीय वानिकी प्रथाओं को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है ताकि यह सुनिश्चित हो कि वनों का प्रबंधन इस तरह से हो इनके पारिस्थितिक मूल्य को संरक्षित करे। 
  • संरक्षण के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग: रिमोट सेंसिंग एवं GIS जैसी प्रौद्योगिकी का उपयोग वन आवरण की निगरानी करने, वनाग्नि पर नज़र रखने और संरक्षण की आवश्यकता वाले क्षेत्रों की पहचान करने के लिये किया जा सकता है। 
    • इसके अलावा, गैर-अन्वेषित वन क्षेत्रों का संभावित संसाधन मानचित्रण किया जा सकता है और उनके घनत्व एवं स्वास्थ्य को बनाए रखते हुए उन्हें वैज्ञानिक प्रबंधन एवं संवहनीय संसाधन निष्कर्षण के तहत लाया जा सकता है। 
  • समर्पित वन गलियारे: वन्यजीवों के सुरक्षित अंतरा-राज्यीय एवं अंतर-राज्यीय पारगमन के लिये तथा उनके पर्यावास को किसी भी बाह्य प्रभाव से सुरक्षित रखने के लिये समर्पित वन गलियारे (Dedicated Forest Corridors) स्थापित किये जा सकते हैं जो शांतिपूर्ण-सह-अस्तित्व का संदेश देंगे। 
  • वन-आधारित उत्पादों को चिह्नित करना: वन-आधारित उत्पादों के महत्त्व को चिह्नित करना आवश्यक है। वन समुदायों को वन उत्पादों (जैसे साल के बीज, महुआ के फूल या तेंदू के पत्ते) का अच्छा मूल्य प्राप्त होगा तो वे वनाग्नि एवं अन्य खतरों से वनों की रक्षा करने के लिये स्वप्रेरित होंगे। इसके साथ ही कार्बन प्रच्छादन के रूप में एक सह-लाभ भी प्राप्त होगा। 

अभ्यास प्रश्न: भारत में वनों से संबंधित प्रमुख चुनौतियों की चर्चा करें। समकालीन वन संबंधी मुद्दों के प्रबंधन के लिये अभिनव समाधान भी सुझाएँ। 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है? (2021)

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय कार्य मंत्रालय

उत्तर: (d)


प्रश्न:  भारत का एक विशेष राज्य निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त हैः

  1. यह उसी अक्षांश पर स्थित है, जो उत्तरी राजस्थान से होकर जाता है।
  2. इसका 80% से अधिक क्षेत्र वन आवरणन्तर्गत है।
  3. 12% से अधिक वनाच्छादित क्षेत्र इस राज्य के रक्षित  नेटवर्क के रूप में है।

निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा उपर्युक्त सभी विशेषताओं से युक्त है?

(a) अरूणाचल प्रदेश
(b) असम
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) उत्तराखण्ड

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न. ‘‘भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानीकरण है।’’ सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये।(2022)


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