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डेली न्यूज़

  • 29 Sep, 2020
  • 35 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया-2020 का अनावरण

प्रिलिम्स के लिये 

रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया-2020 

मेन्स के लिये 

आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य, ऑफसेट नीति में परिवर्तन 

चर्चा में क्यों?

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (Defence Acquisition Process-DAP)–2020 का अनावरण किया है। पहली रक्षा खरीद प्रक्रिया (DPP) वर्ष 2002 में लागू की गई थी, जिसके पश्चात् घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देने और रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये इसे समय-समय पर संशोधित किया जाता रहा है। रक्षा मंत्री ने DAP–2020 तैयार करने के लिये अगस्त, 2019 में महानिदेशक (अधिग्रहण) श्री अपूर्वा चंद्रा की अध्यक्षता में मुख्य समीक्षा समिति के गठन को मंज़ूरी दी थी।

DAP-2020 में सम्मिलित सुधार 

  • DAP-2020 को 1 अक्तूबर, 2020 से लागू किया जाएगा। इसमें कई हितधारकों से मिली टिप्पणियों/सुझावों को सम्मिलित किया गया है।
  • आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य 
    • किसी उपकरण की खरीद आयात से पूर्व अधिसूचित समय सीमा के बाद नहीं की गई है, यह सुनिश्चित करने के लिये आयात पर प्रतिबंध के लिये हथियारों/मंचों की एक सूची को अधिसूचित करना।
    • कलपुर्ज़ों/छोटे उपकरणों के स्तर पर निर्माण और स्वदेशी पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना के लिये संभावित विदेशी विक्रेताओं की इच्छा का पता लगाना।
    • खरीद की नई श्रेणी के माध्यम से भारत में अपनी सहायक कंपनी के माध्यम से उपकरणों/कलपुर्ज़ों का निर्माण, रख-रखाव और मरम्मत सुविधा का निर्माण करना।
    • अंतर-सरकारी समझौतों के माध्यम से सह-उत्पादन सुविधाओं की स्थापना और 'आयात प्रतिस्थापन' के लक्ष्य को हासिल करना।
    • संविदात्मक सक्षमता हासिल करते हुए इसमें स्वदेशी पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से जीवन चक्र समर्थन लागत प्रणाली संवर्द्धन को अनुकूलित करना।
    • रक्षा विनिर्माण में नई FDI नीति की घोषणा के साथ कई उपयुक्त प्रावधानों को शामिल किया गया है ताकि घरेलू उद्योग को आवश्यक संरक्षण प्रदान करते हुए विदेशी OEM (Original Equipment Manufacturer) को भारत में अपनी सहायक कंपनी के माध्यम से 'विनिर्माण/रख-रखाव संस्थाओं'की स्थापना के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
    • समयबद्ध तरीके से रक्षा खरीद प्रक्रिया और तीव्रता से निर्णय लेना। आत्मनिर्भर भारत अभियान में घोषित रक्षा सुधार के एक हिस्से के रूप में अनुबंध प्रबंधन का समर्थन करने के लिये एक परियोजना प्रबंधन इकाई  (Project Management Unit- PMU) की स्थापना अनिवार्य है। PMU अधिग्रहण प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिये निर्दिष्ट क्षेत्रों में सलाहकार और परामर्श सहायता प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करेगा।
    • वैश्विक और घरेलू बाज़ारों में उपलब्ध ‘तुलनात्मक’ उपकरणों के विश्लेषण के आधार पर सत्यापन योग्य मापदंडों की पहचान पर अधिक ज़ोर देना।
    • DAP-2020 पारदर्शिता, निष्पक्षता और सभी को समान अवसरों के सिद्धांत के आधार पर प्रतियोगिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ परीक्षण करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business): ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को निम्नलिखित प्रावधानों के साथ अनुकूल बनाने का प्रयास किया गया है- 
    • प्रक्रियात्मक बदलाव
      • 500 करोड़ रुपए तक के सभी मामलों में AoN (Acceptance of Necessity) के एकल चरण समझौते को स्थापित किया गया है, जिससे समय कम लगेगा।
    • प्रस्ताव के लिये अनुरोध (Request for proposal-RFP) और मानक अनुबंध दस्तावेज़ (Standard Contract Document-SCD): फ्लो-चार्ट संचालित दिशा-निर्देशों, भंडारण संरक्षण के प्रावधान और संविदा के निरस्तीकरण के अनुसार RFD और SCD प्रावधानों को सक्षम करने के कुछ उपायों को शामिल किया गया है।

DAP-2020 की प्रमुख विशेषताएँ 

  • भारतीय विक्रेताओं के लिये श्रेणियों में आरक्षण: नए प्रावधानों के तहत कई तरह की खरीद को विशेष तौर पर भारतीय निर्माताओं के लिये ही आरक्षित किया गया है। यह आरक्षण घरेलू भारतीय उद्योग में भागीदारी को विशिष्टता प्रदान करेगा।
  • स्वदेशी सामग्री का संवर्द्धन: स्वदेशी सामग्री (Indigenous Content-IC) में समग्र वृद्धि, स्वदेशी सामग्री के सत्यापन की एक सरल और व्यावहारिक प्रक्रिया, स्वदेशी कच्चे माल का उपयोग, स्वदेशी सॉफ्टवेयर, जैसे- फायर कंट्रोल सिस्टम, रडार, एन्क्रिप्शन, कम्युनिकेशंस आदि को अपनाकर स्वदेशी सामग्री के संवर्द्धन के प्रावधान किये गए हैं।
  • परीक्षण और जांच प्रक्रियाओं का युक्तिकरण: 
    • उपयुक्तता और अन्य शर्तों पर परीक्षण उपकरण के लिये कार्यात्मक प्रभावशीलता की पुष्टि करने वाले उचित प्रमाण पत्र प्राप्त किये जा सकते हैं।
    • परीक्षणों का दायरा प्रमुख ऑपरेशनल मापदंडों के भौतिक मूल्यांकन तक सीमित रहेगा।
    • परीक्षणों के दोहराव से बचाव और छूट समनुरूपता प्रमाण पत्र के आधार पर दी जाएगी।
  • निरीक्षण: निरीक्षण की कोई पुनरावृत्ति विशेष रूप से उपकरणों की स्वीकृति के दौरान नहीं की जाएगी। थर्ड पार्टी निरीक्षण भी किया जाएगा।
  • निर्माण और नवाचार: आईडेक्स (An innovation ecosystem for Defence titled Innovations for Defence Excellence-iDEX), प्रौद्योगिकी विकास कोष और आंतरिक सेवा संगठनों जैसी विभिन्न पहलों के तहत 'नवाचार' के माध्यम से विकसित प्रोटोटाइप (Prototype)  की खरीद की सुविधा दी गई है।
  • डिजाइन और विकास: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (Defence Research and Development Organisation-DRDO)/DPSU (Defence Public Sector Undertakings)/OFB (Ordnance Factory Board) द्वारा डिजाइन और विकसित प्रणालियों के अधिग्रहण के लिये DAP-2020 में अलग से एक समर्पित अध्याय शामिल किया गया है। प्रमाणीकरण और सिमुलेशन के माध्यम से मूल्यांकन पर अधिक ज़ोर देने और समय में कमी लाने के लिये एकीकृत एकल चरण परीक्षणों के साथ एक सरल प्रक्रिया अपनाई जाएगी। 
  • उद्योग के अनुकूल वाणिज्यिक शर्तें: 
    • विक्रेताओं द्वारा प्रारंभिक मूल्यों को बढ़ाने से रोकने और परियोजना की वास्तविक कीमत पर बड़े अनुबंधों के लिये मूल्य बदलाव खंड शामिल किया गया है।
    • विक्रेताओं को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिये तय समयसीमा के अंदर डिजिटल सत्यापन के प्रावधानों को शामिल किया गया है।

ऑफसेट के प्रावधान में परिवर्तन 

  • ऑफसेट दिशा-निर्देशों को संशोधित किया गया है, जिसमें घटकों की बजाय पूर्ण रक्षा उत्पादों के निर्माण को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • भारत की ऑफसेट नीति के अनुसार, विदेशी कंपनियों को अनुबंध का 30 प्रतिशत हिस्सा भारत में अनुसंधान या उपकरणों पर खर्च करना होता है। पुरानी ​रक्षा खरीद प्रक्रिया में रक्षा मंत्रालय ने यह ऑफसेट नीति विदेशी कंपनियों से 300 करोड़ रुपए  से अधिक के रक्षा सौदों के लिये बनाई थी, जिसे DAP-2020 में बदल दिया गया है।
  • कैग ने संसद में डिफेंस ऑफसेट पॉलिसी (Defence Offset Policy) पर संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। रिपोर्ट के अनुसार, डसॉल्ट एविएशन से 59 हजार करोड़ रुपए में 36 राफेल विमानों की डील करते समय ऑफसेट समझौते में DRDO को कावेरी इंजन की तकनीक देकर 30 प्रतिशत ऑफसेट पूरा करने की बात तय हुई थी, लेकिन अभी तक यह वादा पूरा नहीं किया गया है।
  • ​वर्ष 2005 से वर्ष 2018 तक विदेशी कंपनियों से 66 हज़ार करोड़ रुपए  के कुल 46 ऑफसैट हस्ताक्षरित हुए। इनमें से 90 प्रतिशत मामलों में कंपनियों ने ऑफ​सेट के बदले में सिर्फ सामान खरीदा है, किसी भी केस में तकनीक हस्तांतरित नहीं हुई है। इस विफलता को देखते हुए सरकार ने ऑफसेट नीति में परिवर्तन किया है।

आगे की राह 

एक वर्ष से भी अधिक समय में तैयार की गई DAP-2020 भारत सरकार के आत्म-निर्भर भारत के विज़न और मेक इन इंडिया के अनुकूल प्रक्रिया है। DAP-2020 दस्तावेज़ एक विश्वास पैदा करता है और यह रक्षा क्षेत्र से जुड़े सभी हितधारकों की आकांक्षाओं को पूरा करेगा।

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

नमामि गंगे मिशन के अंतर्गत उत्तराखंड में छह मेगा परियोजनाएँ

प्रिलिम्स के लिये 

हाइब्रिड एन्युटी मॉडल 

मेन्स के लिये 

नमामि गंगे कार्यक्रम 

चर्चा में क्यों? 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आज सुबह 11 बजे ‘नमामि गंगे मिशन’ के अंतर्गत उत्तराखंड में छह मेगा परियोजनाओं का वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उद्घाटन किया गया।

परियोजनाओं के बारे में

  • हरिद्वार के जगजीतपुर में 68 मिलियन लीटर प्रतिदिन (Millions of Liters Per Day-MLD) की क्षमता वाले ‘अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र’ (Sewage Treatment plant-STP) का निर्माण और 27 MLD की क्षमता वाले एक अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र का उन्नयन किया गया है। 
  • हरिद्वार के ही सराय में 12.99 करोड़ की लागत से निर्मित 18 MLD की क्षमता के  अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र का उद्घाटन किया गया है।   

  •  चोरपानी में 5 MLD की क्षमता वाले एक  अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र का निर्माण किया गया है।    
  • प्रधानमंत्री द्वारा बद्रीनाथ में 1 MLD तथा 0.01 MLD की क्षमता वाले दो अपशिष्ट जल-शोधन संयंत्रों का भी उद्धाटन किया गया है।
  • ऋषिकेश के लक्कड़घाट में 158 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित 26 MLD की क्षमता वाले  अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र का निर्माण किया गया है ।
  • चंद्रेश्वर नगर में मुनि की रेती कस्बे में 7.5 MLD की क्षमता वाले अपशिष्ट जल-शोधन संयत्र का निर्माण किया गया है, जो देश में पहला 4 मंजिला अपशिष्ट जल-शोधन संयंत्र है। यहाँ भूमि की सीमित उपलब्धता को एक अवसर के रूप में परिवर्तित किया गया है । अपशिष्ट जल-शोधन संयंत्र का निर्माण 900 वर्ग मीटर से कम क्षेत्र में किया गया है जो इतनी क्षमता वाले अपशिष्ट जल शोधन संयंत्र के निर्माण के लिये सामान्य रूप से आवश्यक क्षेत्र का केवल 30 प्रतिशत है।

नमामि गंगे परियोजना

  • गंगा नदी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व होने के साथ-साथ देश की लगभग 40% जनसंख्या गंगा नदी पर आर्थिक रूप से निर्भर है। वर्ष 2014 में न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने कहा था कि ‘गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है’।
  • इसी दृष्टिकोण के साथ सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण निवारण और नदी को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से जून, 2014 में ‘नमामि गंगे’ नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिये बजट को चार गुना करते हुए वर्ष 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की केंद्र की प्रस्तावित कार्य योजना को मंज़ूरी दे दी। 
  • गंगा नदी संरक्षण की बहु-क्षेत्रीय और बहु-आयामी चुनौतियों को देखते हुए इसमें कई हितधारकों की भूमिकाओं में वृद्धि, विभिन्न मंत्रालयों एवं केंद्र-राज्यों  के मध्य बेहतर समन्वय और कार्य योजना की तैयारी में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए केंद्र एवं राज्य स्तर पर निगरानी तंत्र को बेहतर करने के प्रयास किये गए हैं।
  • प्रारंभिक स्तर की गतिविधियों के अंतर्गत नदी की ऊपरी सतह की सफाई से लेकर बहते हुए ठोस कचरे की समस्या को हल करना; ग्रामीण क्षेत्रों की नालियों में प्रवाहित अपशिष्ट  (ठोस एवं तरल) की समस्या को हल करना; शौचालयों के निर्माण करवाना; शवदाह गृह का आधुनिकीकरण करके आंशिक रूप से जले हुए शव को नदी में बहाने से रोकना; घाटों का निर्माण, मरम्मत और आधुनिकीकरण करना आदि सम्मिलित हैं।
  • मध्यम अवधि की गतिविधियों के अंतर्गत नदी में नगर निगम और उद्योगों से आने वाले अपशिष्ट की समस्या को हल करने पर ध्यान दिया जाएगा। नगर निगम से आने वाले कचरे की समस्या को हल करने के लिये आगामी 5 वर्षों में 2500 ML अपशिष्ट जल-शोधन की अतिरिक्त क्षमता सृजित किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
  • दीर्घावधि में इस कार्यक्रम को बेहतर और संपोषणीय (Sustainable) बनाने के लिये प्रमुख वित्तीय सुधार किये जा रहे हैं। परियोजना के कार्यान्वयन के लिये वर्तमान में हाइब्रिड एन्युटी मॉडल पर आधारित सार्वजानिक-निजी सहभागिता पर विचार किया जा रहा है। 
  • औद्योगिक प्रदूषण की समस्या के समाधान हेतु बेहतर अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये गंगा नदी के किनारे स्थित ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को गंदे पानी की मात्रा कम करने या इसे पूर्ण तरीके से समाप्त करने के निर्देश दिये गए हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board-CPCB) द्वारा इन निर्देशों के कार्यान्वयन के लिये कार्य-योजना तैयार की गई है। सभी उद्योगों को गंदे पानी के बहाव के लिये रियल टाइम ऑनलाइन निगरानी केंद्र स्थापित करना होगा।
  • नमामि गंगे कार्यक्रम में इन गतिविधियों के अलावा जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण और पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिये भी कदम उठाए जा रहे हैं। पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण प्रजातियों, जैसे – गोल्डन महासीर, डॉल्फिन, घड़ियाल, कछुए, ऊदबिलाव आदि के संरक्षण के लिये कार्यक्रम पहले से ही प्रारंभ किये जा चुके हैं।
  • लंबी अवधि की गतिविधियों के अंतर्गत बेहतर जल उपयोग क्षमता और सतही सिंचाई की क्षमता को बेहतर करके नदी में जल का पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

हाइब्रिड एन्युटी मॉडल

(Hybrid Annuity Model-HAM)

  • HAM मॉडल EPC (Engineering, Procurement and Construction) एवं BOT (Build-Operate-Transfer) का एक मिश्रित रूप है। यह जोखिम का विवेकपूर्ण बंटवारा करने, वित्तपोषण संबंधी समस्याओं को हल करने एवं निजी क्षेत्र की क्षमता के पूर्ण उपयोग करने हेतु एक लचीला एवं उचित उपाय है।
  • HAM एक नए प्रकार का सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private partnership- PPP) मॉडल है।
  • इसके अंतर्गत सरकार कार्य आरंभ करने के लिये  डेवलपर (किसी भूखंड पर निर्माण कार्य में संलग्न व्यक्ति या संघ) को परियोजना लागत का 40 प्रतिशत उपलब्ध कराती है। शेष निवेश निजी डेवलपर को करना होता है। 

आगे की राह 

  • गंगा नदी के प्रदूषण निवारण और नदी को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य इसके सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक महत्त्व के लिये इसका दोहन करने के कारण अत्यंत जटिल कार्य है। इस तरह के जटिल कार्यक्रम को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने के लिये समुदाय की भागीदारी आवश्यक है।
  • गंगा के पुनर्जीवन के लिये भारी मात्रा में निवेश की आवश्यकता है। सरकार द्वारा पहले ही बजट को चार गुना करने के पश्चात् भी आवश्यकताओं के हिसाब से यह पर्याप्त नहीं होगा।
  • सरकार नालियों से संबंधित आधारभूत संरचना का निर्माण कर रही है, लेकिन नागरिक कचरे और पानी के उपयोग को कम कर सकते हैं। उपयोग किये गए पानी, जैविक कचरे एवं प्लास्टिक के पुनर्चक्रण और इसके पुनः उपयोग से इस कार्यक्रम को बहुत लाभ हो सकता है।   

स्रोत: पीआईबी


शासन व्यवस्था

महाराष्ट्र में खुली सिगरेट पर प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये 

सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2003

मेन्स के लिये 

तंबाकू उपभोग के नियंत्रण की आवश्यकता, महाराष्ट्र सरकार के कदम के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र सरकार ने तंबाकू की खपत को कम करने और सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, (COTPA) 2003 के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये खुली सिगरेट और बीड़ी की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि इससे पूर्व छत्तीसगढ़ ने इस वर्ष की शुरुआत में सिगरेट की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि कर्नाटक ने वर्ष 2017 में ही सिगरेट, बीड़ी और तंबाकू के अन्य प्रकारों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था।
  • टोबैको फ्री यूनियन (Tobacco Free Union) के आँकड़ों के अनुसार, भारत में तंबाकू से होने वाली बीमारियों के कारण प्रत्येक वर्ष 1 मिलियन से भी अधिक लोगों की मृत्यु होती है।

इस कदम के निहितार्थ

  • इस कदम के माध्यम से सरकार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उपयोगकर्त्ता सिगरेट की पैकेजिंग पर मौजूद अनिवार्य चेतावनी का ध्यान रखें।
  • सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, (COTPA) 2003 के तहत तंबाकू उत्पादों की पैकेजिंग पर ग्राफिक के माध्यम से स्वास्थ्य चेतावनी देनी अनिवार्य है और इसके बाद ही वह उत्पाद बेचा जा सकता है, वहीं खुली हुई सिगरेट के मामले में इस अधिकांशतः इस नियम का पालन नहीं किया जाता है।
    • अधिनियम की धारा 7 में उल्लेख किया गया है कि कोई भी व्यक्ति तब तक सिगरेट या किसी भी अन्य तंबाकू उत्पादों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादन, आपूर्ति या वितरण नहीं करेगा जब तक कि सिगरेट या उसके द्वारा उत्पादित किसी अन्य तंबाकू उत्पाद के या उसके लेबल पर स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी नहीं दी जाती है, इस विशिष्ट चेतावनी में चित्रात्मक चेतावनी भी शामिल हो सकती है। 
  • अधिनियम में यह भी उल्लेख किया गया है कि स्वास्थ्य संबंधी विशिष्ट चेतावनी को उस पैकेट के सबसे बड़े हिस्से में प्रदर्शित किया जाना चाहिये, जिसमें सिगरेट या किसी अन्य तंबाकू उत्पादों को वितरण, बिक्री और आपूर्ति के लिये पैक किया गया है।
  • इसके अलावा भारत, डब्ल्यूएचओ फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (WHO Framework Convention on Tobacco Control) का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है, जिसके प्रावधानों में तंबाकू उत्पादों की पैकेजिंग और लेबलिंग को विनियमित करना और उत्पाद प्रकटीकरण शामिल हैं।
    • भारत ने वर्ष 2004 में डब्ल्यूएचओ फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (WHO Framework Convention on Tobacco Control) की पुष्टि की थी।

इस कदम की प्रभावशीलता

  • महाराष्ट्र सरकार के इस प्रतिबंध की सफलता इसके व्यापक कार्यान्वयन पर निर्भर करती है, और इन प्रतिबंधों की प्रभावशीलता इसके कार्यान्वयन के पश्चात् ही देखने को मिलेगी।
  • वर्ष 2017 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, तंबाकू उत्पादों पर कर बढ़ाना तंबाकू की खपत को नियंत्रित करने के प्रमुख तरीकों में से एक है।
    • हालाँकि जब तंबाकू उत्पाद पर कर लगाकर उसे महँगा किया जाएगा, तो वैश्विक स्तर पर तंबाकू की खपत में कमी आ सकती है, लेकिन दूसरी ओर इसका परिणाम यही होगा कि इससे खुली सिगरेट और बीड़ी की बिक्री में हो सकती है।
  • वर्ष 2017 में प्रकाशित अध्ययन में ही सामने आया था कि भारत में सिगरेट का सेवन करने वाले 57 प्रतिशत लोगों (लगभग 3.46 मिलियन) खुली सिगरेट ही खरीदते हैं।
  • इस अध्ययन के अनुसार, खुली सिगरेट खरीदने वाले लोगों की संख्या में शिक्षा के बढ़ते स्तर के साथ कमी देखने को मिलती है और सरकारी कर्मचारियों के बीच इस प्रकार की प्रवृति सबसे कम देखने को मिली।

भारत में तंबाकू सेवान की स्थिति 

  • ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (GATS) 2016-2017 के अनुसार, भारत में वयस्कों का तकरीबन 10.7 प्रतिशत (99.5 मिलियन) हिस्सा धूम्रपान का सेवन करता है और सभी वयस्कों (286.8 मिलियन) का 28.6 प्रतिशत तंबाकू का उपयोग करते हैं।
  • सर्वेक्षण के अनुसार, धूम्रपान करने वालों में से लगभग 4.4 प्रतिशत सिगरेट का प्रयोग करते हैं, जबकि 7.7 प्रतिशत लोग बीड़ी का सेवन करते हैं।
  • अनुमान के अनुसार, भारत में दैनिक सिगरेट का प्रयोग करने वाले व्यक्ति का औसत मासिक खर्च लगभग 1,100 रूपए आता है और दैनिक बीड़ी धूम्रपान करने वाले व्यक्ति का औसत मासिक खर्च लगभग 284 रूपए आता है। 
    • इस सर्वेक्षण के अनुसार, महाराष्ट्र में तंबाकू धूम्रपान का सबसे कम प्रचलन है।
  • इसके अलावा वर्तमान में देश में धूम्रपान करने वालों में से 91 प्रतिशत का मानना ​​है कि धूम्रपान गंभीर बीमारी का कारण बनता है।
  • सर्वेक्षण के अनुसार, सिगरेट का प्रयोग करने वालों में तकरीबन 68 प्रतिशत और बीड़ी का प्रयोग करने वाले लोगों में 17 प्रतिशत लोग खुली सिगरेट और बीड़ी की खरीद करते हैं।

तंबाकू नियंत्रण क्यों आवश्यक?

  • गौरतलब है कि भारत तंबाकू आधारित उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और उत्पादक है। तंबाकू का सेवन, बहुत सारे रोगों जैसे- कैंसर, फेफड़ों की बीमारियों और हृदय रोगों सहित स्वास्थ्यगत बीमारियों के मुख्य कारकों में से एक है।
  • स्वास्थ्य संबंधी बिमारियों के अलावा तंबाकू सेवन के कारण चिकित्सा खर्च में वृद्धि होती है और आम लोगों की घरेलू आय में कमी आती है, जिससे गरीबी भी बढ़ती है।

आगे की राह

  • कई देशों द्वारा तंबाकू नियंत्रण को गरीबी समाप्त करने वाली नीतियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, भारत को भी इस दिशा में आगे कदम बढ़ाना चाहिये।
  • गाँवों में रहने वाले अधिकांश गरीबों के पास टेलीविज़न की सुविधा उपलब्ध नहीं है। अतः उन्हें धूम्रपान के खिलाफ चेतावनी देने वाले अभियानों से ज़रूरी लाभ नहीं मिल पाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में लोकप्रिय हो रहा ईएसजी फंड्स

प्रिलिम्स के लिये 

ईएसजी फंड, यूनाइटेड नेशंस प्रिंसिपल फॉर रिस्पॉन्सिबल इन्वेस्टमेंट 

मेन्स के लिये 

भारत में ईएसजी फंड्स का बढ़ता दायरा

चर्चा में क्यों?

भारत के म्यूचुअल फंड उद्योग में ‘ईएसजी फंड’ (ESG Funds) तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे हैं। हाल ही में ‘आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल म्यूचुअल फंड’ (ICICI Prudential Mutual Fund) ने अपने ईएसजी फंड की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु:

  • पहला ईएसजी म्यूचुअल फंड ‘भारतीय स्टेट बैंक’ द्वारा लॉन्च किया गया था। जिसे ‘एसबीआई मैग्नम इक्विटी ईएसजी फंड’ (SBI Magnum Equity ESG Fund) के नाम से जाना जाता है।

ईएसजी फंड (ESG Funds):

  • ईएसजी (ESG) तीन शब्दों अर्थात् पर्यावरण (Environment), सामाजिक (Social) और शासन (Governance) का संयोजन है।
  • यह एक तरह का म्यूचुअल फंड है। इसमें निवेश स्थायी रूप से सतत् निवेश (Sustainable Investing) या सामाजिक रूप से उत्तरदायी निवेश (Socially Responsible Investing) के साथ किया जाता है।
  • आमतौर पर म्युचुअल फंड किसी कंपनी के अच्छे स्टॉक को दर्शाता है जिसमें कमाई, प्रबंधन गुणवत्ता, नकदी प्रवाह, व्यवसाय संचालन, प्रतिस्पर्द्धा आदि की क्षमता होती है।
  • हालाँकि निवेश के लिये एक स्टॉक का चयन करते समय सबसे पहले ‘ESG फंड शॉर्टलिस्ट कंपनियों’ के पर्यावरण, सामाजिक ज़िम्मेदारी एवं कॉर्पोरेट प्रशासन पर उच्च स्कोर को देखा जाता है, इसके बाद वित्तीय कारकों पर गौर किया जाता है।
    • इसलिये ‘ईएसजी फंड’ एवं अन्य फंडों के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर 'निवेशक के विवेक' पर आधारित होता है अर्थात् ईएसजी फंड पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं, नैतिक व्यापार प्रथाओं एवं एक कर्मचारी-अनुकूल रिकॉर्ड वाली कंपनियों पर केंद्रित होता है।
  • इस फंड को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा विनियमित किया जाता है।

लोकप्रियता का कारण:

  • आधुनिक निवेशक पारंपरिक दृष्टिकोणों का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं और पारंपरिक निवेश से पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभावों का भी मूल्यांकन कर रहे हैं। इस प्रकार निवेशकों ने अपनी निवेश प्रथाओं में ईएसजी कारकों को शामिल करना शुरू कर दिया है।
  • यूनाइटेड नेशंस प्रिंसिपल फॉर रिस्पॉन्सिबल इन्वेस्टमेंट’ (United Nations Principles for Responsible Investment- UN-PRI) नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन निवेश निर्णय लेने में पर्यावरणीय, सामाजिक एवं कॉर्पोरेट प्रशासन कारकों के समावेश को बढ़ावा देने के लिये कार्य करता है।

प्रभाव: 

  • जैसे-जैसे भारत में ‘ईएसजी फंड्स’ को गति मिलेगी वैसे-वैसे कंपनियों को बेहतर प्रशासन, नैतिक प्रथाओं, पर्यावरण के अनुकूल उपायों एवं सामाजिक ज़िम्मेदारी का पालन करने के लिये भी मज़बूर होना पड़ेगा।
  • जो कंपनियाँ ‘सतत् व्यवसाय मॉडल’ का पालन नहीं करती हैं उन्हें इक्विटी एवं ऋण दोनों जुटाने में मुश्किल होगी।
  • वैश्विक स्तर पर पेंशन फंड, सॉवरेन वेल्थ फंड आदि में निवेश करने वाले निवेशक उन कंपनियों में निवेश नहीं करते हैं जिन्हें प्रदूषणकारी के रूप में देखा जाता है और जो सामाजिक ज़िम्मेदारी का पालन नहीं करती हैं जैसे- तंबाकू कंपनियाँ।
    • प्रति वर्ष वैश्विक तंबाकू उद्योग को 35 बिलियन अमेरिकी डालर का लाभ होता है। हालाँकि तंबाकू की वजह से प्रतिवर्ष लगभग 6 मिलियन लोगों की मृत्यु हो जाती है। अतः निवेशक ऐसी वास्तविकताओं के प्रति संवेदनशील हो रहे हैं।

आगे की राह:

  • ईएसजी अनुपालक कंपनियों (ESG Compliant Companies) का एक महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि ये तब और अधिक सुरक्षित हो जाएंगी जब नियामक और भी कठोर नियमों को लागू करेंगे।
  • ईएसजी अनुपालक कंपनियों के लिये महत्त्वपूर्ण बाज़ार हिस्सेदारी हासिल करने की ज़रूरत उनके गैर-अनुपालन प्रतियोगियों की तुलना में अधिक होगी। 
  • ESG अनुपालन होने के कारण कंपनी की विश्वसनीयता एवं प्रतिष्ठा कई गुना बढ़ जाती है और निवेशकों को उनकी स्थिरता के कारण आकर्षित करना सुनिश्चित हो जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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