विविध
भारत में स्वास्थ्य समस्याएँ
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन द्वारा (National Sample Survey Organisation) जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति 10,000 जनसंख्या पर औसतन 20.6 स्वास्थ्यकर्मियों की उपलब्धता है जबकि WHO द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार प्रति 10,000 जनसंख्या पर औसतन 22.8 स्वास्थ्यकर्मियों की उपलब्धता होनी चाहिये। ये आँकड़े इस बात का प्रमाण है कि भारत अपने लक्ष्य प्राप्ति हेतु सही दिशा में कार्यरत है परंतु इस संबंध में भारत की ग्रामीण एवं शहरी आबादी के मध्य असमानता के कुछ तत्त्व भी दृष्टिगोचर होते हैं।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- वर्ष 2012 में जहाँ प्रति 10,000 की जनसंख्या पर औसतन मात्र 19 स्वास्थ्यकर्मी थे, वहीं वर्तमान में औसत संख्या बढ़कर 22.2 हो गई है।
- देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्यकर्मियों का वितरण असमान है। यह असमानता कई स्तरों में विद्यमान हैं।
- भारत की 71% ग्रामीण आबादी के पास मात्र 36% स्वास्थ्यकर्मी हैं। इस प्रकार की असमानता केवल हमारे देश में ही नहीं है बल्कि विश्व के कई देशों की स्थिति इसी प्रकार दयनीय है।
- यदि भारत के संदर्भ में बात करें तो केरल, पंजाब और हरियाणा के बाद दिल्ली में सर्वाधिक स्वास्थ्यकर्मी हैं।
- निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों में भी स्वास्थ्यकर्मियों का वितरण असमान नज़र आता है। 80% डॉक्टर्स, 70% नर्सों एवं दाईयों को निजी क्षेत्र में नियोजित किया गया है।
- स्वास्थ्य के क्षेत्र में मानव संसाधन के असमान वितरण को पाटने के लिये निजी और सार्वजनिक क्षेत्र को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है। हालाँकि इस प्रयास द्वारा स्वास्थ्यकर्मियों की संपूर्ण संख्या पर तत्काल रूप से प्रभाव नहीं पड़ेगा परंतु भविष्यगामी प्रभावों को ध्यान में रखते हुए जल्द-से-जल्द आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये।
- इस संबंध में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य संबंधी नीतियों का लक्ष्य निरंतर गुणवत्ता में वृद्धि का होना चाहिये ताकि इन स्वास्थ्यकर्मियों की पेशवर क्षमता परिष्कृत हो सके।
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन
- राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन भारत के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के अधीन कार्य करने वाली एक संस्था है।
- यह संगठन भारत में सबसे बड़े सामाजिक, आर्थिक सर्वेक्षण के लिये उत्तरदायी हैं।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
DJB की बैठक में लिये गए महत्त्वपूर्ण फैसले
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली जल बोर्ड (Delhi Jal Board-DJB) ने चंद्रावल में एक पेयजल उपचार संयंत्र (Drinking Water Treatment Plant) तथा ओखला में मल-जल उपचार संयंत्र (Sewage Treatment Plant) के निर्माण के साथ ही एक जल संग्रहालय (Water Museum) की स्थापना को मंज़ूरी दी है।
पेयजल उपचार संयंत्र (Drinking Water Treatment Plant)
प्रमुख बिंदु
- इस संयंत्र के निर्माण में लगभग 598 करोड़ रुपए की लागत आएगी।
- लगभग तीन साल में पूरा होने वाले इस संयंत्र की उत्पादन क्षमता 477 मिलियन लीटर प्रतिदिन (Millions of Liters Per Day-MLD) होगी।
- यह संयंत्र कुल पेयजल उत्पादन क्षमता में 11% की वृद्धि करेगा।
- DJB के अनुसार, नए संयंत्र से लगभग 22 लाख लोग लाभान्वित होंगे।
संयंत्र में उन्नत तकनीक का होगा प्रयोग
संयंत्र का निर्बाध कार्य सुनिश्चित करने के लिये ओज़ोनेशन (Ozonation) और एक्टिवेटेड कार्बन की उन्नत तकनीक का उपयोग किया जाएगा। यह पानी में 4 PPM (Parts Per Million) की सीमा तक उच्च अमोनिया का शोधन करने में सक्षम होगा जो वर्तमान संयंत्र की अमोनिया शोधन क्षमता (0.8 PPM) का पाँच गुना है।
- ओज़ोन में कीटाणुशोधन (Disinfection) प्रभाव क्लोरीनीकरण (Chlorination) की तुलना में अधिक होता है। इसके अलावा इसके ऑक्सीकारक गुण लौह (Iron), मैंगनीज़ (Manganese), सल्फर (Sulfur) की सांद्रता को भी कम कर सकते हैं और स्वाद एवं गंध की समस्याओं को हल कर सकते हैं।
जल संग्रहालय (Water Museum)
- दिल्ली जल बोर्ड ने 12 करोड़ रुपए की लागत से किलोकरी में एक जल संग्रहालय, प्रशिक्षण केंद्र और एक जल निकाय (Waterbody) के निर्माण को भी मंज़ूरी दी है।
- इसमें स्कूली बच्चों, पेशेवरों, रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA), गैर सरकारी संगठनों (NGO) और जनता के लिये जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन, विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार, जल संरक्षण और झीलों के कायाकल्प और भूजल पुनर्भरण हेतु एक समर्पित प्रशिक्षण केंद्र भी होगा।
मल-जल उपचार संयंत्र (Sewage Treatment Plant)
दिल्ली सरकार और दिल्ली जल बोर्ड द्वारा इस परियोजना को मंज़ूरी देने का उद्देश्य यमुना को प्रदूषणमुक्त करना है।
- यह मल-जल उपचार संयंत्र (STP) देश में सबसे बड़ा तथा विश्व के कुछ सबसे बड़े STP में से एक होगा।
- इस संयंत्र के निर्माण पर लगभग 1161 करोड़ रुपए की लागत आएगी।
- इसका निर्माण यमुना एक्शन प्लान-3 के तहत किया जाएगा।
- संयंत्र प्रतिदिन 124 मिलियन गैलन अपशिष्ट जल का उपचार करने में सक्षम होगा।
- नया संयंत्र यमुना से प्रतिदिन लगभग 41,200 किलोग्राम जैविक प्रदूषक भार (Organic Polluted Load) और 61,600 किलोग्राम ठोस भार (Solid Load) को हटाने का कार्य करेगा।
- यह संयंत्र यमुना नदी से गंदगी कम करने, नदी के जल में जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (Biochemical Oxygen Demand-BOD) की मात्रा को बेहतर करने के साथ ही कुल निलंबित ठोस (Total Suspended Solids-TSS) के स्तर में भी सुधार करेगा।
- यह संयंत्र पूरी तरह से स्वचालित होगा।
- इस संयंत्र से न केवल मल-जल का शोधन/उपचार किया जाएगा, बल्कि कीचड़ का भी निस्तारण किया जाएगा।
स्रोत: द हिंदू एवं इकोनॉमिक टाइम्स
विविध
ट्रांसजेंडर होना मानसिक विकार नहीं
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) ने स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों में एक महत्त्वपूर्ण संशोधन हेतु एक प्रस्ताव पेश किया है। इसके बाद ट्रांसजेंडर होने को मानसिक विकार नहीं माना जाएगा।
ट्रांसजेंडर कौन होता है?
ट्रांसजेंडर वह व्यक्ति होता है, जो अपने जन्म से निर्धारित लिंग के विपरीत लिंगी की तरह जीवन बिताता है। जब किसी व्यक्ति के जननांगों और मस्तिष्क का विकास उसके जन्म से निर्धारित लिंग के अनुरूप नहीं होता है, महिला यह महसूस करने लगती है कि वह पुरुष है और पुरुष यह महसूस करने लगता है कि वह महिला है।
प्रमुख बिंदु
- वैश्विक स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को प्रकृति द्वारा प्रदत्त लैंगिकता से अलग अन्य लैंगिकता का एहसास होना कोई मानसिक बीमारी नहीं है।
- आईसीडी (इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिज़ीज़) के तहत व्यक्ति की स्थिति को चिह्नित/कोडित किये जाने के बाद स्वास्थ्य संबंधी महत्त्वपूर्ण ज़रूरतें को पूरा किया जा सकता हैं। इसके अंतर्गत लिंग संबंधी विसंगतियों को यौन स्वास्थ्य स्थितियों के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
- वैश्विक स्तर पर मानसिक विशेषज्ञों की कमी होने के कारण अक्सर ऐसा देखने को मिलता है कि अगर 10 लोग मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं तो उनमें से 9 लोगों को आवश्यक चिकित्सीय सहायता प्राप्त नहीं हो पाती है। ऐसी स्थिति में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।
- आईसीडी-11 के मानसिक विकार खंड में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव करते हुए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बजाय प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं द्वारा मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों की कोडिंग के लिये कोड को जितना संभव हो सके उतना सरल बनाया जाना चाहिये।
- इस संबंध में ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगले तीन वर्षों में डब्ल्यूएचओ के 194 सदस्य राज्यों द्वारा ICD-11 को लागू किया जाएगा। डब्ल्यूएचओ द्वारा अपने डायग्नोस्टिक मैनुअल से ‘लिंग पहचान विकार’ को हटाने का दुनिया भर के ट्रांसजेंडर समुदाय पर एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव होगा।
- भारत में मनोचिकित्सकों ने व्यक्तिगत स्तर पर ट्रांसजेंडर होने को मानसिक स्वास्थ्य स्थिति के रूप में मानना बंद कर दिया है। इस कदम के साथ भारत सरकार को भी चिकित्सा प्रणालियों और कानूनों में बदलाव करने की ज़रूरत है ताकि आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि की जा सकें।
- भारत सरकार द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि ट्रांसजेंडरों से संबंधित कानून समग्र स्तर पर लागू हो। यह ट्रांसजेंडर समुदाय के विकास में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है, लेकिन अभी भी इस दिशा में एक लंबा रास्ता तय करना होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
- संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशेष एजेंसी है, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health) को बढ़ावा देना है।
- इसकी स्थापना 7 अप्रैल, 1948 को हुई थी। इसका मुख्यालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में अवस्थित है।
- डब्ल्यू.एच.ओ. संयुक्त राष्ट्र विकास समूह (United Nations Development Group) का सदस्य है। इसकी पूर्ववर्ती संस्था ‘स्वास्थ्य संगठन’ लीग ऑफ नेशंस की एजेंसी थी।
- यह दुनिया में स्वास्थ्य संबंधी मामलों में नेतृत्व प्रदान करने, स्वास्थ्य अनुसंधान एजेंडा को आकार देने, नियम और मानक तय करने, प्रमाण आधारित नीतिगत विकल्प पेश करने, देशों को तकनीकी समर्थन प्रदान करने एवं स्वास्थ्य संबंधी रुझानों की निगरानी तथा आकलन करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- यह आमतौर पर सदस्य देशों के साथ उनके स्वास्थ्य मंत्रालयों के ज़रिये जुड़कर काम करता है।
इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन डिजीजेज (International Classification Diseases -ICD)
- ICD विश्व स्तर पर स्वास्थ्य रुझानों और आँकड़ों की पहचान करने; बीमारियों और स्वास्थ्य स्थितियों की रिपोर्टिंग के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानकों का निर्धारण करता है।
- आसान डेटा संग्रहण, पुनर्प्राप्ति और साक्ष्य आधारित निर्णय लेने के लिये स्वास्थ्य जानकारियों का विश्लेषण करता है।
- अस्पतालों और स्वास्थ्य संबंधित संस्थाओं तथा देशों के बीच स्वास्थ्य जानकारियों को साझा करने और उनकी तुलना करने जैसे कार्यों का क्रियान्वयन करता है।
सामाजिक तौर पर बहिष्कृत
- भारत में ट्रांसजेंडरों को सामाजिक तौर पर बहिष्कृत कर दिया जाता है। इसका मुख्य कारण उन्हें न तो पुरुषों की श्रेणी में रखा जा सकता है और न ही महिलाओं में, जो लैंगिक आधार पर विभाजन की पुरातन व्यवस्था का अंग है।
- इसका नतीज़ा यह होता है कि वे शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं, बेरोज़गार रहते हैं। सामान्य लोगों के लिये उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं का लाभ तक नहीं उठा पाते हैं। इसके अलावा वे अनेक सुविधाओं से भी वंचित रह जाते हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
17वीं लोकसभा में महिला सांसदों की स्थिति
चर्चा में क्यों?
लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व लगातार बढ़ता जा रहा है। पहले चुनाव में सदन में केवल 5% महिलाएँ थी। वर्तमान में यह संख्या बढ़कर 14.3% हो गई हैं।
प्रमुख बिंदु
- 17वीं लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या बढ़कर 78 हो गई है जो कि अब तक की सबसे अधिक संख्या है।
- हालाँकि वृहद् स्तर पर देखें तो यह संख्या अभी भी कम है क्योंकि यह आनुपातिक प्रतिनिधित्त्व के आस-पास भी नहीं है। ध्यान देने वाली बात यह है कि अमेरिका में यह आँकड़ा 32% है, जबकि पड़ोसी देश बांग्लादेश में 21% है।
- वर्ष 1962 से अभी तक लगभग 600 महिलाएँ सांसद के रूप में चुनी गई हैं। 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से लगभग आधे (48.4%) ने वर्ष 1962 के बाद किसी महिला को सांसद के रूप में नहीं चुना है।
- आज़ादी के बाद केवल 15वीं और 16वीं लोकसभा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में बढ़ोतरी देखने को मिली, जो इससे पहले 9% से कम रहती थी।
क्या हैं प्रमुख चुनौतियाँ
- महिलाओं को नीति निर्धारण में पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व न मिलने के पीछे निरक्षरता भी एक बड़ा कारण है। अपने अधिकारों को लेकर पर्याप्त समझ न होने के कारण महिलाओं को अपने मूल और राजनीतिक अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं हो पाती है।
- शिक्षा, संसाधनों/संपत्ति का स्वामित्व और रोज़मर्रा के काम में पक्षपाती दृष्टिकोण जैसे मामलों में होने वाली लैंगिक असमानताएँ महिला नेतृत्व के उभरने में बाधक बनती हैं।
- कार्यों और परिवार का दायित्व: महिलाओं को राजनीति से दूर रखने में पुरुषों और महिलाओं के बीच घरेलू काम का असमान वितरण भी महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को परिवार में अधिक समय देना पड़ता है और घर तथा बच्चों की देखभाल का ज़िम्मा प्रायः महिलाओं को ही संभालना पड़ता है। बच्चों की आयु बढ़ने के साथ महिलाओं की ज़िम्मेदारियाँ भी बढ़ती जाती हैं।
- राजनीति में रुचि का अभाव: राजनीतिक नीति-निर्धारण में रुचि न होना भी महिलाओं को राजनीति में आने से रोकता है। इसमें राजनीतिक दलों की अंदरूनी गतिविधियाँ और इज़ाफा करती हैं। राजनीतिक दलों के आतंरिक ढाँचे में कम अनुपात के कारण भी महिलाओं को अपने राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों की देखरेख के लिये संसाधन और समर्थन जुटाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
- इसके अलावा, महिलाओं पर थोपे गए सामाजिक और सांस्कृतिक दायित्व भी उन्हें राजनीति में आने से रोकते हैं।
आगे की राह
- भारत जैसे देश में मुख्यधारा की राजनीतिक गतिविधियों में महिलाओं को भागीदारी के समान अवसर मिलने चाहिये।
- महिलाओं को उन अवांछित बाध्यताओं से बाहर आने की पहल स्वयं करनी होगी जिनमें समाज ने जकड़ा हुआ है, जैसे कि महिलाओं को घर के भीतर रहकर काम करना चाहिये।
- राज्य, परिवारों तथा समुदायों के लिये यह बेहद महत्त्वपूर्ण है कि शिक्षा में लैंगिक अंतर को कम करना, लैंगिक आधार पर किये जाने वाले कार्यों का पुनर्निधारण करना तथा श्रम में लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने जैसी महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं का समुचित समाधान निकाला जाए।
- राज्य विधानसभाओं और संसदीय चुनावों में महिलाओं के लिये न्यूनतम सहमत प्रतिशत सुनिश्चित करने हेतु मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के लिये इसे अनिवार्य बनाने वाले भारत निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव (इसे गिल फॉर्मूला कहा जाता है) को लागू करने की आवश्यकता है। जो दल ऐसा करने में असमर्थ रहेगा उसकी मान्यता समाप्त की जा सकेगी।
- विधायिका में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का आधार न केवल आरक्षण होना चाहिये, बल्कि इसके पीछे पहुँच और अवसर तथा संसाधनों का सामान वितरण उपलब्ध कराने के लिये लैंगिक समानता का माहौल भी होना चाहिये।
- निर्वाचन आयोग की अगुवाई में राजनीतिक दलों में महिला आरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिये प्रयास किये जाने चाहिये। हालाँकि इससे विधायिका में महिलाओं की संख्या तो सुनिश्चित नहीं हो पाएगी, लेकिन जटिल असमानता को दूर करने में इससे मदद मिल सकती है।
स्रोत- द हिंदू
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग
चर्चा में क्यों?
हरियाणा के किसानों को भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (Indian Farmers Fertiliser Cooperative Limited-IFFCO) द्वारा लगभग 5 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया है। इफको द्वारा किसानों को ग्वार के खराब बीज बेचे जाने के कारण यह क्षतिपूर्ति दी गई है, इन खराब बीजों के कारण किसानों की 70% फसल नष्ट हो गई थी। किसानों ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (National Consumer Disputes Redressal Commission-NCDRC) में अपील दर्ज कराई थी जिसके प्रत्युत्तर में यह निर्णय लिया गया है।
पृष्ठभूमि
- यह उपभोक्ता विवादों के मितव्ययी, शीघ्र और संक्षिप्त निवारण प्रदान करने के लिये स्थापित किया गया था।
- यह भारत का एक अर्द्ध-न्यायिक आयोग है जिसे वर्ष 1988 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत स्थापित किया गया था।
- इस आयोग की अध्यक्षता भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आसीन या सेवानिवृत्त जज द्वारा की जाती है।
अधिनियम के प्रावधान:
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act), 1986 की धारा 21 में प्रावधान है कि एनसीडीआरसी के अधिकार क्षेत्र में निम्नलिखित को शामिल किया जाएगा:
- एक करोड़ से अधिक मूल्य की शिकायत का निवारण करना; राज्य आयोग या ज़िला स्तरीय मंच के आदेश से अपील एवं पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार के अनुरूप कार्य करना।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act), 1986 की धारा 23 में यह प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति जो NCDRC के आदेश से संतुष्ट नहीं है, 30 दिनों के भीतर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
- इस अधिनियम के प्रावधानों में 'वस्तुओं' के साथ-साथ 'सेवाओं' को भी शामिल किया जाता है।
- अपीलीय प्राधिकारी (Appellate authority): यदि कोई उपभोक्ता ज़िला फोरम के निर्णय से संतुष्ट नहीं है, तो वह राज्य आयोग में अपील कर सकता है। राज्य आयोग के आदेश के खिलाफ उपभोक्ता राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था
अमेरिका ने भारत को अपनी मुद्रा निगरानी सूची से हटाया
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका ने भारत और स्विट्ज़रलैंड को अपनी मुद्रा निगरानी सूची से बाहर कर दिया है। गौरतलब है कि अमेरिका ने मुद्रा संबंधी क्रियाकलापों पर नज़र रखने के लिये भारत, चीन, जापान के साथ-साथ जर्मनी, दक्षिण कोरिया और स्विट्ज़रलैंड जैसे देशों को भी अक्तूबर 2018 में निगरानी सूची में शामिल किया था।
प्रमुख बिंदु
- अमेरिका ने पहली बार मई 2018 में संदेहास्पद विदेशी मुद्रा नीतियों वाले देशों की निगरानी सूची में भारत को शामिल किया था। वर्तमान में इस सूची में केवल चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, इटली, आयरलैंड, सिंगापुर, मलेशिया और वियतनाम हैं।
मुद्रा निगरानी सूची
- अमेरिकी ट्रेज़री विभाग अर्द्ध-वार्षिक रिपोर्ट जारी करता है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के विकास पर नज़र रखी जाती है तथा उनकी विदेशी विनिमय दरों का निरीक्षण किया जाता है।
- चीन अपनी "लगातार कमज़ोर मुद्रा" के कारण निगरानी सूची में बना हुआ है।
- हालाँकि इस सूची में शामिल होना किसी प्रकार के दंड और प्रतिबंधों के अधीन नहीं होता है, तथापि यह निर्यात लाभ हासिल करने के लिये मुद्राओं के अवमूल्यन सहित (विदेशी मुद्रा नीतियों के संदर्भ में) वित्तीय बाज़ारों में देश की वैश्विक वित्तीय छवि को नुकसान पहुँचाता है।
मानदंड
- अमेरिका ने कुछ निश्चित घटनाक्रमों के बाद प्रमुख व्यापारिक भागीदारों की मुद्रा निगरानी सूची से भारत को हटाने का निर्णय लिया।
- अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, भारत को सूची से इसलिये बाहर किया गया है क्योंकि वह तीन मानदंडों में से केवल एक में ही प्रतिकूल है। वह मानदंड है. अमेरिका के साथ बायलैटरल सरप्लस (bilateral surplus)।
- भारत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मानकों के अनुसार समुचित विदेशी मुद्रा भंडार रखता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और स्विट्ज़रलैंड ने वर्ष 2018 में विदेशी मुद्रा खरीदारी में काफी कमी की है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि कोई भी देश अपनी मुद्रा को बेचकर उसका मूल्य घटा सकता है। इससे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में उसका निर्यात सस्ता और प्रतिस्पर्द्धी हो जाता है।
इस कार्यवाही का प्रभाव
- यह भारत के लिये एक सकारात्मक गतिविधि है क्योंकि अब भारत मुद्रा निगरानी सूची के दायरे से बाहर हो गया है, सूची में शामिल देशों को मुद्रा हेरफेर करने वाले देश के रूप में वर्णित करने की संभावना रहती है। वे देश जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अनुचित प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्राप्त करने के लिये मुद्रा विनिमय दर में हेरफेर करते हैं, उन पर अक्सर मुद्रा हेरफेर करने वाली अर्थव्यवस्था का टैग लगा दिया जाता है।
- भारत के इस सूची से बाहर होने से निश्चित रूप से भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में बातचीत का मार्ग प्रशस्त होगा और व्यापार से संबंधित मतभेदों को कम करने में सफलता मिलने की भी उम्मीद है, विशेष रूप से सामान्यीकृत प्रणाली (Generalized System of Preferences-GSP) के संदर्भ में।
- संयुक्त राज्य अमेरिका का हालिया कदम भारत सरकार के हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों पर आयात शुल्क को 100% से घटाकर 50% करने के फैसले को पूरक बना देगा।
- इसका कारण यह है कि अक्सर अमेरिका द्वारा भारत पर "टैरिफ किंग" के रूप में कार्य करने का आरोप लगाया जाता रहा है, अमेरिका का पक्ष है कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर उच्च टैरिफ लगाता है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाज़ार में भारत की वैश्विक वित्तीय छवि में भी सुधार करेगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था
IMD वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मक रैंकिंग
हाल में संपन्न IMD की वैश्विक रैंकिंग में सर्वाधिक प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत ने 43वाँ स्थान प्राप्त किया है। हालाँकि 2016 की रैंकिंग में भारत 41वें स्थान पर और वर्ष 2017 की रैंकिंग में 45वें स्थान पर था। IMD की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मक रैंकिंग की शुरुआत वर्ष 1989 में हुई थी। यह 63 रैंक हेतु लगभग 235 आर्थिक संकेतकों के आधार पर प्रतिस्पर्द्धी देशों की क्षमता का मूल्यांकन करती है जिसका उद्देश्य सतत् विकास, रोज़गार के अवसर सृजित कर नागरिकों के कल्याण हेतु अनुकूल माहौल मुहैया कराना है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- IMD बिज़नेस स्कूल के अनुसार, इस प्रतिस्पर्द्धा रैंकिंग में वृहद् स्तर के आँकड़ों का समावेश किया जाता है जैसे- बेरोज़गारी, जीडीपी, सरकार द्वारा शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर खर्च की जा रही मदें।
- साथ-ही-साथ सामाजिक समरसता, वैश्वीकरण और भ्रष्टाचार जैसे विषयों को भी सर्वेक्षण में सम्मिलित किया जाता है।
- भारत ने अपने सशक्त आर्थिक विकास, वृहद श्रम बल एवं विशाल बाज़ार के कारण यह वैश्विक रैंक को प्राप्त किया है।
- इसके साथ ही वास्तविक जीडीपी दर और शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि तथा व्यापार कानूनों में सुधार के कारण भारत की रैंकिंग में सुधार हुआ है।
- IMD द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि रैंक में सुधार होने के बावजूद भारत के समक्ष अभी भी अनेक चुनौतियाँ विद्यमान हैं।
- भारत की प्रमुख चुनौतियों में रोज़गार सृजन, ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट बैंडविड्थ, राजकोषीय अनुशासन के प्रबंधन के साथ-साथ वस्तु एवं सेवा कर का कार्यान्वयन तथा बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये संसाधन जुटाने से संबंधित मुद्दे शामिल हैं।
- गौर करने वाली बात यह है कि वर्ष 2019 की रैंकिंग में भारत ने कई आर्थिक मापदंडों और कर नीतियों के मामले में अच्छा प्रदर्शन किया है लेकिन सार्वजनिक वित्त, सामाजिक ढाँचे शिक्षा के बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य और पर्यावरण के मामले में यह पिछड़ गया है।
- विश्व के अन्य देशों की बात की जाए तो स्विट्ज़रलैंड इस रैंकिंग में पाँचवे से चौथे पायदान पर आ गया है।
- स्विट्ज़रलैंड की रैंकिंग में सुधार का कारण आर्थिक विकास, स्विस फ्रैंक की स्थिरता और उच्च गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचा है।
- अल्पाइन देशों की अर्थव्यवस्था में सुधार का कारण उच्च शिक्षण संस्थानों, स्वास्थ्य सेवाओं और जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि रही।
- संयुक्त-अरब-अमीरात पहली बार इस रैंकिंग में शीर्ष पाँच देशों में सम्मलित हुआ है।
- इस वर्ष का सर्वाधिक प्रतिस्पर्द्धी देश सऊदी अरब रहा, जो 26वें स्थान से सीधा 13वें स्थान पर आ पहुँच गया।
- रैंकिंग में सबसे निचले स्थान पर वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था है। मुद्रास्फीति में कमी, ऋण वितरण के लिये प्रभावी तंत्र का आभाव एवं कमज़ोर अर्थव्यवस्था के कारण वेनेजुएला की रैंकिंग में गिरावट आई है।
- शीर्ष स्थान से फिसलने वाले अमेरिका के विषय में, अध्ययन में कहा गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की कर नीतियों से शुरू में लोगों में उत्साह का संचार हुआ, परंतु धीरे-धीरे इस उत्साह में कमी आई। इसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर परिलक्षित होता है।
स्रोत: बिजनेस लाइन
भारतीय अर्थव्यवस्था
वस्त्र उद्योग के लिये सिफारिशें
चर्चा में क्यों?
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (Ministry of commerce and industry) द्वारा गठित एक उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ समिति (High-Level Expert Panel) ने वस्त्र क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिये सिफारिशें प्रस्तुत की है। समिति द्वारा की गई कुछ प्रमुख सिफारिशों में शामिल हैं:
- बांग्लादेश जैसे देशों जिनसे भारतीय बाज़ारों तक पहुँच के लिये कोई शुल्क नहीं वसूला जाता है, के साथ मुक्त व्यापार समझौते की समीक्षा।
- मौजूदा पुरातन श्रम कानूनों में संशोधन।
- प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिये सब्सिडी का तत्काल वितरण।
वस्त्र उद्योग
कपड़ा और परिधान उद्योग आम तौर पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- यार्न एवं फाइबर, और प्रसंस्कृत वस्त्र एवं परिधान।
रोज़गार सृजन: कपड़ा और वस्त्र उद्योग श्रम गहन क्षेत्र है जो रोज़गार सृजन के मामले में कृषि क्षेत्र के बाद दूसरे स्थान पर आता है। यह क्षेत्र भारत के 45 मिलियन लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराता है।
परंपरा और संस्कृति: भारतीय वस्त्र उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है, यह न केवल लाखों परिवारों को आजीविका प्रदान करता है बल्कि पारंपरिक कौशल, विरासत और संस्कृति का भंडार एवं वाहक भी है।
वस्त्र उद्योग को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
असंगठित क्षेत्र: असंगठित क्षेत्र छोटे पैमाने पर विद्यमान है और इसमें पारंपरिक उपकरणों एवं विधियों का उपयोग किया जाता है। इसमें हथकरघा, हस्तशिल्प और रेशम कीट पालन/सेरीकल्चर (sericulture) शामिल हैं।
संगठित क्षेत्र: संगठित क्षेत्र में आधुनिक मशीनरी तथा तकनीकों का उपयोग किया जाता है एवं इसमें कताई, परिधान और पोशाक निर्माण जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
अर्थव्यवस्था में योगदान: भारत ब्रांड और इक्विटी फाउंडेशन (India brand and equity foundation-IBEF) के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे बड़े वस्त्र और कपड़ा उत्पादकों में से एक है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में घरेलू कपड़ा और परिधान उद्योग की हिस्सेदारी 2% है। इसके अलावा यह क्षेत्र औद्योगिक उत्पादन में 14%, देश के विदेशी मुद्रा अंतर्प्रवाह में 27% और देश की निर्यात आय में 13% का योगदान देता है।
वस्त्र उद्योग से संबंधित समस्याएँ
पुरातन श्रम कानून: इसके तहत विवाद का प्रमुख कारण यह कानून है कि 100 या अधिक श्रमिकों को नियुक्त करने वाली किसी भी फर्म को उन्हें किसी भी प्रकार की नौकरी से निकालने या छंटनी करने से पहले, श्रम विभाग से अनुमति लेनी होगी।
- लोगों को काम पर रखने और काम से निकालने की प्रक्रिया में लचीलापन लाने के लिये औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 जैसे श्रम कानूनों में संशोधन किया जाना चाहिये।
- ऐसी फर्मों के आकार का परिसीमन किया जाना चाहिये जिनके लिये रोज़गार को समाप्त करने से पहले श्रम विभाग से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है और सभी फर्मों की दक्षता को प्रोत्साहित करने के मामले में निर्णय लेने की छूट दी जानी चाहिये।
मुक्त व्यापार समझौते: दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (South Asia Free Trade Agreement-SAFTA) जैसे कुछ प्रमुख मुक्त व्यापार समझौतों ने बांग्लादेश जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सहायता की है, जिन्हें भारतीय बाज़ार तक पहुँच के लिये शून्य शुल्क देना होता है। सरकार को इस तरह के समझौते पर फिर से विचार करना चाहिये और समाधान निकालने की कोशिश करनी चाहिये।
हाल के सुधारों का प्रभाव: वर्तमान में यह क्षेत्र स्थिर निर्यात, विमुद्रीकरण, बैंक पुनर्गठन और वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax-GST) के कार्यान्वयन के दौर से गुजर रहा है। भारत, जो वर्ष 2014 से 2017 के बीच चीन के बाद वस्त्र एवं कपड़ों का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक था; जर्मनी, बांग्लादेश और वियतनाम के साथ अपने स्थान में गिरावट के साथ पाँचवें स्थान पर पहुँच गया।
सब्सिडी के वितरण में देरी: उद्योग संचालन को आधुनिक बनाने में मदद करने के लिये प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (Technology Upgradation Fund Scheme-TUFS) के तहत सब्सिडी के वितरण में तेज़ी लानी चाहिये।
प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (Technology Upgradation Fund Scheme-TUFS)
- सरकार ने वस्त्र और जूट उद्योग के उन्नयन के लिये 1 जनवरी, 1999 को 5 साल की अवधि के लिये प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (TUFS) की शुरुआत की, जिसके अंतर्गत किसानों को ब्याज वापसी प्रतिपूर्ति/मूलधन में रियायत की सुविधा दी जानी थी।
- TUFS के तहत एक क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल इनवेस्टमेंट सब्सिडी प्रदान की जाती है।
- यह योजना वास्तव में उधार देने वाली एजेंसियों द्वारा कपड़ा जूट उद्योग के आधुनिकीकरण में निवेश की सुविधा के लिये ब्याज से 5% की प्रतिपूर्ति प्रदान करती है। यह योजना नोडल एजेंसियों IDBI, SIDBI, IFCI और प्रमुख राष्ट्रीय बैंकों के माध्यम से संचालित की जा रही है।
दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (SAFTA)
- दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (South Asian Free Trade Area-SAFTA) उन सात दक्षिण एशियाई देशों के बीच एक समझौता है जिन्होंने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) का गठन किया है। (अर्थात् यह बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका के बीच एक समझौता है।)
- SAFTA ने पूर्व के दक्षिण एशिया अधिमान्य व्यापार समझौते (SAARC Preferential Trading Arrangement-SAPTA) का स्थान लिया है। इसका उद्देश्य SAARC सदस्यों के बीच अंतर्राज्यीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिये शुल्कों को कम करना है।
विविध
Rapid Fire करेंट अफेयर्स (30 May)
- सरकार की ओर बनाई गई एक उच्चस्तरीय समिति ने एलिफैंट बॉण्ड लाने की सिफारिश की है। इस समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को सौंपी। यह सिफारिश वित्त मंत्रालय के पास भेजी जाएगी, जिसके पास इस सिफारिश पर फैसला लेने का अधिकार है। इस एलिफैंट बॉण्ड का इस्तेमाल कालेधन को वैध बनाने के लिये किया जा सकेगा। इसमें लगाईं गई आधी रकम सरकार ले लेगी अर्थात् कोई व्यक्ति इसके तहत एक करोड़ रुपए के कालेधन को सफेद करना चाहता है तो उसे बदले में 50 लाख रुपए ही मिलेंगे, लेकिन वह सफेद धन होगा। अनुमान है कि बाज़ार में अभी भी भारी मात्रा में कालाधन है और यह पता लगाना काफी मुश्किल है कि यह किन-किन लोगों के पास है। पिछली सरकार ने कालेधन को वैध बनाने के लिये दो योजनाएँ चलाई थीं, लेकिन इनमें 70,150 करोड़ रुपए ही मिले। IDS योजना में सरकार को 65,250 करोड़ रुपए मिले थे। PMGKY योजना में 25% धन को सरकारी प्रतिभूतियों में 4 साल के लिये रखना था और इसमें सरकार को केवल 4,900 करोड़ रुपए ही मिले।
- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 27 मई को जापान के नए सम्राट नारुहितो से मुलाकात करने वाले पहले विदेशी नेता बन गए। चार दिन की यात्रा पर जापान गए अमेरिकी राष्ट्रपति और उनकी पत्नी की अगवानी इंपीरियल पैलेस में एक समारोह के दौरान सम्राट नारुहितो और साम्राज्ञी मसाको ने की। गौरतलब है कि सम्राट नारुहितो की इसी साल 1 मई को ताजपोशी हुई थी, जिसे रेवा युग कहा जाता है। इससे पहले जापान के सम्राट अकिहितो थे, जो 200 वर्षों में जापान के राजपरिवार में अपना पद अपनी इच्छा से छोड़ने वाले पहले सम्राट थे। दरअसल, स्वास्थ्य कारणों के चलते अकिहितो ने अपने सबसे छोटे बेटे 59 वर्षीय नारुहितो को राजगद्दी सौंप दी थी।
- Indian Council of Medical Research (ICMR) के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये डॉ. ली जोंग-वुक पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में 72वीं विश्व स्वास्थ्य सभा में इस पुरस्कार से सम्मानित किया को यह पुरस्कार चिकित्सक, प्रर्वतक, शोधकर्त्ता और प्रशिक्षक के रूप में उनके योगदान के लिये दिया गया। वर्तमान में वह स्वास्थ्य अनुसंधान, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के विभाग के सचिव और एम्स नई दिल्ली में कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर हैं। इसके अलावा वह स्टैनफोर्ड इंडिया बायोडिज़ाइन सेंटर, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल बायोडिज़ाइन, नई दिल्ली के कार्यकारी निदेशक भी हैं।
- हाल ही में चीन के उपराष्ट्रपति वांग किशान पाकिस्तान के दौरे पर गए थे। पाकिस्तान-चीन संस्थान द्वारा आयोजित एक बैठक में चीन के उपराष्ट्रपति ने कहा कि विश्व ऐसे दौर से गुज़र रहा है जब प्रमुख बदलाव एवं घटनाएँ हो रही हैं, लेकिन चीन हमेशा पाकिस्तान के मुख्य हितों के पक्ष में खड़ा रहेगा और इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य किस तरह से बदलता है। जब वर्ष 2015 में चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) बनाने का ऐलान हुआ था तो पाकिस्तान ने इसे देश के लिये 'गेमचेंजर' बताया था। CPEC परियोजना 15 साल (2015-30) के लिये बनाई गई थी, जिसमें मूलभूत ढाँचा व बिजली से जुड़ी तमाम योजनाएँ शामिल हैं। 2018 तक 22 परियोजनाओं पर 18 अरब डॉलर खर्च हो चुके हैं जिनमें से 10 पूरी हो चुकी हैं। इन 10 परियोजनाओं में से सात बिजली और तीन सड़क निर्माण से जुड़ी योजनाएँ शामिल हैं।
- अमेरिका और इंग्लैंड के बाद मुंबई (भारत) में विश्व प्रसिद्ध ऑस्कर पुरस्कारों का तीसरा ऑफिस खुलेगा। यह घोषणा ऑस्कर अवार्ड कमेटी के चेयरमैन जॉन बैली ने अपनी हालिया भारत यात्रा के दौरान की। इस ऑफिस में दादा साहब फाल्के की मूर्ति भी स्थापित की जाएगी। ऑस्कर का कोई प्रेसीडेंट 90 वर्षो में पहली बार भारत आया था। ज्ञातव्य है कि अकादमी पुरस्कार को ही ऑस्कर के नाम से जाना जाता है। यह पुरस्कार विश्व का सबसे बड़ा फिल्म पुरस्कार माना जाता है। अमेरिकन अकादमी ऑफ़ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज़ (AMPAS) द्वारा फिल्म उद्योग में निर्देशकों, कलाकारों और लेखकों सहित पेशेवरों की उत्कृष्टता को पहचान देने के लिये यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
- विश्व बैडमिंटन में सिरमौर माने जाने वाले चीन ने 26 मई को चीन के नेनिंग में खेले गए फाइनल में जापान को 3-0 से हराकार 11वीं बार बैडमिंटन टूर्नामेंट सुदीरमन कप का खिताब जीत लिया। इससे पहले चीन ने वर्ष 1995, 1997, 1999, 2001, 2005, 2007, 2009, 2011, 2013 और 2015 में सुदीरमन कप अपने नाम किया था। सुदीरमन कप बैडमिंटन का मिक्स्ड टीम इवेंट है। इसमें महिला और पुरुष दोनों खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं। 1989 में शुरू हुए इस टूर्नामेंट के 16 संस्करण अब तक हो चुके हैं, जिनमें से 11 खिताब चीन ने जीते हैं, दक्षिण कोरिया ने चार और इंडोनेशिया ने एक बार यह खिताब जीता है।