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एडिटोरियल

  • 05 Jun, 2023
  • 16 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्रीन जीडीपी

यह एडिटोरियल दिनांक 01/06/2023 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘The building blocks for working out green GDP’’ लेख पर आधारित है। इसमें ग्रीन जीडीपी एवं ग्रीन नेशनल अकाउंट और उनके महत्त्व एवं चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

बढ़ती पर्यावरण संबंधी चिंताओं को देखते हुए हरित राष्ट्रीय लेखाओं (Green National Account) की मांग शुरू हुई है जो पर्यावरणीय स्वास्थ्य की स्थिति और इसके पारंपरिक राष्ट्रीय लेखाओं में समाज द्वारा इसके उपयोग एवं इसमें कमी को उजागर करते हैं।

हरित सकल घरेलू उत्पाद या ग्रीन जीडीपी (Green GDP) में पर्यावरण के लिये लाभप्रद एवं हानिकारक, दोनों तरह के उत्पादों और उनके सामाजिक मूल्य का लेखा-जोखा होना चाहिये। यह उत्पादों के पर्यावरणीय प्रभाव के आधार पर उनके वर्गीकरण तथा सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के आपूर्ति एवं उपयोग तालिका का प्रयोग कर डेटा संग्रहण एवं विश्लेषण की एक पद्धति का भी प्रस्ताव करता है।

पारंपरिक सकल घरेलू उत्पाद में हरित लेखाओं को शामिल करने के लिये उत्पादन, उपभोग और धन की परिभाषा के विस्तार की आवश्यकता है। पर्यावरण की दृष्टि से लाभकारी और हानिकारक, दोनों तरह के उत्पादों को राष्ट्रीय लेखाओं में शामिल किया जाना चाहिये। ऐसे उत्पादों का सामाजिक मूल्य संबंधित आर्थिक गतिविधियों के साथ एकीकृत होना चाहिये।

ग्रीन जीडीपी और ग्रीन नेशनल अकाउंट

  • ग्रीन जीडीपी और ग्रीन नेशनल अकाउंट ऐसी अवधारणाएँ हैं जो पर्यावरणीय लागत एवं लाभों को ध्यान में रखते हुए किसी देश के आर्थिक प्रदर्शन की गणना या मापन का प्रयास करती हैं।
  • ग्रीन जीडीपी: ग्रीन जीडीपी एक संकेतक है जो किसी देश के पारंपरिक जीडीपी से प्राकृतिक संसाधनों की कमी और पर्यावरणीय क्षति की लागत का घटाव करता है। इसे पर्यावरणीय रूप से समायोजित घरेलू उत्पाद (environmentally adjusted domestic product) के रूप में भी जाना जाता है। ग्रीन जीडीपी दर्शा सकता है कि किसी देश का आर्थिक विकास कितना संवहनीय है और यह उसके लोगों की रहन-सहन को कैसे प्रभावित करता है।
  • ग्रीन नेशनल अकाउंट: ग्रीन नेशनल अकाउंट एक ऐसा ढाँचा है जो पर्यावरण संबंधी विचारों को राष्ट्रीय लेखा ढाँचों में एकीकृत करता है। इसका उद्देश्य आर्थिक गतिविधियों से संलग्न पर्यावरणीय लागतों एवं लाभों को मापना और उनका लेखा-जोखा करना है। हरित लेखांकन विधियाँ (Green accounting methods) प्राकृतिक संसाधनों के मूल्य, प्रदूषण एवं पर्यावरणीय क्षति की लागत और पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के लाभों को शामिल करने का प्रयास करती हैं।

पर्यावरणीय लागतों एवं लाभों के कुछ उदाहरण

  • पर्यावरणीय लागतें (Environmental costs) पर्यावरण पर आर्थिक गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों— जैसे प्रदूषण, संसाधनों का घटना, पर्यावास का विनाश, जलवायु परिवर्तन, अपशिष्ट उत्पादन आदि को संदर्भित करती हैं।
  • दूसरी ओर, पर्यावरणीय लाभ पर्यावरण के लिये आर्थिक गतिविधियों के सकारात्मक परिणामों को संदर्भित करते हैं, जिसमें पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ (जैसे खाद्य प्रावधान, जल शोधन एवं जलवायु विनियमन), जैव विविधता संरक्षण, नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण, सतत् कृषि पद्धतियाँ और विभिन्न संरक्षण एवं पुनर्बहाली प्रयास शामिल हैं।

ग्रीन जीडीपी का क्या महत्त्व है?

  • पर्यावरणीय मूल्यांकन (Environmental Valuation): ग्रीन जीडीपी प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिक तंत्र सेवाओं के मूल्यांकन को शामिल करती है, जो आमतौर पर पारंपरिक जीडीपी गणनाओं में बाह्य कारण (externalities) होते हैं। इन पर्यावरणीय कारकों के आर्थिक मूल्य की मात्रा निर्धारित करने से, यह आर्थिक गतिविधियों की वास्तविक लागतों एवं लाभों का अधिक सटीक मापन प्रदान करता है।
  • संवहनीयता (Sustainability): ग्रीन जीडीपी आर्थिक आकलन में पर्यावरणीय कारकों पर स्पष्ट रूप से विचार करते हुए सतत् विकास लक्ष्यों की अवधारणा के साथ संरेखित होती है। यह नीति निर्माताओं को आर्थिक विकास एवं पर्यावरणीय स्थिरता के बीच के समंजन (trade-offs) को बेहतर ढंग से समझने की अनुमति देता है, जिससे अधिक सूचना-संपन्न नीतियों एवं रणनीतियों के निर्माण में सुगमता होती है।
  • नीतिगत प्रासंगिकता (Policy Relevance): ग्रीन जीडीपी आर्थिक प्रदर्शन की एक व्यापक तस्वीर प्रदान करके (पर्यावरणीय आयाम सहित) नीति निर्माताओं को संसाधनों को प्रभावी ढंग से प्राथमिकता प्रदान करने और आवंटित करने में मदद करती है। यह उन क्षेत्रों और गतिविधियों की पहचान करने में सक्षम बनाती है जिनका महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव होता है; यह सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये लक्षित हस्तक्षेपों एवं विनियमों का मार्गदर्शन करती है।
  • संसाधन प्रबंधन (Resource Management): ग्रीन जीडीपी प्राकृतिक संसाधनों की कमी को उजागर करती है और उनके सतत् प्रबंधन को प्रोत्साहित करती है। संसाधनों के आर्थिक मूल्य की पहचान कर, यह उनके संरक्षण एवं कुशल उपयोग को बढ़ावा देती है, जिससे संसाधन आवंटन में सुधार होता है और पर्यावरणीय गिरावट में कमी आती है।

ग्रीन जीडीपी के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • डेटा उपलब्धता और विश्वसनीयता (Data Availability and Reliability): पर्यावरणीय लागत, लाभ और प्राकृतिक संसाधन मूल्य पर अविश्वसनीय डेटा के कारण हरित जीडीपी की गणना करना कठिन है। अनुमान में धारणाएँ एवं व्यक्तिपरक निर्णय शामिल होते हैं, जो विश्वसनीयता एवं तुलनीयता (comparability) को प्रभावित करते हैं।
  • मूल्य समनुदेशन (Value Assignments): पर्यावरणीय वस्तुओं एवं सेवाओं का मौद्रिक संदर्भ में मूल्य निर्धारण एक विवादास्पद विषय रहा है। आलोचकों का तर्क है कि पर्यावरण के कुछ पहलुओं, जैसे कि जैव विविधता या सांस्कृतिक विरासत, का अंतर्निहित मूल्य होता है जिसे आर्थिक मूल्यांकन विधियों द्वारा पर्याप्त रूप से ग्रहण नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण को आर्थिक मूल्य प्रदान करने की प्रक्रिया को अत्यधिक सरलीकरण और वस्तुकरण प्रकृति का माना जा सकता है।
  • जटिलता और संकेतक (Complexity and Indicators): ग्रीन जीडीपी गणना करने के लिये एक कठिन संकेतक है क्योंकि इसमें सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारक शामिल होते हैं। इन कारकों के संयोजन के लिये कोई सहमत तरीका मौजूद नहीं है और सही संकेतक चुनना चुनौतीपूर्ण है।
  • नीति कार्यान्वयन और समंजन (Policy Implementation and Trade-offs): ग्रीन जीडीपी उपयोगी है, लेकिन इसे नीतियों में रूपांतरित करना कठिन हो सकता है। नीतियों की सफलता के लिये हमें सहयोग, राजनीतिक समर्थन और बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करना जटिल है और यह स्थिति के अनुसार बदलता रहता है, इसलिये केवल ग्रीन जीडीपी पर आधारित सार्वभौमिक नीतियाँ बनाना कठिन है।

ग्रीन जीडीपी के कार्यान्वयन के लिये आगे की राह

ग्रीन जीडीपी के कार्यान्वयन के लिये आगे की राह स्पष्ट नहीं है, लेकिन कुछ संभावित कदम निम्नानुसार हो सकते हैं :

  • पर्यावरणीय लागतों एवं लाभों के मापन और उनके मूल्यांकन के लिये एक सामान्य रूपरेखा और कार्यप्रणाली विकसित करना एवं अपनाना, जो सर्वोत्तम उपलब्ध वैज्ञानिक एवं आर्थिक ज्ञान पर आधारित हो। ग्रीन जीडीपी पद्धतियों का परीक्षण एवं परिशोधन करने के लिये पायलट परियोजनाओं एवं केस स्टडी का संचालन करना।
  • पर्यावरणीय संकेतकों, जैसे उत्सर्जन, संसाधन उपयोग, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं आदि पर डेटा की उपलब्धता एवं गुणवत्ता में सुधार करना और देश भर में उनकी निरंतरता एवं तुलनीयता सुनिश्चित करना।
  • नीतिनिर्माताओं, व्यवसायों और आम लोगों के बीच ग्रीन जीडीपी के बारे में जागरूकता एवं समझ को बढ़ावा देना और आर्थिक प्रदर्शन एवं सामाजिक कल्याण के उपाय के रूप में पारंपरिक जीडीपी के ऊपर इसके लाभों को उजागर करना।
  • ग्रीन जीडीपी नीतियों एवं पहलों की अभिकल्पना और कार्यान्वयन में विभिन्न हितधारकों, जैसे सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, नागरिक समाज, शिक्षाविदों और निजी क्षेत्र की भागीदारी एवं सहयोग को प्रोत्साहित करना।
  • आर्थिक विकास एवं पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करने, विभिन्न समूहों एवं क्षेत्रों के बीच समानता एवं न्याय सुनिश्चित करने जैसे हरित जीडीपी लक्ष्यों की दिशा में उत्पन्न होने वाले समंजन/ट्रेड-ऑफ एवं संघर्षों को संबोधित करना।

कौन-से देश ग्रीन जीडीपी का उपयोग करते हैं?

  • चीन: चीन ने वर्ष 2004 में ग्रीन जीडीपी के आँकड़े प्रकाशित करने की योजना बनाई थी, लेकिन एक आरंभिक रिपोर्ट (जिसमें पर्यावरणीय लागत के कारण सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में कमी होना प्रकट हुआ था) के बाद राजनीतिक एवं पद्धति-संबंधी चुनौतियों का सामना करते हुए इसे समाप्त कर दिया।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका ने पर्यावरणीय-आर्थिक लेखाओं की एक व्यापक प्रणाली विकसित की है जो अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण, पर्यावरणीय व्यय और पर्यावरणीय करों के बीच परस्पर क्रियाओं के विभिन्न संकेतक प्रदान करती है। हालाँकि, अमेरिका ग्रीन जीडीपी का कोई भी मापन प्रस्तुत नहीं करता है।
  • यूरोप: अमेरिका के पास पर्यावरणीय-आर्थिक लेखा तो हैं लेकिन कोई ग्रीन जीडीपी मापक नहीं है। यूरोपीय संघ (EU) सदस्य राज्यों के लिये उत्सर्जन, कर, सामग्री और संरक्षण व्यय को कवर करने वाले लेखाओं को संकलित करने को आवश्यक बनाता है, जिसका उपयोग ग्रीन जीडीपी या समायोजित घरेलू उत्पाद प्राप्त करने के लिये किया जा सकता है।
  • स्वीडन: स्वीडन वैश्विक हरित अर्थव्यवस्था सूचकांक (Global Green Economy Index- GGEI) में शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता देशों में से एक है, जो चार आयामों—नेतृत्त्व एवं जलवायु परिवर्तन, दक्षता क्षेत्र, बाज़ार एवं निवेश और पर्यावरण एवं प्राकृतिक पूंजी के आधार पर 130 देशों की हरित अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन का मापन करता है। स्वीडन ने हरित विकास की दिशा में अपनी प्रगति की निगरानी के लिये संकेतकों का एक डैशबोर्ड भी विकसित किया है।
  • भारत: भारत में ग्रीन जीडीपी का आधिकारिक तौर पर मापन या रिपोर्टिंग नहीं की जाती है, लेकिन विभिन्न शोधकर्त्ताओं और संस्थानों द्वारा इसका अनुमान लगाने के कुछ प्रयास किये गए हैं। अक्तूबर 2022 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रकाशित एक पत्र के अनुसार शोधकर्त्ताओं ने अनुमान लगाया कि वर्ष 2019 के लिये भारत की ग्रीन जीडीपी लगभग 167 ट्रिलियन रुपए की थी। यह उसी वर्ष 185.8 ट्रिलियन रुपए के पारंपरिक जीडीपी से 10 प्रतिशत की कमी को प्रकट करता है।

वैश्विक हरित अर्थव्यवस्था सूचकांक

  • वैश्विक हरित अर्थव्यवस्था सूचकांक (GGEI) ‘ड्यूल सिटिज़न’ (Dual Citizen) द्वारा प्रकाशित किया जाता है, जो संवहनीयता के लिये डेटा-संचालित समाधानों में विशेषज्ञ एक कंसल्टेंसी फर्म है।
  • GGEI 160 देशों की हरित अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन का एक पैमाना है।
    • वर्ष 2022 की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत 160 देशों के बीक 60वें स्थान पर है।
  • GGEI में चार आयाम शामिल हैं:
    • जलवायु परिवर्तन एवं सामाजिक समानता
    • सेक्टर डीकार्बोनाइजेशन
    • बाज़ार एवं निवेश
    • पर्यावरणीय स्वास्थ्य।
  • GGEI का उद्देश्य किसी देश के सतत् प्रदर्शन का एक व्यापक एवं पारदर्शी मापन प्रदान करना और नीति निर्माण एवं निवेश निर्णयों को सूचना-संपन्न करना है।

अभ्यास प्रश्न: ग्रीन जीडीपी की अवधारणा और इसके लाभों तथा चुनौतियों के बारे में बताते हुए आगे की राह बताइये।


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