मोहिनीअट्टम (केरल)
तिमाही रोज़गार सर्वेक्षण (QES)
प्रिलिम्स के लिये:अखिल भारतीय त्रैमासिक स्थापना-आधारित रोज़गार सर्वेक्षण (AQEES), त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन मेन्स के लिये:सरकार के सर्वेक्षण और रोज़गार डेटा प्राप्त करने के तरीके |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अखिल भारतीय त्रैमासिक स्थापना आधारित रोज़गार सर्वेक्षण (AQEES) के तहत तिमाही रोज़गार सर्वेक्षण (QES) के चौथे दौर (जनवरी-मार्च 2022) की रिपोर्ट जारी की गई।
QES 2022 के प्रमुख निष्कर्ष:
- कुल रोज़गार:
- चौथे राउंड के दौरान 31 लाख प्रतिष्ठानों में अनुमानित तौर पर कुल 3.18 करोड़ कामगार काम कर रहे हैं, तीसरी तिमाही में यह आँकड़ा 3.14 करोड़ था।
- क्षेत्रवार आँकड़े:
- विनिर्माण क्षेत्र: 38.5%
- शिक्षा: 21.7%
- सूचना प्रौद्योगिकी / बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO): 12%
- स्वास्थ्य क्षेत्र: 6%
- संगठनों का आकार:
- अगर प्रतिष्ठानों को श्रमिकों की संख्या के हिसाब से देखें तो अनुमानित रूप से 80 प्रतिशत प्रतिष्ठानों में 10 से 99 श्रमिक काम कर रहे हैं।
- अगर हम 10 या इससे अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों की बात करें तो यह आँकड़ा बढ़कर 88 प्रतिशत हो जाएगा।
- करीब 12 प्रतिशत प्रतिष्ठानों में 10 से कम श्रमिक काम कर रहे हैं।
- केवल 4 प्रतिशत प्रतिष्ठानों में कम-से-कम 500 श्रमिक काम कर रहे हैं।
- ऐसे बड़े प्रतिष्ठान ज़्यादातर IT/BPO और स्वास्थ्य क्षेत्र में हैं।
- अगर प्रतिष्ठानों को श्रमिकों की संख्या के हिसाब से देखें तो अनुमानित रूप से 80 प्रतिशत प्रतिष्ठानों में 10 से 99 श्रमिक काम कर रहे हैं।
- महिलाओं की भागीदारी:
- चौथी तिमाही की रिपोर्ट में महिला कामगारों की हिस्सेदारी तीसरी तिमाही के 31.6 प्रतिशत से मामूली रूप से बढ़कर 31.8 प्रतिशत हो गई है।
- क्षेत्रवार भागीदारी:
- स्वास्थ्य: 52%
- शिक्षा: 44%
- वित्तीय सेवाएँ: 41%
- IT/BPO: 36%
- उल्लेखनीय है कि वित्तीय सेवाओं में स्वरोज़गार करने वाले व्यक्तियों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं अधिक है।
अखिल भारतीय त्रैमासिक स्थापना आधारित रोज़गार सर्वेक्षण (AQEES):
- श्रम ब्यूरो द्वारा ‘ऑल-इंडिया क्वार्टरली एस्टैब्लिशमेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे’ को नौ चयनित क्षेत्रों के संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में रोज़गार एवं प्रतिष्ठानों के संबंध में तिमाही आधार पर अद्यतन करने के लिये आयोजित किया जाता है।
- AQEES के तहत मुख्यतः दो घटक हैं:
- ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES):
- यह 9 क्षेत्रों में संगठित खंड में 10 या अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों के लिये रोज़गार अनुमान प्रदान करता है।
- ये 9 क्षेत्र हैं- विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और रेस्तरां, IT/ BPO, वित्तीय सेवा गतिविधियाँ।
- यह 9 क्षेत्रों में संगठित खंड में 10 या अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों के लिये रोज़गार अनुमान प्रदान करता है।
- एरिया फ्रेम एस्टैब्लिशमेंट सर्वे (AFES): यह एक सैंपल सर्वे द्वारा असंगठित क्षेत्र (10 से कम श्रमिकों के साथ) को कवर करता है।
- ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES):
QES और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) में अंतर:
- जहाँ एक ओर त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण (QES) मांग पक्ष की तस्वीर प्रदान करता है, वहीं ‘राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण’ या ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (PLFS) श्रम बाज़ार के आपूर्ति पक्ष की तस्वीर प्रस्तुत करता है।
- ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ का संचालन ‘सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय’ के तहत ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन’ (NSO) द्वारा किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक संख्या' प्रस्तुत करता है? (2015) (a) भारतीय रिज़र्व बैंक उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। |
स्रोत: पी.आई.बी.
जलदूत एप
प्रिलिम्स के लिये:जलदूत एप, भूजल की कमी, जल की कमी से संबंधित पहल। मेन्स के लिये:जलदूत एप, भूजल की कमी के मुद्दे और समाधान। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भूजल स्तर का बेहतर तरीके से आकलन करने के लिये "जलदूत एप और जलदूत एप ई-ब्रोशर" लॉन्च किया है।
जलदूत एप:
- परिचय:
- जलदूत एप को ग्रामीण विकास मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।
- इस एप का उपयोग पूरे देश मे प्रत्येक गाँव में चयनित 2-3 कुओं के जल स्तर का आकलन करने के लिये किया जाएगा।
- यह एप ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों मोड में काम करेगा। इसलिये इंटरनेट कनेक्टिविटी के बिना भी जल स्तर का आकलन किया जा सकता है तथा आकलन किये गए डेटा को मोबाइल में संग्रहीत किया जाएगा एवं क्षेत्र में मोबाइल कनेक्टिविटी उपलब्ध होने पर डेटा केंद्रीय सर्वर के साथ सिंक्रनाइज़ हो जाएगा।
- जलदूत एप द्वारा प्राप्त नियमित डेटा को राष्ट्रीय जल सूचना विज्ञान केंद्र (NWIC) के डेटाबेस के साथ एकीकृत किया जाएगा, जिसका उपयोग हितधारकों के लाभ के लिये विभिन्न उपयोगी रिपोर्टों के विश्लेषण एवं प्रदर्शन हेतु किया जा सकता है।
- महत्त्व:
- यह एप देश भर में जल स्तर की जानकारी प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करेगा और परिणामी डेटा का उपयोग ग्राम पंचायत विकास योजना तथा महात्मा गांधी नरेगा योजनाओं के लिये किया जा सकता है।
- एप को देश भर के गाँवों में चयनित कुओं के जल स्तर का आकलन करने के लिये लॉन्च किया गया है।
- जलदूत एप ग्राम रोज़गार सहायक को वर्ष में दो बार प्री-मानसून और पोस्ट-मानसून के बाद कुएँ के जल स्तर को मापने की अनुमति देगा।
- यह एप पंचायतों के लिये महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करनां आसान बनाएगा जिसे बाद में कार्यों की योजना के लिये बेहतर उपयोग किया जा सकता है।
भारत में भूजल की कमी की स्थिति:
- भूजल की कमी:
- केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के अनुसार, भारत में कृषि भूमि की सिंचाई के लिये प्रत्येक वर्ष 230 बिलियन मीटर क्यूबिक भूजल निकाला जाता है, देश के कई हिस्सों में भूजल का तेज़ी से क्षरण हो रहा है।
- भारत में कुल अनुमानित भूजल की कमी 122-199 बिलियन-मीटर क्यूब है।
- निकाले गए भूजल का 89% सिंचाई क्षेत्र में उपयोग किया जाता है, जिससे यह क्षेत्र देश में उच्चतम श्रेणी का उपयोगकर्त्ता बन जाता है।
- इसके बाद घरेलू आवश्यकता हेतु भूजल का उपयोग किया जाता है जो निकाले गए भूजल का 9% है। भूजल का औद्योगिक उपयोग 2% है। शहरी जल आवश्यकताओं का 50% और ग्रामीण घरेलू जल आवश्यकताओं का 85% भी भूजल द्वारा पूरा किया जाता है।
- कारण:
- हरित क्रांति:
- हरित क्रांति ने सूखाग्रस्त / पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जल-गहन फसलों को उगाने में सक्षम बनाया, जिससे भूजल की अधिक निकासी हुई।
- इसकी पुनःपूर्ति की प्रतीक्षा किये बिना ज़मीन से पानी की बार-बार निकासी करने से इसमें त्वरित कमी होती है।
- इसके अलावा बिजली पर सब्सिडी और पानी की अधिकता वाली फसलों के लिये उच्च MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) प्रदान करना।
- उद्योगों की आवश्यकता:
- लैंडफिल, सेप्टिक टैंक, रिसने वाले भूमिगत गैस टैंक और उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अति प्रयोग से जल प्रदूषण होता है तथा भूजल संसाधनों की क्षति होने के साथ इसमे कमी होती है।
- अपर्याप्त विनियमन:
- भूजल का अपर्याप्त विनियमन भूजल संसाधनों की समाप्ति को प्रोत्साहित करता है।
- संघीय समस्या:
- जल राज्य का विषय है, जल संरक्षण और जल संचयन सहित जल प्रबंधन पर पहल एवं देश में नागरिकों को पर्याप्त पीने योग्य पानी उपलब्ध कराना मुख्य रूप से राज्यों की ज़िम्मेदारी है।
- हरित क्रांति:
संबंधित पहलें:
आगे की राह
- भूजल का कृत्रिम पुनर्भरण: यह मिट्टी के माध्यम से रिसाव को बढ़ाने और जलभृत में प्रवेश करने या कुओं द्वारा सीधे जलभृत में पानी भरने की प्रक्रिया है।
- भूजल प्रबंधन संयंत्र: स्थानीय स्तर पर भूजल प्रबंधन संयंत्र स्थापित करने से लोगों को अपने क्षेत्र में भूजल की उपलब्धता जानने में मदद मिलेगी, जिससे वे इसका बुद्धिमानी से उपयोग कर सकेंगे।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):प्रिलिम्स के लिये:प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। मेन्सप्रश्न. “भारत में अवक्षयी (depleting) भूजल संसाधनों का आदर्श समाधान जल संचयन प्रणाली है"। शहरी क्षेत्रों में इसको किस प्रकार प्रभावी बनाया जा सकता है? (2018) प्रश्न. भारत अलवणजल (फ्रेश वाटर) संसाधनों से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है। (2015) |
स्रोत: पी.आई.बी.
न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत
मेन्स के लिये:न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत और संबद्ध मुद्दे |
न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत:
- उत्पत्ति:
- न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत (Just War Theory) की उत्पत्ति शास्त्रीय ग्रीक और रोमन दार्शनिकों जैसे प्लेटो और सिसरो के साथ हुई थी तथा बाद में ऑगस्टीन एवं थॉमस एक्विनास जैसे ईसाई धर्मशास्त्रियों द्वारा इसे आगे बढ़ाया गया था।
- विषय:
- न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत मुख्यतः एक ईसाई दर्शन है जो तीन चीजों में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है:
- मानव हत्या वास्तव में बहुत गलत है।
- राज्यों का कर्त्तव्य है कि वे अपने नागरिकों और न्याय की रक्षा करें।
- निर्दोष मानव जीवन और महत्त्वपूर्ण नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिये कभी-कभी बल एवं हिंसा का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।
- यह सिद्धांत युद्ध पर जाने और साथ ही युद्ध लड़ने के तरीकों से संबंधित शर्तों की व्याख्या करता है ।
- हालाँकि इसे ईसाई धर्मशास्त्रियों द्वारा बड़े पैमाने पर विकसित किया गया था, लेकिन इसका उपयोग हर धर्म के लोग कर सकते हैं या कोई भी नहीं।
- न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत के अनुसार, युद्ध शायद कई बार नैतिक रूप से सही होता है। हालाँकि, कोई भी युद्ध रणनीतिक, विवेकपूर्ण या साहसिक होने के लिये प्रशंसनीय नहीं है। कभी-कभी, युद्ध सामूहिक राजनीतिक हिंसा के नैतिक उपयोग का प्रतिनिधित्त्व करता है।
- मित्र राष्ट्रों की ओर से द्वितीय विश्वयुद्ध को अक्सर एक न्यायपूर्ण और अच्छे युद्ध के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जाता है।
- न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत मुख्यतः एक ईसाई दर्शन है जो तीन चीजों में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है:
न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत (Just War Theory) के तत्त्व:
- जस्ट वॉर थ्योरी को तीन भागों में बाँटा गया है जिनके लैटिन नाम हैं। ये भाग हैं:
- जूस एड बेलम: पहले चरण में युद्ध का सहारा लेने के न्याय के बारे में।
- जूस इन बेल्लो: यह युद्ध के दौरान आचरण के न्याय के बारे में है।
- जूस पोस्ट बेलम: यह शांति समझौतों के न्याय और युद्ध की समाप्ति के चरण के बारे में है।
न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत का उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य संभावित संघर्ष स्थितियों में राज्यों को कार्य करने के लिये सही तरीके से मार्गदर्शन प्रदान करना है।
- यह सिद्धांत केवल राज्यों पर लागू होता है, न कि व्यक्तियों पर (हालाँकि एक व्यक्ति इस सिद्धांत का उपयोग यह तय करने के लिये कर सकता है कि क्या किसी विशेष युद्ध में भाग लेना नैतिक रूप से सही है)।
- यह सिद्धांत व्यक्तियों और राजनीतिक समूहों को संभावित युद्धों पर चर्चा के लिये उपयोगी ढाँचा प्रदान करता है।
- इस सिद्धांत का उद्देश्य युद्धों को न्यायोचित ठहराना नहीं है, बल्कि उन्हें रोकना है। जिसमें इस बात पर बल दिया जाता है कि कुछ सीमित परिस्थितियों को छोड़कर युद्ध करना गलत है और इसके माध्यम से राज्यों को संघर्षों को हल करने के अन्य तरीके खोजने के लिये प्रेरित किया जाता है।
न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत के विपक्ष में तर्क:
- नैतिक सिद्धांत में कोई स्थान नहीं:
- सभी युद्ध अन्यायपूर्ण हैं और किसी भी नैतिक सिद्धांत में इनका कोई स्थान नहीं है:
- नैतिकता को हमेशा हिंसा का विरोध करना चाहिये।
- हिंसा को सीमित करने के बजाय केवल युद्ध के विचार इसे प्रोत्साहित करते हैं।
- सभी युद्ध अन्यायपूर्ण हैं और किसी भी नैतिक सिद्धांत में इनका कोई स्थान नहीं है:
- समाज के सामान्य नियमों को बाधित करना:
- युद्ध के परिणामस्वरूप समाज के सामान्य नियम भंग हो जाते हैं और नैतिकता के क्षेत्र से बाहर हो जाते हैं।
- अवास्तविक सिद्धांत:
- न्यायसंगत युद्ध सिद्धांत अवास्तविक और व्यर्थ है।
- संघर्ष में "मज़बूत वही करते हैं जो वे करना चाहते हैं और कमज़ोर वही करते हैं जो उन्हें करना पड़ता है"।
- युद्ध छेड़ने का निर्णय यथार्थवाद और सापेक्ष शक्ति द्वारा नियंत्रित होता है, नैतिकता से नहीं।
- इस प्रकार नैतिकता का युद्ध में कोई उपयोग नहीं है।
- न्यायसंगत युद्ध सिद्धांत अवास्तविक और व्यर्थ है।
आगे की राह
- युद्ध का सर्वोपरि लक्ष्य यह होना चाहिये कि यथाशीघ्र और सरलता से जीत हासिल की जाए।
- यदि कारण न्यायसंगत है, तो उसे प्राप्त करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिये।
- युद्ध के संचालन के नियम केवल छलावरण हैं क्योंकि वे हमेशा 'सैन्य आवश्यकता' से अधिक शासित होते हैं।
- आतंकवादी स्वाभाविक रूप से नैतिकता में रुचि नहीं रखते हैं, इसलिये युद्ध के किसी भी नैतिक सिद्धांत का पालन करना उन लोगों के लियेअनावश्यक समझते है जिन पर आतंकवादी हमला करते हैं, इस प्रकार एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
स्रोत: बी.बी.सी.
दिबांग जल विद्युत परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:दिबांग जल-विद्युत परियोजना, वन सलाहकार समिति। मेन्स के लिये:पर्यावरण की वृद्धि और विकास, NGT। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की पूर्व शर्त को पूरा किये बिना 3000 मेगावाट की दिबांग जल-विद्युत परियोजना के लिये वन मंज़ूरी देने पर स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले को खारिज कर दिया है।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने ऐसा निर्णय अरुणाचल प्रदेश की इस सूचना के आधार पर लिया जिसमें कहा गया था कि स्थानीय लोग राष्ट्रीय उद्यान की घोषणा के लिये अपनी ज़मीन को बाँटने के इच्छुक नहीं हैं।
प्रमुख बिंदु
- यह बाढ़ नियंत्रण सह जल-विद्युत परियोजना है जिसे अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी दिबांग नदी पर विकसित करने की योजना है।
- यह बाँध आशु पानी और दिबांग नदियों के संगम से लगभग 1.5 किमी ऊपर तथा रोइंग, जिला मुख्यालय से लगभग 43 किमी दूर स्थित है।
- इस परियोजना से मानसून अवधि के दौरान दिबांग बाँध के नीचे के क्षेत्रों में 3000 क्यूमेक्स की सीमा तक बाढ़ में कमी आएगी।
- इस परियोजना को लगभग 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से विकसित किया जाएगा।
- दिबांग जल-विद्युत परियोजना से प्रतिवर्ष 11,222 मिलियन यूनिट (MU) बिजली उत्पन्न होने की संभावना है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT):
- यह पर्यावरण संरक्षण और वनों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी तथा शीघ्र निपटान हेतु ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम’ (2010) के तहत स्थापित एक विशेष निकाय है।
- ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ की स्थापना के साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बाद एक विशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण स्थापित करने वाला दुनिया का तीसरा देश बन गया और साथ ही वह ऐसा करने वाला पहला विकासशील देश भी है।
- ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ को आवेदनों या अपीलों के दाखिल होने के 6 महीने के भीतर अंतिम रूप से उनका निपटान करना अनिवार्य है।
- NGT का मुख्यालय दिल्ली में है, जबकि अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी/नदियाँ है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
प्रश्न. रन-ऑफ-रिवर जलविद्युत परियोजना से आप क्या समझते हैं? यह किसी अन्य जलविद्युत परियोजना से किस प्रकार भिन्न है? (2013) प्रश्न. मान लीजिये कि भारत सरकार जंगलों से घिरी और जातीय समुदायों द्वारा बसी हुई पहाड़ी घाटी में एक बाँध बनाने की योजना बना रही है। अप्रत्याशित आकस्मिकताओं से निपटने के लिये उसे किस तर्कसंगत नीति का सहारा लेना चाहिये? (2018) |