मानसून और जल शक्ति अभियान
प्रीलिम्स के लिये:जल जीवन मिशन, जल शक्ति अभियान मेन्स के लिये:जल जीवन मिशन का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
‘जल शक्ति अभियान’ (Jal Shakti Abhiyan) की तैयारियों की दिशा में विभिन्न विभागों यथा- ‘ग्रामीण विकास विभाग’, ‘भूमि संसाधन विभाग’ आदि द्वारा मानसून के मद्देनज़र सभी राज्यों/ केंद्रशासित क्षेत्रों के मुख्य सचिवों को संयुक्त परामर्श जारी किया है।
मुख्य बिंदु:
- COVID-19 महामारी के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में श्रम बल की व्यापक उपलब्धता को देखते हुए आगामी मानसून के मद्देनज़र जल शक्ति अभियान के तहत तैयारियाँ शुरू कर दी गई हैं।
- अभियान के तहत जारी एडवाइज़री में राज्यों को जल संरक्षण व पुनर्रभरण की दिशा में की जाने वाली तैयारियों को प्रारंभ करने को कहा है।
जल शक्ति अभियान:
- जल शक्ति अभियान को 1 जुलाई, 2019 को प्रारंभ किया गया था।
- इसके अभियान के तहत जल संकट से जूझ रहे देश के 256 ज़िलों को शामिल किया गया था।
- इस अभियान को दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान वर्षा प्राप्त करने वाले राज्यों में 1 जुलाई से 15 सितंबर तक जबकि उत्तर-पूर्व मानसून से वर्षा प्राप्त करने वाले राज्यों में 1 अक्तूबर से 30 नवंबर तक संचालित किया जाता है।
- जल शक्ति अभियान का उद्देश्य ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना’ और ग्रामीण विकास मंत्रालय के ‘एकीकृत जलसंभरण प्रबंधन कार्यक्रम’ के साथ-साथ जल शक्ति और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही मौजूदा जल पुनर्भरण और वनीकरण योजनाओं के तहत जल संचयन, संरक्षण और पुनर्भरण गतिविधियों में तेज़ी लाना है।
- यह अभियान के तहत सभी हितधारकों को जल संरक्षण अभियान के दायरे में लाने के लिये व्यापक जनांदोलन है।
अभियान की प्रगति:
- केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, सामाजिक संगठनों, पंचायती राज संस्थानों और समुदायों सहित लगभग 6.5 करोड़ लोग अब तक इस अभियान से जुड़ चुके हैं।
- 75 लाख पारंपरिक एवं अन्य जल स्रोत तथा तालाबों का जीर्णोद्धार किया गया है।
- लगभग एक करोड़ जल संरक्षण एवं वर्षा जल संचयन के निर्माण कार्य किये गए हैं।
जल शक्ति अभियान 2020 में बदलाव:
- COVID- 19 महामारी के कारण केंद्र सरकार के अधिकारियों को गर्मियों में इस अभियान में नहीं लगाया जाएगा। इस क्रम में सुनिश्चित किया जाएगा कि मानसून के दौरान वर्षा जल के संरक्षण के लिये सभी उपलब्ध संसाधनों का उपयोग किया जा सके।
- लॉकडाउन को देखते हुए प्राथमिकता के आधार पर मनरेगा कार्यों, पेयजल तथा स्वच्छता कार्यों को प्राथमिकता दी जाएगी तथा मनरेगा कार्यों के साथ सिंचाई और जल संरक्षण कार्यों के साथ सामंजस्य पर बल दिया जाएगा।
- यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी कार्यों को सामाजिक दूरी के नियमों का पालन, फेस कवर/मास्क के उपयोग और अन्य आवश्यक सावधानियों के साथ कराया जाए।
- छोटी नदियों के जीर्णोद्धार के लिये सामुदायिक नदी बेसिन प्रबंधन प्रक्रियाओं की भी शुरुआत की जा सकती है।
निष्कर्ष:
- जल शक्ति अभियान के तहत चलाई जाने वाली गतिविधियों से ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्रोतों का स्थायित्त्व सुनिश्चित होगा और जल शक्ति मंत्रालय द्वारा लागू किये जा रहे जल जीवन मिशन को मज़बूती मिलेगी।
‘जल जीवन मिशन’:
- इस मिशन के तहत वर्ष 2024 तक पूरे देश में पेयजल हेतु नल का जल उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।
स्रोत: पीआईबी
कॉमन सर्विस सेंटर को आधार अपडेशन की अनुमति
प्रीलिम्स के लियेआधार, UIDAI, CSCs मेन्स के लियेआधार की निजता से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (The Unique Identification Authority of India-UIDAI) ने कॉमन सर्विस सेंटरों (Common Service Centres-CSCs) को आधार अपडेशन की सुविधा प्रदान करने की अनुमति दे दी है।
प्रमुख बिंदु
- इस संबंध में घोषणा करते हुए इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा कि ‘देश भर में मौजूद लगभग 20000 कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) आम नागरिकों को आधार अपडेशन की सुविधा प्रदान कर सकेंगे।
- इस संबंध में जारी अनुमति पत्र के अनुसार, कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) केवल जनसांख्यिकीय अपडेट (Demographic Update) सुविधा ही प्रदान करेंगे, जिसमें नाम, पता एवं जन्म तिथि जैसे विवरण शामिल हैं।
- ध्यातव्य है कि UIDAI ने CSCs द्वारा बैंकिंग सुविधाओं के साथ अपने आवश्यक बुनियादी ढाँचे को अपग्रेड करने और अन्य आवश्यक अनुमोदन प्राप्त करने के बाद काम शुरू करने हेतु एक जून, 2020 की समय सीमा निर्धारित की है।
- इससे पूर्व भी CSCs को आधार नामांकन की प्रक्रिया के लिये अनुमति दी गई थी, किंतु गोपनीयता और डेटा सुरक्षा संबंधी मुद्दों के मद्देनज़र इस सुविधा को समाप्त कर दिया गया था।
- आँकड़ों के अनुसार, सुविधा समाप्त होने से पूर्व CSCs ने कुल 20 करोड़ आधार कार्ड बनाए थे।
- CSCs के अतिरिक्त बैंक शाखाओं, डाकघरों और सरकारी परिसरों में स्थित UIDAI अधिकृत केंद्रों पर आधार से संबंधित सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं।
महत्त्व
- भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण द्वारा की गई इस घोषणा के माध्यम से बड़ी संख्या में ग्रामीण नागरिकों को अपने निवास स्थान के पास ही आधार अपडेट करवाने से संबंधित सेवा प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- CSCs के माध्यम से आधार अपडेट सेवाओं की शुरुआत COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु लागू किये गए लॉकडाउन प्रतिबंधों के दौरान आम लोगों के लिये एक बड़ी राहत के रूप में भी सामने आई है।
- UIDAI का यह निर्णय ‘डिजिटल इंडिया‘ के लक्ष्यों को अर्जित करने के प्रयासों को और भी अधिक सुदृढ़ बनाएगा।
‘आधार’- एक विशिष्ट पहचान
- आधार भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) द्वारा भारत सरकार की ओर से जारी की जाने वाली एक व्यक्तिगत पहचान संख्या (Individual Identification Number) होती है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्ट पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से जारी किया जाता है।
- आज जिस स्वरूप में हम इसे देखते हैं उसमें सरकार द्वारा प्रदान किये जाने वाले अधिकांश लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिये आधार संख्या का होना अनिवार्य कर दिया गया है।
- इसमें उस व्यक्ति का नाम, पता, आयु, जन्म तिथि, उसके फिंगर-प्रिंट तथा आँखों की स्कैनिंग शामिल होती है।
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण
(The Unique Identification Authority of India-UIDAI)
- भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) एक सांविधिक प्राधिकरण है, जिसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा आधार अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के अंतर्गत, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत की गई थी।
- एक सांविधिक प्राधिकरण के रूप में अपनी स्थापना से पूर्व UIDAI तत्कालीन योजना आयोग (अब नीति आयोग) के तहत एक संबद्ध कार्यालय के रूप में कार्य कर रहा था।
- UIDAI की स्थापना भारत के सभी निवासियों को “आधार” प्रदान करने हेतु की गई थी।
कॉमन सर्विस सेंटर और उनका महत्त्व
- कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) कार्यक्रम केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) की एक पहल है, यह गाँवों में विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक सेवाओं का वितरण सुनिश्चित करने वाले केंद्र अथवा एक्सेस पॉइंट (Access Point) के रूप में काम करता है, इस प्रकार यह डिजिटल और वित्तीय रूप से समावेशी समाज में योगदान करता है।
- कॉमन सर्विस सेंटर की प्रमुख विशेषता यह है कि ये ग्रामीण क्षेत्रों में वेब सक्षम ई-गवर्नेंस सेवाएँ प्रदान करते हैं, जिनमें आवेदन-पत्र; प्रमाण-पत्र; बिजली, टेलीफोन और पानी के बिल, जैसी अन्य उपयोगी भुगतान सेवाएँ भी शामिल हैं।
स्रोत: द हिंदू
COVID-19 हेतु ADB से 1.5 बिलियन डॉलर के ऋण की मंज़ूरी
प्रीलिम्स के लिये:एशियन डेवलपमेंट बैंक, ‘COVID-19 सक्रिय प्रतिक्रिया और व्यय समर्थन’ कार्यक्रम मेन्स लिये:COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के प्रयास, एशिया-प्रशांत क्षेत्र के विकास में ADB का योगदान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘एशियन डेवलपमेंट बैंक’ (Asian Development Bank- ADB) नें COVID-19 की महामारी से निपटने हेतु भारत को 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण देने के लिये अपनी मंज़ूरी दे दी है।
मुख्य बिंदु:
- ADB ने यह ऋण COVID-19 से उत्पन्न हुई चुनौतियों जैसे- इस बीमारी के संक्रमण को नियंत्रित करने और इसकी रोकथाम तथा गरीब एवं आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के प्रयासों में सहयोग देने के लिये दिया है।
- ADB के अनुसार, बैंक अपने ‘COVID-19 सक्रिय प्रतिक्रिया और व्यय समर्थन’ (COVID-19 Active Response and Expenditure Support- CARES) कार्यक्रम के माध्यम से 800 मिलियन से अधिक लोगों के लिये स्वास्थ्य सुविधा और देखभाल तथा सामाजिक सुरक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध कराने में सहयोग करेगा।
- इनमें गरीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवारों, किसानों, स्वास्थ्य कर्मियों, महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगजनों, कम आय वाले लोगों आदि को शामिल किया गया है।
- ADB से प्राप्त इस पैकेज का लगभग 65% भाग गरीबों और महिलाओं सहित अन्य सुभेद्य लोगों को सामाजिक सहायता और सुरक्षा प्रदान करने के रूप में होगा।
- इस ऋण के लिये हुए समझौते के अनुसार, इसके तहत COVID-19 महामारी से निपटने में लगे सभी प्रकार के स्वास्थ्य कर्मियों के लिये इंश्योरेंस कवरेज को शामिल किया गया है।
‘COVID-19 सक्रिय प्रतिक्रिया और व्यय समर्थन’
(COVID-19 Active Response and Expenditure Support- CARES):
- ‘COVID-19 सक्रिय प्रतिक्रिया और व्यय समर्थन’ (CARES) कार्यक्रम ADB की ‘काउंटर साइक्लिक सपोर्ट फैसिलिटी’ (Countercyclical Support Facility) के तहत संचालित Covid-19 ‘पैंडेमिक रिस्पांस ऑप्शन’ (Pandemic Response Option-CPRO) द्वारा वित्तपोषित है।
- CPRO की स्थापना विकासशील सदस्य देशों को COVID-19 से निपटने हेतु 13 अप्रैल, 2020 को ADB द्वारा घोषित $ 20 बिलियन की विस्तारित सहायता के हिस्से के रूप में की गई थी।
- ADB के अनुसार, CARES कार्यक्रम के तहत सरकार को गरीबों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने और स्वास्थ्य क्षेत्र तथा सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के परिचालन ढाँचे को मज़बूत करने एवं इनकी निगरानी करने हेतु 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर का तकनीकी सहायता अनुदान प्रदान किया जाएगा।
अन्य सहयोग:
- ADB अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने, सरकार की योजनाओं की निगरानी और मूल्यांकन करने तथा भविष्य में ऐसे आर्थिक संकट की स्थिति से निपटने के लिये आर्थिक लचीलेपन (Economic Resilience) में सुधार करने के लिये सरकार के प्रयासों में सहयोग एवं अन्य हितधारकों के साथ समन्वय स्थापित करने का कार्य करेगा।
- इसके तहत COVID-19 के कारण आर्थिक रूप से प्रभावित उद्यमों को बेहतर आर्थिक पहुँच और ऋण वृद्धि की सुविधाओं आदि के माध्यम से सहायता उपलब्ध करना शामिल है।
- ध्यातव्य है कि अप्रैल 2020 की शुरुआत में ही विश्व बैंक ने विश्व के 25 विकासशील देशों में COVID-19 महामारी से निपटने के लिये 1.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आपातकालीन फंड की मंज़ूरी दी थी।
- साथ ही एशिया का तीसरा सबसे बड़ा देश होने के कारण भारत को COVID-19 की जाँच करने, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों आइसोलेशन वार्ड (Isolation Ward) के निर्माण आदि के लिये इस फंड में से 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता देने की घोषणा की गई थी।
- भारत के अतिरिक्त विश्व बैंक द्वारा इस फंड से पाकिस्तान को 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर, श्रीलंका 129 मिलियन अमेरिकी डॉलर, अफगानिस्तान को 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर और इथियोपिया को 82.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर के सहयोग को मंज़ूरी दी गई थी
लाभ :
- COVID-19 के कारण पिछले कुछ दिनों में भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में भारी गिरावट देखने को मिली है, ऐसे में ADB के आर्थिक सहयोग के माध्यम से अलग-अलग क्षेत्रों (स्वास्थ्य, उद्योग, आदि) को उनकी आवश्यकता के अनुरूप लक्षित सहायता उपलब्ध कराई जा सकेगी।
- ADB के सहयोग के माध्यम से केंद्रीय बैंक पर पड़ने वाले आर्थिक दबाव को कम करने में सहायता मिलेगी।
स्रोत: द हिंदू बिज़नेस लाइन
भ्रष्टाचार नियंत्रण कानून के दायरे में मानद विश्वविद्यालय
प्रीलिम्स के लिये:मानद विश्वविद्यालय, भ्रष्टाचार नियंत्रण अधिनियम मेन्स लिये:भारतीय लोकतंत्र में उच्चतम न्यायलय की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी भी ‘मानद विश्वविद्यालय’ (Deemed University) में रिश्वतखोरी या भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई ‘भ्रष्टाचार नियंत्रण अधिनियम (Prevention of Corruption Act), 1988’ के तहत की जा सकती है।
मुख्य बिंदु:
- उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मानद विश्वविद्यालयों से जुड़े हुए व्यक्ति, अधिकारी आदि ‘लोक सेवक' (Public Servant) की परिभाषा के तहत आते हैं और ऐसे लोगों पर भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत सुनवाई कर सजा दी जा सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, हालाँकि पारंपरिक रूप से मानद विश्वविद्यालयों के अधिकारियों को ‘लोक सेवक’ के रूप में नहीं देखा जाता परंतु वे बड़े पैमाने पर राज्य, जनता और समुदाय के हितों में कार्य करते हैं।
- मानद विश्वविद्यालय ‘भ्रष्टाचार नियंत्रण अधिनियम, 1988’ की धारा-2(c)(xi) के तहत ‘विश्वविद्यालय’ (की परिभाषा/संज्ञा) के दायरे में आते हैं।
- ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम (University Grants Commission Act), 1956’ के तहत एक मानद संस्थान के भी किसी विश्वविद्यालय की तरह ही समान सार्वजनिक कर्त्तव्य हैं। जैसे- सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य शैक्षिक डिग्री देना आदि।
- उच्चतम न्यायालय के अनुसार, ‘भ्रष्टाचार नियंत्रण अधिनियम, 1988’ का उद्देश्य पारंपरिक रूप से ‘लोक सेवक’ के रूप में पहचाने जाने वाले लोगों से ध्यान हटाकर उन लोगों की तरफ ध्यान दिलाना था जो वास्तव में ‘लोक सेवा’ के कार्यों से जुड़े हुए हैं।
मानद विश्वविद्यालय:
- ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956’ की धारा-3 के तहत केंद्र सरकार द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सलाह पर किसी उच्च शिक्षण संस्थान (विश्वविद्यालय को छोड़कर) को मानद विश्वविद्यालय की संज्ञा दी जा सकती है।
- मानद विश्वविद्यालय घोषित किये जाने की स्थिति में ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956’ के तहत ‘विश्वविद्यालय’ पर लगने वाले सभी उपबंध संबंधित संस्थान पर भी लागू होंगे।
लोक सेवक:
- ‘भ्रष्टाचार नियंत्रण अधिनियम, 1988’ की धारा 2(c)(xi) में किसी विश्वविद्यालय का कुलपति, शासकीय समिति का सदस्य, प्राध्यापक, रीडर, प्रवक्ता या कोई अन्य अध्यापक अथवा कर्मचारी आदि को लोक सेवक की परिभाषा के अंतर्गत रखा गया है।
निष्कर्ष:
हाल के कुछ वर्षों में देश में मानद विश्वविद्यालयों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है। यह भी देखा गया है कि कई मामलों में मानद विश्वविद्यालय पारंपरिक विश्वविद्यालयों की जटिल कार्यप्रणाली के विपरीत आसानी से छात्रों और नियोक्ताओं की आवश्यकता के अनुरूप स्वयं को ढालने में अधिक सफल रहे हैं। हालाँकि ऐसे संस्थानों से जुड़े कानूनों की व्याख्या में स्पष्टता न होने के कारण कुछ संस्थानों ने इसका गलत लाभ उठाने का प्रयास भी किया है। ऐसे में उच्चतम न्यायलय के हालिया फैसले के बाद ‘मानद विश्वविद्यालयों’ की कार्यप्रणाली में अधिक पारदर्शिता लाने तथा उनकी बेहतर निगरानी करने में सफलता प्राप्त होगी।
स्रोत: द हिंदू
प्रथम वर्चुअल पीटर्सबर्ग जलवायु संवाद
प्रीलिम्स के लिये:पीटर्सबर्ग जलवायु संवाद, COP- 26, पोस्ट- 2020 जलवायु कार्रवाई, प्री- 2020 जलवायु कार्रवाई मेन्स के लिये:UNFCCC की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने प्रथम ‘वर्चुअल पीटर्सबर्ग जलवायु संवाद’ (Virtual Petersburg Climate Dialogue- VPCD) में 30 देशों के साथ जलवायु परिवर्तन से संबंधित मामलों पर विचार-विमर्श किया।
मुख्य बिंदु:
- VPCD ‘पीटर्सबर्ग जलवायु संवाद’ का ग्यारहवाँ सत्र है।
- प्रथम VPCD में भारत का प्रतिनिधित्व केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने किया है।
पीटर्सबर्ग जलवायु संवाद
(Petersberg Climate Dialogue- PCD):
- पृष्ठभूमि:
- ‘पीटर्सबर्ग जलवायु संवाद’ (Petersberg Climate Dialogue- PCD) को वर्ष 2010 में जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल की पहल पर प्रारंभ किया गया था।
- वर्ष 2009 में कोपेनहेगन जलवायु वार्ता के प्रभावी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचने के बाद से PCD को प्रारंभ किया गया।
- यह प्रथम वर्चुअल जलवायु संवाद, पीटरबर्ग जलवायु संवाद का 11 वाँ सत्र था, जिसकी मेजबानी वर्ष 2010 से जर्मनी द्वारा की जा रही है।
- इस संवाद की प्रमुख विशेषता यह है कि UNFCCC के आगामी सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाला देश PCD की सह-मेजबानी करता है।
- PCD का लक्ष्य एवं उद्देश्य:
- PCD का लक्ष्य मंत्रियों के बीच घनिष्ठ और रचनात्मक संवाद के लिये एक मंच प्रदान करना था।
- PCD जलवायु के संबंध में अंतरराष्ट्रीय विचार विमर्श और जलवायु संबंधी कार्रवाई की उन्नति पर केंद्रित अनौपचारिक उच्च-स्तरीय राजनीतिक चर्चाओं हेतु एक मंच प्रदान करता है।
11वाँ पीटर्सबर्ग जलवायु संवाद:
- 11 वें ‘पीटर्सबर्ग जलवायु संवाद’ की सह-अध्यक्षता जर्मनी और ब्रिटेन द्वारा की गई है।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि ब्रिटेन ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन’ (United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC) के आगामी कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़- 26 (Conference of Parties 26- COP 26) का अध्यक्ष है।
- संवाद में लगभग 30 देशों के मंत्रियों और प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
संवाद का मुख्य एजेंडा:
- वर्चुअल संवाद का मुख्य उद्देश्य इस बात पर चर्चा करना था कि सामूहिक लोचशीलता को संवर्द्धित करने तथा जलवायु परिवर्तन कार्यवाई की दिशा में कैसे कार्य किया जाए।
- असहाय लोगों की सहायता करते हुए COVID-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्थाओं और समाजों में उत्पन्न चुनौतियों का सामूहिक रूप से कैसे सामना किया जाए।
संवाद का महत्त्व:
- यह संवाद इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसका आयोजन ऐसे समय में किया जा रहा है जहाँ एक तरह विश्व COVID-19 महामारी से जूझ रहा है वहीं दूसरी तरफ UNFCCC के तहत अपनाए गए ‘पेरिस समझौते’ पर वर्ष 2020 के बाद (Post-2020 Period) अपनाई जाने वाली रणनीति की तैयारी कर रहा है।
संवाद में भारत द्वारा रखे गए पक्ष:
- पर्यावरण संबंधी प्रौद्योगिकी तक सभी की मुक्त रूप से तथा किफायती कीमत पर उपलब्धता होनी चाहिये।
- विकासशील विश्व को तत्काल प्रभाव से 1 ट्रिलियन डॉलर अनुदान देने की योजना तैयार करनी चाहिये।
- विश्व को सतत् जीवन शैलियों की आवश्यकता के अनुरूप उपभोग की ज्यादा टिकाऊ परिपाटियों को अपनाने पर विचार करना चाहिये।
- नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में तेज़ी लाने और नवीकरणीय ऊर्जा तथा ऊर्जा दक्षता क्षेत्र में पर्यावरण के अनुकूल नए रोज़गारों को सृजित करने पर बल देने की आवश्यकता है।
2020 से पहले के शमन प्रयास (Mitigation efforts prior to pre-2020):
- वर्ष 2012 में क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता अवधि (वर्ष 2013-2020 की अवधि) के लिये क्योटो प्रोटोकॉल में संशोधन किया गया। जिसे दोहा संशोधन के रूप में जाना जाता है। इसमें प्रोटोकॉल के पक्षकार विकसित देशों के लिये क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी प्रतिबद्धता अवधि के तहत परिमाणित उत्सर्जन सीमा या कटौती प्रतिबद्धताओं को शामिल किया गया।
प्री- 2020 जलवायु कार्रवाई (Pre-2020 Climate Action):
- पेरिस जलवायु समझौते को अपनाने के बाद, वर्ष 2016 से 2020 की अवधि के लिये उत्सर्जन को कम करने वाले देशों का समर्थन करने की दिशा में कार्य करना।
पोस्ट- 2020 UNFCCC:
- वर्ष 2020 के बाद की व्यवस्था जो कि ‘दीर्घकालिक जलवायु वित्त व्यवस्था’ का निर्माण करती है।
- इसके लिये निम्नलिखित व्यवस्था की जाएगी:
- द्विवार्षिक संचार
- समर्पित ऑनलाइन पोर्टल
- द्विवार्षिक संचार का संश्लेषण
- द्विवार्षिक इन-सत्र कार्यशालाएँ
- द्विवार्षिक उच्च-स्तरीय मंत्रिस्तरीय संवाद
COP- 26:
- कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP), UNFCCC सम्मेलन का सर्वोच्च निकाय है। इसके तहत विभिन्न प्रतिनिधियों को सम्मेलन में शामिल किया गया है। यह प्रतिवर्ष अपने सत्र आयोजित करता है।
- COP- 26 का आयोजन ग्लासगो (यूनाइटेड किंगडम) में नवंबर, 2020 में किया जाना था लेकिन COVID-19 महामारी के कारण इसे रद्द कर किया गया तथा अब इसका आयोजन वर्ष 2021में किया जाएगा।
स्रोत: पीआईबी
भारत की तेल भंडारण क्षमता
प्रीलिम्स के लिये:सामरिक पेट्रोलियम भंडार मेन्स के लिये:सामरिक पेट्रोलियम भंडार का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में COVID- 19 महामारी के तहत तेल की कीमतों में भारी गिरावट देखी गई जो भारत को भविष्य के लिये तेल भंडार बढ़ाने का अवसर देता है।
मुख्य बिंदु:
- हाल ही में ‘वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट’ (West Texas Intermediate- WTI) क्रूड ऑयल की कीमत नकारात्मक रही जो इस ओर संकेत करता है कि देशों के पास तेल को भंडारित करने के लिये पर्याप्त भंडारन क्षमता की कमी है।
- WTI तेल की कीमतों में 40.32 डॉलर प्रति बैरल तक गिरावट देखी गई।
भारत के लिये तेल की कम कीमत का महत्त्व:
- भारत दुनिया में ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता तथा तेल का तीसरा बड़ा आयातक है (वर्ष 2018), अत: भारत तेल की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से बहुत अधिक प्रभावित होता है।
रणनीतिक/सामरिक पेट्रोलियम भंडार:
- सामरिक पेट्रोलियम भंडार कच्चे तेल से संबंधित किसी भी संकट जैसे प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध या अन्य आपदाओं के दौरान आपूर्ति में व्यवधान से निपटने के लिये कच्चे तेल के विशाल भंडार होते हैं।
भारत के सामरिक पेट्रोलियम भंडार:
- भारत के सामरिक कच्चे तेल के भंडार वर्तमान में विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश), मंगलौर (कर्नाटक) और पाडुर (कर्नाटक) में स्थित हैं। इनके अलावा सरकार ने चंदीखोल (ओडिशा) और पादुर (कर्नाटक) में दो अतिरिक्त सुविधाएँ स्थापित करने की घोषणा की थी।
SPR की भंडारण क्षमता:
- वर्तमान में भारत आपातकालीन आवश्यकताओं के लिये तेल भंडारण करता है। वर्तमान में ‘सामरिक पेट्रोलियम भंडार कार्यक्रम’ (Strategic Petroleum Reserves programme- SPRP) के तहत भारत 87 दिनों तक आवश्यकता पूर्ति की भंडारण क्षमता रखता है।
- इसमें से लगभग 65 दिनों की आवश्यकता पूर्ति को तेल प्रसंस्करण इकाइयाँ जबकि शेष भंडार ‘भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडार लिमिटेड’ (Indian Strategic Petroleum Reserves Limited- ISPRL) द्वारा बनाए गए भूमिगत भंडार के रूप में अनुरक्षित किया जाता है। भूमिगत भंडार की वर्तमान क्षमता 10 दिनों के तेल आयात के बराबर है।
भारत में तेल भंडारण से जुड़ी समस्याएँ:
- पारदर्शिता का अभाव:
- तेल भंडार में पारदर्शिता के अभाव के कारण तेल को समय पर उपयोग करने में अनेक अड़चनें हैं जिससे SPR तेल की कीमत सामान्यत: बहुत अधिक रहती है। वास्तव में निजी रिफाइनरियों के पास पर्याप्त ‘सामरिक पेट्रोल भंडार’ होते हैं परंतु इनके द्वारा यह भंडारण किस रूप में (क्रूड या रिफाइंड) तथा कहाँ किया जाता है, इस संबंध में पूरी तरह पारदर्शिता का अभाव रहता है।
- दूसरा मुद्दा रिफाइनरी की धारिता से संबंधित है। भारत में SPR तेल रिफाइनरियों, केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के नियंत्रण में है। हालाँकि स्टॉक रखने वाली अधिकांश रिफाइनरी सार्वजनिक रूप से स्वामित्व वाली कंपनियां हैं।
समाधान की दिशा में कदम:
- पारदर्शिता में वृद्धि:
- भारत के अन्य रणनीतिक भंडार (यथा विदेशी मुद्रा भंडार) जिसमें स्पष्ट प्रक्रियाओं, प्रोटोकॉल तथा आँकड़ों को जारी करने की आवश्यकता होती है, उसी SPR भंडारण के लिये भी स्पष्ट सार्वजनिक तथा संसदीय जाँच की आवश्यकता होनी चाहिये। SPR संबंधी सूचना के बारे में गोपनीयता के बजाय इसे समय पर और विश्वसनीय रूप से उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिये।
- गतिशीलता में वृद्धि:
- SPR पर अलग-अलग इकाइयों का नियंत्रण होने के कारण, इन तेल भंडारों को समय पर उपयोग करने में बाधा उत्पन्न होती है इससे तेल की गतिशीलता प्रक्रिया काफी अस्पष्टता तथा जटिल बन जाती है। अत: SPR के संबंध में विभिन्न इकाइयों की भूमिका और प्रक्रिया में स्पष्टता होनी चाहिये।
- विविधता में वृद्धि:
- आपात स्थितियों में जोखिमों को कम करने के लिये भारत को अपने SPR धारिता में विविधता लानी चाहिये। यह विविधता भौगोलिक स्थान (तेल घरेलू या विदेश में भंडारण), भंडारण स्थान (भूमिगत या अधितल) और उत्पाद के स्वरूप (क्रूड ऑयल या परिष्कृत ऑयल) पर आधारित हो सकती है।
- विदेश में भंडारण:
- भारत तेल भंडारण के लिये ओमान जैसे देशों में सामरिक तेल भंडार स्थापित कर सकता है, ओमान की विशेष अवस्थिति के कारण होर्मुज़ जलडमरूमध्य की संभावित अड़चनों से भी बचा जा सकता है। हालाँकि इन स्थानों के साथ भू-राजनीतिक जोखिमों हो सकते है, अत: न्यूनतम तेल भंडार देश से बाहर स्थापित करने चाहिये।
- स्वामित्त्व में विविधता:
- स्वामित्त्व में विविधता भी एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह सार्वजनिक ISPRL के माध्यम से या निजी तेल कंपनियों के माध्यम से अथवा विदेशी कंपनियों के स्वामित्त्व में हो सकता है।
निष्कर्ष:
- ऊर्जा भारत की वृद्धि की दृष्टि से हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है तथा भविष्य में प्रभावित करता रहेगा। तेल की कीमत में भारी गिरावट केंद्र सरकार के लिये अपने SPR भंडार को बढ़ाने और ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में अवसर प्रस्तुत करती है।
- भारत को वर्तमान समय में तेल की कीमतों का लाभ उठाना चाहिये तथा भारत की ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में तेल खरीदने और अपनी ‘सामरिक पेट्रोलियम भंडार’ (Strategic Petroleum Reserves- SPR) को भरने के सुअवसर के रूप में देखना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्स्प्रेस
लेह और नई दिल्ली में हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित बसें और कारें
प्रीलिम्स के लियेहाइड्रोजन ईंधन सेल तकनीक मेन्स के लियेवायु प्रदूषण को कम करने में इलेक्ट्रॉनिक वाहनों की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (National Thermal Power Corporation-NTPC) लिमिटेड ने लेह और नई दिल्ली के लिये 10 हाइड्रोजन ईंधन सेल (Hydrogen Fuel Cell-HFC) आधारित इलेक्ट्रिक बसों और 10 हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित इलेक्ट्रिक कारों के लिये वैश्विक अभिरुचि पत्र (Expression of Interest-EoI) आमंत्रित किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- यह वैश्विक अभिरुचि पत्र (EoI) NTPC की पूर्ण स्वामित्त्व वाली सहायक कंपनी NTPC विद्युत व्यापार निगम (NTPC Vidyut Vyapar Nigam-NVVN) लिमिटेड की ओर से जारी किये गए हैं।
- इस परियोजना के हिस्से के रूप में हाइड्रोजन के उत्पादन के लिये नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग तथा इसके भंडारण एवं वितरण की सुविधाएँ भी विकसित की जाएंगी।
लाभ
- हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित वाहनों की खरीद से संबंधित यह परियोजना देश में अपनी तरह की पहली परियोजना है, जिसमें हरित ऊर्जा से लेकर ईंधन सेल वाहन तक का संपूर्ण समाधान विकसित किया जाएगा।
- हाइड्रोजन से चलने वाले वाहनों को लॉन्च करने का उद्देश्य परिवहन के क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन को कम करना भी है।
हाइड्रोजन ईंधन सेल तकनीक
- ईंधन सेल विद्युत वाहन (Fuel Cell Electric Vehicles-FCEV) एक ऐसा यंत्र है जो कि ईंधन स्रोत के तौर पर हाइड्रोजन तथा ऑक्सीडेंट (Oxidant) के प्रयोग से विद्युत-रासायनिक प्रक्रिया (Electrochemical) द्वारा विद्युत का निर्माण करता है।
- ईंधन सेल हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन को संघटित (Combine) कर विद्युत धारा का निर्माण करता है तथा इस प्रक्रिया में जल उपोत्पाद (Byproduct) होता है।
- परंपरागत बैटरियों की भाँति ही हाइड्रोजन ईंधन सेल भी रासायनिक उर्जा को विद्युत उर्जा में परिवर्तित करता है परंतु FCEV लंबे समय तक वहनीय हैं तथा भविष्य की इलेक्ट्रिक कारों के लिये एक आधार है।
- इलेक्ट्रिक वाहन तकनीक में FCEVs एक नई पीढ़ी की शुरुआत है। इसके अंतर्गत इलेक्ट्रिक मोटर को चलाने के लिये हाइड्रोजन का प्रयोग किया जाता है।
ईंधन सेल के लाभ
- पारंपरिक दहन आधारित तकनीक के विपरीत ये अत्यंत कम मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं तथा इनसे उत्सर्जित वायु से मानव स्वास्थ्य को नुकसान भी नहीं होता है।
- अन्य बैटरी द्वारा संचालित वाहनों के विपरीत FCEVs को किसी चार्जिंग पॉइंट की आवश्यकता नहीं होती बल्कि इनमें ईंधन के तौर पर हाइड्रोजन का प्रयोग किया जाएगा तथा एक बार पूरा टैंक भरने पर ये 300 किलोमीटर की दूरी तय कर सकेंगे।
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम और ई-मोबिलिटी समाधान
- भारत की सबसे बड़ी विद्युत कंपनी, एनटीपीसी की स्थापना वर्ष 1975 में भारत के विद्युत विकास में तेजी लाने के लिये की गई थी।
- हालाँकि NTPC एक ताप विद्युत कंपनी है, किंतु वर्तमान में यह विद्युत उत्पादन व्यापार की संपूर्ण मूल्य श्रृंखला में उपस्थिति के साथ एक वैविध्यपूर्ण विद्युत कंपनी के रूप में उभर रही है।
- इसका मिशन नवप्रवर्तन एवं स्फूर्ति द्वारा संचालित रहते हुए किफायती, दक्षतापूर्ण एवं पर्यावरण-हितैषी तरीके से विश्वसनीय विद्युत-ऊर्जा एवं संबद्ध सेवाएँ प्रदान करना है।
- ध्यातव्य है कि NTPC सार्वजनिक परिवहन के संदर्भ में पूर्ण ई-मोबिलिटी समाधान प्रदान करने हेतु विभिन्न प्रौद्योगिकी पहल कर रहा है।
- इन पहलों में आम लोगों को चार्जिंग सुविधा प्रदान करने हेतु बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना और राज्य/शहर परिवहन निगमों को इलेक्ट्रिक बसें प्रदान करना शामिल हैं।
- इस संबंध में, विभिन्न शहरों में 90 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन और फरीदाबाद में ई-थ्री व्हीलर्स के लिये बैटरी चार्जिंग और स्वैपिंग स्टेशन पहले ही चालू किये जा चुके हैं।
- इसी तरह, अंडमान और निकोबार प्रशासन के लिये भी ई-बस समाधान योजना लागू की जा रही है।
स्रोत: पी.आई.बी
गंगा नदी में प्रदूषण की स्थिति
प्रीलिम्स के लिये:बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड, घुलित ऑक्सीजन, रासायनिक ऑक्सीजन मांग, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मेन्स के लिये:गंगा नदी में जल प्रदूषण से उत्पन्न चुनौतियों से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में लॉकडाउन से वायु प्रदूषण में कमी आई है किंतु कुछ जगहों पर गंगा नदी में जल प्रदूषण का स्तर अभी भी कम नहीं हुआ है।
प्रमुख बिंदु:
- CPCB की रिपोर्ट के अनुसार, 22 मार्च से 15 अप्रैल के बीच गंगा नदी में घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen-DO) की मात्रा में मामूली सुधार हुआ है।
- गंगा नदी में ‘बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड’ (Biological Oxygen Demand-BOD) तथा केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (Chemical Oxygen Demand-COD) दोनों की मात्रा में कमी आई है।
- गौरतलब है कि COD तथा BOD की मात्रा में कमी आना जल प्रदूषण को कम करने के लिहाज से अच्छे संकेत हैं।
- CPCB की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश की नदियाँ अत्यधिक प्रदूषित हैं।
- ध्यातव्य है कि 23 हज़ार करोड़ की लागत से 11 स्थानों पर अपशिष्ट जल को साफ करने के संयंत्र लगे हुए हैं किंतु नदी की सफाई में उल्लेखनीय वृद्धि अभी तक दृष्टिगोचर नहीं है।
- हालाँकि रिपोर्ट के अनुसार, यमुना नदी में जल की गुणवत्ता तथा DO, BOD और COD में काफी सुधार हुआ है।
- गंगा नदी में जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत नदी के समीप 97 शहर और औद्योगिक क्षेत्र स्थित हैं। इन क्षेत्रों से प्रति दिन नाले के माध्यम से गंगा में 3500 ML/D (मिलियन लीटर प्रति दिन) अपशिष्ट जल प्रवाहित होता है जिसमें 1100 MLD रसायनिक प्रक्रिया से साफ कर, जबकि 2400 MLD जल को बिना किसी उपचार के नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।
- गंगा नदी में प्रवाहित औद्योगिक अपशिष्ट जल की मात्रा 300MLD है जो नदी में प्रवाहित कुल अपशिष्ट जल का 9% है।
BOD तथा COD की स्थिति:
- CPCB की रिपोर्ट के अनुसार, गंगा नदी के डाउनस्ट्रीम (Downstream) की दिशा में BOD की मात्रा में निरंतर बढ़ोतरी हुई है। पश्चिम बंगाल में BOD की मात्रा अत्यधिक है। जहाँ कुछ स्थानों पर COD की मात्रा में बढ़ोतरी हुई है वहीं कुछ स्थानों पर इसकी मात्रा में मामूली कमी आई है।
- उल्लेखनीय है कि औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने से COD की मात्रा में कमी आई है।
बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (Biological Oxygen Demand-BOD):
- ऑक्सीजन की वह मात्रा जो जल में कार्बनिक पदार्थों के जैव रासायनिक अपघटन के लिये आवश्यक होती है, वह BOD कहलाती है।
- जल प्रदूषण की मात्रा को BOD के माध्यम से मापा जाता है। परंतु BOD के माध्यम से केवल जैव अपघटक का पता चलता है साथ ही यह बहुत लंबी प्रक्रिया है। इसलिये BOD को प्रदूषण मापन में प्रयोग नहीं किया जाता है।
- गौरतलब है कि उच्च स्तर के BOD का मतलब पानी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों की बड़ी मात्रा को विघटित करने हेतु अत्यधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen-DO):
- यह जल में घुलित ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो जलीय जीवों के श्वसन के लिये आवश्यक होती है।
- जब जल में DO की मात्रा 8.0mg/l से कम हो जाती है तो ऐसे जल को संदूषित (Contaminated) कहा जाता है। जब यह मात्रा 4.0 mg/l से कम हो जाती है तो इसे अत्यधिक प्रदूषित (Highly Polluted) कहा जाता है।
रासायनिक ऑक्सीजन मांग (Chemical Oxygen Demand-COD):
- यह जल में ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो उपस्थित कुल कार्बनिक पदार्थो (घुलनशील अथवा अघुलनशील) के ऑक्सीकरण के लिये आवश्यक होती है। यह जल प्रदूषण के मापन के लिये बेहतर विकल्प है।
जल की गुणवत्ता के समक्ष चुनौतियाँ:
- कृषि की गहनता (Intensification of Agriculture) का प्रभाव
- भूमि उपयोग में परिवर्तन
- जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक परिवर्तनशील वर्षा पैटर्न
- देशों के विकास के कारण बढ़ता औद्योगीकरण
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
(Central Pollution Control Board-CPCB):
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
- इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
- यह बोर्ड पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वर्णित किया गया है।
आगे की राह:
- जल गुणवत्ता की चुनौती से निपटने के लिये सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि जल गुणवत्ता से संबंधित नीति निर्माण में सुधार किया जाए। जलभराव, लवणता, कृषि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग और औद्योगिक अपशिष्ट जैसे मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिये। जल तथा वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने का काम केवल सरकार पर न छोड़कर इसमें प्रत्येक नागरिक को अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करते हुए सहयोग करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक पर नीति आयोग का प्रश्नचिह्न
प्रीलिम्स के लियेवैश्विक आतंकवाद सूचकांक मेन्स के लियेआतंकवाद का वैश्विक पर्यटन पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
नीति आयोग (Niti Aayog) ने अपनी एक रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलिया के ‘इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक एंड पीस’ (Institute for Economics and Peace-IEP) द्वारा जारी ‘वैश्विक आतंकवाद सूचकांक’ (Global Terrorism Index-GTI) 2019 की कार्यप्रणाली (Methodology) पर प्रश्नचिह्न लगाए हैं।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि वैश्विक आतंकवाद सूचकांक, 2019 में भारत को 7वाँ स्थान मिला है, अर्थात् इस सूचकांक के अनुसार, भारत विश्व में आतंकवाद से प्रभावित देशों में 7वें स्थान पर है।
- इस सूचकांक में भारत को विश्व के संघर्षग्रस्त देशों जैसे- डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, दक्षिण सूडान, सूडान, बुर्किना फासो, फिलिस्तीन और लेबनान आदि से भी ऊपर रखा गया है।
- नीति आयोग की रिपोर्ट में IEP की अपारदर्शी फंडिंग पर भी प्रश्न उठाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार के चैरिटीज़ एंड नॉट-फॉर-प्रॉफिट कमीशन (Charities and Not-for-profits Commission) ने IEP के फंडिंग स्रोतों के बारे में भी कोई डेटा उपलब्ध नहीं किया है।
- नीति आयोग के अनुसार, IEP द्वारा इस सूचकांक को तैयार करने हेतु आतंकवाद से संबंधित जिस डेटाबेस का प्रयोग किया जाता है वह पूर्ण रूप से अवर्गीकृत मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर तैयार होता है।
- आयोग के मुताबिक, IEP द्वारा जारी वर्ष 2019 का सूचकांक बताता है कि संगठन में 24 कर्मचारी और 6 वॉलंटियर है, जिसके कारण यह काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि किस प्रकार संगठन 163 देशों से आँकड़े एकत्रित करता है और फिर उनका विश्लेषण करता है।
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक, 2019
- वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2019 के अनुसार, वर्ष 2014 के बाद से अब तक आतंकवाद के कारण होने वाली मौतों की संख्या में 52 प्रतिशत की कमी आई है, जो कि 33,555 से घटकर 15,952 हो गई हैं।
- GTI के अनुसार, आतंकवाद से होने वाली मौतों में गिरावट के कारण आतंकवाद के वैश्विक आर्थिक प्रभाव में भी कमी आई है, जो कि वर्ष 2018 में 38 प्रतिशत घटकर 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुँच गया है।
- इस सूचकांक में पहला स्थान अफगानिस्तान को मिला है, जिसका अर्थ है कि अफगानिस्तान विश्व में आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देश है। वहीं इस सूचकांक में अंतिम स्थान बेलारूस (Belarus) को मिला है, इस प्रकार बेलारूस आतंकवाद की दृष्टि से काफी सुरक्षित देश है।
- भारत के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान को 5वाँ, चीन को 42वाँ, बांग्लादेश को 31वाँ, नेपाल को 34वाँ, श्रीलंका को 55वाँ, भूटान को 137वाँ और म्याँमार को 26वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।
वैश्विक आतंकवाद सूचकांक
- वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (GTI) ऑस्ट्रेलिया स्थित ‘इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक एंड पीस’ (Institute for Economics and Peace-IEP) द्वारा प्रत्येक वर्ष जारी किया जाता है, जिसमें वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से संबंधित आँकड़ों के साथ-साथ विभिन्न देशों को आतंकवाद की स्थिति के आधार पर रैंकिंग भी दी जाती है।
- IEP द्वारा जारी किये जाने वाले सूचकांक में प्रमुख रूप से मैरीलैंड विश्वविद्यालय (University of Maryland) के ग्लोबल टेररिज़्म डेटाबेस (GTD) का प्रयोग किया जाता है।
सूचकांक का महत्त्व
- यह सूचकांक किसी एक देश में आतंकवाद की स्थिति को दर्शाता है, जो कि देश के अन्य विभिन्न क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है, इसलिये इस सूचकांक का महत्त्व काफी बढ़ जाता है।
- वैश्विक आतंकवाद सूचकांक के स्कोर को प्रत्यक्ष रूप से ‘ग्लोबल पीस इंडेक्स’ (Global Peace Index) और वैश्विक दासता रिपोर्ट (Global Slavery Report) में प्रयोग किया जाता है।
- वहीं यात्रा और पर्यटन प्रतिस्पर्द्धी सूचकांक (travel and tourism competitiveness index), वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सूचकांक (Global Competitiveness Index) और सेफ सिटीज़ इंडेक्स (Safe Cities Index) में GTI का स्कोर अप्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया जाता है।
स्रोत: द हिंदू
अगरकर रिसर्च इंस्टिट्यूट: माइक्रो रिएक्टर
प्रीलिम्स के लिये:माइक्रो रिएक्टर, नैनो कण मेन्स लिये:माइक्रो रिएक्टर के अनुप्रयोग |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science &Technology-DST) के अधीन पुणे स्थित स्वायत्त संस्थान ‘अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (Agharkar Research Institute -ARI) द्वारा एक ऐसे माइक्रो रिएक्टर का विकास किया गया है जो काफी मात्रा में एक समान आकार के नैनो कणों (Nanoparticles) का विकास करने में सक्षम है।
मुख्य बिंदु:
- विकसित किया गया माइक्रो रिएक्टर अपने नियमित प्रवाह द्वारा धातु (Metal), अर्धचालकों (Semiconductor) और पॉलिमर (Polymer) नैनों कणों (Nanoparticles) का निर्माण कर सकता है।
- सामान आकर के नैनों कणों को विकसित एवं वितरित करने के लिये इस माइक्रो रिएक्टर में कुछ पैरामीटर्स का प्रयोग किया गया है, जैसे- अभिकारकों की सांद्रता (Concentration of Reactants), प्रवाह दर ( Flow Rate), तीव्रता (Reaction), तापमान (Temperature ) एवं समय (Time)
- इसके अलावा मोनोडिस्पर्सिटी (Monodispersity) अर्थात एक समान आकर के नैनो कणों को प्राप्त करने के लिये आयामीय विश्लेषण (Dimensional Analysis) का प्रयोग करते हुए एक गणितीय समीकरण का प्रयोग किया गया।
माइक्रो रिएक्टर-
- यह एक ऐसा उपकरण है जिसके द्वारा इसके एक मिलीमीटर से कम आकार के साथ रासानियक प्रतिक्रिया संपन्न होती है।
नैनो प्रौद्योगिकी-
- नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी अत्यंत छोटी चीजों के अध्ययन एवं अनुप्रयोग से संबंधित है।
- इसका उपयोग विज्ञान के अन्य क्षेत्रों जैसे- रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान, सामग्री विज्ञान और इंजीनियरिंग में भी किया जा सकता है।
नैनोमीटर
- मीट्रिक प्रणाली में लंबाई मापन की एक इकाई है।
- 1 नैनोमीटर 10-9 मीटर के समतुल्य होता है।
माइक्रो रिएक्टर में नैनो कणों का महत्त्व:
- नैनो कणों में विशेष प्रकार के गुण पाए जाते हैं जो उनके आकार के आधार पर निर्धारित होते हैं।
- नैनो कणों का यही गुण है उन्हें जैव चिकित्सा तकनीकी में उपयोगी बनाता है चूँकि इनके आकार में समानता न होने के कारण तथा उत्पादन की पारंपरिक तकनीकी के कारण इनका प्रभाव कम होता है।
- जैव चिकित्सा उद्योग में नैनो कणों के आकार को समान बनाए रखना चुनौतीपूर्ण रहा है।
- इसके अलावा कई अभिकर्मकों (Reagents) के इस्तेमाल के कारण पारंपरिक विधियों से नैनो कणों को विकसित करने में अधिक समय लगता है साथ ही सह उत्पाद के तौर पर विषाक्त पदार्थ उत्पन्न होते हैं।
- विकसित किये गए माइक्रो रिएक्टर द्वारा अब 5% से भी कम भिन्नता गुणांक (Co-efficient of Variation) के साथ सोना (Gold) और चाँदी (Silver), कैडमियम-टेलुराइड (Cadmium-Telluride), चिटोसन (Chitosan), अलगाइनेट (Alginate) और हाईएल्युरोनिक अम्ल (Hyaluronic Acid) से किसी भी आकार के नैनो कणों को विकसित किया जा सकता है।
नैनो कणों का विश्लेषण:
- इस प्रयोग के दौरान एक सामान आकार के सिल्वर नैनो कण को एक प्रभावी रोगाणुरोधी एजेंट के तौर पर देखा गया।
- एक सामान आकार के चितोसन (Chitosan) और अल्गिनेट ( Alginate) जो कि एक प्रकार के पॉलीसैकेराइड्स हैं, के नैनो कण कही अधिक उच्च स्तरीय दवा कार्यविधि (Drug Entrapment) तथा टिकाऊ स्राव दर (Sustained-Release Rate) के गुण को प्रदर्शित करते हैं ये अपने एक समान एवं अत्यंत सूक्ष्म आकार के कारण कोशिकाओं के भीतर तक पहुँचने में सक्षम हैं साथ ही ये जैव अनुकूलित भी हैं।
महत्त्व:
- नैनो तकनीकी के इस नए आयाम/दृष्टिकोण द्वारा नैनो मीटर के एक समान वितरण संबंधित विरोधाभास की समस्या का समाधान हो सकेगा।
- इसका उपयोग उन रासायनिक प्रतिक्रियाओं के साथ भी किया जा सकता है जहाँ प्रतिक्रिया की गतिशीलता को बनाए रखने के लिये अधिक नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
- यह खोज बायोमेडिकल तकनीक में एक प्रमुख आवश्यकता के रूप में भी कार्य करेगी।
अगरकर रिसर्च इंस्टिट्यूट-
- वर्ष 1946 में महाराष्ट्र एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट के रूप में स्थापित किया गया है।
- वर्ष 1992 में इसका नाम बदलकर ‘अगरकर रिसर्च इंस्टिट्यूट’ किया गया।
- वर्ष 1966 से ARI भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा पूरी तरह से वित्त पोषित एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है।
- वर्तमान समय में यह महाराष्ट्र एसोसिएशन फॉर द कल्टिवेशन ऑफ साइंस (MACS) के अंतर्गत संचालित है।
स्रोत: पी.आई.बी
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 29 अप्रैल, 2020
इरफान खान
29 अप्रैल, 2020 को भारतीय फिल्म जगत के मशहूर अभिनेता इरफान खान का 54 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। ध्यातव्य है कि इरफान खान न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर (Neuroendocrine Tumor) से पीड़ित थे और इस बीमारी के उपचार के लिये वे लंदन भी गए थे। पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित इरफान खान का जन्म 7 जनवरी, 1967 को जयपुर में हुआ था। जयपुर से परास्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पस्चात् इरफान ने वर्ष 1984 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama-NSD) में दाखिला लिया और वहाँ से अभिनय में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वे मुंबई चले गए। इरफान खान ने अपनी कैरियर की शुरुआत टेलिविज़न से की थी। बॉलीवुड में इरफान खान की पहली फिल्म ‘सलाम बॉम्बे’ वर्ष 1998 में आई थी। इरफान खान ने अपने 30 वर्ष से लंबे फिल्मी कैरियर में 100 से अधिक फिल्में की थीं। उन्होंने भारतीय फिल्मों के अतिरिक्त अमेरिकी तथा ब्रिटिश फिल्मों में भी अपने बेहतरीन अभिनय का प्रदर्शन किया। इरफान खान को वर्ष 2011 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (वर्ष 2012) में इरफान खान को फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ में अभिनय के लिये श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी दिया गया था। इरफान खान की कुछ प्रसिद्ध फिल्मों में हिंदी मीडियम, अंग्रेजी मीडियम, द नेमसेक, लाइफ इन ए मेट्रो, पान सिंह तोमर, द लंचबॉक्स, पीकू, लाइफ ऑफ पाई, जुरैसिक वर्ल्ड और मदारी आदि शामिल हैं।
असम में पत्रकारों के लिये बीमा
देश भर में कोरोनावायरस महामारी का प्रकोप दिन-प्रति-दिन बढ़ता जा रहा है, सरकार द्वारा इस महामारी को रोकने के लिये उठाए गए विभिन्न कदमों के बावजूद देश के कुछ विशिष्ट हिस्सों में इसे रोकना अपेक्षाकृत काफी चुनौतीपूर्ण हो गया है। ऐसे में महामारी के फ्रंटलाइन में खड़े लोगों के लिये संक्रमण का खतरा और अधिक बढ़ गया है। ध्यातव्य है कि मीडियाकर्मी 24 घंटे इस वायरस से संबंधित सूचनाओं को आम लोगों तक पहुँचाने में लगे हैं, जिसके कारण वे इस महामारी के प्रति काफी संवेदनशील हो गए हैं। इस स्थिति के मद्देनज़र असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल (Sarbananda Sonowal) ने मीडियाकर्मियों की सराहना करते हुए राज्य के पत्रकारों के लिये 50 लाख रुपए के बीमा कवर की घोषणा की है। पत्रकारों के संबंध में यह निर्णय असम मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया। ध्यातव्य है कि इससे पूर्व हरियाणा सरकार ने भी राज्य के पत्रकारों के लिये 10 लाख रुपए के बीमा कवर की घोषणा की थी। असम में कोरोनावायरस संक्रमण के कुल 38 मामले सामने आए हैं और इसके कारण 1 व्यक्ति की मृत्यु हुई है।
अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस
प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस (International Dance Day) का आयोजन किया जाता है। संपूर्ण विश्व में अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस के आयोजन का उद्देश्य जनसाधारण के मध्य नृत्य की महत्ता को उजागर करना और पूरे विश्व में नृत्य को शिक्षा की सभी प्रणालियों में एक उचित स्थान प्रदान करना है। इस दिवस की शुरुआत 29 अप्रैल, 1982 को यूनेस्को (UNESCO) के अंतर्राष्ट्रीय थिएटर इंस्टीट्यूट की अंतर्राष्ट्रीय डांस कमेटी द्वारा की गई थी। अंग-प्रत्यंग एवं मनोभावों के साथ की गई नियंत्रित यति-गति को नृत्य कहा जाता है। भरत मुनि (द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व) का ‘नाट्यशास्त्र’ शास्त्रीय नृत्य पर प्राचीन ग्रंथ के रूप में उपलब्ध है, जो नाटक, नृत्य और संगीत कला की स्रोत-पुस्तक है। भारतीय नृत्यकला को दो वर्गों में बाँटा जाता है- (i) शास्त्रीय नृत्य (ii) लोक एवं जनजातीय नृत्य। शास्त्रीय नृत्य जहाँ शास्त्र-सम्मत एवं शास्त्रानुशासित होता है, वहीं लोक एवं जनजातीय नृत्य विभिन्न राज्यों के स्थानीय एवं जनजातीय समूहों द्वारा संचालित होते हैं और इनका कोई निर्धारित नियम-व्याकरण या अनुशासन नहीं होता।
ब्रिटेन की बाउंस बैक स्कीम
ब्रिटेन ने कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी लॉकडाउन के कारण संकट का सामना कर रहे छोटे कारोबारियों की मदद के लिये ‘बाउंस बैक लोन स्कीम’ (Bounce Back Loan scheme) की शुरूआत की है। यह योजना 100 प्रतिशत राज्य द्वारा वित्तपोषित होगी। इस योजना के तहत पात्र छोटे कारोबारी प्रथम 12 महीनों के लिये दो हज़ार पाउंड से 50 हज़ार पाउंड तक के ब्याज मुक्त ऋण हेतु ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन ने COVID-19 महामारी के कारण जान गंवाने वाले राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाकर्मियों के परिवार के लिये 60 हज़ार पाउंड की बीमा योजना की घोषणा भी की है। ब्रिटेन में अब तक 161000 से अधिक लोगों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है। वहीं ब्रिटेन में इस महामारी से 23000 लोगों की मौत हुई है।