भारतीय विरासत और संस्कृति
सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
यह एडिटोरियल 01/03/2023 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “A thumbs down for the ‘Adopt a Heritage’ scheme” लेख पर आधारित है। इसमें ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज’ योजना से जुड़े मुद्दों और भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिये आवश्यक उपायों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
फरवरी 2023 में सरकार ने घोषणा की कि वह 1000 से अधिक स्मारकों को निजी क्षेत्र को सौंपने जा रही है जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के नियंत्रण में इनके रखरखाव का कार्य करेंगी।
- भारत सरकार ने 'एडॉप्ट ए हेरिटेज' योजना का एक नया संस्करण लॉन्च किया है। यह निजी कंपनियों, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और अन्य फर्मों को राज्य के स्वामित्व वाले पुरातात्विक स्थलों एवं स्मारकों को गोद लेने और इनका रखरखाव करने के लिये प्रोत्साहित करने पर लक्षित है। सरकार के साथ ऐसे समझौतों में शामिल होने वाले व्यवसायों को ‘स्मारक मित्र’ के रूप में जाना जाएगा।
- सरकार द्वारा 15 अगस्त, 2023 तक 500 संरक्षित स्थलों को और उसके बाद शीघ्र ही 500 अन्य स्थलों को गोद देने का लक्ष्य रखा गया है। यह वर्ष 2017 में शुरू की गई मूल ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज’ योजना के दायरे में लाए गए स्थलों की संख्या में दस गुना वृद्धि को प्रदर्शित करेगा।
- हालाँकि ‘संशोधित’ योजना में कुछ गंभीर दोष मौजूद हैं और देश की मूल्यवान बहुलतावादी विरासत विलुप्त होने का खतरा रखती है।
- 'एडॉप्ट ए हेरिटेज' योजना के संबंध में ऐतिहासिक संरक्षण, समुदाय, यातायात, पर्यटन और कॉर्पोरेट हितों सहित कई चिंताएँ व्यक्त की गई हैं जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है।
‘एडॉप्ट ए हेरिटेज’ योजना से जुड़े मुद्दे
- विशेषज्ञता की कमी:
- विरासत संरक्षण में विशेषज्ञता नहीं रखने वाले व्यवसायों को विरासत स्थलों के रखरखाव की अनुमति देने से उनके ऐतिहासिक महत्त्व के खोने और भारत के अतीत के भ्रामक प्रस्तुतीकरण का जोखिम उत्पन्न हो सकता है।
- उदाहरण के लिये, मोरबी (गुजरात) में एक औपनिवेशिक युग के पुल के रखरखाव का कार्य ब्रिज इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता नहीं रखने वाली एक घड़ी कंपनी को सौंपा गया था जिसने संभवतः पुल के ढहने की दिल दहला देने वाली त्रासदी जैसा परिणाम दिया।
- ASI के कार्य-दायित्व को कमतर करना:
- यह योजना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को दरकिनार करती है और ‘सारनाथ पहल’— जो खुदाई की गई वस्तुओं को सुरक्षित रखने एवं आगंतुकों के समक्ष उन्हें आकर्षक तरीके से पेश करने के दिशानिर्देश प्रदान करती है, की अवहेलना करती है।
- अवसंरचना का दोहराव:
- योजना के लिये चुने गए कुछ स्मारकों में पहले से ही पर्यटक अवसंरचना तंत्र मौजूद है, जो फिर नए टिकट कार्यालयों और उपहार की दुकानों की आवश्यकता पर सवाल उठाता है।
- घटते सार्वजनिक स्थल:
- यह योजना व्यवसायों को प्रमुख सार्वजनिक भूमि पर कब्जा करने और अपने ब्रांड का निर्माण करने की अनुमति देती है, जो प्रतिष्ठित स्मारकों के आसपास उपलब्ध भूमि को और कम कर सकती है।
- स्थानीय समुदायों को कमज़ोर करना:
- यह योजना ऐतिहासिक स्थलों के साथ स्थानीय समुदायों के संबंधों को कमज़ोर कर सकती है और उन स्थलों के आसपास रहने वाले लोगों की आजीविका को खतरे में डाल सकती है जो उनके वैभवपूर्ण अतीत के किस्सों के साथ आगंतुकों का मनोरंजन कर अपना जीवनयापन करते हैं।
- ऐतिहासिक चरित्र में परिवर्तन:
- योजना के लिये चुने गए कुछ स्मारक ASI द्वारा संरक्षित नहीं हैं और व्यवसाय बिना अधिक विरोध के इनके ऐतिहासिक चरित्र को बदलने में सक्षम हो सकते हैं।
- स्मारकों के होटलों में परिवर्तित होने का जोखिम:
- यदि स्मारकों को पूर्व-निर्धारित समय सीमा में स्मारक मित्रों द्वारा गोद नहीं लिया जाता है तो उनके ऐतिहासिक संरक्षण पर पर्यटन और कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता देते हुए उन्हें होटलों में भी परिवर्तित किया जा सकता है।
- मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने ऐसे कुछ स्मारकों को होटल में रूपांतरित करने के लिये पर्यटन विभाग को सौंपना शुरू भी कर दिया है। इनमें चुनार का क़िला, बरवासागर झील के पास स्थित एक दुर्ग और अवध के नवाबों द्वारा निर्मित कई आवास शामिल हैं।
भारत में विरासत संरक्षण से संबद्ध अन्य मुद्दे
- सीमित प्रशिक्षित जनशक्ति:
- सरकारी एजेंसियों के पास सीमित संसाधन उपलब्ध हो सकते हैं, विशेष रूप से प्रयोगात्मक और संख्यात्मक सुविधाएँ, जो उन्हें संरचनात्मक सुरक्षा अनुसंधान एवं विकास से अवरुद्ध करती हैं।
- विरासत संरक्षण को प्रमुख करियर विकल्प के रूप में पेश करने और कौशल प्रदान करने के प्रयासों की कमी संस्थागत स्तर पर एक विकट चुनौती बनी हुई है।
- अवसंरचनात्मक कमियाँ:
- आधुनिक इंजीनियरिंग शिक्षा और निर्माण सामग्री एवं अभ्यासों के पारंपरिक ज्ञान के बीच अभिसरण की कमी है; यह विरासत संरक्षण के लिये एक गंभीर बाधा है।
- तंत्रों का अनौपचारीकरण:
- ऐसे औपचारिक तंत्र भारत में अनुपस्थित हैं जो मरम्मत या सुदृढ़ीकरण रणनीति के चयन से पहले अवशिष्ट क्षमता के निदान और मात्रात्मक मूल्यांकन के लिये वैज्ञानिक उपकरणों के उपयोग की आवश्यकता को चिह्नित करते हैं।
- भारत में विरासत संरचनाओं का एक बड़ा भंडार मौजूद है, जिसे उनकी संरचनात्मक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक औपचारिक मंच के माध्यम से संबोधित किया जाना आवश्यक है।
- जागरूकता की कमी:
- घरेलू आगंतुकों में नागरिक भावना की व्यापक कमी पाई जाती है, जो ऐतिहासिक स्मारकों पर नाम लिखकर या गंदगी फैलाकर उन्हें खराब करते हैं।
- पर्यावरण प्रदूषण:
- कई प्रकार के पर्यावरण प्रदूषण मौजूद हैं जो विरासत स्मारकों को नष्ट करते हैं। उदाहरण के लिये, मथुरा में तेल रिफाइनरी द्वारा उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड आदि प्रदूषकों से ताजमहल बुरी तरह प्रभावित हुआ था।
- धन की कमी:
- सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये धन की कमी प्रमुख चुनौती बनी रही है। विरासत के संरक्षण और परिरक्षण पर सरकारी प्राधिकार द्वारा पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है।
- उत्खनन और अन्वेषण का पुराना पड़ चुका तंत्र:
- अन्वेषण में अभी भी पुरातन तंत्रों का उपयोग जारी है और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) एवं रिमोट सेंसिंग का शायद ही कभी उपयोग किया जाता है।
- इसके साथ ही, शहरी विरासत परियोजनाओं से संलग्न स्थानीय निकाय प्रायः विरासत संरक्षण के प्रबंधन के लिये पर्याप्त रूप से सुसज्जित नहीं होते हैं।
- अन्वेषण में अभी भी पुरातन तंत्रों का उपयोग जारी है और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) एवं रिमोट सेंसिंग का शायद ही कभी उपयोग किया जाता है।
आगे की राह
- नागरिकों को जागरूक करना:
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) फंड को इतिहास और स्मारकों पर उच्च गुणवत्तापूर्ण पाठ्यपुस्तकों के शोध, लेखन एवं प्रकाशन के साथ-साथ नवीन शिक्षण विधियों के विकास के लिये निर्धारित किया जा सकता है।
- यह दृष्टिकोण नागरिकों को स्मारकों के महत्त्व के बारे में शिक्षित करने और उनके संरक्षण को बढ़ावा देने में प्रभावी सिद्ध हो सकता है।
- पुणे स्थित भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट जैसे संगठनों को सुधा मूर्ति और एन.आर. नारायण मूर्ति द्वारा मदद दी गई है ताकि इतिहास लेखन के अपने मिशन को जारी रखने के लिये वे टेक्स्ट रिकॉर्ड और पुरातात्विक साक्ष्य को तर्कसंगत रूप से समन्वित कर सकें। अन्य कॉर्पोरेट भी इससे प्रेरणा ग्रहण करते हुए हाथ आगे बढ़ा सकते हैं।
- व्यापारियों को धन दान करने के लिये प्रोत्साहित करना:
- व्यापारियों और दुकानदारों को स्थानीय स्मारकों से संबंधित अभिलेखीय सामग्री (जैसे किताबें, नक्शे और पुरानी तस्वीरों) को इकट्ठा करने के लिये स्कूल पुस्तकालयों को धन दान करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- यह दृष्टिकोण छात्रों को ऐतिहासिक संसाधनों तक पहुँच प्रदान करने और छात्र समुदाय में स्मारकों के महत्त्व की सराहना करने में मदद करने का एक प्रभावी तरीका सिद्ध हो सकता है।
- उपकरण खरीद के लिये CSR फंड का उपयोग करना:
- ऐसे उपकरणों की खरीद के लिये CSR फंड का उपयोग किया जा सकता है जो प्रदूषण कम करते हैं और ऐतिहासिक भवनों की सुरक्षा में योगदान करते हैं।
- यह दृष्टिकोण विरासत भवनों को संरक्षित करने और उनके क्षय को रोकने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है।
- अतीत में, टाटा संस, तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) और अन्य कंपनियों ने नियमित रूप से उन संगठनों को धन प्रदान किया है जो लोगों को पुनरुद्धार कौशल (Restoration Skills) में प्रशिक्षण देते हैं और उनके लिये रोज़गार सृजित करते हैं।
अभ्यास प्रश्न: संरक्षण प्रयासों के साथ पहुँच और पर्यटन की आवश्यकता को संतुलित करते हुए सांस्कृतिक विरासत स्थलों और कलाकृतियों को प्रभावी ढंग से संरक्षित एवं परिरक्षित करने के लिये भारत कौन-से उपाय कर सकता है?
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मुख्य परीक्षाप्रश्न.1 भारतीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना इस समय की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (वर्ष 2018) प्रश्न.2 भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारत में स्मारकों और उनकी कलात्मकता की कल्पना करने और उन्हें आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चर्चा कीजिये। (वर्ष 2020) |