एडिटोरियल (02 Nov, 2022)



एमएसएमई क्षेत्र में सुधार

यह एडिटोरियल 31/10/2022 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “MSMEs have shown resilience in the face of steep challenges” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में MSMEs के विकास की वर्तमान स्थिति और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises- MSMEs) क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में व्यापक योगदान देता है। उल्लेखनीय है कि इसका विशाल नेटवर्क विनिर्माण उत्पादन में लगभग 45% की हिस्सेदारी रखता है।

  • MSMEs लगभग 110 मिलियन रोज़गार अवसर प्रदान करते हैं जो भारत में कुल रोज़गार का 22-23% है। कृषि क्षेत्र के बाद यह दूसरा सबसे अधिक योगदान है। हालाँकि इस क्षेत्र के समक्ष अभी भी कई चुनौतियाँ मौजूद हैं। उद्यम (UDYAM) प्लेटफॉर्म पर महज 15% MSME इकाइयों ने स्वयं को पंजीकृत कराया है। इस क्षेत्र की विजातीयता, खंडीकरण और अनौपचारीकरण इसमें सुधारों की आवश्यकता को उजागर करते हैं।
  • अवसंरचना विकास, प्रौद्योगिकी अंगीकरण और बैकवर्ड एवं फॉरवर्ड लिंकेज के क्षेत्रों में लक्षित नीतियों के निर्माण से MSMEs को अपनी पूरी क्षमता को साकार करने तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को उच्च विकास पथ पर ले जाने में मदद मिल सकती है।

भारत के लिये MSME क्षेत्र का क्या महत्त्व है?

  • ग्रामीण विकास के लिये वरदान: वृहत स्तर की कंपनियों की तुलना में MSMEs ने न्यूनतम पूंजी लागत पर ग्रामीण क्षेत्रों के औद्योगीकरण में सहायता दी है। इस क्षेत्र ने देश के ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है और प्रमुख उद्योगों को भी पूरक सहायता प्रदान की है।
  • ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में अग्रणी योगदानकर्ता: भारत का लक्ष्य है कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत निर्मित उत्पाद गुणवत्ता के वैश्विक मानकों का पालन करते हुए ‘मेड फॉर द वर्ल्ड’ के ध्येय को भी साकार करें। MSME इस अभियान में केंद्रीय भूमिका ग्रहण कर रहा है। इस स्वप्न को को साकार करने में MSMEs को ‘रीढ़ की हड्डी’ के रूप में देखा जाता है।
  • उद्यमों के लिये सरल प्रबंधन संरचना: भारत की मध्यवर्गीय अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए MSME एक लचीलापन प्रदान करता है कि इसे निजी स्वामित्व व नियंत्रण में सीमित संसाधनों के साथ शुरू किया जा सकता है। इससे निर्णय लेना आसान और कुशल हो जाता है।
    • इसके विपरीत, एक बड़े निगम को प्रत्येक विभागीय कार्यकरण के लिये एक विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है क्योंकि इसकी एक जटिल संगठनात्मक संरचना होती है।
  • आर्थिक विकास और लेवेरेज निर्यात (Leverage Exports): यह भारत में सबसे महत्त्वपूर्ण विकास प्रेरक है जो सकल घरेलू उत्पाद में 8% का योगदान करता है।
    • आजकल बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ छोटे उद्यमों से अर्द्ध-निर्मित और सहायक उत्पाद खरीद रही हैं। यह भारत के MSME आधार और बड़ी कंपनियों के बीच संबंध निर्माण की अपार संभावनाएँ प्रदान करता है।

भारत में MSME क्षेत्र के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ

  • वित्तीय बाधा: भारतीय अर्थव्यवस्था में छोटी फर्मों और व्यवसायों के लिये वित्त तक पहुँच हमेशा से समस्याग्रस्त रहा है। यह व्यवसायों के साथ-साथ MSME क्षेत्र के लिये एक बड़ी बाधा है।
    • हालाँकि, इसके बारे में सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि केवल 16% SMEs को ही समय पर वित्त की सुविधा मिल पाती है, जिसके परिणामस्वरूप लघु और मध्यम फर्मों को अपने स्वयं के संसाधनों पर निर्भर रहने के लिये विवश होना पड़ता है।
  • नवाचार की कमी: भारतीय MSMEs में नवाचार की कमी है और उनके द्वारा उत्पादित अधिकांश उत्पाद पुरानी प्रौद्योगिकियों पर आधारित हैं। इस क्षेत्र में उद्यमियों की भारी कमी है जिसने इसे नई प्रौद्योगिकियों और साधनों को अपना सकने से अवरुद्ध कर रखा है।
    • परिणामस्वरूप MSMEs को पुरानी पड़ चुकी प्रौद्योगिकी के साथ-साथ विशेष रूप से बड़ी फर्मों की तुलना में उत्पादकता के निम्न स्तर के साथ संघर्ष करना पड़ा है।
  • छोटी फर्मों का बहुमत: MSMEs में सूक्ष्म और लघु व्यवसायों की हिस्सेदारी 80% से अधिक है। इस प्रकार, संवाद एवं जागरूकता की कमी के कारण वे सरकार के आपातकालीन ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’, ‘स्ट्रेस्ड एसेट रिलीफ’, इक्विटी भागीदारी और ‘फंड ऑफ फंड ऑपरेशन’ का लाभ नहीं उठा पाते हैं।
  • MSMEs में औपचारिकता का अभाव: MSMEs में औपचारिकता का अभाव है और यह क्रेडिट अंतराल में योगदान देता है।
    • देश में विनिर्माण क्षेत्र के लगभग 86% लगभग MSMEs पंजीकृत नहीं हैं। आज भी लगभग 1.1 करोड़ MSMEs ही वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax) के तहत पंजीकृत हैं।

MSMEs से संबंधित हाल की प्रमुख सरकारी पहलें

आगे की राह

  • विनियामक तंत्र (Regulatory Mechanism): डेटा अर्थव्यवस्था के बढ़ते महत्त्व के साथ यह आवश्यक हो गया है कि सरकार MSMEs को सलाह एवं परामर्श देने के लिये एक स्वतंत्र निकाय का गठन करे और उन्हें आर्थिक आघात से बचाने हेतु नियामक उपाय करे।
  • आपूर्ति शृंखला वित्त (Supply Chain Finance): यह MSMEs की तत्काल कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में मदद कर सकता है। यह उन्हें जल्दी भुगतान करने या उन पर बकाया निधियों तक त्वरित पहुँच प्राप्त करने और उनकी विनिर्माण गतिविधि में शून्य दोष और शून्य प्रभाव (Zero Defect & Zero Effect- ZED) अभ्यासों को शामिल करने का अवसर दे सकता है।
    • लेनदेन को स्वचालित करने के लिये प्रौद्योगिकी-सक्षम प्लेटफ़ॉर्म बनाए जा सकते हैं जिससे MSMEs के लिये भुगतान को ट्रैक करना आसान हो जाएगा।
      • इस तरह के निर्बाध और त्वरित वित्तपोषण के साथ MSMEs आसानी से व्यापार विस्तार में निवेश कर सकते हैं, नए कच्चे माल की खरीद कर सकते हैं या अपनी सूची को अद्यतन कर सकते हैं।
  • सरकारी परियोजनाओं को स्थानीय MSMEs से जोड़ना: सरकार प्रस्तावित सार्वजनिक खरीदों एवं परियोजनाओं का लाभ उठाकर घरेलू विनिर्माण क्षमताओं के सृजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
    • उदाहरण के लिये, सागरमाला, भारतमाला और औद्योगिक गलियारों जैसी सार्वजनिक परियोजनाओं को MSME क्षेत्र से जोड़ा जा सकता है।
  • ‘इंडस्ट्री-एकेडेमिया चैनल’: विनिर्माण क्षेत्र में उभरती आवश्यकताओं की पहचान करने और रोज़गार योग्य कार्यबल तैयार करने के लिये सरकारी उद्योग और शिक्षा जगत के बीच एक वृहत संबंध की आवश्यकता है, जो औद्योगिक क्रांति 4.0 में योगदान कर सकेगा।
  • समर्पित MSME पोर्टल: MSME औपचारीकरण और पंजीकरण के लिये एक पोर्टल का निर्माण किया जा सकता है। यह न केवल पारदर्शिता लाएगा बल्कि धोखाधड़ी एवं डेटा दुरुपयोग को कम करने में भी मदद करेगा।
    • इसे MSMEs के लिये एक पूर्ण बाज़ार के रूप में भी विकसित किया जा सकता है जिसके माध्यम से विक्रेता फॉरवर्ड और बैकवर्ड लिंकेज विकसित कर सकते हैं।
    • आधार या पैन का उपयोग सभी अनुपालन उद्देश्यों के लिये एक विशिष्ट पहचान पत्र के रूप में किया जा सकता है। इसके साथ ही, एक विक्रेता के रूप में वार्षिक पंजीकरण प्रक्रिया को सरल बनाया जाना चाहिये या इसे इस पहचान पत्र के माध्यम से संपन्न किया जा सकता है।
  • विवाद समाधान के लिये ई-कोर्ट्स: राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) की कार्यवाही में प्रायः MSME क्षेत्र के लिये बहुमूल्य वित्तीय संसाधनों की निकासी होती है।
    • मामलों के त्वरित निपटान के लिये, ऋण समाधान हेतु वैकल्पिक तरीकों को अपनाकर (जैसे ई-कोर्ट्स के माध्यम से) NCLT ढाँचे को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
  • क्षेत्र के अंदर डिजिटल अंगीकरण को प्रोत्साहित करना: MSMEs क्षेत्र के अंदर डिजिटल अंगीकरण (विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता और क्वांटम प्रौद्योगिकी जैसी विघटनकारी तकनीकों के अंगीकरण) को प्रोत्साहित करने से यह उद्योग एक प्रौद्योगिकीय उछाल प्राप्त कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में MSME क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियों को उजागर कीजिये और उनकी क्षमता को अधिकतम करने एवं भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने के लिये आवश्यक सुधारों के सुझाव दीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा:

Q.1 विनिर्माण क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार की हालिया नीतिगत पहल क्या है/हैं?  (वर्ष 2012)

  1. राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्रों की स्थापना
  2. 'सिंगल विंडो क्लीयरेंस' का लाभ प्रदान करना
  3. प्रौद्योगिकी अधिग्रहण और विकास कोष की स्थापना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1
 (B) केवल 2 और 3
 (C) केवल 1 और 3
 (D) 1, 2 और 3

 उत्तर: (D)


Q 2.  निम्नलिखित में से कौन समावेशी विकास के सरकार के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में सहायता कर सकता है?  (वर्ष 2011)

  1. स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देना
  2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देना
  3. शिक्षा का अधिकार अधिनियम को लागू करना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1
 (B) केवल 1 और 2
 (C) केवल 2 और 3
 (D) 1, 2 और 3

 उत्तर: (D)