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एडिटोरियल

  • 07 Jun, 2022
  • 12 min read
कृषि

अर्बन और पेरी-अर्बन कृषि

यह एडिटोरियल 04/06/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “The Farm in The City” लेख पर आधारित है। इसमें ‘अर्बन और पेरी-अर्बन कृषि’ (UPA) के महत्त्व और इसके प्रोत्साहन के लिये किये जा सकने वाले उपायों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

समय-पूर्व और चिलचिलाती गर्मी पूरे भारत में, विशेष रूप से शहरों में जनजीवन को कष्टप्रद बना रही है। बढ़ते तापमान स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं, कृषि उत्पादन में गिरावट आ रही है और नदियाँ सूख रही हैं।

  • जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम, विशेष रूप से जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में पहले से कहीं अधिक चरमता से महसूस किये जा रहे हैं। ‘अर्बन हीट आइलैंड इफ़ेक्ट’ और मुख्यतः अव्यवस्थित शहरीकरण जैसे कारणों से भारतीय शहर भी चरम ताप का असर भोग रहे हैं।
  • वर्तमान संदर्भ और भविष्य की अत्यावश्यकताओं को देखते हुए यह उपयुक्त अवसर है कि शहरी भूमि-उपयोग योजना (Urban Land-Use Planning- ULP)—विशेष रूप से ‘अर्बन और पेरी-अर्बन कृषि’ (Urban And Peri-Urban Agriculture- UPA) से संवहनीय शहरीकरण (Sustainable Urbanisation) के आवश्यक तत्वों में से एक के रूप में गंभीरता से संलग्न हुआ जाए।

अर्बन और पेरी-अर्बन कृषि (UPA) के बारे में:

  • अर्बन या शहरी कृषि (Urban Agriculture) शहरी क्षेत्रों में या उसके आसपास खाद्य पदार्थों की खेती, प्रसंस्करण और वितरण का अभ्यास है। यह खाद्य सुरक्षा के प्रमुख आयामों को संबोधित कर सकता है।
    • शहरी कृषि की गतिविधियों में पादप उत्पादन और पशुपालन शामिल है। इसके अंतर्गत जलीय कृषि एवं मधुमक्खी पालन, खाद्य उत्पादों का उत्पादन, प्रसंस्करण एवं वितरण, सुगंधित एवं औषधीय जड़ी-बूटियों से गैर-खाद्य उत्पादन आदि गतिविधियाँ शामिल हैं।
  • पेरी-अर्बन कृषि (Peri-Urban Agriculture) विश्व भर के शहरों की सीमाओं/परिधि के आसपास की जाती है।
  • इसमें फसल एवं पशुधन कृषि, मत्स्य पालन एवं वानिकी और गैर-लकड़ी वन उत्पादों के साथ-साथ कृषि, मत्स्य पालन और वानिकी द्वारा प्रदान की जाने वाली पारिस्थितिक सेवाएँ शामिल हैं।
  • प्रायः एक ही शहर में और उसके आस-पास कई खेती और बागवानी प्रणालियाँ मौजूद होती हैं।

UPA को अपनाने में भारत कितना सक्रिय रहा है?

  • तीव्र शहरीकरण, औद्योगीकरण और शहरी भूमि पर पूंजी निवेश के साथ हरित क्षेत्रों को विकासयोग्य क्षेत्रों में परिवर्तित किया जा रहा है। कृषि, जो मुख्यतः ग्रामीण अभ्यास से संबद्ध है, शहरी नियोजन सुधारों में शायद ही कोई उल्लेख पाती है।
    • हालाँकि भारत के ‘शहरी और क्षेत्रीय विकास योजना निर्माण और कार्यान्वयन’ (Urban and Regional Development Plans Formulations and Implementation- URDPFI) दिशा-निर्देश शहर की योजना तैयार करते समय कृषि पर भी विचार करने का उल्लेख करते हैं, लेकिन शहर नियोजन में कृषि के समावेशन के लिये कोई विशेष पेशकश नहीं की गई है।
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on Climate) के आठ मिशनों में से एक ‘ग्रीन इंडिया मिशन’ भी है, जिसका उद्देश्य शहरों में वन एवं वृक्षों के आवरण को बढ़ाना, निम्नीकृत भूमि को पुनर्बहाल करना और कृषि-वानिकी को बढ़ावा देना है।

UPA महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) UPA को निम्नलिखित विषयों में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता के रूप में चिह्नित करता है:
    • खाद्य सुरक्षा
    • आजीविका सृजन (विशेष रूप से महिलाओं के लिये)
    • निर्धनता उन्मूलन
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति शहरों की प्रत्यास्थता को सुदृढ़ करना।
  • शहरी क्षेत्रों में पहले ही दुनिया की कम से कम 55% आबादी का वास है और वे वैश्विक स्तर पर उत्पादित खाद्य के 80% का उपभोग करते हैं, इस प्रकार UPA को संवहनीय खाद्य प्रणालियों की प्राप्ति की कुंजी के रूप में रेखांकित किया गया है।
    • नागरिकों और सरकारों के बीच एकसमान रूप से मान्यता बढ़ रही है कि शहरी खेती और बागवानी एक महत्त्वपूर्ण ‘आघात अवशोषक’ बन सकती है और एक अधिक प्रत्यास्थी शहरी खाद्य प्रणाली की हमारी पुनर्कल्पना में इसे केंद्रबिंदु में होना चाहिये।
  • उच्च जनसंख्या घनत्व, महँगे आवास, प्रदूषण, कुछ स्थानों पर जल की कमी तो कहीं बाढ़ की समस्या, शहरी निर्धनता आदि से पीड़ित शहर ‘सभी के लिये अवसरों के साथ संवहनीय जीवन के केंद्र’ (Centres of Sustainable Living with Opportunities for All) बनने के स्वप्न से बहुत दूर हैं।
    • शहरी नियोजन में आमूलचूल परिवर्तन की गंभीर आवश्यकता का पालन करते हुए UPA संवहनीय शहरीकरण के आवश्यक तत्वों में से एक के रूप में अपनी सुदृढ़ स्थिति रखती है।

UPA से संबद्ध चुनौतियाँ

  • शहरी परिवेश में कुछ बाधाएँ और समस्याएँ मौजूद हैं जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है ताकि UPA को सफल बनाया जा सके।
  • जल एवं अन्य उत्पादक संसाधनों तक पहुँच का अभाव, भूमि के लिये प्रतिस्पर्द्धा और काश्तकारी अधिकारों से संबंधित मुद्दों जैसी चुनौतियाँ भी मौजूद हैं।
  • अपशिष्ट जल एवं जैविक सामग्री के उपयोग और बीमारियों एवं संदूषण के प्रसार के जोखिम के संबंध में खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ पाई जाती हैं।
  • शहरी योजनाकारों को शहरी विकास में कृषि गतिविधियों के एकीकरण के लिये तकनीकी मार्गदर्शन की भी आवश्यकता होगी और उन्हें शहरी सतत उत्पादन प्रणालियों पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाना आवश्यक है।

UPA को बढ़ावा देने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • पर्यावरणीय मानदंडों का पालन करना: शहरी भूमि-उपयोग योजना (ULP) को अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता के आकलन को प्राथमिकता देनी चाहिये, इसके लिये अवसंरचना का निर्माण करना चाहिये और इस क्षमता के लिये औद्योगिक प्रतिष्ठानों को विनियमित करना चाहिये।
    • प्रायः धन की कमी झेलते शहरी प्रशासन के लिये और पर्यावरण मानदंडों के उल्लंघन को रोकने के लिये वित्तीय आदानों और विनियमों के प्रवर्तन हेतु पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति आवश्यक होगी।
    • UPA पर तत्काल ध्यान देने और सक्षम समर्थन के साथ इसे ULP में शामिल करने से शहरी खाद्य सुरक्षा और यहाँ तक कि एक ‘सर्कुलर बायोइकोनॉमी’ हासिल करने में पर्याप्त मदद मिलेगी।
  • समावेशी विकास और कौशल विकास: प्रत्यास्थी और परिवर्तनकारी खाद्य प्रणाली की योजना में कमज़ोर समूहों को एकीकृत किये बिना केवल क्षमतावान लोगों के बीच शहरी बागवानी की पैरवी करने का सीमित प्रभाव ही उत्पन्न होगा।
    • इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि इस शहरी नियोजन में निम्न आय समूहों के लिये कौशल विकास कार्यक्रमों को शामिल किया जाना चाहिये ताकि उन्हें बागवानी, खाद्य प्रसंस्करण और खुदरा एवं विपणन क्षेत्र में आजीविका के अवसर प्रदान किये जा सकें।
    • उम्मीद यह है कि शहरी निर्धनों की क्षमता को सुदृढ़ करते हुए एक संवहनीय स्थानीय खाद्य उत्पादन-वितरण प्रणाली का निर्माण किया जाए।
  • स्थानीय स्तर पर पहल: शहरी योजनाकारों और लैंडस्केप आर्किटेक्ट जैसे पेशेवरों को चाहिये कि उपलब्ध सार्वजनिक स्थानों का प्रभावी ढंग से उपयोग करें और नागरिकों को प्रकृति के उपहार का आनंद लेने का अवसर प्रदान करें। इससे स्थानीय निकायों के लिये आय का सृजन होगा और यह शहरी कृषि-पर्यटन को भी आकर्षित करेगा।
    • आरंभ में सार्वजनिक संस्थानों और कार्यस्थलों (विशेष रूप से जो आवासीय सेवाएँ प्रदान करते हैं) को अपने परिसर में एक हरित कोना का निर्माण करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है, जहाँ वे ऐसी हरी वनस्पतियाँ उगाएँ जिनका निवासियों द्वारा नियमित रूप से उपभोग किया जाता है।
    • छोटे उत्पादकों का समुदाय भी इस तरह की पहल को सफल बनाने के लिये पारिस्थितिक ज्ञान और वस्तु विनिमय उत्पादों का आदान-प्रदान कर सकता है। शहर में पलते-बढ़ते बच्चों के लिये ऐसे स्थान पर्यावरण-सांस्कृतिक अधिगम के अवसर भी प्रदान करेंगे।
  • पेरी-अर्बन क्षेत्रों का शासन: पेरी-अर्बन क्षेत्रों के अधिक प्रभावी शासन के लिये अनुशंसाओं में शामिल हैं:
    • पेरी-अर्बन क्षेत्रों के लिये योजना निर्माण;
    • एक तर्कसंगत क्षेत्रीय भूमि उपयोग पैटर्न प्रदान करना;
    • एक प्रभावी नियामक व्यवस्था तैयार करना;
    • महानगर योजना समितियों (MPCs) का गठन ;
    • किफायती आवास, बुनियादी सेवाओं, क्षेत्रीय परिवहन गलियारे और सुविधाओं का प्रावधान; और
    • जनगणना कस्बों सहित ग्रामीण बस्तियों/विकास केंद्रों का एक समूह विकसित करना।

अभ्यास प्रश्न: "मौजूदा आवश्यकताएँ संवहनीय शहरीकरण के आवश्यक तत्वों में से एक के रूप में ‘अर्बन और पेरी-अर्बन कृषि’ (UPA) को संलग्न करने का उपयुक्त अवसर प्रदान करती हैं।’’ चर्चा कीजिये।


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