अंतर्राष्ट्रीय संबंध
आसियान-भारत आर्थिक मंत्रियों की परामर्श बैठक
प्रिलिम्स के लिये:आसियान-भारत व्यापार परिषद, रूल्स ऑफ ओरिजिन, आसियान मेन्स के लिये:भारत-आसियान द्विपक्षीय व्यापार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से ‘आसियान-भारत आर्थिक मंत्रियों की 17वीं परामर्श बैठक’ (17th ASEAN-India Economic Ministers Consultations) का आयोजन किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- इस बैठक का आयोजन 29 अगस्त, 2020 को ‘भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री’ तथा वियतनाम के उद्योग एवं व्यापार मंत्री की सह अध्यक्षता में किया गया था।
- इस बैठक में सभी 10 आसियान (ASEAN) देशों (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम) के व्यापार मंत्रियों ने हिस्सा लिया।
- बैठक में शामिल सभी देशों ने COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक चुनौतियों को कम करने हेतु मिलकर कार्य करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है।
- साथ ही सभी देशों ने ‘विश्व व्यापार संगठन’ (World Trade Organisation- WTO) के नियमों के तहत क्षेत्र में अतिआवश्यक वस्तुओं और दवाओं आदि के निर्बाध प्रवाह हेतु वित्तीय स्थिरता तथा आपूर्ति श्रृंखला की कनेक्टिविटी को सुनिश्चित करने का संकल्प लिया।
व्यापार समझौते की समीक्षा:
- इस बैठक के दौरान ‘आसियान-भारत व्यापार परिषद’ (ASEAN-India Business Council or AIBC) की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
- AIBC की रिपोर्ट में सभी देशों के पारस्परिक लाभ हेतु आसियान भारत वस्तु व्यापार समझौता (ASEAN India Trade in Goods Agreement- AITIGA) की समीक्षा का सुझाव दिया गया है।
- बैठक में वरिष्ठ अधिकारियों को समीक्षा पर विचार विमर्श शुरू करने का निर्देश दिया गया है जिससे मुक्त-व्यापार समझौते को व्यवसायों के लिये और अधिक आसान, सुविधाजनक और अनुकूल बनाया जा सके।
- इस समीक्षा के माध्यम से समकालीन व्यापार सुविधा प्रथाओं को अपनाकर और सीमा-शुल्क तथा विनियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित कर समझौते को आधुनिक बनाया जाएगा।
- केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने इस समझौते को बेहतर बनाने के लिये कई सुधारों की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
- गैर-शुल्क प्रतिबंधों को दूर करना।
- बाज़ार पहुंच को बेहतर बनाना।
- ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ (Rules of Origin) के प्रावधानों को मज़बूत करना।
‘आसियान भारत व्यापार परिषद’
(ASEAN-India Business Council or AIBC):
- आसियान भारत व्यापार परिषद की स्थापना मार्च 2003 में कुआलालंपुर (मलेशिया) में की गई थी।
- आसियान भारत व्यापार परिषद की स्थापना का उद्देश्य भारत और आसियान देशों के निजी क्षेत्र के उद्यमियों के बीच संपर्क स्थापित कराने तथा विचारों के आदान-प्रदान हेतु एक मंच प्रदान करना था।
- AIBC के सचिवालय की स्थापना वर्ष 2015 में मलेशिया में की गई थी।
- आसियान-भारत आर्थिक मंत्रियों की वार्षिक बैठक के दौरान ‘आसियान भारत व्यापार परिषद’ की बैठक का भी आयोजन किया जाता है।
आसियान भारत वस्तु व्यापार समझौता
(ASEAN India Trade in Goods Agreement- AITIGA):
- यह भारत और आसियान समूह के बीच लागू एक मुक्त व्यापार समझौता है।
- भारत और आसियान देशों के बीच 13 अगस्त, 2009 को AITIGA पर हस्ताक्षर किये गए थे, यह समझौता 1 जनवरी 2010 को प्रभाव में आया था।
समीक्षा की आवश्यकता:
- इस समझौते के लागू होने के बाद हाल के वर्षों में आसियान के साथ भारत के वार्षिक व्यापार घाटे में वृद्धि हुई है।
- नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2011 (5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) से लेकर वर्ष 2017 (10 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के बीच आसियान के साथ भारत का वार्षिक व्यापार घाटा बढ़कर दोगुना हो गया।
- गौरतलब है कि वर्तमान में आसियान के साथ भारत का वार्षिक व्यापार घाटा लगभग 24 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
- आसियान देशों के साथ भारत के व्यापार घाटे के कुछ कारणों में गैर-टैरिफ बाधाएँ, आयात संबंधी नियम, कोटा और निर्यात कर आदि प्रमुख हैं।
- विशेषज्ञों के अनुसार, आसियान देशों द्वारा ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ के प्रावधानों के कमज़ोर क्रियान्वयन के कारण बड़ी मात्रा में चीनी उत्पादों को आसियान देशों के रास्ते भारत में पहुँचाया जाता है।
आगे की राह:
- आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते की समीक्षा और इसका प्रभावी क्रियान्वयन दोनों पक्षों द्वारा वर्ष 2020 के लिये तय किये गए 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होगा।
- भारत द्वारा आसियान देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते के तहत सेवा क्षेत्र को बढ़ावा दिये जाने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
- भारत द्वारा चिकित्सा, सूचना प्रौद्योगिकी और वित्तीय क्षेत्र की सेवाओं को बढ़ावा देकर व्यापार घाटे को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
- साथ ही भारतीय बाज़ार में चीनी उत्पादों के हस्तक्षेप को कम करने के लिये ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ के प्रावधानों का प्रभावी क्रियान्वयन बहुत ही आवश्यक है।
‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ (Rules of Origin):
- रूल्स ऑफ ओरिजिन, किसी उत्पाद के राष्ट्रीय स्त्रोत के निर्धारण के लिये आवश्यक मापदंड हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कई मामलों में वस्तुओं पर शुल्क और प्रतिबंध का निर्धारण ‘आयात के स्त्रोत पर निर्भर करता है।
- इसका प्रयोग ‘एंटी-डंपिंग शुल्क’ (Anti-Dumping Duty) या देश की वाणिज्य नीति के तहत अन्य सुरक्षात्मक कदम उठाने, व्यापार आँकड़े तैयार करने, सरकारी खरीद आदि में किया जाता है।
स्रोत: पीआईबी
सामाजिक न्याय
दिव्यांगजन और न्याय प्रणाली तक आसान पहुँच
प्रिलिम्स के लियेसंयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तुत सिद्धांत, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 मेन्स के लियेभारत में दिव्यांगजनों की स्थिति और उनसे संबंधित समस्याएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने दिव्यांग व्यक्तियों के लिये सामाजिक न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु अपनी तरह के पहले दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जिससे ऐसे व्यक्तियों के लिये न्याय प्रणाली का उपयोग करना काफी आसान हो जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी दिशा निर्देशों में 10 सिद्धांतों के समूह की एक रूपरेखा तथा उसके कार्यान्वयन के लिये आवश्यक विभिन्न कदमों का उल्लेख किया गया है।
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा उल्लेखित 10 सिद्धांत हैं-
- सिद्धांत 1: दिव्यांग व्यक्तियों के पास कानूनी क्षमता है और इसलिये दिव्यांगता के आधार पर किसी को भी न्याय तक पहुँचने से वंचित नहीं किया जा सकता है।
- सिद्धांत 2: दिव्यांग व्यक्तियों के लिये भेदभाव के बिना न्याय तक समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सुविधाओं एवं सेवाओं का सार्वभौमिक रूप से सुलभ होना अनिवार्य है।
- सिद्धांत 3: दिव्यांग बच्चों समेत सभी दिव्यांग व्यक्तियों को उचित ‘प्रसीजरल एकोमोडेशन’ (Procedural Accommodation) का अधिकार है।
- ‘प्रसीजरल एकोमोडेशन’ का अभिप्राय ऐसे उपायों से होता है, जो किसी दिव्यांग व्यक्ति अथवा संवेदनशील व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया में मदद करते हैं, जैसे- दिव्यांग व्यक्ति के साथ किसी अन्य सहायक व्यक्ति को सुनवाई में हिस्से लेने की अनुमति देना, दिव्यांग व्यक्ति को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई में हिस्सा लेने की छूट देना और उनके लिये अधिक अनौपचारिक वातावरण का निर्माण करना।
- सिद्धांत 4: दिव्यांग व्यक्तियों को भी अन्य व्यक्तियों की तरह कानूनी नोटिस और सूचना को समय पर सुलभ तरीके से प्राप्त करने का अधिकार है।
- सिद्धांत 5: अन्य व्यक्तियों की तरह दिव्यांग व्यक्ति भी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में मान्यता प्राप्त सभी मौलिक और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के हकदार हैं।
- सिद्धांत 6: दिव्यांगजनों को मुफ्त और मितव्ययी कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार है।
- सिद्धांत 7: अन्य व्यक्तियों की तरह दिव्यांग व्यक्तियों को न्याय प्रणाली के प्रशासन में समान आधार पर भाग लेने का अधिकार है।
- सिद्धांत 8: दिव्यांग व्यक्तियों के पास मानवाधिकारों के उल्लंघन संबंधी अपराधों के मामलों की शिकायत करने तथा इस संबंध में कानूनी कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है।
- सिद्धांत 9: दिव्यांग व्यक्तियों के लिये न्याय तक पहुँच का समर्थन करने में प्रभावी एवं मज़बूत निगरानी तंत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- सिद्धांत 10: न्याय प्रणाली में कार्यरत सभी लोगों को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों खासतौर पर न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने के संबंध में जागरूक एवं प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा में दिव्यांग व्यक्ति
- 21वीं सदी में मानवाधिकारों के प्रमुख साधन के रूप में पहचाने जाने वाले ‘विकलांग व्यक्तियों के लिये संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ (UN Convention on the Rights of Persons with Disabilities) में दिव्यांग व्यक्तियों को ऐसे व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनके पास दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी दोष हैं जो कि अन्य व्यक्तियों के साथ समान आधार पर समाज में उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी में बाधा डालते हैं।
- सामान्य अर्थों में दिव्यांगता ऐसी शारीरिक एवं मानसिक अक्षमता है जिसके चलते कोई व्यक्ति सामान्य व्यक्तियों की तरह किसी कार्य को करने में अक्षम होता है।
दिव्यांग व्यक्ति- संबंधित समस्याएँ
- विशेषज्ञों का मानना है कि देश में दिव्यांगता की ऐसी कई श्रेणी जैसे चोटों, दुर्घटनाओं और कुपोषण आदि हैं, जिन्हें आसानी से रोका जा सकता है, किंतु देश का स्वास्थ्य क्षेत्र खासतौर पर ग्रामीण स्वास्थ्य क्षेत्र इस प्रकार की दिव्यांगता को भी रोकने में असफल रहा है।
- इसके अलावा देश में कई संवेदनशील वर्गों के लिये उचित स्वास्थ्य देखभाल, सहायता और उपकरणों तक मितव्ययी पहुँच का भी अभाव है।
- भारत की शिक्षा प्रणाली में समावेशन का अभाव है, नियमित विद्यालयों में आज भी सामान्य बच्चों की अपेक्षा एक दिव्यांग बच्चे के लिये प्रवेश लेना काफी चुनौतीपूर्ण है।
- दिव्यांग विद्यार्थियों के लिये विशिष्ट विद्यालयों, प्रशिक्षित शिक्षकों और विशिष्ट शैक्षिक सामग्री की उपलब्धता का अभाव भी एक महत्त्वपूर्ण समस्या है।
- कई उच्च शिक्षण संस्थानों में दिव्यांग व्यक्तियों के लिये आरक्षण की व्यवस्था को उचित रूप से लागू नहीं किया गया है।
- यद्यपि अधिकांश दिव्यांग वयस्क उत्पादक कार्य करने में सक्षम हैं, किंतु इसके बावजूद भी दिव्यांग वयस्कों में रोज़गार की दर काफी कम है। विदित हो कि निजी क्षेत्र में दिव्यांग व्यक्तियों के रोज़गार की स्थिति और भी खराब है।
- देश में अधिकांश इमारतें और परिवहन सेवाएँ दिव्यांग व्यक्तियों के प्रयोग हेतु अनुकूल नहीं हैं, जिसके कारण उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- परिवार और समाज का नकारात्मक व्यवहार प्रायः दिव्यांग व्यक्तियों को परिवार, समुदाय या कार्यबल में सक्रिय भूमिका अदा करने से रोकता है।
- दिव्यांगजनों के अपने रोज़मर्रा के जीवन में भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है, खासतौर पर मानसिक रूप से अक्षम लोग जीवन के प्रत्येक स्तर पर सामाजिक बहिष्कार का सामना करते हैं।
भारत में दिव्यांग
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा एकत्रित किये गए आँकड़ों के अनुसार, भारत में सभी आयु वर्गों में 2.4 प्रतिशत पुरुष और 2 प्रतिशत महिलाएँ दिव्यांगता से प्रभावित हैं। इसमें मानसिक तथा बौद्धिक दिव्यांगता और बोलने, सुनने तथा देखने संबंधी अक्षमता शामिल है।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की कुल 121 करोड़ की जनसंख्या में से लगभग 2.68 करोड़ व्यक्ति ‘अक्षम’ अथवा दिव्यांग हैं जो कि कुल जनसंख्या का 2.21 प्रतिशत हैं।
- जनगणना के अनुसार, 2.68 करोड़ दिव्यांग व्यक्तियों में से 1.5 करोड़ दिव्यांग पुरुष हैं और 1.18 करोड़ दिव्यांग महिलाएँ हैं।
- देश की अधिकांश दिव्यांग आबादी (69 प्रतिशत) ग्रामीण भारत में निवास करती है।
दिव्यांग व्यक्तियों संबंधी कानून- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 ने वर्ष 1995 के दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम का स्थान लिया था।
- इस अधिनियम में दिव्यांगता को एक विकसित और गतिशील अवधारणा के आधार पर परिभाषित किया गया है और दिव्यांगता के मौजूदा प्रकारों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है। इसके अलावा केंद्र सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह दिव्यांगता के प्रकारों को और अधिक बढ़ा सकती है।
- अधिनियम के तहत बेंचमार्क विकलांगता (Benchmark-Disability) से पीड़ित 6 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिये निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है।
- बेंचमार्क विकलांगता से अभिप्राय उन लोगों से है जो कम-से-कम 40 प्रतिशत विकलांगता से प्रभावित हैं।
- अधिनियम के प्रावधानों के तहत दिव्यांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये एक अलग राष्ट्रीय तथा राज्य कोष बनाया जाएगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
कवकाज़/काकेशस- 2020 सैन्य अभ्यास
प्रिलिम्स के लिये:कवकाज़/काकेशस- 2020 सैन्य अभ्यास मेन्स के लिये:भारत-रूस संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में COVID-19 महामारी के चलते भारत ने रूस में होने वाले ‘बहुराष्ट्रीय त्रिकोणीय सर्विस अभ्यास’ कवकाज़- 2020 (Kavkaz- 2020) से अपनी भागीदारी को वापस ले लिया है।
प्रमुख बिंदु:
- यद्यपि भारत ने आधिकारिक रूप से COVID-19 महामारी को अभ्यास में हिस्सा न लेने का कारण बताया है, परंतु इसके पीछे अनेक कूटनीतिक कारकों को ज़िम्मेदार माना जा रहा है।
कवकाज़- 2020 अभ्यास:
- यह एक रणनीतिक कमांड-पोस्ट अभ्यास है, जिसे काकेशस- 2020 (Caucasus-2020) के रूप में भी जाना जाता है।
- त्रिकोणीय सेवा अभ्यास रूसी सेना द्वारा प्रति चार वर्ष में किया जाने वाला अभ्यास का हिस्सा है। यह अभ्यास पूर्व में वर्ष 2012 और वर्ष 2016 में आयोजित किया गया था।
- वर्ष 2020 का अभ्यास, दक्षिणी रूस के अस्त्राखान प्रांत (Astrakhan province) में आयोजित किया जाएगा।
- इस अभ्यास में 'शंघाई सहयोग संगठन' (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) के सदस्य देश और अन्य मध्य एशियाई देश भाग लेंगे।
भारत के अभ्यास से अलग होने के अन्य संभावित कारण:
- कवकाज़- 2020 सैन्य अभ्यास में चीन, तुर्की और पाकिस्तान भी भागीदारी ले रहे हैं, जिनके साथ हाल ही में भारतीय राजनीतिक संबंधों में कटुता देखने को मिली है।
- चीन के साथ ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (Line of Actual Control- LAC) पर गतिरोध मई 2020 से जारी है। कई दौर दौर की वार्ताओं के बावजूद दोनों देश गतिरोध को समाप्त करने में विफल रहे हैं।
- हालाँकि, जून 2020 में भारतीय और चीनी सैन्य टुकड़ियों ने द्वितीय विश्व युद्ध की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर मास्को के रेड स्क्वायर में ‘विजय दिवस परेड’ (Victory Day Parade) में मार्च किया।
- कश्मीर मामले पर भारत की नीतियों को लेकर भारत और तुर्की के बीच टकराव देखने को मिलता रहा है।
- अभ्यास में जॉर्जिया के विघटनकारी क्षेत्र अबकाज़िया (Abkhazia) और दक्षिण ओसेशिया (South Ossetia) भी भागीदारी कर रहें हैं, इन क्षेत्रों को केवल रूस और कुछ अन्य देशों द्वारा मान्यता प्रदान की गई है। भारत इन क्षेत्रों को मान्यता नहीं देता है।
भारत-रूस सैन्य कूटनीति पर प्रभाव:
- भारत हमेशा से रूस के साथ अपने संबंधों को, चीन-रूस संबंधों से स्वतंत्र रूप में देखता रहा है।
- रूस भी भारत के साथ इसी प्रकार की नीति अपनाता रहा है। भारत-चीन गतिरोध के दौरान भी रूस ने भारत को हथियारों की आपूर्ति की अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखा।
- भारत द्वारा कवकाज़- 2020 से अपनी भागीदारी को वापस लिया जाना दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मूल रूप से एक रूसी सैन्य अभ्यास था, न कि चीनी अभ्यास।
अन्य भारत-रूस सैन्य अभ्यास:
- भारत-रूस सैन्य कूटनीति की शुरुआत वर्ष 2003 में द्विपक्षीय नौसेना अभ्यास- इंद्र (Indra) से मानी जाती है।
- भारत तथा रूस ने अभ्यास- TSENTR-2019 में भी भाग लिया है। अभ्यास- TSENTR 2019 रूसी सशस्त्र बलों के वार्षिक प्रशिक्षण चक्र का एक हिस्सा है।
आगे की राह:
- भारत को रूस के साथ अपने संबंधों को और गहरा करने की आवश्यकता है क्योंकि रूस, भारत-चीन संबंधों को संतुलित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- भारत अपनी रक्षा खरीद (देशों) और ऊर्जा आयात में विविधता लाना चाहता है। अत: इस दृष्टि से भारत-रूस सबंध बहुत महत्त्वपूर्ण है।
- शंघाई सहयोग संगठन और रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिकोण सहयोग रूस, चीन और भारत के बीच पारस्परिक बढ़ावा देने और भारत-चीन के बीच अविश्वास को कम करने में योगदान दे सकते हैं।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
दक्षिण भारत में तितलियों का प्रवास
प्रिलिम्स के लिये:तितलियों का प्रवास, तितली की प्रजातियाँ मेन्स के लिये:दक्षिण भारत में तितलियों का प्रवास |
चर्चा में क्यों?
दक्षिण भारत में पूर्वी घाट की पहाड़ियों से पश्चिमी घाट की ओर तितलियों का वार्षिक प्रवास देखने को मिलता है, परंतु इस वर्ष का प्रवास निर्धारित समय से पूर्व देखने को मिला है।
प्रमुख बिंदु:
- तितलियों में अक्तूबर-नवंबर में होने वाला प्रवास इस बार तय समय से पूर्व जुलाई, अगस्त में देखने को मिला है।
- वर्षा प्रतिरूप में बदलाव, अच्छी धूप के दिनों की संख्या में वृद्धि, फीडिंग ग्राउंड ( भोजन के अनुकूल क्षेत्र), तितलियों की संख्या में प्रस्फोट जैसे कारकों को समय पूर्व तितली प्रवास के कारणों के रूप में माना जा रहा है।
दक्षिण भारत में तितलियों का प्रवास:
- आमतौर पर तितलियों में प्रवास के दो प्रारूप देखने को मिलते हैं:
प्रथम (मैदानों से घाटों की ओर):
- दक्षिण भारत में इस प्रकार का प्रवास उत्तर-पूर्व मानसून की शुरुआत के साथ अक्तूबर-नवंबर में देखने को मिलता है।
- इसे उत्तर-मानसून प्रवास के रूप में भी जाना जाता है।
द्वितीय (घाटों से मैदानों की ओर):
- इस प्रकार का प्रवास दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन से ठीक पहले, अप्रैल-जून में देखने को मिलता है।
- इस समय के प्रवास का तितलियों के प्रजनन के लिये बहुत महत्त्व है।
तितली प्रवास मार्ग:
- पूर्वी घाट की पहाड़ियों जिसमें शेवारॉय, पचमलाई, कोल्ली, कलवारायण शामिल हैं, इन प्रवासी तितलियों के प्रवास का मूल स्थान है।
- इन तितलियों का प्रवास पूर्वी घाट से नीलगिरि, अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व और पालनी पहाड़ियों की ओर देखने को मिला है।
- एक अन्य तितली-प्रवास मार्ग कोयंबटूर ज़िले (तमिलनाडु) में पश्चिमी घाट की पहाड़ियों के समानांतर देखने को मिला है।
प्रवास में शामिल तितली की प्रजातियाँ:
- प्रवास मुख्यत: दूधिया तितली (Milkweed butterflies) से संबंधित चार प्रजातियों में देखने को मिलता हैं:
- डार्क ब्लू टाइगर (Dark Blue Tiger)
- ब्लू टाइगर (Blue Tiger)
- कॉमन क्रो (Common Crow)
- डबल-ब्रांडेड (Double-branded) (जिसे सामान्यत: टाइगर और क्रो के रूप में जाना जाता है)।
- इन तितलियों के अलावा लाइम स्वोल्टेल, लेमन पैंसी, कॉमन लेपर्ड, ब्लू पैंसी, कॉमन इमिग्रेंट और लेमन इमिग्रेंट जैसी प्रजातियाँ भी प्रवास में शामिल हैं, लेकिन उनकी संख्या बहुत कम होती है।
निष्कर्ष:
- दक्षिण भारत के अनेक क्षेत्रों में तितलियों में समय पूर्व प्रवास करने के संकेत मिले हैं। इस बात की पुष्टि करने के लिये अक्तूबर-नवंबर में होने वाले प्रवास का इंतज़ार करना होगा, क्योंकि इसी समय तितलियों में वास्तविक प्रवास देखने को मिलता है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव
प्रिलिम्स के लियेसप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव, आसियान, व्यापार घाटा मेन्स के लियेचीन के साथ भारत का व्यापार, सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस की अवधारणा और उसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने चीन के आक्रामक राजनीतिक और सैन्य व्यवहार के मद्देनज़र चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिये एक त्रिपक्षीय ‘सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव’ (Supply Chain Resilience Initiative-SCRI) शुरू करने के प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव और कोरोना वायरस (COVID-19) के तीव्र प्रसार के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के समक्ष एक बड़ी बाधा उत्पन्न हो गई है, इसी बाधा को समाप्त करने के उद्देश्य से सर्वप्रथम जापान ने सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI) शुरू करने का विचार प्रस्तुत किया था।
- भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया के बाद भविष्य में आसियान (ASEAN) देशों को भी इस पहल में शामिल होने के लिये प्रेरित किया जाएगा।
सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस का अर्थ
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस (Supply Chain Resilience) एक दृष्टिकोण है जो किसी देश को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि वह अपनी संपूर्ण आपूर्ति के लिये किसी एक देश पर निर्भर होने के बजाय अपने आपूर्ति के जोखिम का विस्तार अलग-अलग आपूर्तिकर्त्ता देशों तक करे।
- इस प्रकार के दृष्टिकोण को अपनाने का मुख्य कारण यह है कि किसी भी प्रकार की अप्रत्याशित घटना, चाहे वह प्राकृतिक हो (जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, भूकंप अथवा महामारी) या मानव निर्मित (जैसे एक क्षेत्र विशिष्ट में सशस्त्र संघर्ष) के कारण किसी विशेष देश से आने वाली आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जिससे गंतव्य देश में आर्थिक गतिविधि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- इसलिये यह आवश्यक होता है कि कोई देश अपनी आपूर्ति श्रृंखला को केवल एक देश तक सीमित न करे, बल्कि अलग-अलग देशों तक उसका विस्तार करे।
जापान का प्रस्ताव
- इस पहल के तहत भागीदार देशों के बीच पहले से मौजूद आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क को और मज़बूत करने पर ध्यान दिया जाएगा।
- जापान द्वारा प्रस्तावित सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव (SCRI) का प्राथमिक उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र को ‘आर्थिक महाशक्ति’ के रूप में बदलने के लिये अधिक-से-अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना और भागीदार देशों के बीच परस्पर पूरक संबंध स्थापित करना है।
- इस पहल के माध्यम से अंततः हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस अवधारणा को और अधिक बल दिया जाएगा।
आवश्यकता
- कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी ने इस विषय को पुनः केंद्र में ला दिया है कि जब एक देश अपने उत्पादन के लिये आवश्यक कच्चे माल की आपूर्ति हेतु किसी अन्य देश पर बहुत ज़्यादा निर्भर रहता है और यदि किसी कारणवश आपूर्तिकर्त्ता देश में उत्पादन बंद होने के कारण आयात करने वाले राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है।
- आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 के दौरान जहाँ एक ओर जापान ने चीन को 135 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात किया, वहीं जापान ने चीन से कुल 169 बिलियन डॉलर का आयात भी किया।
- इस प्रकार जापान के कुल आयात में चीन हिस्सा लगभग 24 प्रतिशत था।
- इस प्रकार यह स्पष्ट है कि चीन द्वारा की जाने वाली आपूर्ति में कोई भी बाधा जापान की आर्थिक गतिविधियों और वहाँ की अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
- ध्यातव्य है कि कुछ इसी प्रकार की स्थिति कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण भी उत्पन्न हुई थी, जब चीन को कई दिनों तक अपना उत्पादन बंद करना पड़ा था।
- इसके अलावा बीते कुछ दिनों में अमेरिकी और चीन के बीच पैदा हुए तनाव ने भी भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के बीच चिंता पैदा की है, क्योंकि इस प्रकार के तनाव से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के प्रभावित होने की संभावना है।
- यदि विश्व की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ अपने मतभेदों को हल नहीं करती हैं, तो वैश्वीकरण पर इसका काफी व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
भारत के लिये इस पहल के निहितार्थ
- दो अत्यधिक आबादी वाले एशियाई पड़ोसियों के साथ सीमा तनाव के बीच जापान जैसे भागीदार देश के माध्यम से भारत वैकल्पिक व्यापार श्रृंखलाओं पर विचार कर सकता है।
- आँकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान भारत द्वारा चीन को लगभग 16.6 बिलियन डॉलर का निर्यात किया गया, जबकि भारत ने चीन से लगभग 65.26 बिलियन डॉलर का आयात किया, जिसके कारण चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 48.66 बिलियन रहा रहा, जबकि वित्तीय वर्ष 2018-19 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 53.56 बिलियन डॉलर रहा था।
- चीन भारत के कुल आयात में लगभग 14 प्रतिशत का हिस्सेदार है, ऐसे में यदि चीन किसी भी कारण से भारत को आयात करना बंद कर देता है तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी प्रभावित कर सकता है।
- हालाँकि चीन के साथ अचानक अपनी आपूर्ति श्रृंखला को समाप्त करना या अपने आयात को कम करना अथवा बंद कर देना पूरी तरह से अव्यवहारिक है।
- भारतीय दवा निर्माता कई दवाओं के निर्माण के लिये आवश्यक सामग्री के आयात हेतु चीन पर काफी अधिक निर्भर हैं। इसके अलावा भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स आयात में चीन का 45 प्रतिशत हिस्सा है।
- ऐसे में यह स्पष्ट है कि भारत एक साथ चीन के साथ अपने अपनी आपूर्ति श्रृंखला को समाप्त या बंद नहीं कर सकता है, किंतु यदि भारत समय के साथ धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाता है या चीन के अलावा अन्य देशों के साथ अपने आपूर्ति नेटवर्क को मज़बूत करता है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के आपूर्ति नेटवर्क में लचीलापन पैदा कर सकता है, जो कि अर्थव्यवस्था के लिये भविष्य में काफी लाभदायक साबित होगा।
ऑस्ट्रेलिया की भूमिका
- यद्यपि चीन, ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार देशों में से एक है, किंतु पिछले कुछ समय में दोनों के बीच व्यापारिक संबंध काफी तनावपूर्ण रहे हैं।
- चीन ने इसी वर्ष मई माह में चार ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों से पशु माँस के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था, साथ ही ऑस्ट्रेलिया से आयातित जौ पर भी आयात शुल्क अधिरोपित किया था।
- जून माह में चीन के शिक्षा मंत्रालय ने ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले अथवा पढ़ने की इच्छा रखने वाले छात्रों को वहाँ बढ़ते नस्लवाद को लेकर चेतावनी दी थी।
- दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के कारण ही संभवतः ऑस्ट्रेलिया अपनी आपूर्ति श्रृंखला में लचीलापन लाने की कोशिश कर रहा है।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
ब्लैक लाइव्स मैटर
प्रिलिम्स के लिये‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ (Black Lives Matter) आंदोलन मेन्स के लियेरंगभेद तथा अल्पसंख्यकों के अधिकार संबंधी मुद्दे |
चर्चा में क्यों
BIPOC (Black, Indigenous and People of Color) शब्द ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ (Black Lives Matter) आंदोलन के दौरान इंटरनेट पर लोकप्रिय हो गया।
प्रमुख बिंदु
- BIPOC आंदोलन त्वचा के रंग और नस्लीय विविधता को स्वीकार करने का आग्रह करता है और राजनीति से लेकर त्वचा की देखभाल तक जीवन के सभी क्षेत्रों में समावेशिता तथा प्रतिनिधित्व की वकालत करता है।
- यह उस अदृश्य भेदभाव के खिलाफ है जो विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद है।
- उदाहरण के लिये- कॉस्मेटिक उद्योगों में अधिकांश उत्पाद केवल गोरी त्वचा के लिये किया जाता है न कि काले रंग और स्वदेशी लोगों के लिये।
- सौंदर्य मानकों के मानकीकरण का उन लोगों की मानसिकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो पारंपरिक मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
- इसे नीग्रो, अफ्रीकी-अमेरिकी और अल्पसंख्यक जैसे अपमानजनक और आक्रामक शब्दों के उन्मूलीकरण के विकल्प के रूप में देखा जाता है।
- पीपुल ऑफ कलर (People of Colour- POC) शब्द 1960 के दशक के दौरान काले, भूरे या रंगीन लोगों जैसे शब्दों को प्रतिस्थापित करने के लिये प्रयोग में आया।
- BIPOC के अंतर्गत लोगों के सामने आने वाले नागरिक अधिकारों की चुनौतियाँ, प्रणालीगत उत्पीड़न और नस्लवाद समान हैं और इस प्रकार, इस शब्द का उपयोग काले और स्वदेशी लोगों के बीच सामूहिक अनुभव को सुदृढ़ करने और उन्हें एकजुट करने के लिये किया जाता है।
- आलोचना: हालाँकि कुछ लोग इस शब्द के उपयोग की आलोचना करते हैं क्योंकि यह लोगों के विभिन्न समूहों की अलग-अलग समस्याओं को एक समूह में रखता है और इस प्रकार प्रत्येक के लिये विशेष समाधान की संभावना को समाप्त कर देता है।
- यह भी कहा जा रहा है कि BIPOC में सभी समूह अन्याय के समान स्तर का सामना नहीं करते हैं।
- इसके अलावा, इसे लोगों के विभिन्न समूहों के समरूपीकरण के लिये एक औपनिवेशिक प्रवृत्ति के रूप में देखा जाता है।
स्रोत- द हिंदू
शासन व्यवस्था
पोषण माह
प्रिलिम्स के लिये:पोषण माह, भारतीय कृषि फंड, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, फूड फोर्टिफिकेशन मेन्स के लिये:भारत में कुपोषण से निपटने हेतु किये गए प्रयास एवं संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2018 के बाद से पोषण अभियान के तहत प्रत्येक वर्ष सितंबर माह को पोषण माह (Poshan Maah) के रूप में मनाया जाता है।
प्रमुख बिंदु:
- 'भारतीय कृषि फंड' (Agricultural Fund of India) को प्रत्येक ज़िले में पैदा होने वाली फसलों और उनके पोषण मूल्यों से संबंधित पूरी जानकारी रखने के लिये बनाया जा रहा है।
- पोषण माह-
- इसमें महीने भर की गतिविधियों को शामिल किया गया है जिसमें प्रसव पूर्व देखभाल, इष्टतम स्तनपान, एनीमिया, विकास की निगरानी, लड़कियों की शिक्षा, आहार, विवाह की सही उम्र, स्वच्छता और साफ-सफाई तथा स्वस्थ भोजन (फूड फोर्टिफिकेशन) आदि शामिल हैं।
- ये गतिविधियाँ सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (Social and Behavioural Change Communication- SBCC) पर ध्यान केंद्रित करती हैं तथा जन आंदोलन दिशा-निर्देशों पर आधारित होती हैं।
- SBCC ज्ञान, दृष्टिकोण, मानदंड, विश्वास और व्यवहार में परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिये संचार दृष्टिकोण का एक रणनीतिक उपयोग है।
- जन आंदोलन पोषण अभियान के तहत रणनीतियों में से एक है।
- माई Gov पोर्टल पर एक खाद्य और पोषण प्रश्नोत्तरी तथा साथ ही मीम प्रतियोगिता भी आयोजित की जाएगी।
- इसके अलावा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी- गुजरात (Statue of Unity) में एक विशेष प्रकार का पोषण पार्क भी बनाया गया है, जहाँ मौज मस्ती के साथ पोषण संबंधी जानकारी भी ली जा सकती है।
- पोषण अभियान:
- इसे राष्ट्रीय पोषण मिशन के रूप में भी जाना जाता है, यह बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं हेतु पोषण परिणामों में सुधार करने के लिये भारत सरकार का प्रमुख कार्यक्रम है। पोषण का अर्थ है-'समग्र पोषण के लिये प्रधान मंत्री व्यापक योजना'।
- शुरुआत-
- इसे प्रधानमंत्री द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 8 मार्च, 2018 को राजस्थान के झुंझनू से लॉन्च किया गया था।
- क्रियान्वयन-
- इसका क्रियान्वयन महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।
- लक्ष्य-
- इसका लक्ष्य वर्ष 2022 तक स्टंटिंग, कम वजन और जन्म के वक़्त, शिशु में कम वजन, प्रत्येक में प्रति वर्ष 2 प्रतिशत की तथा युवा बच्चों, किशोरों और महिलाओं में एनीमिया प्रत्येक में प्रति वर्ष 3 प्रतिशत की कमी लाना है।
- स्टंटिंग को कम करने का न्यूनतम लक्ष्य प्रत्येक वर्ष 2 प्रतिशत है, परंतु यह मिशन इसे 2016 के 38.4 प्रतिशत से वर्ष 2022 तक 25 प्रतिशत तक कम करने का प्रयास करेगा।
स्रोत: पीआइबी
शासन व्यवस्था
भारत में छात्रवृत्ति योजनाएँ
प्रिलिम्स के लिये:भारत में छात्रवृत्ति योजनाएँ मेन्स के लिये:भारत में छात्रवृत्ति योजनाओं से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, पंजाब में अनुसूचित जाति (Scheduled Castes-SC) के लिये पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना में करोड़ों रुपए का घोटाला सामने आया है।
प्रमुख बिंदु:
- केंद्र सरकार सभी मौजूदा छात्रवृत्ति योजनाओं को मिलाकर एक एकल राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना (Single National Scholarship Scheme) लाने की योजना बना रही है।
- SCs के लिये पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति-
- यह वर्ष 2006 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है। जिसे राज्य सरकार और केंद्र-शासित राज्यों के प्रशासन के माध्यम से लागू किया गया है।
- यह योजना अनुसूचित जाति के छात्रों को अपनी शिक्षा पूरी करने के उद्देश्य से पोस्ट मैट्रिक या स्नातकोत्तर स्तर पर अध्ययन करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- यह छात्रवृत्ति केवल भारत में अध्ययन के लिये उपलब्ध है और यह उन छात्रों को प्रदान की जाती है, जिनके अभिभावकों की आय प्रति वर्ष 2,50,000 रूपए से कम है।
- एकल राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना-
- केंद्र सरकार ‘पीएम यंग अचीवर्स स्कॉलरशिप अवार्ड योजना फॉर वाइब्रेंट इंडिया’ (PM Young Achievers Scholarship Award Scheme for Vibrant India-PM-YASASVI) नामक एक एकल राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना स्थापित करने पर विचार कर रही है, जिसमें सभी मौजूदा छात्रवृत्ति योजनाओं को शामिल कर दिया जाएगा।
- लाभार्थी:
- अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class (OBC), SCs, डिनोटिफाइड (Denotified), घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजाति (Nomadic and semi-Nomadic Tribe- DNT) तथा आर्थिक रूप से पिछड़ी जाति (Economically Backward Caste- EBC) श्रेणियों के छात्र राष्ट्रीय छात्रवृत्ति का लाभ उठा सकेंगे।
- क्रियान्वयन एजेंसी:
- इस योजना का क्रियान्वयन सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment ) द्वारा एक योग्यता परीक्षा आयोजित कराके किया जाएगा।
- एकल राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना के लाभ:
- सरकार की छात्रवृत्ति योजना संबंधित जानकारी की पहुँच को बढ़ाने में मददगार।
- देश भर में एक बुनियादी पाठ्यक्रम और शिक्षण मानकों को बनाए रखने के महत्त्व को बढ़ावा देना।
- छात्रवृत्ति की गुणवत्ता और कार्यान्वयन में सुधार करने में सहायता करना।
- शामिल मुद्दे:
- यदि कोई छात्र छात्रवृत्ति की समय सीमा से चूक जाता है, तो उसे दूसरी छात्रवृत्ति के लिये आवेदन करने का दूसरा मौका नहीं मिलेगा।
- राष्ट्रीय स्तर की छात्रवृत्ति परीक्षा छात्रों पर एक अतिरिक्त बोझ बन जाएगी।
- छात्रवृत्ति हेतु योग्यता की पहचान के लिये अलग से परीक्षा आयोजित कराना निरर्थक है क्योंकि छात्रों पर पहले से ही बोर्ड परीक्षाओं और प्रवेश परीक्षाओं का बोझ है।
- यदि मौजूदा प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजनाओं को बंद किया जाता है, तो इससे छात्रों की शिक्षा में बाधा आ सकती है।
आगे की राह:
- PM-YASASVI के तहत एकल राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना तभी लाभकारी हो सकती है जब इसे सही तरीके से लागू किया जाए।
- सही कार्यान्वयन के बिना यह योजना भारत में छात्रों के लिये मदद के बजाय एक बाधा बन सकती है।
- सरकार को इस नई छात्रवृत्ति योजना को विकसित करते हुए छात्रवृत्ति प्रदाता प्लेटफार्मों के अनुभव का लाभ उठाना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
तुर्की-ग्रीस गतिरोध
प्रिलिम्स के लियेतुर्की-ग्रीस की भौगोलिक अवस्थिति मेन्स के लियेतुर्की-ग्रीस संबंध और इनका भारत पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खोजे गए गैस भंडार को लेकर ग्रीस और तुर्की के बीच बढ़ते तनाव के बीच फ्राँस ने पूर्वी भूमध्य सागर में अपनी सेना तैनात कर दी है। फ्राँस के अनुसार, भूमध्य सागर में स्थिति के स्वायत्त मूल्यांकन को सुदृढ़ करने और क्षेत्र में मुक्त गतिविधि, समुद्री नेवीगेशन की सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान के संदर्भ में फ्राँस की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिये सेना को तैनात किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- गतिरोध:
- कारण: यूरोपीय संघ (EU), पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका में ग्रीस के सहयोगियों ने गैस परिवहन के लिये भूमध्य सागर से यूरोप की मुख्य भूमि तक गैस पाइपलाइन बनाने की योजना बनाई। इन्होंने तुर्की को इस योजना से बाहर रखा, जिसका तुर्की ने विरोध किया है।
- इस योजना के निर्माण से EU की रूस पर निर्भरता कम हो जाएगी।
- 2019 की शुरुआत में साइप्रस, मिस्र, ग्रीस, इटली, जॉर्डन और फिलिस्तीन ने ईस्टमीड गैस फोरम (EastMed Gas Forum) का गठन किया और एक बार फिर से तुर्की को इससे बाहर रखा।
- तुर्की की प्रतिक्रिया: तुर्की ने EU की पाइपलाइन योजना को चुनौती दी और एक विशेष आर्थिक ज़ोन (Exclusive Economic Zone-EEZ) के निर्माण हेतु लीबिया के साथ एक समझौता किया, यह EEZ तुर्की के दक्षिणी बिंदु से लेकर भूमध्य सागर के पार लीबिया के पश्चिमी बिंदु तक होगा।
- हालाँकि ग्रीस ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि तुर्की का यह विशेष आर्थिक ज़ोन इसकी महासागरीय संप्रभुता का उल्लंघन करता है और इसके बाद ग्रीस ने मिस्र के साथ अपने EEZ के निर्माण की घोषणा कर दी जो तुर्की के EEZ के साथ गतिरोध उत्पन्न करता है।
- ग्रीस के इस समझौते पर प्रतिक्रिया देते हुए तुक्री ने ग्रीस-मिस्र समझौते में वर्णित कास्तेलोरिज़ो (Kastellorizo) द्वीप क्षेत्र के समीप अपना सर्वे जहाज़ तैनात कर दिया।
- यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि ग्रीस और तुर्की के मध्य विवाद जन्मा है। पिछले चार दशकों में दोनों देशों के मध्य कम-से-कम तीन बार युद्ध की स्थिति भी बन चुकी है।
- कारण: यूरोपीय संघ (EU), पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका में ग्रीस के सहयोगियों ने गैस परिवहन के लिये भूमध्य सागर से यूरोप की मुख्य भूमि तक गैस पाइपलाइन बनाने की योजना बनाई। इन्होंने तुर्की को इस योजना से बाहर रखा, जिसका तुर्की ने विरोध किया है।
- मुद्दे:
- अतिव्यापी दावे: तुर्की और ग्रीस दोनों ही देश अधिकतर ग्रीक द्वीपों के साथ संलग्न महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा के संबंध में व्याप्त परस्पर विरोधी विचारों के आधार पर क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन संसाधनों पर किये जाने वाले अतिव्यापी दावों से असहमत हैं।
- तुर्की का कहना है कि पूर्वी भूमध्य सागर में सबसे लंबी तटरेखा होने के बावजूद, यह ग्रीस के महाद्वीपीय शेल्फ के विस्तार के कारण पानी की एक संकीर्ण पट्टी में सीमित है, जो इसके तट के पास कई यूनानी/ग्रीक द्वीपों की उपस्थिति पर आधारित है।
- कास्तेलोरिज़ो द्वीप, जो कि तुर्की के दक्षिणी तट से 2 किमी और ग्रीस की मुख्य भूमि से 570 किमी दूर स्थित है, तुर्की की हताशा का मुख्य कारण है।
- कई देशों की भागीदारी: इस समय सबसे जटिल समस्या यूरोप, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के इस मुद्दे में शामिल होने की संभावना है।
- यूरोपीय संघ के सबसे शक्तिशाली सैन्य बल फ्राँस ने ग्रीस और साइप्रस को अपना समर्थन दिया है।
- साइप्रस भौगोलिक रूप से दो भागों में विभाजित है; दक्षिणी भाग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार द्वारा शासित है और उत्तरी भाग, तुर्की द्वारा नियंत्रित है।
- ग्रीस, साइप्रस, इटली और फ्राँस के बीच एक गठबंधन भी उभरकर सामने आ रहा है, जिसे मिस्र, इज़राइल और UAE का भी समर्थन प्राप्त है।
- इन सबका परिणाम यह है कि इस क्षेत्र में तुर्की लगभग अलग-थलग हो गया है, लेकिन यह अभी भी भूमध्य सागर में एक प्रमुख शक्ति बन हुआ है।
- अतिव्यापी दावे: तुर्की और ग्रीस दोनों ही देश अधिकतर ग्रीक द्वीपों के साथ संलग्न महाद्वीपीय शेल्फ की सीमा के संबंध में व्याप्त परस्पर विरोधी विचारों के आधार पर क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन संसाधनों पर किये जाने वाले अतिव्यापी दावों से असहमत हैं।
आगे की राह
- यदि यूरोपीय संघ, साइप्रस और इटली के माध्यम से इज़राइल के तट से यूरोप के लिये गैस परिवहन करना चाहता है, तो तुर्की के साथ एक खुला संघर्ष बिलकुल भी मददगार साबित नहीं हो सकता। हर किसी के हित में है कि तनाव को कम किया जाए और गैस संबंधी संघर्ष का एक रणनीतिक एवं पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने का प्रयास किया जाए।
- तुर्की को अलग-थलग करना, यह जानते हुए भी इसकी भूमध्य तटीय सीमा सबसे अधिक है, नासमझी होगी। तुर्की द्वारा इस क्षेत्र के छोटे देशों को धमकी देने के अवसर प्रदान करना रणनीतिक रूप से विनाशकारी ही होगा। ऐसे में यूरोपीय संघ को इन दोनों विकल्पों के बीच संतुलन बनाना होगा अन्यथा परिणाम सभी के लिये चिंताजनक होंगे।