डेली न्यूज़ (31 Aug, 2019)



टीबी के विरुद्ध आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित समाधान

चर्चा में क्यों?

तपेदिक (टीबी) के खिलाफ लड़ाई में आधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) प्रौद्योगिकी के प्रयोग के तरीके खोजने के लिये स्वास्थ्य मंत्रालय के केंद्रीय टीबी विभाग ने वाधवानी इंस्टीट्यूट फॉर ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Wadhwani Institute for Artificial Intelligence) के साथ समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding-MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इस सहभागिता में वाधवानी AI राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम को ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिये तैयार करेगा, जिसमें इसे विकसित करना, मार्गदर्शन करना और AI आधारित समाधान को विस्तार देना शामिल है।
  • यह इस कार्यक्रम को अतिसंवेदनशीलता और हॉट-स्पॉट मैपिंग में मदद देगा।
  • स्क्रीनिंग एवं डायग्नोस्टिक्स के नए तरीकों के प्रतिरूपण और ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की अन्य प्रौद्योगिकियों को अपनाने में RNTCP (Revised National Tuberculosis Control Program) का साथ देने के साथ-साथ देखभाल करने वालों को फैसला लेने में सहायता उपलब्ध कराएगा।

तपेदिक (TB) क्या है?

  • इस रोग को ‘क्षय रोग’ या ‘राजयक्ष्मा’ के नाम से भी जाना जाता है। यह ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस’ नामक बैक्टीरिया से फैलने वाला संक्रामक एवं घातक रोग है। सामान्य तौर पर यह केवल फेफड़ों को प्रभावित करने वाली बीमारी है, परंतु यह मानव-शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित कर सकती है।

भारत की प्रतिबद्धता

  • भारत में तपेदिक उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय रणनीतिक योजना के 4 स्तंभ हैं, जो तपेदिक नियंत्रण के लिये प्रमुख चुनौतियाँ हैं जिन्हें “पता लगाना, इलाज, रचना और रोकथाम” नाम दिया गया है।

संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP)

  • 26 मार्च, 1997 को संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP) को डॉट्स प्रणाली के साथ शुरू किया गया।
  • यह कार्यक्रम देश के लिये बहुत अच्छा रहा, इसमें इलाज का औसत 85 प्रतिशत रहा और मृत्युदर घटकर पाँच प्रतिशत से भी कम हो गई। 90 प्रतिशत नए स्मीयर रोगियों को डॉट्स (DOTS) के तहत निगरानी में रखा गया।
  • इस कार्यक्रम के तहत प्रतिमाह 1 लाख से भी अधिक रोगियों का इलाज कर, अब तक करीब 15.75 लाख से अधिक लोगों को इस रोग से बचाया जा सका है। वर्तमान में सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों पर सप्ताह में तीन दिन दी जाने वाली खुराक के स्थान पर इसे प्रतिदिन देना निर्धारित किया गया है जिसका लक्ष्य टीबी रोगियों को इथैन ब्यूटॉल की प्रतिदिन एक निश्चित खुराक देकर इस रोग पर नियंत्रण पाना है।
  • परंतु, इस कार्यक्रम की भी कुछ सीमाएँ हैं, जिनमें पहली, चूँकि खाँसी कई रोगों का एक बेहद सामान्य लक्षण है इसलिये चिकित्सक तब तक इसकी पहचान टीबी के रूप में नहीं करते जब तक अन्य उपचार विफल नहीं हो जाते हैं।
  • जब तक मरीज़ का परीक्षण होता है और वह उपचार लेता है तब तक रोग का संचरण और अधिक व्यक्तियों तक हो चुका होता है।
  • दूसरी, लोगों द्वारा इलाज में लापरवाही बरतना, जिस कारण रोगों के रोगाणु प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं और यह सामान्य टीबी से MDR और XDR तक बढ़ जाती है। इसी कारण अभी तक इस रोग पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त नहीं किया जा सका है।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई तकनीक को अपनाने में संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम आगे आया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हेल्थकेयर क्षेत्र को एक अलग अवसर प्रदान कर रहा है, इसमें दक्षता ला रहा है। इससे संसाधनों की बचत हो रही है और गुणवत्ता वाली सेवाओं की आपूर्ति बढ़ाने एवं जाँच में सटीकता लाने में मदद मिल रही है। इस क्षेत्र में इसके उपयोग से काफी अच्छे नतीजे आने की संभावना है, खासकर ऐसे परिस्थिति में, जहाँ संसाधन सीमित हैं। भारत वैश्विक सतत् विकास लक्ष्य से पाँच साल पहले 2025 तक टीबी को खत्म करने के लिये प्रतिबद्ध है।

स्रोत: pib


पर्यावरण संरक्षण: विभिन्न आयाम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में IPCC ने ‘जलवायु परिवर्तन (Climate Change), मरुस्थलीकरण (Desertification), भूमि अपक्षयण (Land Degradation), सतत् भूमि प्रबंधन (Sustainable Land Management), खाद्य सुरक्षा (Food Security) तथा स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Terrestrial Ecosystems) में ग्रीनहाउस गैस का प्रवाह’ पर एक नवीनतम रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि भू-सतह पर वायु का तापमान बढ़कर लगभग दोगुना (1.3 डिग्री सेल्शियस) हो गया है।

पृष्ठभूमि

ग्लोबल वार्मिंग- 1.5°C पर IPCC की विशेष रिपोर्ट, 2018 में कहा गया है कि मानव गतिविधियों के कारण पूर्व-औद्योगिक समय से अभी तक वैश्विक औसत तापमान में लगभग 0.87°C की वृद्धि हुई है।

प्रभाव

  • विश्व की भूमि प्रणालियों का मानव कल्याण, आजीविका, खाद्य सुरक्षा और जल सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
  • कृषि उपयोग हेतु भूमि के अधिकाधिक उपयोग से मरुस्थलीकरण में वृद्धि हो रही है, यह फसल की पैदावार में कमी जैसे पहले से ही गंभीर खतरों को और बढ़ावा दे गा।

आवश्यक कदम

  1. रिपोर्ट में प्रस्तावित कई सुधारात्मक उपायों जैसे कि कम जुताई, भूमि संरक्षण वाली फसलें लगाना, चराई प्रबंधन में सुधार तथा कृषि वानिकी का अधिक-से-अधिक उपयोग आदि उपायों को लागू करने की आवश्यकता है।
  2. वनों को बनाए रखना और बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वन प्राकृतिक रूप से निर्मित कार्बन सिंक होते हैं।

भारत के संदर्भ में चुनौतियाँ

  1. भारत में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment- EIA) का कमज़ोर होना चिंता का विषय है।
  2. भारतीय कृषि क्षेत्र में देश के लगभग 86% से अधिक जल का उपयोग होता है। भारतीय धान की पैदावार में लगने वाला जल विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है।
  3. ICIMOD (International Centre for Integrated Mountain Development) की 2019 में प्रकाशित HIMAP रिपोर्ट से प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्लेशियरों की कमी के चलते उत्पन्न होने वाली खाद्य सुरक्षा के संकट को दूर करने के लिये लघु और दीर्घावधि में जल का बेहतर प्रबंधन किये जाने की आवश्यकता है।
  4. खाद्य क्षेत्र में उपभोग और अपशिष्ट प्रबंधन भी जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक है।

आगे की राह

  • औद्योगिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के लिये विवेकपूर्ण रूप से योजना बनाई जा सकती है।
  • वन पारिस्थितिकी तंत्र के प्रतिस्थापन के बिना औद्योगिकीकरण हेतु भूमि का मितव्ययी तरीके से उपयोग तथा उपयुक्त ज़ोनिंग द्वारा पर्यावरण सुरक्षा के उपाय संभव हैं।
  • वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्टों से पता चला है कि प्रकृति के अत्यंत समीप रहने वाले आदिवासी लोगों से परामर्श करना, स्थानीय ज्ञान को वैज्ञानिक ज्ञान के साथ एकीकृत करने का एक महत्त्वपूर्ण तरीका है।
  • जल प्रबंधन की स्थिति भी संकटमय है। इस कार्य के लिये केंद्र सरकार ने “सिंचाई जल उत्पादकता” का लक्ष्य रखा है। कुछ अन्य समाधान इस प्रकार हैं-
    • ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी सुसंगत सिंचाई प्रथाओं को बढ़ावा देना।
    • जल-गहन नकदी फसलों की पैदावार को कम करना।
    • धान की खेती में सिंचाई और उसे सुखाने (AWR) हेतु वैकल्पिक पद्धतियाँ अपनाना।
    • किसानों को जल के कुशल उपयोग हेतु तकनीकों और पद्धतियों के प्रति संवेदनशील बनाना।
    • जल-कुशल कृषि पद्धतियों का उपयोग करना।
    • कम वर्षा वाले क्षेत्रों में टैंकों और कृत्रिम तालाबों के निर्माण, जैसी पारंपरिक वर्षा जल संचयन पद्धतियों को अपनाना।
    • IPCC रिपोर्ट में अधिक वनस्पति-आधारित आहार की ओर रुख को एक स्वस्थ स्थायी आहार विकल्प माना गया है।
  • संयुक्त राष्ट्र (UN) का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक विश्व की आबादी 9.7 बिलियन हो सकती है, इसलिये भूमि और पानी की प्रति यूनिट उपलब्धता के लिये खाद्य आपूर्ति को बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत में मौजूद अत्यधिक गरीब आबादी के कारण यह बदलाव भारत के लिये और भी महत्त्वपूर्ण है।

खाद्य प्रणाली में विविधता, संतुलित आहार एवं मांसाहारी आहार में कमी से सभी को स्वास्थ्य लाभ, अनुकूलन तथा शमन को सतत् विकास हेतु लाभदायक माना जाता है। अन्य लाभों के लिये फसल प्रबंधन के साथ पशुधन क्षेत्र का प्रबंधन भी आवश्यक है। मांस की खपत के प्रबंधन हेतु लोगों को शिक्षित करना महत्त्वपूर्ण हो सकता है। बाज़ार को मानव स्वास्थ्य लाभ के साथ संरेखित कर उसे प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। कार्बन-गहन विकास पथ से बचने के लिये तथा सतत् विकास को आगे बढाने हेतु भारत के कई अन्य विकल्प तथा सांस्कृतिक फायदे उपलब्ध हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


ईल की नई प्रजातियाँ

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्राणि सर्वेक्षण (Zoological Survey of India) के तहत आने वाले एश्चुअरी बायोलॉजी रीज़नल सेंटर (Estuarine Biology Regional Centre- EBRC) ने समुद्री ईल (EEL) की दो नई प्रजातियों का पता लगाया है।

species of EELS discovered

प्रमुख बिंदु

  • इनमें से एक प्रजाति छोटी भूरी पैटर्न रहित (Un-Patterned) वाला मोराय ईल (Moray EEL) है जिसे जिम्नोथोरैक्स अंडमानेसेसिस (Gymnothorax andamanensesis) वैज्ञानिक नाम दिया गया है। यह प्रजाति दक्षिण अंडमान तट पर पाई गई है।
  • जिम्नोथोरैक्स अंडमानेसिस ईल के नमूनों को पोर्ट ब्लेयर स्थित ICAR- केंद्रीय द्वीपीय कृषि अनुसंधान संस्थान के मत्स्य विज्ञान विभाग (Division of Fisheries Science, ICAR-Central Island Agricultural Research Institute, Port Blair) द्वारा एकत्र किया गया।
  • वर्तमान में विश्व भर में छोटी भूरी बिना पैटर्न (un-patterned) वाली मोराय ईल की 10 ज्ञात प्रजातियाँ हैं जिनमें से 3 भारत में पाई गई हैं।
  • इसी प्रकार एक नई श्वेत-चित्तीदार मोराय ईल (White-Spotted Moray EEl) की खोज की गई है। इसे 'जिम्नोथोरैक्स स्मिथी' (Gymnothorax Smithi) वैज्ञानिक नाम दिया गया है। यह ईल अरब सागर में पाई जाती है।

समुद्री ईल

  • ईल नदियों और समुद्रों के तल में पाई जाती हैं।
  • ये साँप की तरह दिखाई देने वाले जीव होते हैं। समुद्र में पाई जाने वाली ईल अक्सर काले एवं भूरे रंग की होती है।
  • समुद्री ईल अधिकांश उथले पानी में पाए जाती है लेकिन इनमें से कुछ अपतटीय रेतीले या कीचड़ युक्त तल में 500 मीटर की दूरी तक भी पाई जाती हैं।
  • ये घोंघा एवं केकड़ों का शिकार करती हैं।

आगे की राह

  • भारत की लंबी समुद्री तट रेखा है परंतु अधिकांश समुद्री जैव-विविधता अभी तक अनन्वेषित (Unexplored) है।
  • ईल के संबंध में अन्वेषण को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है जिसके द्वारा संवर्द्धित ज्ञान इसके संरक्षण और उचित उपयोग को सुनिश्चित करने में सहायक होगा।

भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण

(Zoological Survey of India-ZSI)

  • भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (ZSI), पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत एक संगठन है।
  • समृद्ध जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने हेतु अग्रणी तथा सर्वेक्षण, अन्वेषण और अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण (ZSI) की स्थापना तत्कालीन 'ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य' में 1 जुलाई, 1916 को की गई थी।
  • इसका उद्भव 1875 में कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में स्थित प्राणी विज्ञान अनुभाग की स्थापना के साथ ही हुआ था।
  • इसका मुख्यालय कोलकाता में है तथा वर्तमान में इसके 16 क्षेत्रीय स्टेशन देश के विभिन्न भौगोलिक स्थानों में स्थित हैं।

स्रोत: द हिंदू


एंटीबायोटिक प्रतिरोध

चर्चा में क्यों?

जल शक्ति मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अंतर्गत संपूर्ण गंगा में सूक्ष्मजीवों की विविधता (Microbial Diversity) का आकलन करने के लिये एक अनुसंधान परियोजना शुरू की गई है। इस परियोजना के तहत ‘एंटीबायोटिक प्रतिरोध’ (Antibiotic Resistance) को बढ़ावा देने वाले सूक्ष्मजीवों का पता लगाया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • इस परियोजना को मोतीलाल नेहरू प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद; राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (National Environmental Engineering Research Institute-NEERI), नागपुर; सरदार पटेल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, गोरखपुर के वैज्ञानिकों द्वारा पूरा किया जाना है।
  • इस परियोजना में दो स्टार्ट-अप कंपनियों फिक्सेन (Phixgen) और एक्सलरिस (Xcelris) लैब को भी शामिल किया गया है। ये स्टार्टअप जीनोम अनुक्रमण सेवाएँ (Genome Sequencing Services) प्रदान करने का कार्य करेंगे जिसमें सूक्ष्मजीवों के जीनोम की मैपिंग भी शामिल होगी।

अनुसंधान परियोजना का उद्देश्य

  • सीवेज और उद्योगों द्वारा नदी में फैलाए गए संदूषण (Contamination) का पता लगाना।
  • मानव स्वास्थ्य के लिये खतरनाक एंटीबायोटिक प्रतिरोध बढ़ाने करने वाले सूक्ष्मजीवों की वृद्धि के बारें में पता लगाना।
  • जानवरों और मनुष्यों की आँतो में रहने वाले एक प्रकार के ई-कोलाई [Escherichia coli- (E-Coli)] के स्रोतों की पहचान करना।

ई. कोलाई क्या है?

  • ई-कोलाई की साधारणतः बहुत सी प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनमें से कुछ बहुत ज़्यादा हानिकारक होती हैं।
  • ई-कोलाई हमारे शरीर की आँत में इंफेक्शन फैलाकर हानि पहुँचाता है। यह तालाब, झीलों, पोखरों में पाया जाता है।

पूर्व के अनुसंधान

  • इस संबंध में पूर्व में अनेक अनुसंधान हो चुके हैं परंतु संपूर्ण गंगा के लिये यह पहला अनुसंधान है।
  • वर्ष 2014 में यू.के. की न्यूकास्टेल यूनिवर्सिटी (Newcastle University) एवं आई.आई.टी., दिल्ली (IIT-Delhi) ने अलग-अलग मौसमों में गंगा के मात्र सात स्थानों पर जल और अवसादों के नमूने एकत्र किये।
    • रिपोर्ट के अनुसार मई और जून माह में तीर्थ व धार्मिक कार्यों के समय सुपरबग्स के लिये उत्तरदायी प्रतिरोध जीनों का स्तर वर्ष के अन्य समय की तुलना में लगभग 60 गुना अधिक था।
  • वर्ष 2017 में केंद्रीय जैव प्रौद्योगिकी विभाग और यू.के. रिसर्च काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एंटीबायोटिक प्रतिरोध दर उच्च है जो आमतौर पर संक्रमण का कारण बनती है।

स्रोत: द हिंदू


भारत की GDP वृद्धि दर में गिरावट

चर्चा में क्यों?

सांख्यिकी मंत्रालय (Ministry of Statistics) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में भारत की सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) वृद्धि दर सिर्फ 5 फीसदी रह गई है।

6 वर्षों के निचले स्तर पर है GDP वृद्धि दर

  • वर्तमान वित्त वर्ष (2019-20) की पहली तिमाही की GDP वृद्धि दर विगत 6 वर्षों के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है।
  • इससे पूर्व वित्तीय वर्ष 2012-13 की चौथी तिमाही (जनवरी से मार्च) में GDP वृद्धि दर सबसे निचले स्तर पर पहुँची थी।
  • ज्ञातव्य है कि पिछले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारत की GDP 8 फीसदी की दर से वृद्धि कर रही थी।

क्या होती है GDP?

  • किसी अर्थव्यवस्था या देश के लिये सकल घरेलू उत्पाद या GDP एक निर्धारित अवधि में उस देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य होता है। यह अवधि आमतौर पर एक साल की होती है।
  • ज्ञातव्य है कि GDP के मूल्यांकन के लिये कीमतों की आवश्यकता होती है और कीमतों के लिये बाज़ारों की ज़रूरत पड़ती है। अतः GDP केवल उन वस्तुओं और सेवाओं को प्रतिबिंबित करता है जो विपणन योग्य हैं और जिनके बाज़ार हैं। ज़ाहिर है, जिसका बाज़ार नहीं होता, उसे GDP में शामिल नहीं किया जाता। इसको समझने के लिये पर्यावरणीय क्षरण का उदाहरण लेते हैं, जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है लेकिन पर्यावरणीय क्षरण की गणना बाज़ार मूल्य में नहीं की जा सकती, अतः इसे GDP में शामिल नहीं किया जाता।

लगभग सभी क्षेत्रों का प्रदर्शन निराशाजनक

  • आँकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र दो साल के सबसे निचले स्तर यानी 0.6 प्रतिशत की दर से बढ़ा रहा है, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष की इसी अवधि में विनिर्माण क्षेत्र 12.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा रहा था।
  • कृषि क्षेत्र में भी काफी सुस्ती देखने को मिल रही है। जहाँ एक ओर पिछले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में कृषि क्षेत्र की विकास दर 5.1 प्रतिशत थी, वहीं वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में यह सिर्फ 2 फीसदी रह गई है।
  • पिछली तिमाही से ही सुस्त पड़ा रियल एस्टेट सेक्टर (Real Estate Sector) इस तिमाही में भी कुछ खास वृद्धि नहीं कर पाया है। पिछले वित्तीय वर्ष (2018-19) की पहली तिमाही में जहाँ रियल एस्टेट सेक्टर ने 9.6 फीसदी की दर से वृद्धि की थी, वहीं इस वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में यह घटकर 5.7 फीसदी रह गई है।
  • हालाँकि राष्ट्रीय स्तर पर सुस्ती के बावजूद देश के ऊर्जा सेक्टर (Power Sector) ने विकास दर के मामले में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में इस सेक्टर की विकास दर 8.6 प्रतिशत है, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष की इसी अवधि में यह 6.7 प्रतिशत थी।

GDP वृद्धि दर में गिरावट के कारण

  • सांख्यिकी मंत्रालय के आँकड़े दर्शाते हैं कि मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में निजी खर्च की वृद्धि दर मात्र 3.1 फीसदी रही है, जो कि वर्ष 2012 के बाद सबसे कम है। निजी खर्च में कमी को ही वृद्धि दर में गिरावट का मुख्य कारण माना जा रहा है।
  • चीन और अमेरिका के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आई वैश्विक सुस्ती को भी भारत की GDP वृद्धि दर में गिरावट का कारण माना जा सकता है।
  • हाल ही में नीति आयोग के CEO अमिताभ कांत ने कहा था कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में किये गए ढेरों सुधारों के प्रभावस्वरूप ही भारत की GDP विकास दर में गिरावट देखने को मिल रही है।

कैसे सुधरेगी स्थिति?

  • भारतीय अर्थव्यवस्था ढाँचागत और चक्रीय दोनों वजहों से प्रभावित हो रही है एवं यदि सरकार इसे पुनः पटरी पर लाना चाहती है तो अल्पावधि व दीर्घावधि दोनों प्रकार के उपाय अपनाने की आवश्यकता है।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी अर्थव्यवस्था के निजी निवेश में गिरावट का प्रमुख कारण उस अर्थव्यवस्था में मौजूद नकारात्मक धारणाएँ होती हैं, जिसके कारण लोग निवेश करने से डरते हैं और परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था की विकास गति धीमी हो जाती है। भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ भी यही हुआ है और यदि भारत को विकास दर में वृद्धि करनी है तो अर्थव्यवस्था में मौजूद नकारात्मक धारणाओं को समाप्त करना होगा।
  • इसके अतिरिक्त सरकार ने हाल ही में सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था की गति को तेज़ करने के लिये कई सारे कदम उठाए थे, आशा की जा रही है कि सरकार की इन घोषणाओं का असर जल्द ही भारतीय अर्थव्यवस्था में देखने को मिलेगा। साथ ही सरकार ने FDI से संबंधित मापदंडों को विदेशी निवेश को आकर्षित करने के उद्देश्य से संशोधित किया है, ताकि विदेशी निवेश में बढ़ोतरी की जा सके।

निष्कर्ष

चूँकि भारतीय अर्थव्यवस्था मांग आधारित है और हालिया आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत के उपभोग में काफी कमी आई है, सदाबहार माना जाने वाला FMCG (Fast-Moving Consumer Goods) सेक्टर भी सुस्ती से प्रभावित है, देश की सबसे बड़ी FMCG कंपनी हिंदुस्तान यूनीलीवर के उत्पादन में कुल 7 प्रतिशत की गिरावट आई है। यदि अर्थव्यवस्था इसी गति से आगे बढ़ेगी तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि वर्ष 2024 तक भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनने का उद्देश्य कैसे पूरा करेगा? सरकार द्वारा इस खराब आर्थिक स्थिति से निपटने के लिये कई प्रयास किये गए हैं जो सराहनीय हैं, परंतु अभी भी कई क्षेत्रों का खराब प्रदर्शन इस बात की ओर संकेत करता है कि सरकार को अर्थव्यवस्था के संदर्भ में गंभीरता से विचार करना चाहिये और इसकी गति को तीव्र करने हेतु नए विचारों की खोज करनी चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


10 बैंकों के विलय की घोषणा

चर्चा में क्यों?

अर्थव्यवस्था की गति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हाल ही में केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों का विलय करने की घोषणा की है।

  • केंद्र सरकार के इस कदम के परिणामस्वरूप देश में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks-PSBs) की कुल संख्या 18 से घटकर 12 हो जाएगी।

किन बैंकों का होगा विलय?

1. ओरियन्टल बैंक ऑफ कॉमर्स (Oriental Bank of Commerce) तथा यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (United Bank of India) का विलय पंजाब नेशनल बैंक (Punjab National Bank) में।

  • विलय के पश्चात् पंजाब नेशनल बैंक भारत का दूसरा सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्रक बैंक बन जाएगा।
  • इसके अतिरिक्त बैंक शाखाओं के मामले में भी यह बैंक देश का सबसे बड़ा बैंक होगा, जिसकी 11,437 शाखाएँ होंगी।
  • तीनों बैंकों के विलय के पश्चात् पंजाब नेशनल बैंक का कुल कारोबार 17.95 लाख करोड़ रुपए का हो जाएगा।

2. सिंडिकेट बैंक (Syndicate Bank) का विलय केनरा बैंक (Canara Bank) में।

  • इस विलय के पश्चात् केनरा बैंक देश का चौथा सबसे बड़ा बैंक बन जाएगा।
  • इस बैंक का कुल कारोबार 15.20 लाख करोड़ रुपए का होगा एवं इसकी कुल शाखाओं की संख्या 10,342 हो जाएगी।

3. आंध्रा बैंक (Andhra Bank) तथा कॉर्पोरेशन बैंक (Corporation Bank) का विलय यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (Union Bank of India) में।

  • विलय के पश्चात् यूनियन बैंक ऑफ इंडिया देश का पाँचवां सबसे बड़ा बैंक होगा।
  • इसका कुल कारोबार 14.59 लाख करोड़ रुपए का होगा एवं इसकी कुल शाखाओं की संख्या 9,609 होगी।

4. इलाहाबाद बैंक (Allahabad Bank) का विलय इंडियन बैंक (Indian Bank) में।

  • विलय के पश्चात् यह देश का सातवाँ सबसे बड़ा बैंक बन जाएगा।
  • इसका कुल कारोबार 8.08 लाख करोड़ रुपए का होगा एवं इसकी शाखाओं की कुल संख्या 6,104 होगी।

विलय के कारण

  • केंद्र सरकार के अनुसार, देश के 10 बैंकों का विलय करने से बैंकों के कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी और उनका तुलन-पत्र (Balance sheet) भी मज़बूत होगी।
  • इस फैसले के परिणामस्वरूप देश के बड़े सार्वजनिक बैंक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता करने में सक्षम हो जाएंगे।
  • देश की बैंकिंग प्रणाली भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में योगदान दे सकेगी।

इसके पहले भी हुए हैं विलय

  • सरकार ने बैंकों के विलय की प्रक्रिया को वर्ष 2017 में शुरू किया था। वर्ष 2017 में भारतीय स्टेट बैंक के सहयोगी बैंकों– स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर और भारतीय महिला बैंक का स्टेट बैंक के साथ एकीकरण किया गया था।
  • बैंकों के विलय के दूसरे चरण में सरकार ने जनवरी 2019 में देना बैंक और विजया बैंक का विलय बैंक ऑफ बड़ौदा में करने को स्वीकृति दी गई थी जोकि 1 अप्रैल, 2019 से प्रभाव में आया। यह वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र का दूसरा सबसे बड़ा बैंक है।

वित्त मंत्री द्वारा की गई अन्य घोषणाएँ

  • बैंक प्रबंधन को निदेशक मंडल (Board of Directors) के प्रति जवाबदेह बनाने हेतु एक बोर्ड समिति का गठन किया जाएगा, जिसमें प्रबंध निदेशक सहित महाप्रबंधक और उससे उच्च रैंक वाले अधिकारियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जाएगा।
  • साथ ही बैंकों को एक मुख्य जोखिम अधिकारी की नियुक्ति करने का भी आदेश दिया गया है। मुख्य जोखिम अधिकारी की नियुक्ति बाज़ार के अनुकूल पारितोषिक पर की जाएगी।

स्रोत: द हिंदू


पश्चिम बंगाल का लिंचिंग विरोधी विधेयक

चर्चा में क्यों?

पश्चिम बंगाल विधानसभा ने भीड़ के हमले और हिंसा को रोकने तथा इस संदर्भ में दंड का प्रावधान करने के उद्देश्य से पश्चिम बंगाल (लिंचिंग रोकथाम) विधेयक, 2019 [The West Bengal (Prevention of Lynching) Bill, 2019] विधेयक पारित किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • पश्चिम बंगाल (लिंचिंग रोकथाम) विधेयक, 2019 में किसी व्यक्ति को घायल करने वालों को तीन साल से लेकर आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान किया गया है और यदि लिंचिंग से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो मृत्युदंड या कठोर आजीवन कारावास का प्रावधान भी है।
  • हाल ही में राजस्थान ने भी लिंचिंग को रोकने के विरुद्ध एक विधेयक पारित किया था।
  • भारत में लिंचिंग के विरुद्ध पहला विधेयक मणिपुर ने पास किया था।
  • 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी लिंचिंग पर अंकुश लगाने के लिये दिशा-निर्देश जारी किए थे।

लिंचिंग रोकथाम हेतु सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश

  • DSP स्तर का अधिकारी भीड़ द्वारा की गई हिंसा की जाँच करेगा और लिंचिंग को रोकने में सहयोग करेगा।
  • एक स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया जाए, जो ऐसे लोगों के बारे में खुफिया जानकारी एकत्रित करेगा जो इस तरह की वारदात को अंजाम देना चाहते हैं या फेक न्यूज़ फैला रहे हैं।
  • राज्य सरकार ऐसे क्षेत्रों की पहचान करे जहाँ लिंचिंग की घटनाएँ हुई हैं और इस संदर्भ में पाँच साल के आँकड़े एकत्रित करे। केंद्र और राज्य आपस में समन्वय स्थापित करें। साथ ही सरकार भीड़ द्वारा हिंसा के खिलाफ जागरूकता का प्रसार करे।
  • ऐसे मामलों में IPC की धारा 153A या अन्य धाराओं में तुरंत केस दर्ज हो तथा चार्जशीट दाखिल हो एवं नोडल अधिकारी इसकी निगरानी करे।
  • राज्य सरकार दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के तहत भीड़ हिंसा से पीड़ितों के लिये मुआवज़े की योजना बनाए और चोट की गंभीरता के अनुसार मुआवज़ा राशि तय करे।
  • ऐसे मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो और संबंधित धारा में ट्रायल कोर्ट अधिकतम सज़ा दे।
  • लापरवाही बरतने पर पुलिस अधिकारी के विरुद्ध भी कार्यवाही की जाए।

क्या होती है मॉब लिंचिंग?

  • जब अनियंत्रित भीड़ द्वारा किसी दोषी को उसके किये अपराध के लिये या कभी-कभी अफवाहों के आधार पर ही बिना अपराध किये भी तत्काल सज़ा दी जाए अथवा उसे पीट-पीट कर मार डाला जाए तो इसे भीड़ द्वारा की गई हिंसा या मॉब लिंचिंग कहते हैं। इस तरह की हिंसा में किसी कानूनी प्रक्रिया या सिद्धांत का पालन नहीं किया जाता और यह पूर्णतः गैर-कानूनी होती है।

स्रोत: द हिंदू


भारत होगा कोकिंग कोल का सबसे बड़ा आयातक

चर्चा में क्यों?

फिच सॉल्यूशंस मैक्रो रिसर्च (Fitch Solutions Macro Research) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2025 तक कोकिंग कोल (coking coal) का सबसे बड़ा आयातक देश बन जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 से 2028 तक भारत में कोकिंग कोल के उपभोग में प्रतिवर्ष 5.4% की वृद्धि का अनुमान है। यह वृद्धि इस्पात उद्योग में विस्तार के कारण होगी।
  • उच्च आवृत्ति संकेतक (High Frequency Indicators) के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत द्वारा ऑस्ट्रेलिया से कोकिंग कोल के आयात में 25.8 प्रतिशत की दर से साल-दर-साल वृद्धि देखी गई।
  • भारत कोकिंग कोल का सबसे अधिक आयात ऑस्ट्रेलिया से करता है।

वैश्विक संदर्भ में

  • इस अवधि तक भारत कोकिंग कोल का चीन से बड़ा आयातक देश बन जाएगा।
  • रिपोर्ट के अनुसार, चीन समग्र बाज़ार हिस्सेदारी के मामले में प्रमुख बना रहेगा जबकि भारत समुद्री मांग (अन्य देशों से आयात) के मामले में महत्त्वपूर्ण रहेगा।
  • चीन, ऑस्ट्रेलियाई कोकिंग कोल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश है। वर्ष 2019 के दूसरी तिमाही तक चीन द्वारा कोकिंग कोल के आयात में 8.8 प्रतिशत की कमी आई है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, अगले कुछ वर्षों में कोकिंग कोल के उत्पादन और उपभोग में चीन की दो-तिहाई भागीदारी रहेगी जिससे चीन का इस्पात उद्योग इसकी समुद्री मांग को प्रभावित करेगा।
  • रिपोर्ट के अनुसार, चीन में कोकिंग कोल की खपत में कमी का कारण इसकी अर्थव्यवस्था और निर्माण की धीमी गति के परिणामस्वरूप इस्पात उत्पादन में कमी है।

कोकिंग कोल

  • कोकिंग कोल को धातु शोधन कोयला के रूप में भी जाना जाता है।
  • इसका प्रयोग कोक बनाने के लिये किया जाता है जो स्टील के उत्पादन में किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन


Rapid Fire करेंट अफेयर्स (31 August)

  • आर्थिक सुधारों को तेज़ी देने के क्रम में भारत सरकार ने 10 और बैंकों का आपस में विलय करने का फैसला किया है। देश में विश्वस्तरीय बैंक बनाने की दिशा में बड़ी पहल करते हुए सरकार ने चार बड़े बैंक बनाने की घोषणा की है। बैंकों के इस विलय के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या कुल 12 रह जाएगी। ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का विलय पंजाब नेशनल बैंक में किया जाएगा और यह देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक बन जाएगा। कुछ समय पहले हुए विजया बैंक, और देना बैंक के विलय से बैंक ऑफ बड़ौदा देश का तीसरा बड़ा बैंक बन गया है। अब सिंडिकेट बैंक के विलय के बाद केनरा बैंक देश का चौथा सबसे बड़ा बैंक बनेगा। आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक के विलय से यूनियन बैंक ऑफ इंडिया पाँचवां सबसे बड़ा बैंक होगा। बैंक ऑफ इंडिया छठे नंबर पर है। इलाहाबाद बैंक के इंडियन बैंक में विलय के बाद यह सातवाँ सबसे बड़ा बैंक बनेगा। इसके बाद सेंट्रल बैंक आठवें नंबर पर, इंडियन ओवरसीज बैंक नौवें स्थान पर तथा यूको बैक 10वें नंबर पर है। बैंक ऑफ महाराष्ट्र और पंजाब एंड सिंध बैंक क्रमश: 11वें और 12वें नंबर पर है।
  • असम में बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) की अंतिम सूची 31 अगस्त की सुबह ऑनलाइन जारी कर दी गई, जिसमें 19 लाख से अधिक लोगों को जगह नहीं मिली है। NRC की सूची में शामिल होने के लिये आवेदन करने वाले 3.30 करोड़ से अधिक आवेदकों में से 3,11,21,004 लोगों को योग्य पाया गया जबकि अपनी नागरिकता के संबंध में आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत न कर पाने वाले 19,06,657 लोगों को इस सूची से बाहर रखा गया है। इस अंतिम सूची से यह पहचान हो सकेगी कि असम में रहने वाला कोई व्यक्ति भारतीय है अथवा विदेशी। अंतिम सूची में उन लोगों के नाम शामिल किये गए हैं जो 25 मार्च, 1971 से पहले असम के नागरिक हैं या उनके पूर्वज राज्य में रहते आए हैं। असम सरकार ने 200 अतिरिक्त विदेशी न्यायाधिकरणों का गठन किया है जहाँ वे नागरिक अपना पक्ष रख सकते हैं जिनके नाम NRC की अंतिम सूची में नहीं हैं। गौरतलब है कि असम अकेला राज्य है जहां पहली बार 1951 में NRC तैयार किया गया था और तब से ऐसा पहली बार हुआ है जब इसे अपडेट किया गया है।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 अगस्त को नई दिल्‍ली के विज्ञान भवन में आयुष मंत्रालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में योग के संवर्धन और विकास में उल्‍लेखनीय योगदान के लिये प्रधानमंत्री पुरस्‍कार के विजेताओं को पुरस्‍कार प्रदान किये। इन पुरस्‍कारों की घोषणा रांची में अंतर्राष्‍ट्रीय योग दिवस के अवसर पर की गई थी। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने विद्वानों, चिकित्‍सकों और आयुष प्रणालियों से इलाज करने वालों के सम्‍मान में 12 स्‍मारक डाक टिकट भी जारी किये। इन स्‍मारक डाक टिकटों पर आयुष प्रणालियों के इन इलाज करने वालों के कार्यों पर प्रकाश डाला गया है। गौरतलब है कि योग के संवर्धन और विकास में उल्‍लेखनीय योगदान के लिये प्रधानमंत्री पुरस्‍कार की स्‍थापना और घोषणा 21 जून, 2016 को दूसरे अंतर्राष्‍ट्रीय योग दिवस के अवसर पर चंडीगढ़ में आयोजित कार्यक्रम के दौरान की गई थी। तब से यह पुरस्‍कार इस क्षेत्र में योगदान देने वाले प्रमुख व्‍यक्तियों को दिया जाता है। प्रत्‍येक पुरस्‍कार विजेता को 25 लाख रुपए का नकद पुरस्‍कार, ट्रॉफी और प्रमाणपत्र दिया जाता है। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने हरियाणा में 10 आयुष स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों की भी शुरुआत की। समग्र प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिये आयुष्मान भारत के तहत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों में आयुष संघटकों को शामिल किया गया है।
  • केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री हरदीप सिंह पुरी ने परिवर्तित प्रबंधन के लिये एक अभियान अंगीकार और भारत की अतिसंवेदनशीलता एटलस (Vulnerability Atlas of India) पर ई-कोर्स की शुरुआत की। ‘अंगीकार’ में पीएमएवाई(यू) के तहत बनाए गए घरों के लाभार्थियों के लिये जल एवं ऊर्जा संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन, स्वास्थ्य, वृक्षारोपण, सफाई एवं स्वच्छता जैसे मुद्दों पर सामुदायिक जुटाव और IEEC गतिविधियों के माध्यम से ध्यान केंद्रित किया जाएगा। ‘अंगीकार’ का लक्ष्य चरणबद्ध तरीके से मिशन के सभी लाभार्थियों तक पहुँचना है। सभी लक्षित शहरों में यह अभियान प्रारंभिक चरण के बाद महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर 2019 को शुरू होगा तथा 10 दिसंबर, 2019 को मानवाधिकार दिवस के अवसर पर इसका समापन होगा। इसके अलावा योजना एवं वास्तुकला विद्यालय, नई दिल्ली और भवन निर्माण सामग्री एवं प्रौद्योगिकी संवर्धन परिषद के सहयोग से आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने अतिसंवेदनशीलता एटलस पर ई-कोर्स की पेशकश की है। यह एक ऐसा कोर्स है, जो प्राकृतिक खतरों के बारे में जागरुकता एवं समझ प्रदान करता है। यह विभिन्न खतरों (भूकंप, चक्रवात, भूस्खलन, बाढ़ आदि) को देखते हुए अति संवेदनशीलता वाले क्षेत्रों की पहचान में मदद करता है और मौजूदा आवासीय भंडार को नुकसान के जोखिम के जिलेवार स्तर को स्पष्ट रूप से बताता है। यह ई-कोर्स वास्तुकला, सिविल इंजीनियरिंग, शहरी एवं क्षेत्रीय योजना, आवास एवं बुनियादी ढांचा योजना, निर्माण इंजीनियरिंग एवं प्रबंधन और भवन एवं सामग्री अनुसंधान के क्षेत्र में आपदा शमन एवं प्रबंधन के लिये एक प्रभावी एवं कुशल साधन होगा।