भारत की प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना
यह एडिटोरियल 01/06/2022 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “Is It Time for India to go for Competitiveness Legislation” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि लाने के मार्ग की चुनौतियों और इस संबंध में भारत द्वारा किये जा सकने वाले उपायों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
भारत अपनी अर्थव्यवस्था में बेहतर प्रतिस्पर्द्धात्मकता पाने के लिये सुधार के पथ पर निरंतर है। डिजिटल विकास, व्यापार नीति सुधार और आंतरिक व बाह्य-मुखी उपायों के एक मिश्रण सहित ये आर्थिक सुधार गरीबी को कम करने एवं बेहतर रोज़गार सृजित करने के एजेंडे के साथ और भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि करने के लिये लागू किये गए हैं।
- हालाँकि भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देने में अभी भी कई बाधाएँ मौजूद हैं, जैसे कि अविकसित विनिर्माण क्षेत्र, कोविड-19 का प्रभाव और तकनीकी एवं ढाँचागत चुनौतियाँ।
भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता की विकास गाथा
- वर्ल्ड कॉम्पिटिटिवनेस ईयरबुक(World Competitiveness Yearbook- WCY) के अनुसार भारत ने वार्षिक विश्व प्रतिस्पर्द्धात्मकता सूचकांक (World Competitiveness Index) में 43वाँ स्थान बनाए रखा है।
- ब्रिक्स देशोंमें भारत, चीन (16वें) के बाद दूसरे (43वें) स्थान पर है, इसके बाद रूस (45वें), ब्राज़ील (57वें) और दक्षिण अफ्रीका (62वें) का स्थान है।
- भारत की शक्ति दूरसंचार (प्रथम), मोबाइल टेलीफोन लागत (प्रथम), आईसीटी सेवाओं के निर्यात (तीसरे), सेवा व्यवसायों में पारिश्रमिक (चौथा) और व्यापार सूचकाँक (पाँचवें) में निवेश में निहित है।
- वैश्विक नवाचार सूचकांक (Global Innovation Index- GII) 2021 रैंकिंग में भारत की स्थिति में दो स्थानों का सुधार हुआ है तथा भारत 46वें स्थान पर आ गया है।
- GII में भारत पिछले कुछ वर्षों से ऊपर की ओर बढ़ रहा है।
- भारत ने वर्ष 2021 में ‘इनोवेशन इनपुट’ की तुलना में ‘इनोवेशन आउटपुट’ में बेहतर प्रदर्शन किया।
- मध्य और दक्षिणी एशिया की 10 अर्थव्यवस्थाओं में भारत पहले स्थान पर है।
- भारत ने विनिर्माण क्षमता में प्रत्यास्थता (Resilience) सुनिश्चित करने के लिये सराहनीय प्रयास किये हैं, जहाँ ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे उसके पहल घरेलू आपूर्ति शृंखलाओं और विनिर्माण केंद्रों में भारी निवेश पर लक्षित हैं।
- सरकार ने भारत की विनिर्माण क्षमताओं और निर्यात को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू की है।
- प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने हेतु प्रौद्योगिकीय प्रगति को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से भारत के दूरसंचार विभाग (DoT) ने 6G प्रौद्योगिकी पर छह कार्यबलों/टास्क फोर्स का गठन किया है।
- विदेश मंत्रालय, अपने ‘नेस्ट’ प्रभाग के माध्यम से प्रौद्योगिकी व्यवस्था से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है।
‘नई और उभरती सामरिक प्रौद्योगिकियाँ’
- वर्ष 2020 में विदेश मंत्रालय ने एक नए प्रभाग ‘नई और उभरती सामरिक प्रौद्योगिकियाँ (New and Emerging Strategic Technologies- NEST) की स्थापना की।
- यह नई और उभरती प्रौद्योगिकियों से संबंधित विषयों के लिये मंत्रालय के भीतर नोडल प्रभाग के रूप में कार्य करता है और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विदेशी भागीदारों के साथ साझेदारी में सहायता प्रदान करता है।
- इसे घरेलू हितधारकों के साथ समन्वय में और भारत की विकास संबंधी प्राथमिकताओं तथा राष्ट्रीय सुरक्षा लक्ष्यों के अनुरूप भारत की बाह्य प्रौद्योगिकी नीति विकसित करने का भी दायित्व सौंपा गया है।
- यह नई एवं उभरती प्रौद्योगिकियों और प्रौद्योगिकी-आधारित संसाधनों के विदेश नीति एवं अंतर्राष्ट्रीय विधिक निहितार्थों के आकलन में भी मदद करेगा तथा उपयुक्त विदेश नीति विकल्पों की अनुशंसा करेगा।
- NEST बहुपक्षीय एवं विविध-पक्षीय ढाँचे में भारत की परिस्थितियों के अनुकूल प्रौद्योगिकी व्यवस्था नियमों, मानकों और संरचना पर वार्ता भी करता है।
भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के राह की चुनौतियाँ
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता की चुनौतियाँ: कमज़ोर व्यापार समर्थन, निर्यात अवसंरचना में अंतराल, बुनियादी व्यापार समर्थन, वित्तीय सुविधाओं तक पहुँच की कमी, कम निर्यात ऋण आदि वे दोष हैं जो कई राज्यों में निर्यात तत्परता (Export Preparedness) में बाधा पहुँचाते हैं।
- अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास: देश भर में अनुसंधान एवं विकास (R&D) अवसंरचना में व्यापक सुधार की गुंजाइश है। भारत में अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना के मामले में उच्च क्षेत्रीय असमानता की भी स्थिति है।
- वैश्वीकरण की उभरती हुई प्रकृति (जो उच्च गुणवत्तापूर्ण उत्पादों और नवाचार को पहले से कहीं अधिक महत्त्व देगा) के संदर्भ में भारत की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसे स्थापित कर सकने हेतु पर्याप्त प्रकट नहीं होती है।
- R&D में धीरे-धीरे सुधार दीर्घकाल में बेहद लाभप्रद सिद्ध होगा।
- वैश्वीकरण की उभरती हुई प्रकृति (जो उच्च गुणवत्तापूर्ण उत्पादों और नवाचार को पहले से कहीं अधिक महत्त्व देगा) के संदर्भ में भारत की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसे स्थापित कर सकने हेतु पर्याप्त प्रकट नहीं होती है।
- अपर्याप्त अवसंरचना: अवसंरचना भारत की सबसे कमज़ोर कड़ी बनी हुई है। बिजली, संचार, जल और अपशिष्ट जैसे विभिन्न क्षेत्रों तक अवसंरचना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संबंध में परिवहन अवसंरचना सर्वाधिक महत्त्व रखती है।
- भारत की अविकसित परिवहन अवसंरचना निर्यातकों के लिये कई समस्याएँ उत्पन्न करती है, जिनमें से प्रमुख हैं:
- भीड़भाड़ भरे बंदरगाह
- भीड़भाड़ भरी सड़कें
- कनेक्टिविटी की कमी
- पुराने रेल उपकरण
- भारत की अविकसित परिवहन अवसंरचना निर्यातकों के लिये कई समस्याएँ उत्पन्न करती है, जिनमें से प्रमुख हैं:
- अल्प-विकसित विनिर्माण क्षेत्र: जबकि पड़ोसी के साथ ही प्रतिस्पर्द्धी देश चीन देश को श्रम-प्रधान विनिर्माण से आगे और रोबोटिक्स एवं एरोस्पेस जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में ले जाने के लिये वर्तमान में एक 10-वर्षीय परिवर्तनकारी अभियान ‘मेड इन चाइना 2025’ के मध्य में है, भारत इसके विपरीत अभी भी पुराने दृष्टिकोण पर आधारित श्रम-गहन विनिर्माण को अपनी ऐसी अर्थव्यवस्था में लाने का लक्ष्य बना रहा है जिसे लाखों नए रोज़गार सृजित करने की गंभीर आवश्यकता है।
- पिछले दो वर्षों में इस तुच्छ लक्ष्य को भी लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था से आघात लगा है।
- कम तकनीकी समझ: सीमित समझ और अपर्याप्त प्रशिक्षण के कारण छोटे, स्थानीय व्यवसाय प्रायः डिजिटल समाधान अपनाने में संकोच रखते हैं।
- चौथी औद्योगिक क्रांति की नई प्रौद्योगिकियों (AI, डेटा एनालिटिक्स, रोबोटिक्स एवं अन्य संबंधित प्रौद्योगिकियाँ) का उदय संगठित वृहत विनिर्माण की तुलना में MSMEs के लिये अधिक बड़ी चुनौती है।
अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिये भारत को क्या करना चाहिये?
- नीतिगत हस्तक्षेप: भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये आवश्यक स्तंभों में से एक होगा ‘समग्र सरकार’ का दृष्टिकोण (‘Whole of Government’ Approach) जो केंद्र के भीतर और राज्यों के साथ और उनके बीच घटित होगा।
- यह भारत के लिये एक ऐसे कानून और संस्थान पर विचार करने का समय है जो सभी संगठनों को प्रतिस्पर्द्धात्मकता को आगे बढ़ाने के लिये राज़ी कर सके।
- व्यापार प्रतिस्पर्द्धा, क्षमता निर्माण और आपूर्ति शृंखला प्रत्यास्थता प्राप्त करने के लिये एक सुदृढ़ संस्थागत संरचना आवश्यक है।
- मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर वार्ता के लिये भी यह एक पूर्व-शर्त है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- एक नए कानून के तहत एक ‘राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग’ (National Competitiveness Commission) का गठन भारतीय विनिर्माण उद्योगों के विकास को सक्रिय करने और बनाए रखने हेतु नीतिगत संवाद के लिये एक मज़बूत मंच प्रदान कर सकता है।
- यह भारत के लिये एक ऐसे कानून और संस्थान पर विचार करने का समय है जो सभी संगठनों को प्रतिस्पर्द्धात्मकता को आगे बढ़ाने के लिये राज़ी कर सके।
- अमूर्त आस्तियों में निवेश: भारत को ‘भविष्य के अनुकूल’ कौशल निर्माण के साथ-साथ स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी अमूर्त आस्तियों में बेहतर और उच्च निवेश की आवश्यकता है।
- जहाँ तक नीतियों और वित्तपोषण का संबंध है, इन मुद्दों पर केंद्र सरकार के साथ साझेदारी में राज्यों द्वारा कार्य किया जाना चाहिये।
- हालाँकि ‘वन साइज़ फिट्स ऑल’ का दृष्टिकोण उपयुक्त नहीं होगा, इसलिये राज्यों को अपनी स्वयं की रणनीति विकसित करने का अवसर दिया जाना चाहिये।
- ‘पीपल फर्स्ट पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप’ (People-first Public-Private Partnerships) को बढ़ावा देने की क्षमता का उपयोग वित्त जुटाने के लिये किया जाना चाहिये ताकि स्वास्थ्य, नौकरियों एवं कौशल को कवर किया जा सके और सभी हितधारकों के परामर्श से प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- जहाँ तक नीतियों और वित्तपोषण का संबंध है, इन मुद्दों पर केंद्र सरकार के साथ साझेदारी में राज्यों द्वारा कार्य किया जाना चाहिये।
- FTAs पर फोकस: FTAs उद्योगों को वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भाग लेने में मदद करते हैं। अंतरा- और अंतर-क्षेत्रीय फर्म-स्तरीय सहयोग एवं भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- FTAs को PLI योजनाओं को भी पूरकता प्रदान करना चाहिये ताकि जिन उत्पादों के निर्माण को घरेलू स्तर पर प्रोत्साहन दिया जाता है, वे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा कर सकें।
- अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान देना: उत्तर-कोविड विश्व में भारत को वैश्विक बाज़ार में अपनी स्वयं की जगह बनाने की ज़रूरत है। इस प्रकार, नीति और अवसंरचना संबंधी कमियों को दूर कर भारतीय राज्यों की क्षमताओं का दोहन करना आवश्यक है।
- इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कि अधिक विकसित राज्य भारत के लिये उस जगह के निर्माण के दृष्टिकोण से अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना में सुधार की दिशा में ध्यान केंद्रित करें।
- ऐसा इसलिये आवश्यक है क्योंकि अनुसंधान एवं विकास अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और वृहत नवाचार को सक्षम करते हैं।
भारत को किस ओर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है?
- इस परिप्रेक्ष्य में अर्द्धचालकों या सेमीकंडक्टर्स ने मुख्य भूमिका प्राप्त कर ली है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि भू-अर्थशास्त्र और भू-राजनीति को आकार देने में सेमीकंडक्टर्स (और डिजिटलीकरण) ने तेल को प्रतिस्थापित कर दिया है।
- कोविड-प्ररित आपूर्ति शृंखला व्यवधान, चीन द्वारा निर्यात नियंत्रण और रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच भारत के लिये एक सेमीकंडक्टर्स विनिर्माण आधार का निर्माण करना अनिवार्य हो गया है।
- अन्य प्रमुख क्षेत्रों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) शामिल है।
- अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये भारत को 6G, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना चाहिये। इससे FTA वार्ताओं में भी हमारी स्थिति सुदृढ़ करने में भी मदद मिलेगी।
- कर बोझ को कम करना, विशेष रूप से MSME क्षेत्र के लिये, भी आवश्यक है ताकि उनकी लाभप्रदता में वृद्धि हो। श्रमिकों के कौशल उन्नयन के लिये सरकार की ओर से और अधिक समर्थन की ज़रूरत है।
- इसके साथ ही गैर-टैरिफ कारकों पर भी कार्रवाई की आवश्यकता है; नवाचार को प्रोत्साहित करना, बौद्धिक संपदा व्यवस्था को सुदृढ़ करना, रसद लागत को कम करना और व्यवसाय संचालन को सुगम बनाना भी महत्त्वपूर्ण है।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘विभिन्न आर्थिक सुधारों की शुरूआत के बावजूद भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मक भावना प्रायः अल्प-विकसित विनिर्माण क्षेत्र, अनुसंधान एवं विकास की कमी, ढाँचागत चुनौतियों और सीमित प्रौद्योगिकीय ज्ञान जैसे मुद्दों के नीचे दबी रह जाती है।’’ टिप्पणी कीजिये।