शासन व्यवस्था
जम्मू-कश्मीर में भूमि खरीदने की इजाज़त
प्रिलिम्स के लियेअनुच्छेद 370 और 35A तथा इनकी समाप्ति संबंधी मुख्य तथ्य मेन्स के लियेगृह मंत्रालय के हालिया निर्णय का महत्त्व और आलोचना |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर में भूमि संबंधित मामलों को नियंत्रित करने वाले नए नियम अधिसूचित किये हैं, जिसके माध्यम से अब कोई भी भारतीय नागरिक केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में गैर-कृषि भूमि खरीद सकता है।
प्रमुख बिंदु
- केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना के माध्यम से जम्मू-कश्मीर में भूमि खरीदने के लिये स्थायी निवासी होने की शर्त को समाप्त कर दिया है, जिससे अब जम्मू-कश्मीर में गैर-कृषि भूमि खरीदने के लिये किसी भी प्रकार के अधिवास या स्थायी निवासी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होगी।
- हालाँकि कृषि योग्य भूमि को इसके तहत शामिल नहीं किया गया है और इसकी खरीद अभी भी राज्य के किसानों और कृषिविदों द्वारा ही की जा सकती है।
- ज्ञात हो कि केंद्र सरकार जल्द ही केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के संबंध में भी इस प्रकार की अधिसूचना जारी कर सकती है।
क्या-क्या परिवर्तन होगा?
- नए कानूनों के माध्यम से जम्मू-कश्मीर की भूमि पर स्थायी निवासियों के विशेष अधिकारों को समाप्त कर दिया गया है।
- जम्मू-कश्मीर के बाहर निवास करने वाले आम लोग और निवेशक सभी जम्मू-कश्मीर में भूमि खरीद सकेंगे, जिससे इस क्षेत्र का विकास सुनिश्चित होगा।
- कृषि योग्य भूमि को गैर-कृषि प्रयोजन के लिये उपयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, हालाँकि यहाँ अपवाद स्वरूप कृषि योग्य भूमि को शैक्षिक या स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की स्थापना हेतु प्रयोग किया जा सकता है।
- नए प्रावधान के तहत कोर कमांडर के पद से ऊपर के पद पर कार्यरत सेना का कोई अधिकारी राज्य के किसी स्थानीय क्षेत्र को ‘सामरिक क्षेत्र’ के रूप में घोषित कर सकता है, जिसका उपयोग केवल सशस्त्र बलों द्वारा परिचालन और प्रशिक्षण संबंधी आवश्यकताओं के लिये किया जाएगा।
महत्त्व
- केंद्र सरकार लगातार यह तर्क दे रही थी कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35A के कारण राज्य के विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है, क्योंकि इन अनुच्छेदों और कई अन्य कानूनों के कारण निवेशकों को जम्मू-कश्मीर में निवेश करने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।
- इस तरह इस क्षेत्र का विकास सुनिश्चित होगा और यहाँ शांति एवं समृद्धि स्थापित की जा सकेगी। विकास के माध्यम से यहाँ रोज़गार के अवसर भी सृजित होंगे, जिससे लोगों के जीवन स्तर में सुधार आएगा।
- विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि जम्मू-कश्मीर में आर्थिक गतिविधियों को सही ढंग से आकार दिया जाए तो इस क्षेत्र के रियल एस्टेट सेक्टर के विकास की काफी अधिक संभावना है।
आलोचना
- आलोचकों का मानना है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35A के माध्यम से अब तक जम्मू-कश्मीर की विशिष्टता को संरक्षित रखने का प्रयास किया जा रहा था, लेकिन अब जब अनुच्छेद 370 और 35A को समाप्त कर दिया गया है और भारत के अन्य नागरिकों को भी जम्मू-कश्मीर में भूमि खरीदने तथा निवेश करने की इजाज़त दी जा रही है तो इससे जम्मू-कश्मीर की विशिष्टता प्रभावित हो सकती है।
- हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर राज्यों में भी इसी प्रकार के नियम लागू हैं और वहाँ भी कोई अन्य व्यक्ति भूमि नहीं खरीद सकता है।
- कई लोग यह तर्क दे रहे हैं कि इस प्रकार का भूमि आरक्षण, कश्मीर के महाराजा हरि सिंह और भारतीय गणराज्य के बीच बाहरी लोगों से कश्मीरी निवासियों के विशेषाधिकारों की रक्षा के लिये किये गए समझौते का हिस्सा था और इस विशेषाधिकार को समाप्त करना एक प्रकार से कश्मीरी लोगों में भारत के प्रति अविश्वास पैदा करेगा।
अनुच्छेद 35A
- अनुच्छेद 35A, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 का ही विस्तार था, जिसे अगस्त 2019 में समाप्त कर दिया गया।
- संविधान का अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने और उन्हें स्थायी निवास प्रमाणपत्र जारी करने की शक्ति प्रदान करता था।
- यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर में अन्य राज्यों के निवासियों को कार्य करने या संपत्ति के स्वामित्त्व की अनुमति नहीं देता था। इस अनुच्छेद का मूल उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना था।
- इस प्रकार यह अनुच्छेद राज्य के बाहर के लोगों को जम्मू-कश्मीर में अचल संपत्ति खरीदने, स्थायी रूप से बसने, या राज्य-प्रायोजित छात्रवृत्ति योजनाओं का लाभ प्राप्त करने से रोकता था।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारतीय जीनोम डेटासेट: इंडीजेन
प्रिलिम्स के लिये:इंडीजेन कार्यक्रम, जीनोम अनुक्रमण, जीनोम रेफरेंस कंसोर्टियम (GRCh38) मेन्स के लिये:मानव जीनोम प्रोजेक्ट |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) के वैज्ञानिकों द्वारा 1029 भारतीयों के ‘जीनोम अनुक्रमण’ (Genome Sequencing) पर व्यापक संगणना विश्लेषण परिणाम जारी किये गए।
प्रमुख बिंदु:
- प्रोजेक्ट पर शोध कार्य CSIR– 'जिनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान,, दिल्ली (CSIR-Institute of Genomics and Integrative Biology - IGIB) तथा 'कोशिकीय एवं आणविक जीव विज्ञान केंद्र’ हैदराबाद (CSIR-Centre for Cellular and Molecular Biology, CCMB) द्वारा किया गया है।
- यह शोध कार्य ‘इंडीजेन’ (IndiGen) जीनोम अनुक्रमण कार्यक्रम का ही एक भाग है।
- जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) के तहत डीएनए अणु के भीतर न्यूक्लियोटाइड के सटीक क्रम का पता लगाया जाता है।
- इसके अंतर्गत डीएनए में मौज़ूद चारों तत्त्वों- एडानीन (A), गुआनीन (G), साइटोसीन (C) और थायामीन (T) के क्रम का पता लगाया जाता है।
इंडीजेन जीनोम प्रोजेक्ट:
- भारत 1.3 बिलियन से अधिक जनसंख्या के साथ विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। समृद्ध आनुवंशिक विविधता के बावजूद भारत की वैश्विक जीनोम अध्ययनों में बहुत कम भागीदारी है।
- इस अंतराल को भरने की दिशा में CSIR द्वारा अप्रैल 2019 में ‘इंडीजेन’ (IndiGen) कार्यक्रम शुरू किया गया है।
- इंडीजेन जीनोम परियोजना (IndiGen Genome Project) के तहत 1000 से अधिक लोगों के जीनोम अनुक्रमण का अध्ययन किया गया है।
- कार्यक्रम के तहत देश भर से 1029 स्वस्थ भारतीयों के संपूर्ण 'जीनोम अनुक्रमण' का कार्य पूरा किया गया है।
प्रोजेक्ट का महत्त्व:
आनुवंशिक विभेदता/वेरिएंट का संग्रह:
- इंडीजीनोम प्रोजेक्ट के तहत संग्रहीत डेटा संसाधन, संपूर्ण भारतीय आबादी की आनुवंशिक विभेदता के संबंध में जानकारी प्रदान करते हैं।
- ये संसाधन न केवल आबादी के स्तर पर बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी आनुवंशिकी में शोधकर्त्ताओं और चिकित्सकों के लिये उपयोगी अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
चिकित्सकीय अनुप्रयोग:
- आनुवंशिक विभेदता वर्गीकरण का अनुप्रयोग सटीक दवा देने तथा दवाओं के परिणामों में सुधार करने में किया जा सकेगा।
- आनुवंशिक डेटा संसाधन का उपयोग रोग वाहकों की स्क्रीनिंग में बायोमार्करों की पहचान करने, आनुवंशिक रोगों के कारकों को निर्धारित करने, बेहतर नैदानिक प्रणाली का विकास करने, फार्माकोजेनेटिक वेरिएंट डेटा के माध्यम से बेहतर थेरेपी चिकित्सा प्रदान करने में किया जा सकता है।
महामारी प्रबंधन:
- इंडीजेन कार्यक्रम वर्तमान और भविष्य की महामारियों के प्रति देश की प्रतिक्रिया को मज़बूती प्रदान करने वाले जीनोमिक्स और भारत की जीनोमिक विविधता को समझने की क्षमता में वृद्धि करेगा।
विशिष्ट जीनोम डेटासेट:
- जीनोम डेटा संसाधन का उपयोग शोधकर्त्ताओं को भारतीय-विशिष्ट संदर्भ में जीनोम डेटासेट का निर्माण करने और कुशलता से हेप्लोटाइप (युग्म विकल्पियों का विशिष्ट संयोजन) जानकारी प्रदान करने में किया जा सकेगा।
- यह शोध कार्य जीनोम रेफरेंस कंसोर्टियम (GRCh38) के मानकों के अनुरूप है।
जीनोम रेफरेंस कंसोर्टियम (GRCh38):
- सर्वप्रथम वर्ष 2001 में 'मानव जीनोम प्रोजेक्ट' के तहत ' ह्यूमन जीनोम रेफरेंस’ को संग्रहीत किया गया था।
- मानव जीनोम अनुक्रमण आधारित जैव चिकित्सा अनुसंधान के लिये 'ह्यूमन रेफरेंस जीनोम' (HRG) मूलभूत आवश्यकता है।
- वर्ष 2009 में जीनोम रेफरेंस कंसोर्टियम (GRC) द्वारा 19वें 'ह्यूमन रेफरेंस जीनोम' संस्करण में ‘जीनोम रेफरेंस कंसोर्टियम’-37 (GRCh37) जारी किया गया था जिसे अक्सर ह्यूमन जीनोम 19 (HG19) के रूप में भी संदर्भित किया जाता है।
- GRCh37 रेफरेंस का जीनोम डेटा विश्लेषण में कई वर्षों तक बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया था।
- GRCh38 वर्तमान में उपलब्ध सबसे सटीक ‘मानव जीनोम अनुक्रम’ रेफरेंस है। इसका उपयोग अंतर्राष्ट्रीय जीनोम अनुक्रमण शोध कार्यों में एक मानक के रूप में किया जा रहा है।
आगे की राह:
- मानव जीनोम प्रोजेक्ट का पूरी तरह से लाभ हासिल करने के लिये भारत को अपनी आबादी की आनुवंशिक जानकारी को संग्रहीत करने और अगली पीढ़ी के जीनोमिक्स पर शोध करने में सक्षम मानव शक्ति को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
- सरकार को जीनोम अनुक्रम से जुड़ी नैतिकता संबंधी, पेटेंट संबंधी और डेटा सुरक्षा संबंधी चिंताओं का निराकरण करने की दिशा में आवश्यक उठाने की दिशा में काम करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
‘डायरेक्ट पोर्ट एंट्री’ सुविधा
प्रिलिम्स के लिये‘डायरेक्ट पोर्ट एंट्री’ सुविधा मेन्स के लिये‘डायरेक्ट पोर्ट एंट्री’ सुविधा तथा इसके लाभ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया ने तमिलनाडु के तूतीकोरिन में वी. ओ. चिदंबरनार (VO Chidambaranar- VOC) बंदरगाह पर रसद लागत को कम करने में मदद के लिये एक ‘डायरेक्ट पोर्ट एंट्री’ सुविधा (Direct Port Entry Facility-DPE) का उद्घाटन किया।
प्रमुख बिंदु:
- इस सुविधा को 30 वर्ष तक संचालित करने के लिये केंद्रीय भंडारण निगम के साथ समझौता किया गया है।
- ध्यातव्य है कि इससे पूर्व कारखानों से सीलबंद कंटेनरों को पहले तूतीकोरिन में संचालित होने वाले कंटेनर फ्रेट स्टेशनों (CFS)/इनलैंड कंटेनर डिपो (ICD) में से एक में ले जाया जाता था और यह सुविधा एक कार्यदिवस में सुबह 10 से रात 8 बजे तक ही उपलब्ध थी। इसकी वजह से कंटेनरों को कंटेनर टर्मिनलों के अंदर ले जाने में काफी देरी होती थी।
‘डायरेक्ट पोर्ट एंट्री’ के तहत प्राप्त होने वाली सुविधाएँ:
- अत्याधुनिक डायरेक्ट पोर्ट एंट्री सुविधा के माध्यम से निर्यातक अपने कंटेनरों को CFS के दखल के बिना कारखानों से सीधे बंदरगाहों के कंटेनर टर्मिनल पर चौबीस घंटे भेजने की सुविधा पा सकेंगे।
- यह सुविधा ट्रक पार्किंग टर्मिनल के अंदर 18,357 वर्गमीटर के क्षेत्र में बनाई गई है, जिसे कारखानों से सील होकर आए निर्यातित वस्तुओं से भरे कंटेनरों को सीमा शुल्क निकासी सुविधा प्रदान करने हेतु 'सागरमाला' योजना के तहत विकसित किया गया है।
- यह प्रतिमाह 18,000 टीईयू को वहन करने की क्षमता रखती है।
- डीपीई सुविधा के तहत केंद्रीय भंडारण निगम के माध्यम से भारतीय सीमा शुल्क विभाग एक ही छत के नीचे निर्यातकों को एलईओ (Let Export Order- LEO) भी उपलब्ध कराएगा।
- केंद्रीय भंडारण निगम और सीमा शुल्क अधिकारियों की एक टीम वीओसी पोर्ट के सहयोग से टियर-2 और टियर-3 (एईओ) प्रमाणित आयात-निर्यात ग्राहकों को सेवा प्रदान करेगी।
- सीमा शुल्क विभाग ने भी बंदरगाह में डीपीई सुविधा के संचालन को मंज़ूरी दी है।
लाभ:
- यह लॉजिस्टिक लागत को कम करने और बंदरगाहों से निर्यात खेप को भेजने की प्रक्रिया को गति देने की दिशा में एक उल्लेखनीय कदम है।
- डीपीई, निर्यातकों के लिये कारोबारी सुगमता को बढ़ाने में मदद करेगा, इससे निर्यातकों के काम में दक्षता आएगी, सामान भेजने पर खर्च कम होगा, साथ ही वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी हो सकेंगे।
- बंदरगाहों पर आईटी सक्षम बुनियादी ढाँचा निश्चित रूप से हमारे बंदरगाहों को पोत परिवहन मंत्रालय के ‘मेरीटाइम विज़न 2030’ के अनुरूप विश्व स्तर के बंदरगाहों में परिवर्तित कर देगा।
- इस सुविधा के माध्यम से ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ में भारत की स्थिति बेहतर होगी तथा भारत व्यवसायी संस्कृति को आगे बढ़ाने में अपनी सशक्त भूमिका दर्ज कराएगा।
- इस सुविधा के माध्यम से भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था में विस्तार होगा तथा इसके माध्यम से यह अपने क्षेत्रीय हितों को भी साध सकेगा।
‘डायरेक्ट पोर्ट एंट्री’ सुविधा:
(Direct Port Entry Facility)
डीपीई एक ऐसी योजना है, जो निर्यात के संबंध में समय और लागत को कम कम करती है, जिसके तहत निर्यात कंटेनरों को ‘लेट एक्सपोर्ट ऑर्डर’ ( LEO) देने से पहले ही पोर्ट एक्सपोर्ट में सीधे प्रवेश की अनुमति दी जाती है। यह भारत से बाहर वस्तुओं के निर्यात के लिये आवश्यक अनुपालन सूची का अंतिम चरण है।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय विरासत और संस्कृति
बूंदी स्थापत्य कला
प्रिलिम्स के लियेबूंदी, ‘देखो अपना देश’ वेबिनार शृंखला मेन्स के लियेबूंदी की वास्तुकला विरासत |
चर्चा में क्यों?
पर्यटन मंत्रालय ने 24 अक्तूबर, 2020 को ‘बूंदी: आर्किटेक्चरल हेरिटेज ऑफ ए फॉरगोटेन राजपूत कैपिटल’ शीर्षक से ‘देखो अपना देश’ वेबिनार शृंखला का आयोजन किया, जो राजस्थान के बूंदी ज़िले पर केंद्रित थी।
उद्देश्य:
- मध्ययुगीन भारत के प्रमुख शक्ति केंद्रों के आस-पास स्थित छोटे ऐतिहासिक शहर वर्तमान में गुमनामी की दशा में हैं।
- भारत के विशाल भूगोल में विस्तृत छोटे शहरों और कस्बों की ओर पर्यटकों का ध्यान काफी कम गया है, ऐसे में पर्यटकों को इन क्षेत्रों के बारे में अवगत कराना काफी आवश्यक है, ताकि आम लोग इन क्षेत्रों के ऐतिहासिक महत्त्व को जान सकें और एक पर्यटन स्थल के तौर पर इनका विकास हो सके।
‘देखो अपना देश’ वेबिनार शृंखला
- भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने 14 अप्रैल, 2020 से ‘देखो अपना देश’ (Dekho Apna Desh) वेबिनार शृंखला शुरू की है।
- इस वेबिनार शृंखला का उद्देश्य भारत के कई गंतव्यों के बारे में जानकारी देने के साथ ही अतुल्य भारत की संस्कृति एवं विरासत की गहरी एवं विस्तृत जानकारी प्रदान करना है।
बूंदी
- बूंदी, हाडा राजपूत (Hada Rajput) प्रांत की पूर्ववर्ती राजधानी है जिसे दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में पहले हाडौती के नाम से जाना जाता था।
- बूंदी को सीढ़ीदार बावड़ी का शहर, नीला शहर और छोटी काशी के रूप में भी जाना जाता है। प्राचीन समय में बूंदी के आसपास का क्षेत्र स्पष्ट रूप से विभिन्न स्थानीय जनजातियों का निवास स्थल था, जिनमें परिहार जनजाति, मीणा आदि प्रमुख थे।
- बाद में इस क्षेत्र पर राव देव द्वारा शासन किया गया, जिन्होंने 1242 में बूंदी पर कब्ज़ा कर लिया और आसपास के क्षेत्र का नाम बदलकर हाडौती या हरोती रख दिया।
बूंदी में दरवाज़ों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है:
- तारागढ़ का प्रवेश द्वार, सबसे पुराना दरवाज़ा।
- चारदीवारी के चार शहर।
- बाहरी शहर की दीवार का दरवाज़ा।
- चारदीवारी वाले शहर की प्रमुख सड़कों पर दरवाज़ा।
- छोटा दरवाज़ा।
कोतवाली दरवाज़ा और नगर पोल सदर बाज़ार की दीवार शहर के भीतर बनाए गए थे।
वास्तुकला
- बूंदी के भीतर और आसपास सौ से अधिक मंदिरों की उपस्थिति के कारण इसे छोटी काशी के रूप में जाना जाता था।
- बूंदी के विकास के शुरुआती चरण में निर्मित मंदिरों में शास्त्रीय नागर शैली प्रचलित थी, जबकि बाद के चरणों में शास्त्रीय नागर शैली के साथ पारंपरिक हवेली के स्थापत्य के मिश्रण से मंदिर की नई अवधारणा सामने आई।
- यहाँ के जैन मंदिरों ने एक अंतर्मुखी रूप में मंदिर स्थापत्य की तीसरी शैली को विकसित किया, जिसमें विशिष्ट जैन मंदिर की विशेषताओं जैसे- प्रवेश द्वार पर सर्पीय तोरण द्वार, बड़े घनाकार अपारदर्शी पत्थर और गर्भगृह पर नागर शैली के शिकारे के साथ केंद्रीय प्रांगण को जोड़ा गया था।
- ऊँचे स्थान वाले मंदिरों के रूप में मंदिर स्थापत्य की एक चौथी शैली भी सामने आई।
बूंदी की वास्तुकला विरासत को छह प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1. गढ़ (किला)
- तारागढ़
2. गढ़ महल (रॉयल पैलेस)
- भज महल
- चतरा महल
- उम्मेद महल
3. बावड़ी
- खोज दरवाज़ा की बावड़ी
- भलवाड़ी बावरी
4. कुंड (स्टेप्ड टैंक)
- धाभाई जी का कुंड
- नगर कुंड और सागर कुंड
- रानी कुंड
5. सागर महल (लेक पैलेस)
- मोती महल
- सुख महल
- शिकार बुर्ज
6. छतरी (सेनटैफ)
- 84 खंभों वाली छतरी
- तारागढ़ किला: तारागढ़ किले का निर्माण राव राजा बैर सिंह ने 1454 फीट ऊँची पहाड़ी पर वर्ष1354 में करवाया था।
- मंडपों की घुमावदार छतों, मंदिर के स्तंभों और हाथियों की अधिकता तथा कमल की आकृति के साथ यह महल राजपूत शैली का एक प्रमुख उदाहरण है।
- सुख महल: यह एक छोटा दो मंज़िला महल है जिसे शासकों द्वारा गर्मियों के मौसम में प्रयोग किया जाता था। जैतसागर झील के तट पर स्थित इस महल का निर्माण राव राजा विष्णु सिंह ने वर्ष 1773 में किया था।
- रानीजी की बावड़ी: रानीजी की बावड़ी, रानी नाथावती द्वारा निर्मित एक प्रसिद्ध सीढ़ीदार बावड़ी है। यह बहुमंजिला बावड़ी गजराज की उत्कृष्ट नक्काशी को प्रदर्शित करती है।
स्रोत: पी.आई.बी
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
तीसरा भारत-अमेरिका टू-प्लस-टू वार्ता
प्रिलिम्स के लिये:भारत-अमेरिका 2+2 संवाद, भू-स्थानिक सहयोग के लिये बुनियादी विनिमय तथा सहयोग समझौते, BECA मेन्स के लिये:भारत-अमेरिका 2+2 संवाद |
चर्चा में क्यों?
भारत-अमेरिका के बीच तीसरी टू-प्लस-टू वार्ता (2+2 Dialogue) 27 अक्तूबर को नई दिल्ली में आयोजित की गई।
प्रमुख बिंदु:
- ‘टू-प्लस-टू वार्ता’ भारत-अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्रियों के नेतृत्त्व में आयोजित की गई।
- भारत और अमेरिका के बीच ‘टू प्लस टू वार्ता’ दोनों देशों के मध्य एक उच्चतम स्तर का संस्थागत तंत्र है जो भारत और अमेरिका के बीच सुरक्षा, रक्षा तथा रणनीतिक साझेदारी की समीक्षा के लिये मंच प्रदान करता है।
- ‘टू-प्लस-टू वार्ता’ के प्रथम दो दौर वर्ष 2018 और वर्ष 2019 में आयोजित किये गए थे।
- भारत द्वारा ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ ‘टू-प्लस-टू’ स्तर की वार्ता आयोजित की जाती है।
वार्ता के दौरान प्रमुख समझौते:
भू-स्थानिक सहयोग के लिये बुनियादी विनिमय तथा सहयोग समझौता (BECA):
- भारत द्वारा अमेरिका के साथ ‘भू-स्थानिक सहयोग के लिये बुनियादी विनिमय तथा सहयोग समझौते’ (Basic Exchange and Cooperation Agreement for Geo-Spatial cooperation- BECA) पर हस्ताक्षर किये गए।
- यह अमेरिकी रक्षा विभाग और भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय की राष्ट्रीय भू-स्थानिक खुफ़िया एजेंसी के बीच प्रस्तावित एक संचार समझौता है।
- यह समझौता भारत और अमेरिका को उन्नत उपग्रह तथा स्थलाकृतिक डेटा जैसे- मानचित्र, सामुद्रिक एवं वैमानिकी चार्ट, भू-गणितीय, भू-भौतिकी, भू-चुंबकीय एवं गुरुत्वाकर्षण डेटा सहित सैन्य जानकारी साझा करने की अनुमति देगा।
- साझा की गई अधिकांश जानकारी अवर्गीकृत होगी। हालाँकि किसी तीसरे पक्ष के साथ जानकारी साझा करने से रोकने के लिये सुरक्षा उपायों के साथ वर्गीकृत जानकारी साझा करने का प्रावधान शामिल है।
- ECA दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित चार मूलभूत सैन्य संचार समझौतों में से एक है। अन्य तीन इस प्रकार हैं:
- लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (Logistics Exchange Memorandum of Agreement- LEMOA);
- संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (Communications Compatibility and Security Agreement- COMCASA);
- सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (General Security Of Military Information Agreement- GSMIA)।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र पर संयुक्त वक्तव्य:
- एक संयुक्त वक्तव्य के माध्यम से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत और अमेरिका के साझा लक्ष्यों को रेखांकित किया गया।
- दोनों देशों ने दक्षिण चीन सागर के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार एक वैध ‘आचार संहिता के निर्माण पर बल दिया ताकि किसी भी देश के वैध अधिकारों और हितों की रक्षा की जा सके।
- अमेरिका द्वारा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 'चीनी कम्युनिस्ट पार्टी' की भूमिका और COVID-19 महामारी के दौरान चीन के रवैये को विश्व के समक्ष सबसे बड़ा खतरा बताया गया।
- अमेरिका ने कानून का शासन, पारदर्शिता और स्वतंत्र नेवीगेशन प्रणाली के साथ ही एक मुक्त एवं खुले और समृद्ध भारत-प्रशांत क्षेत्र की आवश्यकता पर बल दिया गया।
सहयोग के अन्य क्षेत्र:
- पृथ्वी अवलोकन और पृथ्वी विज्ञान में तकनीकी सहयोग को लेकर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- 'परमाणु ऊर्जा भागीदारी के लिये वैश्विक केंद्र' (Global Center for Nuclear Energy Partnership) संबंधी समझौता ज्ञापन की समयावधि बढ़ाने के लिये भी सहमति व्यक्त की गई।
- दोनों पक्षों द्वारा सीमा शुल्क डेटा के इलेक्ट्रॉनिक विनिमय के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
- पारंपरिक भारतीय दवाओं में सहयोग के बारे में एक लैटर ऑफ इंटेंट पर भी हस्ताक्षर किये गए।
- दोनों देशों द्वारा अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा और उसकी शांति प्रक्रिया के लिये समर्थन पर सहमति व्यक्त की गई।
समझौतों का महत्त्व:
- BECA के माध्यम से अमेरिका के साथ भू-स्थानिक खुफिया जानकारी साझा करने से स्वचालित हार्डवेयर सिस्टम, क्रूज़ मिसाइलों, बैलिस्टिक मिसाइलों, ड्रोन जैसे हथियारों के क्षेत्र में भारतीय सेना की दक्षता को बढ़ावा मिलेगा।
- भारत और अमेरिका के अलावा 'क्वाड' के दो अन्य सदस्य ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ सहयोग बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- भारत-अमेरिका के समक्ष चुनौतियों के कारण ही दोनों देशों के बीच साझेदारी लगातार मज़बूत होती जा रही है। हस्ताक्षरित BECA समझौता दोनों देशों को चीन द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के साथ ही मुक्त एवं खुले और समृद्ध भारत-प्रशांत क्षेत्र के निर्माण में मदद करेगा।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सीमा शुल्क डेटा का इलेक्ट्रॉनिक विनिमय
प्रिलिम्स के लियेभारतीय डाक मेन्स के लियेभारत और अमेरिका द्वारा किया गया हालिया समझौता, उद्देश्य और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार के डाक विभाग और यूनाइटेड स्टेट्स पोस्टल सर्विस (USPS) ने भारत और अमेरिका के बीच आदान-प्रदान किये जाने वाले डाक नौवहन (Postal Shipments) से संबंधित सीमा शुल्क डेटा (Customs Data) के इलेक्ट्रॉनिक विनिमय हेतु समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- उद्देश्य: इस समझौता ज्ञापन का प्राथमिक उद्देश्य देश भर के अलग-अलग हिस्सों में डाक माध्यमों (Postal Channels) के ज़रिये छोटे और बड़े निर्यातकों के लिये ‘ईज़ ऑफ एक्सपोर्ट’ यानी निर्यात करने की आसान सुविधा उपलब्ध कराना है।
- इस तरह यह समझौता भारत को विश्व में ‘निर्यात हब’ बनाने में योगदान देगा।
- विशेषता: इस समझौते के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय डाक सामानों के गंतव्य पर पहुँचने से पहले उनका इलेक्ट्रॉनिक डेटा संचारित और हासिल करना संभव हो जाएगा, जिसके कारण बदलते वैश्विक डाक ढाँचे के अनुरूप डाक सामग्री को सीमा शुल्क संबंधी अग्रिम मंज़ूरी की प्राप्ति हेतु व्यवस्था स्थापित करने में मदद मिलेगी।
- समझौते के अनुसार, डाक नौवहन के इलेक्ट्रॉनिक एडवांस डेटा (EAD) का आदान-प्रदान, डाक माध्यम के ज़रिये भारत के अलग-अलग हिस्सों से अमेरिका को किये जाने वाले निर्यातों पर ज़ोर देते हुए आपसी व्यापार को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम कदम होगा।
- गौरतलब है कि अमेरिका भारत के MSME उत्पादों, रत्न एवं आभूषणों, दवाओं और दूसरे स्थानीय उत्पादों के लिये एक प्रमुख निर्यात स्थल है।
- महत्त्व: डाक सामग्री को सीमा शुल्क संबंधी अग्रिम मंज़ूरी मिलने से विश्वसनीयता, दृश्यता और सुरक्षा के लिहाज से डाक सेवाओं के प्रदर्शन में भी सुधार होगा।
- भारत के लिये अमेरिका शीर्ष निर्यात गंतव्य स्थल है और भारत के निर्यात में अमेरिका का योगदान तकरीबन 17 प्रतिशत है।
- निर्यात संबंधी इन आँकड़ों को भारत और अमेरिका के बीच डाक के ज़रिये वस्तुओं के आदान-प्रदान में भी देखा जा सकता है। आँकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019 में विदेशों में भेजे गए कुल एक्सप्रेस मेल सर्विस (EMS) का 20 प्रतिशत और भारतीय डाक द्वारा संचारित पत्र और छोटे पैकेट के कुल हिस्से का केवल 30 प्रतिशत ही अमेरिका भेजा गया था। वहीं भारत के डाक विभाग को विदेशों से प्राप्त 60 प्रतिशत पार्सल अमेरिका से भेजे गए थे।
- साथ ही इस समझौते से निर्यात वस्तुओं की सीमा शुल्क संबंधी अग्रिम मंज़ूरी की प्रक्रिया में तेज़ी लाने से जुड़ी निर्यात उद्योग की एक प्रमुख मांग भी पूरी होगी।
भारतीय डाक
- भारतीय डाक के रूप में पहचाने जाने वाला भारत सरकार का डाक विभाग (DoP) बीते 150 वर्षों से देश में सुव्यवस्थित संचार प्रणाली के तौर पर कार्य कर रहा है और इसने देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- 1,55,531 डाकघरों के साथ भारत के डाक विभाग (DoP) के पास विश्व का व्यापक डाक नेटवर्क मौजूद है।
- कार्य
- भारतीय डाक का मूल कार्य डाक वितरित करना है, इसके अलावा यह लघु बचत योजनाओं के तहत जमा स्वीकार करने, पोस्टल लाइफ इंश्योरेंस (PLI) और ग्रामीण डाक जीवन बीमा (RPLI) के तहत जीवन बीमा कवर प्रदान करने तथा बिल संग्रह, प्रपत्रों की बिक्री सेवाएँ प्रदान करने का कार्य भी करता है।
- डाक विभाग (DoP), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के तहत मज़दूरी और वृद्धावस्था पेंशन भुगतान जैसे नागरिक सेवाओं को आम नागरिकों तक पहुँचाकर भारत सरकार के लिये एक एजेंट के तौर पर कार्य करता है।