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डेली न्यूज़

  • 29 Jan, 2020
  • 50 min read
विश्व इतिहास

ऑशविट्ज़ की मुक्ति की 75वीं वर्षगाँठ

प्रीलिम्स के लिये:

ऑशविट्ज़ का मुक्ति दिवस

मेन्स के लिये:

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान घटित घटनाएँ, द्वितीय विश्वयुद्ध एवं भीषण नरसंहार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

27 जनवरी, 2020 को पोलैंड में ऑशविट्ज़ की मुक्ति (Auschwitz's Liberation) की 75वीं वर्षगाँठ मनाई गई।

पृष्ठभूमि

  • द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ऑशविट्ज़ यूरोप में नाज़ियों द्वारा स्थापित यातना केंद्र था।
  • 27 जनवरी, 1945 को सोवियत सैनिकों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के सबसे बुरे यातना शिविरों में से एक ऑशविट्ज़ बिरकेनौ (Auschwitz-Birkenau) को मुक्त किया था। उस समय से यह एक यादगार अवसर बन गया है और हर साल अंतर्राष्ट्रीय होलोकॉस्ट (बलिदान) दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन नाज़ी सरकार ने यूरोप के लगभग 17 मिलियन लोगों की सात हत्या केंद्रों में में हत्या की थी। इन सात हत्या केंद्रों में ऑशविट्ज़ का शिविर सबसे प्रसिद्ध और आकार में सबसे बड़ा था।

होलोकॉस्ट इतिहास में 27 जनवरी का महत्त्व

  • नाज़ी जर्मनी के पतन से पहले दूसरे विश्वयुद्ध के अंतिम चरण के दौरान नाज़ी अधिकारियों ने यूरोप में फैले शिविरों से कैदियों को ज़बरन ऑशविट्ज़ शिविर में ले जाना शुरू कर दिया था। ध्यातव्य है कि कैदियों को पैदल ही भूखे-प्यासे ठंड में ही ऑशविट्ज़ शिविर में ले जाया जाता था जिसे डेथ मार्च (Death March) कहा गया।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, शिविरों में युद्ध कैदियों को मुक्त करने से रोकने और मानवता के खिलाफ अपराधों से संबंधित साक्ष्यों को मिटाने के लिये कैदियों को यूरोप में अन्य शिविरों में ले जाया जा रहा था तथा जो कैदी बहुत बीमार और विकलांग थे उन्हें शिविरों में मरने के लिये छोड़ दिया जाता था।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत में सोवियत रेड आर्मी ने यूरोप के विभिन्न सामूहिक कैद और यातना शिविरों में जाकर वहाँ बंद कैदियों को मुक्त करना शुरू किया। इसी क्रम में सोवियत सेना से सर्वप्रथम जुलाई 1944 में पोलैंड में माजदानेक शिविर (Majdanek Camp) को मुक्त कराया तथा 27 जनवरी, 1945 को आर्मी ने ऑशविट्ज़ में प्रवेश किया और वहाँ बंद कैदियों को मुक्त कराया था।
  • वर्ष 2005 में संयुक्त राष्ट्र ने ऑशविट्ज़ से कैदियों की मुक्ति के संदर्भ में 27 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय होलोकॉस्ट स्मरण दिवस के रूप में घोषित किया।
  • ध्यातव्य है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यूरोप के ऑशविट्ज़ में घटने वाली हृदयविदारक घटनाओं से मुक्ति के कारण 27 जनवरी का दिन होलोकॉस्ट इतिहास में महत्त्वपूर्ण है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ऑशविट्ज़ शिविर का उपयोग

पूरे यूरोप से कैदियों को इस शिविर में लाया जाता था और फिर उन्हें दो भागों में विभाजित किया जाता था- पहले भाग में वे कैदी जो काम कर सकते थे और दूसरे वे कैदी जिन्हें मार दिया जाना था।\

बाद में उन कैदियों को गैस चैंम्बर में ले जाकर मार दिया जाता था तथा काम कर सकने वाले कैदियों से दासता के तहत श्रम कराया जाता था।

ऑशविट्ज़ यातना शिविर अलग कैसे?

कई कारकों ने ऑशविट्ज़ को यूरोप के अन्य शिविरों से अलग बनाया।

  • ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार, नाज़ी अधिकारियों द्वारा कैदियों को विशेष रूप से ऑशविट्ज़ में विस्थापित करने के प्रयासों के बावजूद कुछ कैदी जीवित बच गए थे जिन्होंने नाज़ी अधिकारियों के खिलाफ गवाही दी।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, ऑशविट्ज़ में दो उद्देश्यों के लिये शिविर बनाए गए थे:
    • कैदियों से श्रम कराने के लिए एक शिविर के रूप में
    • और एक तबाही शिविर के रूप में, जिसमें आधुनिक शवदाहगृह होते थे और जो गैस कक्षों से सुसज्जित होते थे जिनका उपयोग कैदियों को मारने के लिए किया जाता था।
  • यह शिविर पोलैंड के ओस्विसिम (Oswiecim) शहर में एक बड़े क्षेत्र में फैला था जो तीन खंडों में विभाजित था:
    • ऑशविट्ज़ I जो कि मुख्य कैंप था।
    • ऑशविट्ज़ II-बिरकेनौ में तबाही शिविर और गैस कक्ष शामिल थे।
    • और ऑशविट्ज़ III कई छोटे शिविरों से बना था जिसमें नाज़ी सैनिकों द्वारा कैदियों को नाज़ी कंपनियों में श्रम के लिये मज़बूर किया जाता था।
  • ऑशविट्ज़ का शिविर मूल रूप से पोलैंड के राजनीतिक कैदियों को पकड़ने के लिए बनाया गया था लेकिन मार्च 1942 तक यहूदी कैदियों का यातना केंद्र बन गया।

भीषण नरसंहार से प्रभावित वर्ग

  • नाज़ियों ने न केवल यहूदियों को निशाना बनाया बल्कि उन्होंने अपनी विचारधारा का इस्तेमाल अपनी जातीयता, राजनीतिक मान्यताओं, धर्म और यौन अभिविन्यास के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करने और उन्हें सताने के लिये किया।
  • लगभग 75,000 पोलिश (पोलैंड के) नागरिक, 15,000 सोवियत युद्ध कैदी, समलैंगिकों और राजनीतिक कैदियों एवं अन्य लोगों को भी जर्मन सरकार ने ऑशविट्ज़ कॉम्प्लेक्स में मौत के घाट उतार दिया था।
  • ज़बरन औशविट्ज़ भेजे गए लगभग 1.3 मिलियन लोगों में से लगभग 1.1 मिलियन लोग मारे गए थे जिनमें से अधिकांश यहूदी थे।

ऑशविट्ज़ की मुक्ति के बाद की घटनाएँ

  • द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद के वर्षों में, यूरोप में नाज़ी अधिकारियों और विभिन्न शिविरों में मानवता के खिलाफ अपराधों को बढ़ावा देने वालों पर कार्यवाही की गई।
  • कुछ नाज़ी जर्मनी के पतन के बाद अपने अपराधों की जवाबदेही से बच गए थे। उनमें से कई अधिकारियों ने अपनी पहचान बदल ली और यूरोप, अमेरिका तथा दुनिया के अन्य हिस्सों में भाग गए।
  • ऑशविट्ज़ का शिविर होलोकॉस्ट की भयावहता का एक महत्त्वपूर्ण अनुस्मारक बन गया और वर्ष 1947 में पोलैंड की सरकार ने इस स्थल को राजकीय स्मारक बना दिया।
  • वर्ष 1979 में यूनेस्को ने ऑशविट्ज़ स्मारक को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अपनी सूची में शामिल किया।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

चीन: विभिन्न वैश्विक रोगों का अधिकेंद्र

प्रीलिम्स के लिये:

कोरोनावायरस

मेन्स के लिये:

कोरोनावायरस की उत्पत्ति के कारण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन के वुहान में कोरोना वायरस के फैलने की वजह से इस विषय पर बहस छिड़ गई है कि हाल के वर्षों में कई नए घातक वायरस चीन में ही क्यों उत्पन्न हुए हैं?

मुख्य बिंदु:

  • हाल के वर्षों में चीन ‘गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम’ (Severe Acute Respiratory Syndrome- SARS), बर्ड फ्लू (Bird Flu) और वर्तमान में प्रभावी ‘नोवेल कोरोनावायरस’ (Novel Coronavirus- nCOV) जैसे वायरस के अधिकेंद्र के रूप में उभर कर सामने आया है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) का अनुमान है कि प्रत्येक वर्ष विश्व स्तर पर ज़ूनोसिस (Zoonoses) से लगभग एक बिलियन रोगियों तथा लाखों अन्य व्यक्तियों की मौत से संबंधित मामले सामने आते हैं।

जूनोसिस:

  • ज़ूनोसिस एक बीमारी या संक्रमण का प्रभाव है जिसका स्थानांतरण स्वाभाविक रूप से कशेरुकीय जानवरों से मनुष्यों में होता है।
  • प्रकृति में जूनोटिक संक्रमण के प्रसार में जानवरों की भूमिका होती है।
  • ज़ूनोसिस बैक्टीरियल, वायरल या परजीवी हो सकता है या ऐसे रोगों से संबंधित होता है जो पारपंरिक रूप से प्रचलन में नही हैं।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के साथ-साथ कई प्रमुख ज़ूनोटिक रोग पशुओं द्वारा उत्पन्न भोज्य पदार्थों के उत्पादन में बाधा पहुँचाते हैं और पशु उत्पादों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।

जूनोसिस संक्रमण का इतिहास:

  • ऐतिहासिक रूप से ऐसी कई घटनाएँ प्रकाश में आई हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि जूनोटिक रोगाणुओं की वजह से वैश्विक महामारी की स्थिति कोई नई समस्या नहीं है।
  • ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो निम्नलिखित जूनोसिस संक्रमण संबंधी बीमारियों के बारे में जानकारी मिलती है-
    • जस्टीनियन प्लेग (Justinian Plague): 541-542 AD में चिह्नित
    • द ब्लैक डेथ (The Black Death): इसका संक्रमण पहली बार वर्ष 1347 में यूरोप में देखा गया।
    • यलो फीवर (Yellow Fever): इसका संक्रमण पहली बार 16वीं शताब्दी में दक्षिण अमेरिका में देखा गया।
    • वैश्विक इन्फ्लूएंज़ा महामारी (Global Influenza Pandemic): वर्ष 1918
  • आधुनिक महामारियाँ जैसे- एचआईवी/एडस, SARS और H1N1 इन्फ्लूएंज़ा में एक लक्षण समान है कि इन सभी मामलों में वायरस का संचरण पशुओं से मानव में हुआ।
  • WHO के अनुसार, विश्व में नई उभरती संक्रामक बीमारियों में 60% बीमारियों का कारण जूनोसिस संक्रमण होता है।
  • पिछले तीन दशकों में 30 से अधिक नए मानव रोगाणुओं में से 75% का संक्रमण जानवरों से हुआ।

कोरोना वायरस:

क्यों है वर्तमान में चर्चित?

  • चीन के वुहान शहर में कोरोनावायरस की वजह से कई व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है।
  • चीन से बाहर भी कई देशों (अमेरिका, रूस) में इस वायरस के संक्रमण के कारण WHO द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल (International Health Emergency) घोषित करने पर विचार किया जा रहा है।
  • चीन के मध्य में स्थित हुबेई प्रांत कोरोनावायरस से सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्रों में से है।
  • WHO ने आने वाले समय में कोरोनावायरस से संक्रमित मामलों के बढ़ने की चेतावनी दी है।

कैसे हुई पहचान?

  • 31 दिसंबर, 2019 को चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में निमोनिया के कई मामले पाए जाने पर यह WHO के संज्ञान में आया।
  • जाँच के दौरान वर्तमान वायरस का किसी भी ज्ञात वायरस से मेल नहीं हुआ।
  • इसने एक गंभीर समस्या को जन्म दिया क्योंकि जब कोई वायरस नया होता है तो उसके बारे में यह जानकारी नहीं होती कि यह लोगों को कैसे प्रभावित करेगा।
  • लगभग एक सप्ताह बाद 7 जनवरी को चीनी अधिकारियों ने पुष्टि की कि उन्होंने एक नए वायरस की पहचान की है।
  • इस नए वायरस को कोरोनावायरस नाम दिया गया जो SARS और MERS (Middle East Respiratory Syndrome) जैसे वायरस के समान है।
  • इस नए वायरस को अस्थायी रूप से ‘2019-nCoV’ नाम दिया गया।

क्या है कोरोनावायरस?

  • कोरोनावायरस, एक विशिष्ट वायरस फैमिली से संबंधित है। इस वायरस फैमिली में कुछ वायरस सामान्य रोगों जैसे- सर्दी, जुकाम और कुछ गंभीर रोगों जैसे श्वसन एवं आँत के रोगों का कारण बनते हैं।
  • कोरोनावायरस की सतह पर क्राउन (Crown) जैसे कई उभार होते हैं, इन्हें माइक्रोस्कोप में देखने पर सौर कोरोना जैसे दिखते हैं। इसलिये इसका नाम ‘कोरोनावायरस’ है।

कोरोनावायरस सामान्यतः निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-

  • 229E अल्फा कोरोनावायरस (Alpha Coronavirus)
  • NL63 अल्फा कोरोनावायरस (Alpha Coronavirus)
  • OC43 बीटा कोरोनावायरस (Beta Coronavirus)
  • HKU1 बीटा कोरोनावायरस (Beta Coronavirus

चार सामान्य कोरोनावायरस के अतिरिक्त निम्नलिखित दो विशिष्ट कोरोनावायरस होते हैं-

  • कोरोनावायरस- मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Middle East Respiratory Syndrome-MERS)
  • कोरोनावायरस- सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (Severe Acute Respiratory Syndrome- SARS)

कोरोनावायरस मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम

(Middle East Respiratory Syndrome- MERS CoV):

  • पहली बार MERS Cov का संक्रमण वर्ष 2012 में सऊदी अरब में देखा गया था। इस कारण इस वायरस को मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस (MERS CoV) कहा जाता है।
  • MERS Cov से प्रभावित अधिकतर रोगियों में बुखार, जुकाम और श्वसन समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।

सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोनावायरस

(Severe Acute Respiratory Syndrome- SARS CoV):

  • SARS CoV से पहली बार वर्ष 2002 में दक्षिण चीन के ग्वांगडोंग प्रांत (Guangdong Province) में मानव में संक्रमण पाया गया।
  • SARS CoV से प्रभावित अधिकतर रोगियों में इन्फ्लूएंज़ा, बुखार, घबराहट, वात-रोग, सिरदर्द, दस्त, कंपन जैसी समस्याएँ पाई जाती हैं।

वायरस के लक्षण:

China-coronavirus

  • WHO के अनुसार, इस वायरस के सामान्य लक्षणों में बुखार, खाँसी और साँस की तकलीफ़ जैसी शारीरिक समस्याएँ शामिल हैं।
  • वहीं गंभीर संक्रमण में निमोनिया, किडनी का फेल होना शामिल है जिससे मनुष्य की मृत्यु तक हो सकती है।

WHO द्वारा संदर्भित संक्रमण रोकने हेतु उपाय:

  • अल्कोहल-आधारित साबुन और पानी का उपयोग करके हाथ साफ करना।
  • खाँसते या छींकते समय मुँह और नाक को ढकना।
  • बुखार और खाँसी से प्रभावित किसी भी व्यक्ति के निकट संपर्क से बचना।
  • यदि बुखार, खांसी और साँस लेने में कठिनाई हो रही है तो जल्दी से चिकित्सिक से संपर्क करना और अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के साथ पिछली यात्रा के बारे में जानकारी साझा करना।
  • बाज़ार में भ्रमण करते समय वर्तमान में कोरोनोवायरस के मामलों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिये जानवरों के संपर्क और संक्रमित सतहों के साथ सीधे असुरक्षित संपर्क से बचना।
  • कच्चे या अधपके पशु उत्पादों के सेवन से बचना।

चीन क्यों है वायरस के प्रति अति संवेदनशील?

  • ऐसे स्थान जहाँ मनुष्यों और जानवरों में अनियमित रक्त और अन्य शारीरिक संपर्क जैसा संबंध स्थापित होता है, वहाँ पर इस वायरस का अधिक प्रसार होता है।
  • चीन के पशु बाज़ार ऐसे ही स्थलों के उदाहरण हैं जहाँ जानवरों से मनुष्यों में वायरस के संचरण की अधिक संभावना है।
  • चीन के बाज़ारों में कई जानवरों का माँस बिकने के कारण ये बाज़ार मानव में वायरस की प्रायिकता को बढ़ा देते हैं।
  • जब एक बड़ा मानव समुदाय इस वायरस के संचरण श्रृंखला में शामिल हो जाता है तो उत्परिवर्तन (Mutation) की स्थिति उत्पन्न होती है जो कि मानव समुदाय के लिये घातक सिद्ध होती है।
  • दुनिया के पशुधन की लगभग 1.4 बिलियन (50%) आबादी के साथ चीन की पारिस्थितिकी को कोरोनावायरस संबंधी बीमारियों का खतरा है जो चीन और दुनिया के बाकी हिस्सों में खतरा पैदा कर सकती है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

गर्भपात संबंधी नियमों में बदलाव

प्रीलिम्स के लिये:

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम 1971, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020

मेन्स के लिये:

महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दे, स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वैधानिक रूप से गर्भपात संबंधी नियमों में बदलाव के लिये मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (Medical Termination of Pregnancy- MTP) अधिनियम, 1971 में संशोधन को मंज़ूरी दे दी है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971 में संशोधन करने के लिये मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020 को मंज़ूरी दी है। इस विधेयक को संसद के आगामी सत्र में पेश किया जाएगा।
  • यह विधेयक महिलाओं के लिये उपचारात्मक, मानवीय या सामाजिक आधार पर सुरक्षित और वैध गर्भपात सेवाओं का विस्तार करने के लिये लाया जा रहा है।
  • प्रस्तावित संशोधन का उद्देश्य कुछ उप-धाराओं को स्थानापन्न करना, मौजूदा गर्भपात कानून, 1971 में निश्चित शर्तों के साथ गर्भपात के लिये गर्भावस्था की ऊपरी सीमा बढ़ाने के उद्देश्य से कुछ धाराओं के तहत नए अनुच्छेद जोड़ना और सुरक्षित गर्भपात की सेवा एवं गुणवत्ता से किसी तरह का समझौता किये बगैर कठोर शर्तों के साथ समग्र गर्भपात देखभाल प्रणाली को पहले से और अधिक सख्ती से लागू करना है।
  • ध्यातव्य है कि हाल के दिनों में गर्भपात से संबंधित कई मामले सामने आए हैं जिनमें से अधिकतर गर्भपात की समयसीमा से संबंधित थे। इन मामलों पर न्यायालय द्वारा पीड़ित को राहत प्रदान की गई तथा सरकार से इन नियमों में बदलाव करने का आग्रह किया गया था।

प्रस्तावित संशोधन की मुख्य बातें

  • गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक गर्भपात कराने के लिये एक चिकित्सक की राय लेने का प्रस्ताव किया गया है और गर्भावस्था के 20 से 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने के लिये दो चिकित्सकों की राय लेना ज़रूरी होगा।
  • महिलाओं के गर्भपात के लिये गर्भावस्था की सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह किया जाएगा। इन बदलावों को MTP (Medical Termination of Pregnancy) नियमों में संशोधन के जरिये परिभाषित किया जाएगा। ध्यातव्य है कि इन महिलाओं में दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य असुरक्षित महिलाएँ (दिव्यांग महिलाएँ, नाबालिग) शामिल होंगी।
  • मेडिकल बोर्ड द्वारा जाँच में पाई गई भ्रूण संबंधी विषमताओं के मामले में गर्भावस्था की ऊपरी सीमा लागू नहीं होगी।
  • जिस महिला का गर्भपात कराया जाना है उसका नाम और अन्य जानकारियाँ उस वक्त के कानून के तहत निर्धारित किसी खास व्यक्ति के अलावा किसी और के सामने ज़ाहिर नहीं की जाएंगी।
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात सेवाएँ उपलब्ध कराने और चिकित्सा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के विकास को ध्यान में रखते हुए विभिन्न हितधारकों और मंत्रालयों के साथ वृहद् विचार-विमर्श के बाद गर्भपात कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया है।

गर्भपात कानून में बदलाव के निहितार्थ

  • MTP अधिनियम, 1971 को संशोधित करना महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है।
  • यह महिलाओं को बेहतर प्रजनन अधिकार प्रदान करेगा क्योंकि गर्भपात को महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण पहलू माना जाता है।
  • इस विधेयक के माध्यम से असुरक्षित गर्भपात से होने वाली मौतें और चोटें काफी हद तक रोकी जा सकती हैं, बशर्ते प्रशिक्षित चिकित्सकों द्वारा कानूनी तौर पर सेवाएँ प्रदान की जाएँ।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम (MTP Act) , 1971

वर्तमान गर्भपात कानून लगभग पाँच दशक पुराना है और इसके तहत गर्भपात की अनुमति के लिये गर्भधारण की अधिकतम अवधि 20 सप्ताह निर्धारित की गई है।

  • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971 की धारा 3 की उप-धारा (2) व उप-धारा (4) के अनुसार, कोई पंजीकृत डॉक्टर गर्भपात कर सकता है। यदि -

a. गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक की नहीं है।
b. गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक है लेकिन 20 सप्ताह से अधिक नहीं है, तो गर्भपात उसी स्थिति में हो सकता है जब दो डॉक्टर ऐसा मानते हैं कि:

1. गर्भपात नहीं किया गया तो गर्भवती महिला का जीवन खतरे में पड़ सकता है, या
2. अगर गर्भवती महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पहुँचने की आशंका हो, या
3. अगर गर्भाधान का कारण बलात्कार हो, या
4. इस बात का गंभीर खतरा हो कि अगर बच्चे का जन्म होता है तो वह शारीरिक या मानसिक विकारों का शिकार हो सकता है जिससे उसके गंभीर रूप से विकलांग होने की आशंका है, या
5. बच्चों की संख्या को सीमित रखने के उद्देश्य से दंपति ने जो गर्भ निरोधक या तरीका अपनाया हो वह विफल हो जाए।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस, पी.आई.बी.


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बर्थ टूरिज़्म के संदर्भ में अमेरिकी वीज़ा नियमों में बदलाव

प्रीलिम्स के लिये:

बर्थ टूरिज़्म, नागरिकता

मेन्स के लिये:

नागरिकता संबंधी मुद्दे, वीज़ा संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा गर्भवती महिलाओं को बर्थ टूरिज़्म (Birth Tourism) के लिये वीज़ा (Visa) देने संबंधी नियमों में बदलाव पर विचार किया जा है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • संयुक्त राज्य अमेरिका, बर्थ टूरिज़्म के माध्यम से अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने संबंधी मामलों पर अंकुश लगाने के लिये अमेरिका वीज़ा नियमों में बदलाव करने पर विचार कर रहा है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में बच्चों को जन्म देकर अपने बच्चों के लिये अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने का एक बर्थ टूरिज़्म उद्योग विकसित हो गया है।

बर्थ टूरिज्म (Birth Tourism):

बर्थ टूरिज़्म का आशय बच्चे को जन्म देने के उद्देश्य से किसी दूसरे देश की यात्रा करने से है। बर्थ टूरिज़्म का मुख्य कारण जन्म लेने वाले देश में बच्चे के लिये नागरिकता प्राप्त करना है।

बर्थ टूरिज़्म के संदर्भ में वीजा रणनीतियों में बदलाव के कारण

  • वीज़ा नियमों में बदलाव का मुख्य कारण उन विदेशी लोगों के आव्रजन को रोकना है है जो अमेरिका की धरती पर बच्चे को जन्म देकर अपने बच्चों के लिये स्वचालित स्थायी नागरिकता (Automatic Permanent Citizenship) हासिल करने के लिये वीज़ा का उपयोग करते हैं।
  • वीज़ा रणनीतियों में बदलाव के माध्यम से अमेरिका देश के भीतर आव्रजन को कम करना चाहता है, साथ ही इसके माध्यम से अमेरिका फर्स्ट की नीति को भी लक्षित करना चाहता है।

वीज़ा रणनीतियों में बदलाव के प्रभाव

  • B1/B2 टूरिस्ट वीज़ा अब उन विदेशियों को जारी नहीं किया जाएगा जो बर्थ टूरिज़्म के लिये संयुक्त राज्य में प्रवेश करने की मांग कर रहे हैं।
  • गर्भवती महिलाओं को यात्रा के लिये अमेरिका में बच्चे को जन्म देने के अतिरिक्त एक विशेष कारण प्रदान करने की आवश्यकता होगी, जैसे चिकित्सा आवश्यकता इत्यादि।
  • वर्तमान में अमेरिकी कानून विदेशी महिलाओं को जन्म देने के लिए अमेरिका की यात्रा करने पर प्रतिबंध नहीं लगाता है। हालांकि महिलाओं को यह साबित करने की आवश्यकता है कि वह चिकित्सीय एवं अन्य भुगतान करने में सक्षम हैं।

B1/B2 टूरिस्ट वीजा (B1/B2 Tourist Visa)

  • यह एक अस्थायी, गैर-आप्रवासी वीजा है, जो धारक को व्यवसाय और पर्यटन उद्देश्यों के लिये अमेरिका की यात्रा करने की अनुमति देता है।

अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने के तरीके

निम्नलिखित तरीकों से अमेरिकी नागरिकता प्राप्त की जा सकती है-

  • जन्म से:
    • अमेरिका की धरती में जन्म लेने पर।
    • जन्म के समय बच्चे के माता-पिता अमेरिकी नागरिक हों (यदि बच्चे का जन्म अमेरिका से इतर कहीं और हुआ हो तो)।
  • जन्म के बाद:
    • नागरिकता के लिये आवेदन के माध्यम से।
    • देशीयकरण के माध्यम से।

भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के तरीके

  • भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के पाँच तरीके हैं: जन्म, वंशानुगत, पंजीकरण, देशीयकरण और क्षेत्र समाविष्ट करने के आधार पर। ध्यातव्य है कि इन प्रावधानों को नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955 में भारतीय नागरिकता की समाप्ति से संबंधित तीन आधार निर्धारित किये गए हैं: नागरिकता का परित्याग, बर्खास्तगी और नागरिकता से वंचित किया जाना।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


शासन व्यवस्था

अवैध रेत खनन रोकने संबंधी सरकारी दिशा-निर्देश

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय हरित अधिकरण, अवैध रेत खनन रोकने हेतु सरकारी दिशा-निर्देश

मेन्स के लिये:

अवैध रेत खनन का पर्यावरण पर कुप्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अवैध रेत खनन के विनियमन की चुनौती को देखते हुए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) ने धारणीय दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

मुख्य बिंदु:

  • MoEFCC ने ये दिशा-निर्देश राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) द्वारा वर्ष 2018 में दिये गए आदेशों की श्रृंखला के क्रम में जारी किये हैं।
  • इन दिशा-निर्देशों को सतत् रेत प्रबंधन दिशा-निर्देश, 2016 (Sustainable Sand Management Guidelines, 2016) के साथ लागू किया जाना है।

क्या है दिशा-निर्देशों का सार?

  • प्रत्येक राज्य द्वारा नदियों का समय-समय पर सर्वेक्षण किया जाए।
  • सभी खनन क्षेत्रों की विस्तृत सर्वेक्षण रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप से रखते हुए ऑनलाइन उपलब्ध कराया जाए।
  • नदी के तल की स्थिति का बार-बार अध्ययन किया जाए।
  • ड्रोन द्वारा हवाई सर्वेक्षण एवं ज़मीनी सर्वेक्षण के माध्यम से खनन क्षेत्रों की लगातार निगरानी की जाए।
  • ज़िला स्तरीय समर्पित कार्य बलों की स्थापना की जाए।
  • रेत और अन्य नदी सामग्री की ऑनलाइन बिक्री प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए।
  • रात में भी नाइट-विज़न ड्रोन के माध्यम से खनन गतिविधियों की निगरानी की जाए।
  • मानसून के दौरान किसी भी नदी के किनारे खनन की अनुमति नहीं होगी।
  • ऐसे मामलों में जहाँ नदियाँ ज़िले की सीमा या राज्य की सीमा बनाती हैं उनमें सीमा को साझा करने वाले ज़िले या राज्य खनन गतिविधियों तथा खनन सामग्री की निगरानी के लिये संयुक्त टास्क फोर्स का गठन करेंगे और उपयुक्त जानकारी का प्रयोग करके ज़िला सर्वेक्षण रिपोर्ट (District Survey Reports- DSR) तैयार करेंगे।

जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट:

  • सतत् रेत प्रबंधन दिशा-निर्देश, 2016 के अनुसार खनन पट्टे देने से पहले एक महत्त्वपूर्ण प्रारंभिक कदम के रूप में खनन संबंधी ज़िला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने की आवश्यकता होती है।
  • यह देखा गया है कि राज्य और ज़िला प्रशासन द्वारा प्रस्तुत ज़िला सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रायः पर्याप्त एवं व्यापक स्तर की नहीं होती है जिससे अवैध खनन संबंधी कार्य जारी रहते हैं।
  • नए दिशा-निर्देश ज़िला सर्वेक्षण रिपोर्ट के लिये विस्तृत प्रक्रिया को सूचीबद्ध करेंगे।
  • पहली बार ज़िले में नदी तल सामग्री और अन्य रेत स्रोतों की जानकारी के लिये एक इन्वेंट्री का विकास किया जाएगा।

अन्य प्रावधान:

  • खान और खनिज (विनियमन और विकास) अधिनियम, 1957 [The Mines and Minerals (Development and Regulation) Act, 1957] राज्य सरकारों को खनिजों के अवैध खनन, परिवहन और भंडारण को रोकने के लिये नियम बनाने का अधिकार देता है।

दिशा-निर्देश जारी करने का उद्देश्य?

  • अवैध रेत खनन की निगरानी और जाँच करना।
  • इन दिशा-निर्देशों का मूल उद्देश्य खनिजों का संरक्षण, अवैध खनन की रोकथाम के लिये सुरक्षात्मक कदम उठाना।
  • रेत खनन को कानूनी रूप से पर्यावरण हेतु धारणीय और सामाजिक रूप से उत्तरदायी तरीके से सुनिश्चित करना।
  • नदी की साम्यावस्था एवं इसके प्राकृतिक पर्यावरण के लिये पारिस्थितिकी तंत्र के जीर्णोद्धार तथा प्रवाह को सुनिश्चित करना।
  • तटवर्ती क्षेत्रों के अधिकारों तथा आवास की पुनर्स्थापना और पर्यावरण मंज़ूरी की प्रक्रिया को मुख्यधारा में शामिल करना।

अवैध खनन का पर्यावरण पर प्रभाव:

  • नदी धारा के साथ-साथ अत्यधिक रेत खनन नदी के क्षरण का कारण बन सकता है।
  • यह नदी के तल को गहरा कर देता है, जिसके कारण तटों का कटाव बढ़ सकता है।
  • धारा की तली तथा तटों से रेत (बालू) हटने के कारण नदियों तथा ज्वारनदमुख की गहराई बढ़ जाती है जिससे नदी के मुहानों तथा तटीय प्रवेशिकाओं का विस्तार हो जाता है।
  • इसके कारण नज़दीकी समुद्र से खारे पानी का प्रवेश भी हो सकता है। अत्यधिक खनन के कारण समुद्र के जलस्तर में वृद्धि का प्रभाव नदियों के ऊपर अधिक पड़ेगा।
  • अत्यधिक बालू खनन पुलों, तटों तथा नज़दीकी संरचनाओं के लिये खतरा पैदा कर सकता है।
  • यह संलग्न भूमिगत जल परितंत्र को भी प्रभावित करता है।
  • अत्यधिक धारारेखीय खनन के कारण जलीय तथा तटवर्ती आवासों को नुकसान पहुँचता है। इसके प्रभाव से नदी तल का क्षरण, नदी तल का कठोर हो जाना, नदी तल के समीप जल स्तर में कमी होना तथा जलग्रीवा की अस्थिरता इत्यादि शामिल हैं।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी ये दिशा-निर्देश आशाजनक प्रकृति के हैं। इनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति, सख्त विनियमन के साथ-साथ विभिन्न हितधारकों को शामिल किये जाने की आवश्यकता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

आर्द्रभूमि

प्रीलिम्स के लिये:

MoEFCC द्वारा घोषित नए आर्द्रभूमि स्थल

मेन्स के लिये:

रामसर कन्वेंशन का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

भारत के 10 नए स्थलों को आर्द्रभूमि (wetland) के रूप में मान्यता दी गई है।

मुख्य बिंदु:

  • इन 10 स्थलों को रामसर कन्वेंशन के तहत मान्यता दी गई है जो कि आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
  • भारत में कुल आर्द्रभूमियों की संख्या अब 37 हो गई है जो 1,067,939 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हैं।
  • घोषित नए स्थलों में महाराष्ट्र में पहली बार किसी स्थान को आर्द्रभूमि घोषित किया गया है।
  • अन्य 27 रामसर स्थल राजस्थान, केरल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, गुजरात, तमिलनाडु और त्रिपुरा में स्थित हैं।

नए आर्द्रभूमि स्थल:

घोषित नए 10 आर्द्रभूमि स्थलों में महाराष्ट्र का 1 , पंजाब के 3 तथा उत्तर प्रदेश के 6 स्थल शामिल हैं, जो इस प्रकार हैं -

  1. नंदुर मदमहेश्वर (Nandur Madhameshwar), महाराष्ट्र
  2. केशोपुर-मियाँ (Keshopur-Mian), पंजाब
  3. ब्यास कंज़र्वेशन रिज़र्व (Beas Conservation Reserve), पंजाब
  4. नांगल (Nangal), पंजाब
  5. नवाबगंज (Nawabganj), उत्तर प्रदेश
  6. पार्वती आगरा (Parvati Agara), उत्तर प्रदेश
  7. समन (Saman), उत्तर प्रदेश
  8. समसपुर (Samaspur), उत्तर प्रदेश
  9. सांडी (Sandi) आर्द्रभूमि, उत्तर प्रदेश
  10. सरसई नवार (Sarsai Nawar), उत्तर प्रदेश

क्या होती हैं आर्द्रभूमि:

आर्द्रभूमि-

  • यह जल एवं स्थल के मध्य का संक्रमण क्षेत्र होता है।
  • आर्द्रभूमि जैव विविधता की दृष्टि से एक समृद्ध क्षेत्र होता है।
  • इन्हें मुख्य रूप से दो वर्गों में विभक्त किया जाता है-
    • सागर तटीय आर्द्रभूमि
    • अंत:स्थलीय आर्द्रभूमि

रामसर कन्वेंशन-

  • रामसर कन्वेंशन 2 फरवरी, 1971 में ईरान के शहर रामसर में अस्तित्व में आया।
  • यह अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों के संरक्षण के उद्देश्य से विश्व के राष्ट्रों के बीच पहली संधि है।
  • यह संधि विश्व स्तर पर हो रहे आर्द्रभूमियों के नुकसान को रोकने और उनको संरक्षित करने की दिशा में प्रयासरत है।
  • भारत 1 फरवरी, 1982 को इस कन्वेंशन में शामिल हुआ।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम के तहत ईपीआर

प्रीलिम्स के लिये:

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016

मेन्स के लिये:

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम के तहत ईपीआर

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (National Green Tribunal-NGT) से कहा है कि ई-कॉमर्स कंपनी (अमेज़न और फ्लिपकार्ट) को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत अपनी विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी (Extended Producer Responsibility-EPR) को पूरा करने की आवश्यकता है।

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, प्रयोग किये गए बहु-स्तरीय प्लास्टिक पाउच और पैकेजिंग प्लास्टिक के संग्रहण की प्राथमिक ज़िम्मेदारी उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों की है जो बाज़ार में उत्पादों को पेश करते हैं।
    • उन्हें अपने उत्पादों की पैकेजिंग में प्रयोग किये प्लास्टिक कचरे को वापस इकट्ठा करने के लिये एक प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता है।

विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी

(Extended Producer Responsibility-EPR):

  • यह एक नीतिगत दृष्टिकोण है जिसके तहत उत्पादकों को उपभोक्ता द्वारा प्रयोग किये गए उत्पादों के उपचार या निपटान के लिये एक महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी (वित्तीय/भौतिक) दी जाती है।
  • सैद्धांतिक तौर पर इस तरह की ज़िम्मेदारी सौंपने से उत्पादन स्रोत से कचरे को रोकने, पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों को बढ़ावा देने और सार्वजनिक पुनर्चक्रण एवं सामग्री प्रबंधन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलती है।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम

(Plastic Waste Management Rules)

  • इन नियमों को वर्ष 2016 में तैयार किया गया था, जिनमें उत्पादों से उत्पन्न कचरे को अपने उत्पादकों (यानी विनिर्माताओं या प्लास्टिक थैलों के आयातकों, बहु स्तरीय पैकेजिंग या इस तरह की अन्य पैकेजिंग करने वाले उत्पादक) और ब्रांड मालिकों को एकत्र करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी।
    • उन्हें निर्धारित समय सीमा के भीतर प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये योजना/प्रणाली के निर्माण हेतु स्थानीय निकायों से संपर्क करना होगा।
  • इन नियमों का विस्तार गाँवों में भी किया गया है। पहले ये नियम नगरपालिकाओं तक ही सीमित थे।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को थर्मोसेट प्लास्टिक (इस प्लास्टिक का पुनर्चक्रण करना मुश्किल होता है) के लिये दिशा-निर्देश तैयार करने को कहा गया है।
    • इससे पहले थर्मोसेट प्लास्टिक के लिये कोई विशेष प्रावधान नहीं था।
    • गैर-पुनर्नवीनीकरण बहु स्तरीय प्लास्टिक का विनिर्माण और उपयोग करने वालों को दो वर्षों में अर्थात् वर्ष 2018 तक सूचीबद्ध किया जाना था।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 में संशोधन:

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत नियमों में वर्ष 2018 में संशोधन किया गया था जिसमें बहु स्तरीय प्लास्टिक के अलावा अन्य प्लास्टिक के प्रकारों पर चरणबद्ध तरीके से जोर देना है जो गैर पुनर्चक्रण या गैर-ऊर्जा प्राप्ति योग्य या बिना वैकल्पिक उपयोग के साथ हैं।
    • संशोधित नियमों में निर्माता/आयातक/ब्रांड के मालिक के पंजीकरण के लिये एक केंद्रीय पंजीकरण प्रणाली का भी प्रावधान है।
    • संशोधित नियमों में यह बताया गया है कि पंजीकरण स्वचालित होना चाहिये और उत्पादकों, रिसाइकलर्स और निर्माताओं के लिये व्यापार में सुविधा को ध्यान में रखना चाहिये।
    • जबकि दो से अधिक राज्यों में उपस्थिति वाले उत्पादकों के लिये एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री निर्धारित की गई है और एक या दो राज्यों के भीतर काम करने वाले छोटे उत्पादकों/ ब्रांड मालिकों के लिये एक राज्य-स्तरीय पंजीकरण निर्धारित किया गया है।

आगे की राह

  • भारत में प्लास्टिक पैकेजिंग से उत्पन्न कुल प्लास्टिक कचरा 40% से अधिक है और यह महत्त्वपूर्ण है कि ई-खुदरा विक्रेताओं को दिशा निर्देश जारी किये जाएँ कि वे प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्री का उपयोग करना बंद करें और पर्यावरण के अनुकूल पैकेजिंग सामग्री के विकल्प को अपनाएँ।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 29 जनवरी, 2020

असम की झाँकी को प्रथम पुरस्कार

गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित परेड में असम की झाँकी को सर्वश्रेष्ठ झाँकी के रूप में चुना गया है। असम की झाँकी का विषय "अद्वितीय शिल्प कौशल और संस्कृति" (Land of Unique Craftsmanship and Culture) था, जिसमे बाँस और बेंत से निर्मित शिल्प को दर्शाया गया और झाँकी के साथ क्षत्रिय नर्तकियों द्वारा ‘भोर्तल नृत्य’ प्रस्तुत किया गया था। इसके अलावा ओडिशा और उत्तर प्रदेश की झाँकियाँ दूसरे स्थान पर रहीं। ओडिशा की झाँकी में भगवान लिंगराज की रूकना रथ यात्रा प्रदर्शित की गई थी, जबकि उत्तरप्रदेश की झाँकी में राज्‍य की सांस्‍कृतिक और धार्मिक विरासत को दर्शाया गया था। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) और जल शक्ति मिशन की झाँकियों को मंत्रालयों एवं विभागों की झाँकियों में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। वहीं केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) को उसकी झाँकी ‘कश्‍मीर से कन्‍याकुमारी‘ के लिये विशेष पुरस्‍कार दिया गया।

हिंदी वर्ड ऑफ द ईयर

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने ‘संविधान’ शब्द को वर्ष 2019 का हिंदी वर्ड ऑफ द ईयर चुना है। ऑक्सफोर्ड ने जनवरी 2020 में हिंदीभाषियों से इस संदर्भ में सुझाव माँगा था, जिसके पश्चात् उन्हें कई प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं। हिंदी भाषा विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श करने के पश्चात् ‘संविधान’ शब्द का चुनाव किया गया, क्योंकि यह वर्ष 2019 के स्वरूप को व्यक्त करता है। शाब्दिक अर्थ में संविधान “किसी राष्ट्र या संस्था द्वारा निर्धारित किये गए नियम होते हैं जिनके आधार पर उस राष्ट्र या संस्था का सुचारू रूप से संचालन किया जाता है।”

सरदार वल्‍लभ भाई पटेल केंद्र

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गुजरात के केवडिया में स्‍टेच्‍यू ऑफ यूनिटी के पास सरदार वल्‍लभ भाई पटेल केंद्र की आधारशिला रखी है। इस केंद्र का उद्देश्‍य क्षमता निर्माण के विभिन्‍न कार्यक्रमों के जरिये युवाओं, किसानों और स्‍वंय सहायता समूहों को प्रशिक्षण देना है। इस आवासीय केंद्र में एक समय पर लगभग 100 युवाओं के ठहरने सहित सभी आधुनिक बुनियादी ढाँचागत सुविधाएँ उपलब्‍ध होंगी।

तरनजीत सिंह संधू

तरनजीत सिंह संधू को अमेरिका में भारत का नया राजदूत नियुक्त किया गया है। वर्तमान में वे कोलंबो स्थित भारतीय दूतावास में कार्यरत हैं। अमेरिका में वर्तमान राजदूत हर्षवर्धन शृंगला भारत के अगले विदेश सचिव होंगे, जो 31 जनवरी को विजय गोखले का स्थान लेंगे। तरनजीत सिंह संधू इससे पूर्व जुलाई 2013 से जनवरी 2017 तक वाशिंगटन डीसी स्थित भारतीय दूतावास में मिशन के उप प्रमुख के रूप में कार्य कर चुके हैं। 23 जनवरी, 1963 को पंजाब में जन्मे तरनजीत सिंह संधू वर्ष 1988 बैच के IFS अधिकारी हैं।


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