अंतर्राष्ट्रीय संबंध
शंघाई सहयोग संगठन और भारत
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में वर्तमान वैश्विक राजनीति में शंघाई सहयोग संगठन की भूमिका और भारत के क्षेत्रीय हितों की दृष्टि से इस संगठन का महत्त्व व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation-SCO) में शामिल होने के तीन वर्ष बाद हाल ही में भारत द्वारा पहली बार इस समूह के राष्ट्राध्यक्षों को बैठक की मेज़बानी की गई। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आयोजित इस बैठक का फोकस COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न सामाजिक-आर्थिक, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिये योजनाओं को विकसित करने पर था।
मात्र दो दशक से भी कम समय में SCO यूरेशियन क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन के रूप में उभरा है। यह समूह यूरेशिया के लगभग 60% से अधिक क्षेत्रफल, वैश्विक आबादी के 40% से अधिक हिस्से और वैश्विक जीडीपी के लगभग एक-चौथाई हिस्से का प्रतिनिधित्त्व करता है।
यूरेशियन क्षेत्र और इसके परे भी SCO की भूमिका और महत्त्व को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस संगठन में शामिल होने से भारत को दीर्घावधि में अधिक लाभ होने की संभावना है। अतः SCO भारत को वर्तमान चुनौतियों का सतर्कतापूर्वक सामना करते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने का अवसर प्रदान करता है।
शंघाई सहयोग संगठन
(Shanghai Cooperation Organisation- SCO)
- शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) जून 2001 में ‘शंघाई फाइव’ (Shanghai Five) के विस्तार के बाद अस्तित्त्व में आया था।
- गौरतलब है कि ‘शंघाई फाइव’ का गठन रूस, चीन, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान और ताजिकिस्तान ने साथ मिलकर वर्ष 1996 में किया था।
- वर्तमान में विश्व के 8 देश (कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान) SCO के सदस्य हैं।
- अफगानिस्तान, ईरान, बेलारूस और मंगोलिया SCO में पर्यवेक्षक (Observer) के रूप में शामिल हैं।
- इस संगठन के उद्देश्यों में क्षेत्रीय सुरक्षा, सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात सैनिकों की संख्या में कमी करना, और आतंकवाद की चुनौती पर काम करना आदि शामिल थे।
भारत के लिये अवसर:
- क्षेत्रीय सुरक्षा: यूरेशियन सुरक्षा समूह के एक अभिन्न अंग के रूप में SCO भारत को इस क्षेत्र में धार्मिक अतिवाद और आतंकवाद के कारण उत्पन्न होने वाले शक्तियों को बेअसर करने में सक्षम बनाएगा।
- ग़ौरतलब है कि अफगानिस्तान से पश्चिमी देशों की सेनाओं की वापसी और इस क्षेत्र में खुरासान प्रांत की स्थापना के साथ इस्लामिक स्टेट (Islamic State-IS) की सक्रियता में हुई वृद्धि ने क्षेत्र की शांति और स्थिरता के लिये एक नई चुनौती खड़ी कर दी है।
- क्षेत्रवाद की स्वीकार्यता: SCO उन कुछ चुने हुए क्षेत्रीय संगठनों में से एक है, जिनमें भारत अभी भी शामिल है, गौरतलब है कि हाल के कुछ वर्षों में सार्क (SAARC), क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) और ‘बीबीआईएन (BBIN)समझौता’ जैसे समूहों में भारत की सक्रियता में गिरावट देखने को मिली है।
- इससे भी ज़रूरी बात यह है कि वर्तमान में तीन सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों (ऊर्जा, व्यापार, परिवहन) में सहयोग बढ़ाने के साथ पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के लिये SCO एक मज़बूत आधार प्रदान करता है।
- मध्य एशिया से संपर्क: SCO भारत की ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति’ (Connect Central Asia Policy) को आगे बढ़ाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच का कार्य कर सकता है।
- SCO के साथ भारत की वर्तमान साझेदारी को इस क्षेत्र के साथ अपने संबंधों को पुनः स्थापित और सक्रिय करने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है, गौरतलब है कि मध्य एशिया के साथ भारत के सभ्यतागत संबंध रहे हैं और इसे देश का विस्तारित पड़ोस भी माना जाता है।
- SCO भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार और रणनीतिक संबंधों को मज़बूत करने के लिये एक सुविधाजनक चैनल प्रदान करता है।
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- पाकिस्तान और चीन से निपटना: SCO भारत को एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जहाँ वह क्षेत्रीय मुद्दों पर चीन और पाकिस्तान के साथ रचनात्मक चर्चा में शामिल हो सकता है और अपने सुरक्षा हितों को उनके समक्ष रख सकता है।
- हालाँकि सरकार ने पिछले पाँच वर्षों में पाकिस्तान के साथ बैठकों से परहेज किया है, परंतु इस दौरान सरकार ने पाकिस्तान और चीन के साथ चर्चाओं के लिये SCO का उपयोग किया है, यहाँ तक कि हाल में भारत और चीन की सेनाओं के बीच लद्दाख गतिरोध के दौरान भी।
- अफगानिस्तान की स्थिरता के लिये: SCO अफगानिस्तान में तेज़ी से बदल रही स्थितियों और इस क्षेत्र में धार्मिक अतिवाद और आतंकवाद से उत्पन्न होने वाली शक्तियों (जिनसे भारत की सुरक्षा और विकास को खतरा हो सकता है) से निपटने के लिये एक वैकल्पिक क्षेत्रीय मंच के रूप में कार्य कर सकता है।
- रणनीतिक संतुलन: इन सबसे परे SCO में बने रहने को इसलिये भी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह पश्चिमी देशों के साथ भारत के मज़बूत होते संबंधों के बीच वैश्विक राजनीति में भू-राजनीतिक संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
चुनौतियाँ:
- प्रत्यक्ष स्थलीय संपर्क की बाधाएँ: पाकिस्तान द्वारा भारत और अफगानिस्तान (तथा इसके आगे भी) के बीच भू-संपर्क की अनुमति न देना, भारत के लिये यूरेशिया के साथ अपने विस्तारित संबंधों को मज़बूत करने में सबसे बड़ी बाधा रहा है।
- इसी कारण वर्ष 2017 में मध्य एशिया के साथ भारत का व्यापार मात्र 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग) का रहा, जबकि इसी दौरान रूस के साथ भारत का व्यापार लगभग 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
- इसके विपरीत वर्ष 2018 में रूस के साथ चीन का व्यापार 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक और मध्य एशिया के साथ 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक था।
- मज़बूत संपर्क के अभाव ने इस हाइड्रोकार्बन-समृद्ध क्षेत्र और भारत के बीच ऊर्जा संबंधों के विकास में भी बाधा उत्पन्न की है।
- रूस और चीन के बीच मज़बूत होता संपर्क: रूस द्वारा भारत को SCO में शामिल होने के लिये प्रोत्साहित करने के पीछे एक बड़ा कारण चीन की बढ़ती शक्ति को संतुलित करना था।
- हालाँकि वर्तमान में जब भारत ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने पर विशेष ध्यान दिया है, तो इसी दौरान रूस और चीन की बढ़ती निकटता भारत के लिये एक नई चुनौती बनकर उभर रही थी।
- इसके अतिरिक्त रूस-चीन-पाकिस्तान त्रिकोणीय हितों के अभिसरण से क्षेत्र में उभरता नया समीकरण भी एक बड़ी चुनौती बन सकता है, जिसे दूर करना बहुत ही आवश्यक है।
- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना पर मतभेद: भारत ने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना’ (Belt and Road initiative- BRI) को लेकर प्रत्यक्ष रूप से अपना विरोध स्पष्ट कर दिया है परंतु SCO के अन्य सदस्यों ने चीन की इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना का समर्थन किया है।
- भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता: SCO सदस्यों ने पूर्व में इस संगठन को भारत-पाकिस्तान के प्रतिकूल संबंधों का बंधक बनाए जाने की आशंका व्यक्त की थी, परंतु हाल के दिनों की स्थितियों को देखते हुए उनका भय और भी बढ़ गया होगा।
आगे की राह:
- मध्य एशिया के साथ संपर्क सुधार: भारत मध्य एशिया में अपनी पहुँच को मज़बूत करने के लिये इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्त्व से जुड़ी रूस की चिंताओं को भुना सकता है, इसके अतिरिक्त मध्य एशियाई देश भी इस क्षेत्र में भारत द्वारा एक बड़ी भूमिका निभाए जाने को लेकर उत्सुक हैं।
- हालाँकि इसके लिये भारत को पहले अपनी पकड़ को मज़बूत करने पर विशेष ज़ोर देना होगा।
- इस संदर्भ में यूरेशिया में एक मज़बूत पहुँच स्थापित करने के लिये चाबहार बंदरगाह के खुलने और अश्गाबात समझौते में भारत के शामिल होने का लाभ उठाया जाना चाहिये। इसके अलावा ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे’ (INSTC) के संचालन पर भी विशेष ध्यान देना होगा।
- चीन के साथ संबंधों में सुधार: 21वीं सदी की वैश्विक राजनीति में एशियाई नेतृत्व को मज़बूती प्रदान करने के लिये यह बहुत ही आवश्यक है कि भारत और चीन द्वारा आपसी मतभेदों को शांति के साथ दूर करने के लिये एक व्यवस्थित प्रणाली को विकसित किया जाए।
- इस भावना को वर्ष 2018 के शांगरी ला डायलॉग में प्रधानमंत्री मोदी के बयान में स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित किया गया था जिसमें उन्होंने कहा था कि "प्रतिद्वंद्विता का एशिया हम सभी को पीछे रखेगा, सहयोग की भावना से प्रेरित एशिया इस सदी को आकार देगा।’’
- पाकिस्तान के साथ संबंधों में सुधार: SCO द्वारा सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग, व्यापार, ऊर्जा और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को मज़बूत करने के प्रयासों का प्रयोग पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारने के लिये किया जाना चाहिये, साथ ही पाकिस्तान द्वारा यूरेशिया तक भारत की पहुँच में खड़ी की गई बाधाओं को हटाने की मांग की जानी चाहिये जिससे तापी (TAPI) जैसी परियोजनाओं को प्रोत्साहन प्रदान किया जा सके।
- सैन्य सहयोग में वृद्धि: हाल के वषों में क्षेत्र में आतंकवाद संबंधी गतिविधियों में वृद्धि को देखते हुए यह बहुत ही आवश्यक हो गया है कि SCO द्वारा एक ‘सहकारी और टिकाऊ सुरक्षा ढाँचे’ का विकास किया जाए, साथ ही क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना को और अधिक प्रभावी बनाए जाने का भी प्रयास किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
SCO की भूमिका और इसके उद्देश्यों की व्यापकता वर्तमान में न सिर्फ क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक रणनीतिक तथा आर्थिक परिदृश्य के लिये भी बढ़ती हुई प्रतीत होती है। वर्तमान परिदृश्य में SCO के एक नए सदस्य के रूप में भारत को एक उपयुक्त एवं व्यापक यूरेशियन रणनीति तैयार करने की आवश्यकता होगी।
यह रणनीति ‘विकास साझेदारी के माध्यम से स्थायी राष्ट्र-निर्माण, संप्रभुता बनाए रखने, इस क्षेत्र को आतंकवाद और अतिवाद का केंद्र बनने से रोकने’ के भारत के क्षेत्रीय हित को पूरा करने में भी सहायक हो सकती है। साथ ही भारत के लिये यह भी बहुत महत्त्वपूर्ण होगा कि यह क्षेत्र प्रतिद्वंद्वियों के लिये भू-राजनीतिक का एक नया अखाड़ा न बन जाए।
अभ्यास प्रश्न: ‘शंघाई सहयोग संगठन’ भारत को वर्तमान क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों का सतर्कतापूर्वक सामना करते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने का महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। चर्चा कीजिये।