अंतर्राष्ट्रीय संबंध
UPU के संविधान में 10वाँ अतिरिक्त प्रोटोकोल
प्रीलिम्स के लिये:
यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन
मेन्स के लिये:
अंतर्राष्ट्रीय डाकों के आदान-प्रदान को विनियमित करने में UPU की भूमिका।
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (UPU) के संविधान में 10वें अतिरिक्त प्रोटोकॉल को शामिल किये जाने की पुष्टि कर दी है।
प्रमुख बिंदु
- इस प्रोटोकॉल को 3-7 सितंबर, 2018 तक अदीस अबाबा (इथियोपिया की राजधानी) में आयोजित UPU कॉन्ग्रेस की विशेष बैठक में अंगीकार किया गया था।
- मंत्रिमंडल की मंज़ूरी मिलने के बाद भारत सरकार के डाक विभाग को इस पर भारत के राष्ट्रपति के हस्ताक्षर प्राप्त करने तथा भारत सरकार के कानूनों के अनुरुप इसे राजनयिक माध्यम से UPU के महानिदेशक को सौंपने का अधिकार प्राप्त हो गया है।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा UPU के संविधान में दसवें अतिरिक्त प्रोटोकॉल को शामिल करने की पुष्टि किये जाने से भारत एक सदस्य देश के रूप में UPU के संविधान के 25वें अनुच्छेद की बाध्यताओं को पूरा कर सकेगा।
- इसके साथ ही डाक विभाग UPU की संधियों के प्रावधानों को भारत में लागू करने के लिये कोई भी प्रशासनिक आदेश जारी कर सकेगा।
यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन के बारे में
- इसका गठन वर्ष 1874 में किया गया था और इसका मुख्यालय स्विज़टरलैंड के बर्न में स्थित है।
- यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (UPU), दुनिया का दूसरा सबसे पुराना अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। ध्यातव्य है कि पहला और सबसे पुराना अंतर्राष्ट्रीय संगठन अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union- ITU) है जिसकी स्थापना वर्ष 1865 में की गई थी।
- यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (Universal Postal Union-UPU) अंतर्राष्ट्रीय डाकों के आदान-प्रदान को विनियमित करता है और अंतर्राष्ट्रीय डाक सेवाओं के लिये दरों को तय करता है।
- वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 192 है।
इसकी चार इकाइयाँ निम्नलिखित हैं-
- काॅन्ग्रेस
- प्रशासन परिषद
- अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो
- डाक संचालन परिषद
इसके अंतर्गत 2 सहकारी समितियाँ/कोऑपरेटिव भी हैं:
- टेलीमैटिक्स कोऑपरेटिव (Telematics Cooperative)
- ई.एम.एस. कोऑपरेटिव (EMS Cooperative)
यह विश्व भर के 6.40 लाख पोस्टल आउटलेट को नियंत्रित करता है। भारत 1 जुलाई, 1876 और पाकिस्तान 10 नवंबर, 1947 को UPU में शामिल हुए थे।
UPU की क्रियाविधि:
- UPU की एक इकाई अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो ने वर्ष 2018 में एक कन्वेंशन मैनुअल (Convention Manual) जारी किया, जिसके अनुच्छेद 17-143 में डाक सेवाओं के अस्थायी निलंबन और बहाली के लिये उठाए गए कदमों का विवरण दिया गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो के नियमों के तहत जब कोई देश किसी देश के साथ विनिमय को निलंबित करने का फैसला करता है तो उसे दूसरे देश (जैसे भारत) को इस बारे में सूचित करना चाहिये, साथ ही यदि संभव हो तो जिस अवधि के लिये सेवाएँ रोकी जा रही हैं उसका भी विवरण दिया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त सभी सूचनाएँ अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो के साथ भी साझा की जानी चाहिये।
- उल्लेखनीय है कि हाल ही में पाकिस्तान ने यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (Universal Postal Union- UPU) के नियमों के विपरीत जाकर भारत से आदान-प्रदान होनी वाली डाक सेवा (Postal Exchange) को (भारत को सूचित किए बगैर) बंद कर दिया था। जबकि, भारत और पाकिस्तान के बीच संपन्न तीन द्विपक्षीय समझौतों के अनुसार भी पाकिस्तान को निलंबन की पूर्व सूचना भारत को देनी चाहिये थी।
स्रोत: पी.आई.बी.
सामाजिक न्याय
हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह विच्छेद
प्रीलिम्स के लिये
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
मेन्स के लिये
महिला सशक्तीकरण और सामाजिक न्याय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई में संविधान के अनुच्छेद-142 का प्रयोग करते हुए इर्रीट्रीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज (Irretrievable Breakdown of Marriage) को विवाह विच्छेद का आधार माना।
मुख्य बिंदु:
- वर्तमान में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) के तहत इर्रीट्रीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज को विवाह विच्छेद का आधार नहीं माना जाता हैं।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिये अनुच्छेद-142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग किया है।
हिंदू विवाह अधिनियम,1955 में विवाह विच्छेद का आधार:
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत विवाह विच्छेद की प्रक्रिया दी गई है जो कि हिंदू, बौद्ध, जैन तथा सिख धर्म को मानने वालों पर लागू होती है।
- इस अधिनियम की धारा-13 के तहत विवाह विच्छेद के निम्नलिखित आधार हो सकते हैं:
- व्यभिचार (Adultry)- यदि पति या पत्नी में से कोई भी किसी अन्य व्यक्ति से विवाहेतर संबंध स्थापित करता है तो इसे विवाह विच्छेद का आधार माना जा सकता है।
- क्रूरता (Cruelty)- पति या पत्नी को उसके साथी द्वारा शारीरिक, यौनिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तो क्रूरता के तहत इसे विवाह विच्छेद का आधार माना जा सकता है।
- परित्याग (Desertion)- यदि पति या पत्नी में से किसी ने अपने साथी को छोड़ दिया हो तथा विवाह विच्छेद की अर्जी दाखिल करने से पहले वे लगातार दो वर्षों से अलग रह रहे हों।
- धर्मांतरण (Proselytisze)- यदि पति पत्नी में से किसी एक ने कोई अन्य धर्म स्वीकार कर लिया हो।
- मानसिक विकार (Unsound Mind)- पति या पत्नी में से कोई भी असाध्य मानसिक स्थिति तथा पागलपन से ग्रस्त हो और उनका एक-दूसरे के साथ रहना असंभव हो।
- इसके अलावा अधिनियम की धारा-13B के तहत आपसी सहमति को विवाह विच्छेद का आधार माना गया है।
- विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954) की धारा-27 में इसके तहत विधिपूर्वक संपन्न विवाह के लिये विवाह विच्छेद के प्रावधान दिये गए हैं।
हालाँकि इन दोनों अधिनियमों में से किसी में भी इर्रीट्रीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज को विवाह विच्छेद का आधार नहीं माना गया है।
इर्रीट्रीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज
(Irretrievable Breakdown of Marriage):
- हाल ही में के आर. श्रीनिवास कुमार बनाम आर. शमेथा मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न न्यायिक निर्णयों की जाँच करते हुए इर्रीट्रीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज को आधार मानते हुए विवाह विच्छेद का निर्णय दिया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने इस निर्णय में कहा कि जिन मामलों में वैवाहिक संबंध पूर्ण रूप से अव्यवहार्य, भावनात्मक रूप से मृतप्राय यानी जिसमें सुधार की कोई संभावना न हो तथा अपूर्ण रूप से टूट चुके हों उन्हें विवाह विच्छेद का आधार माना जा सकता है।
- ऐसे वैवाहिक संबंध निष्फल होते हैं तथा इनका जारी रहना दोनों पक्षों को मानसिक प्रताड़ना देता है। इन मामलों में किसी वैधानिक प्रावधान की अनुपस्थिति के कारण न्यायालय द्वारा अनुच्छेद-142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करना आवश्यक है।
- अनुच्छेद-142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को यह शक्ति है कि जिन मामलों में कानून या विधि द्वारा निर्णय नहीं किया जा सकता है ऐसी स्थिति में वह उस मामले को स्वयं के अधिकार क्षेत्र में लाकर अंतिम निर्णय दे सकता है।
- न्यायालय ने पहले भी कई मामलों में, जहाँ वैवाहिक संबंध मृतप्राय हो जाते हैं, अनुच्छेद-142 का प्रयोग करते हुए इर्रीट्रीवेबल ब्रेकडाउन ऑफ मैरिज को विवाह विच्छेद का आधार माना है।
- भारत के विधि आयोग (Law Commission of India) ने पहले भी दो बार हिंदू धर्म में अपरिवर्तनीय संबंध विच्छेद को विवाह विच्छेद का आधार बनाने के लिये हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) तथा विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) में इसे शामिल करने की अनुशंसा की है।
- विधि आयोग ने इस संबंध में पहली बार वर्ष 1978 में अपनी 71वीं रिपोर्ट में तथा दूसरी बार वर्ष 2009 में 217वीं रिपोर्ट में अधिनियम में संशोधन की अनुशंसा की थी।
संविधान का अनुच्छेद-142:
- संविधान के अनुच्छेद 142(1) के तहत सर्वोच्च न्यायालय अपने न्यायाधिकार का प्रयोग करते समय ऐसे निर्णय या आदेश दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले में पूर्ण न्याय प्रदान करने के लिये आवश्यक हो।
- इसके तहत दिये गये निर्णय या आदेश पूरे भारत संघ में संसद या उसके अधीन बने नियमों की भाँति ही तब तक लागू होंगे, जब तक इससे संबंधित कोई अन्य प्रावधान राष्ट्रपति या उसके आदेश द्वारा लागू नहीं कर दिया जाता।
- अनुच्छेद 142(2) के तहत सर्वोच्च न्यायालय को भारत के संपूर्ण राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को हाज़िर कराने, किन्हीं दस्तावेज़ों के प्रकटीकरण या अपनी किसी अवमानना का अन्वेषण करने या दंड देने के संबंध में आदेश देने की शक्ति होगी।
- यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को “पूर्ण न्याय” सुनिश्चित करने की शक्ति प्रदान करता है तथा इसका प्रयोग प्रायः मानवाधिकार तथा पर्यावरण संरक्षण के मामलों में ही किया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयोध्या भूमि विवाद मामले में भी संविधान के अनुच्छेद-142 का प्रयोग किया गया था।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
महात्मा ज्योतिराव फुले ऋण माफी योजना
प्रीलिम्स के लिये:
महात्मा ज्योतिराव फुले ऋण माफी योजना
मेन्स के लिये:
किसानों की ऋण माफी से संबंधित विभिन्न मुद्दे
चर्चा में क्यों?
21 दिसंबर, 2019 को महाराष्ट्र सरकार ने 30 सितंबर, 2019 की कट ऑफ डेट के साथ किसानों के लिये दो लाख रुपए तक की ऋण माफी की घोषणा की है। इस घोषणा के साथ ही किसानों की ऋण माफी का मुद्दा पुन: प्रकाश में आ गया है।
प्रमुख बिंदु
- महाराष्ट्र सरकार द्वारा किसानों की ऋण माफी के लिये शुरू की गई इस योजना को महात्मा ज्योतिराव फुले ऋण माफी योजना (Mahatma Jyotirao Phule loan waiver scheme) के नाम से जाना जाएगा।
- इस योजना की शुरुआत मार्च 2020 से होगी।
- इस योजना के अलावा महाराष्ट्र सरकार ने नियमित रूप से अपने ऋण की किश्तों का भुगतान करने वाले किसानों के लिये भी जल्दी ही एक विशेष योजना शुरू करने की घोषणा की है।
योजना का वित्तीय प्रारूप
- महाराष्ट्र सरकार फसल ऋण माफी योजना पर 21,216 करोड़ रुपए खर्च करेगी। सरकार का मानना है कि इससे 30.57 लाख किसान लाभान्वित होंगे।
- यदि किसानों का व्यक्तिगत फसल ऋण 2 लाख रुपए से अधिक है, तो सरकार बैंकों से जानकारी प्राप्त कर उन किसानों के लिये एक नई योजना की घोषणा करेगी।
- यदि फसल ऋण की कुल राशि 2 लाख रुपए से कम राशि है तो योजना के अंतर्गत किसान के एक से अधिक खाते शामिल किये जाएंगे।
- बकाया ऋण के साथ धनराशि को सीधे किसानों के बैंक खातों में हस्तांतरित किया जाएगा, इसके लिये किसी भी प्रकार के फॉर्म जमा नहीं किये जाएंगे, न ही किसान के जीवनसाथी के साक्षात्कार और ऑनलाइन प्रक्रिया को इसमें शामिल किया जाएगा।
लाभार्थी
- 1 अप्रैल, 2015 से 30 सितंबर, 2019 तक 2 लाख रुपए तक के फसल ऋण (इतनी धनराशि के लिये आवश्यक भूमि की उपलब्धता पर विचार किये बिना) लेने वाले किसान इस योजना के पात्र होंगे।
ऋण माफी की प्रकिया:
- इस पूरी प्रक्रिया में चार चरण शामिल होंगे:
- पहला चरण: योजना की घोषणा एवं प्रचार, पात्रता और आधार को इससे संबद्ध करना।
- दूसरा चरण: बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान आधार से जुड़े ऋण खातों और बगैर आधार लिंक वाले ऋण खातों की एक सूची तैयार करेंगे।
- तीसरा चरण: योजना के तहत फसल ऋण माफी के दावों की जाँच के लिये एक वेब पोर्टल विकसित किया जाएगा और प्रत्येक खाते के साथ एक विशेष नंबर संलग्न किया जाएगा। लाभार्थियों की ग्रामवार सूची घोषित की जाएगी।
- चौथा और अंतिम चरण: प्रत्येक किसान आधार लिंक की जाँच करेगा और यदि उसे कोई शिकायत है, तो वह ज़िला शिकायत निवारण समिति (District Complaint Redressal Committe) से संपर्क कर सकता है। कोई भी शिकायत प्राप्त न होने पर धन वितरित किया जाएगा।
पृष्ठभूमि:
- महा विकास अघडी (Maha Vikas Aghadi- MVA) सरकार अर्थात् राकांपा-कांग्रेस-शिवसेना गठबंधन ने नवंबर 2019 में सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम (Common Minimum Program-CMP) की घोषणा की थी जिसमें कृषि ऋण माफी को अपने एजेंडे के मुख्य बिंदुओं में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया था।
कृषि ऋण माफी के विपक्ष में तर्क
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार, कृषि ऋण छूट एक ‘त्वरित सुधार’ है। इससे स्थायी कृषि उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, यदि सभी राज्यों ने कृषि ऋण माफी योजना पर अमल करना शुरू कर दिया तो करीब 2.2 से 2.7 लाख करोड़ रुपए तक का कर्ज़ माफ करना होगा। इससे अर्थव्यवस्था को अपस्फीति का सामना करना पड़ सकता है।
- राज्यों को ऋण माफी के बाद खजाने का वित्तपोषण करना होगा, ताकि राजकोषीय घाटे को नियंत्रण योग्य स्तर पर रखा जा सके। यद्यपि केंद्र सरकार राजकोषीय समेकन के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास करती है, फिर भी राज्यों पर कर्ज़ का बोझ बढ़ने से सरकारी ऋण में वृद्धि हो सकती है।
कृषि ऋण माफी के संदर्भ में क्या किया जाना चाहिये?
इसमें कोई शक नहीं है कि ऋण माफी से किसानों को काफी राहत मिली है, लेकिन इस तरह की माफी का कोई दीर्घकालिक प्रभाव अभी तक देखने को नहीं मिला है। हालाँकि कर्ज़ माफी से किसानों को अस्थायी राहत मिल सकती है, फिर भी कृषि को स्थायी बनाने के लिये एक दीर्घकालिक प्रभावी उपाय की आवश्यकता है। दीर्घकालिक उपायों में शामिल हैं:
- तकनीक उन्नयन से अक्षमता में कमी लाना।
- कृषि लागत में कमी लाना।
- किसानों की आय में वृद्धि का प्रयास करना।
- बीमा योजनाओं के माध्यम से फसल सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- सिंचाई क्षमता को बढ़ाना और कोल्ड स्टोरेज़ चेन का निर्माण करना।
- कृषि क्षेत्र को सीधे बाज़ार से जोड़ना।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
OCI कार्डधारकों को राहत
प्रीलिम्स के लिये:
भारत के समुद्रपारीय नागरिक
मेन्स के लिये:
विदेशी निवासियों के विभिन्न दर्जे तथा उनसे संबंधित प्रावधान
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारत के समुद्रपारीय नागरिकों (Overseas Citizens of India-OCI) को OCI कार्ड के नवीनीकरण संबंधी प्रावधानों में कुछ छूट प्रदान की है।
मुख्य बिंदु:
- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने OCI कार्डधारकों से संबंधित उस प्रावधान में छूट प्रदान की है, जिसके तहत 50 वर्ष से अधिक तथा 20 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के लिये भी पासपोर्ट के नवीनीकरण के साथ OCI कार्ड का नवीनीकरण अनिवार्य कर दिया गया था।
- गृह मंत्रालय के एक नए आदेश के अनुसार, एक OCI कार्डधारक को 20 वर्ष की आयु तक और 50 वर्ष की आयु के बाद पासपोर्ट जारी कराते समय प्रत्येक बार पंजीकरण कराना आवश्यक होता है, परंतु 21 और 50 की आयु दौरान एक नया पासपोर्ट जारी कराने के लिये हर बार OCI पंजीकरण कराना अनिवार्य नहीं है।
- 17 दिसंबर, 2019 को केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, OCI कार्डधारकों को कार्ड नवीनीकरण से छूट संबंधी यह सुविधा 30 जून, 2020 की अवधि तक दी जाएगी।
- OCI कार्डधारकों को अपने पुराने और नए पासपोर्ट के साथ मौजूदा OCI कार्ड ले जाना होगा।
क्या थी समस्या?
- बहुत से OCI कार्डधारक कार्ड नवीनीकरण से संबंधी इस प्रावधान के कारण भारत आने में असमर्थ थे।
- वहीं बहुत से OCI कार्डधारकों को OCI कार्ड का पासपोर्ट के साथ नवीनीकरण नहीं होने के कारण विभिन्न हवाई अड्डों पर एयरलाइंस (Airlines) तथा आव्रजन प्राधिकारियों (Immigration Authorities) द्वारा रोक लिया जाता था।
भारत के समुद्रपारीय नागरिक:
(Overseas Citizens of India-OCI):
- कोई भी व्यक्ति जो बांग्लादेश या पाकिस्तान (एवं भारत सरकार द्वारा इस प्रयोजन में घोषित किसी अन्य देश) का नागरिक नहीं है और न ही कभी रहा है, निम्नलिखित में से कोई शर्त पूरी करने पर OCI की श्रेणी में आता है। पूरी आयु व क्षमता का वह व्यक्ति जो अभी किसी अन्य देश का नागरिक है, किंतु-
- संविधान लागू होने के समय या उसके बाद कभी भी भारत का नागरिक रह चुका है; अथवा
- संविधान लागू होने के समय भारत का नागरिक होने की अर्हता रखता हो; अथवा
- किसी ऐसे क्षेत्र से संबंधित हो जो 15 अगस्त 1947 के बाद भारत का अंग बन गया हो; अथवा
- यदि वह उपर्युक्त तीनों में से किसी वर्ग में शामिल किसी व्यक्ति का पुत्र/पुत्री या पोता/पोती या नाती/नातिन है।
OCI कार्डधारक का पंजीकरण रद्द करने हेतु शर्तें:
नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार, केंद्र सरकार किसी भी OCI कार्डधारक के पंजीकरण को निम्नलिखित आधार पर रद्द कर सकती है:
- यदि OCI पंजीकरण में कोई धोखाधड़ी सामने आती है।
- यदि पंजीकरण के पाँच साल के भीतर OCI कार्डधारक को दो साल या उससे अधिक समय के लिये कारावास की सज़ा सुनाई गई है।
- यदि ऐसा करना भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के लिये आवश्यक हो।
- हाल ही में पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम, (Citizenship Amendment Act, 2019) में OCI कार्डधारक के पंजीकरण को रद्द करने के लिये एक और आधार जोड़ा गया है, जिसके तहत यदि OCI कार्डधारक अधिनियम के प्रावधानों या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य कानून का उल्लंघन करता है तो भी केंद्र के पास उस OCI कार्डधारक के पंजीकरण को रद्द करने का अधिकार होगा।
OCI कार्डधारकों को मिलने वाली सुविधाएँ:
- जीवनपर्यंत वीज़ा
- कितनी भी लंबी यात्रा, पंजीकरण कराने की आवश्यकता नहीं।
- अनिवासी भारतीयों को मिलने वाली आर्थिक, वित्तीय, शैक्षिक, सुविधा तो उपलब्ध; किंतु कृषि, संपत्ति या बागान खरीदने की छूट नहीं।
- ठहरने की किसी भी अवधि तक पुलिस प्राधिकारियों को रिपोर्ट करने से छूट।
स्रोत-द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U)
प्रीलिम्स के लिये:
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी, ODF, ODF+ और ODF++ प्रोटोकॉल, वाटर+ प्रोटोकॉल, कचरा मुक्त शहरों के लिये स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल
मेन्स के लिये
स्वच्छ भारत मिशन तथा इसका महत्त्व
चर्चा में क्यों?
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U) के तहत भारत ने ODF (खुले में शौच मुक्त) बनाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है।
प्रमुख बिंदु:
- 35 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के शहरी क्षेत्रों को ODF घोषित किया गया है और अन्य शहर भी इसे हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
- 35 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के शहरी क्षेत्र ODF बन गए हैं। कुल मिलाकर 4,320 शहरों (4,372 में से) ने खुद को ODF घोषित किया है, जिनमें से 4,167 शहरों को तीसरे पक्ष के सत्यापन के माध्यम से प्रमाणित किया गया है।
- आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs- MoHUA) ने स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U) को एक सफल परियोजना बनाने के लिये विभिन्न पहलें शुरू की हैं।
स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U) के तहत प्रमुख परियोजनाएँ:
ODF, ODF+ और ODF++ प्रोटोकॉल:
- ODF मानदंड के तहत सामुदायिक व सार्वजनिक शौचालयों के नियमित इस्तेमाल के लिये उनकी कार्यात्मकता और उचित रखरखाव को सुनिश्चित करते हुए इनके संचालन व रख-रखाव पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- ODF+ मानदंड के तहत व्यक्ति को खुले में शौच या मूत्रत्याग नहीं करना चाहिये। सभी सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों का रखरखाव और साफ-सफाई की जानी चाहिये।
- ODF++ मानदंड के तहत शौचालयों से मल और कीचड़ का सुरक्षित निस्तारण करने और यह सुनिश्चित करने पर ध्यान दिया जाता है कि ऐसा कोई भी अशोधित कीचड़ खुले नालों, जल निकायों या खुले में न बहा दिया जाए।
अब तक 819 शहरों को ODF+ और 312 शहरों को ODF++ से प्रमाणित किया गया है।
वाटर+
हाल ही में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा (MoHUA) वाटर+ प्रोटोकॉल को यह सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किया गया कि किसी भी अनुपचारित अपशिष्ट जल को खुले वातावरण या जल निकायों में न बहाया जाए।
गूगल के साथ भागीदारी
MoHUA ने सभी सार्वजनिक शौचालयों की मैपिंग करने के लिये Google के साथ भागीदारी की है ताकि नागरिकों को स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँचने में आसानी हो।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन:
वर्तमान में 96% वार्डों में डोर-टू-डोर संग्रह द्वारा कुल उत्पन्न अपशिष्ट का लगभग 60% संसाधित किया जा रहा है।
अपशिष्ट मुक्त शहरों के लिये स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल: यह 12 मापदंडों पर आधारित है जो एक स्मार्ट फ्रेमवर्क का पालन करते हैं-
- रेटिंग के अनुसार 4 शहरों इंदौर (मध्य प्रदेश), अंबिकापुर (छत्तीसगढ़), नवी मुंबई (महाराष्ट्र) और मैसूर (कर्नाटक) को 5-स्टार शहरों के रूप में प्रमाणित किया गया है।
- 57 शहरों को 3-स्टार और 4 शहरों को 1-स्टार शहरों के रूप में प्रमाणित किया गया है।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन:
- आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने सड़क निर्माण के लिये प्लास्टिक अपशिष्ट का उपयोग करने हेतु भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority of India- NHAI) के साथ भागीदारी की है।
- इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के अपशिष्ट को जमा करना, गीले अपशिष्ट की प्रसंस्करण की सुविधाओं की क्षमता का उपयोग करना, साथ ही पुनः उपयोग की सुविधा स्थापित करने के लिये कहा गया है।
- MoHUA ने अलग-अलग शहरी स्थानीय निकाय से 100 - 200 किमी के दायरे में स्थित 46 सीमेंट संयंत्रों का नक्शा बनाने के लिये सीमेंट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन (CMA) के साथ भागीदारी की है, जहाँ सीमेंट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन संग्रह केन्द्रों पर प्लास्टिक अपशिष्ट भेजा जा सकता है तथा बाद में वैकल्पिक ईंधन के रूप में उपयोग के लिये सीमेंट संयंत्रों को भेजा जा सकता है।
- 2019 के ‘स्वछता ही सेवा’ अभियान के अंतर्गत 3,200 शहरों में 1,06,000 से अधिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जिसमें 7 करोड़ से अधिक शहरी निवासियों ने भागीदारी की, और 7,700 मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक कचरा एकत्र किया गया है।
स्वच्छ सर्वेक्षण:
- स्वच्छ सर्वेक्षण (2020) 4 जनवरी, 2020 से शुरू होने वाला है और यह 31 जनवरी, 2020 तक जारी रहेगा।
- आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने स्वच्छ सर्वेक्षण (SS 2020) लीग 2020 की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत भारत के शहरों एवं कस्बों में स्वच्छता अथवा साफ-सफाई का तिमाही आकलन किया जाएगा।
- स्वच्छ सर्वेक्षण एक अभिनव सर्वेक्षण है जो स्वच्छ भारत मिशन - शहरी के तहत आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) द्वारा किया जाता है, ताकि विभिन्न सफाई और स्वच्छता संबंधी मापदंडों पर शहरों की रैंकिंग की जा सके।
- यह सर्वेक्षण स्वच्छता की अवधारणा के प्रति स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा की भावना वाले शहरों को प्रोत्साहित करने में सफल रहा है।
- वर्ष 2016 में अपने पहले दौर में 'स्वच्छ सर्वेक्षण' का आयोजन 10 लाख और उससे अधिक आबादी वाले 73 शहरों में किया गया था।
- 2017 में 434 शहरों का सर्वेक्षण किया गया था। स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 में 4,203 शहरी स्थानीय निकाय (Urban Local Bodies- ULB) और स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 में 4,237 शहर शामिल किये गए।
- स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 इस मायने में अद्वितीय था, इसमें सेवा स्तर का मूल्यांकन पूरी तरह से ऑनलाइन और पेपरलेस था।
- यह वार्षिक स्वच्छता सर्वेक्षण 43 करोड़ शहरी नागरिकों को प्रभावित करता है और दुनिया का सबसे बड़ा शहरी स्वच्छता सर्वेक्षण है।
आगे की राह
स्वच्छ भारत मिशन, मल कीचड़ प्रबंधन और 100% अपशिष्ट जल उपचार और पुन: उपयोग के माध्यम से समग्र और स्थायी स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित करेगा। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में मिशन का उद्देश्य स्रोत पर ही अपशिष्ट का निष्पादन उसका संग्रहण, परिवहन और प्रसंस्करण पर ध्यान केंद्रित करना है। इसके साथ ही मिशन द्वारा अपशिष्ट प्रबंधन तथा अपशिष्ट भराव क्षेत्र एवं अपशिष्ट युक्त स्थलों का वैज्ञानिक तरीके से उपचार पर भी ज़ोर दिया जाएगा।
स्रोत: PIB
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति एवं प्रगति संबंधी रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये
आरबीआई एवं पीएसबी से संबंधित तथ्य
मेन्स के लिये
बैंकों की पूंजी पर्याप्तता के संबंध में आरबीआई रिपोर्ट का महत्त्व
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति एवं प्रगति संबंधी रिपोर्ट-2018,19 (Report On Trends And Progress Of Banking In India-2018,19) जारी की गई है।
मुख्य बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में देश की विकास दर पिछले छह वर्षों के न्यूनतम स्तर (4.5 प्रतिशत) पर पहुँच गई थी।
- भारत में बैंकिंग क्षेत्र की स्थिति व्यापक आर्थिक क्रिया-कलापों में परिवर्तन पर निर्भर होती है।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु:
NPA की स्थिति:
- भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति एवं प्रगति संबंधी रिपोर्ट के अनुसार, बैंकों का सकल गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्ति (Non-Performing Assets) अनुपात सितंबर 2019 को समाप्त तिमाही में 9.1 फीसदी पर स्थिर रहा।
- RBI की इस रिपोर्ट के अनुसार, वार्षिक आधार पर बैंकों के NPA में कमी के साथ सुधार देखा गया है।
- जहाँ वित्तीय वर्ष 2017-18 में बैंकों का सकल NPA अनुपात 11.2 प्रतिशत था, वह वित्तीय वर्ष 2018-19 में घटकर 9.1 प्रतिशत पर आ गया, इस आधार पर सकल NPA अनुपात में वार्षिक रूप से 2.1 प्रतिशत की कमी आई है।
RBI द्वारा तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई (Prompt Corrective Action-PCA) के तहत बैंकों के प्रदर्शन की निगरानी:
- वर्तमान में 6 बैंक [4 सार्वजनिक बैंक (PSBs), 2 निजी क्षेत्र के बैंक (PVBs)] PCA फ्रेमवर्क के अंतर्गत आते हैं।
- RBI द्वारा इन छह बैंकों तथा ऐसे बैंक जिन्हें PCA के दायरे से बाहर किया गया है, की निरंतर निगरानी विभिन्न वित्तीय संकेतकों के माध्यम से की जा रही है।
- RBI द्वारा इन बैंकों के शीर्ष प्रबंधन के साथ बैठकें भी आयोजित की जा रही हैं।
क्रेडिट ग्रोथ (Credit Growth) में कमी:
- वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली छमाही के दौरान बैंकिंग प्रदर्शन में समग्र सुधार के बावजूद बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ में कमी चिंता के के रूप में सामने आई है।
सहकारी बैंकों के बीच स्वैच्छिक विलय को प्रोत्साहन:
- सहकारी बैंक दोहरी चुनौतियाँ का सामना कर रहे हैं, पहली चुनौती न केवल अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों बल्कि सूक्ष्म वित्त बैंकों तथा भुगतान बैंकों से बढती हुई प्रतिस्पर्द्धा है तथा दूसरी चुनौती इन बैंकों द्वारा धोखाधड़ी से संबंधित घटनाओं को रोकने की आंतरिक अक्षमता है।
- सहकारी बैंकों को अपने कॉरपोरेट गवर्नेंस को उन्नत करने और अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाने के लिये सुधारों को शुरू करने की आवश्यकता है।
एनबीएफसी (Non-Banking Financial Company-NBFCs) क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित:
- वित्तीय वर्ष 2018-19 में गैर- बैंकिंग क्षेत्र की कई बड़ी कंपनियों द्वारा भुगतान दायित्वों को समय पर पूरा नहीं कर पाने के कारण एनबीएफसी क्षेत्र का सकल NPA अनुपात बढ़ा है। यह वित्तीय वर्ष 2018-19 में बढकर 6.1 प्रतिशत पर पहुँच गया है।
- NBFC क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में प्रोवीजनिंग के परिणामस्वरूप सकल NPA अनुपात में तो अधिक वृद्धि हुई है, परंतु निवल NPA अनुपात में मामूली वृद्धि हुई है।
- वहीं वित्तीय वर्ष 2019-20 (सितंबर तक) में एनबीएफसी क्षेत्र के सकल NPA अनुपात में मामूली वृद्धि के साथ पूंजी गुणवत्ता में कमी देखी गई है।
NBFCs को ऋण प्रदान करने में चूक:
- वित्तीय वर्ष 2019-20 में (सितंबर तक) एक प्रमुख एनबीएफसी द्वारा धोखाधड़ी तथा उसकी रेटिंग नीचे आने के कारण बैंकों द्वारा को ऋण प्रदान करने में कमी आई है।
- हालाँकि NBFCs के कुल ऋणों में बैंक ऋणों की हिस्सेदारी एक वर्ष पहले के 24.7 प्रतिशत से बढ़कर सितंबर 2019 के अंत में 26.9 प्रतिशत हो गई।
वृहद आर्थिक परिवर्तन:
- वैश्विक स्तर पर नीति निर्माता नियामक ढाँचे को मज़बूत कर रहे हैं और बैंकों के लिये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानदंडों को लागू कर रहे हैं।
- इन वैश्विक नीतियों का तत्काल परिणाम नहीं देखा जा सकता है, लेकिन दीर्घकालिक प्रभाव के रुप में ये नीतियाँ वैश्विक बैंकिंग प्रणाली की सुदृढ़ता और लचीलेपन को बढ़ाएंगी।
सहकारी बैंकों के लिये एक स्वतंत्र निरीक्षण प्रणाली की आवश्यकता:
- सहकारी बैंकों में एक अच्छे आंतरिक नियंत्रण तंत्र और निगरानी प्रणालियों की कमी धोखाधड़ी को रोकने की क्षमता को सीमित कर रही है।
- सहकारी बैंकों में सुधार सुनिश्चित करने के लिये एक स्वतंत्र और प्रभावी निरीक्षण प्रणाली की आवश्यकता की ज़रूरत महसूस की गई है।
तीव्र समाधान के लिये राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal -NCLT) में अधिक सदस्यों तथा पीठों की आवश्यकता:
- निर्णय प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये सहायक बुनियादी ढाँचे में सुधार करना एक अपरिहार्य शर्त है।
- हालाँकि NCLT की दो नई पीठें स्थापित की जा रही हैं, परंतु त्वरित निर्णय के लिये अभी अधिक पीठ तथा सदस्यों की आवश्यकता है।
कमज़ोर कोर्पोरेट प्रशासन तथा धोखाधड़ी की निगरानी की आवश्यकता:
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के शेयरधारक निदेशकों के लिये तय किये गए ‘उपयुक्त एवं उचित’ (Fit and Proper) मानदंडों के संबंध में दिये गए दिशा-निर्देशों की व्यापक समीक्षा अगस्त 2019 में की गई थी।
- संशोधित दिशा-निर्देश नए निदेशकों के लिये उचित योग्यता तथा अधिक परिश्रम से संबंधित प्रावधान करते हैं।
वृद्धिशील ऋणों का 69% ऋण निजी बैंकों द्वारा प्रदत्त:
- वित्तीय वर्ष 2018-19 में निजी बैंकों की वृद्धिशील ऋणों में भागीदारी 69% थी, अतः बकाया ऋण में उनकी हिस्सेदारी बढ़ गई।
- वहीं वित्तीय वर्ष 2019-20 में सभी बैंक समूहों की ऋण वृद्धि में गिरावट आई है।
50 प्रतिशत से अधिक की धोखाधड़ी के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ज़िम्मेदार:
- वित्तीय वर्ष 2018-19 में दर्ज किये गए कुल धोखाधड़ी के 55.4% मामले और इनमें शामिल कुल राशि का 90.2 % सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से संबंधित है।
- ये आँकड़े इन बैंकों में परिचालन जोखिमों से निपटने के लिये मुख्य रूप से पर्याप्त आंतरिक प्रक्रियाओं, व्यक्तियों और प्रणालियों की कमी को दर्शाते हैं।
फिनटेक (Fin Techs) तथा बिगटेक (Big Techs) कंपनियों से प्रतिस्पर्द्धा:
- बैंकों को गैर-पारंपरिक संस्थाओं जैसे- फिनटेक तथा बिगटेक से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि ये संस्थाएँ डिजिटल क्षेत्र में नवाचार का लाभ उठा रही हैं।
- ये संस्थाएँ नवाचार को बढ़ावा देने और एक समान पर्यवेक्षण और विनियामक ढाँचे को लागू करने के बीच संतुलन स्थापित करने में बैंकिंग नियामकों के सामने कठिन चुनौती प्रस्तुत कर रही हैं।
कृषि ऋण माफी का भी असर:
- RBI द्वारा कृषि कर्ज की समीक्षा के लिये गठित आंतरिक कार्यकारी समूह के अनुसार, उन राज्यों में NPA का स्तर बढ़ा है जहाँ 2017-18 और 2018-19 में कृषि कर्ज माफी की घोषणा की गई।
भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankrupty Code-IBC) के तहत वसूली:
- वित्तीय वर्ष 2018-19 में IBC के तहत तनावग्रस्त परिसंपत्तियों की वसूली में सुधार आया है, कुल तनावग्रस्त संपत्तियों की आधी से अधिक IBC के तहत वसूली गई हैं।
- हालाँकि वित्तीय वर्ष 2018-19 में प्रमुख समाधान तंत्रों (लोक अदालत को छोड़कर) द्वारा वसूली गई राशि में कमी आई है।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
इनिशियल पब्लिक ऑफर
प्रीलिम्स के लिये
इनिशियल पब्लिक ऑफर, ऑफर फॉर सेल, क्वालीफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट,
मेन्स के लिये
भारतीय अर्थव्यवस्था में पूंजी जुटाने में IPO का योगदान
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2019 में इनिशियल पब्लिक ऑफर (Initial Public Offer-IPO) के ज़रिये 12,362 करोड़ रुपए का फंड जुटाया गया जो वर्ष 2014 के बाद से सबसे कम है, जबकि कंपनियों ने वर्ष 2014 में IPO के ज़रिये 1,201 करोड़ रुपए जुटाए थे।
प्रमुख बिंदु:
- हालाँकि, ऑफर फॉर सेल (Offers For Sale - OFS) और क्वालीफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (Qualified Institutional Placements - QIP) के ज़रिये वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में अधिक फंड जुटाया गया।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स (Infrastructure Investment Trusts - InvITs) और रियल एस्टेट इनवेस्टमेंट ट्रस्ट्स (Real Estate Investment Trusts - ReITs) के माध्यम से जुटाई गई कुल राशि पिछले वर्ष की तुलना में 127% अधिक है।
इनिशियल पब्लिक ऑफर
(Initial Public Offer):
- IPO का अर्थ प्राथमिक बाज़ार में जनता को प्रतिभूतियों की बिक्री करना है।
- प्राथमिक बाज़ार पहली बार जारी की जा रही नई प्रतिभूतियों से संबंधित है। इसे New Issues Market के रूप में भी जाना जाता है।
- यह द्वितीयक बाज़ार से अलग होता है जहाँ मौजूदा प्रतिभूतियों को खरीदा और बेचा जाता है। इसे स्टॉक बाज़ार या स्टॉक एक्सचेंज के रूप में भी जाना जाता है।
- यह तब होता है जब एक गैरसूचीबद्ध कंपनी (Unlisted Companies) या तो प्रतिभूतियों को नए रूप में जारी करती है या अपनी मौजूदा प्रतिभूतियों की बिक्री का प्रस्ताव या दोनों को पहली बार जनता के लिये पेश करती है।
- गैरसूचीबद्ध कंपनियाँ (Unlisted Companies) वे कंपनियाँ हैं जो स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध नहीं होती हैं।
- इसे आमतौर पर नए और मध्यम आकार के फर्मों द्वारा उपयोग किया जाता है जो अपने व्यवसाय को विकसित करने और विस्तार के लिये धन की ज़रूरत महसूस कर रहे होते हैं।
ऑफर फॉर सेल (Offer For Sale-OFS):
- इस प्रणाली के तहत प्रतिभूतियों को सीधे जनता के लिये जारी नहीं किया जाता है, बल्कि बिचौलियों जैसे- मकान या शेयर दलालों के माध्यम से बेचने के लिये जारी किया जाता है।
- इस प्रणाली में एक कंपनी दलालों को उचित मूल्य पर प्रतिभूतियों को बेचती है, इसके बाद ये बिचौलिये इन प्रतिभूतियों को जनता को बेचते हैं।
- ऑफर फॉर सेल के ज़रिये आम लोगों से कंपनी के शेयर खरीदने का आग्रह किया जाता है किंतु इसके लिये किसी बिचौलिये जैसे इनवेस्टमेंट बैंक को नियुक्त किया जाता है।
क्वालीफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट
(Qualified Institutional Placements-QIP):
- QIP पूंजी जुटाने का एक तरीका है जिसमें एक सूचीबद्ध कंपनी (Listed Company) इक्विटी शेयर, पूरी तरह या आंशिक रूप से परिवर्तनीय डिबेंचर, या कोई प्रतिभूति (वारंट के अलावा) जारी कर सकती है जो इक्विटी शेयरों में परिवर्तनीय हो।
- एक सूचीबद्ध कंपनी (Listed Company) एक फर्म होती है जिसके शेयर सार्वजनिक ट्रेडिंग के लिये स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होते हैं। इसे कोटेड कंपनी (Quoted Company) भी कहा जाता है।
- यह एक ऐसी विधि है जिसके तहत एक सूचीबद्ध कंपनी निवेशकों के चुनिंदा समूह को शेयर या परिवर्तनीय प्रतिभूतियाँ जारी कर सकती है।
- किंतु एक IPO के विपरीत एक QIP जारी करने में केवल कुछ संस्थान या Qualified Institutional Buyers-QIBs ही भाग ले सकते हैं।
- QIB में म्यूचुअल फंड, घरेलू वित्तीय संस्थान जैसे- बैंक और बीमा कंपनियाँ, वेंचर कैपिटल फंड, विदेशी संस्थागत निवेशक और अन्य शामिल होते हैं।
इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट
(Infrastructure Investment Trust-InvIT):
- InvIT म्यूचुअल फंड की तरह एक सामूहिक निवेश योजना है
- म्यूचुअल फंड इक्विटी शेयरों में निवेश करने का अवसर प्रदान करते हैं जबकि InvIT सड़क और बिजली जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में निवेश करने की अनुमति देता है।
- InvIT को सेबी (इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्टस) विनियमन, 2014 द्वारा विनियमित किया जाता है।
रियल एस्टेट इंवेस्टमेंट ट्रस्ट
(Real Estate Investment Trust-ReIT):
- ReITs अचल संपत्ति से जुड़ी प्रतिभूतियाँ हैं और सूचीबद्ध होने के बाद इनका स्टॉक एक्सचेंजों पर कारोबार किया जा सकता है।
- ReITs की संरचना एक म्यूचुअल फंड के समान है। म्यूचुअल फंड की तरह ही ReITs में प्रायोजक, ट्रस्टी, फंड मैनेजर और यूनिट धारक होते हैं।
- हालाँकि म्यूचुअल फंड के माध्यम से अंतर्निहित संपत्ति बाण्ड, स्टॉक और सोना में निवेश किया जाता है तो वहीं ReITs में भौतिक अचल संपत्ति (Physical Real Estate) में निवेश किया जाता है।
- इस प्रणाली में आय-उत्पादक रियल एस्टेट से एकत्र किये गए धन को यूनिट धारकों के बीच वितरित किया जाता है। इसके साथ ही किराये और पट्टों से नियमित आय के अलावा अचल संपत्ति की पूंजी से लाभ भी यूनिट धारकों के लिये एक आय का माध्यम बनता है।
स्रोत- द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
सुशासन सूचकांक (Good Governance Index)
प्रीलिम्स के लिये:
सुशासन सूचकांक, विभिन्न मानदंड, उद्देश्य
मेन्स के लिये
शासन व्यवस्था में सुशासन सूचकांक का महत्त्व।
चर्चा में क्यों?
25 दिसंबर, 2019 ‘सुशासन दिवस’ (अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती 25दिसंबर) के अवसर पर ‘कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय’ (The Ministry of Personnel, Public Grievances & Pensions) द्वारा सुशासन सूचकांक (Good Governance Index- GGI) की शरुआत की गई है।
मुख्य बिंदु:
- इसे सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा शासन की स्थिति प्रभावों का आकलन करने के लिये एक समान उपकरण के रूप में तैयार किया गया है।
- GGI के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल हैं:
- सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में शासन की तुलना करने के लिये मात्रात्मक डेटा प्रदान करना।
- शासन में सुधार के लिये उपयुक्त रणनीति बनाने और लागू करने में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को सक्षम बनाना ताकि शासन व्यवस्था को और बेहतर एवं परिणामोन्मुखी बनाया जा सके।
GGI सूचकांक का निर्धारण :
- सूचकांक को वैज्ञानिक रूप से शासन के विभिन्न मापदंडों के आधार पर पर तैयार किया गया है तथा इसमें निम्नलिखित 10 क्षेत्रकों/सेक्टरों को ध्यान में रखा गया है:
- पर्यावरण
- कृषि और संबद्ध क्षेत्र
- वाणिज्य एवं उद्योग
- मानव संसाधन विकास
- सार्वजनिक स्वास्थ्य
- आर्थिक प्रशासन
सार्वजनिक अवसंरचना व उपयोगिताएँ - समाज कल्याण और विकास
- न्यायिक व सार्वजनिक सुरक्षा
- नागरिक केंद्रित प्रशासन। शोधकर्ताओं
उपरोक्त वर्णित दस शासन क्षेत्रों को पुनः 51 संकेतकों के आधार पर मापा जाता है।
मूल्य की गणना करने के लिये अंतर संकेतकों को एक शासन क्षेत्र के तहत अलग-अलग वेटेज़ दिया जाता है। जैसे कृषि और संबद्ध क्षेत्र के अंतर्गत अलग-अलग भार के साथ 6 संकेतकों को शामिल किया गया हैं-
1. कृषि और संबद्ध क्षेत्र की विकास दर (0.4)
2. खाद्यान्न उत्पादन की वृद्धि दर (0.1)
3. बागवानी उपज की विकास दर (0.1)
4. विकास दर दूध उत्पादन (0.1)
5. मांस उत्पादन की वृद्धि दर (0.1)
6. फसल बीमा (0.2)
- सूचकांक में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को तीन अलग-अलग समूहों में विभक्त किया गया है:
- बड़े राज्य
- उत्तर-पूर्व और पहाड़ी राज्य और
- संघ राज्य क्षेत्र।
- वर्णित सभी संकेतकों पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अलग-अलग स्थान दिया गया है जिसके आधार पर इन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये समग्र रैंकिंग की भी गणना की गई है।
समग्र रैंकिंग:
बड़े राज्यों में
- शीर्ष स्थान वाले तीन राज्य: तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक।
- निचले स्थान वाले तीन राज्य : ओडिशा, बिहार, गोवा।
रैंक | बड़े राज्य | अंक | रैंक | बड़े राज्य | अंक |
1 |
तमिलनाडु |
5.62 |
10 |
पश्चिम बंगाल |
4.84 |
पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों में
- शीर्ष स्थान वाले तीन राज्य : हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और त्रिपुरा।
- निचले स्थान वाले तीन राज्य: अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मेघालय।
केंद्रशासित प्रदेशों में
- शीर्ष तीन राज्य: पांडिचेरी , चंडीगढ़ और दिल्ली।
- निचले स्थान पर: लक्षद्वीप।
पर्यावरण क्षेत्र में क्षेत्रवार रैंकिंग:
- शीर्ष तीन राज्य: पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु।
- निचले स्थान वाले 3 राज्य: तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और गोवा।
आर्थिक प्रशासन की श्रेणी में:
- इस श्रेणी के अंतर्गत कर्नाटक शीर्ष पर है।
स्वास्थ्य की श्रेणी में:
- इस श्रेणी में केरल शीर्ष पर है।
सुशासन:
सुशासन शासन व्यवस्था का एक रूप है जिसका आशय है किसी सामाजिक-राजनीतिक या प्रशासनिक इकाई को इस प्रकार चलाना कि वह सकारात्मक परिणाम दे।
स्रोत: पी.आई.बी.
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स) 28 दिसंबर, 2019
मर्चेंट डिस्काउंट रेट
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पब्लिक सेक्टर बैंकों (PSBs) के प्रमुखों के साथ समीक्षा बैठक कर कुछ चुनिंदा पेमेंट मोड पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) शुल्क को खत्म करने की घोषणा की है। निर्मला सीतारमण के अनुसार, नोटिफाइड पेमेंट मोड पर किसी भी प्रकार का MDR शुल्क देने की ज़रूरत नहीं होगी। सरल शब्दों में समझने का प्रयास करें तो जब किसी दुकान पर कोई व्यक्ति अपना कार्ड स्वैप करता है तो जो शुल्क दुकानदार को अपने सेवा प्रदाता को देना होता है, उसे ही MDR शुल्क कहते हैं। विदित हो कि यह शुल्क ऑनलाइन लेन-देन एवं QR आधारित ट्रांजैक्शन पर लागू होता है। वित्त मंत्री के अनुसार, जनवरी 2020 से 50 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार करने वाले सभी कारोबारी बिना किसी MDR शुल्क के रूपे डेबिट कार्ड और UPI QR कोड के जरिये भुगतान की सुविधा उपलब्ध करा पाएंगे।
प्रधानमंत्री आवास योजना
केंद्र सरकार ने 6.5 लाख घरों का निर्माण करने की योजना को मंज़ूरी दे दी है। इन घरों का निर्माण प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत किया जाएगा। इसके अतिरिक्त इस योजना से मिले अनुदान के तहत निर्मित होने वाले घरों की कुल संख्या 1 करोड़ के पार पहुँच गई है। केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के अनुसार, अगले तीन से चार महीने में सरकार 1.12 करोड़ घरों के निर्माण का अपना लक्ष्य पूरा कर लेगी।
शिजियान-20
हाल ही में चीन ने अपना सबसे उन्नत और सबसे भारी संचार उपग्रह शिजियान-20 लॉन्च किया है। इस उपग्रह को लेकर उसका सबसे बड़ा रॉकेट लॉन्ग मार्च-5 अंतरिक्ष के लिये रवाना हुआ है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह रॉकेट दूर अंतरिक्ष के रहस्यों को जानने के उद्देश्य से विकसित किया गया है। दक्षिणी चीन के हेनान प्रांत में स्थित वेनचांग स्पेस लॉन्च सेंटर से छोड़ा गया शिजियान-20 आठ हज़ार किलोग्राम से ज्यादा वज़न का है। यह चीन का सबसे भारी कृत्रिम उपग्रह है। इसका निर्माण चाइना एकेडमी ऑफ स्पेस टेक्नोलॉजी ने किया है।