भारतीय अर्थव्यवस्था
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिये सिंगल-विंडो सिस्टम
- 24 Nov 2020
- 8 min read
प्रिलिम्स के लियेविदेशी प्रत्यक्ष निवेश मेन्स के लियेविदेशी प्रत्यक्ष निवेश का महत्त्व और भारत में इसकी स्थिति |
चर्चा में क्यों?
उद्योग और आंतरिक संवर्द्धन विभाग (DPIIT) द्वारा अगले वर्ष मार्च माह के अंत तक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) से संबंधित प्रस्तावों के लिये एक नया एकीकृत सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम शुरू किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- इस प्रभावी और एकीकृत सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम में नियामक तथा नीति निर्धारक सभी एक ही स्थान पर उपलब्ध होंगे, जिन्हें डिजिटल माध्यम से आसानी से एक्सेस किया जा सकेगा।
- इस सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम में केंद्र और राज्य दोनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे, जिससे विदेशी निवेशकों को सभी प्रासंगिक अनुमोदन और मंज़ूरी प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- यह नया सिस्टम सभी संभावित निवेशकों को एक ही स्थान पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के उन सभी संबंधित मंत्रालयों और विभागों से अनुमोदन और स्वीकृति प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा, जो कि किसी विदेशी कंपनी के लिये एक राज्य, ज़िले अथवा शहर में निवेश करने या संयंत्र स्थापित करने के लिये आवश्यक होंगे।
- यह न केवल निवेशकों को अपने प्रस्ताव की स्थिति जानने में मदद करेगा, बल्कि इससे विदेशी निवेश के संबंध में जल्द-से-जल्द अनुमोदन प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।
महत्त्व
- पारदर्शिता: इस प्रणाली के माध्यम से निवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी, जिससे अधिकारियों को बिना किसी बाधा के दस्तावेज़ों और रिकॉर्ड की जाँच करने में मदद मिलेगी।
- शीघ्र अनुमोदन: सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के प्रतिनिधियों और विदेशी निवेशकों को अधिक सुविधाजनक तरीके से समय बर्बाद किये बिना अनुमोदन की प्रक्रिया में तेज़ी लाने में मदद करेगा।
- सुरक्षा: सीमापार व्यापार सौदों में सुरक्षा सदैव एक महत्त्वपूर्ण कारक रहता है और यह सिंगल-विंडो क्लीयरेंस सिस्टम सुरक्षा बनाए रखने की दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण होगा।
क्या होता है विदेशी प्रत्यक्ष निवेश?
- जब कोई देश विकासात्मक कार्यो के लिये अपने घरेलू स्रोत से संसाधनों को नहीं जुटा पाता है तो उसे देश के बाहर जाकर शेष विश्व की अर्थव्यवस्था से संसाधनों को जुटाना पड़ता है।
- शेष विश्व से ये संसाधन या तो कर्ज (ऋण) के रूप में जुटाए जाते हैं या फिर निवेश के रूप में। कर्ज के रूप में जुटाए गए संसाधनों पर ब्याज देना पड़ता है, जबकि निवेश की स्थिति में हमें लाभ में भागीदारी प्रदान करनी होती है।
- विदेशी निवेश विकासात्मक कार्यों के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन है। विदेशी निवेश मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI)
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): यदि किसी विदेशी निवेशक को अपने निवेश से कंपनी के 10 प्रतिशत या अधिक शेयर प्राप्त हो जाएँ, जिससे कि वह कंपनी के निदेशक मंडल में प्रत्यक्ष भागीदारी कर सके तो इस निवेश को ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ कहते हैं। इसके अंतर्गत निवेशक किसी फर्म की उत्पादन, वितरण और अन्य गतिविधियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से निवेश करते हैं।
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI): इसके विपरीत यदि किसी विदेशी निवेशक को अपने निवेश से कंपनी के 10 प्रतिशत या उससे कम शेयर प्राप्त हों, तो इसे विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) कहा जाता है। इसके अंतर्गत निवेश को व्यवसाय की गतिविधियों में संचालन का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश
- 1990 के दशक में आर्थिक सुधारों के बाद से भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयासों की बदौलत भारत में विदेशी निवेश में काफी सुधार देखने को मिला है।
- आँकड़ों के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2014-15 में भारत में FDI अंतर्वाह 45.15 डॉलर था और तब से इसमें लगातार वृद्धि दर्ज की गई है।
- वर्ष 2014-20 में वर्ष 2008-14 की तुलना में FDI अंतर्वाह में कुल 55 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है, जहाँ एक ओर वर्ष 2008-14 के मध्य भारत ने कुल 231.37 बिलियन डॉलर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) प्राप्त किया था, वहीं वर्ष 2014-20 में भारत ने कुल 358.29 बिलियन डॉलर का विदेशी निवेश प्राप्त किया।
- विगत 20 वर्ष (अप्रैल 2000- जून 2020) में देश में कुल FDI प्रवाह 693.3 बिलियन डॉलर रहा है, जबकि गत 5 वर्ष (अप्रैल 2014- सितंबर 2019) में कुल 319 बिलियन डॉलर का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश प्राप्त किया गया है।
- वर्ष 2019-20 (31.60 बिलियन अमेरिकी डाॅलर) की तुलना में वर्ष 2020-21 के पहले 5 माह में 13 प्रतिशत अधिक FDI (35.73 बिलियन अमेरिकी डाॅलर) प्राप्त हुआ है।
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का महत्त्व
- रोज़गार का सृजन और आर्थिक विकास विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) का सबसे बड़ा लाभ है, जिसके कारण प्रायः विश्व के सभी देश, विशेष रूप से विकासशील देश, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं।
- FDI में बढ़ोतरी के कारण विनिर्माण और सेवा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को बढ़ावा मिलता है, रोज़गार सृजन में बढ़ोतरी होती है और शिक्षित युवाओं के बीच बेरोज़गारी दर कम करने में मदद मिलती है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
- FDI किसी एक देश के पिछड़े क्षेत्रों को औद्योगिक केंद्रों में बदलने में सहायता करता है, जिससे उस क्षेत्र विशिष्ट की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।