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एडिटोरियल

  • 10 Jan, 2022
  • 7 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीनी अतिक्रमण, भारतीय प्रस्ताव

यह एडिटोरियल 06/01/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘The Chinese challenge uncovers India's fragilities’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत-चीन संबंधों एवं संघर्षों, विशेष रूप से सीमा संघर्ष के संबंध में चर्चा की गई है और आगे की राह सुझाई गई है।

संदर्भ

चीन ने हाल ही अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों का नया नामकरण किया है और इस क्षेत्र पर कथित रूप से अपना ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं प्रशासनिक अधिकार होने का दावा करते हुए इस कदम को सही ठहराया है। इसके अलावा 1 जनवरी, 2022 से चीन का नया भूमि सीमा कानून प्रभावी हो गया है जो पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को ‘‘आक्रमण, अतिक्रमण, घुसपैठ, उकसावे’’ के विरुद्ध कदम उठाने और चीनी क्षेत्र की रक्षा करने का पूर्ण उत्तरदायित्व सौंपता है। इसके साथ ही चीन द्वारा पैंगोंग त्सो झील पर एक पुल का निर्माण किया जा रहा है जबकि इस क्षेत्र पर भारत अपना दावा करता रहा है। ये सभी घटनाक्रम पहले से ही बदतर संबंध के और बिगड़ने के संकेत देते हैं।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने वक्तव्य में कहा कि बीजिंग का यह कदम इस तथ्य को नहीं बदलता कि अरुणाचल प्रदेश (जो स्वयं नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी का पुनर्नामकरण है, जो कि वर्ष 1971 में इसे केंद्रशासित प्रदेश बनाये जाने के अवसर पर किया गया था) भारत का अभिन्न अंग है। इस संदर्भ में यह अनिवार्य है कि भारत और चीन एक प्रभावी सैन्य वापसी प्रक्रिया शुरू करें तथा एक समृद्ध 'एशियाई सदी' के विकास के लिये सीमा संघर्ष की समस्या को दूर करें।

पैंगोंग त्सो झील

पैंगोंग त्सो झील (Pangong Tso Lake) लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश में स्थित है। यह लगभग 4,350 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और दुनिया की सबसे ऊँची खारे पानी की झील है।  लगभग 160 किमी. क्षेत्र में विस्तृत पैंगोंग झील का एक तिहाई हिस्सा भारत के नियंत्रण में है जबकि शेष दो-तिहाई हिस्से पर चीन का नियंत्रण है। 

संबद्ध समस्याएँ

  • युद्ध की संभावना: भारत-चीन के बीच आक्रामक सीमा विवाद और पाकिस्तान के साथ चीन की कूटसंधि तीन परमाणु-सशस्त्र देशों के बीच एक युद्ध को जन्म दे सकता है। 
  • व्यापार पर प्रभाव: दोनों देशों के बीच लगातार विवाद दोनों देशों के आर्थिक व्यापार एवं कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं जो दोनों विकासशील देशों के लिये अच्छा नहीं है। 
  • आर्थिक बाधाएँ: क्षमता निर्माण पर भी एक गंभीर बहस की आवश्यकता है, विशेष रूप से इस तथ्य को देखते हुए कि देश की आर्थिक स्थिति निकट भविष्य में रक्षा बजट में किसी उल्लेखनीय वृद्धि का अवसर नहीं देगी। 

सैन्य वापसी प्रक्रिया से संबद्ध समस्याएँ

  • पिछले वर्ष की घटनाओं ने एक भारी अविश्वास की स्थिति का निर्माण किया है जो एक प्रमुख बाधा बनी हुई है। इसके साथ ही ज़मीनी स्तर पर चीन की कार्रवाइयाँ हमेशा ही उसकी प्रतिबद्धताओं से मेल खाती नज़र नहीं आतीं।
    • चीन की क्षेत्रीय विस्तार की नीति का भारत आलोचना करता रहा है। 
  • इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती निकटता और क्वाड सुरक्षा वार्ता को लेकर चीन चिंता दर्शाता रहता है।  
  • सीमा क्षेत्र की विवादित प्रकृति और दोनों पक्षों के बीच विश्वास की कमी के कारण 'नो पेट्रोलिंग' ज़ोन में किसी भी कथित उल्लंघन के घातक परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं, जैसा कि वर्ष 2020 में गलवान घाटी में देखा गया था।

Aksai-Chin

आगे की राह

  • दोनों पक्षों को भारत-चीन संबंधों के विकास के लिये वुहान और महाबलीपुरम शिखर सम्मेलन से मार्गदर्शन प्राप्त करना चाहिये, जहाँ मतभेदों को विवाद नहीं बनने देने का दृष्टिकोण शामिल था।   
  • सीमा पर तैनात सैन्य बलों को संवाद जारी रखना चाहिये एवं त्वरित रूप से सैन्य वापसी की राह पर बढ़ना चाहिये, उचित दूरी बनाए रखते हुए और तनाव कम करना चाहिये।
  • चीन-भारत सीमा मामलों पर दोनों पक्षों को सभी मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिये और ऐसी किसी भी कार्रवाई से बचना चाहिये जिससे तनाव बढ़ सकता है। 
  • विशेष प्रतिनिधि तंत्र के माध्यम से संवाद और सीमा मामलों पर परामर्श एवं समन्वय के लिये कार्यतंत्र की बैठकों का आयोजन जारी रखना चाहिए।
    • ‘सीमा संबंधी प्रश्न पर विशेष प्रतिनिधिमंडल’ (Special Representatives on the Boundary Question) वर्ष 2003 में स्थापित किया गया था। यह किसी चुनौतीपूर्ण परिदृश्य में सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है।  
  • इसके साथ ही नए विश्वास-बहाली उपायों के लिये समवेत प्रयास करना होगा।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘एक समृद्ध 'एशियाई सदी' के विकास के लिये यह अत्यंत आवश्यक है कि भारत एवं चीन एक प्रभावी सैन्य वापसी प्रक्रिया शुरू करें और सीमा संघर्ष के मुद्दे को हल करें।’’ टिप्पणी कीजिये।


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