डेली न्यूज़ (28 Dec, 2020)



सुशासन दिवस

चर्चा में क्यों?

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर 25 दिसंबर को प्रतिवर्ष सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है।

  • इसका उद्देश्य भारत के नागरिकों के मध्य सरकार की जवाबदेही के प्रति जागरूकता पैदा करना है।

प्रमुख बिंदु:

  • शासन:
    • यह निर्णय लेने तथा इन निर्णयों के कार्यान्वयन की एक प्रक्रिया है।
    • शासन शब्द का उपयोग कई संदर्भों में किया जा सकता है जैसे कि कॉर्पोरेट प्रशासन, अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन, राष्ट्रीय प्रशासन और स्थानीय शासन।

सुशासन के आठ लक्षण (संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्णित):

  • भागीदारी:
    • लोगों द्वारा सीधे या वैध मध्यवर्ती संस्थानों के माध्यम से भागीदारी जो कि उनके हितों का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
    • निर्णय लेने में लोगों को स्वतंत्र होना चाहिये। 
  • विधि का शासन:
    • कानूनी ढाँचा, विशेष रूप से मानव अधिकारों से संबंधित कानून सभी पर निष्पक्ष रूप से लागू होना चाहिये।
  • पारदर्शिता:
    • सूचना के मुक्त प्रवाह को लेकर पारदर्शिता सुनिश्चित की जाती है ताकि प्रक्रियाओं, संस्थाओं और सूचनाओं तक लोगों की सीधी पहुँच हो और उन्हें इनको समझने तथा निगरानी करने के लिये पर्याप्त जानकारी प्रदान की जाती है।
  • जवाबदेही:
    • संस्थाओं और प्रक्रियाओं द्वारा सभी हितधारकों को एक उचित समयसीमा के भीतर सेवा सुलभ कराने का प्रयास किया जाता है।
  • आम सहमति:
    • सुशासन के लिये समाज में विभिन्न हितों को लेकर मध्यस्थता की आवश्यकता होती है, ताकि समाज में व्यापक सहमति बन सके कि यह पूरे समुदाय के सर्वोत्तम हित में है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
  • इक्विटी:
    • सभी समूहों, विशेष रूप से सबसे कमज़ोर वर्ग की स्थिति में सुधार करने या उसे बनाए रखने का अवसर प्रदान करना।
  • प्रभावशीलता और दक्षता:
    • संसाधन और संस्थान उन परिणामों को सुनिश्चित करते हैं जो संसाधनों का सबसे अच्छा उपयोग करते हुए ज़रूरतों को पूरा सकें।
  • जवाबदेही:
    • सरकार में निर्णय लेने वाले निजी क्षेत्र और नागरिक समाज संगठन जनता के साथ-साथ संस्थागत हितधारकों के प्रति जवाबदेह होते हैं।

Good-Governanace

भारत में सुशासन के मार्ग में आने वाली बाधाएँ:

  • महिला सशक्तीकरण में कमी: 
    • सरकारी संस्थानों और अन्य संबद्ध क्षेत्रों में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है

भ्रष्टाचार:

  • भारत में उच्च स्तर के भ्रष्टाचार को शासन की गुणवत्ता के सुधार के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में माना जाता है।
  • एक नागरिक को समय पर न्याय पाने का अधिकार है, लेकिन कई कारक हैं, जिसके कारण एक सामान्य व्यक्ति को समय पर न्याय नहीं मिलता है। इस तरह के एक कारण के रूप में न्यायालयों में कर्मियों और संबंधित सामग्री की कमी है।

प्रशासनिक शक्तियों का केंद्रीकरण:

  • निचले स्तर की सरकारें केवल तभी कुशलता से कार्य कर सकती हैं जब वे ऐसा करने के लिये सशक्त हों। यह विशेष रूप से पंचायती राज संस्थानों के लिये प्रासंगिक है जो वर्तमान में निधियों की अपर्याप्तता के साथ-साथ संवैधानिक रूप से सौंपे गए कार्यों को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना कर रही हैं।

राजनीति का अपराधीकरण

  • राजनीतिक प्रक्रिया का अपराधीकरण और राजनेताओं, सिविल सेवकों तथा व्यावसायिक घरानों के बीच साँठगाँठ सार्वजनिक नीति निर्माण और शासन पर बुरा प्रभाव डाल रहा है।

गुड गवर्नेंस इंडेक्स

(Good Governance Index-GGI):

  • GGI को देश में शासन की स्थिति निर्धारित करने के लिये कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है।
  • यह राज्य सरकार और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों के प्रभाव का आकलन करता है।

राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना:

(National e-Governance Plan): 

  • इसका उद्देश्य "आम आदमी की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये ‘सामान्य सेवा वितरण आउटलेट्स’ के माध्यम से सस्ती कीमत पर सभी सरकारी सेवाओं को स्थानीय स्तर पर सुलभ बनाना और ऐसी सेवाओं की दक्षता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है।" 

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

(Right to Information Act, 2005): 

  • यह शासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में एक प्रभावी भूमिका निभाता है।
  • अन्य पहल: नीति आयोग की स्थापना, मेक इन इंडिया कार्यक्रम, लोकपाल आदि।

अटल बिहारी वाजपेयी

(Atal Bihari Vajpayee):

Atal-Bihari-Vajpayee

  • अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को ग्वालियर (अब मध्य प्रदेश का एक हिस्सा) में हुआ था।
  • उन्होंने वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया जिसने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का अंत कर दिया।
  • वर्ष 1947 में वाजपेयी ने दीनदयाल उपाध्याय के समाचार पत्रों के लिये एक पत्रकार के रूप में  राष्ट्रधर्म (एक हिंदी मासिक), पांचजन्य (एक हिंदी साप्ताहिक) और दैनिक समाचार पत्रों-स्वदेश और वीर अर्जुन में काम करना शुरू किया। बाद में श्यामा प्रसाद मुखर्जी से प्रभावित होकर वाजपेयी जी वर्ष 1951 में भारतीय जनसंघ में शामिल हो गए।
  • वह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे और वर्ष 1996 तथा 1999 में दो बार इस पद के लिये चुने गए थे।
  • एक सांसद के रूप में वाजपेयी को वर्ष 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद के रूप में पंडित गोविंद बल्लभ पंत पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जो उन्हें "सभी सांसदों के लिये एक रोल मॉडल के रूप में परिभाषित करता है।
  • उन्हें  वर्ष 2015 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से और वर्ष 1994 में दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

स्रोत- द हिंदू


BBX11 जीन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (Indian Institute of Science Education and Research) ने BBX11 जीन को मान्यता दी है जो फसलों को हरा बनाए रखने में मदद करता है।

प्रमुख बिंदु

 BBX11 जीन के विषय में:

  • शोधकर्त्ताओं ने एक ऐसे तंत्र की खोज की है जहाँ सम्मुख-स्थिति में दो प्रोटीन BBX11 जीन की अनुकूलतम सीमा को बनाए रखने के लिये इसे विनियमित करते हैं।
  • BBX11 जीन, पौधों द्वारा संश्लेषित प्रोटोक्लोरोफिलाइड (Protochlorophyllide) की मात्रा को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • प्रोटोक्लोरोफिलाइड, क्लोरोफिल के संश्लेषण में एक मध्यवर्ती का काम करता है।
    • पौधों में इस जीन की मात्रा कम होने से सूर्य का प्रकाश आसानी से हरे रंग में परिवर्तित नहीं हो पाता और प्रोटोक्लोरोफिल की मात्रा अधिक होने पर पौधों में प्रकाश-विरंजन (Photobleaching) की घटना देखने को मिलती है।
      • प्रकाश-विरंजन की घटना एक वर्णक (Pigment) के कारण होने वाली रंग की हानि है।
    • प्रोटोक्लोरोफिलाइड संश्लेषित की मात्रा को क्लोरोफिल में बदलने के लिये उपलब्ध विभिन्न एंजाइमों का आनुपातिक होना आवश्यक है।
    • पौधों द्वारा संश्लेषित प्रोटोक्लोरोफिलाइड की मात्रा को विनियमित किया जाना बहुत ज़रूरी होता है।

क्लोरोफिल:

  • क्लोरोफिल; पौधों, शैवाल और साइनोबैक्टीरिया में उपस्थित एक हरा वर्णक होता है। यह सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करता है तथा इसका उपयोग कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) व जल की सहायता से कार्बोहाइड्रेट को संश्लेषित करने में करता है।
    • पौधों में क्लोरोफिल का संश्लेषण एक लंबी और कई चरणों वाली  प्रक्रिया द्वारा होता है।
  • जब बीज अंकुरित होकर मिट्टी से बाहर निकलता है तो वृद्धि व विकास हेतु वह क्लोरोफिल का संश्लेषण करता है।
    • अंधेरे में क्लोरोफिल के त्वरित संश्लेषण को सरल बनाने के लिये पौधे क्लोरोफिल पर दबाव डालते हैं जिसे 'प्रोटोक्लोरोफिलाइड' (Protochlorophyllide) नाम से जाना जाता है और नीले प्रकाश में यह लाल दिखाई देता है।
  • जैसे ही पौधा मिट्टी के बाहर प्रकाश में आता है वैसे ही प्रकाश-निर्भर एंजाइम प्रोटोक्लोरोफिलाइड को क्लोरोफिल में बदल देते हैं।

निहितार्थ:

  • भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में कृषि क्षेत्र के लिये यह खोज अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इसके परिणामस्वरूप प्रायः बदलते मौसमी परिस्थितियों में पौधों की प्रगति के अनुकूलन के वर्तमान परिणामों में सहायता मिल सकती है।
    • भारत के कई राज्यों (विशेषकर महाराष्ट्र) में तेज़ी से बदलती मौसमी परिस्थितियों के कारण फसलों को काफी नुकसान होता है।
    • यह नुकसान कई बार किसान समुदाय के लिये गंभीर संकट पैदा करता है।
      • फसल के नष्ट होने के प्रमुख कारण: इन कारणों में गंभीर सूखा, अधिक तापमान और तेज़ प्रकाश का होना शामिल है।
  • मिट्टी से बाहर निकलने वाले नए अंकुर प्रकाश के उच्च विकिरण के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। यह अध्ययन ऐसी तनावपूर्ण परिस्थितियों में पौधों की वृद्धि में सहायक हो सकता है।

प्रकाश संश्लेषण

Photosynthesis

  • प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा हरे पौधे और कुछ अन्य जीव प्रकाशीय ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलते हैं।
  • हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करते हैं। इस ऊर्जा की सहायता से वे जल, कार्बन डाइऑक्साइड तथा कई खनिजों को ऑक्सीजन व ऊर्जा से समृद्ध कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित करते हैं।

equation

  • प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक: विभिन्न आंतरिक (पौधों के) और बाह्य कारक प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित करते हैं।
    • आंतरिक कारकों में पत्तियों की संख्या, आकार, आयु, अभिविन्यास (Orientation), पर्णमध्यक (Mesophyll) कोशिकाएँ, आंतरिक भाग में CO2 का संकेंद्रण व क्लोरोफिल की मात्रा आदि प्रमुख हैं।
    • बाह्य कारकों में प्रमुखतः सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता, तापमान, CO2 का संकेद्रण और जल शामिल हैं।
      • उदाहरण के लिये एक हरा पत्ता, इष्टतम प्रकाश और CO2 की  उपस्थिति के बावजूद तापमान के बहुत कम होने पर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं कर सकता है।

महत्त्व:

  • पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने में प्रकाश संश्लेषण के महत्त्व को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।
  • प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बंद हो जाने से पृथ्वी पर भोजन या अन्य कार्बनिक पदार्थों की उपलब्धता बहुत जल्द ही खत्म हो जाएगी।
  • अधिकांश जीव विलुप्त हो जाएंगे तथा समय के साथ पृथ्वी के वातावरण से गैसीय ऑक्सीजन लगभग समाप्त हो जाएगा।
  • पौधों द्वारा लाखों वर्ष पूर्व से ही प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है जिसकी वज़ह से जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) की उपलब्धता संभव हुई है और जो वर्तमान में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।

स्रोत: द हिंदू


आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना सेहत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा एक वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना-सेहत (Ayushman Bharat PMJAY-SEHAT) को लॉन्च किया है। इस योजना का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के सभी निवासियों के लिये स्वास्थ्य बीमा सुविधा उपलब्ध कराना है।

प्रमुख बिंदु:

  • आयुष्मान भारत पीएम-जेएवाई-सेहत:

    • इस योजना में ‘सेहत’ से तात्पर्य ‘स्वास्थ्य और टेलीमेडिसिन के लिये सामाजिक प्रयास’ (Social Endeavour for Health and Telemedicine-SEHAT) है।
    • यह योजना नि: शुल्क बीमा कवर प्रदान करती है। इसके तहत प्रत्येक परिवार को 5 लाख रुपए तक का आर्थिक कवर प्रदान किया जाएगा जिसे परिवार के किसी एक या सभी सदस्यों के लिये प्रयोग किया जा सकता है। अर्थात् इसके अंतर्गत एक ही प्लान के तहत पूरे परिवार का बीमा किया जाता है।
    • यह योजना प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) के साथ मिलकर कार्य करेगी।
  • लाभ:

    • जम्मू- कश्मीर के निवासियों के लिये पूर्ण कवरेज:
      • गौरतलब है कि वर्तमान में जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश से लगभग 6 लाख परिवारों को ही आयुष्मान भारत योजना का लाभ मिल पा रहा है परंतु पीएम-जेएवाई-सेहत के लागू होने के बाद केंद्रशासित प्रदेश के सभी 21 लाख नागरिकों को समान लाभ प्राप्त हो सकेगा।
    • उपचार सुलभता:
      • इस योजना के लागू होने के बाद जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिये उपचार का विकल्प केवल J&K के सरकारी या निजी अस्पतालों तक सीमित नहीं होगा , बल्कि वे इस योजना के तहत जोड़े गए देश भर के किसी भी अस्पताल में उपचार के लिये जा सकेंगे।
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज:
      • इस योजना के माध्यम से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज सुनिश्चित करने के साथ-साथ सभी व्यक्तियों और समुदायों को गुणवत्ता पूर्ण तथा वहनीय आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएँ सुनिश्चित करने एवं वित्तीय जोखिम के प्रति संरक्षण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
        • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) में स्वास्थ्य संवर्द्धन से लेकर रोकथाम, उपचार, पुनर्वास और उपशामक देखभाल तक आवश्यक, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं का पूरा स्पेक्ट्रम शामिल है।
        • UHC सभी को स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाता है। साथ ही यह लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च के बोझ से बचाता है, जो उनके लिये गरीबी में फँसे रहने के जोखिम को भी कम करता है।
  • आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना:

    • PMJAY विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है, जो पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित है। इसके तहत प्रत्येक लाभार्थी परिवार को सार्वजनिक व निजी सूचीबद्ध अस्पतालों में माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य उपचार के लिये प्रति वर्ष 5,00,000 रुपए का बीमा कवर प्रदान किया जाता है।
    • इस योजना के तहत अस्पताल में भर्ती होने और बाद के खर्च (जैसे चिकित्सीय जाँच तथा दवाओं) को भी शामिल किया गया है।

स्रोत: पीआईबी


मणिपुर में इनर-लाइन परमिट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने मणिपुर में विभिन्न विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करते हुए राज्य में इनर-लाइन परमिट (ILP) प्रणाली के महत्त्व पर प्रकाश डाला।

  • इन विकास परियोजनाओं में थौबल बहुउद्देशीय परियोजना (थौबल बाँध) और इंफाल में एकीकृत कमान तथा नियंत्रण केंद्र आदि शामिल हैं।
    • थौबल बहुउद्देशीय परियोजना को पहली बार योजना आयोग द्वारा वर्ष 1980 में स्वीकार किया गया था और परियोजना की मूल लागत 47.25 करोड़ रुपए थी।
    • हालाँकि वर्ष 2014 तक इस संबंध में कुछ नहीं हो सका और परियोजना कागज़ पर ही रही।
    • यह मणिपुर नदी की सहायक थौबल नदी पर स्थित है और इससे 35,104 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी।

प्रमुख बिंदु

  • मणिपुर के लोगों द्वारा लंबे समय से इनर-लाइन परमिट (ILP) की मांग की जा रही थी, जिसे देखते हुए नगालैंड के दिमारपुर ज़िले के साथ संपूर्ण मणिपुर को इनर-लाइन परमिट (ILP) प्रणाली के दायरे में लाया गया था।
    • नगालैंड का दीमापुर ज़िला अभी तक इनर-लाइन परमिट व्यवस्था से बाहर था क्योंकि यह राज्य का एक महत्त्वपूर्ण वाणिज्यिक शहर है एवं यहाँ मिश्रित जनसंख्या निवास करती है, जिसे प्रायः ‘मिनी इंडिया’ भी कहा जाता है।
  • पूर्वोत्तर में कई समूह इनर-लाइन परमिट व्यवस्था को अवैध आप्रवासियों के प्रवेश के विरुद्ध ढाल के रूप में देखते हैं।
  • नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और मिज़ोरम को ILP के कारण ही नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019 के प्रावधानों से छूट दी गई थी।
    • इस अधिनियम के तहत अवैध प्रवासियों के लिये नागरिकता से संबंधित प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों तथा ‘इनर-लाइन परमिट’ प्रणाली के तहत आने वाले क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे।
    • दिसंबर 2019 में मेघालय विधानसभा ने राज्य में ‘इनर-लाइन परमिट’ प्रणाली को लागू करने के लिये एक प्रस्ताव अपनाया था और केंद्र से राज्य को इस प्रणाली के तहत शामिल करने का आग्रह किया था।

‘इनर-लाइन परमिट’ प्रणाली

  • ‘बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन एक्ट, 1873’ के तहत कार्यान्वित ‘इनर-लाइन परमिट’ एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज़ होता है, जो कि एक सीमित अवधि के लिये संरक्षित/प्रतिबंधित क्षेत्र में भारतीय नागरिकों को जाने अथवा रहने की अनुमति देता है।
    • इस अधिनियम को ब्रिटिश काल के दौरान ब्रिटिश सरकार ने अपने वाणिज्यिक हितों की रक्षा करने के लिये लागू किया था, ताकि इन प्रतिबंधित क्षेत्रों के भीतर अन्य भारतीय क्षेत्रों से आने वाले लोगों को व्यापार करने से रोका जा सके।
    • इस प्रणाली के तहत प्रतिबंधित क्षेत्रों और शेष भारत को दो हिस्सों में विभाजित करने के लिये एक काल्पनिक रेखा बनाई गई है, जिसे ‘इनर-लाइन’ के रूप में जाना जाता है, इसका उद्देश्य शेष भारत के किसी भी अन्य नागरिक को बिना परमिट के प्रतिबंधित क्षेत्र में जाने से रोकना है।
    • 1873 के विनियमन की धारा 2 के तहत ‘इनर-लाइन परमिट’ पूर्वोत्तर के केवल तीन राज्यों (मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड) पर लागू होता था।
    • 11 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद मणिपुर देश का चौथा ऐसा राज्य बना जहाँ ILP प्रणाली लागू होती है।
  • इसके तहत देश के अन्य क्षेत्रों से आने वाले लोगों को अधिसूचित राज्यों में प्रवेश करने हेतु एक विशेष परमिट की आवश्यकता होती है, जिसे प्राप्त करना अनिवार्य होता है।
  • यह पूर्णतः यात्रा के प्रयोजन से संबंधित राज्य सरकार द्वारा जारी किया जाता है।
  • विदेशी पर्यटकों को इन राज्यों में जाने के लिये एक संरक्षित क्षेत्र परमिट (PAP) की आवश्यकता होती है, जो कि घरेलू पर्यटकों को जारी किये जाने वाले ‘इनर-लाइन परमिट’ से भिन्न होता है।
    • विदेशी नागरिक (संरक्षित क्षेत्र) आदेश, 1958 के तहत ‘इनर-लाइन’ और देश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के बीच पड़ने वाले सभी क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।
    • एक विदेशी नागरिक को आमतौर पर किसी संरक्षित/प्रतिबंधित क्षेत्र में जाने की अनुमति तब तक नहीं दी जाती है, जब तक कि सरकार इस तथ्य से संतुष्ट नहीं हो जाती है कि वह विदेशी नागरिक विशिष्ट कारणों से इन क्षेत्रों की यात्रा कर रहा है।

भारत के साथ मणिपुर का विलय

  • ध्यातव्य है कि 15 अगस्त, 1947 से पूर्व ही शांतिपूर्ण वार्ता द्वारा अधिकांश रियासतों के शासकों ने ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसन’ पर हस्ताक्षर कर दिये थे, जिसका अर्थ था कि वे रियासतें भारत संघ का हिस्सा बनने के लिये सहमत हो गई हैं।
  • आज़ादी के समय मणिपुर के महाराजा बोधचंद्र सिंह ने भी मणिपुर की आंतरिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिये ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसन’ पर हस्ताक्षर किये थे।
  • जनमत के दबाव में महाराजा ने जून 1948 में मणिपुर में चुनाव कराए और राज्य एक संवैधानिक राजतंत्र बन गया।
    • इस प्रकार मणिपुर सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव कराने वाला भारत का पहला भाग था।
  • भारत के साथ विलय को लेकर मणिपुर की नवनिर्वाचित विधानसभा में अत्यधिक मतभेद थे। भारत सरकार ने सितंबर 1949 में मणिपुर विधानसभा के परामर्श के बिना एक विलय पत्र पर हस्ताक्षर कराने में सफलता प्राप्त की थी।
  • 21 जनवरी, 1972 को मणिपुर मेघालय और त्रिपुरा पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम, 1971 के तहत पूर्ण विकसित राज्य बन गए।

स्रोत: द हिंदू


DTH सेवाओं में 100% FDI

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सूचना और प्रसारण मंत्रालय (Information and Broadcasting- I&B) ने डायरेक्ट-टू-होम (Direct-to-Home- DTH) प्रसारण सेवाओं के लिये संशोधित दिशा-निर्देशों को मंज़ूरी दे दी है, जिनमें 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के साथ-साथ लाइसेंस की अवधि को भी बढ़ाकर 20 वर्ष कर दिया गया है।

  • डायरेक्ट-टू-होम (DTH) ब्रॉडकास्टिंग सर्विस उपग्रह प्रणाली का उपयोग करके केयू बैंड (Ku Band) में मल्टी चैनल टीवी कार्यक्रमों के वितरण से संबंधित है, जो ग्राहकों के घरों में सीधे टीवी सिग्नल प्रदान  करता है।
    • Ku Band, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का एक हिस्सा है। यह उपग्रह प्रसारण संचार के क्षेत्र में इसके उपयोग के लिये जाना जाता है। आवृत्ति के संदर्भ में Ku Band मध्य में पड़ता है, जो रेडियोफ्रीक्वेंसी के 12-18 गीगाहर्ट्ज़ (GHz) की अनुमानित सीमा का उपयोग करता है।

प्रमुख बिंदु:

लाइसेंस अवधि:

  • वर्तमान में 10 वर्षों की तुलना में 20 वर्ष की अवधि के लिये लाइसेंस जारी किये जाएंगे और 10 वर्ष की अवधि के लिये इसका नवीनीकरण किया जाएगा।

लाइसेंस शुल्क:

  • लाइसेंस शुल्क को 10% सकल राजस्व ( Gross Revenue-GR) से समायोजित सकल राजस्व (Adjusted Gross Revenue- AGR) के 8% तक संशोधित किया गया है, जिसकी गणना GR में से GST की कटौती करके की जाएगी।
    • समायोजित सकल राजस्व (AGR) दूरसंचार विभाग ( Department of Telecommunications- DoT) द्वारा टेलीकॉम ऑपरेटरों पर लगाया जाने वाला लाइसेंस शुल्क है।

    • इसे स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क और लाइसेंस शुल्क में विभाजित किया गया है।

  • इसके अलावा ब्रॉडकास्टिंग फर्मों को अब वार्षिक आधार के बजाय तिमाही आधार पर लाइसेंस शुल्क का भुगतान करना होगा।  

बुनियादी ढाँचे का साझाकरण: सरकार ने DTH ऑपरेटरों को भी बुनियादी ढाँचे को साझा करने की अनुमति दी है।

  • टीवी चैनलों वितरकों को अपने सब्सक्राइबर मैनेजमेंट सिस्टम (SMS) आदि के लिये सामान्य (Common) हार्डवेयर साझा करने की अनुमति होगी।
    • SMS एक सर्वर है जो केबल टीवी डिज़िटल सिस्टम के लिये महत्त्वपूर्ण  है।

लाभ: 

  • संशोधित दिशा-निर्देश DTH सेवा प्रदाताओं को और अधिक कवरेज के लिये निवेश करने में सक्षम बना सकते हैं जिससे वृद्धि तथा उच्च विकास एवं नियमित भुगतान को बढ़ाया जा सकेगा।
  • DTH ऑपरेटरों द्वारा बुनियादी ढाँचे को साझा किये जाने से, दुर्लभ उपग्रह संसाधनों को अधिक कुशलता के साथ उपयोग में लाया जा सकता है और उपभोक्ताओं द्वारा वहन की जाने वाली लागत को कम किया जा सकता है।

पृष्ठभूमि: 

  • पूर्व में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने DTH क्षेत्र में 100% FDI की बात की थी, परंतु सूचना और प्रसारण (I&B) मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के कारण FDI 49% तक ही सीमित था।
  • हाल ही में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने भी सिफारिश की है कि देश में समग्र क्षेत्रों की वृद्धि को बढ़ावा देने के लिये सभी सेट टॉप बॉक्स (STBs) को  इंटरऑपरेबल बनाया जाना चाहिये।
  •  भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने लाइसेंस शुल्क में कमी की सिफारिश वर्ष 2014 में की थी।
  • DTH ऑपरेटर तर्क दे रहे हैं कि जबसे TRAI ने वर्ष 2019 में TV के लिये नया टैरिफ ऑर्डर (NTO) जारी किया है, वे चैनलों के मात्र वाहक बनकर रह गए हैं तथा उनके पास कोई मूल्य निर्धारण शक्ति नहीं रहीं।
  • ओवर द टॉप (OTT) सेवाओं के बढ़ने का असर DTH सदस्यता संख्या पर भी पड़ा है। टेलीकॉम क्षेत्र में उच्च प्रतिस्पर्द्धा के साथ OTT सेवा प्रदाता उपभोक्ताओं को आकर्षक सामग्री और सदस्यता पैकेज दोनों प्रदान करते हैं।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI):

  • FDI एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत एक देश (मूल देश) के निवासी किसी अन्य देश (मेज़बान देश) में एक फर्म के उत्पादन, वितरण और अन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से संपत्ति का स्वामित्व प्राप्त करते हैं।
    • यह विदेशी पोर्टफोलियो (Foreign Portfolio Investment-FPI) निवेश से भिन्न है, इसमें विदेशी इकाई केवल एक कंपनी के स्टॉक और बाॅण्ड  खरीदती है लेकिन यह FPI निवेशक को व्यवसाय पर नियंत्रण का अधिकार नहीं प्रदान करता है।
  • FDI के प्रवाह में शामिल पूंजी, किसी उद्यम के लिये एक विदेशी प्रत्यक्ष निवेशक द्वारा (या तो सीधे या अन्य संबंधित उद्यमों के माध्यम से) प्रदान की जाती है।
  • FDI में तीन घटक- इक्विटी कैपिटल (Equity Capital), पुनर्निवेशित आय (Reinvested Earnings) और इंट्रा-कंपनी लोन  (Intra-Company Loans) शामिल हैं।

DTH बनाम OTT:

DTH सेवाओं में गिरावट:

  • भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2020 से जून 2020 की तिमाही में DTH सेवाओं के औसत सक्रिय ग्राहकों की संख्या  25% की गिरावट (जनवरी से मार्च 2020 की तुलना में) के साथ 54.26 मिलियन रह गई है।
  • एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 55% भारतीय DTH सेवाओं की बजाय OTT सेवाओं का उपयोग करते हैं और वर्तमान में लगभग 87% भारतीय वीडियो देखने के लिये मोबाइल का उपयोग करते हैं।

OTT की सुविधा:

  • जिस सुविधा और आसानी से OTT प्लेटफाॅर्मों का उपयोग किया जाता है वह इसे और अधिक आकर्षक बनाता है। मोबाइल फोन को कहीं भी ले जाया जा सकता है और उपयोगकर्त्ता कभी भी, कहीं भी इंटरनेट उपलब्धता को देखते हुए अपनी इच्छा से कुछ भी देख सकता है।
  • उच्च टैरिफ और DTH में चैनल संयोजन के चुनाव की अरुचिकर प्रक्रिया की तुलना में OTT प्लेटफ़ॉर्म एक बेहतर विकल्प लगता है।

किफायती इंटरनेट सेवाएँ:

  • पिछले कुछ वर्षों में इंटनेट सेवाओं की लागत में भारी गिरावट आई है जिसने ग्रामीण क्षेत्रों सहित औसत उपयोगकर्त्ताओं की संख्या में वृद्धि की है।
  • इंटरनेट की उपलब्धता और स्मार्टफोन, टैबलेट या लैपटॉप को आसानी से कहीं भी ले जाए जाने के कारण नेटफ्लिक्स और अमेज़ॅन प्राइम जैसे OTT प्लेटफाॅर्मों के उच्च शुल्क के बावजूद इनकी खपत अधिक होती है, जो लोगों की मांग और रुचि को दर्शाता है।

DTH-OTT

आगे की राह:

  • भारत, अनुमानित रुप से 200 मिलियन केबल और सैटेलाइट के साथ दर्शकों के लिये सबसे बड़े एकल बाज़ारों में से एक है। OTT, DTH बाज़ार को टेक ओवर करेगा या नहीं, यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। उनमें से एक OTT प्लेटफाॅर्मों की इंटरनेट कनेक्शन पर निर्भरता है जो अभी भी अनियमित है और भारत के आधे से अधिक लोगों के लिये सुलभ नहीं है। 
  • भारत में लगभग दो-तिहाई लोग सक्रिय रूप से इंटरनेट का उपयोग नहीं करते हैं, इसलिये OTT विकल्प बहुत सीमित हो जाते हैं। 
  • इस प्रकार OTT का DTH या केबल कनेक्शन पर टेक ओवर का विचार थोड़ा असामयिक है।
  • प्रसारकों को समझना चाहिये कि दर्शकों को प्राधिकृत प्रोग्रामिंग और मनोरंजन की शक्ति से जीता जाता है। विविध सांस्कृतिक परिवेश में प्रौद्योगिकी और मूल्य निर्धारण के सबसे अच्छे संयोजन द्वारा ही दर्शकों को आकर्षित किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


नैनो तकनीकी एवं स्वास्थ्य

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक नैनोमीसल्स बनाया है जिसका उपयोग स्तन, बृहदान्त्र और फेफड़ों के कैंसर सहित विभिन्न प्रकार के कैंसर के इलाज में प्रभावी दवा वितरण के लिये किया जा सकता है।

  • नैनोटेक्नोलॉजी या नैनोटेक वह तकनीक है जिसमें किसी भी पदार्थ में परमाणु, आणविक और सुपरमॉलीक्यूलर स्तर पर परिवर्तन किया जा सकता है। इसमें 1 से 100 नैनोमीटर तक के कण शामिल होते हैं।

प्रमुख बिंदु:

नैनोमीसल्स (Nanomicelles):

संगठन:

  • नैनोमीसल्स का निर्माण तब होता है जब एम्फिफिलिक (Amphiphilic) अणु स्वयं को एक गोलाकार संरचना बनाने के लिये एकत्रित करते हैं, यह संरचना केवल 5 से 100nm व्यास की होती है।
  • अलग-अलग एजेंटों का उपयोग नैनोमीसल्स बनाने के लिये किया जाता है, हालाँकि वे आम तौर पर सर्फैक्टेंट (Surfactant) अणुओं के माध्यम से बनाए जाते हैं जो गैर-आयनिक, आयनिक और ‘कैटायनिक डिटर्जेंट’ हो सकते हैं। कुछ नैनोमीसल्स को लिपिड और डिटर्जेंट के मिश्रण से भी विकसित किया जा सकता है।

दवा वितरण में उपयोग:

  • ये एम्फीफिलिक हैं अर्थात् ये एक ‘हाइड्रोफिलिक आउटर शेल’ (Hydrophilic Outer Shell) तथा एक हाइड्रोफोबिक इंटीरियर से निर्मित होते हैं। यह दोहरा गुण उन्हें दवा के अणुओं को वितरित करने के लिये एक आदर्श वाहक बनाता है।
    • हाइड्रोफिलिक शेल मीसल्स को पानी में घुलनशील बनाता है जो अंतःशिरा वितरण के लिये अनुमति देता है जबकि हाइड्रोफोबिक कोर चिकित्सा के लिये दवा का परिवहन करता है।
  • एक बार अंतःशिरा में इंजेक्ट होने के बाद, ये नैनोमीसल्स आसानी से परिसंचरण से बच सकते हैं और उन ट्यूमर में प्रवेश कर सकते हैं जहाँ रक्त वाहिकाओं में रिसाव पाया जाता है। ये रिसावयुक्त रक्त वाहिकाएँ स्वस्थ अंगों में अनुपस्थित होती हैं।

लक्षित वितरण का महत्त्व:

  • कैंसर थेरेपी का लक्ष्य शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाए बिना कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करना है।
  • कैंसर के उपचार के लिये अनुमोदित किमोथैरेपी विभिन्न दुष्प्रभावों के साथ अत्यधिक विषाक्त होती है।
  • इस प्रकार एक प्रभावी लक्षित दवा वितरण आवश्यक है।

नैनो प्रौद्योगिकी के स्वास्थ्य के क्षेत्र में विभिन्न अनुप्रयोग:

  • हार्ट अटैक के लिये नैनोटेक डिटेक्टर।
  • धमनियों में पट्टिका की जाँच करने के लिये नैनोचिप्स।
  • नेत्र शल्य चिकित्सा, कीमोथेरेपी आदि के लिये नैनो कैरियर्स।
  • रक्त शर्करा के स्तर को विनियमित करने के लिये डाइबेटिक पैड।
  • मस्तिष्क संबंधी विकारों के चिकित्सीय उपचार के लिये मस्तिष्क में दवा वितरण हेतु नैनोकण।
  • नैनोस्पॉन्ज लाल रक्त कोशिका झिल्ली के साथ लेपित बहुलक नैनोकण हैं, और विषाक्त पदार्थों को अवशोषित करने तथा उन्हें रक्तप्रवाह से हटाने के लिये इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • नैनो फ्लेयर्स का उपयोग रक्तप्रवाह में कैंसर कोशिकाओं का पता लगाने के लिये किया जाता है।
  • डीएनए अनुक्रमण को और अधिक कुशल बनाने में नैनोपोर्स का उपयोग किया जाता है।

नैनो प्रौद्योगिकी का हालिया उपयोग:

  • एंटीवायरल नैनो कोटिंग फेस मास्क और पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) किट पर।

नैनो प्रौद्योगिकी के जोखिम:

  • चूँकि यह क्षेत्र अभी भी अपनी नवजात अवस्था में है, इसलिये संभावित जोखिम विवादास्पद हैं।
  • अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी और यूरोपीय आयोग के स्वास्थ्य और उपभोक्ता संरक्षण निदेशालय जैसे नियामकों ने नैनोकणों द्वारा उत्पन्न संभावित जोखिमों का आकलन का कार्य शुरू कर दिया है।
  • हालाँकि इस पर विस्तृत शोध की आवश्यकता है कि यह जीव के अंदर कैसा व्यवहार करेगा। बाज़ार में लॉन्च करने से पहले नैनो कणों के आकार, आकृति और सतह की प्रतिक्रियाशीलता के आधार पर उनके व्यवहार का अच्छी तरह से विश्लेषण किया जाना चाहिये।

नैनोटेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल:

  • नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी मिशन (Nano Science and Technology Mission- NSTM)
    • यह वर्ष 2007 में शुरू किया गया एक अम्ब्रेला कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य नैनो प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना है। इसके उद्देश्यों में अनुसंधान को बढ़ावा देने, अनुसंधान का समर्थन करने के लिये अवसंरचना विकास, नैनो प्रौद्योगिकी का विकास, मानव संसाधन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शामिल हैं।
  • नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी पहल (Nano Science and Technology Initiative- NSTI)
    • यह वर्ष 2001 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा स्थापित किया गया था, जिसमें ड्रग्स, दवा वितरण, जीन लक्ष्यीकरण और डीएनए चिप्स सहित नैनोमीटर से संबंधित बुनियादी ढाँचे के विकास, अनुसंधान और अनुप्रयोग कार्यक्रमों से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया था।

स्रोत- द हिंदू


पोस्ट-ब्रेक्ज़िट ट्रेड डील

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने ‘पोस्ट ब्रेक्ज़िट  ट्रेड एग्रीमेंट’ (Post-Brexit Trade Agreement) के संपूर्ण दस्तावेज़ को प्रकाशित किया है जिसका उद्देश्य ऐसे समय में इन दोनों के संबंधों को नियंत्रित करना है जब 31 दिसंबर 2020 को ब्रिटेन यूरोप के एकल बाज़ार का हिस्सा नहीं रहेगा।

प्रमुख बिंदु:

  • यह दस्तावेज़ व्यापार, कानून प्रवर्तन और अन्य व्यवस्थाओं के बीच विवाद निपटान पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। इस दस्तावेज़ में जटिलता के बावजूद परमाणु सहयोग पर व्याख्यात्मक नोट और संबंधित समझौतों के संबंध में वर्गीकृत जानकारी का आदान-प्रदान करना शामिल है।
  • समझौता यह सुनिश्चित करता है कि दोनों पक्ष टैरिफ के बिना व्यापार जारी रख सकते हैं लेकिन इसके बावजूद 27 देशों के इस ब्लॉक और इसके पूर्व सदस्य के बीच भविष्य के संबंधों में प्रमुख पहलू अनिश्चित बने हुए हैं।

तीन प्रमुख मुद्दों पर दोनों पक्षों ने व्यापक समझौते किये हैं-

  • समान अवसर: इसका अनिवार्य रूप से यह अर्थ है कि ब्रिटेन को यूरोपीय संघ के एकल बाज़ार के साथ व्यापार करने के लिये यह सुनिश्चित करने हेतु समान नियमों और विनियमों का पालन करना होगा कि अन्य यूरोपीय संघ के व्यवसायों की तुलना में ब्रिटेन को इसका अनुचित लाभ नहीं है।
  • शासन के नियम: इसके माध्यम से यह तय किया गया है कि किसी भी समझौते को कैसे लागू किया जाए और साथ ही अनुमोदित समझौते की शर्तों का एक पक्ष द्वारा उल्लंघन करने पर जुर्माना लगाया जाएगा।
  • मत्स्यन संबंधी अधिकार: यह समझौता यूरोपीय संघ के नौसैनिक एवं अन्य पोतों को ब्रिटेन के जल क्षेत्र में छः मील की दूरी तक मुफ्त मछली पकड़ने की सुविधा देता है, यह प्रावधान पाँच वर्ष की संक्रमणीय अवधि के लिये है। संक्रमण के अंत में सब कुछ सामान्य हो जाएगा और ब्रिटेन का अपने जल पर पूर्ण नियंत्रण होगा।
    • हालाँकि ब्रिटेन के मत्स्ययन उद्योग ने इस समझौते पर निराशा व्यक्त की है।
  • इस समझौते के बावजूद अभी भी कई क्षेत्रों में कई प्रश्न अनुत्तरित हैं, जिसमें सुरक्षा, सहयोग और ब्रिटेन के विशाल वित्तीय सेवा क्षेत्र की यूरोपीय संघ के बाज़ार तक पहुँच शामिल है।
  • यूरोपीय आयोग ने 28 फरवरी, 2021 तक समझौते को अनंतिम आधार पर लागू करने का प्रस्ताव रखा है।
  • EC यूरोपीय संघ की कार्यकारी शाखा है, जो सभी 27 सदस्य राज्यों के अधिकारियों को एक साथ लाता है।

भारत के लिये अवसर:

  • भारत को यूरोपीय संघ और ब्रिटेन दोनों के साथ अलग-अलग मुक्त व्यापार समझौतों (Free Trade Agreements- FTAs) के लिये प्रयास करना चाहिये।
  • हालाँकि इस समझौते से भारत के लिये लाभ का आकलन करना समय- पूर्व होगा फिर भी भारत दोनों देशों के बाज़ारों में आईटी, वास्तुकला, अनुसंधान एवं विकास और इंजीनियरिंग जैसे सेवा क्षेत्रों में अवसरों की खोज कर सकता है क्योंकि यह समझौता सेवा क्षेत्र को कवर नहीं करता है।
  • वियतनाम जैसे भारतीय प्रतियोगियों को परिधान और समुद्री सामान आदि क्षेत्रों में अधिक शुल्क लाभ मिलता है।
  • यूरोपीय संघ के साथ एफटीए पर बातचीत करते समय भारत के कई विवादास्पद मुद्दे थे। हालाँकि ब्रेक्ज़िट के बाद ब्रिटेन उन मुद्दों पर एक अलग रुख रख सकता है, अतः भारत को एफटीए वार्ता जारी रखनी चाहिये।
  • अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (AEPC) ने कहा कि भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता ब्रिटेन में घरेलू उद्यमियों को होने वाले सीमा शुल्क के नुकसान को दूर करने में मदद करेगा।
  • हालाँकि ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइज़ेशन’ (FIEO) ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि इस समझौते का घरेलू सामानों के लिये कोई विशिष्ट सीमा शुल्क लाभ नहीं हैं।
  • भारत और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2018-19 के 16.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर से वर्ष 2019-20 में 15.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


स्ट्रीट वेंडर्स के लिये ‘मैं भी डिजिटल’ अभियान

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) द्वारा जल्द ही स्ट्रीट वेंडर्स (सड़क विक्रेताओं) के लिये ‘मैं भी डिजिटल’ (Main Bhi Digital) अभियान शुरू किया जाएगा, ताकि उन्हें डिजिटल रूप से भुगतान स्वीकार करने में सक्षम बनाया जा सके।

प्रमुख बिंदु

‘मैं भी डिजिटल’ अभियान

  • इस अभियान के हिस्से के रूप में 4 जनवरी, 2021 से 22 जनवरी, 2021 के बीच देश भर के 10 लाख से अधिक स्ट्रीट वेंडर्स, जिन्होंने पीएम स्वनिधि योजना के तहत 10,000 रुपए का ऋण प्राप्त किया है, को डिजिटल भुगतान प्रणाली के उपयोग हेतु प्रशिक्षित किया जाएगा।
  • इस अभियान के तहत स्ट्रीट वेंडर्स को न केवल डिजिटल माध्यम से भुगतान प्राप्त करने में सक्षम बनाया जाएगा, बल्कि इसके तहत उन्हें एक विशिष्ट क्यूआर कोड (QR Codes) का उपयोग करके थोक विक्रेताओं से खरीदी जाने वाली सामग्री के लिये भुगतान करना भी सिखाया जाएगा।
  • विक्रेताओं के मोबाइल फोन में लेनदेन के लिये आवश्यक एप्लीकेशन मौजूद होंगे और उन्हें सुरक्षित भुगतान करने के लिये प्रशिक्षित किया जाएगा। 

पीएम स्वनिधि योजना

  • यह जून 2020 में शुरू की गई केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) की एक प्रमुख योजना है, जिसके तहत छोटे विक्रेता और स्ट्रीट वेंडर्स अपने व्यवसाय को पुनः प्रारंभ करने के लिये कार्यशील पूंजी के तौर पर 10,000 रुपए तक के ऋण के लिये आवेदन कर सकते हैं।
  • साथ ही इसके तहत ऋण प्राप्त करने के लिये आवेदकों को किसी प्रकार की ज़मानत या कोलैट्रल (Collateral) की आवश्यकता नहीं होगी।
  • आँकड़ों की मानें तो इस योजना का लाभ प्राप्त करने वाले केवल 20 प्रतिशत छोटे दुकानदार अथवा स्ट्रीट वेंडर्स डिजिटल माध्यम से भुगतान प्राप्त करने में सक्षम हैं।

भारत में स्ट्रीट वेंडर्स

  • नियमों के अनुसार, जिन लोगों के पास स्थायी दुकान नहीं है, उन्हें स्ट्रीट वेंडर्स (सड़क विक्रेता) माना जाता है।
    • सरकारी अनुमानों के अनुसार, देश भर में कुल (गैर-कृषि) शहरी अनौपचारिक रोज़गार में से तकरीबन 14 प्रतिशत लोग स्ट्रीट वेंडर्स हैं।
  • भारत में अनुमानित 50-60 लाख स्ट्रीट वेंडर्स हैं, जिसमें से सबसे अधिक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और अहमदाबाद जैसे शहरों में मौजूद हैं।
  • समस्याएँ 
    • कई शहरों में स्ट्रीट वेंडर्स को जारी किये जाने वाले लाइसेंस के लिये अधिकतम सीमा पूर्णतः अवास्तविक है, उदाहरण के लिये मुंबई में स्ट्रीट वेंडर्स के लिये अधिकतम लाइसेंस सीमा मात्र 15,000 है, जबकि वहाँ अनुमानतः 2.5 लाख वेंडर मौजूद हैं।
      • इसका अर्थ है कि इन क्षेत्रों में अधिकांश विक्रेता अवैध रूप से कार्य करते हैं, इसके कारण वे स्थानीय पुलिस और नगरपालिका अधिकारियों के शोषण और जबरन वसूली के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
    • कई बार स्थानीय निकाय फुटपाथ को खाली कराने और स्ट्रीट वेंडर्स का सामान ज़ब्त करने के लिये अभियान चलाते हैं और अवैध होने के कारण उनसे भारी जुर्माना वसूला जाता है।
  • स्ट्रीट वेंडर्स के संगठन
    • नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स ऑफ इंडिया (NASVI): यह सदस्यता आधारित संगठन है, जो भारत के लगभग सभी हिस्सों से 10,00,000 स्ट्रीट वेंडर्स का प्रतिनिधित्व करता है। 
    • नेशनल हॉकर फेडरेशन: यह देश के 28 राज्यों में स्ट्रीट वेंडर्स का संघ है, जिसमें 1,188 यूनियन हैं, जिनमें 11 केंद्रीय ट्रेड यूनियन और 20 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन भी शामिल हैं।

स्ट्रीट वेंडर्स के लिये अन्य पहलें: 

  • स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग विनियमन) अधिनियम, 2014: इस अधिनियम को सार्वजनिक क्षेत्रों में स्ट्रीट वेंडर्स को विनियमित करने और उनके अधिकारों की सुरक्षा करने हेतु लागू किया गया था।
    • यह अधिनियम स्ट्रीट वेंडर को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जो किसी भी सार्वजनिक स्थान या निजी क्षेत्र पर, किसी अस्थायी जगह पर बने ढाँचे से या जगह-जगह घूमकर, आम जनता के लिये रोज़मर्रा के उपयोग की वस्तुओं या सेवाओं की पेशकश करता है।
  • स्ट्रीट वेंडर्स को निम्नलिखित योजनाओं के दायरे में लाने के लिये सरकार ने अपनी तरह का पहला सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण भी शुरू किया है: 

आगे की राह

  • स्ट्रीट वेंडर्स के लिये कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं, किंतु इसके बावजूद इन योजनाओं के कार्यान्वयन, पहचान, जागरूकता और पहुँच से संबंधित विभिन्न चरणों में अंतराल देखा जा रहा है, जिन्हें समयबाद्ध ढंग से दूर किया जाना आवश्यक है।
  • इसके अलावा स्ट्रीट वेंडर्स को मातृत्व भत्ता, दुर्घटना राहत, उच्च शिक्षा हेतु वेंडर के बच्चों को सहायता और किसी भी संकट के दौरान पेंशन जैसे लाभ प्रदान किये जाने चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस