पर्यावरण अनुकूल आनुवंशिक संशोधन
यह एडिटोरियल 29/11/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Long-term ecological, environmental effects of herbicide-tolerant crops haven’t been considered” लेख पर आधारित है। इसमें बीज उत्पादन के लिये जीएम सरसों और इससे संबद्ध मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
कृषि संबंधी जैव प्रौद्योगिकी (Agricultural Biotechnology) में अनुसंधान एवं विकास में तेज़ प्रगति के साथ दुनिया के देशों द्वारा वाणिज्यिक प्रयोग एवं कृषि उत्पादन के लिये विभिन्न आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों को मंज़ूरी दी जा रही है।
- यद्यपि यह व्यापक रूप से दावा किया जाता है कि आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (Genetic modified organisms- GMO) कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों को दूर करने में असाधारण योगदान कर सकते हैं, लेकिन इससे कुछ जोखिम भी संलग्न है, क्योंकि यह नए जीन संयोजनों को एक साथ लाता है जो प्राकृतिक रूप से अस्तित्व नहीं रखते और स्वास्थ्य, पर्यावरण और गैर-लक्षित प्रजातियों के लिये अत्यंत हानिकारक हो सकते हैं।
- इस परिदृश्य में, आनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों का उत्पादन शुरू किये जाने से पहले इसकी सतर्कता से जाँच की जानी चाहिये।
आनुवंशिक संशोधन क्या है?
- ‘आनुवंशिक संशोधन’ (Genetic modification) में किसी जीव (पादप, जंतु या सूक्ष्मजीव) के जीन में परिवर्तन करना शामिल है।
- जीएम तकनीक (GM technology) में वांछित विशेषताओं की प्राप्ति या उसे बदलने के लिये नियंत्रित परागण (controlled pollination) का उपयोग करने के बजाय डीएनए (DNA) का प्रत्यक्ष हेरफेर किया जाता है।
- यह फसल सुधार का एक दृष्टिकोण है, जिसका उद्देश्य बेहतर किस्मों का उत्पादन करने के लिये वांछनीय जीनों को जोड़ना और अवांछनीय जीनों को हटाना है।
भारत में जीएम फसलों की खेती की वर्तमान स्थिति
- भारतीय किसानों ने वर्ष 2002-03 में बीटी कपास (Bt cotton)—जो एक कीट-प्रतिरोधी, आनुवंशिक रूप से संशोधित कपास है, की खेती शुरू की थी।
- बीटी संशोधन (Bt modification) एक प्रकार का आनुवंशिक संशोधन है जहाँ बैसिलस थुरिनजिनेसिस (Bacillus thuringiensis) नामक मृदा जीवाणु से प्राप्त बीटी जीन को लक्षित फसल में प्रवेश कराया जाता है (जैसे इस मामले में इसे कपास में प्रवेश कराया गया)।
- बीटी कपास कपास के पौधों को नष्ट करने वाले बोलवर्म (bollworm) कीट के प्रति प्रतिरोधी है।
- वर्ष 2014 तक भारत में कपास की खेती के तहत शामिल क्षेत्र के लगभग 96% हिस्से पर बीटी कपास की खेती की जा रही थी जो भूमि एकड़ के हिसाब से भारत को विश्व में जीएम फसलों का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक और कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बनाता है।
- कपास के अलावा, भारत के लगभग 50 सार्वजनिक एवं निजी संस्थानों में 20 से अधिक फसलों पर अनुसंधान एवं विकास कार्य जारी है। इनमें से 13 फसलों को भारत में नियंत्रित सीमित क्षेत्र परीक्षणों के लिये अनुमोदित किया गया है।
- अक्टूबर 2022 में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत कार्यरत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने बीज उत्पादन के लिये ट्रांसजेनिक हाइब्रिड सरसों DMH-11 के पर्यावरणीय रिलीज़ की अनुशंसा की।
भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें कैसे विनियमित की जाती हैं?
- भारत में जीएम फसलों के विकास, उनकी खेती और सीमा-पार आवाजाही की प्रक्रियाओं के दौरान वृहत रूप से पशु स्वास्थ्य, मानव सुरक्षा और जैव विविधता के खतरों को नियंत्रित करने के लिये सख्त़ विनियम मौजूद हैं।
- भारत में जीएम फसलों को विनियमित करने वाले अधिनियम और विनियम:
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 (EPA)
- जैविक विविधता अधिनियम, 2002
- पादप संगरोध आदेश, 2003 (Plant Quarantine Order, 2003)
- खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006
- औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम (आठवाँ संशोधन), 1988
- मोटे तौर पर ये नियम निम्नलिखित विषयों को दायरे में लेते हैं:
- GMOs के अनुसंधान एवं विकास से संबंधित सभी गतिविधियाँ
- GMOs के क्षेत्र और नैदानिक परीक्षण (Field and clinical trials of GMOs)
- GMOs को जानबूझकर या अनजाने में रिलीज़ किया जाना
- GMOs का आयात, निर्यात और विनिर्माण
जीएम फसलों से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ
- पारिस्थितिक चिंताएँ: पर-परागण (Cross Pollination) के कारण होने वाला जीन प्रवाह ऐसे सहिष्णु या प्रतिरोधी खरपतवारों का विकास कर सकता है जिनका उन्मूलन कठिन होगा।
- जीएम फसलों से जैव विविधता का क्षरण हो सकता है और लुप्तप्राय/संकटग्रस्त पादप प्रजातियों के जीन पूल प्रदूषित हो सकते हैं।
- आनुवंशिक क्षरण पहले ही हो चुका है क्योंकि किसानों ने पारंपरिक किस्मों के उपयोग को एकल कृषि या ‘मोनोकल्चर’ (Monocultures) से प्रतिस्थापित कर दिया है।
- पोषक मूल्य की हानि: चूँकि आनुवंशिक संशोधन फसल उत्पादन में वृद्धि, उनके जीवन काल को बढ़ाने और कीटों को दूर करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है, इसलिये कुछ फसलों के पोषण मूल्य से कभी-कभी समझौता भी किया जाता है।
- पाया गया है कि मूल किस्म की तुलना में कुछ आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की भारी कमी आई।
- वन्यजीवन को खतरा: पादपों के जीन रूपांतरण से वन्यजीवों पर भी गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिये, आनुवंशिक रूप से संशोधित तंबाकू या चावल के पौधे, जिनका उपयोग प्लास्टिक या फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन के लिये किया जाता है, वे चूहों या हिरणों को खतरे में डाल सकते हैं जो कटाई के बाद खेतों में छोड़े गए फसल अवशेषों को खाते हैं।
- विषाक्तता का जोखिम: आनुवंशिक संशोधन के बाद उत्पाद की प्रकृति में परिवर्तन के कारण यह मानव चयापचय के लिये एक बाहरी या अपरिचित उत्पाद बन जाता है।
- ट्रांसजेनिक फसलों में पाए जाने वाले नए प्रोटीन जिनका खाद्य के रूप में सेवन नहीं किया जाता है, एलर्जी कारक बन सकते हैं और विषाक्तता का खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।
आगे की राह
- जीएम बीजों की अवैध खेती पर अंकुश: जीएम बीजों की अवैध खेती पर अंकुश लगाने के लिये, जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) को चाहिये कि:
- राज्य सरकारों के साथ सहयोग करें और एक राष्ट्रव्यापी जाँच अभियान शुरू करे।
- जीएम फसलों की जानबूझकर की जाने वाली खेती के खतरों पर कार्रवाई करे।
- जीएम बीजों की अवैध आपूर्ति में शामिल लोगों की जाँच करे और उन पर मुक़दमा चलाए।
- जीएम फसलों के साथ-साथ जैविक खेती (organic farming) को प्रोत्साहित करे।
- स्वदेशी जीन बैंक: देशी किस्मों को उनकी रोगों के अनुकूल बन सकने की क्षमता और निहित पोषण मूल्य के कारण संरक्षित किया जाना चाहिये। विभिन्न अनुसंधान संस्थानों को अनुसंधान करने और स्वदेशी किस्मों के संरक्षण में मदद करने के लिये जीन बैंकों (Gene Banks) की स्थापना की जा सकती है।
- आधुनिक और पारंपरिक प्रौद्योगिकियों का सम्मिश्रण: भारत में कृषि संवहनीयता (agricultural sustainability) के लिये कृषि के स्वदेशी तरीकों को संरक्षित करने वाले नियामक उपायों के साथ सटीक कृषि प्रौद्योगिकियों का समर्थन करना आवश्यक है।
- निवेश को बढ़ावा देने से सभी प्रौद्योगिकी विकासकर्ता भारत के लिये प्रासंगिक फसलों में रुचि लेने और स्पष्ट नियामक ढाँचे वाले प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने के लिये प्रेरित होंगे।
- संवहनीयता की ओर व्यापक कदम: बेहतर खाद्य विकल्प और संवहनीय/सतत फसल प्रबंधन के सृजन के लिये आनुवंशिक संशोधनों को बेहतर कृषि ऋण, जल के बेहतर उपयोग और निम्न अपशिष्ट उत्पादन से संयुक्त किया जाना चाहिये।
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment- EIA):पारिस्थितिकी और स्वास्थ्य पर जीएम फसलों के दीर्घकालिक प्रभाव का आकलन करने के लिये स्वतंत्र पर्यावरणविदों के सहयोग से नियामक निकायों द्वारा अनिवार्य पर्यावरणीय प्रभाव आकलन किया जाना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: भारत में फसलों के आनुवंशिक संशोधन की वर्तमान स्थिति का आकलन करें और इससे संबद्ध चुनौतियों के समाधान के उपाय सुझाएँ।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षा:Q1. हालिया घटनाक्रमों के संदर्भ में 'पुनः संयोजक वेक्टर टीके' के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (C) Q2. राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) भारतीय कृषि की सुरक्षा में कैसे मदद करता है? (वर्ष 2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (C) |