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डेली न्यूज़

  • 30 Jan, 2021
  • 33 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ताइवान में चीन की कार्यवाही और अमेरिका

चर्चा में क्यों?

ताइवान के ‘एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन ज़ोन’ (ADIZ) में चीन के युद्धक विमानों के प्रवेश करने की घटना के बाद अमेरिका ने ताइवान को अपने समर्थन की पुष्टि की है।

  • ताइवान के क्षेत्र में प्रवेश करने संबंधी चीन की यह कार्यवाही चीन द्वारा वर्तमान में ताइवान की लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से प्रेरित है, ताकि ताइवान स्वयं को चीन के हिस्से के रूप में स्वीकार कर ले।

प्रमुख बिंदु

चीन-ताइवान संघर्ष की पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1949 में हुए गृह युद्ध के दौरान चीन और ताइवान अलग हो गए, हालाँकि इसके बावजूद चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और आवश्यकता पड़ने पर किसी भी तरह से उस पर नियंत्रण प्राप्त करने का इच्छुक है।
  • वहीं ताइवान के नेताओं का कहना है कि ताइवान एक संप्रभु राज्य है।
  • दशकों की तनावपूर्ण स्थिति के बाद 1980 के दशक में चीन और ताइवान के बीच संबंधों में सुधार की शुरुआत हुई, चीन ने ‘एक देश, दो प्रणाली’ के रूप में एक सूत्र प्रस्तुत किया, जिसके तहत ताइवान यदि चीन के साथ पुन: एकीकरण को स्वीकार करता है, तो उसे स्वायत्तता दी जाएगी।
  • ताइवान ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, हालाँकि ताइवान सरकार ने चीन की यात्रा करने और वहाँ निवेश संबंधी नियमों में ढील दे दी।
  • इस दौरान दोनों पक्षों के बीच अनौपचारिक वार्ता का दौर भी शुरू हुआ, हालाँकि चीन का कहना था कि ताइवान की रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) गवर्नमेंट-टू-गवर्नमेंट वार्ता को अवैध रूप से रोक रही है।
  • वर्ष 2020 में हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के कार्यान्वयन को कई लोग इस तथ्य के संकेत के रूप में भी देख रहे हैं कि चीन इस क्षेत्र में काफी अधिक मुखर हो रहा है।

चीन-ताइवान संघर्ष में अमेरिका

  • चीन की सरकार ने वर्ष 2005 में एक एंटी-ससेशन कानून पारित किया था, जिसके तहत मेनलैंड चाइना से ताइवान के स्थायी अलगाव को रोकने के लिये गैर-शांतिपूर्ण साधनों को लागू करने की स्थितियाँ प्रदान की गई हैं।
  • यदि चीन ताइवान पर हमला करता है तो ताइवान संबंध अधिनियम (TRA) 1979 के हिस्से के रूप में अमेरिका ताइवान की सहायता के लिये प्रतिबद्ध है।
  • इस प्रकार ताइवान में चीन की हालिया कार्यवाही और अमेरिका द्वारा उसका विरोध दोनों देशों द्वारा ताइवान को लेकर अपनाई गई विरोधाभासी नीति का परिणाम है।

अमेरिका का पक्ष

  • अमेरिका ने ताइवान समेत अपने पड़ोसियों को भयभीत करने की चीन की नीति की कड़ी आलोचना की है।
  • अमेरिका ने चीन से ताइवान के विरुद्ध अपने सैन्य, राजनयिक और आर्थिक दबाव को रोकने और ताइवान के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रतिनिधियों के साथ सार्थक बातचीत में संलग्न होने का आग्रह किया है।

चीन की चिंताएँ

  • ताइवान को अमेरिका का सामरिक और रक्षा समर्थन
    • ताइवान अमेरिकी हथियारों की खरीद के माध्यम से अपनी रक्षा प्रणाली को मज़बूत करने का प्रयास कर रहा है, जिसमें उन्नत F-16 फाइटर जेट, सशस्त्र ड्रोन, रॉकेट सिस्टम और हार्पून मिसाइल आदि शामिल हैं।
    • ताइवान सरकार ने अपने स्वदेशी हथियार उद्योग के लिये अमेरिका के समर्थन को भी बढ़ावा दिया है, जिसमें चीन की बढ़ती नौसेना क्षमताओं का मुकाबला करने को नई पनडुब्बियों के निर्माण हेतु एक कार्यक्रम शुरू करना भी शामिल है।
  • आसपास के क्षेत्रों में अमेरिका की उपस्थिति
    • युद्धपोत थियोडोर रूज़वेल्ट के नेतृत्त्व में एक अमेरिकी विमान वाहक समूह ने दक्षिण चीन सागर में प्रवेश किया है, ताकि समुद्री स्वतंत्रता सुनिश्चित की जा सके और समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये साझेदारी का निर्माण किया जा सके।
  • ‘वन चाइना पाॅलिसी’ के समक्ष चुनौती
    • चीन की ‘वन चाइना पाॅलिसी’ का अर्थ है कि जो देश ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ से कूटनीतिक संबंध स्थापित करना चाहते हैं उन्हें ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (ताइवान) के साथ अपने कूटनीतिक संबंध समाप्त करने होंगे।
    • कुछ देशों के ताइवान के साथ मौजूदा राजनयिक संबंध और विभिन्न अंतर-सरकारी संगठनों में इसकी सदस्यता चीन की नीति को चुनौती देती है:
      • रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी ताइवान के कुल 15 देशों के साथ राजनयिक संबंध हैं और इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपीय संघ के देशों, जापान और न्यूज़ीलैंड जैसे कई अन्य देशों के साथ भी इसके अनौपचारिक संबंध हैं।
      • इसके अलावा ताइवान के पास 38 अंतर-सरकारी संगठनों और उनके सहायक निकायों की पूर्ण सदस्यता है, जिसमें विश्व व्यापार संगठन (WTO), एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) और एशियाई विकास बैंक (ADB) शामिल हैं।
  • भारत का पक्ष
    • वर्ष 1949 से ही भारत ने ‘वन चाइना’ नीति को मान्यता दी है, इस तरह भारत ताइवान और तिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में स्वीकार करता है।
    • भारत इस नीति का उपयोग अपने सामरिक हितों को साधने के उद्देश्य से करता है, इस तरह यदि भारत ‘वन चाइना’ नीति में विश्वास करता है तो चीन को भी ‘वन इंडिया’ नीति में विश्वास करना चाहिये।
    • यद्यपि भारत ने वर्ष 2010 के बाद से संयुक्त बयानों और आधिकारिक दस्तावेज़ों में ‘वन चाइना’ नीति के पालन का उल्लेख करना बंद कर दिया है, किंतु चीन के साथ संबंधों के कारण भारत अभी तक ताइवान के साथ औपचारिक संबंध स्थापित नहीं कर पाया है।
      • वर्ष 1995 के बाद से दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की राजधानियों में प्रतिनिधि कार्यालय खोल रखे हैं जो वास्तव में दूतावास के रूप में कार्य करते हैं।

ताइवान

Taiwan

  • तकरीबन 23 मिलियन लोगों की आबादी वाला रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी ताइवान चीन के दक्षिणी तट के पास स्थित द्वीप है, जिसे वर्ष 1949 के बाद से पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से स्वतंत्र एक लोकतांत्रिक सरकार द्वारा शासित किया जा रहा है।
  • इसके पश्चिम में चीन (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना), उत्तर पूर्व में जापान और दक्षिण में फिलीपींस स्थित है।
  • ताइवान सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है जो संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं है और संयुक्त राष्ट्र के बाहर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी है।
  • ताइवान एशिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
  • यह चिप निर्माण में एक वैश्विक प्रतिनिधि और आईटी हार्डवेयर आदि का दूसरा सबसे बड़ा निर्माता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में स्वर्ण योजनाएँ

चर्चा में क्यों?

सरकार मौजूदा स्वर्ण जमा योजना और स्वर्ण धातु जमा योजना में बदलाव लाने पर विचार कर रही है ताकि धीरे-धीरे निवेशकों को भौतिक स्वर्ण में अत्यधिक निवेश करने से रोका जा सके।

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा अपने ऋण कार्यक्रमों के तहत स्वर्ण बॉण्ड जारी करने एवं स्वर्ण मौद्रीकरण पर ज़ोर देने के बावजूद भौतिक स्वर्ण और आभूषणों की खरीद में विभिन्न वित्तीय चैनलों के माध्यम से निवेश तेज़ी से बढ़ा है।

सरकार की योजना:

  • मौजूदा संशोधित स्वर्ण जमा योजना, संशोधित स्वर्ण धातु ऋण योजना और भारतीय स्वर्ण सिक्का योजना में कई संशोधनों को अंतिम रूप दिया गया है।
  • मौजूदा योजना को निवेश सुविधा और कराधान के पहलुओं के माध्यम से आकर्षक बनाया जाएगा।

स्वर्ण योजनाएँ:

स्वर्ण मौद्रीकरण योजना (GMS):

  • GMS, जिसने मौजूदा स्वर्ण जमा योजना' (GDS) और स्वर्ण धातु जमा योजनाओं (GML) को प्रतिस्थापित किया है, को वर्ष 2015 में देश के परिवारों और विभिन्न संस्थाओं के पास रखे सोने को एकत्रित करने और इसका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिये करने की सुविधा हेतु शुरू किया गया था ताकि भारत लंबे समय तक सोने के आयात पर देश की निर्भरता को कम कर सके।

संशोधित स्वर्ण जमा योजना:

  • जमा सीमा: इस योजना के अंतर्गत किसी भी समय न्यूनतम 30 ग्राम सोना जमा किया जा सकता है तथा जमा की कोई अधिकतम सीमा नहीं है।
    • मौजूदा योजना में प्रस्तावित परिवर्तन: 30 ग्राम सोना जमा करने की सीमा को न्यूनतम 1 ग्राम तक घटाया जा सकता है। योजना के तहत ब्याज से प्राप्त आय और पूंजीगत लाभ को पूंजीगत लाभ कर, धन कर और आयकर से छूट मिलती रहेगी।
  • समयसीमा:
    • नामित बैंक अल्पावधि (1-3 वर्ष) बैंक जमा के साथ-साथ मध्यम (5-7 वर्ष) और दीर्घ (12-15 वर्ष) अवधि के लिये सरकारी जमा योजनाओं के तहत स्वर्ण जमा स्वीकार कर सकते हैं।
  • क्रियान्वयन एजेंसी:
    • सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को यह योजना लागू करने की अनुमति है और वे ब्याज दरों को तय करने के लिये भी स्वतंत्र हैं।
  • समय-पूर्व निकासी:
    • जमाकर्त्ता अपनी जमा राशि की समय से पहले निकासी भी कर सकते हैं। यह व्यक्तिगत रूप से बैंकों द्वारा निर्धारित न्यूनतम लॉक-इन अवधि और जुर्माने के अधीन होगा।
  • संबंधित मुद्दे:
    • सांस्कृतिक मुद्दा: लंबे समय से भारतीयों का सोने से गहरा लगाव रहा है। विशेषतः जब यह आभूषण के रूप में होता है।
      • इस योजना के तहत जमाकर्त्ता को शुरुआत में स्पष्ट करना होगा कि वह नकदी या स्वर्ण में इसे भुनाना चाहता है या नहीं। अगर यह स्वर्ण रूप में ही इसे भुनाना चाहता है, तो बैंक उसे मानकीकृत सोने की छड़ों के रूप में वापस कर देंगे जिसे आमतौर पर व्यक्ति अनिच्छा के साथ ही स्वीकार करते हैं।

संशोधित स्वर्ण धातु ऋण योजना (GML):

  • यह एक ऐसा तंत्र है जिसके तहत एक आभूषण निर्माता रुपए के बजाय सोना उधार लेता है और बिक्री से प्राप्त आय से स्वर्ण धातु ऋण को समायोजित करता है।
  • घरेलू आभूषण निर्माताओं के मामले में 180 दिनों और निर्यात के मामले में 270 दिनों के लिये GML का लाभ उठाया जा सकता है।
  • GML योजना में संशोधन की भी योजना बनाई जा रही है।
  • तरलता प्रभावित होना: इस योजना के अनुसार, बैंक उन ज्वैलर्स या अन्य बैंकों को सोना उधार दे सकते हैं या बेच सकते हैं जो इस योजना का हिस्सा हैं।
    • हालाँकि नकदी किसी को भी दी जा सकती है लेकिन जमा स्वर्ण केवल उन लोगों को ही दिया जाता है जिन्हें विशेष रूप से इसकी आवश्यकता है।
    • इस प्रकार बैंकों को स्वर्ण जमाकर्त्ताओं के साथ स्वर्ण लेनदारों का मिलान करना मुश्किल हो जाता है।
    • इसका मतलब यह है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जब बैंकों के पास स्वर्ण जमाकर्त्ताओं को दिये जाने वाले ब्याज के लिये पर्याप्त धन नहीं हो।

सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड योजना

  • उद्देश्य: यह लोगों को भौतिक स्वर्ण के बजाय स्वर्ण बॉण्ड खरीदने के लिये प्रोत्साहित करती है।
  • जारीकर्त्ता: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) केंद्र सरकार की तरफ से इन बॉण्डों को जारी करता है।
  • विशेषताएँ: 
    • इस योजना के तहत कम-से-कम दो ग्राम सोना और अधिक-से-अधिक 500 ग्राम सोने के मूल्य के बराबर बॉण्ड खरीदे जा सकते हैं।
    • स्वर्ण बॉण्ड केवल निवासी भारतीय संस्थाओं, व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों, ट्रस्टों, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थानों को बेचे जाएंगे।
    • इस बॉण्ड की परिपक्वता अवधि आठ वर्ष होती है जिसमें पाँचवें वर्ष में बाहर निकलने की भी सुविधा है। ये सभी बॉण्ड व्यापार योग्य होते हैं।
    • इन बॉण्डों को ऋण के संदर्भ में संपार्श्विक (Collateral) के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • संबंधित मुद्दे: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सोने की कीमत डॉलर से जुड़ी होती है, यदि ये स्वर्ण बॉण्ड पर्याप्त रूप से आकर्षक बनाए जाएँ तो रुपए आधारित बॉण्ड के विकल्प बन सकते हैं।

गोल्ड कॉइन एंड बुलियन स्कीम:

  • इसके तहत सरकार स्वर्ण सिक्के जारी करती है, जिन पर अशोक चक्र अंकित होता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में टाटा ट्रस्ट ने सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज़, दक्ष (DAKSH), विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और राष्ट्रमंडल मानव अधिकार पहल के सहयोग से इंडिया जस्टिस रिपोर्ट-2020 (India Justice Report-2020) जारी की है।

  • यह रिपोर्ट विभिन्न राज्यों की न्याय करने की क्षमता का आकलन करती है।

प्रमुख बिंदु:

रिपोर्ट के संबंध में:

  • रिपोर्ट में 1 करोड़ से अधिक आबादी वाले 18 बड़े और मध्यम आकार के राज्यों तथा 7 छोटे राज्यों में व्यय, रिक्तियों, महिलाओं का प्रतिनिधित्व, मानव संसाधन, बुनियादी ढाँचा, कार्यभार, विविधता का विश्लेषण किया गया है।

रिपोर्ट के अन्य प्रमुख बिंदु:

  • समग्र रैंकिंग:
    • समग्र रैंकिंग न्याय वितरण प्रणाली के चार स्तंभों- न्यायपालिका, पुलिस, जेल और कानूनी सहायता में राज्य की रैंकिंग को दर्शाती है।
    • 18 राज्यों में महाराष्ट्र लगातार दूसरी बार शीर्ष स्थान पर रहा, उसके बाद तमिलनाडु और तेलंगाना थे तथा सबसे अंतिम स्थान पर उत्तर प्रदेश रहा।
    • छोटे राज्यों में गोवा शीर्ष स्थान पर कायम रहा और सबसे निचले स्थान पर अरुणाचल प्रदेश रहा।
  • पुलिस बल में महिला अनुपात:
    • बिहार राज्य पुलिस बल में 25.3% महिलाओं को रोजगार देने के साथ 25 राज्यों की सूची में शीर्ष पर है।
      • पुलिस बल में 20% से अधिक महिलाओं की भागीदारी वाला यह एकमात्र राज्य है। हालाँकि अधिकारी श्रेणी में केवल 6.1% महिलाएँ हैं।
    • तमिलनाडु में महिला पुलिस अधिकारियों का उच्चतम प्रतिशत (24.8%) है, इसके बाद मिज़ोरम (20.1%) का स्थान है।
  • न्यायपालिका में महिला अनुपात:
    • कुल मिलाकर देश भर के उच्च न्यायालयों में केवल 29% न्यायाधीश महिलाएँ हैं, लेकिन सिक्किम को छोड़कर किसी भी राज्य में 20% से अधिक महिला न्यायाधीश नहीं हैं।
    • चार राज्यों- बिहार, उत्तराखंड, त्रिपुरा और मेघालय उच्च न्यायालयों में कोई महिला न्यायाधीश नहीं है।
  • सामाजिक न्याय
    • कर्नाटक एकमात्र राज्य है, जो अधिकारी कैडर और पुलिस बल दोनों के लिये एससी, एसटी एवं ओबीसी हेतु अपना कोटा पूरा करता है।
    • छत्तीसगढ़ एकमात्र अन्य राज्य है जो पुलिस बल की विविध आवश्यकताओं को पूरा करता है।
  • वित्त का अभाव:
    • पिछले 25 वर्षों में केंद्र द्वारा केवल 2019-20 में 1.5 करोड़ लोगों को प्रति व्यक्ति 1.05 रुपए की कानूनी सहायता प्रदान की गई है। 
  • अंडरट्रायल मामलों की अधिकता:
    • सभी कैदियों में से लगभग दो-तिहाई कैदी दोषसिद्धि के विचाराधीन हैं।
      • एक व्यक्ति जिसे हिरासत में रखा गया हो वह अपने अपराध के लिये मुकदमे की प्रतीक्षा करता है।
  • न्याय में देरी का कारण:
    • कानूनी सेवा संस्थानों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, असमान मानव संसाधन वितरण, केंद्रीय निधियों के अनियमित उपयोग और न्यायपालिका पर बोझ आदि कारण लोक अदालतों को प्रभावित करते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय इतिहास

लाला लाजपत राय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की

  • हर वर्ष 28 जनवरी को लाला लाजपत राय की जयंती मनाई जाती है।

Lala-Lajpat_rai

प्रमुख बिंदु:

लाला लाजपत राय के बारे में:

लाला लाजपत राय भारत के महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे।

  • उन्हें 'पंजाब केसरी' (Punjab Kesari) और 'पंजाब का शेर' (Lion of Punjab) नाम से भी जाना जाता था।
  • उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से कानून की पढ़ाई की।
  • वे स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रभावित होकर लाहौर में आर्य समाज (Arya Samaj) में शामिल हो गए।
  • उनका विश्वास था कि हिंदू धर्म में आदर्शवाद, राष्ट्रवाद (Nationalism) के साथ मिलकर धर्मनिरपेक्ष राज्य (Secular State) की स्थापना करेगा।
  • बिपिन चंद्र पाल और बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर उन्होंने चरमपंथी नेताओं की  एक तिकड़ी (लाल-बाल-पाल) बनाई।
  • ये हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) से भी जुड़े थे।
  • उन्होंने छुआछूत के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शित किया।

जन्म:

  • उनका जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के फिरोज़पुर ज़िले (Ferozepur District) के धुडीके (Dhudike) नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था।

योगदान:

  • राजनीतिक:
    • वे भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (Indian National Congress- INC) में शामिल हो गए और पंजाब के कई राजनीतिक आंदोलनों में हिस्सा लिया।
    • राजनीतिक आंदोलनों में हिस्सा लेने के कारण उन्हें वर्ष 1907 में बर्मा भेज दिया गया था, लेकिन पर्याप्त सबूतों के अभाव में कुछ महीनों बाद वे वापस लौट आए।
    • उन्होने बंगाल विभाजन का विरोध किया।
    • उन्होंने वर्ष 1917 में अमेरिका में होम रूल लीग ऑफ अमेरिका (Home Rule League of America) की स्थापना की और इसके द्वारा अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय  समुदाय से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिये नैतिक समर्थन मांगा।
    • उन्हें अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कॉन्ग्रेस (All India Trade Union Congress) का अध्यक्ष भी चुना गया था।
    • उन्होंने वर्ष 1920 में कॉन्ग्रेस के नागपुर अधिवेशन में गांधी जी के असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) का समर्थन किया।
    • उन्होंने रौलेट एक्ट (Rowlatt Act) और उसके बाद होने वाले जलियांवाला बाग  हत्याकांड (Jallianwala Bagh massacre) का विरोध किया।
    • उन्हें वर्ष 1926 में केंद्रीय विधानसभा का उप नेता चुना गया।
    • वर्ष 1928 में उन्होंने साइमन कमीशन के साथ सहयोग करने से इनकार करते हुए विधानसभा में एक प्रस्ताव रखा क्योंकि आयोग में किसी भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया था।
  • सामाजिक:
    • उन्होंने  अकाल पीड़ित लोगों की मदद करने और उन्हें मिशनरियों के चंगुल से बचाने के लिये वर्ष 1897 में हिंदू राहत आंदोलन ( Hindu Relief Movement) की स्थापना की।
    • उन्होंने वर्ष 1921 में सर्वेंट्स ऑफ पीपुल सोसाइटी ( Servants of People Society) की स्थापना की।
  • साहित्य:
    • उनके द्वारा लिखित महत्त्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों में यंग इंडिया, इंग्लैंड डेब्ट  टू इंडिया,  एवोल्यूशन ऑफ जापान, इंडिया विल टू फ्रीडम, भगवद्गीता का संदेश, भारत का राजनीतिक भविष्य, भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या, डिप्रेस्ड ग्लासेस और अमेरिका का यात्रा वृतांत शामिल हैं।
  • संस्थान:
    • उन्होंने हिसार बार काउंसिल, हिसार आर्य समाज, हिसार कॉन्ग्रेस, राष्ट्रीय डीएवी प्रबंध समिति जैसे कई संस्थानों और संगठनों की स्थापना की।
    • वे आर्य गजट के संपादक एवं संस्थापक थे।
    • उन्होने वर्ष 1894 में पंजाब नेशनल बैंक की आधारशिला रखी।
  • मृत्यु:
    • वर्ष 1928 में जब वे लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ एक मौन विरोध का नेतृत्व कर रहे थे तो उन पर पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट द्वारा बेरहमी से लाठीचार्ज किया गया जिसमें वे गंभीर रूप से घायल हो गए और कुछ ही हफ्तों बाद उनकी मृत्यु हो गई।

स्रोत: पी.आई.बी. 


कृषि

पाकिस्तानी बासमती को मिला GI टैग

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान ने बासमती (Basmati) चावल को अपने भौगोलिक संकेतक अधिनियम, 2020 के तहत भौगोलिक संकेत (Geographical Indication- GI) का टैग दिया है।

  • पाकिस्तान, यूरोपीय संघ (European Union- EU) से बासमती चावल को अपने उत्पाद के रूप मान्यता प्राप्त करने के लिये भारत के खिलाफ मुकदमा लड़ रहा है।

प्रमुख बिंदु

बासमती चावल पर भारत-पाकिस्तान:

  • पाकिस्तान द्वारा यह कदम भारत के उस आवेदन के बाद उठाया गया है, जिसमें भारत ने यूरोपियन यूनियन से पाकिस्तान से अलग अपने बासमती के लिये विशेष जीआई टैग की माँग की गई थी।
    • भारत का दावा है कि बासमती चावल का उत्पादन करने वाला क्षेत्र हिमालय की तलहटी वाला गंगा का मैदान उत्तरी भारत का एक हिस्सा है।
    • इस भारतीय दावे को दिसंबर 2019 में पाकिस्तान द्वारा यूरोपीय संघ में चुनौती दी गई थी। पाकिस्तान का तर्क था कि बासमती चावल भारत और पाकिस्तान का संयुक्त उत्पाद है।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में किसी भी उत्पाद के पंजीकरण के लिये आवेदन करने से पहले उस उत्पाद को संबंधित देश के भौगोलिक संकेत कानूनों के तहत संरक्षित होना चाहिये।
    • पाकिस्तान ने  मार्च 2020 में बासमती चावल पर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में एकाधिकार प्राप्त करने और EU में भारतीय आवेदन का विरोध करने के लिये भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम बनाया।

पाकिस्तान के जीआई टैग का महत्त्व:

  • पाकिस्तान के बासमती चावल को जीआई टैग दिए जाने से यूरोपीय संघ में पाकिस्तान के दावे को मज़बूती मिलेगी।
    • पाकिस्तान द्वारा दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सालाना 5,00,000-7,00,000 टन बासमती चावल का निर्यात किया जाता है, जिसमें से 2,00,000 टन से 2,50,000 टन यूरोपीय संघ के देशों को भेजा जाता है।

भारत पर प्रभाव:

  • बासमती चावल भारत और पाकिस्तान की संयुक्त विरासत है। अतः भारत की तरह पाकिस्तान को भी अपने बासमती चावल के व्यापार को सुरक्षित करने का हक है।
  • पाकिस्तान सिर्फ अपने बासमती चावल के लिये जीआई टैग हासिल करना चाहता है, इसका भारत के बासमती निर्यात पर  किसी भी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में बासमती चावल की अधिक कीमत है। इसलिये भारत ने  यूरोपीय संघ में यह कहते हुए पाकिस्तान का विरोध किया कि बासमती चावल भौगोलिक रूप से भारतीय मूल का है।

भारत में बासमती चावल को जीआई टैग:

  • भारत को बासमती चावल के उत्पादन में बढ़त प्राप्त है। इसे भारत में हिमालय की तलहटी (Indo-Gangetic Plain) और पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में लंबे समय से उगाया जाता रहा है।
    • यह भारत के लिये कठिन लड़ाई थी कि वह बासमती नाम को विभिन्न राष्ट्रों के अतिक्रमण से बचाए रखे क्योंकि इस चावल को कई देश दूसरे नाम से प्रस्तुत कर रहे थे।
  • हिमालय की तलहटी पर IGP में स्थित क्षेत्र के लिये कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority- APEDA) ने GI टैग प्राप्त किया। यह क्षेत्र सात राज्यों (हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली) में फैला हुआ है।
  • GI टैग देने का कारण: 
    • बासमती को लंबा और सुगंधित चावल के रूप में जाना जाता हैI GP क्षेत्र में सुगंधित चावल के साक्ष्य यहाँ की लोक कथाओं, वैज्ञानिक और रसोई संबंधी साहित्यों तथा राजनीतिक-ऐतिहासिक अभिलेखों में पाए जाते हैं।
    • बासमती की देहरादूनी, अमृतसर और तरावरी कुछ ऐसी किस्में हैं जो सैकड़ों वर्षों से प्रसिद्ध हैं।

जीआई टैग

  • भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है।  
  • इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है।
  • इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है।  
  • जीआई टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन (Paris Convention for the Protection of Industrial Property) के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) पर समझौते के तहत किया जाता है। 
  • वहीं राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 (Geographical Indications of goods ‘Registration and Protection’ act, 1999) के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ।
  • वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद है। भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये मान्य होता है।
  • महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर की ब्लू पॉटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू तथा मध्य प्रदेश के झाबुआ का कड़कनाथ मुर्गा सहित कई उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है।  
  • जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी अलग पहचान का सबूत है। कांगड़ा की पेंटिंग, नागपुर का संतरा और कश्मीर का पश्मीना भी जीआई पहचान वाले उत्पाद हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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