शासन व्यवस्था
राज्य की वित्तीय चुनौतियों के समाधान में वित्त आयोग की भूमिका
यह एडिटोरियल 01/01/2024 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित “Finance panel should curb populism” लेख पर आधारित है। इसमें तर्क दिया गया है कि भारत के 16वें वित्त आयोग को अपने हस्तांतरण फॉर्मूले में राजकोषीय दक्षता एवं अनुशासन को अधिक महत्त्व देना चाहिये और राज्य सरकारों की लोकलुभावन प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाना चाहिये।
प्रिलिम्स के लिये:16वाँ वित्त आयोग (FC), पूर्ववर्ती पेंशन योजना (OPS), नई पेंशन योजना (NPS), सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP), भ्रष्टाचार बोध सूचकांक, 15वाँ वित्त आयोग, राजकोषीय घाटा। मेन्स के लिये:वित्त आयोग, भारत में लोकलुभावनवाद पर अंकुश लगाने की आवश्यकता, लोकलुभावनवाद पर अंकुश लगाने में वित्त आयोग की भूमिका। |
राज्यों को केंद्रीय करों के हस्तांतरण और अनुदानों के संबंध में अनुशंसाएँ करने के लिये 16वें वित्त आयोग (Finance Commission- FC) का गठन किया जा रहा है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा हाल ही में प्रकाशित “राज्य वित्त: बजट का एक अध्ययन” (State Finances: A study of Budgets) शीर्षक रिपोर्ट ने उन मुद्दों को रेखांकित किया है जिन पर वित्त आयोग से निश्चित रूप से ध्यान देने के लिये कहा जाएगा, जैसे कि राज्यों की वित्तीय स्थिति पर विचार किये बिना राज्यों का पूर्ववर्ती पेंशन योजना (Old Pension Scheme- OPS) की ओर वापस लौटना या चुनावों के समय वादा की गई गारंटी या फ्रीबीज़ की पूर्ति के लिये असंवहनीय सब्सिडी प्रदान करना।
वित्त आयोग का गठन:
- वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है जिसका गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
- इसमें एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्य शामिल होते हैं जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- आयोग केंद्र और राज्यों के बीच कर राजस्व के वितरण के साथ-साथ राज्यों की सहायता अनुदान से संबंधित विभिन्न मामलों पर राष्ट्रपति को अनुशंसाएँ प्रस्तुत करने के लिये उत्तरदायी है।
- आयोग का गठन राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पाँच वर्ष पर या उससे पूर्वतर समय पर, जैसा वह आवश्यक समझे, किया जाता है।
भारत में लोकलुभावनवाद (Populism) पर अंकुश लगाने की आवश्यकता क्यों है?
- राजकोषीय असंतुलन:
- बढ़ता ऋण: वर्ष 2014 से 2022 के बीच भारतीय राज्यों का औसत ऋण-जीडीपी अनुपात (debt-to-GDP ratio) 22.2% से बढ़कर 34.5% हो गया, जहाँ आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे लोकलुभावनवादी राज्यों में इसके स्तर में तेज़ वृद्धि देखी गई।
- उच्च घाटा: राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद के 4.1% तक पहुँच गया, जो मुफ्त बिजली, ऋण माफी और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर लोकलुभावन व्यय से प्रेरित रहा।
- राजस्व में कमी: कर राजस्व का लोकलुभावन खर्चों के साथ तालमेल नहीं रह सका जहाँ कई राज्य अंतराल को भरने के लिये केंद्र सरकार के ‘बेलआउट’ या उससे उधार लेने पर अत्यधिक निर्भर हुए।
- आर्थिक विकृतियाँ:
- निवेश में गिरावट: भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह में वर्ष 2022 में 10% की गिरावट आई, जिसे कुछ विश्लेषकों द्वारा मूल्य नियंत्रण एवं संरक्षणवादी उपायों जैसी लोकलुभावन नीतियों द्वारा उत्पन्न अनिश्चितता का परिणाम बताया गया।
- रोज़गार वृद्धि में गतिहीनता: सरकारी व्यय में वृद्धि के बावजूद भारत की बेरोज़गारी दर वर्ष 2023 में 7% से ऊपर रही, जो दर्शाता है कि लोकलुभावन नीतियों से कोई उल्लेखनीय रोज़गार सृजन नहीं हुआ।
- बाज़ार की अक्षमता: कृषि जैसे क्षेत्रों में मूल्य नियंत्रण उत्पादन को हतोत्साहित करता है और कमी उत्पन्न करता है, जो फिर आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित करता है और उपभोक्ता कल्याण को प्रभावित करता है।
- शासन का क्षरण:
- भ्रष्टाचार में वृद्धि: ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ के भ्रष्टाचार बोध सूचकांक (Corruption Perception Index) में भारत की रैंकिंग वर्ष 2014 में 80 से गिरकर वर्ष 2022 में 85 हो गई, जो संस्थागत नियंत्रण एवं संतुलन को कमज़ोर करने वाले लोकलुभावनवादी शब्दाडंबर की वृद्धि से संगत है।
- घटती पारदर्शिता: पब्लिक अफेयर्स इंडेक्स—जो सरकारी निर्णयन में पारदर्शिता की माप करता है, ने प्रबल लोकलुभावनवादी नेताओं वाले कई राज्यों में पारदर्शिता में गिरावट का रुझान दिखाया है।
राज्यों द्वारा अपनाई गई वे कौन-सी कुछ प्रमुख लोकलुभावन नीतियाँ हैं जिन्होंने इससे जुड़े बहस को बढ़ा दिया है?
- पुरानी पेंशन योजना (OPS) की ओर वापसी:
- कुछ राज्य वर्ष 2004 में शुरू की गई नई पेंशन योजना (NPS) को त्यागकर OPS की ओर वापस लौट गए हैं।
- OPS में कर्मचारियों के पेंशन के प्रति अनिश्चितकालीन देनदारियाँ होती हैं, जो NPS के विपरीत है जहाँ देनदारी कर्मचारियों के सेवा काल तक सीमित होती है।
- RBI के एक आंतरिक अध्ययन से पता चलता है कि OPS के परिणामस्वरूप NPS की तुलना में 4.5 गुना अधिक देनदारी होगी, जिससे वर्ष 2060 तक सकल घरेलू उत्पाद पर 0.9% का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
- इस कदम को प्रतिगामी, विकास के लिये बाधाकारी और भावी पीढ़ियों के हितों के लिये समझौताकारी माना जा रहा है।
- कुछ राज्य वर्ष 2004 में शुरू की गई नई पेंशन योजना (NPS) को त्यागकर OPS की ओर वापस लौट गए हैं।
- राज्यों का बढ़ता राजकोषीय घाटा:
- कई राज्यों में मुफ्त बिजली जैसे लोकलुभावन उपायों के लिये प्रदत्त सब्सिडी के कारण घाटे की स्थिति बनी है।
- सब्सिडी पर राज्यों का औसत व्यय उनके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का 0.87% है, जबकि कुछ राज्य इससे कहीं अधिक व्यय कर रहे हैं (उदाहरण के लिये पंजाब 2.35%, राजस्थान 1.92%)।
वित्त आयोग लोकलुभावनवाद पर अंकुश लगाने में कैसे मदद कर सकता है?
- प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन: 15वें वित्त आयोग द्वारा मापन-योग्य प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन का प्रस्ताव सही दिशा में उठाया गया कदम है। वित्त आयोग बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा एवं कृषि संकेतकों जैसे विशिष्ट परिणामों के साथ राज्यों के वित्तीय हस्तांतरण को जोड़कर उत्तरदायी शासन को प्रोत्साहित करता है और ऐसे लोकलुभावनवादी उपायों को हतोत्साहित करता है जो संभव है कि दीर्घकालिक विकास में अधिक योगदान नहीं कर सकें।
- संविधान के अनुच्छेद 280(3) के तहत, राज्यों को करों के हस्तांतरण और सहायता अनुदान की अनुशंसा करने के अलावा, केंद्र द्वारा वित्त आयोग को “सुदृढ़ वित्त के हित में” किसी अन्य मुद्दे पर विचार करने के लिये कहा जा सकता है।
- लोकलुभावन उपायों के लिये उद्देश्य मानदंड: जबकि योजनाओं का वर्गीकरण लोकलुभावनवादी एवं गैर-लोकलुभावनवादी के रूप में करना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है, वित्त आयोग उद्देश्य मानदंड विकसित करने के संबंध में कार्य कर सकता है जो विभिन्न राज्यों की विविध विकासात्मक आवश्यकताओं को ध्यान में रखता हो।
- इसके लिये लोकलुभावनवादी व्यय पर एक आम सहमति के निर्माण के लिये केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग की आवश्यकता होगी।
- राजकोषीय दक्षता संबंधी मापदंड: वित्त आयोग हस्तांतरण के लिये अपने मानदंडों में राजकोषीय दक्षता को अधिक महत्त्व दे सकता है। आयोग राजकोषीय समेकन पर बल देकर और राज्यों के टैक्स एफर्ट (tax effort) को मापकर उतरदायी वित्तीय प्रबंधन को प्रोत्साहित कर सकता है। यह अपनी राजकोषीय क्षमता पर विचार किये बिना लोकलुभावनवाद का सहारा लेने वाले राज्यों के लिये एक निवारक के रूप में कार्य कर सकता है।
- 15वें वित्त आयोग ने टैक्स एफर्ट (Own Tax to GSDP ratio) द्वारा मापी गई राजकोषीय दक्षता को केवल 2.5% महत्त्व दिया था। 16वें वित्त आयोग द्वारा इसकी समीक्षा की जा सकती है।
- सार्वजनिक जागरूकता: वित्त आयोग लोकलुभावनवादी उपायों के परिणामों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता पैदा करने में भूमिका निभा सकता है। वित्त आयोग मुफ्त उपहार या फ्रीबीज़ से वित्त पर पड़ने वाले तनाव और आर्थिक विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव को उजागर करने के माध्यम से सूचना-संपन्न सार्वजनिक चर्चा में योगदान दे सकता है जहाँ राजनीतिक दलों पर उत्तरदायी राजकोषीय नीतियों को अपनाने का एक दबाव बना रहेगा।
- भविष्य के निहितार्थों पर तनाव: वित्त आयोग लोकलुभावन उपायों के दीर्घकालिक परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित कर सकता है, जैसे कि बढ़ते राज्य ऋण और भविष्य की पीढ़ियों की ओर स्थानांतरित हो रहा बोझ।
- इसमें ऐसे उपायों की सिफ़ारिश करना शामिल हो सकता है जो राज्यों को उनकी क्षमता से अधिक उधार लेने से रोकते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि वित्तीय निर्णय सतत विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित हों।
- आम सहमति बनाना: जबकि लोकलुभावन व्यय को नियंत्रित करने के संबंध में केंद्र और राज्यों के बीच आम सहमति का निर्माण करना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है, वित्त आयोग आपसी संवाद को बढ़ावा देने में मध्यस्थ एवं सहायक के रूप में कार्य कर सकता है।
- वित्त आयोग सहकारी संघवाद (cooperative federalism) को बढ़ावा देकर और राजकोषीय मामलों पर खुली चर्चा को प्रोत्साहित कर वित्तीय प्रशासन के लिये अधिक सहयोगात्मक दृष्टिकोण में योगदान दे सकता है।
- नियमित समीक्षा और अनुशंसाएँ: वित्त आयोग राज्यों के वित्तीय स्वास्थ्य की नियमित रूप से समीक्षा कर सकता है और उभरते आर्थिक परिदृश्य के आधार पर आवधिक अनुशंसाएँ कर सकता है। यह उभरती चुनौतियों (जैस कोविड-19 महामारी जैसे बाह्य कारकों के प्रभाव) से निपटने में लचीलेपन की अनुमति देगा।
निष्कर्ष:
किसी राज्य का लोकलुभावनवाद उसके अपने करदाताओं द्वारा वित्तपोषित होना चाहिये, दूसरों द्वारा नहीं। RBI का सुझाव है कि राजकोषीय हस्तांतरण को सुधारों और राजकोषीय उत्तरदायित्व से जोड़ा जाना चाहिये। यदि कोई राज्य लोकलुभावनवाद की राह चुनता है और बिना वित्तपोषण के उधार लेता है तो उसे इसके परिणाम भी भुगतने चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: भारत में लोकलुभावनवाद पर अंकुश लगाने में वित्त आयोग की भूमिका की चर्चा कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सरकार द्वारा की जाने वाली निम्नलिखित कार्रवाइयों पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त कार्यों में से किसे/किन्हें "राजकोषीय प्रोत्साहन" पैकेज का हिस्सा माना जा सकता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न: किस तरह से मूल्य सब्सिडी को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) में बदलने से भारत में सब्सिडी का परिदृश्य बदल सकता है? चर्चा कीजिये। (2015, मुख्य परीक्षा) |