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डेली न्यूज़

  • 30 Apr, 2021
  • 44 min read
भूगोल

असम भूकंप

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में असम और पूर्वोत्तर भारत के अन्य हिस्सों में 6.4 तीव्रता के शक्तिशाली भूकंप के झटके महसूस किये गए हैं।

  • नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी (NCS) की रिपोर्ट के अनुसार, ‘हिमालयी फ्रंटल थ्रस्ट’ (Himalayan Frontal Thrust- HFT) के करीब स्थिति ‘कोपिली फॉल्ट ज़ोन’ (Kopili Fault Zone) को इन झटके का कारण माना जा रहा है।
    • NCS देश में भूकंपीय गतिविधियों की निगरानी हेतु भारत सरकार की नोडल एजेंसी है। यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत आती है।

प्रमुख बिंदु: 

हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट (HFT):

  • HFT, जिसे मुख्य फ्रंटल थ्रस्ट (Main Frontal Thrust- MFT) के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय और यूरेशियन विवर्तनिक प्लेटों की सीमा के साथ मौजूद एक भूवैज्ञानिक भ्रंश (फॉल्ट) है।

कोपिली फॉल्ट ज़ोन:

  • कोपिली फॉल्ट ज़ोन (Kopili fault zone) 300 किलोमीटर लंबा और 50 किलोमीटर चौड़ा है, जो मणिपुर के पश्चिमी भाग से भूटान, अरुणाचल प्रदेश और असम तीनों के मिलन बिंदु तक विस्तृत है।
  • यह भूकंपीय ज़ोन V में पाया जाने वाला अत्यधिक सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र है, जो विवर्तनिक भूकंपीय घटनाओं  से जुड़ा हुआ है, जहांँ भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे स्थित है।
    • सबडक्शन (Subduction) एक भूवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें एक ‘क्रस्टल प्लेट’ (Crustal Plate) का किनारा दूसरी क्रिस्टल प्लेट के नीचे खिसक जाता है।
    • हिमालयन बेल्ट (Himalayan belt) और सुमात्रन बेल्ट (Sumatran belt) के सबडक्शन और टकराव क्षेत्र के मध्य स्थित होने के कारण पूर्वोत्तर क्षेत्र पर भूकंप की घटनाओं का अत्यधिक खतरा रहता है।

भ्रंश: 

  • भ्रंश (फॉल्ट) का आशय भूपर्पटी (Earth's Crust) की शैलों (Rocks) में कुछ गहन दरारों से होता है, जिसके दोनों तरफ भूपर्पटी ब्लॉक समानांतर एक दूसरे के सापेक्ष चलते हैं।
  • जब भूकंप आता है तो भ्रंश की एक तरफ की चट्टानें  भ्रंश के  दूसरी तरफ  खिसक जाती है।
  • भ्रंश की सतह ऊर्ध्वाधर, क्षैतिज या पृथ्वी की सतह पर एक निश्चित कोण पर हो सकते हैं।

Faults

विवर्तनिक प्लेटें:

  • एक विवर्तनिक प्लेट (जिसे लिथोस्फेरिक प्लेट भी कहा जाता है) ठोस चट्टान की एक विशाल, अनियमित आकार की शिला होती  है, जो सामान्यतः महाद्वीपीय और महासागरीय लिथोस्फीयर दोनों से मिलकर बनी होती है।
  • अपने प्रसार के आधार पर विवर्तनिक प्लेट महाद्वीपीय प्लेट या फिर महासागरीय प्लेट हो सकती है।
  • प्रशांत प्लेट काफी हद तक महासागरीय प्लेट है जबकि यूरेशियन प्लेट एक महाद्वीपीय प्लेट है।

भूकंप: 

  • साधारण शब्दों में भूकंप का अर्थ पृथ्वी की कंपन से होता है। यह एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें पृथ्वी के अंदर से ऊर्जा के निकलने के कारण तरंग उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर पृथ्वी को कंपित करती हैं।
  •  भूकंप से उत्पन्न तरगों को भूकंपीय तरगें कहा  जाता है, जो पृथ्वी की सतह पर गति करती हैं तथा इन्हें सिस्मोग्राफ (Seismographs) से मापा जाता है।
  • पृथ्वी की सतह के नीचे का स्थान जहाँ भूकंप का केंद्र स्थित होता है, हाइपोसेंटर  (Hypocenter) कहलाता है, और पृथ्वी की सतह के ऊपर स्थिति वह स्थान जहाँ भूकंप तरगें सबसे पहले पहुँचती है उपकेंद्र (Epicenter) कहलाता है।
  • भूकंप के प्रकार: फाल्ट ज़ोन, विवर्तनिक भूकंप, ज्वालामुखी भूकंप, मानव प्रेरित भूकंप।

भारत में भूकंप जोखिम मानचित्रीकरण: 

  • तकनीकी रूप से सक्रिय वलित हिमालय पहाड़ों की उपस्थिति के कारण भारत भूकंप प्रभावित देशों में से एक है।
  • अतीत में आए भूकंप तथा विवर्तनिक झटकों के आधार पर भारत को चार भूकंपीय क्षेत्रों (II, III, IV और V) में विभाजित किया गया है।
  • पहले, भूकंप क्षेत्रों को भूकंप की गंभीरता के संबंध में पांच क्षेत्रों में विभाजित किया गया था, लेकिन भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) ने पहले दो क्षेत्रों को एक साथ मिलाकर देश को चार भूकंपीय क्षेत्रों में विभाजित किया है।
  • BIS भूकंपीय खतरे के नक्शे और कोड (Seismic Hazard Maps and Codes) को प्रकाशित करने हेतु एक आधिकारिक एजेंसी है।

Seismic-Zone

भूकंपीय ज़ोन II:

  • मामूली क्षति वाला भूकंपीय ज़ोन, जहाँ तीव्रता MM (संशोधित मरकली तीव्रता पैमाना) के पैमाने पर V से VI तक होती है।

भूकंपीय ज़ोन III:

  • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप मध्यम क्षति वाला ज़ोन।

भूकंपीय ज़ोन IV:

  • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप अधिक क्षति वाला ज़ोन।

भूकंपीय ज़ोन V:

  • भूकंपीय ज़ोन V भूकंप के लिये सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ ऐतिहासिक रूप से देश में भूकंप के कुछ सबसे तीव्र झटके देखे गए हैं।
  • इन क्षेत्रों में 7.0 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप देखे गए हैं और यह IX की तुलना में अधिक तीव्र होते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों पर RBI की रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARCs) पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ARC उद्योग की वृद्धि समय के साथ लगातार नहीं हुई है। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs) और बैंक की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ (NPA) के आँकड़े सदैव एक समान नहीं रहे हैं। 

  • हालाँकि इसने एक नए ARC के लिये सरकार के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि इस तरह की इकाई परिसंपत्ति संकल्प तंत्र को और मज़बूत करेगी।

प्रमुख बिंदु:

परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनि (ARC) के बारे में

  • यह एक विशेष वित्तीय संस्थान है जो बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ‘नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स’ (Non Performing Assets- NPAs) खरीदता है ताकि वे अपनी बैलेंसशीट को स्वच्छ रख सकें।
    • जब ऋण लेने वाला व्यक्ति 90 दिनों तक ब्याज अथवा मूलधन का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसको दिया गया ऋण गैर-निष्पादित परिसंपत्ति माना जाता है|
  • यह बैंकों को सामान्य बैंकिंग गतिविधियों में ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। बैंकों द्वारा बकाएदारों पर अपना समय और प्रयास बर्बाद करने के बजाय वे ARC को अपना NPAs पारस्परिक रूप से सहमत मूल्य पर बेच सकते हैं।
  • सिक्योरिटाइज़ेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट’(SARFAESI) Act, 2002 भारत में ARCs की स्थापना के लिये कानूनी आधार प्रदान करता है।
    • सरफेसी अधिनियम न्यायालयों के हस्तक्षेप के बिना गैर-निष्पदनकारी संपत्ति के पुनर्निर्माण में मदद करता है। इस अधिनियम के तहत बड़ी संख्या में ARCs का गठन और उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के साथ पंजीकृत किया गया ।
  • RBI को ARCs को विनियमित करने की शक्ति मिली है।

ARC उद्योग का विकास:

  • ARC की संख्या: ARC उद्योग वर्ष 2003 में परिसंपत्ति पुनर्निमाण कंपनी इंडिया लिमिटेड (ARCIL) की स्थापना के साथ शुरू हुआ था। स्थापना के प्रारंभिक वर्षों में सामान्य स्थिति रही लेकिन वर्ष 2008 में और वर्ष 2016 में ARC की संख्या में गिरावट देखी गई।
  • कुछ ARCs के बीच व्यवसाय की एकाग्रता: उद्योग में प्रबंधन के तहत परिसंपत्ति (AUM) और सुरक्षा प्राप्तियों (SRs) के संदर्भ में ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • जब वाणिज्यिक बैंकों या वित्तीय संस्थानों की गैर-निष्पादित संपत्तियों को वसूली के उद्देश्य से ARC द्वारा अधिग्रहीत किया जाता है तब ARCs द्वारा प्रतिभूति ‘रिसीप्ट्स’ जारी की जाती है।
    • AUMs को सुरक्षा प्राप्तियों (SRs) की बकाया राशि की मदद से मापा जा सकता है। 
  • प्रबंधन के तहत परिसंपत्ति (AUM) में गिरावट: वित्त वर्ष 2014 में प्रमुख बढ़ोतरी को छोड़कर ARCs’ AUM में वृद्धि काफी हद तक रूझानहीन रही है। 
    • वित्तीय वर्ष 2013-14 के आसपास AUM में उच्च वृद्धि की अवधि के अलावा, बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ के NPA की मात्रा की तुलना में ARC का AUM एक गिरावट की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
    • वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान बैंकों द्वारा ARC परिसंपत्ति की बिक्री में गिरावट आई है, जो संभवतः बैंकों के अन्य रिज़ॉल्यूशन चैनलों जैसे इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) और SARFAESI के कारण हो सकती है।

भारत के ARC संबंधित मुद्दे:

  • भारतीय ARC रिज़र्व बैंक के साथ पंजीकृत निजी क्षेत्र की संस्थाएँ हैं। अन्य देशों में सार्वजनिक क्षेत्र के AMC ने अक्सर सरकारी धन या सरकार-समर्थित सुविधाओं की आसान पहुँच बनाता है।
    • भारत में ARC के लिये पूंजी की कमी को अक्सर चिंता के रूप में उजागर किया गया है।
  • इन कंपनियों के पूंजी आधार को व्यापक बनाने और इस तरह से विनियामक छुट के बावजूद वे मुख्य रूप से पूंजी के घरेलू स्रोतों (विशेष रूप से बैंकों) पर निर्भर हैं।
  • बैंक ARC को NPA की आपूर्ति करते हैं, इन संस्थाओं में हिस्सेदारी रखते हैं और उन्हें उधार भी देते हैं, जो बैंकों और इन संस्थानों के बीच निधियों के चक्रीय गति पर निगरानी करना आवश्यक बनाता है।

नए ARC के बारे में:

  • कोविड-19 महामारी के बाद गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ और बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता में सुधार ARC को अत्यधिक केंद्रित कार्रवाई में बदल सकता है अर्थात् कोरोना वायरस महामारी से संबंधित विनियामक छूट हटाए जाने के बाद बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) में बढ़ोतरी होने की उम्मीद की जा रही है।
  • बजट में प्रस्तावित ARC राज्य के स्वामित्व वाले और निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा स्थापित किया जाएगा और इसमें केंद्र का कोई इक्विटी योगदान नहीं होगा।
    • ARC जिसमें एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) होगी, खराब परिसंपत्तियों के प्रबंधन और बिक्री के लिये कार्य करेगी और इन्हें 2-2.5 लाख करोड़ रुपए की तनावग्रस्त संपत्ति को हल करने के लिये लगभग 70 बड़े खातों को सुलझाने होंगे।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के NPA की पहचान करने के लिये एक नई परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी की शुरुआत भी मौजूदा ARCs के संचालन को आकार दे सकती है।
  • भारतीय ARC उद्योग में “बेहतर पूंजीकृत और बेहतर डिजाइन के साथ तैयार की गई इकाई” के प्रवेश के लिये एक संभावना परिलक्षित हुई है और इस तरह के निकाय परिसंपत्ति संकल्प तंत्र को और मजबूत करेंगे।

ARC पर समिति:

  •  RBI ने सुदर्शन सेन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है जो वित्तीय क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र में परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARCs) के कामकाज की व्यापक समीक्षा करने के लिये  तथा बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये उन्हें सक्षम करने हेतु कुछ उपायों की सिफारिश करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के व्यापार मंत्रियों ने औपचारिक रूप से ‘सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव’ (Supply Chain Resilience Initiative-SCRI) की शुरुआत की है।

  • इस पहल का लक्ष्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थायी, संतुलित और समावेशी विकास को प्राप्त करने के लिये आपूर्ति शृंखला को बेहतर तथा अधिक लचीला बनाना है।
  • भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के साथ क्वाड समूह में शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

‘सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस’ की अवधारणा:

  • अर्थ: यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का एक दृष्टिकोण है, जिसके अंतर्गत कोई देश अपने आपूर्ति जोखिम को कम करने के लिये उसमें विविधता लाता है।
  • महत्त्व: इस प्रकार के दृष्टिकोण को अपनाने का मुख्य कारण यह है कि किसी भी प्रकार की अप्रत्याशित घटना, चाहे वह प्राकृतिक हो (जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, भूकंप अथवा महामारी) या मानव निर्मित (जैसे एक क्षेत्र विशिष्ट में सशस्त्र संघर्ष) के कारण किसी विशेष देश से आने वाली आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जिससे गंतव्य देश में आर्थिक गतिविधि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

सप्लाई चैन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव

  • पृष्ठभूमि: 
    • कोविड-19 महामारी ने जीवन, आजीविका और अर्थव्यवस्था पर अभूतपूर्व प्रभाव डाला है और साथ ही इसने वैश्विक तथा क्षेत्रीय आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियों को भी उजागर किया है।
  • परिचय:
    • उद्देश्य:
      • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को ‘आर्थिक महाशक्ति’ में बदलने के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment) आकर्षित करना।
      • साझेदार देशों के बीच परस्पर पूरक संबंध बनाना।
      • आपूर्ति शृंखला नेटवर्क के निर्माण के लिये योजना तैयार करना। उदाहरण के लिये जापान और भारत के बीच एक प्रतिस्पर्द्धात्मक साझेदारी है, जो भारत में जापानी कंपनियों की स्थापना में सहायता करती है।
    • विशेषताएँ:
      • जापान द्वारा प्रस्तावित इस पहल का उद्देश्य कोविड-19 महामारी के बीच भारत-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति शृंखलाओं के पुनर्निर्धारण की संभावना के साथ चीन पर निर्भरता को कम करना है।
      • इस पहल के अंतर्गत शुरुआत में आपूर्ति शृंखला को बेहतर करने के लिये सर्वोत्तम तरीकों को साझा करने, निवेश बढ़ाने हेतु निवेश प्रोत्साहन कार्यक्रमों के आयोजन और आपूर्ति शृंखलाओं के विविधीकरण की संभावना का पता लगाने हेतु क्रेता-विक्रेताओं की बैठकों के आयोजन पर ध्यान दिया जाएगा।
      • इसके अंतर्गत डिजिटल प्रौद्योगिकी के संवर्द्धित उपयोग का समर्थन करना और व्यापार तथा निवेश के विविधीकरण पर ज़ोर देने जैसे संभावित नीतिगत उपाय शामिल हो सकते हैं।
      • यदि आवश्यक हो तो इसके विस्तार पर सर्वसम्मति के आधार पर विचार किया जा सकता है। मंत्रियों ने एक वर्ष में कम-से-कम एक बार SCRI के क्रियान्वयन के लिये मार्गदर्शन प्रदान करने के साथ-साथ इस पहल को विकसित करने हेतु आपस में परामर्श करने का भी निर्णय लिया।
        • जापान ने इस पहल में आसियान (ASEAN) को शामिल करने की इच्छा व्यक्त की, हालाँकि भारत ने इसका विरोध किया है।
        • भारत, चीन से आसियान के माध्यम से होने वाले अपने आयात को कम करके चीन के अप्रत्यक्ष प्रभाव से अपने हितों की रक्षा करना चाहता है।

भारत के लिये महत्त्व:

  • चीन के साथ सीमा तनाव के बाद जापान जैसे साझेदारों ने समझा है कि भारत वैकल्पिक आपूर्ति शृंखलाओं पर वार्ता के लिये तैयार हो सकता है।
  • भारत के लिये चीन अभी भी आयात का एक बड़ा स्रोत बना हुआ है। इस आयात को चीन से अचानक आंशिक या पूर्ण रूप से बंद करना भारत के लिये अव्यवहारिक होगा।
  • समय के साथ यदि भारत आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ता है या चीन के अलावा अन्य देशों के साथ व्यापार बढ़ाता जाता है तो यह अपनी अर्थव्यवस्था की आपूर्ति शृंखला को बेहतर कर सकता है।

आगे की राह

  • यह भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धा क्षमता को बढ़ावा देने और विश्व व्यापार में उसकी हिस्सेदारी बढ़ाने में मदद करेगा। इसके लिये एक बुनियादी ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता है जो भारत के निर्यात प्रतिस्पर्द्धा क्षमता को बढ़ाए।
  • भारत निवेशकों के लिये एक प्रमुख बाज़ार और विनिर्माण के विकल्प के रूप में दिखाई देता है। अतः भारत को अपने इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस और कौशल निर्माण में तेज़ी से प्रगति लाने की आवश्यकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पोस्ट-ब्रेक्ज़िट व्यापार समझौता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूरोपीय संसद ने यूरोपीय संघ (European Union) और यूनाइटेड किंगडम (UK) के मध्य  पोस्ट-ब्रेक्ज़िट व्यापार समझौते (Post-Brexit Trade Deal) के सत्यापन की पुष्टि की है।

  • ईयू-यूके व्यापार और सहयोग समझौता (EU–UK Trade and Cooperation Agreement-TCA) यूरोपीय संघ, यूरोपीय परमाणु ऊर्जा समुदाय (यूरेटोम) और यूनाइटेड किंगडम के मध्य  दिसंबर 2020 में संपन्न हुआ एक मुक्त व्यापार समझौता है।
  • ब्रिटेन द्वारा यूरोपीय संघ से अलग होने के फैसले के लगभग पांँच वर्ष बाद इस सौदे की पुष्टि की गई है। ब्रिटेन की संसद द्वारा पहले ही इसकी पुष्टि की जा चुकी है।

प्रमुख बिंदु: 

व्यापार और सहयोग समझौते (TCA) के विषय में:

  • अधिनियमित: इस समझौते को जनवरी 2020 में यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के मध्य  व्यापार संबंधी व्यवधानों को कम करने हेतु अनंतिम रूप से लागू किया गया था। 
    • इस समझौते के अनंतिम अनुमोदन की अवधि 30 अप्रैल, 2021 को समाप्त हो गई थी, हालाँकि अब एक बार पुन:  यूरोपीय संसद का अनुसमर्थन सुनिश्चित होने के बाद यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के मध्य व्यापार का प्रवाह निर्बाध रूप से जारी हो जाएगा।
  • प्रमुख प्रावधान:
    • एक समान पहुंँच:  यह समझौता इस बात को सुनिश्चित करेगा कि ब्रिटेन, यूरोपीय संघ के एकल बाज़ार के साथ व्यापार करने के लिये समान नियमों और विनियमों का पालन करे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के अन्य व्यवसायों की तुलना में अनुचित लाभ प्राप्त न हो।
    • शासन संबंधी नियम: इससे इस बात को निर्धारित किया जाएगा कि कोई समझौता किस प्रकार लागू किया जाए तथा साथ ही परस्पर रूप से स्वीकृत समझौते की शर्तों के उल्लंघन पर जुर्माने का भी निर्धारण किया जाएगा।
    • फिशिंग राईट: यह समझौता यूरोपीय संघ के मछुआरों को ब्रिटेन के जलीय क्षेत्र में मछली पकड़ने की सुविधा प्रदान करता है, जिसमें पाँच वर्ष के ट्रांजीशन पीरियड में छह मील दूर तक तटरेखा शामिल है। ट्रांजीशन पीरियड की समाप्ति पर, सब कुछ सामान्य व्यवस्था में वापस आ जाएगा और ब्रिटेन का अपने जल पर पूरा नियंत्रण होगा।
    • पुलिसिंग हेतु रूपरेखा: यह समझौता कानून प्रवर्तन मामलों को नियंत्रित करने संबंधी एक रूपरेखा प्रदान करता है, जिसके तहत भविष्य में ब्रिटेन और यूरोपीय संघ की पुलिस एजेंसियाँ समन्वय स्थापित कर सकेंगी।
    • यह समझौता अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अन्य प्रमुख पहलुओं को भी संबोधित करता है, जिसमें बौद्धिक संपदा सुरक्षा और सड़क परिवहन संबंधी प्रावधान शामिल हैं।
  • सीमाएँ
    • ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे- कानूनी और वित्तीय सेवाओं आदि पर इस समझौते में ध्यान नहीं दिया गया है।
    • वर्तमान में, ब्रिटेन में स्थित कानूनी और वित्तीय सेवा कंपनियों पर उसी प्रकार के प्रतिबंध आरोपित किये गए हैं, जिस प्रकार के प्रतिबंध यूरोपीय संघ के बाहर की किसी अन्य कंपनी पर लागू किये जाते हैं।

यूरोपीय संघ (EU) और यूनाइटेड किंगडम (UK):

  • यूनाइटेड किंगडम उत्तर पश्चिमी यूरोप में एक स्थिति द्वीप राष्ट्र है।
  • यह इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड से मिलकर बना है।
  • यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ के सदस्य राज्य आयरलैंड के साथ अपनी सीमा साझा करता है।
  • यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन) के मध्य संबंधों की शुरुआत वर्ष 1957 में ‘यूरोपियन कम्युनिटी’ (यूरोपीय संघ का पूर्ववर्ती) की स्थापना के साथ हुई थी।
  • वर्ष 1973 से ब्रिटेन यूरोपीय संघ का एक सदस्य राष्ट्र था, किंतु वर्ष 2016 में हुए एक जनमत संग्रह के दौरान ब्रिटेन ने 31 जनवरी, 2020 को स्वेच्छा से अपनी सदस्यता समाप्त करने का निर्णय लिया था।

उत्तरी आयरलैंड का मुद्दा:

  • भौगोलिक रूप से उत्तरी आयरलैंड, आयरलैंड का हिस्सा है, जबकि राजनीतिक रूप से, यह यूनाइटेड किंगडम का हिस्सा है।
  • उत्तरी आयरलैंड, यूनाइटेड किंगडम का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जो यूरोपीय संघ के सदस्य राष्ट्र, आयरलैंड के साथ सीमा साझा करता है। 
  • आयरलैंड की सीमा, लोग के  स्वतंत्र आगमन हेतु खुली हुई है, जिस कारण दोनों पक्षों के बीच शांति प्रक्रिया को स्थापित करना चुनौतीपूर्ण हो गया है, क्योंकि खुली सीमा के चलते उत्तरी आयरलैंड के लोग आयरलैंड और यूनाइटेड किंगडम दोनों देशों में आसानी से आवागमन कर पाते हैं।
  • ब्रिटेन की सरकार द्वारा  ‘हार्ड ब्रेक्ज़िट’ पर जोर दिया था, जिसके कारण यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ की आर्थिक व्यवस्था के लाभ से वंचित हो गया, ऐसे में यूनाइटेड किंगडम के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने संबंधी चुनौती है।
  • ब्रिटेन और यूरोपीय संघ दोनों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की है कि आयरलैंड और ब्रिटेन में किसी भी प्रकार की सीमा नहीं होनी चाहिये, क्योंकि इससे शांति स्थापित करने की प्रक्रिया में एक नए प्रकार की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
    • एक विकल्प के तौर पर उत्तरी आयरलैंड और ब्रिटेन के बाकी हिस्सों के बीच आयरिश सागर में सीमा स्थापित करने पर विचार किया जा सकता है।
    • हालाँकि इस  व्यवस्था ने ब्रिटिश संघवादियों को चिंतित कर दिया है, जो मानते हैं कि यह उत्तरी आयरलैंड में  ब्रिटेन की स्थिति को कमज़ोर करता है और आयरिश पुनर्मिलन की भावना को फिर से उत्पन्न कर सकता है।

Scotland

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

रोगाणुरोधी प्रतिरोध: वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिये खतरा

चर्चा में क्यों?

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) एक बढ़ती हुई वैश्विक समस्या है, जिसे बढ़ाने में वर्तमान कोविड -19 महामारी भी योगदान कर सकती है।

  • कोविड-19 रोगियों में प्रत्यक्ष रूप से एंटीबायोटिक के उपयोग के सबूत और अप्रत्यक्ष रूप से बिगड़ती आर्थिक स्थितियों के  खतरे के कारण AMR का खतरा बना हुआ है।

प्रमुख बिंदु:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध (अर्थ):

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance-AMR) का तात्पर्य किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी, आदि) द्वारा एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (जैसे एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंटिक्स) जिनका उपयोग संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है, के खिलाफ प्रतिरोध हासिल कर लेने से है। 
  • परिणामस्वरूप मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण जारी रहता है और दूसरों में फैल सकता है।
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को कभी-कभी "सुपरबग्स" के रूप में जाना जाता है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध का आधार:

  • प्रतिरोध जीन की उपस्थिति के कारण कुछ बैक्टीरिया आंतरिक रूप से प्रतिरोधी होते हैं और इसलिये रोगाणुरोधी दवाओं के लगातार संपर्क में आने के कारण अपने शरीर को इन दवाओं के अनुरूप ढाल लेते हैं। 
  • बैक्टीरिया प्रतिरोध को दो तरीके से प्राप्त कर सकते हैं:
    • शेष आबादी में मौजूद प्रतिरोधी जीन को साझा और स्थानांतरित करके, या
    • एंटीबायोटिक दवाएँ बैक्टीरिया को खत्म कर देती हैं या उनकी वृद्धि को रोक देती हैं, लेकिन लगातार इस्तेमाल से बैक्टीरिया में उत्परिवर्तन के कारण एक प्रतिरोध क्षमता पैदा हो जाती है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध के प्रसार के कारण:

  • रोगाणुरोधी दवा का दुरुपयोग और कृषि में अनुचित उपयोग।
  • दवा निर्माण स्थलों के आसपास संदूषण शामिल हैं, जहाँ अनुपचारित अपशिष्ट से अधिक मात्रा में सक्रिय रोगाणुरोधी वातावरण में मुक्त हो जाते है।

चिंताएँ:

  • AMR पहले से ही प्रतिवर्ष 7,00,000 तक मौतों  के लिये ज़िम्मेदार है।
  • AMR आधुनिक चिकित्सा के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न करता है। जीवाणुयुक्त और कवकीय संक्रमण के उपचार के लिये कार्यात्मक रोगाणुरोधी के बिना सामान्य शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं (जैसे-अंग प्रत्यारोपण,, मधुमेह प्रबंधन) के साथ-साथ कैंसर कीमोथेरेपी भी गैर-उपचारित संक्रमणों के जोखिम से युक्त हो जाएगी।
  • अस्पतालों में लंबे समय तक रहने तथा अतिरिक्त परीक्षणों और अधिक महंगी दवाओं के उपयोग के साथ स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाती है।
  • यह सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों की प्राप्ति को जोखिम को प्रभावित कर रहा है और सतत् विकास लक्ष्यों की उपलब्धि को खतरे में डाल रहा है।
  •  यह चुनौती इसलिये और भी गंभीर हो जाती है क्योंकि विकास और उत्पादन के पर्याप्त प्रोत्साहन के अभाव में विगत तीन दशकों में एंटीबायोटिक दवाओं का कोई भी नया विकल्प बाज़ार में उपलब्ध नहीं हो पाया है।
  • यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो एंटीबायोटिक दवाओं के बिना हमारा भविष्य समाप्ति की ओर बढ़ रहा होगा जिसके परिणामस्वरूप बैक्टीरिया पूरी तरह से उपचार के लिये प्रतिरोधी बन जाएगा और तब आम संक्रमण और मामूली समस्याए एक बार फिर से खतरा उत्पन्न कर सकती हैं।

भारत में AMR:

  • भारत में बड़ी आबादी के संयोजन के साथ बढ़ती हुई आय जो एंटीबायोटिक दवाओं की खरीद की सुविधा प्रदान करती है, संक्रामक रोगों का उच्च बोझ और एंटीबायोटिक दवाओं के लिये आसान ओवर-द-काउंटर उपयोग, प्रतिरोधी जीन की पीढ़ी को बढ़ावा देती हैं। 
  • बहु-दवा प्रतिरोध निर्धारक, नई दिल्ली मेटालो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (एनडीएम -1), इस क्षेत्र में विश्व स्तर पर तेज़ी से  उभरा है।
    • अफ्रीका, यूरोप और एशिया के अन्य भाग भी दक्षिण एशिया से उत्पन्न होने वाले बहु-दवा प्रतिरोधी टाइफाइड से प्रभावित हुए हैं।
  • भारत में सूक्ष्मजीवों (जीवाणु और विषाणु सहित) के कारण सेप्सिस से हर वर्ष 56,000 से अधिक नवजात बच्चों की मौत होती हैं जो पहली पंक्ति के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी हैं।
  • भारत ने टीकाकरण कवरेज को कम करने के लिये निगरानी और जवाबदेही में सुधार करके अतिरिक्त नियोजन और अतिरिक्त तंत्र को मबूत करने के लिये मिशन इंद्रधनुष जैसी कई कार्य किये गए हैं।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने AMR को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ मंत्रालय के सहयोगात्मक कार्यों के लिये शीर्ष 10 प्राथमिकताओं में से एक के रूप में पहचाना है।
  • AMR प्रतिरोध 2017-2021 पर राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की गई है

आगे की राह 

  • चूँकि रोगाणु नई रोगाणुरोधकों प्रतिरोधी क्षमता विकसित करते रहेंगे, अत: नियमित आधार पर नए प्रतिरोधी उपभेदों (Strain) का पता लगाने और उनका मुकाबला करने के लिये निरंतर निवेश और वैश्विक समन्वय की आवश्यकता है।
  • एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित प्रोत्साहन को कम करने के लिये उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के साथ प्रदाताओं के लिये उपचार संबंधी दिशा-निर्देश जारी करने की भी आवश्यकता है।
  • इन विविध चुनौतियों से निपटने के लिये नए रोगाणुरोधी को विकसित करने के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में कार्रवाई की आवश्यकता है। संक्रमण-नियंत्रण उपायों के द्वारा एंटीबायोटिक के उपयोग को सीमित कर सकते हैं।
  • वित्तीय अनुमोदन जैसे उपाय उचित नैदानिक ​​उपयोग को (Clinical Use) प्रोत्साहित करेंगे। साथ ही रोगाणुरोधी की आवश्यकता वाले लोगों तक इसकी पहुँच को सुनिश्चित करना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि उपचार योग्य संक्रमण के लिये दवाओं के अभाव में दुनिया भर में 7 मिलियन लोग प्रतिवर्ष मर जाते हैं।
  • इसके अलावा, रोगाणुओं में प्रतिरोध के प्रसार को ट्रैक करने व समझने के क्रम में इन जीवाणुओं की पहचान के लिये निगरानी उपायों को अस्पतालों के अतिरिक्त पशुओं, अपशिष्ट जल एवं कृषि व खेत-खलिहान को भी शामिल करने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजव्यवस्था

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजधानी दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाने संबंधी दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम [Government of National Capital Territory of Delhi (Amendment) Act], 2021 लागू कर दिया गया है।

प्रमुख बिंदु

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधान:

  • यह अधिनियम वर्ष 1991 के अधिनियम की धारा 21, 24, 33 और 44 में संशोधन करता है।
  • इसके तहत दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ‘सरकार’ का आशय उप-राज्यपाल से होगा।
  • यह अधिनियम उन मामलों में भी उपराज्यपाल को विवेकाधीन अधिकार देता है जिन  मामलों में दिल्ली की विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है।
  • यह विधेयक सुनिश्चित करता है कि मंत्रिपरिषद (अथवा दिल्ली मंत्रिमंडल) द्वारा लिये गए किसी भी निर्णय को लागू करने से पूर्व उपराज्यपाल को अपनी ‘राय देने हेतु उपयुक्त अवसर प्रदान किया जाए।
  • यह विधानसभा या उसकी समितियों को दैनिक प्रशासन से संबंधित मामलों को उठाने या प्रशासनिक निर्णयों के संबंध में पूछताछ करने के लिये नियम बनाने से रोकता है।

आलोचना:

  • इस नए संशोधन से दिल्ली सरकार की कार्यक्षमता प्रभावित होगी, क्योंकि अब किसी तत्काल कार्रवाई के समय भी उपराज्यपाल से परामर्श लेना अनिवार्य होगा।
  • गौरतलब है कि उपराज्यपाल राज्य सरकार को एक निश्चित समय सीमा के भीतर अपनी राय देने के लिये बाध्य नहीं है। आलोचकों का तर्क है कि उपराज्यपाल सरकार के प्रशासनिक कार्यों में बाधा डालने हेतु इन शक्तियों का राजनीतिक रूप से दुरुपयोग कर सकता है।
  • यह संघवाद (Federalism) की भावना के विरुद्ध है।

केंद्र सरकार का पक्ष:

  • यह संशोधन सर्वोच्च न्यायालय के जुलाई 2018 के निर्णय के अनुरूप में है, जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल की शक्तियों को स्पष्ट किया गया था।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य सार्वजनिक जवाबदेही को बढ़ावा देना और रोज़मर्रा के प्रशासन से संबंधित तकनीकी अस्पष्टताओं को दूर करना है।
  • इससे दिल्ली की प्रशासनिक दक्षता बढ़ेगी और कार्यपालिका तथा विधायिका के बीच बेहतर संबंध सुनिश्चित हो सकेंगे।

पृष्ठभूमि

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन अधिनियम, 1991

  • इसे वर्ष 1991 में विधानसभा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के मंत्रिपरिषद से संबंधित संविधान के प्रावधानों के पूरक के रूप में लागू किया गया था।
  • इस अधिनियम ने दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार के गठन की प्रक्रिया को सक्षम किया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व में वर्ष 1991 के अधिनियम की सराहना करते हुए कहा था कि संविधान (69वाँ संशोधन) अधिनियम, 1991 का वास्तविक उद्देश्य एक लोकतांत्रिक और प्रतिनिधि सरकार का गठन सुनिश्चित करना है, जिसमें आम लोगों को प्रदेश से संबंधित कानूनों पर अपनी राय देने का अधिकार हो, हालाँकि यह संपूर्ण प्रक्रिया संविधान में निर्धारित नियमों के अधिक होगी।

69वाँ संशोधन अधिनियम, 1992

  • इस संशोधन के द्वारा संविधान में दो नए अनुच्छेद 239AA और 239AB जोड़े गए, जिसके अंतर्गत केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को विशेष दर्जा दिया गया।
  • अनुच्छेद 239AA के अंतर्गत केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ बनाया गया और इसके प्रशासक को उपराज्यपाल (Lt. Governor) नाम दिया गया।
    • दिल्ली के लिये विधानसभा की व्यवस्था की गई जो पुलिस, भूमि और लोक व्यवस्था के अतिरिक्त राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
    • यह दिल्ली के लिये एक मंत्रिपरिषद का भी प्रावधान करता है, जिसमें मंत्रियों की कुल संख्या विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या के 10% से अधिक नहीं होगी।
  • अनुच्छेद 239AB के मुताबिक, राष्ट्रपति अनुच्छेद 239AA के किसी भी प्रावधान या इसके अनुसरण में बनाए गए किसी भी कानून के किसी भी प्रावधान के संचालन को निलंबित कर सकता है। यह प्रावधान अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) जैसा है।

टकराव के प्रमुख बिंदु:

  • राजधानी दिल्ली में सत्ता के बंटवारे को लेकर कई वर्षों से मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच तनातनी बनी हुई थी।
  • इन टकराओं का केंद्र बिंदु यह था कि किसी भी मामले पर उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच मतभेद होने पर,
    • उपराज्यपाल द्वारा संबंधित मामले को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता था,
    • और लंबित मामले की स्थिति में उपराज्यपाल को अपने विवेक के मुताबिक, उस मामले पर कार्रवाई करने का अधिकार था।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ और अन्य (2018) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि:
    • सरकार अपने निर्णयों पर उपराज्यपाल की सहमति लेने के लिये बाध्य नहीं है।
    • दोनों पक्षों के बीच किसी भी मतभेद को प्रतिनिधि सरकार और सहकारी संघवाद की संवैधानिक प्रधानता को ध्यान में रखते हुए हल किया जाना चाहिये।
  • इस निर्णय ने उपराज्यपाल के लिये राष्ट्रपति के पास किसी मामलों को भेजना बेहद कठिन बना दिया था।

स्रोत: द हिंदू


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