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एडिटोरियल

  • 04 Mar, 2024
  • 23 min read
सामाजिक न्याय

मराठा आरक्षण की मांग

यह एडिटोरियल 29/02/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Strength vs reason: On legislation and reservation to certain social groups” लेख पर आधारित है। इसमें महाराष्ट्र राज्य विधानसभा द्वारा मराठा समुदाय को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण देने के सर्वसम्मत निर्णय पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

मराठा, शिवाजी महाराज, महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये महाराष्ट्र राज्य आरक्षण विधेयक, 2024, क्रीमी लेयर

मेन्स के लिये:

मराठा आरक्षण विधेयक की मुख्य विशेषताएँ, मराठा आरक्षण के पक्ष में तर्क, मराठा आरक्षण के विपक्ष में तर्क।

सेवानिवृत्त न्यायाधीश सुनील बी. शुक्रे के नेतृत्व वाले महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (MSBCC) की एक रिपोर्ट के आधार पर महाराष्ट्र राज्य विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक विधेयक पारित किया जो मराठा समुदाय को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण प्रदान करता है।

एक दशक के समयांतराल में ऐसे विधान निर्माण का यह तीसरा प्रयास है जहाँ मराठों को कोटा प्रदान करने के ऐसे पिछले दो प्रयासों को विधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। इस परिदृश्य में अब अहम सवाल यह है कि क्या सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये महाराष्ट्र राज्य आरक्षण विधेयक, 2024 (Maharashtra State Reservation for Socially and Educationally Backward Classes Bill, 2024) न्यायिक संवीक्षा पर खरा उतर सकेगा।

भारत में मराठा समुदाय के बारे में प्रमुख तथ्य

  • योद्धाओं और शासकों की विरासत: मराठा भारत में एक प्रमुख समुदाय है, जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र राज्य में पाया जाता है। ऐतिहासिक रूप से वे इस क्षेत्र के योद्धा और शासक रहे थे, जो 17वीं शताब्दी में शिवाजी द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य के तहत अपने सैन्य कौशल एवं नेतृत्व के लिये जाने जाते थे। 
  • सामाजिक संरचना: समय के साथ मराठे कृषि, व्यापार एवं राजनीति सहित विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय हुए। जबकि मराठों के ऊपरी वर्ग (देशमुख, भोंसले, मोरे, शिर्के, जाधव आदि) क्षत्रिय हैं, शेष  अन्य मुख्य रूप से कुणबी (Kunbi) नामक कृषक उपजाति से संबंधित हैं।
  • महाराष्ट्र से बाहर प्रभाव: गायकवाड़ (बड़ौदा, गुजरात), सिंधिया (ग्वालियर, मध्य प्रदेश) और भोंसले (तंजावुर, तमिलनाडु) महाराष्ट्र के बाहर बस गए शक्तिशाली मराठा राजवंशों के कुछ उदाहरण हैं।

मराठा आरक्षण विधेयक की मुख्य बातें क्या हैं?

  • मराठा समुदाय के लिये आरक्षण: यह  विधेयक मराठा समुदाय को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में चिह्नित करता है तथा इस वर्ग को सरकारी नौकरियों के लिये भर्ती और सार्वजनिक एवं निजी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के मामले में 10% आरक्षण प्रदान करता है।
    • विधेयक निर्दिष्ट करता है कि मराठा समुदाय के लिये 10% आरक्षण राज्य में मौजूदा अधिनियमों के तहत विभिन्न समुदायों के लिये आरक्षित सीटों के अतिरिक्त होगा।
  • ‘क्रीमी लेयर’: आरक्षण केवल उन्हीं व्यक्तियों के लिये उपलब्ध होगा जो ‘क्रीमी लेयर’ वर्ग में नहीं आते हैं।
    • क्रीमी लेयर का तात्पर्य पारिवारिक आय स्तर जैसे मानदंडों से है, जिसके ऊपर स्थित कोई व्यक्ति आरक्षण का लाभ पाने के लिये पात्र नहीं है।
  • रिक्तियों का आगे उपयोग: यदि कोई आरक्षित सीट किसी वर्ष रिक्त रह जाती है तो इस रिक्ति को अगले पाँच तक के लिये उपयोग किया जा सकता है।
  • जुर्माना: अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के साथ प्राप्त प्रवेश या नियुक्तियाँ अमान्य होंगी।
  • जाति और वैधता प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया: मौजूदा अधिनियमों के तहत जाति प्रमाणपत्र प्रदान करने से संबंधित प्रावधान मराठा समुदाय पर भी लागू होंगे।

मराठा आरक्षण विधेयक का संवैधानिक आधार क्या है?

यह विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342A (3) के तहत मराठा समुदाय को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में निर्दिष्ट करता है। यह संविधान के अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) के तहत इस वर्ग के लिये आरक्षण प्रदान करता है।

  • अनुच्छेद 342A (3) में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य या केंद्रशासित प्रदेश सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBCs) की एक सूची तैयार कर सकता है और उसका प्रयोग कर सकता है। ये सूचियाँ केंद्रीय सूची से भिन्न हो सकती हैं।
  • अनुच्छेद 15(4) राज्य को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिये या अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये विशेष उपबंध करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 15(5) राज्य को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिये या अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये शैक्षणिक संस्थानों (अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर) में प्रवेश के विषय में सीटों के आरक्षण का उपबंध करने में सक्षम बनाता है।
  • अनुच्छेद 16(4) राज्य को नागरिकों के किसी भी ऐसे पिछड़े वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिये उपबंध करने का अधिकार देता है जिसका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।

मराठा आरक्षण के पक्ष में क्या तर्क हैं?

  • विभिन्न समिति एवं आयोगों द्वारा आरक्षण की अनुशंसा:
    • नारायण राणे समिति: वर्ष 2014 में नारायण राणे के नेतृत्व वाली समिति ने चुनावों से पहले मराठों के लिये 16% आरक्षण की अनुशंसा की थी, जिसे बाद में चुनौती दी गई और बॉम्बे हाई कोर्ट न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी।
    • गायकवाड़ आयोग: वर्ष 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने गायकवाड़ आयोग के निष्कर्षों के आधार पर सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग (SEBC) अधिनियम बनाया, जिसके तहत मराठों को 16% आरक्षण प्रदान किया गया।
      • बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे घटाकर शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% कर दिया। बाद में 50% आरक्षण सीमा के उल्लंघन के कारण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे निरस्त कर दिया गया।
    • महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (MSBCC): सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये महाराष्ट्र राज्य आरक्षण विधेयक 2024 को महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया।
      • इस रिपोर्ट ने मराठों को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के रूप में चिह्नित किया और इनके लिये आरक्षण को उचित माना।
      • आयोग की रिपोर्ट में ‘अभूतपूर्व परिस्थितियों एवं असाधारण स्थितियों’ ("exceptional circumstances and extraordinary situations) का हवाला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा से बाहर जाकर मराठा समुदाय के लिये आरक्षण को उचित ठहराया गया।
    • ऐतिहासिक वंचना: मराठों का तर्क है कि महाराष्ट्र में ऐतिहासिक रूप से प्रभुत्वशाली एवं प्रभावशाली समुदाय होने के बावजूद उन्हें शिक्षा, रोज़गार एवं अन्य क्षेत्रों में वंचना का सामना करना पड़ा है। उनका मानना है कि आरक्षण से ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने और समुदाय के उत्थान में मदद करेगी।
      • गायकवाड़ आयोग ने पाया कि 76.86% मराठा परिवार कृषि एवं कृषि मजदूरी से संलग्न थे; लगभग 50% मिट्टी के घरों में रहते थे; केवल 35.39% के पास व्यक्तिगत नल जल कनेक्शन था; 13.42% मराठा निरक्षर थे एवं केवल 35.31% ने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी, जबकि 43.79% ने HSC एवं SSC उत्तीर्ण की थी।
    • आर्थिक असमानताएँ: मराठों की एक उल्लेखनीय संख्या (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) आर्थिक चुनौतियों का सामना करती है और सामाजिक-आर्थिक उन्नति के अवसरों तक पहुँच की कमी रखती है। आरक्षण को उन्हें शिक्षा एवं रोज़गार के अवसरों तक बेहतर पहुँच प्रदान करने के एक साधन के रूप में देखा जाता है।
      • शुक्रे आयोग ने चरम गरीबी, कृषि आय में गिरावट और भूमि जोत में विखंडन को मराठों की कमज़ोर स्थिति का कारण बताया है। आयोग ने यह भी पाया कि राज्य में आत्महत्या से मरने वाले 94% किसान मराठा समुदाय के थे।
    • सार्वजनिक सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: मराठा आरक्षण की मांग शिक्षा एवं रोज़गार तक पहुँच को लेकर उत्पन्न चिंताओं के कारण बढ़ी है, विशेष रूप से प्रतिस्पर्द्धी परीक्षाओं के संबंध में जहाँ सीमित सीटें उपलब्ध हैं।
      • शुक्रे आयोग ने पाया कि सार्वजनिक सेवाओं के सभी क्षेत्रों में मराठा समुदाय का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है और माना कि मराठा अपने पिछड़ेपन के कारण ‘मुख्यधारा से पूरी तरह से बाहर’ रहे हैं।
    • सामाजिक गतिशीलता: मराठों के लिये आरक्षण को समुदाय के भीतर ऊर्ध्वगामी सामाजिक गतिशीलता को सुविधाजनक बनाने के साधन के रूप में देखा गया है, जो वंचित पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को समग्र सामाजिक उन्नति तक पहुँचने में सक्षम बनाएगा।
      • शुक्रे आयोग ने पाया कि राज्य की आबादी में मराठों की हिस्सेदारी 28% है, जबकि उनमें से 84% पिछड़े हुए हैं। आयोग ने माना कि इतने बड़े पिछड़े समुदाय को OBC श्रेणी में नहीं जोड़ा जा सकता और इनके लिये अलग श्रेणी की आवश्यकता है।

मराठा आरक्षण के विपक्ष में क्या तर्क हैं?

  • सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन का अभाव:
    • मराठों को ऐतिहासिक रूप से उल्लेखनीय भूमि स्वामित्व एवं राजनीतिक शक्ति प्राप्त रही थी। आलोचकों का तर्क है कि वे सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े होने के आधार पर आरक्षण के मानदंडों की पूर्ति नहीं करते हैं।
    • मराठों के पास राज्य में 75% से अधिक भूमि के साथ-साथ 86 चीनी कारख़ानों (कुल 105 में से) का स्वामित्व है। इसके अलावा, वे लगभग 55% शैक्षणिक संस्थानों और 70% से अधिक सहकारी निकायों पर नियंत्रण रखते हैं।
    • राजनीतिक क्षेत्र में भी मराठों का वर्चस्व रहा है जहाँ राज्य के 20 मुख्यमंत्रियों में से 11 इसी समुदाय के रहे हैं, जबकि वर्ष 1962 से महाराष्ट्र की विधानसभा के सभी सदस्यों में से 60% से अधिक मराठा समुदाय के रहे हैं।
  • विस्तृत जाँच की आवश्यकता:
    • आयोग ने अपना सर्वेक्षण 9 दिनों की अवधि (23 जनवरी से 31 जनवरी 2024 तक) के भीतर पूरा किया। हालाँकि, चूँकि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है, इसलिये नमूना डिज़ाइन, प्रयुक्त प्रश्नावली या डेटा विश्लेषण के लिये नियोजित पद्धति के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।
    • नवीन विधेयक मराठों को सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग घोषित करता है, लेकिन शुक्रे आयोग की रिपोर्ट से उपलब्ध विवरण मुख्य रूप से समुदाय के आर्थिक पिछड़ेपन को उजागर करते हैं। उनके सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के बारे में लगभग कुछ भी ठोस रूप से उपलब्ध नहीं है।
    • आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट में यह निष्कर्ष दिया गया है कि 84% मराठे ‘क्रीमी लेयर’ की श्रेणी से बाहर हैं, 21.22% मराठा परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं और आत्महत्या करने वाले 94% किसान मराठा हैं। ये तीनों ही विवादास्पद दावे हैं।
  • विधिक चिंताएँ:
    • महाराष्ट्र में वर्तमान में 52% आरक्षण लागू है, जिसमें SC, ST, OBC, विमुक्त जाति, खानाबदोश जनजाति एवं अन्य जैसी विभिन्न श्रेणियाँ शामिल हैं। मराठों के लिये 10% आरक्षण के साथ राज्य में कुल आरक्षण अब 62% तक पहुँच जाएगा।
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की आरक्षण सीमा से अधिक इसे बढ़ाना विधिक चिंताएँ पैदा करता है।
    • उच्च न्यायालयों में कानूनी चुनौतियों और अंततः असफलताओं का सामना करने वाले पिछले मराठा आरक्षण प्रयासों के इतिहास को देखते हुए, नवीन विधेयक की न्यायिक संवीक्षा का सामना कर सकने की क्षमता के बारे में संदेह बना हुआ है, विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय के पिछले निर्णय के आलोक में, जहाँ कोटा के 50% सीमा से अधिक विस्तार को उचित ठहराने वाले अपर्याप्त अनुभवजन्य डेटा के कारण मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया गया था। 
  • कुणबी प्रमाणपत्र विवाद:
    • ‘सगे सोयरे’ (कुनबी वंशावली वाले मराठों के विस्तारित संबंधी) को ‘कुणबी’ के रूप में मान्यता देने (जिससे वे OBC आरक्षण के पात्र बन जाते हैं) का प्रस्ताव करने वाली एक मसौदा अधिसूचना से विवाद उत्पन्न हो गया है।
      • विपक्षी दलों ने नए आरक्षण की व्यवहार्यता और मौजूदा OBC आरक्षण पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में सवाल उठाये हैं।
  • राजनीतिक प्रेरणाएँ:
    • कुछ आलोचक मराठा आरक्षण को आगे बढ़ाने के लिये चुने गए समय और राजनीतिक प्रेरणाओं को लेकर सवाल उठा रहे हैं।
    • उनका तर्क है कि यह निर्णय सामाजिक न्याय के लिये वास्तविक चिंताओं के बजाय चुनावी विचारों से प्रेरित हो सकता है।

आगे की राह 

  • व्यापक सामाजिक-आर्थिक जनगणना की आवश्यकता:
    • मराठों जैसे राजनीतिक रूप से प्रभावशाली समूहों (जिनमें आय एवं शैक्षणिक परिणामों के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण अंतर-सामुदायिक भिन्नताओं के कारण स्तरीकरण मौजूद है) की मांगों को संबोधित करने के लिये एक व्यापक सामाजिक-आर्थिक जनगणना की आवश्यकता है।
    • इस तरह की जनगणना राज्यों में विभिन्न समूहों के पिछड़ेपन एवं भेदभाव की वास्तविक प्रकृति को स्थापित करेगी और यह सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के प्रति अडिग बने हुए डेटा-आधारित  सकारात्मक कार्रवाई (affirmative action) प्रदान करने के एक नए साधन को भी स्पष्ट कर सकती है।
  • साक्ष्य-आधारित विधान: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% कोटा सीमा से परे आरक्षण को उचित ठहराने के लिये ठोस अनुभवजन्य डेटा प्रदान करने के माध्यम से सुनिश्चित किया जाए कि मराठा आरक्षण विधेयक कानूनी रूप से सुदृढ़ और न्यायिक संवीक्षा का सामना कर सकता है।
  • व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता:
    • जबकि आरक्षण तात्कालिक चिंताओं का समाधान कर सकता है, यह मराठों के पिछड़ेपन के मूल कारणों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में अक्षम सिद्ध हो सकता है।
    • रोज़गार अवसरों के वृहत विस्तार को प्रायः आरक्षण नीतियों के विस्तार से अधिक आवश्यक माना जाता है।
    • सरकार को ऐसी एकीकृत नीतियाँ अपनानी चाहिये जो मराठों के लिये समग्र विकास सुनिश्चित करने के लिये आरक्षण को लक्षित कल्याण कार्यक्रमों, कौशल विकास पहल और अवसंरचना परियोजनाओं के साथ संयुक्त करे।
  • भेदभावरहित निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना:
    • यह सुनिश्चित करना कि सभी व्यक्तियों के साथ उचित एवं भेदभावरहित व्यवहार किया जाए, समानता को बढ़ावा देने का एक बुनियादी पहलू है। इसका तात्पर्य यह है कि लोगों को उनकी पृष्ठभूमि (जैसे कि उनके माता-पिता की स्थिति) के आधार पर अलाभ या विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हो।
    • समान स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना महत्त्वपूर्ण है, जहाँ व्यक्तियों को अपने कौशल, क्षमताओं एवं प्रयासों के आधार पर सफल होने के समान अवसर प्राप्त होते हैं। यह व्यक्तियों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने के लिये प्रेरित करने के माध्यम से उत्कृष्टता को बढ़ावा देता है।
  • आरक्षण और योग्यता को संतुलित करना: समुदायों को आरक्षण देते समय प्रशासन की दक्षता को भी देखना होगा। सीमा से अधिक आरक्षण से योग्यता की अनदेखी होगी जिससे समग्र प्रशासन प्रभावित होगा।
    • आरक्षण का मुख्य उद्देश्य कम सुविधा प्राप्त समुदायों के साथ हुई ऐतिहासिक गलतियों के मुद्दे को संबोधित करना है, लेकिन एक निश्चित बिंदु से परे योग्यता की भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिये।

निष्कर्ष

आरक्षण नीति भारत में एक सबल एवं समावेशी समाज को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में कार्य करती है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता समाज के सबसे हाशिये पर स्थित वर्गों के उत्थान की क्षमता पर निर्भर करती है। हालाँकि, जब व्यक्तिगत लाभ के लिये आरक्षण लाभों का दुरुपयोग या हेरफेर किया जाता है तो यह नीति की अखंडता को कमज़ोर कर सकता है और असमानताओं को बनाये रख सकता है।

भारत वंचितों के वास्तविक कल्याण पर ध्यान केंद्रित कर और सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण के लिये पूरक उपायों को लागू कर ऐसे भविष्य की ओर आगे बढ़ सकता है जहाँ सभी के लिये समानता, अवसर और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त हो।

अभ्यास प्रश्न: आरक्षण नीति की प्रभावशीलता समाज के सबसे वंचित वर्गों का वास्तविक उत्थान कर सकने की क्षमता पर निर्भर करती है। सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये महाराष्ट्र राज्य आरक्षण विधेयक 2024 के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स:

प्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)


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